________________ 184] चानव्याकरणम् [सह-सु सह-न-विद्यमानादे: 2 / 3 / 68 / सिन्धु-अपकरात् वा 3 / 3 / 4 / सहस्य सध्रिः 5 / 2 / 111 / सिन्ध्वादिभ्यः अण् 3 / 3 / 61 / . सहस्य सः अन्यार्थे 5 / 2 / 67 / सिपि रुर्वा 6 / 3 / 106 / सहस्र-वसन-विंशतिक-शतमानात् अण् / सि-मि-चीनां ईत् च (उणादि) 3 / 12 / 4 / 1 / 30 / सि ष-ढोः कः 6 / 3 / 72 / सहार्थे 2 / 1 / 57 / सि सः लिङतिङि 6 / 2 / 66 / . . . सहार्थेन 2 / 165 / सितया समिते 3 / 4 / 62 / सहि-चलि-वहः कि-किनौ 1 / 2 / 113 / सीधु-सुरात् पिबः 1 / 2 / 45 // सहि-वहोः ओत् 5 / 2 / 138 / . सु-अमोः नपुंसकात् 2 / 1 / 23 / / साक्षात् आदीनि 2 / 2 / 36 / सुखादिभ्यः 4 / 2 / 128 / साक्षात् द्रष्टा 4 / 2 / 60 / सुखादीनि वेदयते 1 / 1 / 35 / सात् 6 / 4 / 61 / सुचो वा 6 / 4 / 36 / साधोः 12 / 57 / / सुट् त-थोः 1 / 4 / 36 / साप्तपदीनं सख्ये 4 / 27 / सुपः 1 / 2 / / सारेर् अथिन् (उणादि) 162 / सुपः 4 / 3 / 61 / साऽस्य पौर्णमासी 3 / 1 / 18 / सुपः प्रकृतेर्नो लोपः 6 / 3 / 48 / सिकता-शर्कराभ्याम् 4 / 2 / 108 / सुपा अनाङ-मयेन 6 / 4 / 133 / सुपि 6 / 2 / 40 / सिचः 1 / 4 / 41 / सुपि नलोपः 6 / 3 / 28 / सिचि 5 / 3 / 45 / सुपि वलि तद्वत् 6 / 3 / 51 / सिचि दा-धा-स्थाम् इत् च 6 / 2 / 27 / सुपि हस्वः 2 / 2 / 04 / सिचेः कन् नुम्-हौ च (उणादि) सुपो यथेष्टम् 5 / 1 / / सुपः असंख्यात् लुक् 2 / 1 / 38 / सिचो यङि 6 / 4 / 2 / सुपि अचः 6 / 4 / 122 / सिचि अतङि 5 / 4 / 103 / सुप्रात-सुश्व-सुदिव-शारिकुक्ष-चतुरश्राः सिच्लोपः एकादेशे 6 / 3 / 30 / 4 / 4 / 105 // सि-तनि-गमि-मसि-सचि-अवि-धाञ सुप् सुपा एकार्थम् 2 / 2 / 1 / क्रुशिभ्यः तुन् (उणादि) 1 / 22 / सुभग-आढय-स्थूल-पलित-नग्न-अन्धसिधि-बुधि-स्विदि-मनि-पुष-श्लिषः श्यना प्रियात् अच्वेः भुवः खिष्णुच्-खुकना 5 / 4 / 131 / 1 / 2 / 46 / सिधो गतौ 6 / 4 / 63 / सु-वि-निर्-दुर्व्यः सम-सूति-सुपाम् सिध्मादिभ्यः 4 / 2 / 100 / 6 / 4 / 75 // 367 /