________________ - चान्द्रव्याकरणम् [नाभ:--निसः नाभेः 4 / 4 / 104 / निन्दा-आशी:-प्रेष्येषु तिङाकाङक्षम् नाम-गोत्र-रूप-स्थान-वर्ण-वयस्-वचन-धर्म 6 / 3 / 126 / जातीये वा 5 / 2 / 104 / निन्ये पाशप् 4 / 3 / 42 / नाम-रूपात् धेयः 4 / 4 / 25 / / नि-परेः च सेव-सिवु-सह-सुटाम् नाम्नि 5 / 2 / 18 / 6 / 4 / 55 // नाम्नि 6 / 3 / 37 / निपानम् आहावः 1 / 3 / 63 / नाम्नि क्तिच् 1 / 3 / 77 / नि-प्रते: स्तब्धः 6 / 4 / 6 / / नाम्नि ग्रह-आदिशः 1 / 3 / 150 / निबिड-निबिरीष-चिक्क-चिकिन-चिपिटाः नाम्नि जन्याः 3 / 4 / 1 / 4 / 2 / 33 / नाम्नि नासाया नसः अस्थूलात् / निमान-निमेययोः मयट् 4 / 2 / 46 / ___4 / 4 / 106 / निमित्ताद् व्याप्येन 2 / 1 / 86 / नाम्नि परात् च चतुर्थ्याः 5 / 2 / 10 / निमित्ते संयोगोत्पाते 411 // 51 // ... नाम्नि षष्ठ्याः कन्या-उशीनरेषु 2 / 2 / 67 / नियः 1 / 3 / 15 / नाम्नि अष्टनः 5 / 2 / 46 / नियः 6 / 2 / 60 / .. नाम्नि उदकस्य उद: 5 / 2 / 65 / नियः डित् (उणादि) 1146 / नामि अतिसृ-चतस्रोः 5 / 3 / 4 / निर्-अभेः पू-ल्वः 1 / 3 / 16 / नालि 6 / 2 / 32 / निर्-अभि-अनोः च स्यन्दः अप्राणिनि ... नावादिभ्यः ठन् 4 / 2 / 118 / वा 6 / 4 / 61 / नाशिषि अगो-वत्स-हले 5 / 2 / 102 / - निरा-अलंभ्याम् कुः इष्णुच् 1 / 2 / 6 / / नासन-वर्जनेषु 5 / 4 / 83 / निर्-दुर्-बहिर्-आविर्-चतुर्-प्रादुष्-पुरनासानतौ टीट-नाटच्-भ्रटचः 4 / 2 / 32 / साम् 6 / 4 / 35 // नासिका-नाडी-मुष्टि-घटी-खरीभ्यः निविण्णः 6 / 4 / 123 / 1 / 2 / 13 / निर्वृत्ते अक्षयूतादिभ्यः 3 / 4 / 18 / / निवासस्य चरणे अण् च 3 / 2 / 60 / नासिका-उदर-ओष्ठ-जङ्घा-दन्त-कर्ण-शृङ्ग निवासे तन्नाम्नि 3 / 1 / 64 / . अङ्ग-गात्र-कण्ठात् 2 / 3 / 62 / निशा-प्रदोषात् 3 / 2 / 74 / / निकटादिषु वसति 3 / 4 / 74 / निष्कादेः शत-सहस्रात् 4 / 2 / 123 / निजाम् लुकि एत् 6 / 2 / 127 / / निष्कुलात् निष्कोषणे 4 / 4 / 46 / नित्यवैरिणाम् 2 / 2 / 55 / / निष्कुषः 5 / 4 / 106 / नित्यं हस्ते-पाणौ उद्वाहे 2 / 2 / 38 / निष्प्रवाणिः 4 / 4 / 148 / निद्रा-तन्द्रा-श्रद्धा-दया-हृदयात् वालुच्. नि-सम्-वि-उपेभ्यः ह्वः 1 / 4 / 76 / .. .. 4 / 2 / 157 / निसः शतो डच 4 / 4 / 64 / . ..