________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 3, सू० 14-63 14 इङो गमः / पा०६।४।१६+वा०१॥ 36 मो वा / पा०६।४।३७ वा०२।। 15 तनो वा / पा०६।४।१७। 37 झलि तिङि अपिति / . 16 क्रमः त्वि / पा०६।४।१८। पा०६।४।३७। पा०१।२।४। 17 बमः किति वौ च / पा०६।४।१५। 38 क्ङिति / पा०६।४।३७। 18 अमि च च्छ्-वोः शूठ / 36 जन-सन-खनाम् आत् / पा०६।४।४२॥ पा०६।४१६। 40 सनि / पा०६।४।४२।। 16 ज्वर-त्वर-अव-श्रिव-मवांसोपान्तस्य। 41 ये वा / पा०६।४।४३। पा०६।४।२०। 42 तनो यकि / पा०६।४।४।। 20 रात् लोपः / पा०६।४।२१। 43 सनः क्तिचि लोपश्च / पा०६।४।४५॥ 21 प्राग्युवोः अवुगयुग असिद्धं समाना- 44 लिङि तङि गमः / पा० 1 // 2 // 13,11 // श्रये / पा०६।४।२२+वा० 12,14 / 45 सिचि / पा० 112 / 13 / .. 22 इनान्नः / पा०६।४।२३। 46 हनः / पा० 112 / 14 / . 23 हलः अनिदितः किति उपान्तस्य / . 47 यमः सूचने / पा० 1 / 2 / 15 // पा०६।४।२४। 48 वा उद्वाहे / पा०१।२।१६। 24 शिति अपिति / पा०१।२।४। 46 गमादीनां क्वौ। पा०६॥४॥४०+भा०। 25 लिटि इन्धि-श्रन्थ-ग्रन्थाम् / 50 न अश्चः पूजायाम् / पा०६।४।३०। पा० 1 / 2 / 6 / काशिका 1 / 2 / 6 / 51 क्तिचि दीर्घश्च / पा०६।४।३।। 26 दम्भः स्सनि च / काशिका 1 / 2 / 11 / 52 क्त्वि स्कन्द-स्यन्दोः। पा०६॥४॥३१॥ 27 स्वञ्जः / पा०१।२।६। काशिका 53 सेटि / पा० 1 // 2 // 18 // 112 / 6 / 54 वञ्चि-लुम्चि-थ-फो वा / 28 शपि दंश-सञ्जश्च / पा०६।४।२५॥ पा०१।२।२४,२३॥ 26 रञ्जः / पा०६।४।२६। 55 ज-नशः / पा०६॥४॥३२॥ 30 णौ मगरमणे / पा०६।४।२४ वा०३। 56 भञ्जेः चिणि / पा०६।४।३३। 31 घबि भाव-करणयोः / पा०६।४।२७। 57 शासः क्ङिति शिस् / पा०६।४।३४। 32 स्यदो जवे / पा०६।४।२८। 58 तिङि हलि अपिति / पा०१॥२॥४॥ 33 अवोद-एध-ओद्म-प्रश्रय-हिमश्रथाः। 56 शा हो / पा०६॥४॥३५॥ . पा०६।४।२६। 60 हनो जः / पा०६।४।३६। 34 लङ्गि-कम्प्योः उपताप-शरीर- 61 लिट्-आशीलिङ-अतिङशिति / विकारयोः / पा०६।४।२४ वा०१॥ पा०६।४।४६। 35 तनादिअनिट्-वनां ल्यपि अमः / 62 भ्रस्जो भर्ज वा / पा०६।४।४७। पा०६।४।३७,३८। 63 लोपः अतः / पा०६॥४॥४८॥ 1 अत्र काशिकायाम् सूत्रवृत्ती “दम्भेर्हल्ग्रहणस्य जातिवाचकत्वात् सिद्धम् - धीप्सति, धिप्सति" इति निर्देशः /