________________ [ 2 ] में बसने वाले वज्रपाणि पुरन्दर शक्र का भी एक नाम 'इन्द्र' है, नामसाम्य पर उपर्युक्त किंवदन्ती प्रचलित होगई हो, यह स्वाभाविक है। 'चन्द्रगोमी' नाम के बौद्ध महापण्डित ने जो व्याकरण लिखा वह 'चान्द्रव्याकरण' कहलाता है / प्रस्तुत प्रकाश्यमान यही व्याकरण है। / / 'काशकृत्स्न' और 'अपिशलि' इन दो नामों का निर्देशमात्र पाणिनीयव्याकरण के मूलसूत्रों में कहीं-कहीं मिलता है तथा अन्य व्याकरणकारों ने भी नामस्मरण करके इनके मत का उल्लेख किया है। इससे मालूम होता है कि ये महानुभाव अवश्य ही कोई विशिष्ट वैयाकरण हो गये हैं, बाकी वर्तमान में इनके ध्याकरणों की उपलब्धि अाज तक तो नहीं हुई है। शाकटायन-नाम का निर्देश भी पाणिनि के सूत्रों में मिलता है। ये कोई वेदानुयायी प्राचीन वैयाकरण हैं / एक जैन शाकटायन भी हुए हैं, परन्तु वे तो अर्वाचीन हैं / नामसाम्य से जैन-धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये 'शाकटायन' का नाम लिया जाता है, पर यह भ्रम है और इतिहास ने इस भ्रम का परिमार्जन भी कर दिया है। पाणिनिकृत अष्टाध्यायी-सूत्रपाठ प्रसिद्ध व्याकरण है। इसके ऊपर पातजलमहाभाष्य, वाक्यपदीय, काशिका, शब्देन्दुशेखर, सिद्धांतकौमुदी, मंजूषा तथा वैयाकरणभूषण इत्यादि अनेकानेक विवेचनात्मक ग्रंथ बने हुए है। अमरसिंह-नामक बौद्धपण्डित का बनाया हुआ कोशों में सबसे प्राचीन 'अमरकोश' तो आज भी प्राप्त है। इस पर भी अनेकानेक संस्कृत-टीकायें बनी हुई हैं तथा देश-भाषा में भी इसकी टीकायें प्राप्त हैं। सारे भारत में इस कोश का अच्छा प्रचार है। कोश भी व्याकरण का एक अंग ही है / बाकी, इनका बनाया हुआ कोई व्याकरण उपलब्ध नहीं है / जैनेन्द्र-प्राचार्य देवनन्दिमुनि अथवा पूज्यपादस्वामी के बनाये हुये व्याकरण का नाम जैनेन्द्र-व्याकरण है। जैन-परम्परा में इससे पूर्व का कोई संस्कृतध्याकरण उपलब्ध नहीं है। जैन-परम्परा की अपेक्षा ये प्रादिशाब्दिक ही हैं। इनकी रचना पाणिनीय व्याकरण की पद्धति पर की गई है और इसकी संज्ञायें बड़ी अटपटी हैं। इन पाठों व्याकरणों का निर्देश कालक्रम से इस प्रकार हो सकता हैऐन्द्र, काशकृत्स्न, अपिशलि, शकिटायन, पाणिनीय, चान्द्र, जैनेन्द्र, अमर / प्रस्तुत चान्द्र व्याकरण भारत देश में ही बना है पर कहाँ बना, इसका पता नहीं। भारतीय होने पर भी चान्द्रव्याकरण का प्रथम प्रकाशन भारत में न