Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगंढसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाइयदसाओ.पण्हावापरणाई.विवागसूर्य AVANAVAVI VAVAVALAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAS वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निग्गंथं पावयणं अंग सुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोववाइयदसाओ पावागरणाई विवाग सुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक सुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान) · Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक: श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस) पृष्ठांक ! ६२५ मूल्य : ८० मुद्रक :एस. नारायण एण्ड संस (प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO. UWASAGADASÃO ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Vāćanā PRAMUKHA ĀCĀRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kārtic Kțishna 13 2500th Nirvana Day Pages 925 Rs. 80/ Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणयुटवं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्माण - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पणिहाणपुध्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लोन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभुओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुथ्वं ॥ जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित दुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक : पाठ-संशोधन : सहयोगी 72 18 " संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए । आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे । वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की वात ठहरी। इस तरह नंदी मिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मात-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाडनूं में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-"ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण। २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में--(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहन्झयणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में-(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए । समवायांग का मुद्रण-कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)। उक्त प्रकाशन कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त आ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गंज रहे हैं.. "धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय--ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चूना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सून्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व भारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध--- आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं.–अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं। उनकी संख्या बारह है-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अंतकृतदशा ६. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग। प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है। इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणु सरोदवाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं-इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है । विस्तृत भूमिका और शब्द-सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द-सूची होगी। प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ-संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं। लेखनकार्य में कुछ ऋटियां हई हैं। कुछ त्रटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं। वे कब हुई यह निश्चय-पूर्वक नहीं कहा जा सकता। पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हई हैं, यह संभावना की जा सकती है। 'नायाधम्मकहाओ' १११५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है। स्थानांग ४११३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है। बाईस तीर्थकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है. पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता । ऐसा प्रतीत होता है कि अगार-विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है। इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति रायपसेणइय सूत्र के आधार Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें-नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकहाओ १।१२:३६, १।१६।२१, १।१६।४६ में भी मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र १०।४ में 'कायवर' पाठ मिलता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर'-प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है। लिपि-दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया। निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सुत्र १) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है। काँचपात्र और वज्रपात्र-दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं। इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है। लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण-विपर्यय अन्यत्र भी हआ है। 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा पचंकमण' के स्थान पर एवंकमण' पाठ मिलता है। पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं। उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है। प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओक. ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मूलपाठ यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है। यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है। ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित यह प्रति गर्वया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं। प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इथर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए। प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं। उनमें अन्तिम श्लोक एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥१॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्मप्रदेशटीकेति ॥छ।। ४२५५ ग्रंथानं ।। वत्ति । एवं सूत्र वृत्ति १७५५ ग्रंथाग्रं ॥१॥छ।। ग. नायाधम्मकहाओ (मूलपाठ) यह प्रति गर्धया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं ।प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं। प्रति जीर्ण-सी है। बीच में वावड़ी है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिपि संवत् १५५४ है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है-संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण वदि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायकश्रीसमतिसाधरि । तत्पट्टे श्रीहेम विमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन । साह श्री सूरा लिखापितं ॥ जोसी पोपा लिखितं ॥ भ्राति उज्जल संजुक्त घीआ लिखापितं छाछ॥१॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं। घ. टब्बा यह प्रति १२वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है। २. उवासगदसाओक. उवासगदसाओ----मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है। पत्र क्रमांक संख्या १८२ से २०२ तक है । फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है । इसकी लम्बाई १४ इंच, चौड़ाई इंच है। प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीव अक्षर हैं। प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ है। अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है। ख. उवासगदसाओ--टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित)-- __यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है। प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४९ इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २०३ से २२२ तक। विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी ११८६ से पहले की होनी चाहिए। ख. हस्तलिखित-गधया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति (उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय-देखें अणुत्तरोववाइय 'ख' प्रति-लेखन. संवत् १४६५ है। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग. हस्तलिखित~-गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच तथा चौड़ाई ४३ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं। प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है। केवल इतना लिखा है--॥छ।। ग्रंया ८६० 1100 1100 पुण्यत्नसूरीणा।। यह प्रति मात्रैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है। पत्र की लम्बाई १० इंच व चो०४५ इंच है। प्रति के अंत में तीन दोहे लिखे हुए हैं। थली हमारौ देश है, रिणी हमारो ग्राम । गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारो नाम ॥१॥ गणेश हमारा है पिता, मैं सुत मुन्नीलाल । अड़ो गच्छ है खरतरो, उजियागर पोसाल ॥२॥ बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां नाम । जंगलधर बादस्या, गंगासिंहजी नाम ॥३॥ श्रीरस्तु ॥छ।। कल्याणमस्तु ॥छ।। ४. अणुत्तरोववाइयदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है। अतः क्रमानुसार यह प्रति ११८६ से पहले की है। ख. गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की (उपासकदमा, अन्तक्रत और अनूतरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पत्र १३१ इंच लम्बा तथा ५१ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं। प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यग्रुचिरजायत ॥२१॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ॥३॥ तदंगजन्माजनि वाहडास्यः सद्धर्मकर्मार्जिन बद्धकक्ष: 1 वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंच का राजमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तदुवंशविशालकेतुः कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्र कलावानपि यः प्रकामं बुधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ||५|| तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥ ६ ॥ तस्यार्हदंह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य । आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभूवुरभितोप्युद्योतयंतः कुलं, चत्वारस्तनया नयार्जितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तातयस्त्रिभुवाभिवस्तदपरो गेलाह्वयोमा भुवि ॥८॥ चत्वारोपि व्यधुरघरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातनुधनभृतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहृदयास्तीह जैनांहिलीना ॥ ६ ॥ तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा | द्वाप्यभूतां गुरुदेवभक्तौ मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥ १० ॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्री यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण सारेण सहिता शुभा । गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पौ ॥ १२ ॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरंतरं । एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षतः ||१३|| विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण' निधि' 'वादु' मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे || १४ || गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांग पुस्तकं । दत्तेस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ॥१५॥ ॥ छ ॥ श्रीः ॥ ग. हस्तलिखित प्रति नधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त। इसके पत्र ६ तथा पृष्ठ १८ हैं । प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं । प्रति Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख. ५. पण्हावागरणाई क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ ---- पत्र संख्या २२० से २५६ ग. घ. च. क्व. की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है | अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं छ। अणुत्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्तं छ । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः छ छः प्रति का अनुमानित समय १६०० है । १८ पंचपाठी हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तराधे । यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८ हैं। प्रत्येक पत्र १० X ४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा वीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति की जगह-ग्रंथा १२५० शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ लिखा है। लेखन कर्ता तथा लिपि संवत् का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए । त्रिपाठी (हस्तलिखित ) -- ↓ गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त इसके पत्र १११ हैं प्रत्येक पत्र १०४ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ सेप तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वृत्ति तथा बीच में कलात्मक बावड़ी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच चीन के कई पन्ने लुप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथाग्र १२५० छ।। श्री ।। छ|| || लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए । 1 मूलपाठ (सचित्र) - पूनमचंद दुधोड़िया, छापर द्वारा प्राप्त। इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं । बीच में बावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र है। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानतः १५७० के लगभग की होनी चाहिए। अशुद्धि बहुत है। मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति मध्या पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ८३ । यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ है। बालाववोध पंचपाठी पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं। अक्षर २८ से ३५ } तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है । ६. विवागसु क. ख. मदनचन्दजी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मूलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है। लेखन संवत् ११५६ आश्विन सुदि ३ सोमवार पुष्पिका काफी लम्बी है पर । अस्पष्ट है । प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में । लिखी हुई है। मूलपाठ यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं । पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४१ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हुआ है । प्रति प्रायः शुद्ध है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ।। संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं। ग. मूलपाठ- यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी बैंगानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पृष्ठ ७० हैं । प्रत्येक पत्र ११३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में- एक्कारस्यं अंग समत्तं ॥ प्रथाय १२१६ ॥ टीका १०० एतस्या | लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीव ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। वृ. एम० सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १९३५, 'विवागस्यं । सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम याचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में वहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण तटस्थ - दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आवार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ । हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है । हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है । मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊं, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू । प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं । प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है। इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट ) ने तैयार किया है। कार्य निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ | आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता । आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं | अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुताण' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ के कार्यकर्त्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है । अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस । मुनि नथमल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मकहाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशानी का छठा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्र तस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है। दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओं बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है। प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित-दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं।' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' नाथधर्मकथा) मिलता है। नाथ का अर्थ है स्वामी। नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा। कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है। आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण-प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म-कथाएं' है। दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्धीकरण का उल्लेख किया है।' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार 'ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पइग्णगसमवाप्रो, सून १४ ॥ २. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा । ३. (क) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि-उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरा. दित्वात्पूर्वपदस्य दीन्तिता। (ख) समवायांगवत्ति, पन १०८ : ज्ञातानि- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घवं संज्ञात्वाद अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिघायकत्वात् ज्ञातानि, द्वितीयस्तु तथव धम्मकथाः । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है--भगवान् महावीर की धर्म कथा'। वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त है उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा --यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्म कथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञान) है। इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल-शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप-मंदूक की कया बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परिवाजिका चोखा जितशत्र के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है--'तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्त:पुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा---'तुम कूप-मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप-मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा। चोखा ने कहा--'कुएं में एक मेंढक था । वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कृप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समदी मेंढक उस कूप में आ गया । कूप-मंडुक ने कहा--तुम कौन हो ? कहां से आए हो? उसने कहा--- मैं समद्र का मेंढक हैं, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा--वह समुद्र कितना बड़ा है ? समद्री मेंढक ने कहा----वह बहुत बड़ा है । कूप-मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा--क्या समद्र इतना बडा है ? सुमद्री मेंढक ने कहा---इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फूदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा--इससे भी बहत बड़ा है। कूप-मडूक इस पर विश्वास नहीं कर सका । इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों को दष्टि से प्रस्तुत आगम वहत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं। १.जन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका, पत्र ६६० । २. Stories From the Dharma of NAYA ई० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३.(क) समवरो, पइग्ण गसमवायो, सून ६४ (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. तायाधम्मकहाओ मा१५४, पृ० १५६,१८७ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ उवासगदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। धमण-परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे। उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं। TOTAद . विषय-वस्तु भगवान महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म---इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मनि के लिए पांच महावतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमगोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है। व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है। इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तर तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मनि का आचार-धर्म अनेक आगमों में मिलता है कि गृहस्थ का आचार-धर्म मुख्यत: इसी आगम में मिलता है। इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है। इसकी रचना का मख्य प्रयोजन ही गृहस्थ के आचार का वर्णन करना है। प्रसंगवश इममें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सन्दर चर्चा हुई है। उपासको की धामिक कसोटी को घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखने थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है। उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं -दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति रात्रिबोजन विरति ग्रहाचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था। व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा-ये दो पद्धतिया हैं। समवायांग और नन्दी सूत्र में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमा का उल्लेख है। १. कसायपाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सूत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्देशनकालो के अन्तर का आशय हो ज्ञात नहा । नासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' है । चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं---एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे नाम, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र'। तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सदर्शन, यमलीक, बलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवायो, पइण्णगसमवाओ, सून ६६ :.... 'दस अज्झयणा सत्त दगा। २. नंदी, सूत्र ८६."अट्ठ वगा। ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयेव पटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त बग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पत्र ११२ : ततो भणित-अठ्ठ उद्दसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः ।। ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पु० ६५: पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृतिसहित पृ०६३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकद्दशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ०६८: दस त्ति-अवस्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०, पृ०७३ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है'। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता हैं। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं । इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे- गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्ण । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है। 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं-अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासदेवकष्ण के छोटे भाई गजसकमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है। छठे वर्ग में अर्जनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य बनताबिगड़ता है-इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं ! ___ अतिमवतक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं। भगवान महावीर ने उपवास और ध्यान दोनों को स्थान दिया था। तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं। भगवान् महावीर ने अपने साधना-काल में उपवास और ध्यान--दोनों का प्रयोग किया था। यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बल क्यों दिया गया? विस्मति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है। १. तत्त्वार्यवातिक १२०, पृ० ७३ :... इत्येते दश बर्धमानतीर्थकरतीर्थे 1 एवमुषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थे वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृत: दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहट भाग ११० १३०: अंतयडदसा णाम अंगं चउम्बिहोवसग्गे दारुण सहिऊण पारिहेर लढण णिम्वाणं __ गदे सुदंसपादि-दस-दस-साहू तित्यं पहि वपणेदि । ३. स्थानांगबत्ति पत्र ४५३..."ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति सम्भाषयामः । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोदवाइयदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवा अंग है। इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओं' है। नंदी सत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्थानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवातिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मनियों का वर्णन है। समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग-दोनों का उल्लेख है। उसमें दस अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं। (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। (२) राजवार्तिक के अनुसार-- ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे--यह तत्त्वार्थवार्तिककार का मत है। धवला में कार्तिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसूरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है। उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य. १. नंदी, सून ८९ :....."तिण्णि वरगा। २. ठाणं १०१५१४ ३. (क) तत्त्वार्थवातिक ११२०, प०७३ । ...इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य विजयाद्यनुतरेषुत्पन्ना इत्येवमनुत्तरोपपादिक: दशास्या वय॑न्त इत्यनुत्तरोप पादिकदशा । (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंमं च उब्दिहोवसम्मे दारुणे सहिपूण चउवीसहं तित्थयराणं तित्थेसु अणुत्तर विमाण गदे दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । ४. समवाओ, पइण्णगस मवाओ ९७ । ...."दस अज्झयणा तिणि बागा......! ५. ठाणं १०१११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०१०७३ । ७. षट्खण्डागम ११२ ८. स्थानांगवृत्ति पन ४८३ : तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्त्तो न पूनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास-ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय-ये दो अध्ययन प्राप्त है, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है । धन्य अनगार के तपोमय जीवन और तप से कृश बने हुए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पण्हावागरणाई नाम-बोघ प्रस्तुत आगम द्वादशाक्षी का दसवां अंग है। समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पण्हावागरणदसाओ' है। समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु'-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग-निर्दिष्ट नाम भी सम्मत है। जयधवला में 'पण्हवायरण' और तत्त्वार्थवार्तिक में 'प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए है-उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी में इसके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है । स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, पइण्णमसमवाओ सूत्र ६८। (ख) नंदी, सूत्र ६० । २. ठाणं १०।११०॥ ३. (क) कसायपाहुट, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंगं"। (ख) तत्त्वार्थवार्तिक ११२० : ''प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पण्हावागरणदसाणं दस अपझयणा एण्णता, तं जहा-उवमा. संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमणपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दामपसिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुपसिणाई । ५. (क) समकाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १८: पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसय अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अट्ठतरं पसिणापसिणयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । (ख) नंदी, सूत्र है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाह प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षोम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वणित हैं। इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्देशनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी- इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख जीवन और मरण वा वर्णन करता है। उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं हैं। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो। यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नदी में प्रस्तत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नंदी चूर्णि में उनका उल्लेख मिलता है । यह संभव है कि चूणिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्यवार्तिक १२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविक्षेपहेतुन्याश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम् । तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः । कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२ः पण्डवायरणं णाम अंगं अक्खेवणी-विक्खेवणी-संवेयणी-णिव्वेयणीणामाग्रो चउम्विहं कहाओ पण्हादो णट्र-मटिठ चिंता-लाहालाह-सुखदुक्ख-जीवियमरणाणि च वणेदि । १. नंदी सूत्र, चूणि सहित पृ० ६६ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का व्यारहवां अंग है। इसमें मुक्त और दुष्कृत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं' है ' स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है' | विषय-वस्तु प्रथम विभाग में प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और मुख विपाक दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते में होते हैं। वे अपनी क्रूर मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं । दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है. यह भी जानने को मिलता है। दूसरे विभाग में सुकृत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं जैसे क्रूर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं। अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है । I २६ विवानसूर्य स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं- मृगापुष, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीपेण, शीरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी मे नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है । इस आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि जंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की भाषा, प्रतिपाद्य विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है । १.(क) माओ पासून ११ (ख) नंदी, सून ११ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १।२० (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ० १३२ | २. ठाणं १०१११० 1 ३. ठाणं १०।१११ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NĀYĀ DHAMMAKAHÃO The title The present Āgama is the sixth Anga of Dwādaśāngi. It has two Śrutaskandhas. The first is called as 'NĀYA' and the second as 'DHAMMAKAHĀO'. On combining both the Śrutaskandhas, the present Āgama has the title as 'NÄYĀDHAMMAKAHĀO'. 'NĀYĀ' (Jnāta) means examples and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables.? In the Jayadhawalā the title of this Āgama is found as 'Nähadhammakahā' (Nāthadharma-kathā). “Natha' means the Lord. 'Nāthadhamma kahā' i.e, the dharmakathā expounded by the Tirthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Inātsidharmakatha'. Acharya Akalanka too has given the title of this Agama as 'Inātadharmakatha'. Acharya Malayagiri and Abhayadeva Süri give the title of 'Jnātadharmakathā. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Śrutasakandha has illustrations and the second Śrutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word Jnāta'.: The family name of lord Mahavīra has been given as 'Jnāta' and 'Natha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahavira. They hold that *Jnātadharmakathā' or 'Nātha-dharmakathā' means the 'Dharmakathā by lord Mahāvira'. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnātriwansi Mahāvira, is titled as NĀYADHAMMAKAHĀ. But, on the account found in the Samwāyanga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, painnaga samawao, Sutra 94. 2. Tatwartha Vartika, 120. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. $. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakathā of Jaatsiwansĩ Mabävira' does not seem to be appropriate. It has been toid there that in the 'Jnātadharmakathā', the cities and gardens etc. of the Inātas' (the persons cited) have been described,1 The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanâye' (Utkshiptajñāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations and fables in the present Āgama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also. While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her---You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said - You are like a Kūpa-Mandūka. Who is that Kupa Manduka ? Chokha said–There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered -I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean ? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him--Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered --Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said--Is the ocean so big? The ocean-frog answered--It is far more bigger than this too. The well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well. 1. (a) Samwao. painnagasamawao, Sutra 94. (6) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Agama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWĂSAGADASÃO The title The present Agama is the seventh Anga of the Dwadasangi. It has the biographies of ten Upasakas (lay devotees), therefore, it is called as ‘Upāsagadasão' in the Sramanū order the laymen serving the Sramanas are called Sramaṇopāsakas or Upāsakas. Lord Mahavira had large number of Upāsakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upāsakas. The Content Lord Mahavira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upāsakas. Five Mahāyratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upasaka, śramanopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidentiy, Niyatiwada has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upasakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahavira took care of the accomplishment of the Upāsakas. and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawalā the present Agama narrates eleven-fold practices of the 'Upåsakas'. They are-Darsan, Vrat, Sāmayika, Pausadhopawā. Sacitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati Anumáti-Virati, and Uddista Virati'. The Srāwakas, beginning from 1. Kasyapahuda, parti, pages 129-30. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 Ananda, had practised above said eleven Pratimas. The Vratas are practised indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimás also. These Vratās and Pratimās are the two religious codes for an Upāsaka. In the Samawāyānga and the Nandi Sütra, Vrata and Pratimă both are mentioned. The Jayadhawalā gives an account of Pratimäs only. ANTAGADADASÃO The title The present Agama is the eighth of the Dwādaśāngi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasão". The Samwāyānga tells us that it contained ten Adhyayanas and scven Vargast. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sūri has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawāyānga Sūtra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives cight Vargas only with no mention of Adhyayanas'. But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawāyanga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kālas) of this Agama and the Nandi Sūtra gives only eight. Sri Abhayadeva Suri admits that he does not understand the purpose behind the differcnce in the number of the Uddesankälas. Thc Chūrnikār of the Nandisātra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikär, Sri Haribhadra Sūri also write that the present Āgama is given the title 'Antagadadasão as it has ton Adhyayanas in the first Vargas. The Churņikār takes the meaning of 'Daśā' as 'Awastha' (condition) also. Threc traditions are found to narrate the present Agama : firstly, that of the sa mawāyānga; secondly, that of the Tatwārtha Vārtika, and thirdly, that of the Nandi Sütra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96. 2. Nandi Sotra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ According to the first tradition, the present Agama has ten Adhyayanas, The Sthānanga Sutra supports it. The Sthänänga mentions the ten Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mätanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamali, Bhagali, Kimkaşa, Čilawaka, Pala, and the Ambashthaputtra. These headings are fou d in the Tatwärthavartika also with some variance, such as, Nami, Matang, Somila, Ramagupta, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pala and Ambasthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Agama gives an account of the Antakṛita Kewalis, in groups of ten contemporaries of each Tirthankara. The Jayadhawala, too, supports this statement of the Tatwarthavrātika. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayanas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawayanga and the Tatwärthavarțika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the above said. headings, i... Gautama, Samudra, Sagara, Gambhira, Stanita, Aćala Kampilya, Aksetra, Prasenjit and Vişnu. In the 'Sthänängavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vacna". This shows that the 'Vadna of the 'Nandi' is different from the 'Vaćna found in the 'Samawayanga". 35 The word 'Antagada' has two Sanskrit forms-Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but 'gada' goes more with the Sanskrit version "Krita' so far as morphology is concerned. The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Kriṣṇa and his family. The Dikša (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krisna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Arjuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Agama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both-the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mabavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWAIYA-DASÃO 36 The title This Agama is the ninth Anga of the Dwadasangi. As it containsten Adhyayanas regarding the Munis born in the Anuttara Swarga class, its title is given as 'Anuttarowawaiya-Dasão'. The Nandi Sūtra mentions only three Vargas. The Sthänänga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavarttika groups of ten Anuttaropapätika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it. The Samawayanga mentions the ten Adhyayanas and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyayanas have not been given in it. According to the Sthänänga and the Tattwärthavarttika they read as, Rişidasa, Dhanya, Dhanya, Sunakṣatra, Kärttika, Swasthan, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśärnabhadra and Atimukta, and as Risidasa, Dhanya, Sunakṣatra, Kärttika, Nandanandana, Saubhadra, Abhaya, Wärişena, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporaries of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tattawärthavärttika. In the Dhawala we find Kartikeya instead of Karttika and Anand instead of Nanda". The present form of the Agama is different from the 'Vaćna of the Sthäniga and the Samawäyänga. Abhayadeva Sür! holds that it is a different "Vacna'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tattawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130, 4. Samawao, painnagasamawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tattwarthvarttika 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Risidasa, are found. In the first Varga, only two Adhyayanas, named as Wārisrena and Abhaya, are seen. The contents This Agama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagära and his body emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHAWĀGARANĀIN The title The present Āgama is the tenth Anga of the Dwādaśāngi. Its title has been mentioned as 'Panhāwāgaraņāin' in the Samawāyanga Sūtra and the Nandi. Its name is found as 'Paṇhāwägaradasão" in the Sthānānga and the same reads as 'Panhāwāgaranadasásu' in the Samawāyānga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthānānga is also in concurrence with the Samawāyānga. The Jayadhawala and the Tattwärthavarttika note it as Panhäwayaraña or Praśna-Vyakaraņā. The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Agama. The Sthānanga citcs its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Risibhāsita, Ācāryabhāsitä, Mahavira-bhăşitā, Kșaumaka-Praśna, Komala-Praśna, ĀdarśaPraśna. Angustha-Praśna and Bahu-Praśna.* The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawāyānga and the Nandi, the present Āgama has various types of queries, sciences (vidyās) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthānanga. The Samawāyānga makes no mention of its Adhyayanas. 1. (a) Samawao painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi. Sutra 90, 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapanuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thadam 10/116. 5. (a) Samawao, pa innagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Panhāwāgaranadasāsu paragraph, it may be inferred that the Samawāyanga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama, The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāsita, Atāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhäşita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Prašna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Kșauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakarana-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The tcaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärtha vārttika many queries have been expoucded in this Agama , depending on cause and inference by 'Āksepa' and Viksepa'. Also the Laukika (sccular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalá notes that this Agama narrates the Naşta, Musti, Cintā, Labha, Aläbha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Marana with the help of the four kinds of fables, ic, Aksepani, Prakṣepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. The contents of the Āgama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsă, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmatarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawäyānga mentions the Adhyayanas beginning from Acārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Āgama formerly were in the form of the queries and subsequently, the Icarning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The Vacna' of this Agama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Curni of the Nandi does it. Likely it is that the Cürnikära did it on the basis of the present form of the Agama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapa huda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 The title The present Agama is the 11th Anga of the Dwadasangl. The Vipäka (fruit) of the Sukrita and Duskrita deeds has been dealt with in it. therefore the title Vivägasuyam." The Sthänännga gives its title as 'Kāmma Vivägadasă." VIVAGASUYAM The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipaka and the Sukha Vipäka. The first division contains the topics on the lives of the individuals. doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affect their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthänänga Sutra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipaka such as, Mrigaputra, Goträsa, Anda, Sakata, Mahan, Nandisena, Saurika Udumbara, Sahasoddaha-Amaraka, and Kumar Licéhavi. These headings have been taken from some other 'Vaćna'. The account of the Anga-Sutras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred. that the obtained form of the Agama Sutras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the AngaSütra is ancient and how much modern, as well as who of the Acaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. 2. Thanam 10/110. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Āgama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसयाणुक्कम नायाधम्मकहाओ पढ़मं अज्झयणं सू० १-२१३ पृ० १-७३ उक्लेव-पदं १, मेहम्स नगरपरिवारादि-वण्णग-पदं ११, धारिणीए सुमिणदसण-पदं १८ सेणियस्स सुमिणनिवेदणा-पदं १६, सेणियस्स सुमिणमहिम-निदसण-पदं २०, धारिणीए सुमिणजागरिया-पदं २१, सुमिणपाठग-निमंतण-पदं २२, सेणियस्स सुमिणफल-पुच्छा-पदं २७, सुमिणफलकहण-पदं २६, सुमिणपाठम-विसज्जण-पदं ३०, सेणियस्स सुमिणपसंसा-पदं ३१, धारिणीए दोहल-पदं ३२, धारिणीए चिंता-पदं ३४, पडिचारियाण चिंताकारणपुच्छा-पदं ३५, पडिचरियाणं मेणियस्स निवेदण-पदं ३६, सेणियस्स चिताकारण-पुच्छा-पदं ४०, धारिणीए चिताकारणनिवेदण-पदं ४५, सेणियस्स आसासण-पदं ४६, अभयकुमारस्स सेणियं पइ चिताकारणपुच्छा-पदं ४७, सेणियम्स चिंताकारणनिवेदण-पदं ४६, अभयस्स आसासण-पदं ५०, अभयस्स देवाराहण-पदं ५२, देवागमण-पदं ५४, देवस्स अकालमेहविउवण-पदं ५६, धारिणीए दोहद-पूरण-पदं ६०, अभएण देवस्स पडिविसज्जण-पदं ७०, धारिणीए गब्भचरिया-पदं ७२, मेहस्स जम्म-बद्धावण-पदं ७३ । मेहस्स जम्मुस्सवकरणपदं ७६, मेहस्स नामादिसक्कार (संस्कार) करण-पदं ८१, मेहस्स लालणपालणपदं ८२, मेहस्स कलागहण-पदं ८४, मेहस्स पाणिग्गहण-पदं ८६, पीइदाण-पदं ९१, महावीरसमवसरण-पदं ६४, मेहम्स जिन्नासा-पदं ९५, कंचुइज्जपुरिसस्स निवेदण-पदं ९७, मेहस्स भगवओ समीवे गमण-पदं ६८, धम्मदेसणा-पदं १००, मेहस्स पब्वज्जासंकप्प-पदं १०१, मेहस्स अम्मापिऊणं निवेदण-पदं १०२, धारिणीए सोगाकुलदसा-पदं १०५, धारिणीए मेहस्स य परिसंवाद-पदं १०६, मेहस्स गदिवसरज्ज-पदं ११४, मेहस्स निवखमणपाओग्ग-उवगरण-पद १२१, कासवेणा मेहस्स अग्गकेसकप्पण-पदं १२४ मेहस्स अलंकरणपदं १२८, मेहस्स अभिनिक्खमणमहुस्सव-पदं १२६, सिस्सभिक्खादाण-पदं १४५, मेहस्स पव्वज्जागहण-पद १४६, मेहस्स मणो-संकिलेस-पदं १५२, मेहस्स संबोध-पदं १५५, भगवया सुमेरुपम-भवनिरूवण-पदं १५६, भगवया मेरुप्पभ-भवनिरुवण-पदं १६३, मेरुप्पभेण मंडलनिम्माण-पदं १७४, दवग्गिभीतसावयाणं मंडलपवेस-पदं १७८, मेरुषभस्स पाक्खेवपदं १८०, तीय संदब्भे वट्टमाण-तितिक्खोवदेस-पदं १५८, मेहस्स जाइसरण-पदं १६०, मेहस्स समप्पणपुव्वं पूणो पध्वज्जा-पदं १६१, मेहस्स निग्गंठचरिया-पदं १६४, मेहस्स Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिक्खुपडिमा-पदं १६६, मेहस्स गुणरयणसंवच्छर-पदं १६६, मेहस्स सरीरदसा-पदं २०२, मेहस्स विपुलपव्वए अणसण-पदं २०३, मेहस्स समाहिमरण-पदं २०८, थरेहि मेहस्स आयाणभंडसमप्पण-पदं २०६, गोयमपूच्छाए भगवओ उत्तर-पदं २१०, निक्खेव-दं २१३ । बीयं अज्झयणं सू०१-७७ पृ०७४–६२ उक्खेव-पदं १, धणसस्थवाह-पदं ७, विजयतक्कर-पदं ११, भदाए संताणमणोरह-पदं १२, भडाए देवदिन्न-वृत्तपसव-पदं १६, देवदिन्नस्स कीडा-पदं २५, देवदिन्नस्स अपहार-पदं २८, देवदिन्नस्स गवसणा-पदं २६, विजयतक्करस्स निग्गह-पदं ३३, देवदिन्नस्स नीहरण-पदं ३४, धणस्स निग्गह-पदं ३५, धणस्स घराओ आहाराणयण-पदं ३७, विजयतक्करेण संविभागमगण-पदं ३६, धणस्स तन्निसेध-पदं ४०, आबाधितस्स धणस्स विजयतक्करावेक्वा-पदं ४३, बिजयतककरण तन्निसेध-पदं ४५, धणेण पुणो कथिते विजएण संविभागमग्गण-पदं ४७. धणेण विजयस्स संविभागदाण-पद' ५२, पंथगस्स भद्दाए साटोवं तन्निवेदण-पद ५५. भट्टाए कोव-पदं ५७, धणस्स चारमुत्ति-पदं ५५, धणस्स सम्माण-पदं ५६, भद्दाए कोवोवसमपुत्वं सम्माण-पदं ६१, विजय-णायस्स निगमण-पदं ६७, धण-णायस्स निगमग-पदं ६६, निक्खेव-पदं ७७ तच्चं अज्झयणं सू० १-३५ पृ०६३-१०२ उक्खेव-पदं १, मयुरीअंड-पदं ५, सत्यवाहदारग-पदं ६, देवदत्ता गणिया-पदं ८, सत्थवाहदारगाणं उज्जाणकीडा-पदं ६, सस्थवाहदारगेहिं मयूरी अंडगाणयण-पदं १७. सागरदत्तपत्तस्स संदेहेण अंडयविणास-पदं २१, जिणदत्तपुत्तस्स सद्धाए मयूर-लद्धि-पदं २५, निक्खेव-पदं ३५ । चउत्थं अज्झयणं स०१-२३ पृ० १०३-१०८ उखेव-पदं १. पावसियालग-पदं ६, कुम्भ-पदं ७, पाबसियालगाणं आहारगवेसण-पदं. कुम्माणं साहरण-पदं १०, अगुत्तकुम्मस्स मच्चु-पदं १३, गुत्तकुम्मस्स सोक्ख-पदं १६, निक्खेव-पदं २३ । पंचमं अज्झयणं सू० १.१३० पृ० १०६-१३६ उक्खेव-पदं १, थावच्चापुत्त-पदं ७, अरिट्टनेमि-समवसरण-पदं १०, कण्हस्स पज्जूवासणा-पदं १२, थावच्चापुत्तस्स पब्वज्जासंकप्प-पदं १८, कण्हस्स थावच्चापुत्तस्स यपरिसंवाद-पदं २२, कण्हस्स जोगक्खेम-घोसणा-पदं २६, थावच्चापुत्तस्स अभिनिक्खमण-पदं २७, सिस्सभिक्खादाण-पदं ३०, थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जागहण-पदं ३४, थावच्चापुत्तस्स अणगारचरिया-पदं ३५, थावच्चापुत्तस्स जणवयविहार-पदं ३९. सेलगराय-पदं ४२, सेलगस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५, सेलगस्स समणोवासयचरिया-पदं ४७, सूदसणसे द्वि-पदं ५१, सुयपरिवायग-पदं ५२, सोयमूलयधम्म-पदं ५५, सुदंसणस्स सोयमूलय-धम्मपडिवत्ति-पद ५६, थावच्चापुत्तस्ससुदंसणेण संवाद-पदं ५८, सुदंसणम्स विणयमूलग-धम्मपडिवत्ति-पदं ६२, सुएण सुदंसणस्स पडिसंवोधपयत्त-पदं ६५, सुयस्स थावच्चापुत्तेण संवाद-पदं ७०, सरिसवयाणं भक्खाभक्ख-पदं ७३, कुलत्थाणं भक्खाभक्ख-पदं, ७४, मासाणं भक्खाभक्ख-पदं ७५, अत्थित्त-पण्ह पदं ७६, सुयस्स परिव्वायगसहस्सेण पब्वज्जा-पदं ७७, सुयस्स जणवयबिहार-पदं ८१, थावच्चापुत्तस्स परिनिव्वाण-पदं ८३, सेलगस्स अभिनिक्खमणामिप्पाय-पदं ८५, मंयस्स रायाभिसेय-पदं ६२, सेलयस्स निक्खमणाभिसेय-पदं ६६, सेलगस्स पब्वज्जा-पदं ६६, सेलगस्स अणगारचरिया-पदं १००, सुयस्स परिनिवाण-पदं १०२, सेलगस्स रोगातक-पदं १०६, सेलगस्स तिगिच्छा-पदं ११०, सेलगस्स पमत्तविहार-पदं ११७, साहहिं सेलगस्स परिच्चायपदं ११८, पंथगस्स चाउम्मासिय-खामणा-पदं ११६, सेलगस्स कोब-पदं १२२, सेलगस्स अब्भुज्जयविहार-पदं १२४, निक्खेव-पदं १३० । छठें अज्झयणं सू० १-५ उक्खेव-पदं १, गरुयत्त-लहयत्त-पदं ४, निक्खेव-पदं ५ पृ० १४०-१४२ सत्तमं अज्झयणं सू०१-४४ पृ०१४३-१५४ उक्खेव-पदं १. धगसत्यवाह-पदं ३, धणस्स परिक्खापयोग-पदं ६ परिक्खापरिणाम-पदं २२, निक्खेव-पदं ४४ अट्ठमं अज्झयणं सू०१-२३६ पृ० १५५-२०३ उक्खेव-पदं १, बल-गय-पदं २, महब्बलंराय-पदं ६, महब्बलादीण पव्वज्जा-पदं १६. महब्वलस्स तवविसय-माया-पदं १८, महब्वलादीणं विविहतवचरण-पदं १६, समाहिमरणपदं २६, पच्चायाति-पदं २७, मल्लिस्स मोहणधर-निम्माण-पदं ४०, पडिबुद्धिराय-पदं ४३. चंदच्छाय-राय-पदं ६४, रुप्पि-राय-पदं ६०, संख-राय-पदं १०१, अदीणसत्त-राय-पदं ११४, जियसत्तु-राय-पद १३८, दूयाणं संदेस-निवेदण-पदं १५७, कुभएण दूयाणं असवकार-पदं १५६, जियसत्तुपामोक्खाणं कुंभएणं जुज्झ-पदं १६१, मल्लीए चिंताहेउ-पुच्छा-पदं १६९, कुंभगस्स चिंताहेउ-कहण-पदं १७२, मल्लीए उवायनिरूवण-पदं १७३, मल्लीए जियसत्तपामोक्खाणं संवोह-पदं १७५, जियसत्तुपामोक्खाणं जाइसरण-पदं १८१, मल्लीए पव्वज्जापदं १८२, मल्लिम्स केवलणाण-पदं २२५, जियसत्तुपामोक्खाणं पव्वज्जा-पदं २२७, मल्लिस्स सिस्ससंपदा-पदं २३० मल्लिस्स निव्वाण-पदं २३५, निक्खेव-पदं ३३६ । नवमं अज्झयणं सू० १-६४ पृ० २०४-२२० उक्खेव-पदं १, मागंदिय-दारगाणं समुद्दजत्ता-पदं ४, नावा भंग-पदं ६, रयणदीव-पदं १२, रयणदीवदेवया-पदं १६, रयणदीवदेवयाए मांगंदिय-पुत्ताणं निद्देस-पदं १६, मागंदियपुत्ताणं Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ वणसंडगमण-पदं २१, सेलगजक्ख-पदं २६, रयणदीवदेवया-उवसग्ग-पदं ३७, जिणरक्खियविवत्ति-पदं ४१, जिणपालियस्स चपागमण-पदं ४५. निक्खेव-पदं ५४ । दसमं अज्झयणं पृ० २२१-२२३ उक्खेव-पदं १, परिहायमाण-पदं २, परिवडढमाण-पदं ४, निक्लेव-पदं ६ । एक्कारसमं अज्झयणं पृ० २२४-२२६ उक्खेव-पदं १, देसविराहय-पदं २, देसाराहय-पदं ४, सव्वविराहय-पदं ६, सव्वाराहय-पदं निक्लेव-पदं १०। बारसमं अज्भयणं सू० १४६ पृ० २२७-२३६ उक्खेव-पदं १, फरिहोदग-पदं ३, जियसत्तुणा पाणभोयणपसंसा-पदं ४, सुबुद्धिस्स उवेहा-पदं, ६, जियसत्तुणा फरिहोदगस्स गरहा-पदं ११, सुबुद्धिस्स उवेहा-पदं १५, जियसत्तुस्स विरोधपदं १८, सुबुद्धिणा जलसोधण-पदं १६, सुबुद्धिणा जलपेसण-पदं २०, जियसत्तुणा उदगरयणपसंसा-पदं २१, जियसत्तुणा उदगाणयणपुच्छा-पदं २४, सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं २७, जियसत्तुणा जलसोधण-पदं ३०, जियसत्तुस्स जिण्णासा-पदं ३१, सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं ३२, जियसत्तुस्स समणोवासयत्त-पदं ३४, पव्वज्जा-पदं ३८, निक्खेव-पदं ४६। तेरमर्म अज्झयणं सू० १-४५ पृ०२३७-२४७ उक्खेव-पदं १, गोयमस्स पुच्छा-पदं ४, भगवओ उत्तरे दद्रदेवस्स नंदभव-पदं ७, नंदस्स धम्मपडिवत्ति-पदं ,मिच्छत्तपडिवत्ति-पदं १३, पोक्खरिणी-निम्माण-पदं १५, वणसंड-पदं १८, चित्तसभा-पदं २०, महाणसमाला-पदं २१, तिगिच्छियसाला-पदं २२, अलंकारियसभा-पदं २३, नंदस्स पसंसा-पदं २४, नंदस्स रोगप्पत्ति-पदं २८, तिगिच्छा-पदं २६. भगवओ उत्तरे ददुरदेवस्स ददुरभव-पदं ३२, ददुरस्स जाइसरण-पदं ३५, भगवओ रायगिहे समवसरण-पदं ३७, ददुरस्स समवसरणं पइ गमण-पदं ३६, ददुरस्स मच्चपदं ४१, निक्खेव-पदं ४५ ! चोदसमं अज्झयणं सू० १-८६ पृ० २४८-२६५ उक्खेव-पदं १, पोट्रिलाए कीडा-पदं ८, तेयलिपुत्तस्स आसति-पदं ६,पोट्टिलाए वरण-पदं १२ पोट्रिलाए विवाह-पदं १८, कणगरहस्त रज्जासत्ति-पदं २१, पउमावईए अमच्चेणमंतणापदं २२, अवच्च परिवत्तण-पदं २४, दारियाए मयकिच्च-पदं ३१, अमच्चपुत्तस्स उस्सव-पदं ३३, पोट्टिलाए अप्पियत्त-पदं ३६, पोट्टिलाए दाणसाला-पदं ३८, अज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियागमण-पदं ४०, पोट्टिलाए अमच्चपसायोवाय-पुच्छा-पदं ४३, अज्जा-संघाडगम्स उत्तर-पदं ४४, पोट्टिलाए सावया-पदं ४५, पोट्टिलाए पव्वज्जा-पदं ५०, कणगरहस्स Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मच्चू पदं ५५, कागज्झयस्स रायाभिसेय-पदं ५७, तेयलिपुत्तस्स सम्माण-पदं ६०, पोट्टिलदेवेण तेयलिपुत्तस्स संबोह-पदं ६२, तेयलिपुत्तस्स मरणचेट्ठा-पदं ७२, तेयलिपुत्तस्स विम्हयकरण-पदं ७७, पोट्टिलदेवस्स संवाद-पदं ७८, तेयलिपुत्तस्स जाईसरणपुत्वं पध्वज्जापदं ८१, केवलणाण-पदं ८३, कणगझयस्स सावगधम्म-पदं ८५, तेयलिपुत्तस्स सिद्धि-पदं ८८, निक्खेव-पदं ८९ पण्णरसमं अज्झयणं सू० १-२२ पृ० २६६-१७१ उक्खेव-पदं १, घणस्स घोषणा-पदं ६, धणस्स निद्देस-पदं ११, निद्देसपालणस्स निगमण-पदं १३, निसाऽपालगस्स निगमण-पदं १५, धणस्स अहिच्छत्ताऽागमण-पदं १७, धणस्स पव्वज्जा-पदं २०, निक्खेव-पदं २२ । सोलसमं अज्झयणं सू० १-३२७ पृ० २७२-३३५ उक्खेव पदं १, नागसिरी-कहाणग-पदं ४, नागसिरीए तित्तालाउय-उवक्खडण-पदं ६, धम्मरुइस्स तित्तालाउय-दाण-पद ११, तित्तालाउय-परिछावण-पदं १६, अहिंसटुं तित्तालाउयभक्खण-पदं १६, धम्मरुइस्स समाहिमरण-पदं, २०, साहूहि धम्मरुइस्स गवेसण-पदं २२, साहहिं धम्मरुइस्स समाहिमरण निवेदण-पदं २३, धम्मरुइस सइसभा-पदं २४, नागसिरीए गरिहापदं २५, नागसिरीए गिहनिवासण-पदं २८, नागसिरीए भबभमण-पदं ३०, समालियाकहाणगपदं ३२, सूमालियाए सागरेण सद्धि विवाह-पदं ३७, सागरस्स पलायण-पदं ५२, सूमालियाए चिता-पदं ६२, सागरदत्तेण जिणदत्तस्स उवालंभ-पद ६७, सागरस्स पूणोगमणब्बूदास-पदं ६८, सूमालियाए दमगेण सद्धि पुणविवाह-पदं ७०, दमगस्स पलायणपदं ८० सूमालियाए पुणोचिता-पदं ८७, सूमालियाए दाणसाला-पदं ६२, अज्जासंघाडगस्स भिक्खारियागमण-पदं ६४, सूमालियाए सागरपसायोवाय-पुच्छा-पदं १७, अज्जा-संघाडगस्स उत्तर-पदं१८, सूमालियाए साविया -पद-६६, सूमालियाए पव्वज्जापदं १०४, सूमालियाए आतावणा-पदं १०६, सूमालियाए नियाण-पदं १०६, सूमालियाए वाउसियत्त-पदं ११४, सूमायालिए पुढोविहार-पदं ११८, दोवईकहाणग-पदं, १२०, दोवईए सयंवर-संकप्प-पदं, १३१, बारवईए दूयपेसण- पदं १३२. कण्हस्स पत्थाण-पदं १३६, हत्थिणाउरे दूयपेसण-पदं १४२, दूयपेसण-पदं १४५. रायसहस्साणं पत्थाण-पदं १४६, दुवयस्स आतित्थ-पदं १४७, दोवईए सयंबर-पदं १५३. दोवईए पंडव-वरण-पदं १६४, पाणिग्गहण-पदं १६७, पंडुरायस्स निमंतण-पदं १७०. पंडरायस्स आतित्थ-पदं १७२, कल्लाणकार-पदं १८१, नारदस्स आगमण-पदं १८४. नारदस्स अवरकंका-गमण-पदं १६१, दोवईए साहरण-पदं २०१, दोवईए चिंता-पदं २०७, पउमनाभस्स आसासण-पदं २०८, दोवईए गवेषणा-पदं २१२, दोवईए उवलद्धि-पदं २२६. सपंड बस्स कण्हस्स पयाण-पदं २३३, कण्हस्स देवाराधण-पदं २३७, कण्हस्स मम्गजायणा-पदं २३६, कण्हेण दूयपेसण-पदं, २४३, पउभनाभेण दूयस्स अवमाण-पदं २४५, दूयस्स पूणो आगमण-पदं २४६, पउमनाभस्स पंडदेहि जुद्ध-पदं २४७, पंडवाणं पराजय-पदं २५२. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ कण्हेण पराजय-हेउ-कहणपुव्वं जुज्भ-पदं २५४, पउमनाभस्स पलायण-पदं २६०, कण्हस्स नरसिहरूव-पदं २६१ पउमनाभस्स सरण-पद २६३, सदोवई-पंड वस्स कण्हरस पच्चावरण-पदं २६६, वासुदेव-जुयलस्स संखसहेण मिलण-पदं २६८, कविलेण पउमनाभस्स निव्वासण-पदं २७८, अपरिक्खणीयपरिक्खा-पदं २८१, कण्हेण पंडवाणं निवासण-पदं २८६, पंडुमहरानिवेसण-पदं ३०३, पंदुसेण जम्म-पदं ३०४, पंडवाणं दोवईए य पव्वज्जा-पदं ३१०, अरिट्ठनेमिस्स निव्वाण-पदं ३१८, पंडवाणं निव्वाण-पद ३२३, दोवईए देवत्त-पदं ३२५, निक्खेव-पदं ३२७ । सत्तरसमं अज्झयणं पृ० ३३६-३४६ उक्खेव-पदं १, कालियदीव-जत्ता-पदं ५, कालियदीवे आस-पेच्छण-पदं १४, संजत्तियाणं पुणरागमण-पदं १६, आसाण आणयण-पदं १७, अमुच्छ्यि -आसाणं सायत्त-विहार-पदं २४, निगमण-पद २५, मुच्छिय-आसाणं परायत्त-पदं २६, निगमण-पदं ३६ । अट्ठारसमं अज्झयणं पृ० ३४७-३५८ उख्खेव-पदं १, चिलाय-दासचेडस्स विग्गह-पदं ६, चिलायस्स गिहाओ निक्कासण-पदं १०. चिलायस्स दुब्बसण-पवत्ति-पदं १६, चोरपल्ली-पदं १८, चिलायस्स चोरपल्ली-गमण-पदं २३. विजयस्स मच्च-पदं २६, चिलायस्स चोरसेणावइत्त-पदं २८, चिलायस्स धणस्स गिढ़े चोरिय-पदं ३३, नगर गुत्तिएहिं चोरनिग्गह-पदं ३६, चिलायस्स चोरपल्लीतो पलायण-पदं ४४, निगमण-पदं ४८, धणस्स संसुमाकए कंदण-पदं ४६, धणेणं अडवि-लंघणटु सुयामंससोणियाहार-पद ५१, निगमण-पदं ६० । एगणवीसइमं अज्झयणं पृ० ३५६-३६७ उबखेव-पदं १. कंडरीयस्स पब्बज्जा-पदं ८, कंडरीयस्स वेयणा-पदं २०, कंडरीयस्स तिमिच्छा-पदं २२, कंडरीयस्स पमत्त-विहार-पदं २७, पुडरीएण पडिबोह-पदं २६. कंडरीयस्स एवज्जा-परिच्चाय-पदं ३२, पुडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ३८, कंडरीयस्स मच्च-पदं ३६, निगमण-पदं ४२, पूडरीयस्स आराहणा-पदं ४३, निगमण-पदं ४७, निक्लेव-पदं ४८. बीओ सुयक्खंधो पढमो वग्गो १-५ अज्झयणाणि पृ० ३६५-३८० उक्खेव-पदं १, कालीदेवी-पदं १०, कालीए भगवओ वंदण-पदं ११, गोयमस्स पसिण-पदं १३. भगवओ उत्तरे काली-पदं १५, कालीए पब्वज्जा-पदं १६, कालीए वाउसियत्त-पदं ३४. कालीए पूढो विहार-पदं ३८, कालीए मच्च-पदं ३६, निक्खेव-पदं ४५ । २-५ अभयणाणि Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपूर्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [[ और उसके समापन में रिक्त विन्दु [0] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २ सू ६ । [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३. सूत्र ७ ॥ .' ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूत्ति स्थल का निर्देश है । देखें-पष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८। काश [x] पाठ न होने का द्योतक है। देखें--पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [• ] अपूर्ण पाठ का द्योतक है । देखें-१० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५। 'जहा' 'तहेब' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं । देखें-पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० ॥ क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'व्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें--पृष्ठ ३६६ टिप्पण १। 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श । सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें-पष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति-सम्मत पाठान्तर । देखें--पष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें—पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें-पष्ट ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ। अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ। सूय सूयगडो। उवा० उवासगदसाओ। जंबू० जंबूदीवपण्णत्ति । ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ। भ०, भग०, भगवई। राय० रायपसेणइयं । पाहा० पण्हावागरणाई। वि० विवागसूयं । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ पढमं अज्भयणं उक्खित्तणाए उक्खे व-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समगणं चंपा नाम नयरी होत्था-वण्णम्रो । २. तीसे णं चंपाए नयरीए वहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नाम चेइए' होत्था--वण्णो ' । ३. तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए नाम राया होत्था--वण्णों ।। ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बल-रूव-विणय-नाण-दसण-चरित्त-लाघवसंपण्णे पोयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे 'जिइंदिए जियनिद्दे जियपरीसहे जीवियास-मरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे एवं-करण-चरण-निग्गह-निच्छय-अज्जव-मद्दव-लाघव-खंति-गुत्तिमुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ-वेय-नय-नियम- सच्च- सोय- नाण- दंसण- चरित्तप्पहाणे ओराले घोरे घोरब्वए" घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउल-तेयलेस्से चोहसपन्वी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसरहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे" सुहंसुहेणं विहरमाणे १. ओ० सू०१। २. चेतिए (क, ख, ग)। ३. प्रो० सू० २-१३ । ४. ओ० सू० १४ ॥ ५. चरित्त लज्जा (राय० सू०६८६)। ६. जियइंदिए (ख) ७. जियनिद्दे जितिदिए (राय० सू० ६८६)। ८. जीवियासा (ग, घ)। ६. बंभचेर (ख, घ) । वृत्ती 'ब्रह्म' पदमेवव्या ख्यातमस्ति, यथा-ब्रह्म-ब्रह्मचर्य सर्वमेव वा कुशलानुष्ठानम् । कासुचित् प्रतिषु 'बंभचेर' इति मूलपाठरूपेण परिवर्तितमभुत् । १०. उराले (ख, घ)। ११. घोरगुणे (राय० सू० ६८६) । १२. चोदस ° (ख); चउद्दस ° (ग)। १३. दूतिज्ज° (ख, ग)। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाघाघम्मकहाओ 'जेणेव चंपा नयरी', जेणेव पुण्णभद्दे चेतिए'' तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।। ५. 'तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया"। धम्मो कहियो । परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया । ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स जेटे अंतेवासी अज्जजंबू नाम अणगारे कासव गोतेणं सत्तुस्सेहे' 'समचउरंस-संठाण-संठिए वइररिसहणाराय-संघयणे कणग-पुलग-निघस-पम्ह-गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से ° अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढेजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठो वगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ७. तए णं से अज्जजंबूनामे अणगारे जायसड्ढे जायसंसए" जायकोउहल्ले 'संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोउहल्ले" समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोउहल्ले उठाए उढेइ, उद्वेत्ता जेणामेव अज्जसुहम्मे थेरे, तेणामेव उवागच्छइ,उवागच्छित्ता 'अज्जसुहम्मे थेरे तिवखुत्तो 'प्रायाहिण-पयाहिणं'' करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता अज्ज १. नगरी (ग)। ६. सं० पा० --सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स । २. क्वचिद् 'राजगहे गुणसिलके' इति दृश्यते ७. ° संसते (ख, ग)। स चापपाठ इति मन्यते (वृ)। ५. औपपातिक (८३) सूत्रे क्रमभेदोविद्यते, ३. तेणं कालेणं (ख); तेणं (घ)। यथा--जायसड़डे उप्पण्णसड्ढे • संजाय. ४. निग्गया। कोणितो निग्गतो (ग); निग्गया। सड्ढे ° समुप्पण्ण सड्ढे । कोणिओ निग्गओ (घ)। वृत्ती-परिषत्- ६. ° कोऊहल्ले (ख)। कणिकराजादिको लोको निर्गता-नि:सता- १०. अज्जसुहम्म थेरं (वृपा)। औपपातिक एवं व्याख्यातमस्ति । अनेन परिसा (८३) सूत्रे तथा रायपसेणइय (१०) निग्गया' इत्येव मूलपाठः संभाव्यते । सूत्रपि एतत्सदृशप्रकरणे 'समणं भगवं 'कोणिओ निग्गओ' इति व्याख्यांशो मूल- महावीर' इति द्वितीयान्तपदं लभ्यते। पाठत्वेन परिवर्तितोभूत् । उपास कदशासु अत्र सप्तम्यन्तपदं लभ्यते। वृत्तिकृता (१।१६) राजनिर्गमस्य स्वतंत्र सूत्रमपि एतदेव प्रमाणीकृतम्—'अज्जसुहम्मे थेरे' इत्यत्र षष्ठ्यर्थे सप्तमी (वृ) । ५. विभक्तिरहितं पदम् ! काश्यपो गोत्रेण इति ११. प्राताहिणपदाहिणं (ग), आयाहिणं (घ)। वृत्तिः । दृश्यते । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (उत्तिणाए ) ८. सुम्मस्स थेरस्स नच्चासण्णे नातिदूरे सुस्सुसमाणे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणणं पज्जुवासमाणे एवं क्यासी' - जइ' णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण 'आइगरेणं तित्थगरेणं सहसंबुद्धेणं' लोगनाहेणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदपणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसणं धम्मनायगेणं' धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडियवरनाणदंसणधरेणं जिणेणं जाणवणं' बुद्धेणं बोहणं मुत्तेणं मोयगेणं तिष्णेणं तारएणं सित्रमयल मरुयमणंत मक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं" सासयं ठाणमुवगणं' [ सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं ? ] पंचमस्स श्रंगस्य प्रयमट्टे पण्णत्ते, छट्टुस्स णं 'भंते ! अंगस्स" नायाधम्मकहाणं के अट्ठे पण्णत्ते ? जंबु त्ति ग्रज्ज हम्मे थेरे ग्रज्जजवूनामं अणगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स दो सुक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा - नाराणि य धम्मकहाओ य ॥ ε. जइ णं भंते ! सुमणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं छटुस्स अंगस्स दो सुयक्खधा पण्णत्ता, तं जहा नायाणि य धम्मकहाओ य । पढमस्स णं भंते ! सुक्खंचस्स समणेण भगवया महावीरेणं जाव* संपत्तेणं नायाणं कइ श्रज्भयणा पण्णत्ता ? ३ १०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अभयणा पण्णत्ता, तं जहा - १. वदासी (ग, बृ) । २. जति ( ख, ग ) ३. सइ ० ( ख ) सयं ० (घ) । ४. X (ख, घ) । ५. वट्टी (ख, ग, घ ) । अत्र प्रकरणसंगत्या तृतीयान्तं पदं युज्यते । समवायांगे ( सू० २) इयमेव विद्यते । क्वचित् प्रयुक्तासु प्रस्तुतसूत्रस्य प्रतिष्वपि तृतीयान्तं पदं प्राप्यते । तेन तदेव मूले स्वीकृतम् । ६. जावएणं (ख, घ) 1 ७. मरुतवत्तियं (ख, घ ); ० मरुत ० ( ग ) । ८. अत्र चिन्हांकितपाठः श्रपपातिकादिसूत्रेभ्यो भिन्नो वर्तते । एन० वी० वैद्य संपादित - 'तायाम्म कहाओ' विशेषणानि पाठे अधिकानि लभ्यन्ते, किन्तु अस्माकं पाठशोधार्थं प्रयुक्तासु प्रतिषु तानि न सन्ति । द्रष्टव्यं -- औपपातिकसूत्रस्य तृतीयं परिशिष्टम् । ६. अष्टमे सूत्रे जाव संपत्तेन' संक्षिप्त-पाठो लभ्यते । अत्र च 'सासयं ठाणमुवगएणं' इति पाठोस्ति । अस्य अग्रिमपाठेन संगतिर्नास्ति श्रपपातिक (२१) सूत्रे 'सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं' इति पाठो विद्यते । प्रापि तथैव युज्यते । १०. अंगस्स विवाहपण्णत्तीए (घ ) । ११. अंगस्स भंते । (ख, घ) | १२,१३, १४, १५. ना० १।११७ | Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ संगहणी-गाहा १. उक्खित्तणाए २. संघाडे, ३. अंडे ४. कुम्मे य ५. सेलगे। ६. तुंबे य ७. रोहिणी ८. मल्ली, ६. मायंदी १०. 'चंदिमा इ" य ||१|| ११. दावद्दवे १२. उदगणाए, १३. मंडुक्के' १४. तेयली वि य । १५. नंदीफले १६. अदरकंका' १७. पाइण्णे १८. सुसुमा इ य ॥ २॥ १६. अवरे य पुंडरीए, नाए एगणवीसमें । मेहस्स नगरपरिवारादि-वण्णग-पदं ११. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नायाणं एगणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाउक्खित्तणाए जाव' पुंडरीए त्ति य । पढमस्स णं भंते ! अझयणस्स के अट्टे पण्णत्ते? १२. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नाम नयरे होत्था-वपणनो॥ १३. गुणसिलए चेतिए–वण्णो ॥ १४. तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था-महताहिमवंत-महंत-मलय मंदर-महिंदसारे वण्णओ" ।। १५. तस्स णं सेणियस्स रण्णो नदा नाम देवी होत्था-सूमालपाणिपाया" वग्णयो२।। १६. तस्स णं सेणियस्स पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नाम कुमारे होत्था-अहीण" पडिपुण्ण -पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे, सामदंड-भेय-उवप्पयाणनीति-सुप्पउत्त-नय-विहण्णू, 'ईहा-वह मग्गण-गवेसणअत्थसत्थ-मइविसारए, उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए चउविहाए बुद्धीए उववेए, सेणियस्स रण्णो बहूसु कज्जेसु य [कारणेसु य ? ] १. चंदमाई (घ) १३. सं० पा०--अहीण जाव सुरूवे । २. मंदुक्के (ख)! १४. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ 'पडिपुण्ण' पदं व्याख्यातं ३. अमर° (घ)। नास्ति । ४. आतिषणे (ख, ग)। १५. विहिज्जा (ख)। ५. वीसइमे (ग)। १६. ईहापूह (ग); ईहापोह (घ) । ६. ना० १११७ । १७. कम्मइयाए (ख, घ); कम्मियाए (ग)। ७. ना० १११।१०। १८. अतोनन्तरं उपासकदशासु (१९१३) राय८. ग्रो० सू०१। पसेणइय (६७५) सूत्रे 'कारणेसु य' इति ६. ओ० सू० २.१३ । पाठो विद्यते। प्रस्तुतसूत्रस्य पंचमाध्ययने १०. ओ० सू० १४ । ११. सुकुमाल ° (घ)। (१०) सूत्रेपि कज्जेसु य कारणेमु य इति १२. ओ० सू० १५ पाठो लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (उक्खित गाए ) कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्सु य रहस्सेसु य निच्छएसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं श्राहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए, सव्वकज्जेसु सव्वभूमियासु लद्वपच्चए विइणवियारे रज्जधुरचितए यावि होत्था, सेणियस्स रण्णो रज्जं च रट्ठ च कोसं च कोट्टागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव समुपेक्खमाणेसमुपेक्खमाणे विइ || १७. तस्स णं सेणियस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था -- सुकुमाल - पाणिपाया ग्रहीण - पंचेंदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुभ्माण-प्पमाण' - सुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार कंत पियदंसणा सुरूवा करयल- परिमित-तिवलिय" वलियमज्झा 'कोमुइ - रयणिय र विमल पडिपुण्ण- सोमवयणा कुंडलुल्लि - हिय-गंडलेहा " सिंगारागार चारुवेसा संगय-गय- हसिय- भणिय-विहिय-विलाससललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयारकुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा परूिवा, सेणियस्स रण्णो इट्ठा कंता पिया मणुष्णा नामधेज्जा' वेसासिया सम्मया वहुमया अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिगिहीया रयणकरंडगो विव सुसारक्खिया, माणं सीयं माणं उन्हं माणं दंसा मा णं मसगा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं वाइयपित्तिय- सिभिय-सन्निवाइय' विविहा रोगायका फुसंतु त्ति कट्टु सेणिएण रण्णा सद्धिविलाई भोगभोगाई पच्चणुभवमाणी • विहरइ ॥ धारिणीए सुमिणदंसण-पदं १८. तए णं सा धारिणी देवी अण्णदा कदाइ तंसि तारिसगंसि -- छक्कट्ठग-लट्ठमट्ट १. सं० पा०-होदया जाव सेणियस्स रण्णो ट्ठा जाव विहरई । २. अहीण - पडिपुण्ण (ओ० सू० १५) । ३. पमाण पडिपुण्ण (प्रो० सू० १५) । ४. परिमिय-पसत्य - तिवली (ओ० सू० १५) | ५. कुंडलुल्लिहिय गंडलेहा को मुइ-रयणियर .. सोमवणा (ओ० सू० १५ ) । ६. आगमेषु बहुषु स्थानेषु 'मणुष्णा मणामा' इति पाठरचनादृश्यते । द्रष्टव्यम् - १११४।४३ । क्वचिद 'वेज्जा' इति पाठो लभ्यते । द्रष्टव्यम् - विवागसुयं ११११५६ | प्रस्तुतपाठः वृत्त्या पूरितोस्ति, तत्र 'नामधेज्जा' इति पाठ: ५ उल्लिखितोस्ति । विपाकश्रुतस्य संदर्भे सावपि पाठ: समीचीनः प्रतिभाति । प्रस्तुतागमे ( १|१|१०६) एव 'थेज्जे' इति पाठो लभ्यते । ओवाइय ( ११७ ) सूत्रे शरीरवर्णनप्रसङ्ग' 'पेज्जं' इति पाठोऽस्ति । एवं विभिन्नस्थलेषु पाठावलोकनेन एतत् सुनिश्चितं भवति यत् लिपिकरणकाले पाठपरिवर्तनं जातम् । 'घेज्ज थेज्ज' इतिपाठापेक्षया 'नामवेज्जा' इति पाठ: अर्थदृष्ट्या अधिकं संगच्छते । ७. विभक्तिरहितं पदम् । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ संठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जलमणिकणगरयणथभिय-विडंकजालद्धचंदनिज्जहंतरकणयालिचंदसा लियाविभत्तिकलिए 'सरसच्छधाऊवल-वण्णरइए' बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मढे अमित रनो पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नाणाविह-पंचवण्ण-मणिरयण'-कोट्टिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइउल्लोय-चित्तिय-तले वंदण - वरकणगकलससुणिम्मिय- पडिपूजिय - सरसपउमसोहंतदारभाए पयरग'-लं बंत-मणिमुत्तदाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-वरकुसुममउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर- लवंग-मलय-चंदणकालागा-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव -डज्झत-सुरभि-मघमघेत - गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवर गंध ? ] गंधिए गंधवट्टिभूए मणिकिरण-पणासियंधयारे किंबहुणा ? जुइगुणेहि सुरवरविमाण-विडंबियवरघरए", तंसि तारिसंगसि सयणिज्जसिसालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे दुहनो उण्णए 'मझे णय गंभीरे ११ गंगापुलिणवालुय-उद्दालसालिसए ओयविय-खोम-दुगुल्लपट्ट'-पडिच्छयणे अत्थरयमलय-नवनय-कुसत्त-लिंब"-सीहकेसरपच्चुत्थिए“सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवए सुरम्मे पाइणग-रूय"-बूर-नवणीय-तुल्लफासे पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा प्रोहीरमाणी-ओहीरमाणी 'एगं महं सत्तुस्सेहं रययकूड-सन्निहं नहयलसि सोमं सोमागारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमतिगयं गयं पासित्ता ण पडिबुद्धा'। १. सरसच्छवाऊधवल (घ) कश्चित्पुनरेवं संभा- ६. गंध ° (ख घ)। वितमिदम् –सरसच्छधाऊवल रत्तरए (वृ)। १०. वेलंबवर ° (ग, घ)। २. सर्वासु प्रतिषु 'सुबि' इति पठ्यमानमस्ति। ११. मज्झेण य गंभीरे (वृपा) । बत्ती 'शुचि पवित्र' इति व्याख्यातमस्ति । १२ खोमदुगुल (घ)। प्राचीन लिप्यां चकारवकारयोः प्रायः १३. लिव्व (ख, ग)। सादृश्येनात्र वर्णविपर्ययो जातः । वृत्तिकारेण १४. पच्चुत्थुए (ख); ° पच्चुत्थए (क्व०) । तथैव व्याख्यातः! १५. रुय (ख)। ३. मणिरतण (ग)। ४. चंदण (ख, घ); अत्र वकारस्थाने चकारी १७. वाचनान्तरे त्वेवं दश्यते-जाव सीहं सविणे जातः । पासित्ता णं पडिबुद्धा। यावत्करणात् इदं ५. परिजिय (ख, ग, घ, वृपा)। द्रष्टव्यम्-एगं च णं महंत पंडर धवलं ६. पयरग्ग (ग, घ); एकस्मिन् वृत्त्यादर्श सेयं संखउल-विमलदहि-घणगोखीर-फेण 'प्रतरकाणि', अपरस्मिंश्च 'प्रवरकाणि' रयणिकरपगासं [अथवा-हार-रजतइति संस्कृतरूपं लभ्यते। खीरसागर-दगरय- महासेल - पंडुरतरोरु- रम७. सुगंधि (वृ) णिज्ज-दरिसणिज्ज] थिर-लट्ठ-पउट्ठ-पीवर८. • मति (ग); ° मघत (घ)। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदम अभयणं (उविखतणाए) सेणियस्स सुमिणनिवेदण-पदं १६. तए णं सा धारिणी देवी अयमेयारूवं उरालं कल्लाणं सिवं धणं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणो हट्ठतुटु-चित्तमाणंदिया पोइमणा परमसोमणस्सिया' हरिसवस-विसप्पमाणयिया धाराह्य-कलंबपुप्फगं पिव समूससिय-रोमकूवा" तं सुमिणं प्रोगिण्हइ, योगिण्हित्ता सयणिज्जायो उद्वेइ, उद्वेत्ता पायपीढायो पच्चोम्हइ, पच्चोरुहित्ता अतुरियमचवलमसंभताए अविलंवियाए रायहंससरिसीए गईए जेगामेव से सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ताहिं इट्टाहि कंताहि पियाहि मणुन्नाहि मणामाहिं उरालाहि कल्लाणाहिं सिवाहि घण्णाहि मंगल्लाहि सस्सिरीयाहि हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं मिय-महुर-रिभिय-गंभीर-सस्सिरीयाहिं गिराहि संलवमाणी-संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहेत्ता सेणिएणं रण्णा अभणण्णाया समाणी नाणा-मणिकणगरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसिइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सेणियं रायं एवं वयासी--एवं खलु ग्रहं देवाणुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सणिज्जसि सालिगणवट्टिए जाव' नियगवयणमइवयंत गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा-~-तं एयस्स ण देवाणुप्पिया! उरालस्स' सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-तिक्खदाढाविडं वियमुहं परि- १. हतुट्ठा (ख); हट्ठातुट्ठा (ध); वृत्ती 'हृष्टकम्मियजच्चकमलकोमल-माइयसोहंतलद्धउटुं सुष्टा-अत्यर्थ तुष्टा अथवा हष्टा--विस्मिता, रत्तुप्पलपत्तमउय-सुकुमालतालुनिल्लालियग्ग- तुष्टा-तोषवती' इति व्याख्यातमस्ति किन्तु जीहं महगुलियभिसंत पिंगलच्छं मसागयपवर औपपातिकाद्यागमेषु 'हतूट्र-चित्तमाणंदिया' कणयतावियआवत्तायंत - बट्ट - तडियविमल- इति संयुक्त: पाठो लभ्यते । अत्रापि तथैव सरिसनयणं [अत्र वट्ट तड्ड' इत्येतावदेव गृहीतः। पुस्तके दष्टं संभावनया तु 'वृत्तदित' इति २. सिया (ख, ग, घ)। व्याख्यातम् । पाठांतरेण तु- बट्ट-पडिपुन्न ३. एतद् विशेषणं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । पसत्थ-निद्ध-महगुलिय- पिंगलच्छं] विसालपीवरभमरोरु-पडिपूनविमलखंध [अथवा-- ४. ना० १।१।१८। ५. एष पाठो यत्र समपितोस्ति तत्र पडिपुण्ण-सुजायखंध] मिदुविसदसुहमलक्षण-पसत्थ-वित्थिन-केसरसढं अथवा (१।१।१८) 'मुहमतिगयं' इति पाठो विद्यते, निम्मलवरकेसरधर] ऊसिय-सुनिम्मिय अत्रापि तथैव युज्यते किन्तु सर्वास्वपि सुजाय अप्फोडिय लंगुलं सोमं सोमागार प्रतिषु 'नियगवयणमइवयंत' इति पाठो लीलायत जभायमाणं गगनतलाओ ओवयमाणं लभ्यते । नानयोः कश्चिदर्थभेदः तेनासावेव सीहं अभिमुहं मुहे पविसमाणं पासित्ता पाठःस्वीकृतः। णं पडिबुद्धा (वृ)। ६. सं० पा०-उरालस्स के सि ध म जाव सुमिणस्स। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ना याधम्मक हाओ • कल्लाणस्स सिवस्स घण्णस्स मंगल्लस्स सस्सिरीयस्स सुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? सेस्सि सुमिणमहिम-निदंसण-पदं २०. तए णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ट - चित्तमादिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाण • हियए धारायनीवसुरभिकुसुम-चुंचुमाल इयतणू ' ऊसवियरोमकूवे तं सुमिणं योगिण्हइ, गहित्ता ईहं पविसइ, पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्व एणं बुद्धिविणा तस्स सुमिणस्स प्रत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता धारिणि देवि ताहि जाव' हिययपल्हायणिज्जाहि मिय-महुर-रिभिय- गंभीर सस्सिरीयाहि वग्गूहिं' अणुवूहमाणे-अणुवूहमाणे एवं बयासी - उराले गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे । कल्ला गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे । सिवे धण्णे मंगल्ले सस्सिए गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे । श्रारोग्ग-तुट्ठि दीहाउय - कल्लाणमंगलकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दिट्ठे । प्रत्थलाभो ते देवाणुप्पिए ! पुत्तलाभो ते देवागुप्पिए ! रज्जलाभो ते देवाणुप्पिए ! भोग- सोक्खलाभो ते देवाणुप्पिए ! १. सं० पा०--- हट्ट जाव हियए । २. चंचु० (ख, घ) । ३. प्रोगिण्हाति २ ( ख ) । ४. ना० १।१।१६ ५. १ १ १६ सूत्रे अत्र 'गिराहिं' पाठो विद्यते । ६. दीहाउ ( ख ) । ७. X ( ग, घ ) ८. कुल एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! नवग्रहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं श्रद्धट्टमाणं इंदियाणं वीइक्कंताणं ग्रम्हं कुलकेडं कुलदीव' कुलपब्वयं कुलवडिस ' कुलतिलकं कुलकित्तिकरं कुलवित्तिकरं " कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवर्द्धणकरं सुकुमालपाणिपायं जाव" सुरूवं दारयं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कवालभावे विष्णय - परिणयमेत्तं जोव्वणगमणप्पत्ते सुरे वीरे विक्कते" वित्थिष्ण - विपुल वलवाणे रज्जवई" राया भविस्सइ । तं उराले गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे" । कल्लाणे णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमि दिट्ठे । सिवेधणे मंगल्ले सस्सिरीए णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणेदिट्ठे | सर्वत्र । ० (वृपा) । ६. • व ंसयं (ख) 1 १०. नासौपाठः वृत्तिसम्मतः, यथा – क्वचिद् वृत्तिकरमित्यपि दृश्यते । ११. ओ० सू० १४३ । १२. विष्णाय ( क, ख, घ ) । १३. वितिक्कते ( क ) ; वियक्कतं ( ख ) 1 १४. रज्जयती ( क ) | १५. सं० पा०-- दिट्ठे जाव आरोग्ग । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दिढे त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुवूहेइ ! धारिणीए सुमिणजागरिया-पदं २१. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हटतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! असंदिद्धमेयं देवाणुप्पिया! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! सच्चे गं एसमलै जं तुम्भे वयह त्ति कटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सेणिएणं रण्णा अभणुण्णाया समाणी नाणामणिकणगरयण-भत्तिचित्तानो भद्दासणाओ अत्भुढेइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव सए सणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, ' उवागच्छित्ता सयंसि सयणिज्जसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासी - 'मा मे" से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुमिणे अण्णेहि पावसुमिणेहिं पडिहम्मिहित्ति कटु देवय-गुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहि धम्मियाहि कहाहि सुमिणजागरियं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ । सुमिणपाढग-निमंतण-पदं २२. तए णं से' सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुबियपुरिसे' सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज 'सविसेसं परमरम्म' गंधोदगसित्त-सुइय-सम्मज्जियोवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुदुरुक्क - तुरुक्क-धूव-डझंत-सुरभि मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर (गंध ? )गंधियं" गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तिय" पच्चप्पिणह !। १. ना० १।१।१६। ५. सुइ (क); सुइयं (घ)। २. सं० पा०-करयलपरिगहियं जाव अंजलि। ६. ° सुरभिकुसुम (क)। ३. इमे (ख)। १०. ४ (ख, ग, घ)। ४. ° संबुद्धाहिं (ख)। ११. सुयं ध° (क); १२१७६ सूत्रे: पूरितपाठे ५. X (क,ख, ग)। 'गंध' शब्दोविद्यते । औपपातिकस्य ५५ ६. कोटुंबिय ° (क)। सूत्रेपि स लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । ७. सविसेस ° (क); सविससे ° (ख); सविसेस- १२. एव ° (क, ख, ग, घ)। परम (ग)। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाओ २३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट तुटु-' •चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणति ।। २४. तर णं से सेणिए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणोए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलु म्मिलियम्मि अहह्मडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्ध-बंधुजीवगपारावयचलणनयण - परहुयसुरत्तलोयण-जासुमणकुसुम-जलियजलण-तवणिज्जकलस-हिगुलयनिगर-रूवाइरेगरेहंत-सस्सिरीए दिवायरे अहकमेण उदिए तस्स 'दिणकर-करपरंपरोयारपारद्धंमि'' अंधयारे वालातव' - कुंकुमेण 'खचितेव्व जीवलोए लोयण-विसयाणुयास'-विगसंत-विसददेसियम्मि लोए कमलागरसंडबोहए उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सयणिज्जाओ उद्वेइ, उद्वेत्ता जेणेव अट्टणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ । अणेगवायाम-जोग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपाहि सुगंधवरतेल्लमादिएहि पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहि विहणिज्जेहिं सव्विदियगायपल्हायणिज्जेहिं अभंगेहि अभंगिए समाणे, तेल्लचम्मसि पडिपुण्ण-पाणिपाय-सुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहि दवखेहि पटेहि कुसलेहि मेहावीहि निउहि निउणसिप्पोवगएहि जियपरिस्समेहि अभंगण-परिमद्दणुव्वलण-करणगुणनिम्माएहि, अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए--चउव्विहाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे नरदे अदाणसालाओपडिनिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समत्तजालाभिरामे विचित्त-मणि-रयण-कोट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि नाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसण्णे सुहोदएहिं 'गंधोदएहि पुष्फोदएहि"" १. सं० पा०-हट्टत जाव पच्चप्पिणंति । २. अहपंडरे (क, ख); अहा (ग)। ३. दिनकरपरंपरोयारपरद्धम्मि (क, ख, ग, घ, वृपा) । ४. बालायव (क्वचित्)। ५. खइय व्य (ख); खचियंमि (घ)। ६. ° तास (क, ख); ° वास (घ) ।। ७. जोग (क, ख, ग, घ)। प्रयुक्तासु सर्वास्वपि प्रतिषु 'जोग' इति पाठो लभ्यते, किन्त वृत्ती 'योग्या' इति व्याख्यातमस्ति तथा औषपातिक (६३) सूत्रे 'जोग' इति पाठोऽस्ति । असौ च समीचीनः तेन मुले स्वीकृतः । ८. अब्भगिएहि (स)। ६. समंत (वृ); समत्त, समुत्त (वृपा) । १०. पुष्फोदएहिं गंधोदएहिं (क, ख, ग, घ) । वृत्तौ पूर्व गंधोदकं ततश्च पुष्पोदकं व्याख्यातमस्ति । औपपातिक (६३) सूत्रे पि एष एव क्रमो दृश्यते। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं ( उक्खित्तणाए ) द सुद्धोदय पुणो पुणो कल्लागग: पवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसहि बहुविहि कल्लागा - पवर- मज्जणावसाणे पम्हल - सुकुमाल - गंधकासाइलूहियंगे अय- सुमहग्घ- दूसरयण- सुसंवुए सरस-सुरभि गोसीस चंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला वण्णगविलेवणे ग्राविद्ध-मणिसुवणे कप्पिय-हारद्वहार-तिसरयपालव - पलंबमाण- कडिसुत्त-सुकयसो हे पिणद्धगेवेज्ज-अंगुलेज्जग-ललियंगयललियकयाभरणे' नाणामणि कडग तुडिय-थंभियभुए हियरुवसस्सिरी कुंडलुज्जोइयाणणं मउड- दित्तसिरए हारोत्थय-सुकय- रइयवच्छे 'मुद्दिया-पिंगलंगुलीए पालंव-पलवमाण-सुकय-पडउत्तरिज्जे" नाणामणिकणगरयण-विमल'हरिह- निउणोत्रिय - मिसिमिसित' विरइय-सुसिलिट्ठ - विसिटू लट्ठ-संठिय-पसत्थश्रविद्व- वीरखलए, किंबहुना ? कप्परुक्खए चैव सुअलंकिय' - विभूसिए नरिंदे सकोरेंटमल्लदामेणं' छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जयसद्द-कथालोए' 'अणेगगणनायग- दंडनायगराईसर- तलवर माडविय- कोडुंबिय - मंति- महामति - गणग- दोवारिय ग्रमच्च- चेड - पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि सेणावइसत्यवाह-दय- संधिवालसद्धि संपरिवडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगण-दिप्पंतरिक्खतारागणाण मज्भे ससि व पियदंसणे नरवई मज्जणघराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उबट्टाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सण्णिसणे ॥ २५. तए णं से सेणिए राया अप्पणी अदूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए प्रट्ट भद्दासणाई - सेयवत्थ-पच्चुत्थुयाई" सिद्धत्थय" - मंगलोवयार कय" -संतिकम्माई - रावेर, रयावेत्ता नाणामणिरतणमंडियं श्रहियपेच्छणिज्जरूवं महग्घवरपट्टणुयं सह बहुभत्तिसय-चित्तठाणं ईहामिय-उसभ-तुरय-नर-मगर- विहग वालग १. कल्याण ( ग ) ? २. कल्ला (क, ख, ग ) । ३. क्याभरणे ( ग ) | ४. मुद्दिया- विगलंगुलीए सु-पत्तरिज्जे (क, ख, ग ) । ५. ०करण गरयण (क, ग) 1 ६. मिसिमित (क, घ) । ७. अलंकिय (क, ख, घ) 1 पालंब - पलंबमाण ८. सकोरिंट (घ) 1 ६. अत्र औपपातिकस्य पाठक्रमो अस्माद् भिन्नो वर्तते । अर्थसमीक्षया सचाधिकः संगतोप्य ११ १०. पच्चत्ययाई ( क ) ; पच्चत्युयाई ( ग ) | ११. सिद्धत्य ( क, ख, ग ) । १२. कत ( ग ) 1 स्ति -- ' कयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायगदंडनायय - राईसर- तलवर- माटुंबिय कोडुंबिय इभ सेट्ठि सेणावइ - सत्थवाह दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल - महामेहणिग्गए इव गगण. दिप्पंत- रिक्ख तारागणान मज्भे ससिव्द पिअदंसणे णरवइ जेणेव (ओ० सू० ६३) । ¦ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहानो किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं सखचियवरकणगपवरपेरंतदेसभागं अभितरियं जवणियं अंछावेइ, अंछावेत्ता अत्थरग-मउग्रमसूरग-उत्थइयं धवलवत्थ-पच्चुत्थुयं विसिट्ठअंगसुहफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं रयावेइ, रयावेत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी --- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अटुंगमहानिमित्त सुत्तत्थपाढए' विविहसत्थकुसले सुमिणपाढए सद्दावेह, सद्दावेत्ता एयमाणतियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ।। २६. तए णं ते कोडेवियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणयिया करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो ! तह त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, सेणियस्स रण्णो अंतियानो पडिनिक्खमंति, रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सहावेति ।। सेणियस्स सुमिणफल-पुच्छा-पदं २७. तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रणो कोडुबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हतुटु-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणयिया व्हाया कयबलिकम्मा" 'कय-कोउय-मंगल पायच्छित्ता अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा 'हरियालियसिद्धत्थय-कयमुद्धाणा सएहि-सएहिं गेहेहितो" पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जेणेव सेणियस्स भवणवडेंसगदुवारे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगयो मिलति', मिलित्ता सेणियस्स रणो भवणवडसगदुवारेणं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, सेणिएणं रण्णा अच्चिय-वंदिय-पूइय-माणिय सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुत्वन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ।। २८. तए ण से सणिए राया जवाणयतारय धाराण देवि ठवेइ, ठवेत्ता पूप्फफल__ पडिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं ते सुमिणपाढए एवं वयासी–एवं खलु १. किंनर (ख, ग)। २. ° मसूर (क, ख, ग, घ)। ३. पच्चत्थुयं (क); पच्चत्थियं (घ)। ४. विसिटुं° (क, ख, ध)। ५. ° सुतत्थधारए (ख)। ६. ना० १।१।१६। ७. हयहियया (क)। ८. निक्खमंति, २ ता (ग, घ)। ६. ना० १११।१६। १०. सं० पा.- कय बलिकम्मा जाव पायच्छित्ता। ११. सिद्धस्थय-हरियालिया कयमंगलमुद्धारणा (पा)। १२. गिहेहितो (क)। १३. मेलायंति (क); मिलायंति (ख, घ) । १४. माणिय-पूइय (क, ग); पूइय (ख, घ)। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अ (उखित गाए) देवाप्पिया ! धारिणी देवी अज्ज तंसि तारिसगंसि सर्याणिज्जंसि जाव' महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं एयस्स णं देवाणुप्पिया ! उरालस्स जाव' सस्सिरीयस महासुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भवि सइ ? || सुमिफल- कहण-पदं २६. तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्टतुटुचित्तमाणं दिया जाव' हरिसवस - विसप्पमाणहियया तं सुमिणं सम्मं 'प्रोगिण्हति गहिता " ईहं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता प्रणमणेण सद्धि 'संचालेति, संचालेत्ता " तस्स सुमिणस्स लट्ठा 'पुच्छियट्ठा गहियट्ठा" विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा सेणियस्स रण्णो पुरओ सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं वयासी - एवं खलु अम्हं सामी ! सुमिणसत्यंसि वायालोस सुमिणा, तीसं महासुमिणा - बावर्त्तारं सब्वसुमिणा दिट्ठा । तत्थ णं सामी ! अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा अरहंतंसि वा चक्क - सिवा गन्भं वक्कममाणंसि एएसि तीसाए महासुमिणाणं इमे चोहस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झति, तं जहा - संग्रहणी - गाहा - १. ना० १।१।१८,१६ | २, ३. ना० १।१।१६ । ४. परिगिति २ (ख) । ५. संवाएंति २त्ता (क); बोलेंति २ (ख) | १३ १.गय २.वसह्' ३.सीह ४ अभिसेय ५. दाम ६. ससि ७. दिणयरं ८. झयं 8. कुंभं । १०. उमसर ११. सागर १२. विमाणभवण १३. रयणुच्चय १४. सिहि च ॥ वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसि चोदसण्हं महासुमिणाणं प्रणयरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिवुज्झति । बलदेवमायरो वा बलदेवसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसि चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिवुज्भंति । मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गब्र्भ वक्कममाणंसि एएसि चोट्सहं महासुमिणाणं प्रणय रं महासुमिणं पासित्ता णं पडिवुज्भंति । इमे य सामी ! धारिणीए देवीए एगे महासुमिणे दिट्ठे, तं उराले णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठे जाव' आरोग्ग-तुट्ठि दीहाउय-कल्लाण- मंगललकारए सामी ! धारिणी देवीए सुमिणे दिट्ठे । 'अत्थलाभो सामी ! पुत्तलाभो सामी ! रज्जलाभो सामी ! भोगलाभो सामी ! सोक्खला भी सामी" ! एवं ६. गहियट्टा पुच्छियट्ठा (क, घ) 1 ७. उसभ ( क, ख ) । ८. ना० १।१।२० । ९. अत्र विंशतितमं सूत्रमनुसृत्य पाठः स्वीकृतः, Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ खलु सामी ! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव' दारगं पयाहिइ । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विग्णय'-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते वित्थिण्ण-विपुल-बलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा। तं उराले णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिवे जाव' आरोग्ग-तुट्टि- दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी ! धारणीए देवीए सुमिणे • दिढे त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुवूहेंति ।। सुमिणपाढग-विसज्जण-पदं ३०. तए णं से सेणिए राया तेसिं सुमिणपाढगाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुटु-चित्तमाणदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी –एवमेयं देवाणुप्पिया ! जाव" जणं तुब्भे वयह त्ति कटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छई, ते सुमिणपाढए विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलयति', दल इत्ता पडिविसज्जेइ ।। सेणियस्स सुमिणपसंसा-पदं ३१. तए णं से सेणिए राया सीहासणाम्रो अन्भुढेइ, अभुटेत्ता जेणेव धारिणी देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 'धारिणि देवि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! सुमिणसत्यंसि बायालीसं सुमिणा तीसं महासुमिणाबावत्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा जाव तं उराले णं तुमे देवाणुरिणय ! सुमिणे दिटे । कल्लाणे णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिढे । सिवे धणे मंगल्ले सस्सिरीए णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिढे । आरोग-तुट्ठि-दोहाउय-कल्लाण- मंगल्लकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दि? त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुव्हेइ ।। प्रतिषु चात्र पाठस्य क्रमविपर्ययो दृश्यते-- ६. सं० पा० करयल जाव एवं । अत्थलाभो सामी! सोक्खलाभो साम। ! ७. ना. शश२१ । भोगलामो सामी! पुत्तलाभो रज्जलाभो ८. संपडिच्छद (ग, घ)। (क, ख, ग, घ)। ६. दलइ (क)। १. ना० १४१०२० १०. धारणी देवी (क); धारणीए देवीए (ख, ग), २. विण्णाय (वृ); विष्णय (वृपा)! धारणी देवी (घ)। ३. ना० १११।२०। ११. सं० पा०- सुमिणा जाव भुज्जो २ अणु४. सं० पा०—आरोग्ग-तुट्ठि जाब दिलै। वहति । ५. ना० १।१।१६। १२. ना० १।१।२६ । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) धारिणीए दोहल-पदं ३२. तए णं सा धारिणी देवी सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं सुमिणं सम्म पडिच्छति, जेणेव सए वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाया कयबलिकम्मा' 'कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ।। ३३. तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउभवित्था .. धण्णानो णं तारो अम्मयानो, संपुण्णाओ णं तायो अम्मयानो, कयत्थाओ णं तानो अम्मयानो, कयपुग्णानो णं तानो अम्मयानो, कयल क्खणाप्रो णं ताो अम्मयाओ, कयविहवानो णं तायो अम्मयानो, सलद्धे णं तासिं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं मेहेसु अब्भुगएस अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएस अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जुएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियालभेय चंपग-सण-कोरेंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खारस-सरस-रत्तकिसुयजासु मण-रत्तबंधुजीवग-जातिहिंगुलय सरस - कुंकुम-उरभससरुहिर - इंदगोवगसमप्पभेसुवरहिण-नील-गुलिय-सुगचासपिच्छ-भिंगपत्त-सासग-नीलुप्पल नियरनवसिरीसकुसुम - नवसद्दलसमप्पभेसु जच्चंजण-भिंगभेय-रिटुग-भमरावलिगवलगुलिय-कज्जलसमप्पभेसु फुरंत-विज्जुय-सगजिएसु वायवस-विपुलगगणचवलपरिसक्किरे, निम्मल-वरवारिधारा-पर्यालय-पयंडमारुयसमायसमोत्थरंत-उवरिउवरितुरियवासं पवासिएस, धारा-पहकर-निवाय-निव्वाविय मेइणितले हरियगगणकंचुए पल्लविय" पायव १. ना० १११।१६। ७. गुलिया (ख, घ)। २. सं० पा०—कयबलिकम्मा जाब विपुलाई ८. सामग (क, ख); साम (वृपा)। जाव विहरइ ।। ६. निर्वापितशब्दाच्च सप्तम्येकवचनलोपो दृश्यः ३. सथणिज्जेसु (क)। ४. सरिसय (ख); सरिस (घ); वाचनान्तरे- १०. इदं समस्तपदं स्यादपि तथापि वृत्तिकृता 'सण' स्थाने 'कंचण' 'सरिसव' स्थाने 'पल्लविय' पदं स्वतंत्ररूपेण व्याख्यातम् - 'सरिस' त्ति पठ्यते (वृ)। इह सप्तमीबहुवचनलोपो दृश्यः, ततः ५. हिंगुलिय (ग, घ)। पल्लवितेषु (वृ)। ६. इंदगोवसम° (क)। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ गणेसु वल्लिवियाणेसु' पसरिएसु उन्नएसु' सोभग्गमुवगएसु' वेभारगिरिप्पवाय-तड-कडगविमुक्केसु उज्झरेसु, तुरियपहाविय-पल्लोट्टफेणाउलं सकलुसं जलं वहतीसु गिरिनदीसु सज्जज्जुण-नीव-कुडय-कंदल-सिलिध-कलिएसु उववणेसु, मेहरसिय - हट्ठतुटुचिट्ठिय - हरिसवसपमुक्ककंठकेकारवं मुयंतेसु बरहिणेसु' उउवस-मयजणिय-तरुणसहयरि-पणच्चिएसु नवसुरभि-सिलिंध-कुडय-कंदलकलंब-गंधद्धणि मुयंतेसु उववणेसु । परहुय-रुय-रिभिय-संकुलेसु उद्दाइंत-रत्तइंदगोवय-थोवय-कारुण्णविलविएसु ओणयतणमंडिएसु दद्दुरपयंपिएस संपिडिय-दरिय-भमर-महुयरिणहकरपरिलित-मत्त-छप्पय-कुसुमासवलोल-महुर-गुंजंतदेसभाएसु उववणेसु । परिसामिय-चंद-सूर-गहगण-पण?नक्खत्ततारगपहे. इंदाउह-बद्ध-चिंधपट्टम्मि अंबरतले उड्डाणवलागपंति"-सोभंतमेहवंदे कारंडग-चक्कवाय-कलहंस-उस्सुयकरे संपत्ते पाउसम्मि काले हायात्रो" कयबलिकम्माप्रो कय-कोउय-मंगल-पायच्छितानो 'कि ते?''वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-प्रोविय-कडग-'खड्य".. विचित्तबरवलय/भियभुयानो कुंडलउज्जोबियाणणामो रयणभूसियंगीयो, नासा-नीसासवाय-वोज्झ चक्खुहरं वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं १. ° सु (क, ख); अन्यत्रापि यत्र क्वचित् [भ० ६।१४४ सूत्रस्य पादटिप्पणं] असौ एतत् दृश्यते । पाठः व्याख्यादृष्ट्या सरलोस्ति । २. पाठान्तरे नगेषु पर्वतेषु नदेषु वा ह्रदेषु १३. उचिय (ग, घ)। वृत्तिकारेणापि "उचिय' पदं व्याख्यातमस्ति-उचितानि योग्यानि ३. सोहग्ग° (क)। (७) । किन्तु अत्र 'ओविय' पदं समीचीन४. सिलिद्ध (ख, ग)। मस्ति। संभवतो लिपिदोषेण परिवर्तनं ५. बरिहणेसु (क)। जातम् । २४ सूत्रे 'ओविय' इति पाठी ६. उदु (ख); उडु (ग, घ)। लभ्यते । तत्र वृत्तिकारेण 'ओविय ति ७. परिझामिय (क, ग, घ, बृपा)। परिकमितानि इति' ब्याख्या कृतास्ति । अत्र ८. ° तारागपहे (क); ° तारागणपहे (ग)। वत्तिकारेण 'उचिय' पाठो लब्धः तेन तथा ६. ०पटंटसि (ख, घ)। व्याख्यात:। १०. ° बलागवंति (ख)। १४. खद्य (घ); खड्डय (घ)। ११. किंभूता अम्मयाओ इत्याह-हायाओ १५. खड्डय- एगावलि- कंठमुरज-तिसरय-वरवलयइत्यादि (यू)। हेमसुत्त-कुंडलुज्जोवियाणणाओ (वृपा)। १२. किन्नो (क); किन्ने (ग); किं रो (घ)। १६. नास (क) । किं तत् 'यत् करोति' इति शेषः । किच Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खितणाए) धवलकणय-खचियंतकम्म पागासफलिह-सरिसप्पभं अंसुयं पवर' परिहियानो, दुगूलसुकुमालउत्तरिज्जाओं 'सव्वोउय-सुरभिकुसुम-पवरमल्लसोभियसिरानो' कालागरुधूवधूवियाओ सिरी-समाणवेसाओ, सेयणय-गंधहत्थिरयणं दुरूढायो समाणीओ, सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं 'चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंड- संखकुंद- दगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगास- चउचामरवालवीजियंगीयो सेणिएणं रण्णा सद्धि हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठो-पिट्ठोसमणुगच्छमाणीओ चाउरंगिणीए सेणाए-महया हयाणीएणं गयाणीएणं रहाणीएणं पायत्ताणोएणंसव्विड्ढीए' सव्वज्जुईए 'सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सवविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सह-सण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि हुडुक्क-मुरयमुइंग-दंदुहि -निग्घोसनाइयरवेणं रायगिहं नयरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चरच उम्मुह-महापहपहेसु आसित्तसित्त-सुइय-सम्मज्जिप्रोवलितं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डझंतसुरभि-मघमधेत-गंधुद्धयाभिरामं० सुगंधवर (गंध ?) गंधियं गंधवद्रिभूयं अवलोएमाणीयो नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणीयो० गुच्छ-लया-रुक्ख-गम्मवल्लि-गुच्छोच्छाइयं सुरम्मं वेभारगिरिकडग"-पायमूलं सव्वनो समंता 'आहिंडमाणीयो-ग्राहिंडमाणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अन्भुमाएसु जाव दोहलं विणिज्जामि ॥ १. प्रवरमिहानुम्बारलोपोदृश्यः (ब) । 'ग' प्रतौ ७. सं० पा०-सव्वजुईए जाव निग्घोसनाइय'पवरं' इति पाठो पि लभ्यते । खेणं । २. दुगुल्ल° (क)। ८. सं० पा०—सामज्जिओवलितं जाव सुगंध३. पाठान्तरे---सर्व कसुरभिकुसुमैः सुरचिताः वरगंधियं ! प्रलम्बा शोभमानाः कान्ता चित्रा माला यासां ६. १।१।७६ सूत्रे, वृत्तेः पूरितपाठे 'गंध' शब्दो तास्तथा । एवमन्यान्यपिपदानि बहवचनानि विद्यते। औषपातिकस्य ५५ सूत्रेपि संस्करणीयानि । इह वर्ण के बृहत्तरो स लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । वाचनाभेदः (व)। १०. अभिनंदिज्जमारपीओ २ (क)। ४. सेयणयं (ख)। ११. बेब्भार (ख, ग)। ५. अयमेवार्थों वाचनान्तरे इत्थमधीत:-- १२. डोहलं (क, घ)। सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं-उद्घध्वमा- १३. विणएंति (क); विणियति (घ)। गीहिं (व)। १४. वृत्तिकारस्य सम्मुखे सम्मता आदर्शा आसन् ६. सव्व ° (ख)। तेषु 'समंता आहेडज्ज' इत्येतावानेव पाठः पासीत । अग्रिमस्य पाठस्य वृत्तिकृता Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ धारिणीए चिता-पदं ३४. तए णं सा धारिणी देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि असंपत्तदोहला असंपुण्णदोहला असम्माणियदोहला सुक्का मुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा अोलुग्गसरीरा पमइलदुबला किलंता प्रोमंथियवयण-नयणकमला पंडुइयमुही करयलमलिय व्ब चंपगमाला नित्तेया दोणविवण्णवयणा जहोचिय-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-हारं' अणभिलसमाणी किड्डारमणकिरियं परिहावेमाणी दीणा दुम्मणा निराणंदा भूमिगयदिट्ठीया प्रोहयमणसंकप्पा' करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोव गया झियाइ ॥ पडिचारियाणं चिताकारणपुच्छा-पदं ३५. तए णं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडिचारियानो अभितरियानो दासचेडियाओ' धारिणि देवि अोलुग्ग' झियायमाणि पासंति, पासित्ता एवं वयासी---किण्ण" तुमे देवाणुप्पिए ! अोलुग्गा ओलूगगसरीरा जाव झियायसि ? ३६. तए णं सा धारिणी देवी ताहि अंगपडिचारियाहिं अभितरियाहिं दासचे डि याहि य एवं वुत्ता समाणो तारो दासचेडियाओं नो पाढाइ नो परियाण", 'अणाढायमाणी अपरियाणमाणी" तुसिणीया संचिट्ठइ ।। ३७. तए णं तापो अंगपडिचारियायो अभितरियानो दास चेडियानो धारिणि देवि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-किण्णं तुमे" देवाणुप्पिए ! अोलुग्गा सोलुग्ग सरीरा जाव" झियायसि ? ३८. तए णं सा धारिणी देवी ताहिं अंगपडिचारियाहि अभितरियाहिं दासचेडि वाचनान्तरत्वेन उल्लेखः कृतः, तस्य ५. ना० ११११३४ । संगतत्वमपि प्रदर्शिम् -ग्राहेंडज त्ति ६. अत्र पाठसंक्षेपकरणे सुक्ख सुक्खं निम्मस आहिडते । अनेन चैव मुक्तव्यतिकरभाजां इति विशेषणत्रयी न विवक्षितास्ति । सामान्येन स्त्रीणां प्रशंसाद्वारेणात्मविषयेऽका- एवमग्रेपि । लमेघदोहदो धारिण्याः प्रादुरभूत् इत्युक्तम् । ७. कि नं (क); किं णं (ख); किण्हं (ग) । वाचनान्तरे तु-~-ओलोयमाणीओ २ आहिंडे- ८. चेडीहिं (ख, ग) । माणीओ २ डोहलं विणिति । तं जइ णं ९. चेडियानो (ख, ग)। अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव डोहलं १०. परियाणाइ (ग); परियाणेति (घ)। विणिज्जामि । संगतश्चार्य पाठ इति (व)। ११. मारणा अपरियाणमाणा (ख, घ)। १. मल्लालकाराहारं (क, ख, ग)! १२. चिट्ठ इ (क)। २. कीडा (क, ख, घ)। १३. तुमं (क, ग)। ३. सं. पा...-ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ। १४. ना० १।११३४ । ४. चेडीसो (क, ग)। १५. परियारियाहिं (क)। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (उक्खित्तणाए) १६ याहिं दोच्चं पि तव्चं पि एवं वुत्ता समाणो नो पाढाइ नो परियाणइ, अणाढाय माणी अपरियाणमाणो तुसिणीया संचिट्ठइ ।। पडिचारियाणं सेणियस्स निवेदण-पदं ३६. तए णं तानो अंगपडिचारियानो अभितरियानो दासचेडियानो धारिणीए देवोए अगाढाइज्जमाणोनो अपरिजाणिज्जमाणोश्रो तहेव संभंतानो समाणीयो धारिणीए देवीए अंतियानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं ° कटु जएणं विजएणं वद्धाति, बद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी ! किंपि अज्ज धारिणी देवी अोलुग्गा अोलुग्गसरीरा जाव' अट्टज्झा. गोवगया झियायइ ।। सेणियस्स चिताकारणपुच्छा-पदं ४०. तए णं से सेणिए राया तासि अंगपडिचारियाणं अंतिए एयम₹ सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं' 'जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता" धारिणि देवि ओलुग्गं सोलुग्गसरीरं जाव अज्झाणोवगयं भियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं देवाणुप्पिए ! अोलुग्गा अोलुग्गसरीरा जाव अट्टज्माणोवगया झियायसि ? ४१. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी नो पाढाइ नो परियाणइ जाव' तुसिणीया संचिट्ठइ ॥ ४२. तए णं से सेणिए राया धारिणि देवि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी--किण्णं तुमं देवाणुप्पिए ! पोलुग्गा प्रोल्लुगसरीरा जाव अट्टज्माणोवगया झियाससि ? ४३. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ता समाणी नो पाढाइ नो परियाणइ तुसिणीया संचिट्ठइ ।। ४४. तए णं रो सेणिए राया धारिणि देवि सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-- किण्णं' देवाणुप्पिए ! अहमेयस्स अट्ठस्स अणरिहे सवणयाए ? तो" णं तुम ममं अयमेयारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सीकरेसि ।। १. सं० पा०-करयलपरिगहियं जाव कटु ।। ६. ना०२१३६। २. ना० ११११३४ । ७. ना० १०११३४ । ३. चेइयं (क, ख, ग, घ)। ८. पू०-ना० ११११३६ । ४. जेणेव धारिणी देवी तेणेव पहारेत्थ गमणाए . किण्हकिण्णमिति वा पाठः (व)। तएणं सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी १०. तुमं देवाणु ° (क, घ)। अत्र 'तुम' अनातेणेव उवागच्छइ २ (ग, वृपा), वश्यको विद्यते । ५. ना १३१॥३४॥ ११. ता (घ)। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० धारिणीए चिताकारण निवेदण-पदं ४५. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा सवह साविया समाणी सेणियं रायं एवं वयासी - एवं खलु सामी ! मम तस्स उरालस्स जाव' महासुमिणस्स तिन्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं श्रयमेयारूवे' अकाल मेहेसु दोहले पाउन्भूए - ture ताम्र अम्मयायो कयत्थाम्रो णं ताश्री अम्मयाश्रो जाव' वैभारगिरिकडग'-पायमूलं सव्वश्रो समंता ग्राहिडमाणीओ-ग्राहिडमाणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु प्रभुग्गएसु जाव' दोहलं विज्जामि | 'तए णं श्रहं " सामी ! अयमेयारूवंसि प्रकालदोहलसि प्रविणिज्जमाणंसि लुगा जाव अज्भाणोवगया भियामि || सेस्सि आसासण-पद ४६. तए से सेगिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म धारिणि देवि एवं वयासी - माणं तुमं देवाणुप्पिए ! श्रलुग्गा जाव: श्रदृज्भाणोवराया यहि | अहं णं तह" करिस्सामि" जहा णं तुब्भं प्रयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्सइ त्ति कट्टु धारिणि देवि इट्ठाहि कंताहि पियाहि मणुन्नाहि मणामाहिं वग्गूहिं समासासेइ, समासासेत्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुराभिमु सणसणे धारिणीए देवीए एयं प्रकालदोहलं बहूहि याएहि य उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य - ' चव्विहाहि बुद्धीहि श्रणुचितेमाणे प्रणुचितेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा 'ठिदं वा उप्पत्ति वा प्रविदमाणे हयमणसं कप्पे जाव झियाइ ॥ अभयकुमारस्स सेणियं पर चिताकारणपुच्छा-पदं ४७. तयाणंतरं च णं अभए" कुमारे 'पहाए कयबलिकम्मे " कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते • सव्वालंकारविभूसिए पायवंदए पहारेत्थ गमणाए । १. ना० १।१।१६ । २. अमेया ( ग ) । नायाध महा ३. ना० ११११३३ । ४. वेळभार ( ख, ग ) 1 ५. द्रष्टव्य : १ । १ । ३३ सूत्रस्यासौ पाठ: । ६. ना० १।१।३३। १४. ना० १।१।३४ । ७. तएण हं ( क ) ; तते णं हं ( ख ) ; तेणा हं (घ ) । १५. अभय (क, ग, घ ) 1 ८, ६. ना० १।११३४ । १०. तहा (घ) | ११. घत्तीहामि (वृ) ; करिस्सामि ( वृपा ) 1 १२. चउबिहाए बुद्धीए ( ग ) | १३. उत्पत्ति वा ठिई वा ( क ) ; उप्पत्ति वा (वृपा) । १६. सं० पा०- कयबलिकम्मे जाव सव्वालंकार | Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) ४८. तए णं से अभए कुमारे" जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं प्रोहयमणसंकप्पं जाव' झियायमाणं पासइ, पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अण्णया' मम सेणिए राया एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पाढाइ परियाणइ सक्कारेइ सम्माणेइ [इट्ठाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहि अोरालाहि वहि ?] पालवइ संलवइ अद्धासणेण" उवनिमतेइ मत्थयंसि अग्धाइ। इयाणि मम सेणिए राया नो पाढाइ नो परियाणइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो इट्टाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहि मणामाहिं अोरालाहि वग्गूहिं पालवइ संलवइ नो अद्धासणेणं उबनिमंतेइ नो मत्थयंसि अग्धाइ', कि पि अोहयमणसंकप्पे जाव' झियायइ । तं भवियव्वं णं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम सेणियं रायं एयमट्ठ पुच्छित्तएएवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे गं तारो ! अण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता आढाह परियाणह 'सक्कारेह सम्माणेह" अालवह संलवह अद्धासणेणं उवणिमंतेह मत्थयंसि अग्घायह" । इयाणि तानो! तुब्भे ममं नो पाढाह जाव 'नो मत्थयंसि अग्घायह" कि पि अोहयमणसंकप्पा जाव झियायह । तं भवियब्वं णं ताओ ! एत्थ कारणेणं ! तो तुब्भे मम तारो ! एयं कारणं अगृहमाणा" असंकमाणा अनिण्हवमाणा अपच्छाएमाणा जहाभूतमवितहमसंदिद्धं एयमढे आइक्खह । तए णंह तस्स कारणस्स अंतगमणं गमिस्सामि ।। सेणियस्स चिताकारणनिवेदण-पदं ४६. तए णं से सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे अभयं कुमारं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता! तव चुल्लमाउयाए" धारिणीदेवीए तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु अइक्कतेसु तइयमासे वट्टमाणे दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे १. X (घ)। ८. तेणेव (घ)। २. ना० १११३४ ६. सं० पा०--परियाणह जाव मत्थयंसि ३. अण्णया य (क); अण्णतो (घ)। १०. पू०-अस्य सूत्रस्य पूर्वभामः । ४. आसणेणं (क, ख, ग)। नोयुक्तपुनरावर्तने ११. आग्घायह आसणेणं उवनिमंतेह (क, घ)। 'अद्धासणेण' पाठोस्ति, अत्रापि तथैव युज्यते। १२. नो आसणेणं उवनिमंतेह (क, ख, ग, घ)। ५. अग्धायइ (क, ख, ग)। १३. अगूहेमाणा (ख, ग, घ)। ६. ना० १११॥३४॥ १४, तुल्ल° (ग)। ७. जेणेव (घ)। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ दोहले पाउब्भवित्था--धण्णायो णं तानो अम्मयानो तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वनो समंता प्राहिंडमाणीप्रो-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणिज्जामि। तए णं अहं पुत्ता धारिणीए देवीए तस्स अकालदोहलस्स बहूहिं आएहि य उदाएहि य जाव' उप्पत्ति अर्विदमाणे प्रोयमणसंकप्पे जाव' झियामि, तुम प्रागयं पि न याणामि । तं एतेणं कारणेणं अहं पुत्ता! पोयमणसंकप्पे जाव झियामि ॥ अभयस्स आसासण-पदं ५०. तए णं से अभए कुमारे सेणियस्स रणो अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु-चित्तमाणदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहिराए सेणियं रायं एवं वयासी-मा णं तुब्भे तानो ! ओह्यमणसंकप्पा' जाव' झियायह । अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्सइ त्ति कटु सेणियं रायं ताहिं इटाहि" कंताहि पियाहि मणुन्नाहि मणामाहिं वग्गृहिं° समासासे इ॥ ५१. तए णं से सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हद तुट्ठ-चित्तमाणंदिए जाव' हरिस वस-विसप्पमाणहियए अभयं कुमारं सक्कारेइ समाणेइ, पडिविसज्जेइ॥ अभयस्स देवाराहण-पदं ५२. तए णं से 'अभए कुमारे" 'सक्कारिए सम्माणिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रण्णो अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणे, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणे निसपणे ॥ ५३. तए णं तस्स अभयस्स" कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए१२ •चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था--नो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम १. ना० १२१३३ २. ना० १६११४६ । ३. ना० १११३४ । ४. ना० १११।१६। ५. तोह्य ° (क)। ६. ना० १६१६३४। ७. सं० पा०–इट्टाहिं जाव समासासेइ । ८. ना० १।१।१६। ६. अभयकुमारे (ख, ग, घ)। १०. सक्कारिय ° (क); सस्कारिय सम्माणिय (ख, ग)। ११. अभय (ख, ग, घ)! १२. सं० पा०-अज्झस्थिए जाव समुपज्जित्था। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्वित्तणाए) २३ चुल्लमाउयाए' धारिणीए देवीए अकालदोहलमणो रहसंपत्ति करित्तए, नन्नत्थ' दिब्वेणं उवाएणं । अत्थि णं मझ' सोहम्मकप्पवासी पुत्वसंगइए देवे महिड्ढीए' 'महजुइए महापरक्कमे महाजसे महब्बले महाणुभावे महासोक्खे । तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स' उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स ववगयमालावण्णगविलेवणस्स निक्खित्तसत्थमुसलस्स एगप्स अबीयस्स दन्भसंथारोवगयस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता' पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणस्स विहरित्तए। तए णं पुत्वसंगइए देवे मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालमेहेसु दोहलं विणेहिति-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव पोसहसाला तेणामेव" उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्त' पगिण्हइ, पगिहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारो जाव पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे " चिट्ठइ॥ देवागमण-पदं ५४. तए णं तस्स अभयकुमारस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे पुटवसंगइयस्स देवस्स पासणं चला। ५५. तए णं से पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी देवे पासणं चलियं पासइ, पासित्ता मोहिं पउंजइ। ५६. तए णं तस्स पुव्वसंगइयस्स देवस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे' समुप्पज्जित्था-- एवं खलु मम पुब्वसंगइए जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नयरे पोसहसालाए पोसहिए अभए नाम कुमारे अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठाइ । तं सेयं खलु मम अभयस्स कुमारस्स अंतिए पाउब्भवित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं १. तुल्ल ° (ग) प्रायः सर्वत्र । २. ण अण्णत्थ (क)। ३. मम (घ)। ४. सं० पा०-महिड्ढीए जाव महासाखे । ५. महसोक्खे (क, ख)। ६. बंभयारिस्स (घ)। ७. परिगिण्हित्ता (क, घ)। ८. तेणेव (घ)। ६. पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता (ख, घ), अत्र उपासकदशायाः प्रथमाध्ययने (६०) सूत्रे एवं पाठो विद्यते---दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता। १०. अट्टमं ° (ख)। ११. ४ (क, ख, घ)। १२. सं० पा०-अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ नायाधम्मक हाओ समोहण', समोहणित्ता संखेज्जा जोयणाई दंड निसिरइ, तं जहा - रयणाण वइराणं' वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंकाणं गंजणाणं रययाणं जायरूवार्ण अंजणपुलगाणं फलिहाणं रिट्ठाणं ग्रहावायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडेत्ता ग्रहासुहुमे पोगले परिगण्इ, परिगिहित्ता अभयकुमारमणुकंपमाणे देवे 'पुव्वभवजणिय- नेह-पीइवहुमाणजायसोगे तो विमाणवरपुंडरीयाम्रो रयणुत्तमाओ 'धरणियल-गमणतुरिय-संजणिय-गमणपयारो" "वाघुण्णिय विमल कणग-पय रंग- वडिसगमउडुक्कsistaदंसणिज्जो मणि-कण रणपहकर परिमंडिय-भत्तिचित्त-विणिउत्तग- मणुगुणजणिय हरिसो पिखोलमाणवरललियकुंडलुज्ज लिय-वयणगुणजणियसोम्मरुवो" उदियो विव कोमुदीनिसाए सणिच्छरंगारकुज्ज लियमज्झभागत्यो नयणानंदो सरयचंदो दिव्वोसहिपज्जलुज्जलियदंसणाभिरामो उदुलच्छिस मत्तजायसोही पट्टगंधुद्धयाभिरामो मेरू विव नगवरो विगुब्वियविचित्तवेसो दीवसमुद्दाणं असंखपरिमाणनामधेज्जाणं मज्झकारेणं वीइवयमाणो उज्जोयंतो ' पभाए विमलाए जीवलोयं रायगिहं पुरवरं च अभयस्स पासं प्रोवयइ दिव्वख्वधारी । ५७. तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसद्धवण्णाई सखिखिणियाइं पवर वत्थाई परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी -- ग्रहं णं देवाणुप्पिया ! पुब्वसंग इए १. समोहति ( क, ख, घ) । २. दंड उड्ढं (ग) 1 ३. वयराणं ( ग, घ ) । ४. रयणाणं ( ग, घ ) इत्यपपाठ: । ५. वाचनान्तरे -- पूर्वभवजनितस्नेहप्रीति बहुमानजनितशोभः (वृ) | ६. वाचनान्तरे - धरणीतलगमन संजनितमनः प्रचारः ( वृ) | ७. ० सोमवो (ख, घ); वाचनान्तरे पुनरेवं विशेषणत्रयं दृश्यते-- वाघुन्निय- विमलकणगपयरग-वडेंसगप कंपमाण चललोल - ललियपरिलंबमाण- नर-मगर - तुरंग मुहसय-विणिग्गश्रोणि- पवरमोत्तियविरायमाणमउडुक्कSrastaदरिसणिज्जो अणेगमणिकणगरयणपहकरपरिमंडिय-भाग भत्तिचित्त-विणिउत्तगमगुणजय - पेखोलमाणवरल लियकुंडलुज्ज लियमहियआभरणज णियसोभे गयजलमलविमलदंसणविरायमाणख्वे (वृ) । ८. उज्जीवेंतो ( क ग ) । गमः ६. 'परिहिए' इतिपाठानन्तरं आदर्शेषु एक्की ताव एसो गमो । अन्नो वि गमो ' इत्युल्लेखोस्ति । तदनन्तरं द्वितीयोः गमः साक्षाल्लिखितोस्ति, तेनादर्शेषु गमद्वयस्य सम्मिश्रणं जातम् । वृत्तावपि श्रस्य सूचना लभ्यते, यथा - एकस्तावदेष पाठोन्यो पि द्वितीयो गमो वाचनाविशेषः पुस्तकान्तरेषु दृश्यते । अस्योल्लेखस्यानुसारेण द्वितीयगमस्य पाठः इत्थं भवति - " तएवं से देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चलाए aste सीहाए उद्धयाए जयणाए या ए दिव्वाए देवगईए जेणामेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे जेणामेव दाहिणड्ढभरहे Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ पढम अज्झयणं (उदिखत्तणाए) सोहम्मकप्पवासी देवे महिड्ढीए' ज णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मणसोकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवाणुप्पिया! अहं इहं हन्धमागए । संदिसाहिणं देवाणुप्पिया! किं करेमि ? कि दलयामि ? कि पयच्छामि ? किं वा ते हियइच्छियं ? ५८. तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ठ तुट्टे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयल 'परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए° अंजलि कटु एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालदोहले पाउन्भूए-धन्नानो णं तारो अम्मयानो तहेव पुव्वगमेणं जाव' वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वनो समंता आहिंडमाणीओ आहिंडमाणीनो दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव' दोहलं विणेज्जामि-तुं णं तुम देवाणुप्पिया ! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं विणेहि ॥ देवस्स अकालमेह विउव्वण-पदं । ५६. तए णं से देवे अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्टे अभयं कुमारं एवं वयासीतुमं णं देवाणुप्पिया ! सुनिव्वुय-वीसत्थे अच्छाहि । अहं णं तव' चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहल" विणेमि ति कटु अभयस्स कुमारस्स अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरस्थिमे णं वेभारपव्वए वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निसिरइ जाव" दोच्चपि वे उब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता खिप्पामेव सगज्जियं सविज्जुयं सफुसियं पंचवण्णमेहनिणाअोवसोयिं दिव्वं पाउससिरि विउव्वइ, विउब्वित्ता जेणामेव अभए कुमारे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहे नयरे पोसहसाला अभयकुमारे ४, दलामि (ख, ग, घ)। तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंत- ५. हियं (ग)। लिखपडिवन्ने दसवण्णाइं सखिखिणियाइं ६. सं० पा०-करयल अंजलि । पवर वत्थाई परिहिए"। ७,८. ना० १११२३३ । वृत्तिकारेण द्वितीयगमविषये एका सूचनापि ६. अस्थाहि (ग, घ)। दत्तास्ति-अयं द्वितीयो गमो जीवाभिगम- १०. जावदोहलं (क) । सूत्रवृत्त्युनुसारेण लिखित: (व)। ११. निसरति (ख, ग, घ)। १. महड्ढिए (ख, घ); पू०---ना० १११।५३ । १२. ना० १११।५६ । २. संगिम्हित्ता (क, ख, ग)। १३. जेणेव (ख, ग, घ)। ३. संदिसहा (क); संदिसह (घ)! Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ अभयं कुमारं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए तव पियट्टयाए 'सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया' दिव्वा पाउससिरी विउब्विया, तं विणेऊ णं देवाणुप्पिया ! तव चुल्लमाउया धारिणी देवी अयमेयारूवं अकालदोहल ।। धारिणोए दोहद-पूरण पदं ६०. तए णं से अभए कुमारे तस्स पुवसंगइयस्स 'सोहम्मकप्पवासिस्स देवस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हतुटे सयानो भवणाग्रो पडि निक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए ° अंजलि कटु एवं वयासी—एवं खलु तारो ! मम पुव्वसंगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगज्जिया सविज्जुया (सफुसिया ? ) पंचवण्णमेहनिणानोवसोभिया दिव्वा पाउससिरी विउव्विया । तं विणेऊ णं मम चुल्लमाउया धारिणी देवी अकालदोहलं ॥ तए णं से सेणिए राया अभयस्स कुमारस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हडतुडे' कोडुंबियपुरिमे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया ! रायगिहं नगरं सिंघाडग-तिग-च उक्क चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु प्रासित्तसित्त-सुइय-संमज्जिओवलितं जाव सुगंधवर [गंध ? ] गंधियं गंधवांद्रभूयं करेह य कारवह य, एयमाणोत्तय पच्चाप्पणह ।। ६२. तए णं ते कोडुवियपुरिसा सेणिएणं रणा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठ-चित्त माणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसक्सविसप्पमाणहियया तमाण त्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६३. तए णं से सेणिए राया दोच्चपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणि सेणं' सन्नाहेह, सेयणयं च गंधहत्थिं परिकप्पेह। तेवि तहेव करेंति जाव पच्च पिणंति ॥ ६४. तए णं से सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता १. सगज्जिय सफुसिय सविज्जुया (क, ख, ग, ५. ना० १।११३३ ! घ); पूर्वपंक्ती 'सफूसियं' अंतिमं पदमस्ति ६. सं. पा०-कोडबियपुरिसा जाव पच्चप्पिअत्र च 'सविज्जुया' इत्यंतिमं पदम् । कथ- णति । मसौविपर्ययो जातः इति न निश्चयपूर्वकं ७. जोहपवर (क, ख, ग, घ)। अष्ट माध्ययवक्तुं शक्यते । नरय १६१ सूत्रानुसारेण असो पाठः २. देवस्स सोहम्मकप्पवासिस्स (क, ख, ग, घ)। परिवर्तितः । ३. सं० पा.--करयल अंजलि। ८. सेन्नं (क, ख, ग, घ)। ४. हट्ट तु? (क, ग, घ)। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) धारिणि देवि एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिए ! सगज्जिया' सविज्जुया सफुसिया दिव्वा पाउससिरी पाउन्भूया। तं गं तुम देवाणुप्पिए ! एयं अकाल दोहलं विणेहि ॥ ६५. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हद्वतुट्ठा जेणामेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणप्पविसइ, अणप्पविसित्ता अंतो प्रलेउरंसि व्हाया कयवलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता 'कि ते बरपायपत्तने उर-मणिमहल-हार-रइय-ग्रोविय-कडग-खुड्डय-विचित्त वरवल यथंभियभुया जाव' 'पागास-फालिय-समप्पभं" अंसुयं नियत्था, सेयणयं गंधहत्थिं दुरूढा समाणी अमय-महिय-फेणपुंज-सन्निगासाहि सेयचामरवाल वीयणीहि वीइज्जमाणी-वीइज्जमाणी संपत्थिया ।। ६६. तए णं से सेणिए राया पहाए कयवलिकम्मे 'कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते अप्पमहग्घाभरणालकिय सरीरे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेण च उचामहि वीइज्जमाणे धारिणि देवि पिढनो अणुगच्छइ ।। ६७. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा हत्थिखंधवरगएणं पिट्टयो-पिट्ठयो समणुगम्ममाण-मग्गा ह्य-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महया भड-चडगर-वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए जाव ददुभिनिग्घोसनाइयरवेणं रायगिहे नय रे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर'चउम्मुह -महापहपहेसु नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणी-अभिनंदिज्जमाणी जेणामेव 'वेभारगिरि-पव्वए" तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेभारगिरिकडग-तडपायमूले पारामेसु य 'उज्जाणेसु य' काणणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य 'रुवखेसु य 'गुच्छेसु य२ गुम्मसु य लयासु य वल्लीसु य कंदरासु य दरीसु य चुढीसु य जूहेस" य कच्छेसु य नदीसु य संगमेसु य 'विवरएसु य"अच्छमाणी" १. सं० पा० ... समज्जिया जाव पाउस सिरी। ६. वेभार ०(ख, ग); किन्भार (घ)। २. कि तत् 'यत् करोति' इति शेषः । १०. X (ख, ग)। ३. ना० १२११३३ । ११. X (ख)। ४. सप्पभं ° फलिय° (क); °फलिहसप्पभं १२. गच्छेसु य (ख);X (ग)। (ख); ° फालिय सप्पभं (ग); °फालिह- १३. चुट्ठिसु (क); वान्हिसु (ख); चोड्ढीसु सप्पभं (घ); ° फलिह-सरिसप्पभं (१।१।३३) ५. नियच्छा (क, ग)। १४. दहेसु (ख, ग, घ, वृपा)। ६. सं० पा०--कयवलिकम्मे जाव सरीरे। १५. ४ (क); विरयतेसु य (ख); वियरतेसु य ७. ना०१४३३॥ (ग); वियारेसु य (घ)। ८. सं० पा०--चच्चर जाव महापहपहेसु । १६. अत्थमाणी (ख)। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VE मायाधम्मकहाऔ य पेच्छमाणी य मज्जमाणी य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य पल्लवाणि य गिण्हमाणो य माणेमाणी य अग्धायमाणी' य परिभुजेमाणी' य परिभाएमाणी य वेभारगिरिपायमूले 'दोहलं विणेमाणी" सव्वनो समंता आहिंडइ ।। ६८. तए णं सा धारिणो देवी सम्माणियदोहला विणीयदोहला संपुग्णदोहला' संपत्तदोहला जाया यावि होत्था ।। ६६. तए णं सा धारिणी देवी सेयणयगंधहत्थिं दुरूढा' समाणी सेणिएणं हत्थिखंध वरगएणं पिट्ठो-पिटुप्रो समणुगम्ममाण-मग्गा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महया भड-चडगर-वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए जाव' दुंदुभिनिग्घोसनाइय-रवेणं जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विउलाई माणुस्सगाई भोग भोगाई पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। अभएण देवस्स पडिविसज्जण-पदं ७०. तए णं से अभए कुमारे जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ७१. तए णं से देवे सगज्जियं [सविज्जुयं सफुसियं ? ] पंचवण्णमेहोवसोहियं दिव्वं पाउससिरि पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता जामेव दिसिं" पाउन्भूए तामेव दिसिर पडिगए।। धारिणीए गम्भचरिया-पदं ७२. तए णं सा धारिणी देवी तंसि अकालदोहलंसि विणीयंसि सम्माणियदोहला तस्स गन्भस्स अणुकंपणट्ठाए" जयं चिट्ठइ जयं प्रासयइ" जयं सुवइ, आहारं पि १. x (क); आघाएमाणी (ख)। ५. संपन्नडोहला (घ) । २. परि जमाणी (ख, ग)। ६. संपन्नडोहला (क, ख)। ३. विरोमाणी (क, ख, ग); डोहलं विणेमाणी ७. दुरुढा (क)। (घ); वत्तिकारेणापि 'दोहलं' इति पाठो ८. सं० पाo. हयगय जाव रवेणं । मूलतया नैव व्याख्यातः । ६. ना० १२११३३ । यथा--विणेमाणी त्ति-डोहलं विनयंती १०. सं० पा०--भोगभोगाईजाव विहरइ । (व)। ११. दिसं (क, घ)। ४. १।१३३ सूत्रानुसारेण 'सम्माणियदोहला' १२. दिसं (क, घ)। इति पाठो युज्यते, यद्यपि प्रयुक्तादर्शेषु १३. °टुयाए (क) । नोपलभ्यते। क्वचित्प्रयुक्तेषु आदर्शेषु १४. आसति (घ)। लभ्यते । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) य णं आहारेमाणी-नाइतित्तं नाइकडुयं नाइकसायं नाइअंबिलं नाइमहुरं, जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थयं देसे य काले य आहारं आहारेमाणी, नाइचितं नाइसोयं नाइमोहं नाइभयं नाइपरित्तासं' ववगचिंता-सोय-मोह-भय-परित्तासा उदु-भज्जमाण'-सुहेहिं भोयण-च्छायण-गंध-मल्लालंकारेहिं तं' गभं सुहंसुहेणं परिवहइ।। मेहस्स जम्म-वद्धावण-पदं ७३. तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं वहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण' य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव' सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया ॥ ७४. तए णं तारो अंगपडियारियानो धारिणि देवि नवण्हं मासाणं बहुपडिपुषणाणं जाब सब्बंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्धं तुरियं चवलं वे इयं" जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे देवाणुप्पियाणं पियं निवेएमो, पियं भे" भवउ ॥ तए ण से सेणिए राया तासि अंगपडियारियाणं अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म हतुट्टे तानो अंगपडियारियानो महुरेहि वयणेहि विउलेण य पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, मत्थयधोयानो करेइ, पुत्ताणुपुत्तियं वित्ति कप्पेइ, कप्पेत्ता पडिविसज्जेइ ।। मेहस्स जम्मुस्सवकरण-पदं ६७. तए णं से सेणिए राया [पच्चूसकालसमयंसि ? ] कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायगिहं नगरं आसिय"'सम्मज्जिप्रोवलितं सिंघाडग-तिय • चउक्क-चच्चर - चउम्मुह- महापहपहेसु आसित्त-सित्त-सुइ-सम्मट्ठ-रत्यंतरावण-वीहियं मंचाइमंचकलियं गाणाविहराग१.४ (क, ख, ग)। १०. चेतियं (क, ग, घ)। २. उडु (ग)। ११. ते (क, ख, ग, घ)। ३. भयमाण (क, ख, घ)। १२. मत्थाधोयानो (क, ग)। ४. ४ (क)। १३. क्वचित् प्रयुक्तादशेषु कोष्ठकतिपाठो ५. अद्ध? ° (ग)। लभ्यते तथा १११।२२ सूत्रेपि विद्यते, तेनात्र ६. ४ (ख, ग)। स्वीकृत:। ७. अड्ढरत्त० (ख)। ८. ओ० सू० १४३ । १४. सं० पा०-आसिय जाव परिगीयं । ६.ना० १११७३ । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ऊसिय-ज्झय-पडागाइपडाग-मंडियं लाउल्लोइय-महियं गोसीस-सरस-रत्तचंदण-दद्दर-दिग्णपंचंगुलितलं उचियचंदणकलसं चंदणघड-सुकय-तोरणपाडवारदेसभाय ग्रासत्तोसत्तावउल-व-वग्घारिय-मल्लदाम-कलाव पचवण्णसरस-सुरभिमुक्क-पुप्फपुंजोक्यार-कलियं कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवडझत-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं नड-णटगजल्ल-मल्ल-मुट्टिय-वेलं बग-कहकहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंख-मख- तृणइल्लतुंबवीणिय-अणेगतालायर परिगीयं करेह, कारवेह य, चारगपरिसोहणं' करेह, करेत्ता माणुम्माणवद्धणं करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७७. 'तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठ-चित्त माणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया तमाण त्तियं पच्चपिण्णंति ।। ७. ताणं से सेणि राया अदारससेणि-प्पसेणीग्रो सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी.. गच्छह गं तुन्भे देवाणुपिया ! रायगिहे नगरे अभितरबाहिरिए उस्संक' उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिम-कुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्ज अणद्धयमइंग अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं ठिइवडियं दसदेवसियं" करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७६. तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणंति ।। ८०. तए णं से सेणिए राया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए पुरत्थाभि मुहे सण्णिसण्णे 'सतिएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य दाएहि दलय माणे दलयमाणे पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे एवं च णं विहरइ ।। मेहस्स नामादिसककार (संस्कार) करण-पदं ८१. तए णं तस्स अम्मापियरो 'पढमे दिवसे ठितिपडियं' करेंति, वितिए दिवसे १. चारगारसोहणं (क); चारगसोहणं (ख, घ); ६. सएहि साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहिं य चारागारपरिसोहणं (ग) एकस्मिन् हस्त- दाएहिं भागेहि ° (क); जाएहि दाएहिं लिखितवृत्त्यादर्श 'चारगपरिशोधनं' इति भागेहिं (ख, घ), दलमाणे २ (ग); व्याख्यातमस्ति अपरस्मिंश्च 'चारागारशोधन' वाचनान्तरे-शतिकारच इत्यादि यागानइति लभ्यते। देवपूजाः, दायान्-दानानि, भागान्-लब्ध२. सं० पा०-पच्चपिणह जाव पच्चप्पिणंति । द्रव्यविभागान इति (वृ)। ३. उस्सुक्क (क, ग, घ)। ७. जायकम्म (क, ख, ग, घ, वृ.); निरयाव४. ठिइवडियं (७); वाचनान्तरे-दसदिवसियं लियाओ १६१६६० ठितिपडियं च जहर ठिइडियं । मेहस्स' इति संकेतितमस्ति, तस्याधारेणासो ५. X (ख, ग, घ)। पाठः स्वीकृतः । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (उक्खित्तणाए ) जागरियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसूरदंसणियं" करेंति, एवामेव 'निवत्ते असुइजायकम्मकरणे” संपत्ते बारसाहे विपुलं असण पाण- खाइम - साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं बलं च बहवे गणनायग' - दंडनायगराईसर-तलवर- माडंबिय कोडुंबिय मंति- महामंतिगणग-दोवारिय-ग्रमच्च- चेड- पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ- सत्थवाह - दूयसंधिवाले आमंतति । तम्रो पच्छा पहाया कयवलिकम्मा कयकोउय'- मंगलपायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया' महइमहालयंसि भोयणमंडवंसि तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं मित्त-नाइ - "नियग-सयण-संबंधि-परियणेहि बलेण O बहूहि गणनायग-दंडनायग- राईसर- तलवर- माटुंबिय - कोडुंबिय मंति- महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च-चेड - पीढमद्द - नगर-निगम-सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाह दूयसंधिवालेहि॰ सद्धि आसाएमाणा 'विसाएमाणा परिभाएमाणा " परिभुंजेमाणा एवं चणं विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागयावि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइया तं मित्त-नाइ- नियग-सयण-संबंधि परियणं बलं च बहवे गणनायग जाव संधिवाले विपुलेणं पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेति सम्मार्णेति, सक्कारेत्ता सम्माणत्ता एवं वयासी - १. पाठान्तरे तु प्रथमदिवसे स्थितिपतितां, तृतीये चन्द्रसूरदर्शनिकां, षष्ठे जागरिकां (बु) । २. निव्वते सुइ० ( क, ख, ग, वृपा); निव्वत्ते असुइ० (घ ) । वृत्तिकृता 'निवृत्तेअतिक्रान्ते शुचीनां जातकर्म्म करणे' इतिव्याख्यातम्, तेन तदनुसारी पाठ: 'निवत्ते असुइजायकम्मकरणे' इत्येवंरूपः स्यात् । यत्र 'सुइजाय' इति पाठ: सम्मतस्तत्रैव 'निव्वत्ते' इति पाठः सङ्गच्छेत । ३. बारसाह दिवसे ( क, ख, ग, घ ) । वृत्ति कारेण -'बारसाह दिवसे' इति पाठ: विकल्पद्वयेन व्याख्यातः, यथा --- बारसादिवसे ति- द्वादशाख्ये दिवसे इत्यर्थः । अथदा ३१ जम्हाणं म्हं इमस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स श्रकाल मेहेसु दोहले पाउन्भूए, तं होऊ णं श्रहं दारए मेहे नामेणं । तस्स दारगस्स ग्रम्मापियरो प्रथमेवं गोपणं गुणनिष्कण्णं नामघेज्जं करें ति मेहे इ ॥ द्वादशानामह्नां समाहारो द्वादशाहं तस्य दिवस येन पूर्यते ( वृ) । यद्यपि वृत्तिकारण 'वारसाहदिवसे' इति पाठो व्याख्यातस्तथाप्यस्माभिः 'बारसाहे' इतिपाठः स्वीकृतः, एतदर्थं द्रष्टव्यम् - ओवाइय (१४४) सूत्रस्य वारसाहे' पदस्य पादटिप्पणम् । ४. सं० पा० - गणनायग जाव आमंतेंति । ५. सं० पा०—कयकोउय जाव सव्वालंकारविभूसिया | ६. सव्वालंकारभूसिया ( क, ख, ग ) । ७. सं० पा०-मित्त-नाइ - गणनायग सद्धि ८. पडिला माणा ( क ) ; X ( ग ) । जाव Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ नायाधम्मकहाओ मेहस्स लालणपालण-पद ८२. तए णं से मेहे कुमारे पंचधाईपरिगहिए, [तं जहा-खोरधाईए मज्जणधाईए कीलावणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए]' अण्णाहि य बहूहि-खुज्जाहिं चिलाईहिं 'वामणीहि वडभीहिं बब्बरीहि बउसीहि जोणियाहि पल्हवियाहिं ईसिणियाहि थारुगिणियाहि लासियाहि लउसियाहि दामिलोहिं सिंहलीहिं प्रारबोहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहि वहलीहिं मुरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहि.नानादेसीहि विदेसपरिमंडियाहि इंगिय-चितिय-पत्थिय-वियाणियाहिं सदेस-नेवत्थ-गहियवेसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं', चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-कंचुइज्जमयरग"-वंद-परिक्खित्ते हत्थानो हत्थं साहरिज्जमाणे? अंकाप्रो अंक परिभुज्जमाणे परिगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे२ रम्मंसि मणिकोट्टिमतलंसि परंगिज्जमाणे निव्वाय-निव्वाघायंसि गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं वड्ढइ" ॥ ८३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो अणुपुटवेणं नामकरणं च पजेमणगं'६ च पचंकमणगं च चोलोवणयं च महया-महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करेंसु ।। मेहस्स कलागहण-पदं ८४. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणंसि तिहि करण-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेति ।। १. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ११. साहिज्जमाणे (ख, ग, घ)। २. चिलाइयाहि (क, ख, ग, घ, रायपसेणइयं १२. अतोने वृत्तौ पाठान्तरस्योल्लेखो विद्यते उवनच्चिज्जमाणे २ उवगाइज्जमाणे २ ३. पउसियाहि (ओ० सू०७०)। उवलालिज्जमाणे २ उवगूहिज्जमाणे २ ४. इसिणियाहि (क, ख, ग)। अवयासिज्जमाणे २ परिवंदिज्जमाणे २ ५. थारुइणियाहिं (ओ० सू० ७०) । परिचुबिज्जमाणे २ : द्रष्टव्यम् ---(प्रोवाइय६. मुरुंडीहि (ओ० सू० ७०); मुरंडीहिं (राय० सूत्रस्य परिशिष्टं पृ० १५१); रायपसेणइयं सू० ८०४)। सूत्र ८०४। ७. वामणि [बावणि (ख, ग)] वडभिबब्बरि- १३. परिगिज्जमाणे २ (क, ग)। बउसिजोणियपलहविसिणिथारुगिणिलासिय- १४. बद्धति (घ)। लडसियदमिलिसिंहलिआरबिपुलिंदिपक्कणि- १५. अणुपुत्विं (ख)। बहलिमुरंडिसबरिपारसीहिं (क, ख, ग, घ)। १६. एवं जेमणं च एवं चंकमणगं च (ख, ग)। ८. नानादेसी (क, ख, ग)। १७. अतोग्ने 'गभटुमे वासे' इति पाठो विद्यते, ६. युक्त इति गम्यते (वृ)। किन्तु एतत् पाठान्तरं प्रतीयते । 'साइरेगट्र१०. महत्तरंग (घ)। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अझयणं (उक्खितणाए) ८५. तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयानो गणियप्पहाणामो सउणरुय पज्जवसाणाप्रो बावत्तरि कलाप्रो सुत्तओ य अत्थरो य करणो य सेहावेइ सिक्खावेइ, तं जहा१. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नटुं ५. गोयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पोक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासयं १३. अढावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं १६. अण्णविहिं १७. पाणविहिं १८. वत्थविहिं १६. विलेवणविहिं २०. सयणविहिं २१. अज्जं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४. गाहं २५. गीइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुत्ति २८. सुवण्णजुत्ति २६. चुण्णजुत्ति' ३०. ग्राभरणविहिं ३१. तरुणीपडिकम्म ३२. इत्थिलक्खणं ३३. पुरिसलक्खणं ३४. हयलक्खणं ३५. गयलक्खणं ३६. गोणलक्षणं ३७. कुक्कुडलक्खणं ३८. छत्तलक्खणं ३६. दंडलक्खणं ४०. असिलवणं ४१. मणिलक्षणं ४२. कागणिलक्खणं' ४३. वत्थुविज्ज ४४. खंधारमाणं' ४५. नगरमाणं' ४६. वूहं ४७. पडिवूहं ४८. चारं ४६. पडिचारं ५०. चाई ५१. गरुलवूहं ५२. सगडवूहं ५३ जुद्धं ५४. निजुद्धं ५५. जुद्धाइजु, ५६. अट्ठिजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१. छरुपवायं ६२. धणुवेयं' ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवणापागं ६५. बट्टखेड्डु ६६. सुत्तखेड्डु ६७. नालियाखेड्डु ६८. पत्तच्छेज्ज ६६. कडच्छेज्ज ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुतं ति ॥ ८६. तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयानो गणियप्पहाणामो सउणरुयपज्जव साणाम्रो बावरि कलानो सुत्तनो य अत्थयो य करणो य सेहावेइ सिक्खा वेइ, सेहावेत्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेइ ।। ८७. तर णं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं महुरेहि वयणेहिं 'विउलेण य" वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति" सम्माति, सक्कारेता सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दल इत्ता पडिविसज्जति ।। ५८. तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस वासजायगं, इति पाठस्यानन्तरमसौ पाठो ४. वत्थविज्ज (क, ग)। नावश्यकः प्रतिभाति । ओवाइय (१४५), ५. मारणं (क)। रायपसेणइथ (८०५) सूत्रयोरपि स्वीकृतपाठः ६. मावणं (ख) । उपलभ्यते । ७. घणुव्वेयं (ख, ग)। १. तूतं (ग)। ८, वेट्टखेड्ड (क)। २. तुण्णाजुत्ति (ख)। है. विउलेणं (ख, घ)। ३. कागिणी (ग)। १०. हक्कारेंति (ख)। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ नायाधम्मकहाओ विहिप्पगारदेसीभासाविसारए' गीयरई गंधवनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोहो बाहुजोहो बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था ।। मेहस्स पाणिग्गहण-पदं ८६. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरि-कलापंडियं जाव' वियालचारि' जायं पासंति, पासित्ता अट्टपासायडिसए कारेंति --- अब्भुग्गयमूसिय पहसिए विव मणि-कणग-रयण-भत्तिचित्ते वाउद्धय-विजयवेजयंती-पडाग-छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयण पंजरुम्मिलिए' व्व मणिकणगथूभियाए वियसिय-सयवत्त-पूंडरीए तिलयरयणद्धचंदच्चिए' नाणामणिमयदामालकिए अंतो बहिं च सण्हे तवणिज्ज-रुइल-बालुया-पत्थरे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए 'दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। एगं च णं महं भवणं कारेंति-अणेगखंभसयसन्निविटुं लीलट्रियसालभंजियागं अब्भुग्गयसुकयवइरवेइयातोरण -वररइयसालभंजिय"-सुसिलिट्ठ - विसिटु-लट्ठसंठिय-पसत्थ-वेरुलियखंभ-नाणामणिकगगरयण-खचियउज्जलं बहसम-सुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभागं ईहामिय'- उसभ-तुरय-नर-मगर-विहग-वालगकिन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं खंभुग्गयवयरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहर-जमल-जुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीय रूवगसहस्सकलियं भिसमाण" भिडिभसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफास सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणथूभियागं नाणाविह-पंचवण्ण-घंटापडाग-परिमंडि १. मट्ठारसविह° (ख); अट्ठारसदेसीभासा (वृपा); °चंदचित्ता (राय० सू० १३७) 1 (ओ० सू० १४८); अट्ठारस विहदेसिप्पगार- ८. रुइर (ग) । भासा (राय • सू० ८०६)। अष्टादश- ६. सं० पा० ----पासाईए जाव पडिरूवे। विधेः प्रकारा: प्रवृत्तिप्रकारा: अष्टादशभिर्वा १०. वतिरवेतिया (ग); वरवइरवेइया विधिभिर्भेदः प्रचारः प्रवृत्तिर्यस्या (वृ)। (राय० सू० १७)। २. ना० १.१८८ ! ११. सालभंजिया (क, ख, घ)। ३. वियालचारी (क)! १२. सं. पा.-ईहामिय जाव भत्तिचित्त । ४ अत्र च द्वितीयाबहुवचनलोपो दृश्यः (ब)। १३. ० मीणं (क, ख, ग)। ५. द्वितीया बहुवचनलोपो दृश्यः (ब) १४. मालिणीयं (ख)। ६. पंजरुम्मिल्लिय (ख, ग): १५. ० लेस्सं (क, ग)। ७. यंदच्चिए (क, ख, ग); चंदचित्ते Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं (उक्खित गाए) गहिरं धवल-मिरिचिकवयं विणिम्मुयंत लाउल्लोइयमहियं जाव' गंधवट्टिभूयं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ॥ ६०. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स ग्रम्मापियरो मेहं कुमारं सोहांसि तिहि करणनक्खत्त-मुहुत्तंसि सरिसियाणं सरिव्वयाणं सरितयाणं सरिसलावण्ण-रूवजोवण-गुणोववेयाणं सरिसहितो रायकुलेहितो आणिल्लियाण पसाहणटुंगविवहु-श्रवण- मंगलसुजपिएहिं हि रायवरकन्नाहिं सद्धि एगदिवसेणं पाणि गिम्हाविसु ।। पीइदाण-पदं ६१. तए णं तस्स मेहस्स ग्रम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयंति---अट्ठ हिरण्णकोडी अ सुवणकोडोस्रो गाहाणुसारेण भाणियव्वं जाव' पेसणकारियाओ, १. ना० १११ ७६ । २. आणतिल्लिया (क ) ; आणिलियाणं ( ग ) | ३. अविधव ० ( क ) । ४. मूलपाठे यासां गाथानां समर्पणमस्ति ताः वृत्त्यनुसारेणेमा: १. अहिरण्णवण्णव- कोडीओ श्रद्धहार एक्कावलीओ २. कण नावलि रयणावलि - कडगजुगा मउड-कुंडलाहारा | मुक्तावली अनु ॥ तुडिय खोम- जुगा । अट्टा ॥ वडजुग - भट्टजुगाइ - दुकुल्ल जगलाय ३. सिरि- हरि - थिइ कितीओ बुद्धी लच्छी य होंति अट्टट्ठा । नंदा भद्दा य तला य भय-वय नाडाई आसे य ॥ ४. हत्थी जाणा जुग्गा, सीया तह संदमणि- गिल्लीयो । थिल्ली य वियडजाणा, रह-गामा दास-दासीग्रो || वाचनान्तरे – रथानन्तरमश्वा हस्तिनश्चाधीयन्ते ( बृ ) । दीव थाले य । अवक्का || ५. किंकर -कंचुइ-मयहर-वरिसधर- तिविह पाई थासग पल्लग-कइविय प्रवएडय ६. पावीढाभिसिय-करोडियाओ पल्लेकए य हंसाई ह विसिट्ठा, पडिसिज्जा | ७. हंसे कोंचे गरुडे, पक्खे मयरे पउमे, म. तेल्ले कोट्ट समुग्गा, पत्ते चोए हरियाले हिंगुलए, मणोसिला C. खुज्जा - चिलाइ वामणि- वडभीमो जोणि- पल्हवियाओ, इसिणीया ३५ आसण-भेया उ अट्ठट्ठ उण्णय गणए य होइ दिमासोत्थि दीह-भद्दे य । एक्कारे ॥ तगर एला य सासवसमुग्गे || बव्वरि-वउसियाओ । थारुइणिया य || Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो अण्णं च विपुलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाए। ६२. तए णं से मेहे कुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयइ, जाव' एगमेगं पेसणकारि दलयइ, अण्णं च विउलं धण-कणग'- रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जं अलाहि जाव आसत्तमानो कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं ° परिभाएउं दलयइ ॥ ६३. तए णं से मेहे कुमारे उपि पासायवरगए फुट्टमार्णेहि मुइंगमत्थएहि वरतरुणि संपउत्तेहिं बत्तीस इबद्धएहि नाडएहिं 'उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे" उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे इ8] ' सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ महावीरसमवसरण-पदं १४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणव्यि चरमाणे गामाण गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए 'तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ ।। १०. लासिय-लउसिय-दमिणी, सीहलि तह आरबी पूलिंदीय। पक्रणि-बहलि-मुरुडी, सबरीओ पारसीओ य॥ ११. छत्तधरा चेडीओ, चामरधर-तालयंटयधरीओ। सकरोडियाधरीओ, खीराई पच धाईओ।। १२. अटुंगमद्दियाओ, उममद्दिग-हविग-मंडियानो य। वण्णय-चुण्णय-पीसिय-कीलाकारी य दवगारी॥ १३. उत्थावियाओ तह णाडइल्ल-कोडंबिणी-महाणसिणी। भंडारी अब्भ (ज्म) धारिणि, पूप्फरि पाणियघरी य ।। १४. बलिकारिय सेज्जाकारियाओ अन्भतरीओ बाहरिया। पडिहारी मालारी, पेसणकारीओ अट्ठ ।। भगवती (११।१५६) सूत्रे क्वचित् केचित् पाठभेदा अपि लभ्यते। १. भाएउ (ख, ग)। ५. उवणच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे (राय. २. ना० १११११ । सू० ७१०)। ३. सं० पा.-.-धण-कणग जाव परिभाए। ६. एतत् पदं रायपसेणइय (७१०) सूत्रे ४. °वद्धेहि (क); बत्तीसनिबद्धेहिं (ग)। विद्यते, अत्रापि युज्यते । ७. सं० पा०-चेइए जाव विहरइ। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अझयण (उक्खित्तणाए) मेहस्स जिन्नासा-पदं ६५. तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-"तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु - महया जणसद्दे इ वा जाव' बहवे उग्गा भोगा [ 0]' रायगिहस्स नगरस्स मझमज्झेणं एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छंति । इमं च णं मेहे कुमारे उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थाएहि जाव' माणुस्सए कामभोगे भुजमाणे रायमग्गं च 'अोलोएमाणे-अोलोएमाणे' एवं च णं विहरइ ॥ ६६. तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव' एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं' सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-किण्णं भो देवाणुप्पिया ! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवंरुह-सिव-बेसमण-नाग-जवख-भूय-नई- तलाय-रुक्ख - चेइय - पव्वयमहे इ वा उज्जाण-गिरिजत्ता इ वा ? जनो णं यहवे उग्गा भोगा जाव एगदिसि ए गाभिमुहा निग्गच्छंति ।। कंचुइज्जपुरिसस्त निवेदण-पदं ६७. तए णं से कंचुइज्जपुरिसे समणस्स भगवनो महावीरस्स गहियागमणपवित्तीए मेहं कुमारं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया! अज्ज रायगिहे नयरे इंदमहे इ वा जाव गिरिजत्ता इ वा जणं एए उग्गा भोगा जाव" एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे" इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं" •प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ।। मेहस्स भगवो समोवे गमण-पदं १८. तए णं से मेहे कुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हतुट्टे कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्धंट पासरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह । तहत्ति उवणेति । १. सं० पा०—सिंघाडग जाव महया । २. ओ० सू० ५२ । ३. जाव (क, ख, ग, घ)। ४. ना० १११।१३। ५. उवलोएमाणे २ (ग)। ६. ओ० सू० ५२। ७. कंचुइ-पुरिसं (राय० सू० ६८८)। ८. किं णं (क, ख)। ६. ना० १.११६६ । १०. ओ० सू०५२। ११. तित्थंकरे (ख)। १२. सं० पा०-अहापडिरूवं जाव विहरइ । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ नायाम्म कहाओ ६६. तए णं से मेहे पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-वंदपरियाल - संपरिवुडे रायगिहस्स नयरस्स मज्झमंज्भेणं निग्गच्छ, निग्गच्छिता णामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगव महावीरस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर चारणे जंभए य देवे प्रोवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासिता चाउरघंटाम्रो आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चरुहिता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं प्रभिगच्छइ । [ तं जहा - १. सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं अविसरणयाए ३. एगसाडिय - उत्तरासंग करणेणं ४. चवखुफासे अंजलि पग्गहेणं ५. मणसो एगत्तीकरण ] । जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो ग्रायाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता समणस्स भगवश्रो महावीरस्स नच्चासन्ने नाइट्वरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणणं पज्जुवासइ ॥ धम्मदेसणा-पदं १०० तर णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्भगए विचित्तं धम्म माइक्खइ जह जीवा बज्भंति, मुच्चंति जहा य संकिलिस्संति | धम्मका भाणियव्वा जाव' परिसा पडिगया || मेहस्स पध्वज्जासंकष्प-पदं १०१. तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं व्यासीसहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि' णं भंते! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं ।° ग्रहभुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । १. ना० १।१।१ । २. चडगर-रह-पकर (राय० सू० ६८३) । ३. वियोसरणयाए (वृपा ) 1 ४. एगल्लसडियं ( क ) 1 ५. एगत्तिभावेणं (क, वृपा) । ६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. ओ० सू० ७१-७२ ८. सं० पा० एवं पत्तियामि णं रोएमि णं । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) एयमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से 'जहेयं तुब्भे वयह । नवरि' देवाणुप्पिया! अम्मापियरो श्रापुच्छामि । तो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं पव्वइस्सामि । अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ मेहस्स अम्मापिऊणं निवेदण-पदं १०२. तए णं से महे कुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसित्ता जेणामेव चाउघंटे अासरहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट प्रासरहं दुरूहइ, महया भड-चडगर-पहकरेणं रायमिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जणामव सए भवणं तेणामंव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउरघंटाओ ग्रासरहाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य में धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। १०३. तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं क्यासी-धन्नोसि तुमं जाया! संपूण्णो सि तुमं जाया ! कयत्थो सि तुमं जाया ! कयलक्खणो सि तुमं जाया ! जन्नं तुमे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। १०४. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चंपि एवं वयासी-एवं खलु अम्म यानो ! 'मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुभेहि अब्भणुग्णाए समाणे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता ण अगाराग्रो अणगारियं पव्वइत्तए ।। धारिणीए सोगाकुलदसा-पदं १०५. तए णं सा धारिणी देवी तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुय १. जहेव तं तुम्भे वयह जं (क, ख, ग, घ); लिपिदोषेण परिवर्तनस्य संभावना स्यादिति असौ पाठः सर्वासु प्रतिषु विद्यते, तथाप्यत्र नासौ स्वीकारोन्यथात्वं भजते । 'उपासकदशा' (७१३७) नुसारी पाठः स्वी- २. नवरं (घ)। कृत। आदर्शगतपाठापेक्षया तत्रस्थपाठः ३. ४ (क, ख, ग)। समीचीनः प्रतिभाति । प्रस्तुतादशेषु ४. दोच्चपि तच्चपि (ख, घ)। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाऔ पुवं फरसं गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं मह्या पुत्तदुक्खेणं अभिभूया समाणी सेयागय रोमकूवपगलंत-चिलिणगाया' सोयभरपवेवियंगी नित्तेया दीण-विमण-वयणा करयलमलिय व्व कमलमाला तक्खणोलुग्गदुब्बलसरीर-लावण्णसुन्न-निच्छाय-गयसिरीया पसिढिलभूसण-पडंतखुम्मियसंचुण्णियधवलवलय-पभट्ठउत्तरिज्जा सूमाल-विकिण्ण-केसहत्था मुच्छावसनटुचेय-गरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुक्क संधिवंधणा कोट्टिमतलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिया ॥ धारिणीए मेहस्स य परिसंवाद-पदं १०६. तए णं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचभिंगारमुहविणिग्गय सीयलजलविमलधाराए परिसिंचमाण-निव्वावियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविंटवीयणग-जणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउर-परिजणेणं प्रासासिया समाणी मुत्तावलि-सन्निगास-पवडत"-अंसुधाराहि सिंचमाणी पोहरे, कलुण-विमण-दीणा रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमार एवं वयासीतुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इढे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे १३ 'उंबरपुष्पं व दुल्लहे सवणयाए, किमंगपुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पनोगं सहित्तए । तं भंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तो पच्छा अम्हेहि कालगएहिं परिणयवए वढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयखे। समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारापो अणगारियं पव्वइस्ससि ।। ११. धिज्जे (ग); धेज्जे (घ); पेज्जे (ओ० १. परसं (क)। २. विलीण ° (क, ख, ग, घ)। ३. ° खुण्णिय ° (भ० ६।१६८) । ४. सुकुमाल (क, घ)। ५. गुरुइ (ख)। ६. व (ख)। ७. परिसिंचमाणा (घ)। ८. उक्खेवण (क, ख)। ६. परियणेणं (ख, ग, घ)। १०. पडत (क)। १२. ° उस्सासए (क, ख, ग); वाचनान्तरे जीविउस्सविए (व)। १३. हिययाणंदजणणे (क, ख, व); एकस्यां हस्त लिखितवृत्तावपि हृदयनंदिजननः' इति लिखितमस्ति । १४. पुष्फमिद (ख)। १५. निरवयक्खे (घ)। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) १०७. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी तहेव णं तं अम्मो! जहेव णं तुभे ममं एवं वयह – “तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते "इट्टे कंते पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंवरपुप्फ ब दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खल जाया! अम्हं इच्छामो खणमवि विप्पोगं सहित्तए। तं भुजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तो पच्छा, अम्हेहि कालगएहि परिणयवए वढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे' समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खल अम्मयानो! माणुस्सए भवे अधुवे अणितिए असासए वसणसोवद्दवाभिभूते विज्जुलयाचचले अणिच्चे जलवुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिदुसन्निभे संझभरागमरिसे सुविणदसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविष्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुद्वि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अभणुण्णाए समाणे समणस्स' भगवयो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं' पव्वइत्तए । तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी--'इमानो ते जाया ! सरिसियानो सरित्तयाओ सरिव्वयाग्रो सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गणोववेयानो सरिसेहितो रायकुलेहितो पाणिल्लियारो भारियायो । तं भुजाहि णं जाया ! एयाहि सद्धि विउले माणुस्सए कामभोगे । पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ।। १०८. १. सं० पा० --तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स इमाओ ते जाया विपुलकुलबालियाओ कलाजाव पव्वइस्ससि । कुसल-सव्वकाललालिय-सुहोइयाओ मद्दवगुण२, निरवक्खे (क, ग); निरावेक्खे (ख); निर- जुत्त-निउणविणओवयार-पडिय-वियक्खणाम्रो बयखे (घ)। मंजुलमियमहुरभणिय-हसिय-विपेक्खिय-गइ३. अणिइए (क); अणितिते (ग); अणियए विलास-चेट्ठियविसारयाओ अविकलकुलसील(घ, वृ)। सालिणीमो विसुद्ध कुलवंससंताणतंतुवद्धण४. सुविणयदंस ° (क), सुविणगदस ° (घ) पगम्भउब्भवप्पभावणीमो मणोणुकूलहियय५. सं. पा०-समणस्स जाव पव्वइत्तए। इच्छियाओ अट्ठ तुज्झ गुणवल्लहाओ भज्जाओ ६. आणिइल्लियाओ (ख); आणियल्लियायो उत्तमानो णिच्चं भावाणुरत्तसव्वंगसुंदरीओ (व)। ७. वाचनान्तरे मेघकुमारभार्यावर्णकमेवमुप- ८. तओ पच्छा (क, घ); पच्छा तु (ख)। लभ्यते ६. सं०पा०-समणस्स जाव पब्वइस्स सि । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माया महाऔ १०६. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी - तहेव णं तं ग्रम्मयाओ ! जं णं तुभे ममं एवं वयह' - "इमाओ ते जाया ! सरिसिया' 'सरित्तयात्र सरिव्वया सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण- गुणोववेयाग्रो सरिसेहिंतो रायकुलेहिंतो प्राणिल्लिया भारिया । तं भुंजाहि णं जाया ! एयाहि सद्धि बिउले माणुस कामभोगे । पच्छा भुक्तभोगे समणस्स भगवओो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवत्ता गारा अणगारियं पव्वइस्ससि । " एवं खलु अम्मयाश्रो ! माणुस्सगा कामभोगा असुई' वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कावा सोणियासवा 'दुरुय - उस्सास ' ' - नीसासा दुरुय - मुत्त-पुरीस-पूयबहुपडिपुण्णा उच्चार पासवण -खेल' - सिंघाणग-वंत-पित्त सुक्क सोणिय संभवा धुवा श्रणितिया प्रसासया सडण पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा | से के णं जाणइ अम्मयाओं ! के पुत्रि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुभेहिं ग्रम्भणुष्णाए समाणे समणस्स भगवओो महावीर अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारा अणगारियं पव्वइत्तइ || ११०. तए णं तं मेहं कुमारं सम्मापियरो एवं वयासी - इमे य' ते जाया ! अज्जयपज्जय-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणि- मोत्तिय"संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार" - सावएज्जे यालाहि जाव ग्रसत्तमाश्रो कुलवंसाओ पगामं दाउ पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं प्रणहोही " ताव" जाया । विपुलं माणुस्सगं इढिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा प्रणुभूय कल्लाणे ४५ १. वयहा ( ग ) । २. सं० पा० सरिसियाओ पत्रइन्ससि । तथा ३. सुइ (ख, घ); असुती (ग), तो सर्वास्वपि प्रतिषु 'असासया' इति पाठो विद्यते किन्तु वृत्तौ नास्ति स व्याख्यातः प्रस्तुतपाठक्रम एवं 'अणितिया असासया' इति पाठो विद्यते, तेन नासावत्र गृहीतः । ४. दुरुस्सास (क, ख, ग, घ ) एतत् पदमत्र वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । अष्टमाध्ययनस्य १८० सूत्रस्य वृत्तौ व्याख्यातमस्ति यथा - दुरूपौ विरूपौ उच्छ्वासनिःश्वासो यस्य ( वृ) | तदाधारेणासौ पाठः स्वीकृतः । जाव समयस्स ५. मुखसुबोच्चारणार्थं 'दुरुव' शब्दस्य 'दुरुय' मिति रूपं कृतं संभाव्यते, अथवा दुरूपार्थवाची देशीशब्दोसौ स्यात् ? वृत्तौ 'दुरुय' शब्दस्य 'दुरुप' इत्यर्थोस्ति कृतः । ६. खेल जल्ल (घ ) | ७. अणियता ( ग ) | ८. सं० पा० - अम्मयाओ जाव पव्वइत्तए । ६. त ( क, ख, ग ) ! १०. मोतिए य ( ख ) | ११. तंतसार (घ ) । १२. अणुहोहि ति (ख, घ); अणुहोहि ( ग ) १३. ताव जाव ( ख ) । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (उक्खित्तणाए) समणस्स भगवनो महावीरस्स' अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं' पव्व इस्ससि ॥ १११. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियर' एवं बयासी- तहेव णं तं अम्मयानो ! जंण तुब्भे ममं एवं वयह-"इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग'-'पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवणे य कसे य दूसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणसंतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमानो कुलवंसाओ पगाम दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा अणुभूयकल्लाणे समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं° पव्व इस्ससि ।' एवं खल अम्मयाग्रो ! हिरणे य जाव सावएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अरिंगसामण्णे 'चोरसामण्णे रायसामण्णे दाइयसामण्णे ° मच्चसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयानो ! के 'पुवि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि ण 'अम्मयानो ! तुब्भेहि अब्भणण्णाए समाणे समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अण गारियं पव्वइत्तए । ११२. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं वहूहि विसयाणुलोमाहि पाधवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य ग्राधवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्ण वित्तए वा विण्ण वित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहि पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं वयासीएस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव एगंतधाराए", लोहमया इव जवा चावेयव्वा. वालयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए. महासमुद्दो इव भुयाहि दुत्तरे, तिक्खं कमियन्वं", गरुअंलंबेयव्वं, असिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए वा १. सं० पा०-महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि । ७. सं० पा०-तं इच्छामि णं जाव पव्वइत्तए। २. अम्मापियरो (क, ख, ग, घ)। ८. एगंतदिट्ठीए (घ)। ३. सं० पा०-पज्जग जाव तओ पच्छा अणु- ६. एगधाराए (); एगंतधाराए (वृपा)। भूयकल्लाणे पव्वइस्ससि । १०. चकमियत्व (क)। ४. दाविय° (क)। ११. असिधारावयं (क, ग, घ)। ५. सं० पा० ----अग्गिसामपणे जाव मच्चुसामण्णे। १२. नो य (ख, घ)। ६. सं० पा०-के जाव गमणाए। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाऔ उद्देसिए वा कीयगडे वा ठविए वा रइए वा दुविभक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वद्दलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा वीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा। तुमं च णं जाया! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए', नालं सीयं नालं उण्हं नालं खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए, बावीसं परीसहोवसरये उदिण्णे सम्म अहियासित्तए। भुजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे ! तनो पच्छा भुत्तभोगी समणस्स •भगवनो महावीरस्स अंतिए मंडे भवित्ता अगारापो अणगारियं० पव्वइ स्ससि ॥ ११३. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिओह एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरं एवं वयासी तहेव णं तं अम्मयानो ! जं णं तुभे ममं एवं वयह—“एस णं जाया ! निग्गथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मृत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगतदिट्टिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहिं दत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुनं लंबेयव्वं, असिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पद जाया ! समगाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा कीयगडे वा ठविए वा रइए वा भिक्खभत्ते वा कतारभत्ते वा वद्दलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते या मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा वीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा ।। तूमं च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव ण दहसमुचिए, नालं सीयं नालं उण्हं नाल खहं नालं पिवास नालं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए वावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्म अहियासित्तए । भजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे। तो पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ° पव्वइस्ससि।" एवं खलु अम्मयानो ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगनिप्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स, नो चेव णं धीरस्स। निच्छियववसियस्स एत्थ कि दुक्करं करणयाए ? । १. ° समुच्चिए (क, ग)। ६. स० पा.-अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव २. ° समुच्चिए (घ)। तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ ३. सन्निवाइय (ख, ग, घ)। जाव पव्वइस्ससि। ४. सं० पा०-समणस्स जाव पवइस्ससि । ७. वीरस्स (ख, ग)। ५. अम्मताओ (ख, ग)। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयण (उक्खित्तणाए) तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहि अन्भणुग्णाए समाणे समणस्स भगवयो' 'महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइत्तए । मेहस्स एगदिवस रज्ज-पदं ११४. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहुहिं विसयाणलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य प्राघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य ाघवित्तए वा पाणवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामकाइं चेव मेहं कुमार एवं वयासी-इच्छामो ताव जाया ! एगदिवसमवि ते रायसिरिं पासित्तए॥ ११५. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ।। ११६. तए णं से सेणिार राया कोडवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं तयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह ।। ११७. तए णं ते कोडवियपुरिसा' मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं ° उवट्ठति ॥ ११८. तए णं से सेणिए राया बहूहिं गणनायगेहि य जाव' संधिवालेहि य सद्धि संपरिवुडे मेहं कुमारं अट्ठसएणं सोवणियाणं कलसाणं एवं-रुप्पमयाणं कलसाणं मणिमयाणं कलसाणं सुवण्णरुप्पमयाणं कलसाणं, सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं रुप्पमणिमयाण कलसाणं सुवण्णमप्पमणिमयाणं कलसाणं, भोमेज्जाणं कलसाणं सब्बोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सबपुप्फेहिं सव्वगंधेहिं सव्वमल्लेहि सम्बोसहीहि सिद्धत्थएहि य सविड्ढोए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं जाव दंदुभिनिग्घोस-णाइयरवेणं महया-मया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिचित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं क्यासी'जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा ! भदं ते" अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि", जियमझे वसाहि, [अजियं जिणाहि सत्तुपक्खं, जियं च पालेहि मित्तपक्खं", ] '' "इंदो इव देवाणं १. सं० पा०-~भगवओ जाव पव्वइत्तए ! ७. ना० १०१।३३।। २. ° मणुयत्तमाणे (क)। ८. सं० पा०-करयल जाव कटू । ३. उवट्ठावेह (ख)। ६. जय-जय गंदा ! जय-जय भद्दा ! भदंते, ४. सं० पा०-कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि (प्रो० सू०६८) । तहेव। १०. पालेहिं (क)। ५. ना० १११२४। ११. सं० पा.-मित्तपक्खं जाव भरहो । ६. सम्वोसहिं (क, ख); सम्वोसहि (ग, घ)। १२. कोष्ठकवर्तिवाक्यद्वयं सर्वापु प्रतिषु लभ्यते, Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं रायगिहस्स नगरस्स अन्नेसि च बहूणं गामागर-नगर'. खेड-कब्बड-दोणमुहमडंव-पट्टण-पासम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्टगीय-वाइय - तंती-तल - ताल-तुडिय - धण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहाहि त्ति कटु जय-जय-सदं पउंजंति ।। ११९. तए णं से मेहे राया जाए ---महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव' रज्ज पसासेमाणे विहरइ ।। १२०. तए णं तस्स मेहस्स रण्णो [तं मेहं रायं ? ] अम्मापियरो एवं वयासी-भण जाया ! किं दलयामो ? किं पयच्छामो ? किं वा ते हियइच्छिए सामत्थे ? मेहस्स निक्खमणपाप्रोग्ग-उवगरण-पदं १२१. तए णं से मेहे राया अम्मापियरो एवं वयासी-~-इच्छामि णं अम्मयायो ! कुत्तियावणाम्रो रयहरणं पडिग्गह' च प्राणियं, कासवयं च सदावियं ।। १२२. तए णं से सेणिए राया कोडं वियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी.. गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सिरिघरानो तिण्णि सयसहस्साई गहाय दोहिं सयसहस्सेहिं कुत्तियावणानो रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेह ।। १२३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्टा सिरि घरानो तिण्णि सयसहस्साइं गहाय कुत्तियावणाम्रो दोहि सयसहस्सेहिं रयहरणं पडिग्गहं च उवणेति, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेंति ।। कासवेणं मेहस्स प्रग्गकेसकप्पण-पदं १२४. तए णं से कासवए तेहि कोडुवियपुरिसेहिं सद्दाविए समाणे हद्वतद्ध-चित्तमाणदिए जावं हरिसवसविसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल तथापि पुनरुक्तं व्याख्यारूपं प्रतीयते। ६. पडिग्गहणं (ख)। बतावपि नैतद व्याम्बातमस्ति । 'ओवाइय' ७. सद्दाविउं (क); सहावेउं(ख, ग); सहावित्तए (६८) सूत्रे पि नैतल्लभ्यते। तेन नास्माभि- (घ); वृत्ती --'शब्दितं--पाकारितम्' इति मूलपाठरूपेण स्वीकृतः । व्याख्यातं विद्यते । 'आनीतमिच्छामि' तथैव १. सं० पा०-नगर जाव सणिवेसाणं आहे. 'शब्दितमिच्छामि' इति उपयुक्तोस्ति सम्बन्धः, __वच्चं जाव विहाहि । तस्मात् 'सद्दावियं' इति वृत्त्यनुसारी पाठः २. ओ० सू० १४॥ स्वीकृतः । ३. दलामो (क)। ८. पडिग्गहगं (ख)। ४. हिययइच्छिाए (क); हियपयच्छिए (ख)। ६. ना० १।१।१६ । ५. कुमारे (क, ख, ग)। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे जेणेव से णिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जं मए करणिज्जं ॥ १२५. तए णं से सेणिए राया कासवयं एवं वयासो --- गच्छाहि णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सुरभिणा गंधोदएणं निक्के हत्थपाए पखालेहि, सेयाए चउ फलाए पोत्तीए मुहं बंधित्ता मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पेहि ।। १२६. तए णं से कासवए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियए' 'करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं° पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं [ निक्के ?] हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खालेत्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बंधइ, बंधित्ता परेणं जत्तेणं मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमण पाउग्गे अग्गकेसे कप्पेति ॥ १२७. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया महरिहेणं हंसलक्खणणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खाले इ, पक्खालेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चायो दलयइ, दलइत्ता सेयाए पोत्तीए बंधइ, वंधित्ता रयणसमुग्गयंसि पक्खिवह, मंजूसाए पक्खिवइ, हार-वारिधार'-सिंदुवारछिन्नमुत्तावलि-प्पगासाई अंसूइं विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी, रोयमाणीरोयमाणी, कंदमाणी-कंदमाणी, विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयासी-एस णं अम्हं मेहस्स कुमारस्स अब्भुदएसु य उस्सवेसु य पसवेसु य तिहीसु य छणेसु य जन्नेसु य पव्वणीसु य-अपच्छिमे दरिसणे भविस्सइ त्ति कटु उस्सीसामूले ठवेइ ।। मेहस्स अलंकरण-पदं १२८. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो उत्तरावक्कमणं सोहासणं रयाति, मेहं कुमारं दोच्चं पि तच्च पि सेयापीएहिं' कलसेहि पहावेति, गहावेत्ता पम्हलसूमालाए गंधकासाइयाए गायाइं लूहेंति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं १. विभक्तिरहितं पदम् । ६. वारिधारा (ग)। २. निक्के ति सर्वथा विगतमलान (व) । ७. सेयाणोएहिं (ग, घ); अत्र लिकिरणे ३. चउप्फालाए (क्व०) अट्ठपडलाए (भ० 'पकारों' णकाररूपेण परिवर्तितोभूत् अथवा ६१८६)। 'सेकानीतैः' इत्यर्थस्य परिकल्पनायां 'सेयाणी४. ना० १११६। एहि' इत्यपि पाठः शुद्धस्यात् । ५. सं० पा०—हियए जाव पडिसुरोइ। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ नाया कहाओ 0 गाया अणुलपति प्रणुलिपित्ता नासा - नीसासवाय वोज्भं' वरणगरपट्टणुग्गयं कुसल रपसंसितं अस्सलाला पेलवं छेयायरियकणगखचियंतकम्मं हंसलक्खणं पडसाडगं नियंसेति, हारं पिणद्धेति, अद्धहारं पिद्धति, एवं-- एगावलि मुत्तावलि कणगावलि रयणावलि पालवं पायपलंबं कडगाई' तुडिगाई' केऊरा गयाई दसमुद्दियाणंतयं कडिसुत्तयं कुंडलाई चूडामणि रयणक्कडं मउडं - पिणद्धति, पिणद्धेत्ता' गंथिम-वेढिम- पूरिम- संघाइमेणं' - चउब्विणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव प्रलंकिय-विभूसियं करेंति ॥ मेहस्स श्रभिनिक्खमणमहुस्सव - पदं १२६. तए णं से सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सहावेs, सहावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुपिया ! श्रगखं भसय-सणिवितुं लीलट्ठिय- सालभंजियागं ईहामिय उसभ-तुरय-नर-मगर विहग वालग किन्नर - रुरु- सरभ- चमर-कुंजरवणलय - पउमलय-भत्तिचित्तं घंटावलि - महुर भणहरसरं सुभ-कंत-दरिसणिज्जं निउणोविय - मिसिमित मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं प्रभुग्गय - वइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमल जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिमाणं' भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेस्सं सुहफासं सस्सिरीयरूवं सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवद्ववेह || १३०. तर णं ते कोडुंबियपुरिसा हट्टतुट्ठा अणेगखंभसय-सणिविट्ठे जाव' सीयं वेति ॥ १३१. तए णं से मेहे कुमारे सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सणसणे ॥ १३२. तए गं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया व्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्घा - १. सं० पा० - नासानीसासवायवोज्यं जाब हंसलववरण | २. एतत् पदं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । ३. x ( ख, ग ) 1 ४. पिणद्धेत्ता दिव्वं सुमगदामं पिणद्धति, दद्दल सुगंध गंधे विद्धेति । तए णं तं मेहं कुमारं (क, ख, ग ); 'घ' प्रति विहाय सर्वासु प्रतिषु पाठान्तररूपेणोद्धृतः पाठो लभ्यते । 'घ' प्रतौ एवं पाठोस्ति- 'दिव्वं सुमरणदामं पिद्धेति । तते णं तं मेहं कुमारं गंथिम ० | किन्तु भगवत्यां (हा२३) आचारचूलायां (१५१२८) च असौ पाठः अतीव व्यवस्थितरूपेण प्राप्तोस्ति, अत: तयोराधारेण अत्रापि पाठः स्वीकृतः । अनेन प्रस्तुतसूत्रे जातस्य पाठमिश्रणस्य परिहार: सहजमेव जातः । संजोइमेणं ( ख ) । ५. ६. ७. मिसमी ( ख, ग ) | ८. ना० १११।२६ । ६. ना० ११ १११।२७ । ० मालिणीयं ( क, ख, ग ) । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्वित्तणाए) ४६ भरणालंकियसरीरा सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स दाहिणपासे भद्दा सणंसि निसीयइ ।। १३३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अंबधाई रयहरणं च पडिग्गहं च गहाय सीयं दुरुहइ, दुरुहिता मेहस्स कुमारस्स वामपासे भद्दासणंसि निसीयइ ।।। १३४. ताणं तस्स मेहस्स कमारस्स पियो गा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलास - संलावुल्लाव - नि उणजुत्तोवयारकसला पामेलगजमलजुयल-बट्टिय-अभुषणय-पीण-रइय-संठिय-पोहा हिम-रययकंदेंदुपगासं सकोरेंटमल्लदामं धवलं प्रायवत्तं गहाय सलीलं अोहारेमाणी पोहारेमाणी चिट्ठइ ।। १३५. तए णं तस्स मेहस्स कमारस्स दुवे वरतरुणीअो सिंगारागारचारुवेसायो संगय गय-हसिय-भणिय-वेदिय-विलास-संलाबुल्लाव-निउणजुत्तोवयार कुसलायो सीयं दुरुहंति, दुहिता मेहस्स कुमारस्स उभयो पास' नाणामणि-कणग-रयणामहरिहतवणिज्जज्जल-विचित्तदंडायो चिल्लियानो मुहुमबरदीहवालानो संखकंद-दगरय-अमयमहियफेणपुंज-सणिगासायो चामरायो गहाय सलोलं अोहारेमाणीग्रो-योहारेमाणीगो चिटुंति ।। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारा - गारचारुवेसा संगयगय-हमिय-भणिय-चेट्ठिय-विलास-संलावुल्लाव-निउणजुत्तोवयार ° कुसला सीयं दुरुहइ. दूरुहिता मेहस्स कमारस्स पुरनो पुरथिमे णं चंदप्पभवइर-वेरुलिय विमलदंडं तालियंट गहाय चिदइ ।। १३७. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी' सिंगारागारचारुवेसा संगय गय-हसिय-भणिय-चेद्विय-विलास-संलाबुल्लाव-निउणजुत्तोवयार कुसला सीयं दुरुहइ, दुहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुव्वदक्खिणे णं सेयं रययामयं विमलसलिल पुण्णं मत्तगयमहामुहाकितिसमाणं भिगारं गहाय चिदुइ १३८. तए णं तस्स मेहरस कुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! सरिसयाणं सरित्तयाण सरिन्बयाणं एगाभरण-गहिय-निज्जोयाणं कोडुवियवरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेह ।। १. भासणम्मि (ख); भद्दासणे (ग) { २. सं.पा.--सिंगारागारचारुवेसाओ जाव कुस लाओ। ३. पासिं (ख)। ४. स. पा.-सिंगारा जाव कुसला । ५. सं० पा० --वरतरुणी जाव सुरुवा (क, ख, ग, घ) अत्र सूत्रक्रमेण 'जाव कुसला' इति युज्यते, कमिदं परिवर्तनं जातनिति ज्ञातुं न शक्यते । १. दविखणे (ग)। ७. सं० पा०-सद्दावेह जाव सदाति । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू० नायाधम्मकहाओ १३६. 'तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं एगाभरण गहिय-निज्जोयाणं कोडुवियवरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेति ।। १४०. तए णं ते कोडं वियवरतरुणपुरिसा सेणियस्स र ण्णो कोवियपुरिसेहि सहाविया समाणा हट्ठा बहाया जाव' [सवालंकारविभूसिया ?"] एगाभरण-गहियणिज्जोया जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी--संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जंणं अम्हेहि करणिज्जं ।। १४१. तए णं से सेणिए राया तं कोडुवियवरतरुणसहस्सं एवं वयासो-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं' सीयं परिवहेह ।। १४२. तए णं तं कोडंपियवरतरुणसहस्सं सेणिएण रण्णा एवं वुत्तं संतं हटुं मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं परिवहइ ।। १४३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूटस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलया तप्पढमयाए पुरनो अहाणुपुवीए' संपत्थिया, तं जहा- - सोवस्थिय - सिरिवच्छ-नंदियावत्त - वद्धमाणग-भद्दासण - कलस-मच्छ-दप्पणया जाव" १. ना० १.१८१॥ २. अत्र जाव शब्दस्पानिमो पाठो नास्ति सूचितः, किन्तु प्रसंगानुसारेण पूर्तिकृत एव पाठो युज्यते । ३. ° वाहिणी (ग, घ)। ४. वाहिणी (ख); वाहिणी (ग)। ५. आणुपुवीए (घ)। ६. सोस्थिय (ग)। ७. (१) तयाणंतरं च ण पुण्णकल साभगार दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा दंसण-रड्यआलोयदरिसणिज्जा वाउद्ध यविजयवे जयंती य असिया गगणतलमणुलिहती पुरो अहाणुपुबीए संपट्टिया। (२) तयाणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलबकोरेंट मल्लदामोवसोहियं चंदमडलनिभं विमल आयवत्तं पवरं सोहासणं च मणिरयणपायवोढं सपाउयाजुयसमाउत्तं बहुकिंकरकम्मकर-पूरिस-पायत्त-परिक्खित पूरओ अहाणुपुल्वीए संपट्टियं । (३) तयाणंतरं च ण बहवे लट्टिम्गाहा कुंत. गाहा चावगाहा चामरगाहा, पोत्थयग्गाहा फलन्गाहा पीढयम्गाहा वीणग्गाहा कूवगाहा हडप्परगाहा पुरओ अहाणपृथ्वीए संपट्टिया। (४) तयाणंतर च णं बहवे दंडिगो मंडियो छिहंडिगो पिच्छिणो हासका डमरकरा चाडकरा कीडंताय वायंता य गायंता य नच्चता य हसंता य सोहंता य साविता य रक्वंता य पालोयं च करेमाणा जयसई च पउंजमाणा पुरओ अहाणपुबीए संपदिया। (५) तयाणंतर च ण जच्चाण तरमस्लिहाय. णाणं थासग-अहिलाण-चामर-गड़-परिमंडियकडीण किंकरवरतरुणपरिगहियाणं अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरनो अहाणपुब्बीए संपट्रियं । (६) तयागंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्ताणं ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंगविसाल-धवलदताण कंचणकोसी-पक्ट्रिदंताणं कंचण-मणिरयणभूसियाण वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं अट्ठ सय Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहम अज्झरणं (उत्रिखतगाए) ५१ बहवे अत्यत्थिया' कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्टाहि कंताहिं पियाहिं मणुग्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहि हिययगमणिज्जाहि वग्गूहि जयविजयमंगलसएहिं ० अणवरयं अभिनंदंता य अभिथुणता य एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा ! भदं ते। अजियं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्म, जियविग्धो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमझे, निहणाहि रागदोसमल्ले तवेण धिइ-धणियबद्धकच्छो, मद्दाहि य अट्ठकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो, पावय वितिमिरमणुतरं केवलं नाणं, गच्छ य मोक्खं परम पयं गयारणं पुरो अहाशुपुबीए संपट्टियं । णागधरा (नागवरा-वृपा) पिटुओ रह(७) तयाणतरं च णं सच्छनाणं सज्झयाणं संवेल्लि (रहसंगल्लि-वृया)। सघंटाणं सपागाणं सतोरण वराणं सणंदि- (११) तए णं से मेहे कुमारे अदभुग्गभिंगारे घोसाणं सखिखिणी-जाल-परिवियत्ताण परगयितालियंटे ऊस वियसेयछते पवीजियहेमवय-चित्त-तिणिस-कणग-णिज्जत्त-दारुयाणं नालबीयणीए सविड्ढीए सव्वजत्तीए सब्वकालायस-सुकपणेमि-जंतकम्माणं मुसिलिट्ठ- बलेणं सव्वसमुदएणं सब्बादरेणं सव्व विभूईए वत्तमंडल-धुराणं आइण्णवरतुरगसुसं- सम्वविभूसाए सम्बसंभमेणं सबवपुप्फगंधपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहि सुसंगहियाणं मल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सद्द-सणिणाएणं बत्तीसतोण-परिमंडियाणं सकंकड़ वडेंसगाणं महया इड्डीए मह्या जुईए महया बलेणं सचावसर-नहरणावरणभरिय - जुद्धसज्जाणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमगअट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणु पुब्बीए संपट्ठियं । प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-मल्लरि (८) तयाणंतरं च गं असि-सत्ति-कृत-तोमर- खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहि - णि ग्धोससूल-लउल-भिडिमाल-धण-गाणिसज्ज पायत्ता- पाइयरवेणं रायगिहस्स नगरस्स णीयं पुरओ अहाणपुयीए संपट्रियं । मज्झमझेणं निग्गच्छद। (E) तए णं से मेहे कुमारे हारोत्यय-सूकय- (१२) तए ण तस्स मेहकुमारस्स रायगिहास रइय-वच्छे कुंडलुज्जोइयाणणे मउदित्त- नगरस्स मज्झमझेणं णिगच्छमाणस्स सिरए अन्भहियं रायतेयलच्छीए दिपमाणे बहवे अत्यत्थिया कामस्थिया भोगस्थिया...। सकोरेंटमल्लदामेण छत्तेणं धरिज्जमाण उपरिलिखितः पाठो वृत्तेः समुद्घतोस्ति । सेयवरचामराहिं उबमाणीहि-उद्धव्यमा- औपपातिकस्य ६४-६८ सूत्रेणु असौ पाठः णीहि हयगयपवरवरजोहकलियाए चाउरंगि- किञ्चिच्छब्दभेदेन सहोपलभ्यते । णीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव १. सं० पा०---अस्थत्थिया जाव ताहि इट्ठाहि गणसिलए चेइए, तेणेव पहारेत्थ गमणाए। जाव प्रणवरयं । (१०) तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरओ २. वलिक (ग, वृपा); एकस्यां वृत्तिप्रती महं आसा आसरा उभओ पासि णागा पलिक' इत्यपि लभ्यते । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ सासयं च अयलं, 'हंता परीसहचणं", अभीओ परीसहोवसगाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कटु पुणो-पुणो मंगल-जयसई पउंजति ॥ १४४. तए णं से मेहे कुमारे रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेगं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाहि णीग्रो सोयायो पच्चोरुहइ ।। सिस्सभिक्ख दाण-पदं १४५. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरयो कटु जेनामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वासी एस णं देवाणुप्पिया ! मेहे कुमारे अम्हं एगे पुत्ते इट्टे कते "पिए मणुण्णे मणाये थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे 'रयणे रयणभूए° जीवियऊसासए हिययणंदिजणए उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए? से जहानामए उप्पल ति वा प.उमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवडिढए नोवलिप्पइ पंकणणं नोवलिप्पइ जल गाण, एवामेव मेहे कुमारे का मेसु जाए भोगेसु संवड्ढिए नोवलिप्पइ कामराणं नोवलिप्पइ भोगाणं । एस णं देवाणु प्पिया ! संसारभउब्बिग्गे भीए जम्मण'-जर-मरणाणं, इच्छइ देवाणप्पियाणं अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्व इत्तए । अम्हे णं देवाण प्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सभिक्खं ॥ १४६. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊहि एवं वत्ते समाणे एयमटुं सम्म पडिसुणेइ ।। १४७. तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावो रस्स अंतियानो' उत्तरपुत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, सयमेव ग्राभरण-मल्लालंकारं प्रो मुयइ ।। १४८. तार णं तम्य मेहस्स कुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं प्राभरण मल्लालंकारं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तालिपगासाई अंसूणि विणिम्मुयमाणी-विणि मुबमाणी रोयमाणी-रोयमाणी कंदमाणी-कंदमाणी विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयासी--जइयव्वं जाया ! १. हत्वा परीसह-चमू-- परीषहसैन्यम् । ४. संवुड्ढे (ख, ग)। णमित्यलंकारे अथवा कथभूतः त्वम्, इंता..- ५. जम्म (ख, ग)। बिनाशक: परीषह-चमूनाम् (वृ)। ६. सीसक्ख (क)। २. पच्चोरुभइ (ख, ग)। ७. X (क, ग, घ)। ३. सं० पा० ... कते जाव जीवियऊसासए। ८. पडग (ख)। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय ( उक्खिसणाए) ५३ घडियव्वं जाया ! परक्कमियव्वं जाया ! अस्सि चणं ग्रट्टे तो समाएयन्वं । म्हंपिणं एसेव मग्गे भवउ ति कट्टु मेहस्स कुमारस्स सम्मापियरो समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया || मेहस्स पव्वज्जागण-पदं १४९. तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेला जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छङ, उवागच्छित्ता समयं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण -पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी प्रालिते णं भने ! लोए, पलिते गं भंते ! लोए, बालित्त पलित्ते णं भंते! लोए जराए मरणेण य । से जहानामए केइ गाहावई अगारसि कियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ भारे' मोल्लगरुए तं महाय श्रयाए एगंत अवक्कमइ एस मे नित्थारिए समाणे 'पच्छा पुरा य' लोए हियाए सुहाए खमाए निस्साए श्रणुगामियत्ताए भविस्स । एवमेव मम वि एगे श्रयाभंडे इसे कंते पिए मगुण्णे मणामे । एस में नित्थारिए समाणे संसारवोच्छेयकरे भविस्सइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिए हिं सयमेव पञ्चावियं सयमेव मुंडावियं सयमेव महावियं सयमेव सिवखावियं सयमेव आयार-गोयर-विण्य-वेणइय चरण-करण-जायामायावत्तिय धम्ममाइक्खियं ॥ १५०. तणं समणे भगवं महावीरं मेहं कुमारं सयमेव पव्वावेइ सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खावेइ सयमेव आयार-गोयर - विणय- वेणइय चरणकरण-जायामायावत्तियं धम्मम इक्खइ – एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुजियव्वं, एवं भासियव्वं, एवं उट्ठाए उट्ठाय पाणेहि भूएहिं जीवेहिं सत्तेहि संजमेणं संजभियव्वं, प्रस्सि चणं अट्ठे नो पमाएयव्वं ॥ १५१. तए ण से मे हे कुमारे समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएस सम्मं पडिवज्जइ- तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ', 'तह निसीयइ तह तुट्टइ, तह भुजइ, तह भासइ, तह° उठाए उट्ठाय पाणेहि भुएहि जीवेहि सत्तेहि संजमेणं संजमइ ॥ १. अप्पसार (वृपा) । २. पच्छाउरस (वृपा) ३. खेमाए ( क्व० ) । ४. ० उत्तियं ( क, ख, ग, घ ) 1 ० ५. सं० पा० सयमेव धम्ममा इक्खइ । ६. ० उट्टाए ( ग ) ; उत्थाय उत्थाय (वृ ) | ७. सं० पा० - चिट्ठइ जाव उट्टाए । ८. उट्ठाए ( क ) 1 आयार जाव Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ मेहस्स मणो-संकिलेस-पदं १५२. जद्दिवसं' च णं मेहे कुमारें मुंडे भवित्ता श्रगाराम्रो ग्रगारियं पव्वइए, तस्स गं दिवसस्स पच्चावरण्हकाल समयसि समणाणं निग्गंथाण ग्रहाराइणियाए सेज्जा- संथारसु विभज्ज माणेसु मेहकुमारस्स दारमूले' सेज्जा- संथारए जाए यावि होत्था || १५३. तए णं समणा निग्गंथा पुण्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्ट जाए, धम्माणजोगचिताए य उच्चारस्स वा' पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निगच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहि संघट्टेति ग्रप्पेगइया पाएहिं संघट्टेति अप्पेगइया सीसे संघट्टेति प्रगइया पोट्टे संघट्टेति अप्पेगइया कार्यसि संघट्टेति अप्पेगइया ओलंडति प्रगइया पोलंडति श्रगइया पायरय-रेणुगुंडियं करेति । एमहालियं च स्यणि" मेहे कुमारे नो संचाएइ खणमवि श्रच्छि" निमीलित्तए । ० १५४. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्य प्रयमेयारूवे प्रज्झथिए" चितिए पत्थिए मणोगए कप्पे • समुप्पज्जित्था - एवं खलु ग्रहं सेणियस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए मेहे" इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंङगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासए हियय-मंदि-जणणे उंबर- पुष्कं व दुल्ल हे " सवणयाए" । तं जया णं श्रहं अगारमभावसामि " तया णं मम समणा निग्गंथा ग्राढायंति परियाणंति सक्कारेति सम्मार्णेति, अट्ठाई हेऊई परिणाई कारणाई वागरणाई' ग्राइक्संति, इट्ठाहिं कंताहि वग्गृहि बालवेति संवेति । जप्पभिदं च णं अहं मुंडे भवित्ता प्रगाराश्रो अणगारियं पव्वइए, तप्पभिच णं ममं समणा निग्गंथा नो श्राढायति तो परियाणंति नो सक्कारति नो सम्माति नो ग्रट्टाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई ग्राइक्खति, १. जं दिवस (घ) 1 २. अणगारे (क ) । ३. पुव्वा० (क, ग, घ ) 1 ४. आहारातिणियाए (ख. ग ) । ५. मेहस्स अणगारस्स ( क ) सर्वत्र । ६. वारमुले ( क, ख ) । ७,८. य (क, ख, ग, घ ) १८६ सूत्रस्य आधारेण अत्र 'वा' इति पाठो गृहीतः । पा० – एवं पाए हिं कार्यसि । ६. सं० सीसे पोट्टे नायाधम्मक हाओ १०. एवंमहा (क, घ); एयमहा° (ग) 1 ११. रयणी (क, घ ) । १२. अच्छी ( ख ) | १३. सं० पा० -- प्रज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । १४. सं० पा० - मेहे जाव सवणयाए । १५. समणयाए (क, ख, ग ) । १६. ० मज्भवसामि ( क ); • मज्झेवसामि (ग); अगारमज्भे यावसामि (वृपा ) । १७. परिजानंति ( ग ) । १८. वाकरणाई (क, ख, ग ) 1 १६. सं० पा० - आढायंति जाव सलवेति । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (उक्खिसणाए) नो इट्टाहि कनाहिं बरहिं पालवेति ° संलवेति । अदुत्तरं च णं ममं समणा निग्गथा राम्रो पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए' परियट्टणाए धम्माणजोगचिताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया हत्थेहि संघट्टति अप्पेगइया पाएहि संघट्टेति अप्पेगइया सीसे संघति अप्पेगइया पोट्टे संघट्टति अप्पेगइया कायंसि संघट्टति अप्पेगइया अोलंडेंति अप्पेगइया पोलंडति अप्पेगइया पाय-रय-रेणु-गुडियं करेंति ° 1 एमहालियं च णं रत्ति अहं नो संचाएमि अच्छि निमिल्लावेत्तए' [निमीलित्तए ? | त सेयं खलु मज्झ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमज्भावसित्तए' त्ति कट्ठ एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट-माणसगए निरयपडिरूवियं च णं तं रयणि खवेइ, खवेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए सुविमलाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सुरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव' पज्जुवासइ ।। मेहस्त संबोध-पदं १५५. तए णं मेहा! इसमणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं वयासी–से नणं तुम महा! राम्रो पुबरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निगंथेहिं बायणाए पुच्छणाए। परियट्टणाए धम्माणुजोगचिताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निम्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहि हत्थेहि संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहि संघट्टिए अप्पेगइएहि सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहि पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहि कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहि ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहि पायरय-रेणु-गुडिए कए। एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहत्तमवि अच्छिं निमिल्लावेत्तए । तए णं तुझ मेहा ! इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था-जया णं अहं अगारमज्झावसामि तया णं ममं १. सं० पा०-पुच्छणाए जाव एमहालिय। ७. ना० १११२४ । २. १५३ सूत्रे निमिलित्तए' इति पाठोस्ति। ८. तेणामेव (ग)। अत्र तनल्यार्थेऽपि निमिल्लावेत्तए' इति ६. राय० सू० ६० । पाठ: कथं जातः ? १०. तुमे (ग)। ३. ममं (ग)। ११. सं० पा०-पुच्छणाए जाव एमहालिय। ४. ना० ११२४ १२. तुम्भ (क); तुब्भे (ख, घ)। ५. मझे वसित्तए (क)। १३. स० पा०---अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ६. वेदेति (घ)। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ मायाधम्मक हाओ समणा निग्गंथा श्राढायंति' 'परियाणंति सक्कारेंति सम्मार्णेति अट्ठाई हेऊई परिणाई कारणाई बागरणाई ग्राइवखंति, इट्ठाहि कंताहि वग्गूहिं प्रालवेति संलवति । जप्पभिरं चणं मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वयामि तप्पभिरं चणं ममं समणा निग्गंथा नो आढायंति जाव संभवति । यदुत्तरं च णं ममं समणा निग्गंथा राम्रो पुव्वरत्तावरतकालसमयसि अप्पंगइया जाव' पाय - रय- रेणु-गुंडियं करेंति । तं सेयं खलु मम कल्लं पारप्पभायाए रयणीए जात्र उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं प्रापुच्छित्ता पुणरवि श्रगारमज्भे प्रावसित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेसि, संता---माणसगए निरयपडिरूवियं च णं तं रर्याणि खवेसि, खवेत्ता जेणामेव ग्रहं तेणामेव हव्वमागए। से नूणं मेहा ! एस 'ग्रत्थे समत्थे । हंता अत्थे समत्थे ॥ भगवा सुमेरुप्पभ-भव निरूवण-पदं १५६. एवं खलु मेहा ! तुमं इत्र तच्चे अईए भवग्गहणे वेयड्ढगिरिपायमूले वणय रेहिं निव्वत्तियनामधेज्जे सेए संख-उज्जल-विमल-निम्मल-दहिघण-गोखीर- फेणरणियरपयासे सत्तुस्सेहे नवायए दसपरिणाहे सत्तंगपट्ठिए 'सोम - सम्मिए " सुरू' पुरओ उदग्गे समूसियसिरे सुहासणे पिटु वराहे अइयाकुच्छी ग्रच्छिद्दकुच्छी प्रलंबकुच्छी पलंबलंबोदराहरकरे " धणुपट्टा गिति - विसि अल्लीणपमाणजुत्त-वट्टिय-पीवर- गत्तावरे" अल्लीण- पमाणजुत्तपुच्छे पडिपुण्ण- सुचारु - कुम्मचलणे पंडुर" -सुविसुद्ध - निद्ध-निरुवय-विसतिनहे छद्दंते सुमेरुप्पभे नाम हरिराया होत्था || १५७. तत्थ गं तुम मेहा ! वहूहि हत्थीहिय हत्थिणियाहि य लोट्टएहि य लोहियाहि १. सं० पा० आढायति । २. ना० १३१।१५४ । ३. ना० १।१।१५३ । ४. ना० १।१।२४ ५. सं पा०-- अट्टदुहट्टवसट्टमाणस गए जाव रर्याण ६. अट्टे समट्ठे हंता अट्टे समट्ठे {क्वचित् ] । ७. समे सुसंठिए (वृ); सोम - सम्मिए (वृपा ) | ८. वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । ६. अतिया ( ग, घ ) १०. अलंब (वृ); पलंब ० ( वृपा ) । ११. अतो वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशोस्ति ग्रभ्युद्गत मुकुल- मल्लिका-धवलदन्तः, आनामित-चाप ललित- संवेल्लिताग्रशुंडः । उपाशकदशाया - (२२८) मिदं विशेषणद्वयं मूलपाठे विद्यते - अभुग्गय मउल-मल्लिया - विमलधवलदंतं प्राणामिय-चाव-ललिय-संवेल्लि युग्गोडं । १२. पंडर (क, च ) 1 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 अभय (उक्खिसणाए) कल भएहि य कलभियाहि यसद्धि संपरिवुडे हत्थिसहस्सनायए देसए पागट्ठी पटुवए जूहवई वंदपरिवड्ढए', अण्णेसि च वहूणं एकल्लाणं हत्यिकलभाणं ग्राहेवच्च' 'पोरेवच्चं सामित्तं भटित्तं महत्तरगत्तं श्राणा- ईसर- सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरसि || O १५८. तर णं तुमं मेहा ! निच्चप्यमत्ते सई पललिए कंदप्परई मोहणासीले 'अवितण्हे कामभोगतिसिए" बहूहि हत्थोहि य' हत्थिणियाहि य लोट्टएहि य लोट्टियाहि य कलभाए हिय कलभियाहि यसद्धि संपरिवुडे वेयड्ढगिरिपायमूले गिरीसु य दरीसु य कुहरेसु य कंदरासु य उज्भरेसु य निज्झरेसु य वियरएसु' य गड्डासु य पल्लले य चिल्ललेसु य कडगेसु य कडयपल्ललेसु य तडीसु य वियडीसु य टंकेसु य कूडेसु य सिहरेसु य पव्भारेषु य मंचेसु य मासु य काणणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य वणराईसु य नदीसु य नदीकच्छ्रेसु य जहेसु य संगमेसु यवावी य पोवखरणीसु य दीहियासु य गुंजालियासु य सरेसु य सरपंतियासु यसरसरतियासु य वणयरेहि दिन्नवियारे वहूहि हत्थीहि य जाव' सद्धि संपरिवुडे बहुविहृतरुपल्लव-पउरपाणियतणे निभए निरुव्विग्गे सुहंसुहेणं विहसि || १५६. तए णं तुमं मेहा- ग्रण्णया" कयाइ पाउस - वरिसारत्त सरद" - हेमंत वसंतेसु कमेण पंचसु उऊसु समइक्कतेसु गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले मासे पायवसमुट्ठिएणं सुक्कतण-पत्त-कयवर मारुय-संजोगदीविएणं महाभयंकरेण हृयवहेणं वणदव- जाल" - संपलित्तेसु वर्णतेसु धूमाउलासु दिसासु महावाय-वेगेणं संघट्टिए छिण्णजालेसु श्रावयमाणेसु पोल्लरुक्खेसु श्रतो तो भियायमाणेसु मय-कुहिय- विट्ठ-किमिय-कम-नईवियरगभीणपाणीयंतेसु वर्णतेसु भिंगारकदीणकंदिय-रवेसु 'खरफरुस प्रणिट्ट-रिट्ठ-वाहित्त-विदुमग्गेसु" दुमेसु तण्हावसमुक्क पक्ख पायडियाजिन्भतालुय" असंपुडियतुंड पक्खिसंघेसु ससतेसु गिम्हुम्ह" १. परियट्टए ( क ) । २. कल्ला ( ग ) । ३. सं० पा० - आहेवच्चं जाव विहरसि । ४. अतिकामतिमिए (क); अवितरह कामभोगे 1 (22) ५. सं० पा० - हत्थीहि य जाव संपरिवुडे । ६. वियरेसु ( ख, ग, घ ) 1 ७. क्खरिणी ( क ) | ८. ना० १।१।१५७ । ६. पल्लवे ( क ) | ५७ १०. पाणियतले (क, ग, घ ) । ११. अन्नता (ख) | १२. सरय ( ख, ग, घ ) । १३. महाभयकरेण (क, ख, घ) 1 १४. जाला ( ख ) | १५. किमि ( वृ); किमिय (वृपा) । १६. खरफरुस-रि-वाहित- विदुमग्गे ( वृपा ) | १७. पर्याय (घ ) । १८. गिम्हउम्ह (ख); गिम्ह (घ) Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाओ उण्हवाय-खरफरुसचंडमारुय-सुक्कतणपत्तकयवरवाउलि-भमंतदित्तसंभंतसावयाउल-मिगतण्हावद्धचिधपट्टेसु गिरिव रेसु संवट्टइएम' तत्थ-मिय-ससय-सरीसिवेसु' अवदालियवयणविवर-निल्लालियग्गजोहे महंततुंबइय-पुण्णकण्णे संकुचियथोर-पीवर-करे ऊसिय-नंगूले पीणाइय-विरस रडिय-सद्देणं फोडयंतेव अंबरतलं, पायदहरएण कंपयंतेव मेइणितलं. विणिमयमाणे य सीयर", सव्वग्रो समंता वल्लिवियाणाई छिदमाणे, रुक्खसहस्साई तत्थ सुबहूणि नोल्लयते', विणदुरटुव्व नरवरिदे, वायाइद्धेव्व पोए, मंडलवाएव्व परिब्भमते, अभिक्खणं-अभिक्खणं लिंडनियरं पमुचमाणे-पहुंचमाणे वहूहि हत्थीहि य जाव' सद्धि दिसोदिसि विप्पलाइत्था ।। १६०. तत्थ णं तुम मेहा ! जुण्णे जरा-जज्जरिय-देहे पाउरे झझिए पिवासिए दुब्वले किलते नट्ठसुइए मूढदिसाए सयानो जूहाम्रो विप्पहूणे वणदवजालापरद्धे उण्हेण य तण्हाए य छुहाए य परभाहए समाणे भीए तत्थे तसिए उबिग्गे संजायभाए सव्वनो समंता प्राधावमाणे परिधावमाणे एगं च णं महं सरं अप्पोदगं पंकबहुलं अतित्थेणं पाणियपाए अोइण्णे।। तत्थ णं तुम महा ! तीरमइगए पाणियं असंपत्ते अंतरा चेव सेयंसि विसण्णे । तत्थं णं तुम मेहा ! पाणियं पाइस्सामि त्ति कटु हत्थं पसारेसि । से वि य ते हत्थे उदगं न पावइ । तए णं तुमं महा ! पुणरवि कायं पच्चरिस्सामि त्ति कटु वलियतरायं पंकसि खुत्ते ॥ १६१. तए णं तुमं महा ! अण्णया कयाइ एगे चिरनिज्जूढए गयवरजुवाणए सगानो जुहायो कर-चरण-दंत-मुसलप्पहारेहि विप्परद्धे समाणे तं चेव महद्दहं पाणीयपाए समोयरइ। तए ण से कलभए तुमं पासइ, पासित्ता तं पुव्ववेरं सुमरइ, सुमरित्ता आसुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे जेणेव तुम तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं तिक्खेहि दंतमुसलेहि तिक्खुत्तो पिट्ठो ‘उठ्ठ १. संबट्टएसु (ग)। ६. नोल्लवते (ग)। २. पसय (ख, ग, घ, वृ); अनुयोगद्वारवृत्तौ ७. ना० १६१३१५७ । पाठान्तररूपेण 'पसय' शब्दः प्राप्यते -- ८. उझसिए (क, घ); जुजिए (ग); 'झुसियं' पसयस्तु-आटविको द्विखुरः चतुष्पदविशेषः। बुभुक्षितमित्यर्थः (अंतगडवृत्ति ३।८)। प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तावपि इत्थमेव व्याख्यात- ६. विष्पहीणे (क)। मस्ति-प्रसयाश्चाटव्यचतुष्पदविशेषाः। १०. वरद्ध (क); परडे (ख) । ३. सिरीसवेसु (व, ग)। ११. अप्पोययं (ख)। ४. पिणाइय (ख); पेणाइय (ग) । १२. अतित्थण (ख, ग)। ५. सीइरं (क); सीयारं (क्व०)। १३. आसुरुते (क, ख)। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ पठम अज्झयणं (उक्खितणाए) भइ, उट्ठभित्ता" पुष्वं बेरं निज्जाएइ, निज्जाएत्ता हटुतुडे पाणीयं 'पिबइ, पिबित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। १६२. तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउभवित्था-उज्जला विउला कक्खडा' 'पगाढा चंडा दुक्खा' दुरहियासा। पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाह वक्कतीए यावि विहरित्था । भगवया मेरुप्पभ-भवनिरूवण-पदं १६३. तए णं तुम मेहा ! तं उज्जलं विउलं कक्खडं पगाढं चंडं दुक्खं ° दुरहियासं सत्तराइंदियं वेयणं वेदेसि, सवीसं वाससयं परमाउयं पाल इत्ता अट्ट-'दुहट्ट-वस?'' कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे गंगाए महानईए दाहिणे कूले विझगिरिपायमूले एगेणं मत्तवरगंधहत्थिणा एगाए गयवरकरेणूए कुच्छिसि गयकलभाए जणिए ।। १६४. तए णं सा गयकलभिया नवण्ह मासाणं वसंतमासंसि तुमं पयाया। १६५. तए णं तुमं महा ! गम्भवासाम्रो विप्पमुक्के समाणे गयकल भए यावि होत्था रत्तुप्पल-रत्तसूमालए जासुमणारत्तपालियत्तयः-लक्खारस-सरसकुकुमसंझन्भरागवणे, इट्टे निय गस्स जहवाइणो", गणियार"-कणेरु-कोत्थ-हत्थी अणगहत्थिसयसंपरिवडे रम्मेसु गिरिकाणणेस सहमहेणं विहरसि ।। १६६. तए णं तुम मेहा ! उम्मुक्कवालभावे जोवणगमणुप्पत्ते जूहबइणा कालधम्मुणा ___ संजुत्तेणं तं जूहं सयमेव पडिवज्जसि ॥ १६७. तए णं तुम मेहा ! वणयरेहि निव्वत्तियनामधेज्जे" सत्तुस्सेहे नवायए दसपरि णाहे सतंगपइट्टिए सोम-सम्मिए सुरूवे पुरयो उदग्गे समूसियसिरे सुहासणे पिनो वराहे अइयाकुच्छी अच्छिद्दकुच्छो अलवकुच्छो पलवलंबोदराहरकरे धणुपट्टागिति-विसिट्टपुटुं अल्लोण-पमाणजुत्त-बट्टिय-पीवर-गत्तावरे अल्लोण १. उट्ठभइ २ (क)। २. पुव्व (ख, घ)! ३. पियइ २ (क, ख, घ)। ४. तिउला विउला (ख); तिउला (वृपा)। ५. सं० पा०-कक्खडा जाब दुरहियासा । ६. सं० पा०--उज्जलं जाव दुरहियासं । ७. वसट्ट-दुहट्टे (क, ख, ग, वृ)। ८. मासम्मि (क); मासे (ग)। ६. पालियात्तय (क, घ); पारिजत्तय (क्व०)। १०. ० संझराग ° (क)। ११. °बइणा (ग)। १२. गणियायार (घ) । १३. करेणु (घ) । १४. सं० पाo--निव्वत्तियनामधेजे जाव चाउदंते । इह यावत् करणेन यद्यपि समग्रः पूर्वोक्तो हस्तिवर्णकः सूचितस्तथापि श्वेततावों द्रष्टव्यः, इह रक्तस्य तस्य वणितत्वात् । अतएवाग्रे सत्तुस्सेहे इत्यादिकमतिदेशं वक्ष्यति (व)। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्भकहाओ पमाणजुत्तपुच्छे पडिपुण्ण-सुचारु-कुम्मचलणं पंडुर-सुबिसुद्ध-निद्ध-निरुवयविसतिनहे ° चउदंते मेरुप्पभे हत्थिरयणे होत्था । तत्थ णं तुम मेहा ! सत्तसइयस्स जूहस्स आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणाईसर-सेणाबच्चं कारेमाणे पालेमाणे ° अभिरमेत्था ॥ तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले [मासे पायवघंससमूट्रिाणं सुक्कतण-पत्त-कयवर-माख्य-संजोगदीविएणं महाभयंकरेणं हुयवहेण ? ] वगदव-जाला-पलित्तेमु वर्णतेसु धूमाउलासु दिसासु जाव' मंडलवाएव्व परिभमंने भीए तत्ये 'तसिए उबिग्यो' संजायभए वहूहिं हत्थोहि य 'हस्थिणियाहि य लोट्टएहि य लाट्टियाहि य कल भएहि य कलभि याहि य सद्धि संपरिव डे सव्वनो समता दिसोदिसि विप्पलाइत्था ।।। १६६. तए णं तव मेहा ! तं वणदवं पासित्ता अयनेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था - कहि णं मन्ने मए अयमेयारूवे अरिंगसंभमे अण १७०. तए णं तव मेहा ! लेस्साहि विसुज्झमाणीहि अज्झत्रसाणेणं सोहणेणं सुभेणं परिणामेणं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहा-पूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सन्निपुग्वे जाईसरणे समुप्पज्जित्था ।। १७१. तए णं तुम मेहा ! एयमटुं सम्म अभिसमेसि—एवं खलु मया" अईए दोच्चे भवग्गणे इहेव जंबुद्दोवे दावे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले जाव* सुमेरुप्पभे नाम हस्थिराया होत्था । तत्थ णं मया" अयमेवारूवे अग्गिसंभमे समणुभूए ।। १७२. तए गं तुम मेहा ! तस्सेव दिवसस्स पच्चावरणहकालसमयसि नियएण ज हेणं सद्धिं समण्णागए यावि होत्था । १७३. तए णं तुमं मेहा ! सत्तुस्रोहे जाव" सन्निजाईस रणे च उदंते मेरुप्पभे नाम होत्थ होत्था ॥ १. होत्था । सत्तरपट्टिए तहेव जाव पडिहवे ७. स० पा० -अज्झत्थिए जाव समुप्पडिजत्था। (क, घ) । यत पुनरिह दृश्यते-- सत्तंगेत्यादि . °संभवे (ख, ग)। तद् वाचनान्तरवर्णकापेक्षं कुलिखितमिति ६. x (ग)। १०. मता (ख)! २. सं० पा०—आहेवच्चं जाव अभिरमेथा। ११. ना० १११११५६ । ३. १५६ सूत्रस्य वर्णनपद्धत्यासी पाठोऽत्र युज्यते । १२. महया (क, ख, ग); एतत् पदं अशुद्धं ४. ना० १११११५६ । दृश्यते । ५. सं० पा०–तत्थे जाव संजायभए । १३. संभवे (घ)। ६. सं० पा०-हत्थीहि य जाव कलभियाहि। १४. ना० १२१५१६७ । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं ( उक्खित्तणाए ) मेरुपभेण मंडल निम्माणपदं १७४. तए णं तुज्भं मेहा ! श्रयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था -सेयं खलु मम इयाणि गंगाए महानईए दाहिणिल्लंसि कूलंसि विभगिरिपायमूले 'द रिंगसंताणकारणट्टा" सरणं जूहेणं महइमहालयं मंडल घाइत्तए त्ति कट्टु एवं संपेस, संपेता सुहंहेणं विहरसि ॥ १७५. तए गं तुमं मेहा ! ग्रण्णया कयाइ पढमाउयंसि महावुट्टिकायंसि सन्निवयंसि गंगाए महान दूरसामंते बहूहि हत्थीहि य जाव' कलभियाहि य सत्तहि य हसिएहि संपरिवुडे एवं महं जोयणपरिमंडल महइमहालयं मंडल घाएसि जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा कंटए वा लया वा वल्ली वा खाणुं वा रुक्खे वा खुत्रे वा, तं सव्वं तिक्खुत्तों ग्राहुणिय ग्राहृणिय पाएणं उद्ववेसि, हत्थे गिण्हसि एगते एडेसि || १७६. तए पं तुमं मेहा ! तस्सेव मंडलस्स श्रदूरसामंते गंगाए महानईए दाहिणिल्ले कुले विझगिरिपायमूले गिरीसु य जाव' सुहंसुहेणं विहरसि || १७७. तए णं तुमं मेहा ! ग्रण्णया कथाइ मज्झिमए वरिसारत्तंसि महावुट्ठिकार्यसि सन्निवइयंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि उवागच्छिता दोच्च पि 'मंडलघायं करोसि एवं चरिमवरिसारत्तंसि " महावुट्टिकायंसि सन्निवयमाणंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि उत्रानच्छिता तच्च पि मंडलघायं करेसि" जाव" सुहंसुणं विहरसि || दवग्गिभीतसावयाणं मंडलपवेस-पदं १७८. तर गं तुमं मेहा ! ग्रण्णया कयाइ कमेण पंचसु उऊसु समइक्कंते सु १. ना० १११.१६६ । २. वदवमिंग (क); दवग्गिसंजाय ० (वृश) । ( ख, ग, घ ); दवताण ६१ ४. घात ( ख ) 1 ४. वाड (ग); पाउसम्म (घ) 1 ५. ना० १३१।१५७ । ६. X ( ग, घ ) । ७. उद्भुवेसि ( क ); उद्धरेसि ( ख, ग ); वट्टेस (घ); उसित्ति उद्धरसि (वृ ) । म ना० १।१।१५८ । ६. महाविद्वि° ( क, ख ) 1 १०. तं मंडल घाएगि (क, ग, घ ) । ११. ० वासारत्तंसि ( ख ) | १२. करेसि, जंतस्थ तणं वा जाव (क. स्व, ग, घ ); गमान्तरप्रसंगे वृत्तिकारेण 'तच्च पि मंडलघायं करेसि जात्र सुहंसुहेणं विहरसि' - इति पाठ: उद्धृतोस्ति, तस्याधारेणासोपाठोत्र स्वीकृतः । १३. ना० ११९११७५. १७६ ॥ १४. प्रथमो गम: पादटिप्पणे विन्यस्तोस्ति, द्वितीयदमुपाठे रक्षितोऽस्ति । वृत्तिकृता द्वितीयगमस्य समान्तरखेन उल्लेखः कृतोरित, यथा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहायो गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले मासे पायव-घंससमुट्ठिएणं' जाव' संवट्टइएसु मियपसुपंखिसरीसिवेसु दिसोदिसि विप्पलायमाणेसु तेहिं वहूहिं हत्थीहि य सद्धि जेणेव से मंडले तेणेव पहारेत्थ गमणाए। यत् पुन: 'तए णं तुम मेहा अण्णया कयाइ समाउले भीमदरिसणिज्जेवते दारुणम्मिकमेणं पंचम्' इत्यादि दृश्यते, तद् गमान्तरं गिम्हे मारुयवस - पसर - पसरिय - वियंभिएण मन्यामहे (वृ) अभहिय-भीमभेरव-रवरपगारेणं महधाराआदर्शष गमट्टयं लिखितमस्ति । द्वितीयो पडिय-सित्त-उदायमाण-धगधगेंत - संदुद्धााणं गमः पूर्ववर्ति १५६ सूत्रस्य वर्णनेन सादृश्यं । दित्ततर-सफुलिं गेणं धूममालाउलेण गच्छति, तेन तस्यैव मूले सन्निवेशः कृतः । सावयसयंतकरणणं वणदवेणं जालालोवियप्रथमो गमः इत्थमस्ति निरुद्धधूमंधकारभीओ आयवालोय. अह मेहा ! तुम गइंदभावम्मि वट्टमाणो महंततुंबइय-पुण्ण-कण्णो 'आकंचिय-थोरकमेणं नलिणिवणविहवणकरे हेमंते कंद- पीवरकरो भयवस-भयंत-दित्तनयणो वेगेण लोद्ध-उद्धत-तुसारपउरम्मि अइक्कते, महामेहो व वाय-गोरिलय-महल्लायो अहिणवगिम्हसमयंसि पत्ते वियट्टमाणी वणेसु जेण कओ तेण पुरा दवम्गि-भयभीयहियएण 'वणकरेण - विविह - दिन्नकयपसव - घाओं? अवगयतणप्पएसरुक्खो रुक्खोदेसो दवस्गिउ उयकुसुम -चामरा-कृष्णपूर-परिमंडियाभि- संताणकारणट्ठा" 'तेहि बहूहि हत्थीहि य रामो मयवस-विगसंत-कडतड-किलिन्न- सद्धि” जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्य गमणाए। गंधमदवारिणा मुरभिजणियगधो करेणुपरि- एक्को ताव एस गमो। वारिओ उउसमत्त-जणियसोहो काले १. संघस (क, ख, घ)। दिणयरकरपयंडे परिसोसिय-तरुवरसिहर- २. ना० १.१४१५६ । भीमतरदंसणिज्जे भिंगार-रवंत-भेरवरवे ३. १५६ सूत्रे इत्थं पाठरचनास्ति-तत्य-मियनाणाविपत्त-कट्ठ-तण-कयवरुद्भुत-पइमारुया- ससय-सरीसिवेसु । इद्ध-नहयल-पदुममाणे वाउलि-दारुणतरे ४. पू०-ना० १।१।१५७ । तण्हावस - दोस - दूसिय-भमंत-विविहसावय १. वणरेणुविविहदिन्नकयपंसुघाओ (वृपा)। १०. जालालेविय (व)। २. तुमं कुसुम (घ), कुसुम (वृ), उउयकुसुम (वृपा)। ११. प्रायवाले (बृ), प्रायवालोय (बृपा)। ३. चामर (क्व०)। १२. प्राकुनियथोरपीवरकराभोयसव्वदिसिभयंतदित्तनयणो ४. समय (क)। (वृपा)। ५. सिरिहर (घ, वृ). १३. ते (क, ख, घ)। ६, दुमगणे (वृषा)। १४. कारणत्था (क, ग, घ)। ७ दोसिय (द)। १५. एतावान् पाठः ख, ग, घ, प्रतिषु नास्ति, केवलं 'क' ५. ०दंसणिजे (ख)। प्रतावेव विद्यते, वृत्त्यनुमोदितोस्ति तेनास्माभिः ६. सद्बुद्धएण (वृपा)। स्वीकृतः । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) तत्थ णं अण्णे बहवे सीहा य वग्घा य विगा य दीविया य अच्छा य तरच्छा य परासरा य सियाला य विराला य सुणहा य कोला य ससा य कोकतिया य चित्ता य चिल्लला' य पुवपविट्ठा अग्गिभयविद्या एगयनो बिलधम्मेणं चिटुंति ।। १७६. तए णं तुम मेहा ! जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छिता तेहि बहूहिं सोहेहि य जाव चिल्ललेहि य एगयो बिलधम्मेणं चिट्ठसि ।। मेरुप्पभस्स पादुक्खेव-पदं १८०. तए णं तुम मेहा ! पाएणं गत्तं कंडूइस्सामो ति कटु पाए उक्खित्ते । तसि च णं अंतरंसि अण्णेहि बलवंतेहिं सत्तेहि पणोलिज्जमाणे -पणोलिज्जमाणे ससए अणुप्पवितु ॥ १८१. तए ण तुमे" मेहा ! गायं कंडूइत्ता"पुण रवि पायं पडिनिक्खे विस्सामि त्ति कट्ट तं ससयं अणुपविटुं पाससि, पासित्ता पाणाणु कंपयाए भूयाणुकंपया जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए से पाए. अंतरा" चेव संधारिए, नो चेव णं निखित्ते ॥ १८२. तए णं तुम मेहा ! ताए पाणाणुकंपयाए" भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए ? सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए, माणस्साउए निबद्धे ।। १८३. तए णं से वणदवे अड्ढाइज्जाइं राइंदियाइं तं वण झामेइ, झामेत्ता निट्टिए उवरए उवसंते विज्झाए यावि होत्था । १. पारासरा (घ)। ६. पणोल्लिज्ज (क, ग) । २. य चित्तलगा य (ख, ग); य चित्तला य १०. तुम (क, ख, ग, घ)। ११. कडुइत्ता (क. ख)। ३. चिल्लाला (क)। एतेषां मध्येऽधिकृत- १२. निक्लिनिस्सामि (क); निक्वमिस्सामि वाचनायां कानिचिन्न दृश्यन्ते । (ख, ग, घ)। ४. भयाभिद्या (क, ख, घ)। १३. ° कंपाए (ग)। ५. ना० १११११७८ । १४. अंतरे (ग)। ६. तुमं (क, ख, ग, घ)। १५. स० पा०-पाणाणुकंपयाए जाव सत्ताणु७. कडुइ ° (ख)। कंपयाए। ८. अणुरिखते (क, ग, घ) 1 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ १८४. तए णं ते बहवे सीहा य जाव' चिल्लला य तं वणदवं निद्वियं उबरयं उवसंतं . विज्झायं पासंति, पासित्ता अग्गिभविष्पमुक्का तण्हाए य छुहाए य परभाहया समाणा तो मंइलामो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सव्वग्रो समंता विप्पसरित्था। १८५. तए णं ते वहवे हत्थी' •य हत्थिणीयो य लोट्टया य लोट्टिया व कलभा य कलभिया य तं वणदवं निट्टियं उवरयं उवसंतं विज्झायं पासंति, पासित्ता अगिभविष्पमुक्का तण्हाए य° छुहाए य परभाहया समाणा तो मंडलायो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्ख मित्ता दिसोदिसि विप्पसरित्था । १८६. तए णं तुमं मेहा ! जुण्णे जरा-जज्जरिय-देहे सिढिलवलितय पिणिद्धगत्ते दब्बले किलते जंजिए पिवासिए अत्थामे अवले अपरक्कमे ठाणुकडे वेगेण विप्पसरिस्सामि त्ति कट्ट पाए पसारेमाणे विज्जुहए विव रययगिरि-पन्भारे धरणितलसि सव्वंगेहि सण्णिवद्दए।। १८७. तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया -उज्जला' 'विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । पित्तज्जरपरिगयसरीरे ' दाहवक्कतीए यावि विहरसि ।। तीय संदन्भे वट्टमाण-तितिक्खोवदेस-पदं १८८. तए णं तुम मेहा ! तं उज्जलं जाव' दुरहियासं तिपिण राइंदियाई वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउं पालइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पच्चायाए । १८६. तए णं तुम मेहा ! आणुपुत्वेणं गम्भवासाप्रो निवखते समाणे उम्मक्कावालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वदा। तं जइ ताव तुमे मेहा ! तिरिक्ख जोणियभावमुवगएणं अपडिलद्ध-सम्मत्तरयणलंभेणं से पाए पाणाणु कंपयाए 'भूयाणु कंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाग' १. ना० १२११७८ । इह प्राग्भारः ईषदवनतखंड उसमानेनास्य २. स. पा०-निट्टियं जाव विज्झायं । महत्तयैव न वर्णतो रक्तत्वात् तस्य । वाच३. सं० पा०-हत्थी जान छुहाए। नान्तरे तु सित एवासाविति (ब)। ४. तया (घ) ७. सं० पा०-उज्जला जाव दाहवक्कंतीए। ५. ठाणुक्कडे (क); ठाणखंभे (घ) । ८. ना० १११११८७ । ६. रेवय० (क्व०); एकस्यां हस्तलिखितवृत्ता- ह. निक्कते (ख)। वपि रेवयगिरि' इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ १०. सं० पा०--पाणाणकंपयाए जाव अंतरा। 'रययगिरि' पाठस्य पर्यालोचनमपि कृतमस्ति Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (उत्तिणाए ) ६५ अंतरा चैव संधारिए, नो चेव णं निक्खित्ते । किमंग पुण तुमं मेहा ! इयाणि 'विपुल कुलसमुब्भवे णं निरुवय सरीर- दंतलद्धपंचिदिए णं एवं उद्वाण-बलवीरिय-पुरिसगार - परक्कम संजुत्ते णं मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारयं पव्वइए समाणे समणाणं निग्गंथाणं राम्रो पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए* *पुच्छणार परियदृणाए • धम्माणुयोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा ग्रइगच्छमाणाण य निग्गच्छमाणाण य हत्यसंघट्टणाणि य पायसंघट्टणाणि य' सीससंघट्टणाणि य पोट्टसंघट्टणाणि य कायसंघट्टणाणि य लंडणाणि य पोलंडणाणि य पायरय-रेणु-गुंडणाणि य नो सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि यहियासेसि ? ० मेहस्स जाइसरण-पदं १९०. तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म सुभेहि परिणामेहि पसत्थेहि प्रभवसाणेहि लेसाहि विसुज्भमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहापूह - मग्गण - गवेसणं माणस सण जाईसरणे समुप्पण्णे, एयम सम्मं अभिसमेइ || मेहस्स समपणव्वं पुणो पव्वज्जा पर्द ० १९१. तए गं से मेहे कुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं संभारियपुव्वभवे' दुगुणाणीयसंवेगे' ग्राणंद सुपुण्णमुहे हरिसवस - विसप्पमाण हियए धाराहयकलंब क पिव समूससियरोमकूवे" समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - अज्जपभित्ती णं भंते! मम दो अच्छीणि मोत्तूणं अवसेसे काए समणाणं निग्गंथाणं निसट्टे त्ति कट्टु पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी १. तुमे ( क, ख, ग, घ ) । २. विपुल कुलसमुद्भवे ण मित्यादी णकारो वाक्यालंकारे (वृ) 1 ३. पत्तल (क, ख, ग, घ, वृपा) 1 ४. सं० पा० – वाणाए जाव धम्माणुोग चिताए । ५. सं० पा०--पायसंघट्टणाणि य जाव रेणुगुंडणाणि । ६. 'पुब्वजाईसरणे ( क, ख, ● पुग्वभवे ( वृषा); भगवती ११।१७२ सूत्रानुसारेण असौ वृत्तेः पाठभेदो मूले स्वीकृतः । ७. दुगुणाणिय ० ( क, ख, ग, घ ) । ८. आणंदयंसु ( ख, ग ) । ६. सं० पा०-हरिसवस • 1 हरिसवसति अनेन हरिसवस विसप्पमाणहियए त्ति द्रष्टव्यम् (वृ) । ग, ध, वृ) १०. समूसदिय ( क, ख, घ ) । o Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ इच्छामि णं भंते ! इयाणि दोच्चंपि सयमेव पव्वावियं सयमेव मुंडावियं' 'सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खावियं० सयमेव आयार-गोयरं जायामाया वत्तियं' धम्म माइक्खियं ।। १६२. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पव्वावेइ' *सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खावेइ सयमेव आयार-गोयर-विणय-वेणइय-चरणकरण °-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खइ-एवं देवाणप्पिया! गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीयत्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुजियव्वं एवं भासियब्वं एवं उठाए' उट्ठाय पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमियब्वं ।। १६३. तए णं से मेहे समणस्स भगवनो महावी रस्स अयमेयारूवं धम्मिय उवएसं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तह गच्छइ तह चिट्ठइ 'तह निसीयइ तह तुयट्टइ तह भुंजइ तह भासइ तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहि भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं ° संजमेणं संजमइ ।। मेहस्स निग्गंठचरिया-पदं १६४. तए णं से मेहे अणगारे जाए-इरियासमिए 'भासासमिए एसणासमिए आयाण भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिद्वावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गत्तबंभयारी चाई लज्जू धन्ने खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अणियाणे अप्पूस्सूए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव निग्गंथं पावयण पुरोकाउं विहरति ।। १६५. तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स 'तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई 'एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहहिं छट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।। मेहस्स भिक्खुपडिमा-पदं १६६. तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहामो नय राम्रो गुणसिलयानो चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिवखमित्ता वहिया जणवयविहारं विहरइ ।। १. सं० पा.-मुंडावियं जाव सय मेव ! इति विशेषणं नास्ति। २. ° उत्तियं (क, ख, ग, घ)। ८. अंतिए तहारूवाणं थेगणं (क. ख, ग, घ)। ३. ० माइक्लिङ (क, ग, घ) । अत्र लेखने 'प्रतिए' पदस्य विपर्ययो जात: ४. सं० पा०-पवावेइ जाव जायामाया- इति संभाव्यते । (१११।२०८) सूत्रे पि वत्तियं । स्वीकृतपाठवत् पाठो लभ्यते-- ५. उट्ठाय (क, ग, घ)। 6. माइयाणि (क, ग); सामातियमाइयाणि ६. सं० पा०--चिट्ठइ जाव संजमेणं । ७. मं० पा० --अणगार-वरुण ग्रो भाणियन्वो। १०. अंगाति (ख); एक्कारसंगाई (घ) । वृत्तावयं पाठः उल्लिखितोस्ति, तत्र 'दंते' ११. खवणेहि (ख)। पू०--ना० १३११२०१ । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अभयणं (उक्वित्तणाए) १६७. तए णं से मेहे अणगारे अण्णया कयाइ समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुन्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ १६८. तए णं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए' समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। मासियं भिक्खपडिमं 'अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं" सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ किट्टेइ, सम्मं काएणं फासेत्ता पालेत्ता सोभेत्ता तीरेत्ता कित्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि । जहा पढमाए अभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचभाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तराइंदियाए दोच्चसत्तराइंदियाए' तच्च सत्तराइंदियाए' अहोराइयाएं एगराइयाए वि ॥ मेहस्स गुणरयणसंवच्छर-पदं १६६. तए णं से मेहे अणगारे वारस भिक्खुपडिमाओ सम्मं कारणं फासेत्ता पालेत्ता सोभेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अभYण्णाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिवंधं करेहि ।। तए णं से मेहे अणगारे पढमं मासं च उत्थं-च उत्थेणं अणिविखत्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुवकुडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए पायावेमाणे, रत्ति वीरासणेणं अवाउडएणं । दोच्चं मासं छ8-छ?णं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणक्कुडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए अायावेमाणे, रत्ति वीरासणेणं अवाउडाणं । तच्चं मासं अट्ठम-अट्ठमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सुराभि मुहे बायावणभूमीए पायावेमाणे, रत्ति वीरासणेणं अवाउडएणं । १. अणुण्णाते (ग)। ५. अहोराइंदियाए (ख, घ)! २. स्थानाङ्ग (७।१३) एवं पाठो लभ्यते-- ६. एगराइंदियाए (ग, घ) । अहासुतं अहाअत्थं अहातच्चं अहामगं ७. अवाउडतेण (ख); अवाउडेण (घ); अप्राअहाकप्पं । वृतेन अविद्यमानप्रावरणेन । स एव वा ३. दोच्चा (ख); बीया (घ)। अप्रावृतः णकारस्त्वलंकारार्थः (१) । ४, तच्चा (ख); तीया° (घ)। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ८ नावाधम्मकाओ चउत्थं मासं दस-दस मेणं अणिक्खित्तेणं तत्रोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुल सूराभिमुहे प्रायावणभूमीए श्रायावेमाणे, रति वीरासणेणं प्रवाउडएणं । पंचमं मासं दुवालसमं - दुवालसमेणं प्रणिक्खित्तेणं तत्रोकम्मे, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमु श्रावणभूमीए मायावेमाणे, रति वीरासणेण श्रवाउडएणं । एवं एएवं अभिलावेणं छट्ठे चोदसमं चोहसमेणं, सत्तमे सोलसमं- सोलस मेणं, अमे अट्ठारसमं द्वारसमेणं, नवमे बीसइम-वीसइमेणं, दसमें बावीस मंबावोसइमेणं, एक्कारसमे चउव्वीस इमं चउव्वीसइमेणं, बारसमे छव्वीस इमं - छन्त्री सइमेणं, तेरसमे अट्ठावीसइमं श्रद्वावीसइमेणं, चोद्दसमे तीसइमं- तीसइमेणं, पंचदसमें बत्तीसइमं - बत्तीसइमेणं, सोलसमे चउत्तीसइमं - चउत्तीसइमेणं - प्रणिवित्तणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सुराभिमुहे प्रायावणभूमीए आयावेमाणे, वीरासणेण' अवाउडएण य ॥ २०१. तए णं से मेहे अणगारे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं ग्रहासुत्त ग्रहाकप्पं ग्रहामग्गं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोइ तीरेद्र किइ ग्रहासुतं महाकप्पं ग्रामगं सम्मं कारणं फासेत्ता पालेत्ता सोभेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता वहूहिं छट्ठट्ठमदसमदुालसेहि मासद्धमासखमणेहिं विचित्तहिं तवोकम्मेहिं प्रप्पाणं भावेमाणे विहरइ || मेहस्स सरीरदसा-पदं २०२. तए णं से मेहे अणगारे तेणं 'ओरालेणं' विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिए कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महाणुभावेणं तवम्मेणं सुक्के लक्खे' निम्मंसे किडकिडियाभूए चिम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था - जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासिता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिरसामि त्ति गिलाइ । से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्टसगडिया इवा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया' इ वा उण्हे दिन्ना सुक्का " समाणी १. वीरासणेण य ( क, ख, ग ) । २. सं० पा० - अहासुतं जाव सम्मं । ३. सं० पा० - अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता । ४. उरालेणं ( ख, ग, घ ) 1 ५. परिगहिणं ( क, ख ) 1 ६. भुक्खे (क, ग, घ ) : ७. तिलसगडिया ( ग ) । पदानि अधिकानि विपर्ययं प्राप्तानि च वर्तन्ते यथा - ओरालेणं विउलेण पयत्तणं पहिए कल्ला सिवेण घण्णंग मंगलणं सस्सिरिएणं उदगेणं उदत्तेण उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं । से जहा नामए कट्टसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्ततिलभंडसगडिया इ वा एरंडक सगडिया इ वा इंगालसगडिया इ वा । ८. एरंडक सगडिया ( ख ) । ६. भगवती (२1१) सूत्रे स्कन्दकवर्ण के कानिचित् १० सुक्खा ( ख, ग ) । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडम अज्झषणं (उक्खित्तणाए) सस गच्छइ, ससदं चिटुइ, एवामेव मेहे अणगारे ससई गच्छइ, ससदं चिट्टइ, उचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, यासणे इव भासरासिपरिच्छन्ने तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ ।। मेहस्स विपुल ध्वए अणसण-पदं २०३. तेणं कालेणं तेणं समरणं समणे भगवं महावीरे प्राइगरे तित्थगरे जाव' पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं सोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। २०४. तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स राम्रो पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं अोरालेण विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पगहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महाणुभावेणं तवोकम्मेण सुक्के लुक्खे निम्मसे किडिकिडियाभूए अद्विचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था --जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवणं चिट्रामि, भास भासित्ता गिलामि, भास भासमाणे गिलामि, भास भासिस्सामि त्ति गिलामि ! तं अत्थि ता' मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार'-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वारिए पूरिसकार'-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, ताव ता. मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उठ्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीर वदित्ता नमंसित्ता समणणं भगवया महावीरेणं अभणण्णायस्स समाणस्स सयमेव पंच महत्वयाई प्रारुहित्ता गोयमादीए समणे निग्गंथे निग्गंथीयो य खामेत्ता तहारूवेहि कडाईहि थेरेहि सद्धि विउल पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्ता सयमेव मेषणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहित्ता संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं ---- - - ---- - १. ओ० १६ । ६. पुरिसगार (क)। २. सं० पा०—अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ७. ताव (क, ग, घ); तावताव (वृ)। ३. सं० पा०-उरालेणं तहेव जाव भासं । ८. ना० १।१२४ ! ४. तामेव (ख, ग)। ६. जलते सूरिए (ख, ग)। ५. पुरिसक्कार (क, घ)। १०. ना० १११।२४। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माया कहाओ महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो ग्राहिण-पायाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता नच्चासणे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नर्मसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासइ || २०५. 'मेहा इ !” समणे भगवं महावोरे मेहं अणगारं एवं क्यासी से नूगं तव महा ! राम्रो पुन्दरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयरूत्रे थिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकल्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु ग्रहं इमेण मोरालेणं तत्रोकम्मेणं सुक्के जाव' जेणेव इहं तेणेव हव्व હ मागए । सेतूणं हा ! समट्ठे ? हंता अस्थि । हासु देवाणुप्रिया ! मा पडिवंधं करेहि ॥ २०६. नए णं से मेहे अणगारे समणेण भगत्रया महावीरेणं अ०भणुष्णाए समाणे - चित्तमादिए जाव' हरिसवस विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समण भगवं महावीर तिक्खुतो ग्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता सयमेव पंच महत्वयाई आरहे ग्राहेता गोयमादोए समणे निग्ये निधीओ य खामंइ, खामंत्ता तहारूहि कडादोहि थेरेहि सद्धि विपुलं पत्रयं सनियं-सणियं दुरुहर, दुरुहित्ता सयमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्ट पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेइ, पडिलेहेत्ता दव्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दव्भसंधारगं दुरुहद्द, दुरुहिता पुरत्याभिमुहे संपलिक निसणं करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी- नमोत्थु णं ग्ररहंताणं जाव" सिद्धिगइनामवेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्यु णं समणस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्माfरयस्स | वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इति कट्टु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं व्यासी- पुब्वि पिय णं भए समणस्स भगवश्रो महावीरस्स श्रंतिए सब्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए, मुसावा श्रदिण्णादा मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेज्जे दोसे कलहे १. पंजलिडे (ख); अंजलियडे (घ) । २. मेहति ( ख ) ; मेघाइ (घ ) । ३. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था | ४. ना०-- १।१।२०४ । ५. पू० ना० ११११२०४ | ६. अत्र १।१।२०४ सूत्रस्य 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' अतः पूर्ववर्ती पाठ: समर्पितोस्ति । ७. ना० १।१।१६ ८. आरुभेइ ( ख ) ; आरुहति (घ) । ६. गोयमादि (क, ख, ग, घ ) 1 १०. तो १५८३ सूत्रे 'देवसण्णिवार्य' इति पदं विद्यते । ११. ओ० सू० २१ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ বন অয় (কিলেলাং) अब्भक्खाणे पेसुण्णे परपरिवाए अरइरई मायामोसे मिच्छादंसणसल्लेपच्चक्खाए । इयाणि पिणं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं चउव्विहंपि आहार पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जंपि य इमं सरीरं इटुं कंतं पियं' 'मणुण्णं मणामं थेज्ज वेस्सासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्ह मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसया मा णं वाइय-पित्तियसेंभिय-सण्णिवाइय° विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा 'फुसंतीति कटु एयं पि य णं चरमेहि ऊसास-नीसासेहि वोसिरामि त्ति कटु सलेहणाअसणा-असिए भत्तपाण - पडियाइक्खिए पापोवगए कालं अणवकंखमाणे विहरई॥ २०७. तए णं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति ।। मेहस्स समाहिमरण-पदं २०८. तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाई दुवालसवरिसाइं सामग्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता, पालोइय-पडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते अणुपुत्वेणं कालगए ॥ थेरेहि मेहस्स पायारभंडसमप्पण-पदं २०६. तए ण ते थेरा भगवंतो मेहं अणगारं अणुपुन्वेणं कालगयं पासंति, पासित्ता परिनेव्वाणवत्तियं काउस्सगं करेंति, करेत्ता मेहस्स आयारभंडगं गेण्हंति, विउलानो पव्वयाओ सणियं-सणियं 'पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता" जेणामेव गणसिलए चेइए, जेणामेव समणे भगवं महावीरे, तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं १. सं० पा०—पियं जाव विविहा। २. इह प्रथमावहुवचनलोपो दृश्य: (भ. वृ)। ३. फुसंति चिटुंति (ग, घ)। ४. एवं (क, ख, ग, घ)। ५. चरिमेहिं (घ)। ६. संलेखनास्पर्शकः (१); संलेहणाभूसणाभूसिए (वृपा)। ७. सामाइयाई (ख)। ८. परिनिव्वाणवत्तियं (ख, घ); परिनिव्वाण पत्तियं (ग)। है. पच्चोरुभंति २ (क)। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ भायाधम्मकहाणी वयासी.-.-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी महे नामं ग्रणगारे पगइभद्दाए •पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणे' ' विणीरा से णं देवाणप्पिा अभणण्णाए समाण गोयमाहा समणे निग्गंथे निग्गंथीयो य खामेत्ता अम्हेहि सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, सयमेवमेघघणसण्णिगासं पुढविसिलं पडिलेहेइ', भत्तपाण-पडियाइदिखाए अणुपुव्वेणं कालगए। एस णं देवाणु प्पिया ! मेहस्स अणगा रस्स अायारभंडा ।। गोयमपुच्छाए भगवनो उत्तर-पदं २१०. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पियाणं अंतेवासी मेहे नाम अणगारे से णं भंते ! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहि गए ? कहि उबवणे ? गोयमा ! इसमणे भगवं महावीरे गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी मेहे नाम अणगारे पगइभद्दए जाव' विणीए, से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, वारस भिक्खुपडिमानो गुण रयण-संवच्छरं तवोकम्म कापणं फासेत्ता जाव' किदृत्ता, मए अन्भणण्णाए समाणे गोयमाइ थेरे खामेत्ता, तहारूवेहि कडादीहिं थेरेहि सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं ? | दुरुहित्ता, दभसंथारगं, संथरित्ता दभसंथारोवगए सयमेव पंचमहव्वा उच्चारेत्ता. वारस वासाइं सामण्णपरि यागं पाउणित्ता, मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता पालोइय-पडिक्कते उद्धिय सल्ले समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उडढं चंदिम-सूर-गहगणा-नक्खत्त-तारारूवाण बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साई बहूमो जोयणकोडीग्रो बहुमो जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-० लंतग-महासुक्क-सहस्साराणय-पाणयारणच्चुए तिण्णि' य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्जविमाणवाससए वोईवइत्ता विजए महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे । १. सं० पा०-पगइभद्दए जाव विणीए । ६. सामाश्याई (ख)। २. प्रस्तुनसूत्रस्य वृत्तौ 'अल्लीणे' इत्यस्य अनन्तरं ७. ना० ११११२०१। 'भदए' इति पाठोरित। ८. सं० पा० --तहारूबेहिं जाव विपुलं । ३. अत्र पुनर्लेखने अपूर्णो पाठोस्ति । अस्य ६. अत्र पुनर्लेखने अपूर्णो पाठोस्ति । अस्य पूर्तये द्रष्टव्यं १।१२०६ सूत्रम् । पूर्तये द्रष्टव्यं १६१२०६ सूत्रम् । ४. दि (क, ख, ग, घ) १०. वंभलोक (घ)। ५. न.०१।१२०६। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खितणाए) तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवागं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पुणता। तत्थ णं महस्स वि देवस्स तेत्तीस सागरोवमाई ठिई। २१२. एस णं भंते ! मेहे देवे तारो देवलोयाग्रो आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अतरं चयं चहत्ता कहिंगच्छिद्विड ? कहि उववज्जिहिड? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिवाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं २१३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं प्राइगरेणं तित्थगरेणं जाव सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपत्तेणं अप्पोलंभ -निमित्तं पढमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णते। ---त्ति बेमि वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा-- महुरेहि निउणेहि, वयणेहिं चोययंति पायरिया। सीसे कहिचि खलिए, जह मेहमुणि महावीरो ॥१॥ १. x (क, ख, ग)। २. ना० १।१७। ३. अप्पोपालंभ (क्व०); एकस्यां वृत्तिप्रतावपि 'अप्पोपालभ' इति लिखितमस्ति। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अभयणं संघाडे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते, वितियस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के पट्टे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था - वण्णो ' । ३. तस्सणं रायगिहस्स नय रस्स वहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए गुणसिलए नाम चइए होत्था वण्णयो। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगं जिण्णुज्जाणे यावि होत्था--विणट्ठदेवउल-परिसडियतोरणघरे नाणाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि वच्छच्छाइए अणेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था । ५. तस्स णं जिष्णुज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भग्गकवे यावि होत्था ॥ तस्स णं भग्गकूवस्स अदूरसामते, एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए यावि होत्था . ---किण्हे किण्होभासे जाव' रम्मे महामेहनिउरंबभूए' वहूहि रुकवेहि य गुच्छेहि य गुम्महि य लयाहि य वल्लीहि य तणेहि य कुसेहि य खण्णुएहि य संछण्णे पलिच्छपणे अंतो झुसिरे बाहि गंभीरे अणेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था । १. नगरवण्णओ (क, ग); नगरस्सवण्णओ (ग); ७. ओ० सू० ४। ओ० सू०१॥ ८. वाचनान्तरे त्विदमधिकं पठ्यते-पत्तिए २. तत्थ (ग)। पुप्फिा फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए ३. ओ० सू० २-१३ । अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ट इ (कृ) । ४. विणट्ट देव उले (ख, घ)। ६. कुसएहि (क); कुविएहि (वृपा)। ५. °च्छातिए (ग)। १०. खाणुएहि (ख); खत्तएहि (घ, वृपा)। ६. कूवए (क, ख, ग)। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौयं अज्झयणं (संघाडे) धणसत्यवाह-पदं ७. तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्यवाहे --अड्ढे दित्ते वित्थिण्ण-विउल भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुदासो-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुधण-बहुजायरूवरयए आयोग-पोग-संपउत्ते विच्छड्डिय -विउल-भत्तपाण ।। तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स भद्दा नाम भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया अहीणपडिपुण्ण-चिदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोक्वेया माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमागार-कंत-पियदसणा सुरूवा करयलपरिमिय-तिवलिय'-वलियमझा कुडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइ-रयणियर'पडिपुषण-सोमवयणा' सिंगारागार-चारुबेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहियविलास-सल लिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयार-कुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा वंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया याचि होत्था ।। तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स पंथाए नाम दासचेडे होत्था--सव्वंगसुंदरंगे मंसो वचिए बालकीलावणकुसले यावि होत्था ।। १०. तए ण से धणे सत्थवाह रायगिह नयरे वहूणं नगर-निगम-से ट्ठि-सत्थवाहाणं अट्ठारसण्ह य सेणिप्पसेणीणं वहूसु कज्जेसु य कुडुवेसु य मतेसु च जाव चवखुभूए यावि होत्था। नियगस्स वि य ण कुडुवस्स बहूसु कज्जेसु य जाव चक्नुभूए यावि होत्था ।। विजयतक्कर-पद ११. तत्थ णं रायगिहे नयरे विजए नाम तक्करे होत्था-पावचंडाल-रुवे भीमतररुद्द कम्मे पारुसिय-दित्त-रत्तनयणे खरफरुस-महल्ल-विगय-वीभच्छदाढिए असंपुडियउटे उद्ध्य-पइण्ण-लवंतमुद्धए भमर-राहुवण्ण निरणुक्कोसे निरणुतावे दारुण पइभए निसंसइए निरणुकंपे नहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचणवंचण-माया-नियडि-कूड कवड-साइ-संपयोग-बहुले चिरनगरविण-दृट्ठसीलायार १. सं.पा.-दिते जाव विउलभत्तपाणे । २. विच्छिन्न (ओ० सू० १४)। ३. पउर (ओ० मू० १४) । ४. सुभद्दा (ख)। ५. पसत्थ-तिवली (ओ० सू० १५) । ६. मज्झा (क, ख, घ)। ७. रयणियर-विमल (१।१।१७)। ८. सोमचंदवयणा (ग)। ६. सं० पा०-चारुवेसा जाव पडिरूवा । १०. नियम (क, ग)। ११. ना० १११।१६।। १२. रत्तयनयणे (क)। १३. पतिभते (ग)। १४. नेसंसत्तिए (ख); निसंसे (वृपा)। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ नायाधरमहाश्री चरिते जयप्पसंगी मज्जप्पसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारा साहसिए संधिच्छ्रेयए उबहिए विस्संभवाई ग्रालीवर्ग - तित्यनेय-लहुहृत्यसंपते परस्स दव्वहरणम्मि निच्च प्रणुत्रद्धे तिब्ववेरे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि अइगमणाणि य निगमणाणि य वाराणि य अनवाराणि य छिंडीग्रो य खंडीओ य नगरनिद्धमाणि य संवट्टणाणि य निव्वट्टणाणि य जूयखलबाणि य पाणागाराणि य बेसागाराणि य तक्कराणाणि य तक्करघराणि य सिघाडगाणि य विगाणि चक्काणि य चच्चराणि य नागघराणि य भूयवराणि य जक्खदेउलागि य भाणि यवाणियपणियसालाणि य सुन्नघराणि य आभोएमाणे सग्गमाणे गवेसमाणे, बहुजणरस छिद्देसु य विसमेसु य विहरे य वसणे य भूदासु उस सय तिहीसु य छणेसु य जण्णेसु य पव्वणीसु य मचपमत्तस्स य वक्त्तिस्य वाउलस्स य सुहियस्स य दुहियस्सय विदेसत्यस्स य विप्पसियस्सय मग्गं च छिदं च विरह च अंतरं च मग्गमाणे गवेरामाणे एवं च णं विहरइ । वहिया वि य णं रायगिहस्स नगरस्स ग्रारामेसु य उज्जाणेसु य वावि पोक्खरणि-दीहिय-गुजालिय-सर-सरपंतिय सरसरपंतियासु य जिणुज्जाणेसु य भग्गकुत्रेसु य मालुवाकच्छतु य सुमाणगु य " गिरिकंदरेसु य लेणेसु य" उवट्ठाणेसु य बहुजणस्स छिद्देसु जाव तर च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ || भद्दा संताणमणोरह-पदं १२. तए णं तीसे भद्दाए भारियाए ग्रण्णया कयाइ पुञ्चरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणीए प्रथमेयारूत्रे अज्झतिथए' "चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - अहं धणेणं सत्यवाहेणं सद्धि बहूणि वासाणि सह-फरिस - रस-गंध-वाणि माणुस्सगाई कामभोगाई पच्चणुव्भवमाणी विहामि, नो चेव णं ग्रहं दारगं वा दारियं वा पयामि । Q तं घण्णाश्रणं ताम्रो अम्मयाश्रो", संपुण्णाओ णं ताम्रो अम्मयाश्रो, कयत्थाओ णं ताओ श्रम्मयाश्रो, कयपुण्णाओ णं ताओ ग्रम्मयायो, कयलक्तणाश्रो १. जगहियाकारए ( वृपा) । २. आलियग (क, ख ) । ३. विहरेसु ( क, ख, घ) । ४. विहरं ( ख, ग ) । ५. भग्गकुवएसु ( क, ख, घरे । ६. ० लेणेसु य देवउलेसु य ( क ); गिरिकंदर लेण ( ख, ग, घ ) । ७. सं० पा० – अज्झत्थिए जाव समुपज्जित्था । ८. x (क, ग, घ ) । ९. दारिगं (व I १०. पयायामि ( ग ) । ११. सं० पा० - अम्मयाओ जाव मुलद्धे । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर्य अभयणं (संघाडे ) ० णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओो अम्मयाश्रो • सुलद्धे गं माणुस जम्मजीवियफले तासि श्रम्मयाणं, जासि मण्णे नियगकुच्छिसंभूयाई थणदुद्ध-लुद्वयाई महरसमुल्लावगाई मम्मणपयंपियाई थणमूला' कक्ख देस भागं ग्रभिसरमाणाई मुद्धयाई थणयं पियंति, तयो य कोमलकमलोबमेहि हत्येहि गिहिऊणं उच्छंग निवेसियाणि देति समुल्लावए पिए सुमहुरे पुणोपुणो मंजुलप्पभणिए । 'तं गं ग्रह" अथण्णा अण्णा प्रकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पला । तं सेयं मम कल्ले पाउप्पभाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्ररिसम्म दिrयरे तेयसा जलते धणं सत्यवाहं प्रापुच्छित्ता धणेणं सत्यवाणं अणुष्णाया समाणी सुबहुं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उक्खडावेत्ता सुब पुप्फ-वत्थ' -गंध-मल्लालंकारं गहाय वहूहि मित्तनाइ नियग सयण संबंधि- परियण - महिलाहिं सद्धि संपरिवुडा जाई इमाई रायगिहस्स नयररस बहिया नागाणि य भूयाणि य जक्खाणि य इंदाणि य स्वदाणि य रुद्राणि यसिवाणि य वेसमणाणि य, तत्थ णं बहूणं नागपडिमाण य जाव समणपडिमा य महहिं पुप्फनचणियं करेता जन्नुपायपडियाए एवं वइ जइ ही देवापिया ! दारमं वा दारियं वा पयामि, 'तो णं अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च प्रवखयणिहिं च अणुवड्ढेमि त्ति कट्टु उवा उवाइत एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउपभाए रयणीए जान" उद्वियम् सूरे सहसररिग्मि दियरे तेयसा जलते जेणामेव धणे सत्यबाहे लेणामेव उवागच्छ, उत्रागच्छिता एवं व्यासी १. थणमू ( क ) | २. अइसर ० ( ख, ग ) ! ३. 'अंत' (शा२६) मुडयाइ पुण 'इतिपाठोऽस्ति । तद्वतिकृता मुग्वकानिअत्यव्यक्तविज्ञानानि भवन्तीति गम्यते इति किराया अध्याहाराः 'निरदावलियाओ' सूत्रे ( ३/४ ) पुणो य' इति पाठो विद्यते । ४. उच्छंगे ( क, ख ) 1 ५. अहं णं (क, ख, ग ) । एवं खलु अहं देवाणिया! तुभेहि सद्धि बहूई वासाई" "सह-फरिस - रसगंध-रूवाई मागुरगाई कामभोगाई पच्चणुावमाणी विहरामि, नो चेत्र णं अहं दार वा दारियं वा पयामि । तं धण्णाम्रो णं ताओ अम्मयात्री जाव कोमलकमलो मे हत्येहि गिव्हिऊणं उच्छंग- निवेसियाणि देति समुल्लावए ६. ना० १११।२४ | ७. X ( ख, ग, घ ) | ८. उवत्तए ( क ) | ६. अहं (घ ) । १० पयायामि (क, ग ) । ११. तेण (क, ख, ग ) । पण्यति १२. उवाइए ( क ) | ७७ १३. ना० १११।२४ १४. सं० पा० - वासाई जाव देति । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मक हाम्रो सुमहुरे पिए पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए । तं णं अहं ग्रहण्णा अण्णा प्रकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि गुणायामाणी विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता जाव अहिं च ग्रणुवड्डेमि उवाइयं करितए ॥ १३. तए णं धणे सत्थवाहे भद्दं भारियं एवं वयासी --ममं पि य णं देवाणुप्पिए ! एस चैव मणो रहे- 'कहं णं" तुमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि ? - भद्दाए सत्यवाहीए एमट्ठे अणुजाणइ || १४. तए णं सा भद्दा सत्थवाही धणेणं सत्थवाहेणं ग्रब्भणुष्णाया समाणी तुडु चित्तमाणं दिया जाव' हरिसवस - विसप्पमाण-हियया विपुलं श्रसण माण-खाइमसाइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता सुबहु पुप्फ-वत्थ - गंध मल्लालंकारं गेह हिता या गिहायो निग्मच्छर, निग्गच्छित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुक्खरिणीए तीरे सुबहं पुप्फ-वत्थ-गंध • मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुक्खरिणि श्रोगाइ, प्रोगाहिता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकीर्ड करेइ, करेत्ता हाया कयबलिकम्मा उल्लपडसाडिगा जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई कुमुयाई पलिणाई सुभगाई सोगंधियाई पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताइं • सहपत्ताई ताई गिण्हर, गिण्हित्ता पुक्खरिणोयो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता तं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लं' [ मल्लालंकारं ? ] गेव्हइ, गण्हित्ता जेणामेव नागघरण य जाव' वेसमणघरए य तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ गं नागपडिमा य जाव" वेसमणपडिमाण य आलोए पणामं करेइ. ईसि पच्चण्णमइ, पच्चणमित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता नागपडिमाओ य जाव वेसमणपडिमा य लोमहत्थएणं" पमज्जइ, पमज्जित्ता उदगधाराए अब्भुक्खेइ, प्रभुक्खेत्ता पम्हल- सूमालाए गंधकासाईए गायाई लूहेइ लूहेत्ता महरिह 'वत्थारुणं च मल्लारुहणं च गंधारुणं च वण्णारुहणं च करेइ, करेत्ता धूवं डहर, डहित्ता जन्नुपायपडिया पंजलिउडा एवं वयासी १२ ७८ १. सं० पा० -- असणं जाव अणुवड्डेमि । २. मम (ग) ३. कहणं (क, घ); कह णं ( ख ) । ४. ना० १।१।१६ । ५. X ( ख, ग, घ ) | ६. स० पा० - पुप्फ जाव मल्लालंकारं । ७. सं० पा० – उप्पलाई जाव सहस्वपत्ताई । ८. ना० १।२।१२ । ६. तेणेव (क, ख, ग, घ ) । १०. ना० ११२।१२ । ११. हत्येणं ( ख, ग, घ ) । १२. रायपसेणइय (२६१ ) सूत्रे असौ पाठः किंचिद् भेदेन लभ्यते - पुप्फारुहणं मल्लारुणं तुण्णारुणं वत्थाहणं आभरणारुणं । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (संघाडे) जइ णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि तो णं अहं जायं च' 'दायं च भायं च अक्खयणिहिं च ° अणुवड्ढेमि त्ति कटु उवाइय करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइमसाइमं प्रासाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी एवं च णं. विहरई। जिमिय भुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा प्रायंता चोक्खा परम° सुइभूया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया ।। १५. अदुत्तरं च णं भद्दा सत्यवाही चाउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्णमासिणीसु विपुलं असण पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, उदक्खडेता बहवे नागा य जाव' वेसमणा य उवायमाणी नमसमाणी जाव एवं च णं विहरई ।। भद्दाए देवदिन्न-पुत्तपसव-पदं १६. तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ केणइ कालंतरेणं पावण्णसत्ता जाया यावि होत्था ।। १७. तए णं तीसे भद्दाए सत्थवाहीए [तस्स गन्मस्स ? }' दोगु मासेसु बीइक्कतेसू तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउभूए-धण्णायो णं तानो अम्मयानो जाव' कयलवखणायो णं तानो अम्मयाओ, जाप्रो णं विउल असणं पाणं खाइम साइमं सुबहयं पूरफ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियण-महिलियाहिं सद्धि संपरिवडायो रायगिहं नयरं मझमझण निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता पोखरिणि प्रोगाहेंति, प्रोगाहित्ता बहायाप्रो कयलकम्माप्रो सवालकारविभूसियानो विपुलं असणं पाणं खाइमं साइम आसाएमाणीयो बिसाएमाणीग्रो परिभाएमाणोप्रो परिभुजेमाणीयो दोहलं विति- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव" उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिगयरे तेयसा जलते जेणेव धण सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्यवाहं एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया ! मम तस्स गब्भस्स" - -- --- -- -- --.--. -- १. सं० पा०--जायं च जाव अणुवड्डेमि । गब्भस्स' इति पाठोस्ति। तेनात्रापि तस्स २. सं० पा०-आसएमाणी जाव विहरइ । गभस्स' इति पाठो युज्यते । ३. सं० पा० --जिमिय जाव सुइभूया। ७ ना० ११२६१२। ४. ना० १२।१२। ८. ११२।१२ सूत्रे 'महिलाहिं' पाठो विद्यते। ५. कयाई (क) ! ६. सं. पा.-आसाएमाणीओ जाव परिभंजे६. १।१:३३ सूत्रे 'तइए मासे वट्टमाणे तस्स माणीयो। गभस्स दोहलकालसमयसि' इति पाठो १०. ना० ११११२४ । विद्यते । प्रस्तुत सूत्रे पि किंचिदये 'तस्स ११. सं० पा०-गभस्स जाव विणेति । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाणे •दोसु मासेस वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए-- धण्णाश्रो णं ताो अम्मयाप्रो जाव दोहल° विणेति । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुन्भेहिं अभणुण्णाया समाणी' विउलं असणं पाणं खाइमं साइम सुबहयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय जाव दोहलं ° विणित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ १८. तए णं सा भद्दा धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठ-चित्तमाणं दिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया विपुलं 'असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता जाव' धूवं करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ ।। १६. तए णं तानो मित्त-नाइ'- नियग-सयण-संबंधि-परियण ° -नगरमहिलाम्रो भई सत्थवाहिं सव्वालंकारविभूसियं करेंति ।। २०. तए णं सा भद्दा सत्थवाही ताहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-'परियण नगरमहिलियाहिं सद्धि तं विपुलं असणं' 'पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं विणेइ, विणेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया । २१. तए णं सा भद्दा सत्थवाही संपुण्णदोहला जाव' तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।। २२. तए णं सा भद्दा सत्यवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुग्णाणं अट्ठमाण य राई दियाणं बीइक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं जाव' दारगं पयाया ।। २३. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति, तहेव जाव" १. सं० पाo---समाणी जाव विहरित्तए (क, एतेषु विप्वपि स्थानेषु पाठस्य समानता ख, ग, घ); यी पाठमंशोधनप्रयुक्तेपु युज्यते, किन्तु दोहदम्य पूतिविषयक: पाटसर्वेष्वपि आदर्श'विहरित्तए' इति पाठो स्ततो भिन्नोस्ति । अत्र अनेकधा जाय शब्द: लभ्यते किन्तु अर्थमीमांसया नासो समीचीन: प्रयुक्तोस्ति । तदनुसारेण पाठपूरणे 'गणाम प्रतिभाति । नास्य केनापि पाठेन पूर्ति जर्जायते। करेइ' इत्यस्य पदस्य द्विधा प्रयोगो जायते, सभवतो लिपिदोपण "विणित्तए' इत्यस्य किन्तु प्रतिप्राम?ण्यात अनन्यगतिकरस्माभिर'विहरितए' इति रूपेण परिवर्तनं जातम् । न्याधाराभावेन यथा लब्ध एव पाठः स्वीकृतः । एतस्य पाठस्य स्वीकारेऽप्य पूतिरपि जायते। ५. सं. पा.-. नाइजाव नगरमहिलाओ। स्तबकादर्श विपित्तए' इति पदस्यार्थः ६. १२ सूत्रे परियज-महिलाहि । १७ कृतोस्ति । सूत्रे-परियण-महिलियाहिं । १८ सूत्रे२. ना० ११६ परियण-नगरमहिलियाहि । ३. ना० १।२।१४। ७. सं० पा०-असणं जाव परिभुजेमाणी। ४. असणं जाव उल्लपडसाडिगा जेणेव नागघरए ८. ना० ११११७२ । जाव धूवं (क, ख, ग, घ)। दोहदस्य ९. ना० ११११२० । उत्पतिः, पत्युस्तस्य निवेदनं, तस्यपूर्तिश्च--- १०. ना० ११११८१ । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ बीय अज्झयणं (संघाडे) विपुलं' असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, तहेव मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं भोयावेत्ता अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज करेंति -- जम्हा णं अम्हं इमे दारए बहूणं नागपडिमाण य जाव' वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे', तं होउ णं अम्हं इमे दारए देव दिन्ने नामेणं । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति देवदिन्ने त्ति ।। २४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अवखयनिहिं च अणुवड्ढेति ।। देवदिन्नस्स कोडा-पदं २५. तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स वालग्गाही जाए, देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हिता वहूहिं डिभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे अभिरमइ ।। २६. तए णं सा भद्दा सत्यवाही अण्णया कयाइ देवदिन्नं दारयं व्हायं कयवलिकम्म कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासचेडगस्स हत्थयंसि दलयइ ।। २७. तए णं से पंथए दासचेडए भद्दाए सत्थवाहीए हत्थाओ देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता सयानो गिहारो पडिनिक्खमइ, वहूहि डिभएहि य' 'डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य° कुमारियाहि य सद्धि संपरिवडे जेणेव रायमगे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगते ठावेइ, ठावेत्ता बहूहिं डिभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धि संपरिडे पमत्ते' यावि विहरइ।। देवदिन्नस्स अपहार-पदं २८. इमं च णं विजए तक्करे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि [अइगमणाणि य निग्गम णाणि य ?] वाराणि य अववाराणि य तहेव जाव' सुन्नघराणि य आभोएमाणे मग्गेमाणे गवेसमाणे जेणेव देवदिन्ने दारए तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं सव्वालंकारविभूसियं पासइ, पासित्ता देवदिन्नरम दारगस्स आभरणालंकारेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे पंथयं दासचेडयं पमत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता देवदिन्नं दारगं गेण्हइ, गेण्हित्ता १. तिपुलं (ख)। २. पू०-ना० १११८१ । ३. ना० ११२।१२। ४. ओवाइय° (क)। ५. सं० पा०-डिभएहि य जाव कुमारियाहि । ६. पमग्गे (ख) । ७. ना० १५२।११। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ २६. कक्खंसि अल्लियावेइ', अल्लियावेत्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ', पिहेत्ता सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं रायगिहस्स नगरस्स अवदारेण निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्गकूवए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारयं जीवियानो ववरोवेड. ववरोवेत्ता ग्राभरणालंकारं गेण्टइ. गेण्डिता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरं निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजढं भग्गकूबए पवित्रवइ', पक्खिवित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता निच्चले निष्फंदे तुसिणीए दिवसं खवेमाणे चिट्ठइ ।। देवदिन्नस्स गवेसगा-पदं तए णं से पंथए दासचेडए' तो मुहुत्तंतरस्स जेणेव देव दिन्ने दारए ठविए। तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे [विलवमाणे ? ] ' देवदिन्नस्स दारगस्स सब्बओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ । देवदिन्तस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुई वा पउत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी—एवं खलु सामो ! भद्दा सत्थवाहो देवदिन्नं दारयं पहायं जाव" सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि"दलयइ । तए ‘णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि", गिण्हित्ता सयानो गिहारो पडिनिक्खमामि, बहि डिभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि यसद्धि संपरिवडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगंते ठावेमि, ठावेत्ता बहूहिं डिभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे पमत्ते यावि विहरामि । तए णं अहं तनो मुहत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिन्न दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे [विलवमाणे ?] देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वनो समंता' मग्गण-गवेसणं करेमि । तं न नज्जइ णं सामी ! देवदिन्ने दारए केणइ नीते" वा अवहिते वा अक्खित्ते वा-पायवडिए धणस्स सत्थवाहस्स एयमटुं निवेदेइ ।। १. अलियावेइ (क, ख)। ६. १२२१३४ सूत्र 'रोयमाणे जाव विलवमाणे' २. पेहेइ (क)। इति पाठोस्ति । अत्रापि तथैव युज्यते। ३. चेइयं (क, ग)। १०. ना० ११२:२६ ॥ ४. अववारेण (क)। ११. हत्थे (घ)। ५. निक्खि वइ (ग)! १२. णं हं (ख, ग)। ६. क्षेपयन् (वृ)। १३. सं० पा०—गिण्हामि जाव माणगवेसणं । ७. चेडे (क, ख, घ) १४. नितिए (क, ग)। ८. ठाविए (ख)। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अग्र ण (मंघाडे) ३०. तए णं से धणे सत्यवाहे पंथयस्स दासचेडगस्स एयमटुं सोच्चा निसम्म तेण य महया पुत्तसोएणाभिभूए समाणे परसु-णियत्ते व चंपगपायवे 'धसत्ति' धरणी यलंसि सव्वंगेहिं सणिवइए । ३१. तए णं से धणे सत्थवाहे तो मुहुत्तंत रस्स आसत्थे पच्चागयपाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वग्रो समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कथइ सुई वा खुई वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महत्थं पाहुडं गेण्हइ, गेमिहत्ता जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया! मम पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए देवदिन्ने नामं दारए इट्टे जाव उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तए णं सा भद्दा देवदिन्नं पहायं' सव्वालंकारविभूसियं पंथगस्स' हत्थे दलाइ जाव पायवडिए तं मम निवेदेइ । तं इच्छामि गं देवाणु प्पिया ! देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वनो समंता मग्गण-गवेसणं कयं ।। ३२. तए णं ते नगरगोत्तिया धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा सण्णद्ध-वद्ध वम्मिय-कवया उप्पीलिय-सरासण-पट्टि या पिणद्ध-विज्जा प्राविद्ध-विमलवरचिंध-पट्टा गहियाउह-पहरणा धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि रायगिहस्स नगरस्स "बहस अइगमणसू" यजाव"पवासू य मग्गण-गवेसण करेमाणा रायांगहाम्रो नगरायो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्गबए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजदं पासंति, पासित्ता हा हा अहो ! अकज्जमित्ति कटु देव दिन्नं दारगं भग्गकूवानो उत्तारेंति, धणस्स सत्थवाहस्स हत्थे दलयंति ।। विजयतक्करस्स निग्गह-पदं ३३. तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्गमणुगच्छमाणा" जेणेव १. निसम्मा (क, ख, ग)! ११. बहूणि अइगमणाणि (क, ख, ग, घ)। २. परिसुणियत्ते (ख, घ)। यद्यपि १११११ सूत्रे 'अइगमणाणि य' ३. नगरगोत्तिए (क)। पाठो विद्यते, किन्तु अत्र 'मगण-गवेसणं' ४. ना० ११११०६ । इति पदस्य संबंधेन सप्तम्यन्तो युज्यते, ५. पू०-ना० १०२।२६ । यथा पवासु । इदं पदं द्वितीयान्तं कन ६. पंथदासस्स (ग)। कारणेनात्र कृतमथवा संक्षेपीकरणे गहीत७. ना० शरा२७,२६, मिति न ज्ञातुं शक्यते। ८. करेह (क)। १२. ना० ११२.११। ६. X (ग, वृपा)। १३. पयमग्गमणुगच्छमाणा २ (क); पायमग ' १०. सं० पा०-पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाम्रो मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोढं सगेवेज्जं जीवग्गाह' गेण्हंति, गेण्हित्ता अद्वि-मुद्वि-जाणुकोप्पर-पहार-संभग्ग-महिय-गत्तं करेंति, करेत्ता अवउडा' बंधणं करेंति, करेत्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणं गेहंति, गेण्हित्ता विजयस्स तक्करस्स गीवाए बंधति, बंधित्ता मालयाकच्छगानो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिगचउक्क-पच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु कसप्पहारे य 'छिवापहारे य लयापहारे'' य निवाएमाणा-निवाएमाणा छारं च धूलि च कयवरं च उरि पकिरमाणापकिरमाणा महया-महया सद्देणं उग्घोसे माणा एवं वयंति—एस णं देवाणप्पिया ! विजए नापं तक्करे---- पाव चंडालरूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसियदित्त-रत्तनयणे खरफरुस-महल्ल-विगय-वीभच्छदाढिए असंपुडियउटे उद्ध यपइण्ण-लंबंतमुद्धए भमर-राहुवण्णे निरणुक्कोसे निरणुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरणुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव' एगंतधाराए गिद्धव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव ° सव्वभक्खो बालघायए वालमारए। तं नो खलु देवाणुप्पिया ! एयरस केइ राया वा रायमच्चे वा अवरज्झइ', नन्नत्थ' अप्पणो सयाई कम्माइं अवरज्झति त्ति कट्ट जेणामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हडिबंधणं करेंति, करेत्ता भत्तपाणनिरोहं करेंति, करेत्ता तिसंझ कसप्पहारे य' 'छिवापहारे य लयापहारे य° निवाए माणा विहरंति ।। देवदिन्नस्स नौहरण-पदं ३४. तए णं से धणे सत्थवाहे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि रोय माणे कंदमाणे ° विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरस्स महया इडढीसक्कार-समुदएणं नीहरणं करेति, करेत्ता बहूई लोइयाई मयगकिच्चाई करेति, करेत्ता केणइ कालंतरेणं अवगयसोए जाए यादि होत्था । १. गोवरगाहं (घ)। ५. सं० पा०-तक्करे जाव गिद्धे विव आमिस२. अवउड (ख, घ); अवउडग (वृपा) भक्खी । ३. लयप्पहारे (क); लयापहारे य छिवापहारे ६. वाचनान्तरेत्विदं नाधीयते (व) । य (ख, ग, घ); असौ पाठ: वृत्याधारेण ७. सं० पा०—कसप्पहारे य जाब निवाएमाणा। स्वीकृतः । १।४५ सूत्रेपि अयमेव क्रमो ८, सं० पा.-रोयमाणे जाव विलवमागे। लभ्यते। है. सरीरयस्स (क)। ४. पयरमाणा (क)। १०. मयकिच्चाई (क)। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अभयणं (संघाडें) धणस्स नग्गह-पदं ३५. तए णं से धणे सत्यवाहे अण्णया कयाई लहुरायंसि रायावरास संपलित्ते' जाए यावि होत्या || ३६. तए णं ते नगरगुत्तिया धणं सत्थवाहं गेव्हंति, गेव्हित्ता जेणेंव चारए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता चार अणुप्पवेसंति, ग्रणुप्पत्रेसित्ता विजएणं तक्करेणं सद्धि एगयो हडिवंधणं करेति || धणस्स घराम्रो श्राहाराणयण-पदं ३७. तए णं सा भद्दा भारिया कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्म दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उबक्खडेइ, "भोयणविडयं करेइ", करेत्ता भोयणाई पक्खिवाइ, लंछिय मुद्दिय करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि [ वर ? ] वारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धणस्स सत्यवाहस्स उवणेहि ॥ ३८. तए ण से पंथए भद्दाए सत्यवाहीए एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारिपsिपुण्णं दगवारयं गेहइ, गण्हित्ता सयाओ गिहाश्री पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमिता राहगिहं नगरं मज्भंमज्भेण जेणेव चारगसाला जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भीषणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंघेत्ता भोयणं गेहइ, गेण्हित्ता भायणाई ठावई, ठाक्त्तिा हत्थ सोयं दल, दलइत्ता धणं सत्यवाहं तेणं विपुलेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं परिवेसेइ || विजयतक्करेण संविभाग मग्गण-पद ३६. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्यवाहं एवं वयासी --तुब्भे णं देवाणुपिया ! ममं या विपुलाओ असण- पाणखाइम साइमाओ संविभागं करेहि । धणस्स तन्निसेध-पदं ४०. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी - अवियाई ग्रहं विजया ! एवं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं कायाण वा सुणगाण वा दलएज्जा, उक्कुरुडियाए वा णं छड्डेज्जा, नो चेव णं तव पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स रिस्स वेरियस पडणीयस्स पच्चामित्तस्स एत्तो विपुलाओ असण-पाणखाइम- साइमात्र संविभागं करेज्जामि ॥ १. संपलत्ते (क, वृ) । २. ना० १।१।२४ । ३. भोयणं पिडए करेइ (क, वृपा); ° पिडयं भरेइ (वृपा) । ४. धावइ ( ख ) ; धोवइ (ग, ५. पडिणीयस्स ( ग, घ ) । ६. करेज्जासि (क, ग) । 码头 1 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहानी ४१. तए णं से धणे सत्थवाहे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं प्राहारेइ, तं पंथयं पडिविसज्जेइ ॥ ४२. तए णं से पंथए दासचेडए तं भोयणपिडगं' गिण्हइ, गिण्हित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ पाबाधितस्स धणस्स विजयतक्करावेक्खा-पदं ४३. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पाहारियस्स समाणस्स उच्चार-पासवणे णं उब्वाहित्था ॥ ४४. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी -एहि ताव विजया' ! एगंतमवक्कमामो 'जेणं अहं' उच्चार-पासवणं परिवेमि ॥ विजयतक्करेण तन्निसेध-पदं ४५. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी- तुझं देवाणुप्पिया ! विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पाहारियस्स अत्थि उच्चारे वा पासवणे वा, ममं णं देवाणुप्पिया ! इमेहिं वहूहिं कसप्पहारेहि य छिवापहारेहि य° लयापहारेहि य तण्हाए य छुहाए य परज्झमाणस्स नत्थि केइ उच्चारे वा पासवणे वा । तं छंदेणं तुमं देवाणुप्पिया! एगते अवक्कमित्ता उच्चार-पासवणं परिवेहि ॥ ४६. तए णं से धणे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिदुइ।। धणेण पणो कथिते विजएण संविभागमगण-पदं ४७. तए णं से धणे सत्थवाहे मुहत्ततरस्स बलियतरागं उच्चार-पासवणेणं उब्वाहि ज्जमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी-एहि ताव विजया ! 'एगंतमवक्कमामो जेणं अहं उच्चार-पासवणं परिढुवेमि ॥ ४८. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी- जइ णं पुमं देवाणुप्पिया ! ताप्रो विपुलामो असण-पाण-खाइम-साइमाग्रो संविभागं करेहि, तनोहं तुमेहि सद्धि एगंतं अवकमामि ॥ ४६. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं बयासी--'अहं णं तुम तानो असण-पाण-खाइम-साइमामो संविभागं करिस्सामि । १. भोषणपडिग्गहं (ख) । २. विजया एत्तो (क)। २. जाव णं अहं ताव (क); जा णं ० (ख, घ) ४. तुझ ण (क)। ५. X(क, ख, ग, घ)। ६. सं०पा०-कसप्पहारेहि य जाव लयापहारेहि। ७. परभवमाणस्स (क, घ)। ८. X(क, ख)। ६. स० पा०-विजया जाव प्रवक्कमामो। १०. अहण्णं (क, घ); ११. तुम (घ)। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौय अज्झपणं (संघाडे) ५०. तए णं से विजए तक्करे धणस्स सत्थवाहस्स एयमढे पडिसुणेइ । ५१. तए णं से 'धणे सत्थवाहे विजएण तक्करेण सद्धि एगते अवक्कमइ, उच्चार पासवणं परिटुवेइ, प्रायते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ ।। धणेण विजयस्स संविभागदाण-पदं ५२. तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेइ, भोयणपिडयं करेइ, करेत्ता भोयणाइं पक्खिवइ, लंछिय-मुद्दियं करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि [वर ?] वारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धणस्स सत्थवाहस्स उवणेहि ।। ५३. तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हद्वतुझे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं जेणेव चारगसाला जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता भायणाई ठावइ, ठावित्ता हत्थसोयं दल यइ, दलइत्ता धणं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं ° परिवेसेइ।। ५४. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलामो असण-पाण खाइम-साइमाप्रो संविभागं करेइ॥ पंथगस्स भदाए साटोवं तन्निवेदण-पदं ५५. तए णं से धणे सत्यवाहे पंथगं दासचेडयं विसज्जेइ ।। ५४. ताणं से पंथए भोयणपिडयं गहाय चारगामी पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भद्दा सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भई सत्थवाहिं ? ] एवं क्यासी-एवं खलु देवाणप्पिए ! धणे सत्थवाहे तव पुत्तघायगस्स' 'पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ॥ भद्दाए कोव-पदं ५७. तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयम, सोच्चा ४. विजए धणेण सत्यवाहेण (क, ख, ग)। १. ना० १११।२४ । २. सं० पा०–असणं जाव परिवेसेइ । १. सं० पा०-पुत्तघायगस्स जाव पच्चा मित्तस्स । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाओ प्रासुरुत्ता रुट्ठा' 'कुविया चंडिक्किया• मिसिमिसेमाणी धणस्स सत्थवाहस्स पोसमावज्जइ।। धणरस चारमुत्ति-पदं तए णं से धणे सत्यवाहे अण्णया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेगं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्म कारवेइ जेणेव पोखरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्खरिणी अोगाहइ, प्रोगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता पहाए कयवलिकम्मे 'कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए रायगिहं नगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । धणस्स सम्माण-पदं ५६. तए णं तं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासित्ता रायगिहे नयरे वहवे नगर-निगम - सेदि-सत्थवाह-पभिइनो प्रादति परिजाणंति सक्कारेंति सम्माणेति अब्भद्रुति सरीरकुसलं पुच्छंति ॥ ६०. तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। जावि य से तत्थ वाहिरिया परिसा भवइ, तंजहा-दासा इ वा पेस्सा इ वा भयगा इ वा भाइल्लगा' इवा, सा वि य णं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पायवडिया खेमकुसलं पुच्छइ'। जावि य से तत्थ अभंतरिया परिसा भवइ, तंजहा--माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भइणी इवा, सावि य णं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, आस णायो अभइ, कंठाठियं अवयासिय" बाह-प्पमोवखणं करेइ ॥ भद्दाए कोवोवसमपटवं सम्माण-पदं ६१. तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ ।। १. सं० पा०-रुट्ठा जाब मिसिमिसेमाणी! २. कारेति (ख); करावेई (घ)। ३. अदायमट्टियं (क्व०)।। ४. सं० पा०-करलिकम्मे जाव रायगिहं । ५. नागर (ग)। ६. नियमे (क); नियग (ग)। ७. पाढायंति (क) । ८. भइगा (क, ग, घ)। ६. भातिल्लगा (ग)। १०. अभितरिया (ग, घ)। ११. अवदासिय (ग, घ)। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौयं अज्झयणं (संघा.) ६२. तए णं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परिजाणइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परम्मुही संचिद्वइ ।। ६३. तए णं से धणे सत्थवाहे भई भारियं एवं वयासी--किण्णं तुझ देवाणु प्पिए ! न तुद्री वा न हरिसो वा नाणंदो वा, ज मए सएणं अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पा' विमोइए। ६४. तए णं सा भद्दा धणं सत्यवाहं एवं बयासी--कहं ण देवाणुप्पिया! मम तुट्टी वा 'हरिसो वा आणंदो वा भविस्सइ? जेणं तुम मम पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स° पच्चामित्तस्स तानो विपुलायो असण-पाण-खाइम-साइमाप्रो संविभाग करेसि ।। ६५. तए णं से धणे सत्यवाहे भई भारियं एवं वयासी- नो खलु देवाणुप्पिए ! धम्मो त्ति वा तवोत्ति वा 'कय-पडिकया इ वा” लोगजत्ता इ वा नायए इ वा 'घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा [विजयस्स तक्करस्स?] तायो विपुलाप्रो असण-पाण-खाइम-साइमामो संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरचिताए । ६६. तए णं सा भद्दा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणी हतुद्ध-चित्तमाणंदिया जाव" हरिसवस-बिसप्पमाणहियया आसणाओ अभटेइ, अभट्ठत्ता कंठाठि अवयासे ३.५ खेमकुसलं पुच्छइ, पुच्छित्ता बहायार कायलिकम्मा कय-कोउय मंगल ° -पायच्छित्ता विपुलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ ।। विजय-णायस्स निगमण-पदं ६७. तए णं से विजए तक्करे चारगसालाए तेहिं बंधेहि य वहेहि य कसप्पहारेहि य" •छिवापहारेहि य लयापहारेहि य ° तहाए य छुहाए य परज्झमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उववणे । १. परियाणाइ (क, ख); परियाणइ (ग, घ)। न स्पष्टं भवति : ७५ सूत्रे 'जाव विजयस्स २. तुम्भं (क्व०)। तक्करस्स ताओ विपुलाओ' इति पाठो ३. रज्जकज्जाओ (ग, ध)। विद्यते । तस्य पूर्तिः प्रस्तुतसूत्रेणव जायते। ४. अप्पाणं (ख)। एतेन प्रतीयते अत्रापि 'विजयस्स तक्करस्स' ५. सं० पा०—तुदी वा जाव आणंदो। इति पाठः आसीत्, किन्तु केनापि कारणे६. सं० पा०-पुत्तघायगस्स जाव पच्चा- नासौ त्रुटितोभूत् । मित्तस्स। १०. ना० १।१।१६। ७. कयपडिकइया वा (क); कयाइपडिकईया ११. कंठाठि (ख, ग)। बाला (घ)। १२. अवभासेइ (ख); अवतासेइ (ग, घ)। ८. घोडयए इ वा (क ख); संघाडियाए वा १३. सं० पा०—ण्हाया जाव पायच्छित्ता । १४. सं० पा०-कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए । ६. अस्मिन् सूत्रे कस्मै संविभागो दत्तः इति Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहानी से णं तत्थ ने रइए जाए काले कालोभासे' गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकण्हे वण्णेणं । से णं तत्थ निच्चं भीए निच्चं तत्थे निच्चं तसिए निच्चं परमऽसुहसंबद्धं नगरगति • वेयणं पच्चणब्भवमाणे विहर।। से णं तनो उव्वट्टित्ता अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सइ॥ ६८. एवामेव जंबू ! जो णं अम्हं निगंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ' अणगारियं पव्वइए समाणे विपुलमणि मोत्तिय-धण-कणग-रयणसारेणं लुब्भइ, सो वि एवं चेव ।। धण-णायस्स निगमण-पदं ६९. तेण कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा जाव' पुन्वाणुपुन्वि चरमाणा' *गामाणुगाम दुइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए' 'तेषामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता प्रहा पडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगि हिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति ।। ७०. परिसा निग्गया धम्मो कहियो॥ ७१. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स बहुजणस्स अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पथिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्थाएवं खलु थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा" इहमागया इहसंपत्ता । तं गच्छामि ?" णं थेरे भगवंते वदामि नमसामि [ एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ??] १. सं० पा-कालोभासे जाव वेयणं । २. X (क, ख, ग)। ३. आगाराप्रो (ख, घ)। ४. मुत्तय (ख, ग)। ५. ना० १।१।४। ६. सं० पा०-चरमाणा जाव जेणेव । ७. संपा०---चेइए जाब अहापडिरूवं । ५. निसम्मा (क, ख, ग)। ९. सं० पा०-अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था। १०. पू०-ना० १२१२४ ११,१२. इच्छामि (क, ख, ग, घ); पाठसंशोधन प्रयुक्तेपु आदर्शषु तथा मुद्रितपुस्तकेष्वपि 'इच्छामि' इति पाठो लभ्यते, किन्तु अन्यागमानामेतत्तुल्यप्रकरणसमीक्षयाऽत्र 'गच्छामि' इति पाठः उपयुक्तः प्रतिभाति । एवमेव एवं संपेहेइ, सपेहित्ता' इति संयोजक: पाठोपि बहुषु आगमेषु लभ्यते। अत्रापि इत्थमेव युज्यते। अत्र संभाव्यते लिपिदोषेण वर्णपरिवर्तनं जातम्, तेन 'गच्छामि' स्थाने 'इच्छामि' इति जातम् । उत्तरोत्तरमेष एव पाठ: प्रचुरेषु आदर्शषु संक्रान्तोभूत् । संक्षेपीकरणपद्धते: कारणेन 'एवं संपेहेइ, संपेहित्ता' इति पाठोत्रालिखितोस्ति । उक्तप्रकरणानुसारी पाठः 'उवासगदसाओ' (११२०) सूत्रे इत्थमस्ति--तं गच्छामि णं Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अग्भयणं (संचा) ण्हाए' कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए पायविहारचारेण जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ ।। ७२. तए णं थेरा भगवंतो धणस्स विचित्तं धम्ममाइक्खंति ।। ७३. तए णं से धणे सत्थवाहे धम्म सोच्चा एवं वयासी सहामिण भंते ! निग्गंथं पावयण'। •पत्तियामिण भंते ! निगथं पावयणं । रोएमि ण भंते ! निगथं पावयणं । अन्भुट्टेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कट्ट थेरे भगवते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जाव पव्वइए जाव' बहूणि वासाणि सामग्णपरियागं पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खाइत्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता?], सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तस्स णं धणस्स देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई। ७४. से णं धणे देवे तारो देवलोगानो आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ॥ ७५. जहा णं जंबू ! धणेणं सत्थवाहेणं नो धम्मो त्ति वा 'तवो त्ति वा कय पडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाप्रो असण-पाण-खाइम-साइमामो संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्ठाए।" ७६. एवामेव जंबू ! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निगंथी वा पायरिय-उवझायाणं देवाण प्पिया! समणं भगवं महावीरं ६. छेदइत्ता (ग, घ)। बंदामि णमसामि सक्कारेमि सम्मामि ७. तत्थ (ख, ग, घ)। कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जूवासामि- ८. ठिई पण्णत्ता (क, ख)। एवं सपेहेइ, सपेहित्ता हाए। ६. ना० शश२१२ । १. सं० पा०-हाए जाव सुद्धप्पावेसाई। १०. स० पा०-धम्मो ति वा जाव विजयस्स । २. विभक्तिरहितं पदम् । ११. ° सारक्खणट्टयाए (ख); सरीररक्खणट्टाए ३. सं० पा०-पावयणं जाव पव्वइए। ४, ५. भग० ६।३३। १२. सं.पा.---निग्गथे वा जाव पव्वइए। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाओं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए समाणे ववगय-हाणुमद्दणपुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे' इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहेउं वा 'नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउ वा तं विपुलं' असणं पाणं खाइमं साइम आहारमाहारेइ, नण्णत्थ नाणदंसणचरित्ताणं वहणट्टयाए, से णं इहलोए चेव वहणं समणाणं बहण समणीणं बहण सावगाणं वहणं सावियाण य अच्चणिज्जे •वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं विणएणं° पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हियय उपायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, 'पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकतारं ० वीईवइस्सइ - जहा व से धणे सत्थवाहे ।। निक्खेव-पदं ७७. एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं दोच्चस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते--त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा सिवसाहणेसु आहार-विरहियो जं न बट्टए देहो। तम्हा धणो व्व विजयं, साहू तं तेण पोसेज्जा ॥१॥ १. विभूसिते (ख, ग)। २. रूवहेउ वा बलविसयहेउं वा (क, ख, ग, घ)। असोपाठ-संघटना १1१८६१ सुत्रस्या- धारेण कृतास्ति । ३, ४. X (क, ख, ग, घ)। ५. सावगाण य (क, ख, ग)। ६. सं०पा.-.-अच्चणिज्जे जाव पज्जुवास णिज्जे। ७. ° उप्पाडणाणि य (क)। ८. अणाईयं (ख, घ); अशातीतं (ग)। ६. सं० पा०-दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ। १०. ना० १११७। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं अज्झयणं अंडे उक्खेव-पद १. जइ णं भंते ! समजेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स अज्झयणस्स नायाधम्म कहाण अयम? पण्णते, तच्चस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्रे 'पण्णते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समए णं चंपा नामं नयरी होत्था - वणयो। ३. तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नाम उज्जाणे-'सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे'' सुरम्मे नंदणवणे' इव सुह-सुरभि सीयलच्छायाए समणुबद्धे ।। ४. तस्स णं सुभूमि भागस्स उज्जाणस्स उत्तरो' एगदेसम्मि मालुयाकच्छए होत्था–वण्णनो॥ मयूरी अंड-पदं ५. तत्थ णं एगा वणमयूरी दो पुढे परियागए पिटुंडी'-पंडुरे' निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्ठिप्पमाणे मयूरी-अंडए पसवइ, पसवित्ता सएणं पक्खवाएणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी' संविट्ठमाणी विहरइ ॥ १. ओ० सू०१। ४. उत्तर (क, ख, ग)। २. सब्बोउए (व); सव्वोउय (क, ख, ग, घ, ५. ना० १५२१६॥ वपा); बत्तिकृता अत्र द्वयोरपि पाठयोः ६. पिपिडी (क) बत्ती पिष्टस्य-शालिलोटस्य समीक्षा कृतास्ति यथा-सव्वोउएत्ति - उडी-पिडी' इति व्याख्यातमस्ति । असौ सर्वे ऋतवो वसन्तादयः, तत्संपाद्यकुसुमादि- व्याख्यांशः मूलपाठे पि संक्रान्तः । भावानां वनस्पतीनां सद्भावात, यत्र ७. पंडरे (क, ग)। तत्तथा । वचित् 'सव्वोउयत्ति' दृश्यते ८. सतेणं (ख. घ)। तेन च 'सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे' इत्येतत् ६. संगोवमाणी (ख); संगोयमाणी (ग)। सूचितम् (वृ)। १०. संचिट्ठ माणी (क); संचि?माणी (ख, ग, ३. नदणे वणे (ख)। घ); असौ पाठः वृत्त्याधारण स्वीकृतः । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ नायाधम्मकहाओ सस्थवाहदारग-पदं ६. तत्थ णं चंपाए नयरीए दुवे सत्थवाहदारगा परिवसंति, तं जहा--जिणदत्तपुत्ते' य सागरदत्तपुत्ते य -सहजायया सहवड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्तया अण्णमण्णमणु व्वयया' अण्णमण्णच्छंदाणु वत्तया अण्णमण्णहिय-इच्छियकारया अण्णमण्णेसु गिहेसु किच्चाई करणिज्जाई पच्चणु ब्भवमाणा विहरति ।। ७. तए णं तेसि सत्यवाहदारगाणं अण्णया कयाइं एगयो सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सण्णि विट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्थाजण्णं देवाणुप्पिया ! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्हेहिं एगयनो समेच्चा नित्थरियव्वं ति कटु अण्णमण्ण मेयारूवं संगारं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यादि होत्था ।। देवदत्ता गणिया-पदं ८. तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिग्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणा बहुंधण-जायरूव-रयया प्रायोगपभोग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसटूिगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय - भणिय-चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव-निउणजुत्तोवयारकुसला ऊसियज्झया सहस्सलभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। वहणं गणियासहस्साणं" आहेवच्चर •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणी पालेमाणी महयाऽाहय-तट्ट-गीय-वाइय-तंतीतल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी' विहर।। १. ° उत्ते (ग)। १०. सं० पा०--संगयगयहसिय (अतोने वृत्ती २. ° उत्ते (ग)। वाचनान्तरं लभ्यते-वाचनान्तरे त्विदम३. ° मणुव्वया (ग)। धिकम्--सुंदरथण-जघण-वयण-चरण-नयण लावण्ण-रूव-जोव्वणविलासकलिया (व)। ४. तिच्छियकारया (ख, ग, घ)। ओवाइय-वाचनान्तरे किंचिदभेदोस्ति५. समुवगयाणं (क, ख, ग) : द्रष्टव्यम्-ओवाइयं पृष्ठ १३६ । ६. संहिच्चा (वृपा)। ११. सहस्सीणं (ख)। ७. संगरं (वृपा)। ८. सं० पा०-अड्डा जाव भत्तपाणा। १२. सं० पा०-आहेवच्चं जाव विहरइ । ६. एक्कवीसं (क)। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं अज्झयणं (अंडे) सत्यवाहदारगाणं उजाणकोडा-पदं ६. तए णं तेसिं सत्थवाहदारगाणं अण्णया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि जिमिय भुत्तुत्तरागयाणं समाणाणं प्रायंताणं चोक्खाणं परमसुइभूयाणं सुहासणवरगयाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था---सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते कोडुबियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेह, उववखडेत्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता नंदाए पोक्खरिणीए' अदूरसामते थूणामंडवं' पाहणह-आसियसम्मज्जियोवलितं 'पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झत-सुरभि-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं ° करेह, करेत्ता अम्हे पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह जाव चिट्ठति ॥ १०. तए णं ते सत्थवाहदारगा दोच्चंपि कोडुवियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव [भो देवाणुप्पिया ! ?] 'लहुकरण-जुत्त-जोइयं“ समखुरवालिहाण-'समलिहिय-तिक्खग्गसिंगएहि रययामय-घंट-सुत्तरज्जु-पवरकंचण १. कुव्वावरद्ध° (क)। 'सम्मज्जिोवल्लित्तं जाव सुगंधवरगंधिय' २. ना० १११।२४। अस्ति, तथैव अत्रापि 'सम्मज्जिओवलितं ३. x (ख, ग, घ)। जाव गंधवद्विभूयं' इति संक्षेप: उपयुक्तः ४. तेणामेव (क, ग, घ)। स्यात् । 'सम्मज्जिओवलितं' इति पाठानन्तरं ५. पुक्खरिणीए (क, ख)। 'सुगंध' इति पदं क्वापि नोपलभ्यते । ६. थूण ° (ख)। ८. लहुक रणजुत्त एहिं जोइयं (वृपा)। ७. सं० पा०-सम्मज्जिओवलितं सुगंधं जाव ६. समलिहियं तिक्वसिंग एहिं (क, घ); कलियं (क, ख, ग, घ); अत्र पाठसंक्षेपे समलिहिय-सिंगएहि । कश्चिद विपर्यय: संभाव्यते । १११२३३ सूत्रे Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ खचिय-नत्थपग्गहोग्गहियाहिं' नीलुप्पलकयामेलएहिं पवर-गोण-जुवाणएहिं 'नाना-मणि-रयण-कंचण-घंटियाजालपरिक्खित्तं" पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव पवहणं उवणेह । ते वि तहेव उवणेति ।। ११. तए णं ते सत्थवाहदारगा व्हाया 'कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता अप्पमहग्घाभरणालंकिय ° सरीरा पवहणं दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिह अणप्पविसंति ।। १२. तए णं सा देवदत्ता मणिया ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हडतुट्ठा पासणानो अब्भुटेइ, अब्भुटेत्ता सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता ते सत्थवादारए एवं क्यासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमिहागमणप्प प्रोयण ? १३. तए णं ते सत्यवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी-इच्छामो णं देवाणप्पिए ! तुमे सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरित्तए । १४. तए णं सा देवदत्ता तेसिं सत्थवाहदारगाणं एयभद्रं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता व्हाया कयबलिकम्मा जावसिरी-समाणवेसा जेणेव सत्यवाहदारगा तेणेव उवागया। १५. तए णं ते सत्थवाहदारगा देवत्ताए गणियाए सद्धि जाणं दुरुहंति, दुरुहित्ता चंपाए नयरीए मज्झमझेणं जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणानो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता नंद (जंबूणयामय-कलाव-जुत्त-पइविसिट्टएहिं । ४. सं० पा० - हाया जाव सरीरा । उवासगदसाओ ११४०) । वृत्तौ---जंबूणया- ५. गेहे (ख)। मय' इति पाठो वाचनान्तरत्वेन ६. गेहे (क, ५) ।। उल्लिखितोस्ति। ७. पयोयणं (ख); पतोयणं (घ) । १. वग्गहियएहि (क); °वगहोवग्गहिएहि ८. तुम्हेहिं (ग); तुन्भेहिं (क्वचित्) । (ख, ग) ६. कयबलिकम्मा किं ते (क); कयबलिकम्मा २. X (क)। किं ते पवर (ग); कयवलिकम्मा किं ते वर ३. नाणा-मणि-कणग-पंटियाजालपरिगयं सुजाय- (घ)। जुग-जुत्त-उज्जुग - पसत्थ - सुविरइय-निम्मियं १०. ना० १।१।३३ । (उवासगदसायो १४७)। वृत्ती- ११. उवागच्छंति (ख); समागया (घ) । ० 'सुजायजग' ० इति पाठः वाचनान्तरत्वेन १२. नंदा (ख)। उल्लिखितोस्ति । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं अज्झयणं (अंडे) पोखरिणि प्रोगाहेंति, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेत्ता जलकिडं करेंति, करेत्ता ण्हाया देवदत्ताए सद्धि [नंदानो पोक्खरिणीमो ? ] पच्चुत्तरंति, जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता [थूणामंडवं' ? ] अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता सव्वालंकारभूसिया आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धि तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धूव-पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परि जेमाणा एवं च णं विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा [आयंता चोक्खा परमसुइभूया' ?] देवदत्ताए सद्धि विपुलाइं कामभोगाई भंजमाणा विहरति ।। १६. तए णं ते सत्थवाहदारगा पुत्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धि थूणामंडवायो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता हत्थसंगेल्लीए' सुभूमिभागे उज्जाणे बहूसु ग्रालिघरएसु य' 'कलिघरएसु य लताघरएसु य अच्छणधरएसु य पेच्छणघरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघर एसु य ° कुसुमधरएसु य उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ॥ सत्यवाहदारगेहि मयूरीअंडगाणयण-पदं १७. तए णं ते सत्थवाहदारगा जेणेव से मालुयाकच्छए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १८. तए णं सा वणमयूरी ते सत्थवादारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता भीया तत्था महया-महया सद्देणं केकारवं विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी'' माल्याकच्छाप्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता एगंसि रुक्खडालयंसि ठिच्चा ते सत्थवाहदारए मालुयाकच्छगं च अणिमिसाए दिट्ठीए पेच्छमाणी चिट्ठइ ।। १६. तए णं ते सत्थवाहदारगा अण्णमण्ण सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पिया! एसा वणमयूरी अम्हे एज्जमाणे पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा पलाया महया-महया सद्देण२ •केकारवं विणिम्मुयमाणीविणिम्मुयमाणी मालुयाकच्छाप्रो पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता एगंसि १. द्रष्टव्यम् --१।२११४ सूत्रस्य--पुक्खरिणीग्रो क्वचित् कदलीगृहादिपदानि यावच्छब्देन पच्चोरुहइ-इति पदम् । सूच्यन्ते (वृ)। २. द्रष्टव्यम्-११३६११ सूत्रस्य-देवदत्ताए ६. केक्कारवं (क, ख, घ)। गणियाए गिहं अणुप्पविसंति-इति पदम् । ७. 'विणिमुयमाणी-विणिमुयमाणी (ग)। ३. द्रष्टव्यम्-१३।६।। ८. ° डालंसि (घ)। ४. संगिल्लीए (क, घ)। ६. कच्छ (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-आलिघरएसु य जाव कुसुमघर- १०. देहमाणी (क, ग, घ) । एसु । वृत्तिकृत्ता पूर्णः पाठो व्याख्यातः, ११. जया (क) । संक्षिप्तपाठस्य सूचनापि कृतास्ति, यथा- १२. सं० पा०–सेद्देणं जाव अम्हे । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ नायाधम्मकहाओ रुक्खडालयंसि ठिच्चा ' अम्हे मालुयाकच्छयं च [अणिमिसाए दिट्ठीए ?] पेच्छमाणी चिट्ठइ, तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं ति कटु मालुयाकच्छयं अंतो अणुप्पविसंति । तत्थ णं दो पुढे परियागए' •पिट्टेडी-पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्टिप्पमाणे मयूरी-अंडए° पासित्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी--सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमे वणमयूरी-अंडए साणं जातिमताणं' कुक्कुडियाणं अंडएसु पक्खिवावित्तए । तए णं तानो जातिमंतानो कुक्कुडियानो एए अंडए सए य अंडए सएणं पंखवाएणं सारक्खमाणीप्रो संगोवेमाणीयो विहरिस्संति। तए णं अम्हं एत्थं दो कीलावणगा मयूरी-पोयगा भविस्संति त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सए सए दासचेडए' सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! इमे अंडए गहाय सगाणं जातिमंताणं कुक्कुडीणं अंडएसु पक्खिवह जाव ते वि पक्खिवेति ॥ २०. तए णं ते सत्थवादारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरित्ता तमेव जाणं दुरूढा समाणा जेणेव चंपा नयरी जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदत्ताए गिहं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दलइत्ता सक्कारेति सम्माणति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता देवदत्ताए गिहाम्रो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव साइंसाई गिहाइं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था ॥ सागरदत्तपुत्तस्स संदेहेण अंडयविणास-पदं २१. तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवादारए से णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणय रे तेयसा जलते जेणेव से वणमयूरीअंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरो-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिछसमावपणे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं मम एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ ? त्ति कटु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणंअभिक्खणं उब्वत्तेइ परियत्तेइ प्रासारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलसि टिट्टियावेइ"। १. कच्छक (क); कच्छगं (ग)। २. पेहमाणी (क, घ); पिच्छमाणी (ग)। ३. सं० पा०-परियागए जाव पासित्ता। ४. जायमेत्ताणं (क)। ५. एत्य (घ)। ६. दासचेडे (क)। ७. एह गच्छह (क)। ८. सागरदत्तस्स पुत्ते (ग)। ६. ना० १३१४२४। १०. किलावण (ख, ग, घ)। ११. डिंडियावेइ (क); डिट्टियावेइ (ख)। टिट्टियारेइ (ग)। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं अज्झयणं (अंडे) २२. तए णं से मयूरी'-अंड { अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे •परियत्तिज्ज माणे प्रासारिज्जमाणे संसारिज्जमाणे चालिज्जमाणे फंदिज्जमाणे घट्टिज्जमाणे खोभिज्जमाणे अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि ° टिट्टियावेज्जमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था । २३. तए णं से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए अण्णया कयाइं जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं मयूरी-अंडयं पोच्चडमेव पासइ, अहो णं ममं एत्थ कोलावणा मयूरी-पोयए न जाए त्ति कटु अोह्यमण" संकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए ° झियाइ । २४. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइए समाणे पंचमहन्वएसू छज्जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे संकिए' किंखिए वितिगिछसमावण्णे भेयसमावण्णे ° कलुससमावण्णे, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं वहूणं" सावगाणं बहूर्ण" सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडगाणि य" 'बहूणि मुंडणाणि य बहूणि तज्जणाणि य बहूणि तालणाणि य बहूणि अंदुबंधणाणि य बहूणि घोलणाणि य बहुणि माइमरणाणि य बहूणि पि इमरणाणि य बहूणि भाइमरणाणि य बहूणि भगिणीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य बहूणि पुत्तमरणाणि य बहूणि धूयमरणाणि य बहूणि सुण्हामरणाणि य, बहणं दारिदाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पियविप्पप्रोगाणं बणं दुक्ख-दोमणस्साणं प्राभागी भविस्सति, अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो' अणुपरियट्टिस्सइ" ॥ १. वणमयूरी (ग, घ)।। ११. X (क, ख, ग)। २. सं० पा० --उवत्ति ज्जमाणे जाव टिट्टिया- १२. परभवणिज्जे (क, ख, घ); भगवती वेज्जमाणे। (५।८१) सूत्रे 'गरहह अवमन्नह' इति ३. पोच्चडमेयं (ख)। पदमस्ति । ४. सस्थवाह (क, ख, ग)। १३. सं० पा०--दंडणाणि य जाव अणपरिया। ५. सं० पा०-ओहयमण जाव झियायइ । १४. अणुपरियट्टइ (क, ख, ग, घ) । 'भविस्सति' ६. झियायइ (ख, घ); झायति (ग) । इति क्रियापदस्यानन्तरं 'अणुपरियट्टिस्सइ' ७. पव्वज्जिते (ख); पव्वतिए (ग, घ)। इति पाठो युज्यते । सप्तमाध्ययनस्य २७ ८. महब्बए (ख, ग, घ)। सूत्रेऽपि एवमेव पाठो लभ्यते । तेनात्रापि ६. सं० पा०-संकिए जाव कलुससमावण्णे। तथैव स्वीकृतः । १०, X (ख, ग)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० जिणदत्तपुत्तस्स सद्धाए मयूर लद्धि-पदं २५. तए णं से जिणदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी - अंडयंस निस्संकिए [निक्कखिए निव्वितिगिछे ? ] ' 'सुव्वत्तए मम एत्थ की लावणए मयूरी पोयए भविस्सइत्ति कट्टु तं मयूरी- अंडयं अभिक्खणं प्रभिक्खणं नो उव्वत्तेइ नो परियत्तेइ नो प्रासारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं प्रभिक्खणं कण्णमूलंसि • नो टिट्टियावेइ | २६. तए णं से मयूरी - अंडर अणुब्वत्तिज्जमाणे जाव' अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं समणं उब्भिन्ने मयूरी - पोयए एत्थ जाए || २७. तए णं से जिणदत्तपुत्ते तं मयूरी- पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतु मयूर - पोसए सद्दावेs, सहावेत्ता एवं वयासी तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! इमं मयूर-पोयगं बहूहि मयूर - पोसण - पाओगेहि दव्वेहिं ग्रणुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवढेह', नदुल्लगं च सिक्खावेह ॥ २८. तए णं ते मयूर-पोसगा जिणदत्तपुत्तस्स एयमट्ठ पडिसुर्णेति तं मयूर - पोयगं गेव्हंति, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, तं मयूर - पोयगं" "वहूहि मयूरपोसण-पात्रोग्गेहि देहि श्रणुपुब्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवढेति, नदुल्लगं च सिवखावेंति ॥ २६. तए णं से मयूर - पोयए उम्मुक्कबालभावे विष्णयः- परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते लक्खण वंजण- गुणोवए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण पक्ख- पेहुणकलावे 'विचित्तपिच्छसतचंदए" नीलकंठए नच्चणसिीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए गाई नदुल्लगसयाई केकाइयस्याणि " य करेमाणे विहरड़ || ३०. तए णं ते मयूर - पोसगा तं मयूर पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव के काइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता णं तं मयूर - पोयगं गेहंति, गेण्हित्ता जिणदत्त पुत्तस्स उवर्णेति ॥ ! ३१. तए णं से जिणदत्तपुत्ते सत्यवाहदारए नायाधम्मक हाओ मयूर - पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव' १. द्रष्टव्यम् -- ३४ सूत्रम् । ८. सं० पा० - मयूरपोयगं जाव नदुत्लगं । २. सुव्वत्तणं ( क, घ); x ( ख ); सुद्धत्तणं ६. विन्नाण ( क ) ; विन्नाय ( ख, ग, घ ) । १०. विचित्त पिच्छोसत्त चदए ( ख, ग, वृपा ) 1 केयाइगु ० (ग) | ३. सं० पा०-- उब्वत्तेइ जाव नो टिट्टियावेइ । ११. केयाणियगसइयाई ( ख, ग ); केकातित ४. ना० १/३/२५ ५. उभिन्न ( ग ) | ६. संवह (क, ख, ग, घ ) । ७. नउल्लगं (ग); नट्टल्लगं (घ) । १२. ना० १।३।२६ । १३. ना० १/३/२६ (क); (घ) । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्च अज्झयणं (अंडे) १०१ केकाइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता हद्वतुट्टे तेसि विपुलं जीवियारिहं पीइटाण' "दलय इ, दलइत्ता पडिदिसज्जेइ ।। ३२. तए णं से मयूर-पोयगे जिणदत्तपुत्तेणं एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए नंगोला-भंग-सिरोधरे सेयावंगे' सोयारिय-पइण्णपक्खे उक्खित्तचंदकाइय-कलावे केक्काइयसयाणि मुंचमाणे नच्चइ ।। ३३. तए णं से जिणदत्तपुत्ते' तेणं मयूर-पोयएणं चंपाए नयरीए सिंघाडग'-तिग चउक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापह ° पहेसु सएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सि एहि य पणिएहि जयं करेमाणे विहर।। ३४. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निरगंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्व इए समाणे पंचमहब्वएसु छज्जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निवितिगिछे', से णं इहभवे चेव बहूणं समणाण "बहणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूर्ण सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ। परलोए वि य णं नो वहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयगाणि य एवं-हियय उपायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ ।। निक्खेव-पदं ३५. एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं प्राइगरेणं तित्थगरेणं जाव'' सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्तेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स" अयमद्धे पण्णत्ते । —त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जिणवरभासियभावेसु, भावसच्चेसु भावो मइमं । नो कुज्जा संदेहं, संदेहोऽणत्थहेउ त्ति ॥११॥ १. सं० पा०-पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ। ७. पणिएहि य (ख, ग, घ)। २. सेयावणे (घ,त); सेयावंगे (वृपा)। ६. निवितिगिच्छे (ख, घ)। ३. ओरालिय (ग, घ)। ६. सं० पा०-समणाणं जाद वीईवइस्सइ । ४. मुच्चमाणे (क, ख, ग, घ); विमुंचमाणे १०. ना० ११११७ । ११. नायाणं तच्चस्स अज्भयणस्स (क, ख, ग); ५. जिणयत्त ° (क)। नायाणं तच्चस्स णायाज्झयणस्स (घ)। ६. सं० पा०-सिंघाडग जाव पहेसु । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ नायाधम्मकहानी निसंदेहत्तं पुण, गुणहेउं जं तो तयं कज्ज । एत्थं दो सेट्ठिसुया, अंडयगाही उदाहरणं ॥२।। कत्थइ मइदुबल्लेण, तविहायरियविरहो वावि । नेयगहणत्तणेणं, नाणावरणोदयेणं च ।।३।। हेऊदाहरणासंभवे य, सइ सुठ्ठ जं न बुज्झज्जा। सव्वण्णुमयमवितह, तहावि इइ चिंतए मइमं ।।४।। अणुवकय-पराणुग्गह-परायणा उ जिणा जगप्पवरा। जिय - राग - दोस - मोहा, य नन्नहावाइणो तेण ॥५॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं ' तच्चस्स नायज्भयणस्स" श्रयमट्ठे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स' के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी' नाम नयरी होत्था चउत्थं प्रयणं कुम् वण ॥ ३. तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्था - अणुपुब्व सुजायवप्प - गंभीरसीयलजले 'श्रच्छ - विमलसलिल - पलिच्छपणे" संछष्ण - पत्त- पुप्फ- पलासे' बहुउप्पल पउम - कुमुय नलिणसुभग- सोगंधिय- पुंडरीय महापुंडरीय " - सयपत्त - सहस्सपत्त - केसरपुप्फो वचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूत्रे परूिवे | ४. 'तत्थ णं वहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि य सहस्साणि य सयसहस्साणि य जूहाई निब्भयाई निरुव्विग्गाई सुसुणं श्रभिरममाणाइं प्रभिरममाणाई विहरति ॥ १. नायाणं तच्चस्स ० ( ख, ग ); नायाण तच्चस्स अज्झयणस्स (घ ) । २. नायाणं ( क, ख, घ) ३. वाराणसी ( ग ) । ४. ओ० सू० १ । ५. आणुपु० (घ ) । ६. X (वृ ) ; अच्छ-विमल - सनिल-पलिच्छन्ने दृश्यम् — संछन्नप उमपत्त विसमुणाले । क्वचिदेवं पाठः – संछन्नप तपुप्फपला से ( वृ ) | पोंडरीय महापोंडरीय ( ग ) । ६. ०चिए छप्पय - परिभुज्जमाण-कमले अच्छ विमल-सलिल - पत्थ- पुष्णे परिहत्थभमंत मच्छ कच्छभ - गस उणगण - मिहुणय पविचरिए ( वृ); असो पाठ: आदर्शषु नोपलभ्यते । (वृपा) 1 ७ X (वृ) ; क्वचित्तु संछन्नेत्यादि सूचनादिदं १०. ' तत्थ णं' इत्यादि प्रदर्शगतः पाठः नास्ति वृत्तौ व्याख्यातः । १०३ . Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ entertai ५. तस्स णं मयंगती रद्दहस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगे' मालुयाकच्छए होत्था -- वष्णो ॥ पावसियालग-पद ६. तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवर्तति - पावा चंडा रुद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहिपाणी श्रामिसत्थी आमिसाहारा मिसप्पिया प्रमिसलोला आमिसं गमाणा रत्तिवियालचारिणो दिया पच्छन्नं या विचिट्ठति ॥ कुम्भ-पदं ७. तए णं ताओ मयंगतीर हाम्रो प्रष्णया कयाई सूरियस चिरत्थमियंसि लुलियाए सभाए पविरलमाणुसंसि निसत-पडिनियंतंसि समाणंसि दुबे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं सणियं उत्तरंति, तस्सेव मयंगती रद्दहस्स परिपरतेणं सव्वम्रो समता परिघोलमाणा - परिघोलमाणा वित्ति कप्पेमाणा " विहरति ॥ पावसियालगाणं श्राहारगवेसण-पदं ८. तयानंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी' आहारं गवेसमाणा मालुयाकच्छगाश्री पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मयंगती रद्द हे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तस्सेव मयंगती रद्दहस्स परिपेरतेण परिघोलमाणा - परिघोलमाणा वित्ति कप्पे माणा विहरति ॥ ९. तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए पासंति, पासित्ता जेणेव ते कुम्भए तेव पहारेत्थ गमणाए || कुम्माण साहरण-पदं १०. तए णं ते कुम्मगा ते पावसियालए एज्जमाणे पासंति, पासित्ता भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया हत्ये य पाए य गीवायोय सएहिं सएहि काएहिं साहरति, साहरिता निच्चला निष्कंदा ' तुसिणीया संचिट्ठति ॥ १. वेगे ( ग, घ ) ३ २. ना० १।२६ । ३. पच्छन्न ( क, ख ) ; पच्छिन्नं ( ग, घ ) । ४. तस्स य ( ख ) ; तस्से य ( ग, घ ) । ५. एवं च णं ( क ) । ६. आहारत्थी जाव (क, ख, ग, घ ); सर्वास्वपि प्रतिषु जाव शब्दो लभ्यते किन्तु अर्थमीमां सया नासी समीचीनः प्रतिभाति । यद्यत्र जाव शब्दः स्यात् तदा श्रमिसत्थी जाव आमिस इति पाठ: संगतः स्यात् । यदि पूर्ववर्तिसूत्रमनुश्रियते तदा जाव शब्दो नापेक्ष्यते । ७. ० सियाला ( ख, ग, घ ) । ८. संहरति ( ग, घ ) । ६. निष्कंदा (ख, घ ) । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं अज्झणं (कुम्मै ) १०५ ११. तए णं ते पावसियालगा जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते कुम्म सव समता उवत्र्त्तेति परियत्र्त्तेति प्रासारति संसारेति वालेंति घट्टेति फंदेति खोभेति नहेहि प्रालुपति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो वेव णं संचाएंति तेसि कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि' आवाह वा 'वाबाहं वा" उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए || १२. तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए दोच्चपि तच्चपि सव्वम्रो समंता उब्वत्तंति' • परियतेति आसारेति संसारेति चालेंति घट्टेति फंदेति खोति नहिं श्रपंति दंतेहिय अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसि कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि प्रवाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणा सगियं सणियं पच्चोसक्कंति, एगंतमवक्कमंति, निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति ॥ अगुत्त-कुम्मस्स मच्च-पदं १३. तए गं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सनियं-सणियं एग पायं निच्छुभइ || १४. तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं सणियं सणियं एवं पायं नीणिय पासंति, पासिता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइण वेगिय' जेणेव से कुम्भए तेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नखेहि श्रालुपंति दंतेहि अक्खोडेंति, तम्रो पच्छा मंसं च सोणियं च ग्रहारेति, ग्राहारेत्ता तं कुम्मगं सव्वश्रो समंता उव्वत्तेति जाव' नो चेव णं संचाएंति' 'तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि प्रवाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए ॥ १५. तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मयं दोच्चपि तच्चपि सव्वग्रो समता उव्वत्तति परियत्तेति श्रासारेति संसारेति चालेति घट्टेति फंदति खोभति नहेहि आलुपति दंतेहिय ग्रक्खोडेंति, नो चेवणं संचाएंति तस्स कुम्भगस्स सरीरस्स किंचि आवाह वा वावाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता १. कुम्मना (क, ख, ग, घ ); अग्रिमसूत्रे 'ते कुम्मए' इति पाठोस्ति, अत्रापि तथैव युज्यते । २. X ( ग, घ ) । ३. X ( क ) । ४. सं० पा० उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए । ५. ६. तत्थ ( ख, ग, घ ) । ७. वेगितं ( ख ) 1 ८. ना० १।४।११। ६. सं० पा० - संचाएंति करेत्तए । ताहे दोच्चपि श्रवक्कमति । एगंते अवक्कमति (क) 1 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नावाधम्मकहाओ परितंता निविण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कंति, दोच्चंपि एगंतमवक्कमति । एवं चत्तारि वि पाया । १६. •तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणिय-सणियं गीवं नीणेइ ।। १७. तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं इसणियं-सागियं ? ] गीवं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्धं तुरियं चवलं' 'चंड जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं गीवं ° नहेहिं [पालुपंति ?] दंतेहि कवाल विहाडेंति, विहाडेत्ता तं कुम्मगं जीवियानो ववरोति, ववरोवेत्ता मंसं च सोणियं च पाहारेति ।। १८. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाण अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइए समाणे, पंच य से इंदिया अगुत्ता भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं वहणं सावगाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छ इ-बहूणि दंडणाणि' *य बहणि मडणाणि य बहूणि तज्जणाणि य वहूणि तालणाणि य बहूणि अदुबंधणाणि य बहणि घोलणाणि य वहणि माइमरणाणि य बहणि पिइमरणाणि य बहूणि भाइमरणाणि य बहूणि भगिणीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य वहणि पुत्तमरणाणि य बहूणि धूयमरणाणि य वहणि सुण्हाम रणाणि य। वरुणं दारिद्दाणं बहूणं दोहग्गाणं वहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पियविप्पयोगाणं बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं प्राभागी भविस्सति, अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो' अणुपरियट्टिस्सइ--जहा व से कुम्मए अगुत्तिदिए । गुत्तकुम्मस्स सोक्ख-पदं १६. तए णं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चे कुम्मए तेणेव उवागछंति, उवागच्छित्ता तं कम्मगं सव्वप्रो समंता उव्वत्तेंति परियत्तेति प्रासारेति संसारेंति चालेंति घदेति फंदेति खोभेति नहेहिं पालुपति दंतेहि य अक्खोडेति, नो चेव णं १. x (ख, ग)। २. सं० पा० - जाव सणियं । ३. सं० पा०-चवलं नहेहि । ४. 'समाणे' इत्यत्र विहरतीति शेषो द्रष्टव्यः ५. सं० पा०---हीलणिज्जे । ६. सं० पा०-दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ। ७. सं० पा०--उव्वत्तेति जाव दंतेहिं निक्खु डेंति जाव करेत्तए। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ पउत्थं अग्झयणं (कुम्मे) संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आवाहं वा वावाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए॥ २०. तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मगं दोच्चंपि तच्चपि उव्वत्तेति जाव', नो चेव णं संचायति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वावाहं वा' उप्पाइत्तए° छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउन्भया तामेव दिसं पडिगया ।।। तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए' जाणित्ता सणियं-सणियं गीवं नीणेइ, नीणेत्ता दिसावलोयं करेइ, करेत्ता जमगसमगं चत्तारि वि पाए नीणे इ, नीणेत्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाए जइणाए छेयाए° कुम्मगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणणं सद्धि अभिसमण्णागए यावि होत्था ॥ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं समणो वा समणी वा पायरिय-उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए समाणे पंच य से इंदियाई गुत्ताई भवंति', 'से णं इहभवे चेव वहूणं समणाणं वहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासगिज्जे भव। परलोए वि य णं नो वहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हियय उप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ° जहा व से कुम्मए गुत्तिदिए ।। निक्खेव-पदं २३. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। –त्ति बेमि॥ १. ना० १४।११। २. सं० पा०-वाबाहं वा जाव छविच्छेयं । ३. दूरगए (क, ख, ग, घ)। ४. सं० पा०-उक्किदाए (फ कुम्मगईए। अत्र पाठ संक्षेपः 'फ' अनेन संकेतेन सूचितोस्ति । वृत्तौ पूर्णपाठस्य निर्देशो लभ्यते । ५. विहरतीति शेष: (वृ)। ६. सं० पा०-जाव जहा । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ भायाधम्मक हाऔ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा विसएसु इंदियाइं, रुंभंता राग-दोस-निम्मुक्का। पावेंति निव्वुइसुह, कुम्मोव्व मयंगदहसोक्खं ॥१॥ इयरे उ अणत्थ-परंपरानो पावेंति पावकम्मवसा। संसार-साग रगया, गोमाउग्गसियकुम्मोव्व ॥२॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं यणं सेलगे उक्खेव - पदं १. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्भयणस्स ग्रयमद्वे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! नायज्भयणस्स के श्रद्वे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती' नाम नयरी होत्था -- पापडीणायया उदीणदाहिणवित्थिण्णा नवजोयणवित्थिण्णा दुवालसजोयणायामा धणवइ-मइ-निम्मिया चामीयर-पवर-पागारा नाणामणि- पंचवण्णकविसीसग सोहिया अलकापुरि-संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्ख' देवलोगभूया ॥ ३. तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया' उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए रेवतगे' नाम पव्वए होत्या - तुंगे गगणतलमणुलिहंत सिहरे नाणा विहगुच्छ गुम्म-लया वल्लिपरिगए हंस - मिग- मयूर - कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल - कोइल कुलोववेए अणेगतड'- कडग-वियर - उज्झर-पवायपब्भारसिहर उरे प्रच्छरगण-देवसंघचारण- विज्जाहरमिहुण-संविचिष्णे' निच्चच्छणए दसारवर - वीरपुरिस- तेलोक्कबलवगाणं, सोमे सुभगे पियदंसणे सुरूवे पासाईए दरिसणीए अभिरू परुिवे || १. बारवई (क) २. निम्माया (क, ग, घ ) ; निम्मया ( ख ) ; अस्माकं पार्श्वे वृत्तेः प्रदर्शद्वयमस्ति । तत्रैकस्मिन् धणवमतिनिम्मियत्ति'धनपतिर्वैश्रमणः तन्मत्यानिर्मिता निरूपिता' इति पाठोस्ति । अरस्मिनादर्शे 'घणवइमइनिम्मायत्ति धनपतिर्वैश्रमणः तन्मत्यानिर्माता निरूपिता' इति पाठोस्ति । प्रादर्शगत पाठभेदानुसारेण वृत्तावपि लिपिकर्त्रा भेद कृतः इति प्रतीयते । ३. मलया (क, ख ) । ४. पच्चक्ख ( ख ) 1 ५. बहिया (क, ख ) । ६. रेवयए ( क ) ; रेवए (घ) 1 ७. ° तडाग (क ) । 5. रायपसेणइयं (३२) सूत्रे 'संविकिणं' इति पाठो लभ्यते । १०१ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो ४. तस्स णं रेवयगस्स अदूरसामते, एत्थ णं नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था-- सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए' दरिसणीए अभिरूवे पडिरूवे ।। ५. तस्स णं उज्जाणस्स बहुमज्भदेसभाए सुरप्पिए नामं जक्खाययणे होत्था --- दिव्वे वण्णयो । ६. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ। से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराण, बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसहं राईसाहस्सीणं', पज्जुन्नपामोक्खाणं अद्धद्वाणं कमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सटीए दंतसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलबगसाहस्सीणं, रुप्पिणिप्पामोक्खाणं बत्तीसाए महिलासाहस्सीणं, अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं ईसर-तलवर - माडंबिय-कोडंबियइन्भ-सेटि-सेणावइ ° -सत्थवाहपभिईणं, वेयड्डगिरि-सागरपेरंतस्स य दाहिणवभरहस्स, वारवईए नयरीए आहेवच्चं 'पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे ° पालेमाणे विहरइ । थावच्चापुत्त-पदं ७. तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नाम गाहावइणी परिवसइ–अड्डा दित्ता वित्ता विस्थिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाणवाणा बहुधण-जायरूव-रयया अायोग-पयोग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा वहुँदासी-दास-गो-महिस गवेलग-प्पभूया बहुजणस्स ° अपरिभूया ॥ ८. तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था सुकुमालपाणिपाए नहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पिय दसणे' सुरूवे ।। ६. तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं" जाणित्ता १. पासातीए (ग, घ)! २. ओ० सू० २। ३. रायसहस्साणं (क); रातीसहस्साणं (ग); रायासहस्साणं (घ)। ४. सट्ठी (क); सट्ठीणं (घ)। ५. महसे ० (ख, घ)। ६.सं० पा०--तलवर जाव सत्थवाह। ७. वियड्ढ° (ख)। ८. सं० पा०—आहेवच्छ जाव पालेमाणे। ६. सं० पा०---अड्ढा जाव अपरिभुया । १०. सं० पा०-सुकुमालपाणिपाए जाब सुरूवे । ११. जाई (ख); ° जायं (क्वचित्) । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयण (सेलगे) सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेइ जाव' भोगसमत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इब्भकुल बालियाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेइ । बत्तीसयो दानो जाव' बत्तीसाए इब्भकुलवालियाहिं सद्धि विपुले सद्द-फरिस रस-रूव-गंधे' पंचविहे माणुस्सए कामभोए ° भुंजमाणे विहरइ ।। प्ररिट्टनेमि-समवसरण-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी आइगरे तित्थगरे सो चेव वण्णों ' दसधणुस्सेहे नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासे अट्ठारसहिं समणसाहस्सीहि, चत्तालीसाए अज्जियासाहस्सोहिं सद्धि संपरिवुडे पुवाणुपुर्दिब चरमाणे *गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव वारवती नाम नगरी जेणेव रेवतगपब्वए जेणेव नदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं सोगिहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ११. परिसा निग्गया । धम्मो कहियो ।। कण्हस्स पज्जुवासणा-पदं १२. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धढे समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए मेघो घरसियं गंभीरमहुरसह कोमुइयं भेरि तालेह ॥ १३. तए णं ते कोडुवियपुरिसा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा हदतु"-चित्त माणदिया जावः हरिसवस-विसप्पमाणयिया करयलपरिगहियं दसणहं सिरसावत्तं° मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तह ति" आणाए विणएणं क्यणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव कोमुइया भेरी, तेणेव उवागच्छंति, १. ओ० सू० १४६-१४६ । स्पीहि सद्धि संसरिडे' एकबारमेव सद्धि २. ना० ११।६१.६३ । संपरिचुरे, इतिपाठोस्ति । अन्यागमेष्वपि ३. सं० पा०-सफरिसरसरूवगंधे जाव भंज- इत्यमेव दृश्यते । अत्रापि इत्थमेव युज्यते । माणे । ७. सं० पा० --चरमाणे जाव जेणेव । ४. अरिहा (क, ख, ग)। ८. गभीर (ख, घ)। ५. ओ० सू० १६ तथा वाचनान्तर पृ० १४०, ६. सामुदा (द) इयं (वृषा)। अत्र 'संपावि उकामे' पर्यन्तं वर्णको ग्राह्यः । १०. सं. पा०-हट्टतुटु जाव मत्थए। ६. ° साहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे (क, ख, ग, ११. ना० १११।१६।। घ) औपपातिकसूत्रे सू० १६) 'चउद्दसहिं १२. सं० पा०-तहत्ति जाव पडिसणेति । समण साहस्सीहि, छत्तीसाए अज्जियासाह Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ नायाधम्मकहाओ उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरमहुरसई कोमुइयं भेरि तालेति। तो निद्ध-महुर-गंभीर-पडिसुएणं पिव' सारइएणं बलाहएणं अणुरसियं भेरीए । १४. तए णं तीसे कोमुइयाए भेरीए तालियाए समाणीए बारवईए नयरीए नव जोयणवित्थिण्णाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-कंदरदरी-विवर-कुहर-गिरिसिहर-नगरगोउर-पासाय-दुवार-भवण-देउल-पडिस्सुया'. सयसहस्ससंकुलं' करेमाणे 'बारवति नयरि" सभितर-बाहिरियं सव्वो समंता सद्दे विप्पसरित्था ॥ तए णं बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए वारसजोयणायामाए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव' गणियासहस्साई" कोमुईयाए भेरीए सई सोच्चा निसम्म हतूद-चित्तमाणंदिया जाव। हरिसवस-विसप्पमाणहियया व्हाया आविद्ध-वग्धारिय-मल्लदाम-कलावा अयवत्थ-चंदणोकिन्नगायसरीरा अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रह-सीया"-संदमाणीगया अप्पेगइया पायविहार चारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियं" पाउब्भवित्था ।। १६. तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे जाव' अंतियं पाउब्भव माणे पासित्ता हट्टतुटु-चित्तमाणदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियए कोडंवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउ रंगिणि सेणं सज्जेह, विजयं च गंधहत्थि उवट्ठवेह । तेवि तहत्ति उवट्टवेति ।। १७. "ता णं से कण्हे वासुदेवे व्हाए जाव" सव्वालंकारविभूसिए विजयं गंधहत्थि दुरुढे समाणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-वंद १. कोमुदियं (ख, ग, घ)। सचात्र संक्षेपीकरणहेतुना परित्यक्तोभूदिति २. ताडेंति (ग)! प्रतीयते। ३. तिव (क)। ११. ना० १११११६ । ४. वियर (क)। १२. किन्नगासरीरा (ख, ग)। ५. पडिसुया (क, घ); पडिसुया (ख, ग)। १३. सिया (ख)। ६. ° संकुलसई (क, ख)। १४. अंतिए (ग, घ)। ७. करेमाणा (क, ख, ग, घ); असौ पाठः १५. ना० ११५।१५ । वृत्त्याचारेण स्वीकृतः । अत्र 'करेमाणे' १६. ना० १११।१६ 'सहे' इति पदस्य विशेषणमस्ति । वृत्ती- १७. सज्जेहा (ग) कुर्वन्निति व्याख्यातमुपलभ्यते । १८. उट्ठवेह (ग)। ८. बारवईए नयरीए (क)। १६. उट्टवेंति (ग)। ६. ना० ११५।६। २०. सं० पा०-जाव पज्जुवासइ । १०. अतोने ईसरतलवर' संबन्धिपाठो विद्यते, २१. ना. शश१। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) परियाल - संपरिवुडे बारवतीए नयरीए मज्भंमज्भेणं निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव सोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहश्रो रिट्ठनेमिस्स छत्ताइच्छतं पडागाइपडागं विज्जाहर चारणे जंभए य देवे वयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता विजयाओ गंधहत्थीम्रो पच्चीरुहइ, पच्चरुहिता रहं अरिनेमिं पंचविणं अभिगमेणं श्रभिगच्छइ, [ तं जहा - सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए, प्रचित्ताणं दव्वाणं प्रविउसरणयाए, एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेणं चक्खुफासे अंजलिपगहेणं, मणसो एगत्तीकरणेणं ]' । जेणामेव रहा अरिनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहं रितिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता रहो अरिट्ठनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे पंजलिउडे अभिमु विणणं पज्जुवासइ ॥ थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जासंकल्प-पदं १८. थावच्चापुत्ते वि निग्गए । जहा मेहे' तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ । जहा मेहस्स' हा चेव निवेयणा || १६. तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय डिकूलाहि बहूहिं प्राघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विवाह य वित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विष्णवित्तए वाता प्रकामिया चैव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स' निक्खमणमणुमन्नित्था || २०. तए णं सा थावच्चा [ गाहावइणी ? ] आसणाश्रो प्रभु, प्रभुद्वेत्ता महत्यं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेव्हित्ता मित्त- नाइ नियग-सयणसंबंधि परियणेणं सद्धि • संपरिवुडा जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स भवणवरपडिदुवार - देसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पडिहारदेसिएणं मग्गेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणे, उवणेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवापिया ! मम एगे पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं दारए - इट्ठे कंते पिए मणुष्णे o १. असी कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । २. पू० - ना० १।१।१०१, १०२ । ३. तिसम्मा ( ख, ग, घ ) । ४. पू० - ना० १।१।१०२-११३ । ५. १।१।११४ सूत्र' 'बहूहि' इति पदं विसयाणु ११३ लोमाहि इति पदस्य पूर्वं विद्यते । ६. X ( ख, ग, घ ) । ७. सं० पा०-मित्त जाव संपरिवुडा । ८. सं० पा० - करयल वृद्वावेइ । ६. सं० पा०--- इट्टे जाव से णं । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ नायाधम्मकहाओ मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए ? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवडिए नोबलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवडिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं 10 से णं देवाणुप्पिया! संसारभउविग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं'१ इच्छड अरनो अरिट्रनेमिस्स' अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं° पव्वइत्तए। अहण्ण निक्खमणसक्कारं करेमि । तं इच्छामि ण देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्तस्स निक्खममाणस्स छत्तमउड-चामरायो य विदिन्नाओ। २१. तए ण कण्हे वासुदेवे थावच्चं गाहावइणि एवं वयासी-अच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिए ! सुनिव्वुत-बीसत्था, अहणं सयमेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणसक्कारं करिस्सामि ।। कण्हस्स थावच्चापुत्तस्स य परिसंवाद-पदं २२. तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणीए सेणाए विजयं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे जेणेव थावच्चाए गाहाव इणीए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चाप्रत्तं एवं वयासी-मा णं तुम देवाणुप्पिया ! मुंडे भवित्ता पन्वयाहि, भंजाहि णं देवाणुप्पिया! विपुले माणुस्सए कामभोगे मम बाहुच्छाय-परिग्गहिए । केवलं देवाणुप्पियस्स अहं नो संचाएमि वाउकायं' उवरिमेणं गच्छमाणं निवारित्तए । अण्णो ण देवाणुप्पियस्स जं किंचि प्राबाहं वा वाबाह" वा उप्पाएइ, तं सव्वं निवारेमि ।। २३. तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया! मम जीवियंतकर" मच्च एज्जमाणं निवारेसि, जरं वा सरीररूव-विणासणि सरीरं अइवयमाणि निवारेसि, तए णं अहं तव बाहुच्छाय-परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि ।। २४. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुते समाणे थावच्चापुत्तं एवं १. लिपिसंक्षेपेण एतवान् पाठः परित्यक्तोस्ति । ६. ° छाया (ख)। सच २१।१४५ सूत्राधारेण पूरितोस्ति । ७. °क्कायं (क)। २. सं० पा०-अरिटनेमिस्स जाव पब्वइत्तए ! ८. अन्ने (घ)। ६. अहं णं (ख)। ६. पणं (ख, म)। ४. नो (ग)। १०. विबाहं (ख)। ५. प्पिया मम जीविय णुस्सए (ख) ११. °करणियं (क, ख, घ)। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभय णं (सेलगे ) वयासी - एए णं देवाणुप्पिया दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा निवारितए, नष्णत्थ' ग्रप्पो' कम्मक्खणं ॥ २५. तए णं से थावच्चापुत्ते कन्हं वासुदेवं एवं वयासी - जइ णं एए दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुवलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा निवारित्तए, नण्णत् अप्पणो कम्मक्खएणं । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! अण्णाण-मिच्छत्तविरइ - कसाय-संचियस्स प्रत्तणो कम्मक्खयं करितए || कण्हस्स जोगक्खेम-घोसणा-पदं २६. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुतेण एवं वृत्ते समाणे कोडुंबियपुरिसे सावे, सहावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं देवागुप्पिया ! वारवईए नयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क - चच्चर- चउम्मुह महापह° पहेसु हत्थिखंधव रगया महया - महया सद्देणं उग्घो से माणा - उग्घोसेमाणा उग्घोसणं करेह – एवं खलु देवापिया ! थावच्चापुत्ते संसारभउम्विग्गे भीए जम्मण जर मरणाणं, इच्छइ अरहो परिनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए', तं जो खलु देवापिया ! राया वा जुवराया वा देवी वा कुमारे वा ईसरे वा तलवरे वा कोडुं विय- माडविय इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ सत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणुपव्यय, तस्स णं कण्हे वासुदेवे प्रणुजाणइ पच्छाउरस्स वि य से मित्त-नाइ - • नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स 'जोगवखेम-वट्टमाणी" पडिवहर त्ति कट्टु घोसणं घोसेह जाव घोसंति || ११५ यावच्चात्तस्स अभिनिक्खमण-पदं २७. तए णं थावच्चापुत्तस्स अणुराएणं पुरिससहस्सं निक्खमणाभिमुहं हायं सव्वालंकारविभूसियं पत्तेयं पत्तेयं पुरिससहस्सवाहिणीसु सिवियासु दुरूढं समाण मित्त-नाइ परिवुड थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउन्भूयं ॥ २८. तए गं से कहे वासुदेवे पुरिससहस्सं प्रतियं पाउब्भवमाणं पासइ, पासित्ता कोडुं विपुरिसे सावे, सहावेत्ता एवं वयासी - जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेश्रो " १. अन्नत्थ ( ख, ग ) | २. अप्पा ( क, ख, ग, वृ) 1 ३. स० पा०सक्का जाव नन्नत्थ । ४. सं० पा०तिम जाव पहेसु । ५. पव्वतितते (ख, घ ) । ६. अणुजाणाति ( ख ) । ७. सं० पा०-- नाइ 5. जोगकखेमं वट्टमाणी (क, ख, ग ); जोगक्लेमवाणी (घ) 1 ९. सव्वालंकारभूसियं (क, ख ) 1 १०. ना० १।१।१२२-१२५ । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायव महाओ ● खियामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभ-सयसन्निविट्ठे जाव' सीयं उagar | २६. तए णं से थावच्चापुत्ते बारवतीए नयरीए मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निग्रगच्छित्ता जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जवखस्स जक्खाययणे जेणेव ग्रसोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मरहस्रो अरिनेमिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर चारणे जंभए य देवे श्रीवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता सीयाओ पच्चोरुहई || ११६ सिस्स भिक्खादाण-पदं ३०. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तं पुरो काउं जेणेव रहा अरिनेमी " तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता रहं अरिनेमि तिक्खुत्तो प्रायाहिणपयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नम॑सति, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासीएस गं देवाप्पिया ! थावच्चापुत्ते थावच्चाए गाहावइणीए एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मण मणामे थेज्जे बेसासिए सम्मए वहुमाए ग्रणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंवरपुष्कं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए ? से जहानामए उप्पले ति वा पउमेति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवडिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवडिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं । एस गं देवाप्पिया ! संसारभउव्विगे भीए जम्मण जर मरणाणं, इच्छइ देवाणुप्पियाण अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराश्रो प्रणगारियं पव्वइत्तए । अम्हे णं देवाणुप्रियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्स भिक्खं || ३१. तए णं अरहा ग्ररिनेमी कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्ते समाणे एयम सम्मं पsिs || ३२. तए णं से थावच्चापुत्ते अरहम्रो अरिट्ठनेमिस्स अंतिया उत्तरपुर स्थिमं दिसीभायं श्रवक्कमइ, सयमेव ग्राभरण मल्लालंकारं श्रमुयइ | ३३. तए णं सा थावच्चा गाहावइणी हंसलक्खणेणं पडसाडएणं' आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छइ, हार-वारिधार - सिंदुवार छिन्नमुत्तावलि-प्पासाई सूणि 'विणिम्मु १. सं० पा०-- तहेव सेयापीएहि कलसेहि पहावे जाव अरहओ भरिनेमिस्स छत्ताइछतं पडागाइडागं पासइ, पासित्ता विज्जाहरचारणे जाव पासिता । २. ना० ११ १२६ । ३. पु० ना० १।१।१३०-१४३ | ४. सं० पा० - सव्वं तं चैव जाव श्राभरणं । ५. पडगसाडगेणं ( ख ) । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (सेलगे) यमाणी-विणिम्मुयमाणी' •रोयमाणी-रोयमाणी कंदमाणी-कंदमाणी विलवमाणी-विलवमाणी' एवं वयासी-जइयव्वं जाया ! घडियव्वं जाया ! परक्कमियव्वं जाया ! अस्सिं च णं अट्ठ नो पमाएयब्वं'। 'अम्हंपिणं एसेव मग्गे भवउ त्ति कटु थावच्चा गाहावइणी अरहं अरिट्टनेमि वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । थावच्चापुत्तस्स पन्दज्जागहण-पदं ३४. तए णं से थावच्चापुत्ते पुरिससहस्सेणं सद्धि सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव अरहा अरिनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिवखुत्तो आयाहिप-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव' पव्वइए॥ यावच्चापुत्तस्स प्रणगारचरिया-पदं ३५. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारे जाए-इरियासमिए भासासमिए •एसणासमिए प्रायाण-भंड-मत्त-णिखेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिद्वावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी अकोहे प्रमाणे अमाए अलोहे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे अणासवे अममे अकिंचणे निरुवलेवे, कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव अप्पडिहयगई गगणमिव निरालंबणे वायुरिव अप्पडिवद्धे सारयसलिलं व सुद्धहियए पुक्खरपत्तं पिव निरुवलेवे कुम्मो इव गुत्तिदिए खग्गविसाणं व एगजाए विहग इव विप्पमुक्के भारंडपक्खीव अप्पमत्ते कुंजरो इव सोंडीरे वसभो इव जायत्थामे सीहो इव दुद्धरिसे मंदरो इव निप्पकंपे सागरो इव गंभीरे चंदो इव सोमलेस्से सूरो इव दित्ततेए जच्चकंचणं व जायरूवे वसुंधरव्व सव्वफासविसहे सुहुययासणोव्व तेयसा जलते॥ ३६. नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भवइ। [सेय पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दवो खेत्तयो कालो भावनो। दव्वओ-सच्चित्ताचित्तमीसेसु । खेत्तो -गामे वा नगरे वा रण्णे वा खले वा घरे वा अंगणे वा। कालो-समए वा प्रावलियाए वा प्राणापाणुए वा थोवे वा लवे वा मुहत्ते वा १. विणिमुंचमाणी-विणि मुंचमाणी (ख, ग, घ); सं० पा०-विणिम्मुयमाणी २ एवं । २. स. पा.--पमाएयवं जाव जामेव । ३. ना० १११।१४६,१५० । ४. सं० पा०-भासासमिए जाव विहरइ । औपपातिकसूत्रे स्थानद्वये (२७-२६, १६४) अनगार-वर्णको विद्यते। प्रस्तुतसूत्रस्यवृत्ती ध्याख्यातादनगार-वर्णकात् तद् द्वयमपि भिन्नमस्ति। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ मायाधम्मकहाओ अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा अयणे वा संवच्छरे वा अण्णयरे वा दीहकालसंजोए। भावनो-कोहे वा माणे वा माए वा लोहे वा भए वा हासे वा । एवं तस्स न भवई ] ॥ ३७. से णं भगवं वासीचंदणकप्पे समतिणमणि-लेठ्ठकंचणे समसुहदुक्खे इहलोग परलोग-अप्पडिवद्धे जीविय-मरण-निरवकंखे संसारपारगामी कम्मनिग्घायणढाए एवं च णं० वित ३८. तए णं से थावच्चापुत्ते अरहयो अरिटुनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्याई चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता वाहिं' 'चउत्थ छट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ।। थावच्चापुत्तस्स जणवय विहार-पदं ३९. तए णं अरहा अरिटुनेमि थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स तं इन्भाइयं अणगार सहस्सं सीसत्ताए दलयइ ।। ४०. तए णं से थावच्चापुत्ते अण्णया कयाइं अरहं अरिद्वनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुन्भेहिं अब्भणण्णाए समाणे 'अणगारसहस्सेणं सद्धि" वहिया जणवयविहारं विहरित्तए। अहासुह। ४१. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि' बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ १. असो कोष्ठकवर्ती पाठ: व्याख्यांश: प्रतीयते। ६. सद्धि तेणं उरालेणं उदग्गेण (उग्गेण-- २. सामाइयाई (ख, ग)। ख, ग) पयत्तेणं पहिएणं (क, ख, ग, घ)। ३. सं० पा०-बहूहि जाव चउत्थ विहरइ पूर्व सूत्रे थावच्चापुत्रेण विहारस्य अनुज्ञा (क, ख, ग, घ)। अत्र 'चउत्थ' शब्दानंतर प्रार्थिता तत्र य. पाठोऽस्ति, तस्यानुसारेण 'जाव' शब्दो युज्यते । 'वहूहि' इति पदानन्तरं प्रस्तुतसूत्रेऽपि 'अणगारसहस्सेणं सद्धि वहिया 'जाव' शब्दोनर्थकोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य जणवयविहारं विहरई' इत्येव पाठो द्वितीयश्रुतस्कन्धस्य प्रथमवर्गवस्यप्रथमाध्ययने युक्तोस्ति । एतादृशे प्रसने सर्वत्रापि गि 'बहहि उत्थ जाव विहरइ' एवं पाठो एतावानेव पाठः उपलभ्यते । तेणं उरालेणं. लभ्यते । पग्गहिएणं' एतावान् पाठोऽत्र अतिरिक्त ४. सहस्सेणं अणगाराणं (क, ख, घ) । सहस्सेणं इव प्रतिभाति । अणगारेणं (ग) । अग्रिमसूत्रे 'अणगार । यद्यसौपाठः स्वीक्रियेत, तदानी 'पग्गहिएणं' सहस्सेणं सद्धि' इति पाठो लभ्यते । 'क्वचित' इति पदस्यानन्तरं 'तवोकम्मेणं' इति पाठः प्रयुक्तादर्शषु अत्रापि इत्थमेव पाठोस्ति, आवश्यकोऽस्ति । तं विना कश्चिद् अर्थतेनात्र स एव पाठः स्वीकृतः । सम्बन्धो नोपपद्यते। ५: अहासुहं देवाणुप्पिया ! (क) । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयण (सेलगे) सेलग राय - पर्द ४२. ते काले तेणं समएणं सेलगपुरे नाम नगरे होत्या । सुभूमिभागे उज्जाणे । सेलए राया । पउमावई देवी । मंडुए कुमारे जुवराया | ४३. तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा' पंच मंतिसया होत्था - उप्पत्तियाए वेणइयाए कमाए पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चितयति ॥ ४४. थावच्चापुत्ते से लगपुरे समोसढे । राया निग्गए ॥ सेarea मिहिधम्म- पडिवत्ति-पदं ४५. तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स प्रति धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ट - चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उत्ता थावच्चापुत्तं अणगारं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी सहामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । भुमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! जं णं तुब्भे वदह त्ति कट्टु वंदनमंस, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी – जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा जाव' इब्भा इव्भपुत्ता चिच्चा हिरण्णं, एवं - धणं धन्नं बलं वाहणं कोस कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धणकणग-रयण-मणि-मोत्तिय संख सिल प्पवाल- संतसार - सावएज्जं विच्छड्डित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं अगाराम्रो अणगारयं पव्वइया, तहा णं ग्रहं नो संचाएमि० जाव' पव्वइत्तए, ग्रहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्मं पडिवज्जि - १. मड्डु (क) सर्वत्र मद्दए ( ग ) ; मदुए (घ ) | २. ० मोक्खाणं (क, ग, घ ) 1 ३. सं० पा० धम्मं सोच्चा जहा ण देवापियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइया तहां णं अहं णो संचाएमि पव्वइए । ४. राय० सू० ६८८ । ५. राय० सू० ६६५ । ६. अत्र 'पंचाणुव्वइयं' इति पाठः प्रवाहपतितः ११६ इवाभाति । अर्हतोऽरिष्टनेमे : समये चतुर्यामधर्मस्य प्रवृत्तिरासीत् । यथा केशिस्वामिना चित्तसारथये चतुर्यामधर्मस्य उपदेशः कृतः (रायपसेणइयं सू० ६९३) । चित्तसारथेव तस्वीकारेप्यस्य समीक्षा कृतास्ति, द्रष्टव्यं --रायपसेणइयं, ६६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । अत्रापि वस्तुतः 'चा उज्जामियं गिहिधम्मं' इति पाठ: समीचीनः प्रतिभाति । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सामि । हासुहं देवाप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ४६. तए गं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्मं उवसंपज्जइ ॥ सेलगस्स समणोवासग चरिया-पदं ४७. तए गं से सेलए राया समणोवासए जाए - श्रभिगयजीवाजीवे उचलद्वपुण्णपावे ग्रासव-संवर-निज्जर-किरिया अहिगरण-बंधमोक्ख-कुसले ग्रसहेज्जे देवासुरनाग - जक्ख - रक्खस किण्णर- किंपुरिस गरुल-गंध-महोरगाइएहि निग्धा देवगणेहिं पावयणाश्रो अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे णिस्सं किए णिक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्टे ग्रभिगट्टे विणिच्छियट्टे अट्ठिमिजपेमाणुरागत्ते 'अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे श्रट्टे अयं परमठ्ठे सेसे अणट्टे, ऊसियफलिहे अवगुयदुवारे चित्तंते उर- परघरदार-पवेसे चाउद्दसमुद्दिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे समणे निग्गंथे फासू-एसणिज्जेणं असण- पाण-खाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंवल- पायपुंछणेण ग्रोसहभे सज्जेणं पाडिहारिएणं य पीढफलग - सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे सील-व्वय-गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं महापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि • अप्पाणं भावेमाणे विहरइ | ४८. पंथगपामोक्खा पंच मंति-सया समणोवासया जाया || ४६. थावच्चापुत्ते वहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ ५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधिया नामं नयरी होत्था - वण्णो । नीलासोए उज्जाणे - वण्णो ॥ नायाधम्मक हाओ सुदंसणसेट्ठि पदं ५१. तत्थ णं सोगंधियाए नयरीए सुदंसणे नामं नयरसेट्ठी परिवसर, अड्ढे जाव" परिभू || सुपरिव्वायग-पर्द ५२. तेणं काले तेणं समएणं सुए नामं परिव्वायए होत्था - 'रिउव्वेय' जजुव्वेय' - साम सं० पा० - पंचाणुव्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं । वृत्तौ 'पंचाणुव्वइयं' इति पदस्याग्रे 'सत्त सिक्खावइयं दुवालसविह' इति पाठोऽस्ति । असावपि औपपातिकसूत्रात् उद्धृतोऽस्ति वृत्तिकृता । १. पडिवज्जित्तए (वृ) 1 २. का हिसि (वृ ) | ३. वृत्तौ अस्य पाठस्य पूर्तिः कृताऽस्ति । तत्र कानिचित् पदानि भिन्नानि लभ्यन्ते । ४. ० सया य ( ग ) | ५. ओ० सू० १ । ६. ना० १।३।३ । ७. ना० १२५३७ प रियुध्वेय ( ख ) । ६. यजुव्वेय (घ); जउब्वेय ( क्व ० ) । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेल) १२१ वेय-अथव्वणवेय-सट्टितंतकुसले' संखसमए लट्ठ पंचजम-पंचनियमजुत्तं सोयमूलयं दसप्पयारं परिव्वायगधम्म दाणधम्म च सोयधम्म च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणे पण्णवेमाणे धाउरत्त-'वत्थ-पवर"-परिहिए तिदंड-कुंडिय-छत्तछन्नालय-अंकुस-पवित्तय-केसरि-हत्थगए परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि संपरिवुडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहंसि भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरई॥ ५३. तए णं सोगंधियाए नगरीए सिंघाडग'-तिग-चउक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापह पहेसु° बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइवखइ–एवं खलु सुए परिव्वायए इहमागए" इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव सोगंधियाए नयरीए परिव्वायगावसहंसि संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। ५४. परिसा निग्गया ! सुदंसणो वि णीति ।। सोयमूलय-धम्म-पदं ५५. तए णं से सुए परिव्वायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अण्णेसिं च बहूणं संखाणं परिकहेइ- एवं खलु सुदंसणा! अम्हं सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते । से वि य सोए विहे पण्णत्तं, तं जहा-दव्वसोए य भावसोए य। दवसोए उदएणं मदियाए य । भावसोए दब्भेहि य मंतेहि य । जंणं अम्हं देवाणुप्पिया ! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सज्जपुढवीए पालिप्पई, तम्रो पच्छा सुद्धेण वारिणा पक्खालिज्जइ, तो तं असुई सुई भवइ । एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छंति ।। १. वृसिकारेणात्र वाचनान्तरं व्याख्यातमस्ति । तदनुसारेण 'कुडिय-कंचणिय-करोडियतद् औपपातिक सूत्रे (६७) इत्थमस्ति- छत्त' एवं पाठ-संरचना स्यात् । औषपातिके रिउब्वेद - यज्जुब्वेद - सामवेद-अह णवेद- (११७) पि इत्थं पाठक्रमो विद्यते--- इतिहासपंचमाणं निघण्टुछट्ठाणं संगोवंगाणं कुडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा य भिसियाओ य'। धारगा सडंगवी सद्वितंतविसारया संखाणे ५. परिवत्तिय (ख, ग) अशुद्ध प्रतिभाति; सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे पवित्तिय (घ)। अण्णेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु ६. सं. पा०-सिंघाडग । सुपरिणिट्टिए । ७. सं० पाo-इहमागए जाव विहरइ । २. पंचजाम (घ)। ८, निग्गए (क्व०)। ३. पवरवत्थ (ग)। १. संखाणं धम्म (क्व०)। ४. वृत्तौ वाचनान्तरस्य उल्लेखो विद्यते, १०. आलिंपइ (ख)। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ मायाधम्मकहाओ सुदंसणस्स सोयमूलय-धम्मपडिवत्ति-पदं ५६. तए णं से सुदंसणे सुयस्स अंतिए धम्म सोच्चा हद्वतु?' सुयस्स अंतियं सोयमूलयं धम्म रोण्हइ, गेण्हित्ता परिवायए विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिला भेमाणे संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरई ॥ ५७. तए णं से सुए परिव्वायए सोगंधियायो नयरीनो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। थावच्चापुत्तस्स सुदंसणेण संवाद-पदं ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं थावच्चापुत्तस्स समोसरणं। परिसा निग्गया। सुदसणो वि णीइ । थावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- तुम्हाणं' किंमूलए धम्मे पण्णत्ते ? तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणेणं एवं वुत्ते समाणे सुदंसणं एवं वयासी-सुदंसणा! विणयमूलए धम्मे पण्णत्ते । से वि य विणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--अगारविणए अणगारविणए य। तत्थ णं जे से अगारविणए, से णं 'चाउज्जामिए गिहिधम्मे। तत्थ णं जे से अणगारविणए, से णं चाउज्जामा, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायानो वेरमणं, सव्वानो मुसावायाओ वेरमणं सव्वानो अदिण्णादाणायो वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं''। ५६. १. हट्ठ (क, ख, ग)। २. सं० पा०-पडिलाभेमाणे जाव विहरइ । ३. णीओ (ग); निग्गओ (क्व०) । ४. तुम्भाणं (घ)। ५. विणयमूले (ख, ग, घ)। ६. आगार ° (ख, घ)। ७. पंच अणव्वयाई सत्त सिक्खावयाई एक्कारस उवासगपडिमाओ । तत्थणं जे से अणगारविणए, से णं पंच महव्वयाइ, तं जहा--- सुवाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सवाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं सवाओ मेहुणाओ वेरमणं सव्वाओ परिग्ग हाओ वेरमण सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमण जाव मिच्छादसणसल्लाओ वेरमणं, दसविहे पच्चक्खाणे बारस भिक्खुपडिमाओ (क, ख, ग, घ)। एतत अगारानगारविनययोनिरूपणं महावीरकालीनं वर्तते । अन्न रिष्टनेमिः द्वाविंशतितमः तीर्थंकरो विद्यते । तच्छासने चतुर्याम धर्मस्यैव निरूपणमासीत्। मज्झिमगा बावीसं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्म पण्णवयंति' इति स्थानाङ्गति पाठेन उक्ताभिमतस्य पुष्टिर्जायते । उत्तराध्ययनेनापि (२३।२३-२८) अस्य समर्थन भवति । अत्र पंचमहावतात्मकस्य अनगारधर्मस्य तथा पंचाणवत-सप्तशिक्षावतात्मकस्य अगारधर्मस्य निरूपण जातं तद्वर्ण नसंक्रमणमेव प्रतीयते । स्थानाङ्ग चतुर्यामनिरूपणं इत्थमस्तिसव्वानो पाणाइवायाो वेरमणं सव्वानो मुसावायायो रमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ बेरमणं सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं (४।१३६)। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) १२३ इच्चेएणं दुविहेणं विणयमूलएणं धम्मेणं प्राणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीलो खवेत्ता लोयग्गपइट्टाणा भवंति ॥ ६०. तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एवं वयासी--तुब्भण्णं सुदंसणा! किंमूलए धम्मे पण्णत्ते? अम्हाणं देवाणुप्पिया ! सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते' । 'से वि य सोए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वसोए य भावसोए य । दव्वसोए उदएणं मट्टियाए य । भावसोए दब्भेहि य मंतेहि य । जं णं अम्हं देवाणुप्पिया ! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सज्जपुढवीए प्रालिप्पइ, तो पच्छा सुद्धेण वारिणा पवखालिज्जइ, तो णं असुई सुई भवइ । एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छंति ।। तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एवं वयासी-सुदंसणा ! से जहानामए केइ पूरिसे एग महं रुहिरकयं वत्थं रुहिरेण चेव धोवेज्जा', तए णं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेण चेव पक्खालिज्जमाणस्स अत्थि काई सोही ? नो इणटे समटे । एवामेव सुदंसणा! तुभं पि पाणाइवाएणं जाव' बहिद्धादाणेणं नत्थि सोही, जहा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव पक्खालिज्जमाणस्स नत्थि सोही। सदसणा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं रुहिरकयं वत्थं सज्जिय-खारेणं मालिपई, आलिपित्ता पयणं प्रारुहेइ", पारुहेत्ता उण्हं गाहेइ, तो पच्छा सुद्धणं वारिणा धोवेज्जा । से नूणं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स सज्जिय-खारेणं अणुलित्तस्स पयणं पारुहियरस उण्हं गाहियस्स सुद्धेणं वारिणा पक्खालिज्जमाणस्स सोही भवइ ? हंता भवइ ! एवामेव सुदंसणा! अम्ह पि पाणाइवायवेरमणेणं जाव" बहिद्धादाणवेरमणेणं अत्थि सोही, जहा वा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स' 'सज्जियखारेणं अणलित्तस्स पयणं प्रारुहियस्स उण्हं गाहियस्स' सुद्धणं वारिणा पक्खालिज्जमाणस्स अस्थि सोही।। १. सं० पा०-पण्णत्ते जाव सरग । ८. सज्जिया (क, घ)। २. धोएज्जा (क, ग, घ)। ६. अणु लिप्पति (ख, घ); अणुलिपइ (ग)। ३. X (ख, ग)। १०. आरोहइ (घ)। ४. काय (क, ग)। ११. ना० ११५५६ ५. यणढे (क, ख)। १२. मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं (क, ख, ग, घ)। ६. ना० ११५।५६ । द्रष्टव्यम्-१२२५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ! ७. मिच्छादसणसल्लेणं (क, ख, ग, घ)। १३. सं० पा०-वत्थस्स जाव सद्धेणं । द्रष्टव्यम्-शश५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ सुदंसणस्स विणयमूलय- धम्मपडिवत्ति-पदं ६२. तत्थ णं सुदंसणे संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ नमस, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! [ तुब्भं अंतिए ? ] धम्मं सोच्चा जाणित्तए || ६३. तए णं थावच्चापुत्ते अणगारे सुदंसणस्स तीसे य महइमहालियाए महच्च परिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा - सव्वाश्री पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वा मुसावाया वेरमणं, सव्वाय अदिण्णादाणाम्रो वेरमणं, सव्वानो बहिद्धादाणा वेरमणं जाव' ॥ ६४. तए णं से सुदंसणे समणोवासए जाए - श्रभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु - एसपिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ - पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं सह-भेज्जे पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा - संथारएणं • पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ सुण सुदंसणस्स पडिसंबोध - पयत्त-पदं o ६५. तए णं तस्स सुयस्स परिव्वायगस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे प्रज्झतिथए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु सुदंसणेणं सोयधम्मं विप्पजहाय विणयमूले धम्मे पडिवण्णे, तं सेयं खलु मम सुदंसणस्स दिट्ठि वामेत्तए पुणरवि सोयमूलए धम्मे प्राघवित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि जेणेव सोगंधिया नगरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वागावसहंसि भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता धाउरत-वत्थ-पवर-परिहिए पविरल- परिव्वायगेणं सद्धि संपरिवुडे परिव्वायगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडनिमित्ता सोगंधियाए नयरीए मज्भंमज्भेणं जेणेव सुदंसणस्स गिहे जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ ॥ errierमक हाओ ६६. तए णं से सुदंसणे तं सुयं एज्जमागं पासइ, पासित्ता तो ग्रन्भुट्ठेइ न पचेचुगच्छइ' नो आढाइ नो वंदइ तुसिणीए संचिट्ठइ || ६७. तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं प्रणन्भुट्टियं' पासित्ता एवं वयासी -- 'तुमं " सुदंसणा ! अण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता प्रब्भुट्ठेसि" पच्चुगच्छसि १. सं० पा० जाव सोवास जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे । २. एतत् १।५।५६ सूत्रात् पूरितम् । ३. राय० ६६४-६६७ । ४. ना० १।५।४७ । ५. सं० पा० - अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ६. x (क, ख, ग, घ ) । ७. पत्तुगच्छइ (घ ) । ८. अणुब्भुट्टियं ( ख, ग, घ ) । ६. तुमण्णं ( क ) । १०. सं० पा० - - अब्भुसि जाव वंदसि । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) १२५ आढासि° वंदसि, इयाणि सुदंसणा ! तुम मम एज्जमाणं पासित्ता' 'नो अब्भुट्ठसि नो पच्चुग्गच्छसि नो आढासि ° नो वंदसि । तं कस्स णं तुमे सुदंसणा ! इमेयारूवे विणयमूले धम्मे पडिवण्णे ? । ६८. तए णं से सुदंसणे सुएणं परिव्वायगेणं एवं वुत्ते समाणे आसणानो अब्भुट्टेइ, अब्भटेत्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सुयं परिव्वायगं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहनो अरिटुनेमिस्स अंतेवासी थावच्चापुत्ते नामं अणगारे 'पुवाणुपुब्धि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह चेव नीलासोए उज्जाणे विहरइ। तस्स णं अंतिए विणयमूले धम्मे पडिवणे ॥ ६९. तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं एवं वयासी-तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतिय पाउन्भवामो, इमाइं च णं एयारूवाई अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाइं पुच्छामो। तं जइ मे से इमाई अट्ठाई 'हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई ° वागरेइ', तनो णं वंदामि नमसामि । अह मे से इमाइं अट्ठाई 'हेऊई पसिणाई कारणाइं वागरणाई नो वागरेइ, तो णं अहं एएहिं चेव अटेहिं हेऊहिं निप्पट्ठ-पसिणवागरणं करिस्सामि । सुयस्स थावच्चापुत्तेण संवाद-पदं ७०. तए णं से सुए परिव्वायगसहस्सेणं सुदंसणेण य सेट्ठिणा सद्धि जेणेव नीलासोए उज्जाणे जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी-जत्ता ते भंते ? जवणिज्ज 'ते (भंते ?) ? अव्वाबाहं (ते भंते ? ) ? फासुयं विहारं (ते भंते ?) ?" ७१. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारे सुएणं परिव्वायगेणं एवं वुत्ते समाणे सुयं परिव्वायगं एवं वयासी-सुया ! जत्तावि मे जवणिज्जं पि मे अव्वाबाहं पि मे फासुयं विहारं पि मे ।। ७२. तए णं से सुए थावच्चापुत्तं एवं वयासी-किं ते भंते ! जत्ता? १. सं० पा०-पासित्ता जाव नो वंदसि । ६. प्रयुक्तादर्शेषु एतेषु त्रिष्वपि प्रश्नेषु 'ते भंते ?' २. सं० पा०-करयल° । इति पाठो नास्ति। क्वचितप्रयुक्तादर्श ३. सं० पाo.- अणगारे जाव इहमागए। 'जवणिज्ज' इति पदस्याने 'ते' इति पदं ४. हेऊणि (क); हेति (ख, ग, घ)। लभ्यते । तेनानुमीयते चतुर्वपि प्रश्नेषु ५. सं० पा०–अढाई जाव वागरेइ । एवमासीत् । उत्तरसूत्रेणाप्यस्य पुष्टिर्जायते । ६. वाकरेइ (ख, ग, घ)। १०. आदर्शषु 'ते' इति पदं न लभ्यते, किन्तु ७. सं० पा०—अट्ठाई जाव नो वागरे । पूर्वप्रसंगानुसारेणात्र तद् युज्यते । भगवस्या ८. नो से (ख, ग)। (१८।२०७) मपि इस्थमेव पाठो लभ्यते । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ सुया ! जण्णं मम नाण-दसण-चरित्त-तव-संजममाइएहिं जोएहिं जयणा, से तं जत्ता । से कि ते भंते ! जवणिज्ज ? सूया ! जवणिज्जे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे य। से कि तं इंदियजवणिज्जे ? सुया ! जण्णं ममं सोतिंदिय-चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई निरुवहयाइं बसे वटुंति', से तं इंदियजवणिज्जे । से किं तं नोइंदियजवणिज्जे ? सया ! जगणं मम कोह-माण-माया-लोभा खीणा उवसंतानो उदयंति. से तं नोइंदियजवणिज्जे । से कि ते भंते ! अव्वाबाहं ? सुया ! जण्णं मम वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया' विविहा रोगायंका नो उदीरेंति, से तं अव्वाबाहं । से कि ते भंते ! फासुयं विहारं ? सुया ! जण्णं पारामेसु उज्जाणेसु देउलेसु सभासु पवासु इत्थी-पसु-पंडगविवज्जियासु वसहीसु पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं ओगिण्हित्ता णं विहरामि, से तं फासुयं विहारं ॥ सरिसवयाणं भक्खाभक्ख-पदं सरिसबया ते भंते ! किं भक्खेया ? अभक्खेया ? सुया ! सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि ! से केणतुणं भंते ! एवं बुच्चइ--सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि ? सुया ! सरिसवया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--मित्तसरिसवया" य धण्णसरिसवयाय। तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवया ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहजायया सहबड्डियया सहपंसुकीलियया , ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। ७३. अग्रवतिष विष्वपि प्रश्नेषु आदर्शलब्धस्य सूत्रे 'सन्निवाइय' पदं विभक्त्यन्तं 'त' इति पदस्य स्थाने 'ते' इति पदं स्वीकृतमस्ति, तदाधारेणात्रापि तव स्वीकृतमस्ति । स्वीकृतम् । १. जवणिज्ज (क, ख, ग, घ)। भगवत्या ४. सरिसवता (ख, ग)। (१८।२०६) मपि इत्थमेव पाठो लभ्यते । ५. ° सरिसवा (ख, ग)। २. चिट्ठति (ख)। ६. सरिसवा (ख, ग)। ३. सन्निवाइय (क, ख, ग, घ) १ १:१।११२ ७. कीलयया (क); कीलया (ग, घ)। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) १२७ तत्थ णं जे ते धण्णसरिसवया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-फासुया य नफासुया य । अफासुया णं सुया ! [समणाणं निग्गंथाणं?] नो भक्खेया। तत्थ णं जेते 'फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा' य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते गं समणाणं निग्गंथाणं?] प्रभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते विहा पण्णत्ता, तं जहा—जाइया य अजाइया य" । तत्थ णं जेते अजाइया ते [णं समणाणं निग्गंथाणं ? ] अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा--लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते [णं समणाणं निग्गंथाणं? ] अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अटेणं सुया ! एवं बुच्चइ-सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि ! कुलत्थाणं भक्खाभक्ख-पदं ७४. "कुलत्था ते भंते ! किं भक्खेया ? अभक्खेया ? सुया ! कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ --कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि ? सुया ! कुलत्था दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थिकुलत्था य धण्णकुलत्था य । तत्थ णं जेते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कुलवहुया इ य कुलमाउया इय कूलधया इय 1 ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णकुलत्था ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते समणाणं निरगंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - फासुया य अफासुया य । अकासुया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्खेया । तत्थ णं जेते १. सरिसवा (क, ख, ग, घ)। भगवतीवतिपाठक्रमः संगतोस्ति । याचिता२. जातिया (क, ख, ग, घ)। नन्तरं एषणीयत्वस्य कापेक्षा स्यात् लिपि३. अजातिया (क, ख, ग, घ)। दोषेण अस्य परिवर्तनं जातमथवा अन्येन ४. भगवतीसूत्रे सोमिलप्रश्नोत्तरप्रसंगे (१८॥ केनचित् कारणेन, नेति वक्तुं शक्यते । २१४) एसणिज्जा अणेसणिज्जा, जाइया ५. सं० पा०–एवं कुलत्था वि भाणियन्वा । अजाइया, असौ पाठक्रमो विद्यते। तत्र नवर-इनं नाणत्तं-इत्थिकुलत्था य 'अफास या फासुया' इति पाठो नास्ति । अत्र धन्नकुलत्था य । इथिकुलत्था तिविहा 'जाइय' इति पाठानन्तरं 'एसणिज्जा अणे- पणत्ता. तं जहा--कुलवहुया इ य कुलमाउया सणिज्जा' इति पाठोस्ति । द्वयोस्तुलनायो इ य कुलधुया इ य । धन्नकुलत्था तहेव । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ नायाधम्मकहाओ फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जाइया य अजाइया य तत्थ णं जेते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निगंथाणं भक्खया । एएणं अट्ठणं सुया ! एवं वुच्चइ-कुलत्था भक्खेया वि अभवखे या वि° ।। मासाणं भक्खाभक्ख-पदं ७५. "मासा ते भंते ! कि भक्खया? अभक्खेया? सूया ! मासा भक्खेया वि अभक्खेया वि । से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-मासा भवखेया वि अभवखेया वि? सुया ! मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-कालमासा य अत्थमासा य धण्णमासा य । तत्थ णं जेते कालमासा ते दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा-सावणे भद्दवए आसोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चेत्ते वइसाहे जेट्ठामूले आसाढे । तेणं समणाणं निगंथाणं अभक्खेया।। तत्थ णं जेते अत्थमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य । ते णं समणाणं निगंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते समणाणं निगथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- फासुया य अफासुया य । अफासुया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्खेया । तत्थ णं जेते फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभवखेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा ---जाइया य अजाइया य । तत्थ णं जेते अजाइया ते णं समणाणं निगंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। १. सं० पा०एवं मासा वि । नवरं-इम नाणत्तं-मासा तिविहा पण्णता, तं जहाकालमासा य अत्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस, तं जहा--सावणे जाव आसाढे। ते ण अभक्खेया। अस्थमासा दुविहा--हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य । ते णं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया । एए अद्वेणं सुया ! एवं वुच्चइ - मासा भक्खेया विप्रभवखयावि It ०१ प्रत्थित्त-पहपदं ७६. एगे भवं ? दुवे भवं ? अक्खए भवं ? अव्वए भवं ? अवट्टिए भवं ? अगभूय भाव-भविए भवं ? " सुया ! एगे विग्रहं दुबेविग्रहं ग्रक्खए विग्रहं अव्वए वि ग्रहं अवट्ठिए विग्रहं प्रभूय-भाव-भविए विग्रहं । सेकेणटुणं भंते ! एगे विग्रहं ? दुवेवि अहं ? अक्खए विग्रहं ? अन्वए विग्रहं ? अवट्ठिए विग्रहं ? अणेगभूय-भाव-भविए वि श्रहं ? ० सुस्स परिव्वायगसहस्सेण पव्वज्जा-पदं ७७. एत्थ णं से सुए संबुद्धे यावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते ! तुभं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्मं निसामित्तए । ७८. तए णं यावच्चापुत्ते अणगारे सुयस्स चाउज्जामं धम्मं कहेइ ॥ ° ८०. १२६ सुया ! coagure 'एगे व अहं", नाणदंसणट्टयाए दुवे विग्रहं पट्टयाए क्खविग्रह, अवर वि अहं, अवट्ठिए वि श्रहं, उवयोगट्टयाए प्रणेगभूयभाव भविए विग्रहं ॥ ७६. तए णं से सुए परिव्वायए यावच्चापुत्तस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि संपरिवुडे देवाणुपिया अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए । अहासु देवाणुपिया | • तए गं से सुए परिव्वायए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए ग्रवक्कमइ, श्रवक्कमित्ता तिदंडयं य कुंडियाश्रो य छत्तए य छन्नालए य अंकुस य पवित्तए य केसरिया य° धाउरताओ य एगते एडेइ, सयमेव सिहं उप्पाडेइ, उप्पाडेत्ता जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स प्रतिए मुंडे 'भविता पव्वइए" । सामाइयमाइयाई चोदसपुब्वाई हिज्जइ || १. भगवतीसूत्रे (१८१२१३-२१८) एतत्तुल्यं प्रकरणमस्ति क्वचित् क्वचित् किंचित् पाठभेदो विद्यते । २. सं० पा० - प्रहं जाव अणेगभूयभाव भविए । ३. स० पा० ग्रहं जाव सुया । ४. एगेहं (क) एगे अहं ( ख, ग घ ) । ५. ४ ( ख, ग, घ ) । ६. X (घ ) । ७. सं० पा० - धम्म हा भाणियन्वा । ८. सं० पा० - उत्तरपुरत्थि में तिदंडयं जाव धाउरताओ । ९. सं० पा०—थावच्चापुत्ते जाव मुंडे | दिसीभाए १०. भवित्ता जाव पव्वइए ( ख, ग, घ ); अत्र 'जाव' शब्दस्य विपर्ययो जातोस्ति । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० नायाधम्मकहाओ सुयस्स जणवयविहार-पदं ५१. तए णं थावच्चापुत्ते सुयस्स अणगारसहस्सं सीसत्ताए वियरइ ॥ ८२. तए णं थावच्चापुत्ते सोगंधियायो नयरीनो नीलासोयानो उज्जाणामो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ थावच्चापुत्तस्स परिनिवाण-पदं ८३. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि संपरिवुडे जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ', दुरुहित्ता मेघधणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढवि सिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता जाव' संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पायोवगमणंणुवन्ने ॥ ८४. तए णं से थावच्चापुत्ते बहूणि वासाणि सामग्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव' केवलवरनाणदसणं समुप्पाडेता तो पच्छा सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्व दुक्ख °प्पहीणे ॥ सेलगस्स अभिनिक्खमणाभिप्पाय-पदं ८५. तए णं से सुए अण्णया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं ओग्गहं प्रोगिहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ८६. परिसा निग्गया। सेलो निग्गच्छइ ॥ ८७. "तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटतुटे सुयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं" देवाणुप्पिया ! १. द्रहति (ख)। ७. सं० पा०---समोसरणं । २. अतोग्रे ११२०६ सुत्रे 'सयमेव' इति ८. सं० पro... धम्म सोच्चा जं नवरं। पदं विद्यते । 8. अत्र पाठपूतिकारणेन 'निग्गंथं पावयणं' ३. सं० पा०-पूढवि जाव पापोवगमणं । इति पदं प्राप्त किन्तु ऐतिहासिकदृष्टयात्र ४. ना० १।२।२०६ । 'परहंत पावयणं' इति पदं समीचीनं स्यात । ५. असौ पाठः भगवती (६१५१) सूत्रात् १०. ना० १।१११०१ । पूर्तिमर्हति, तद्महावीरकालीनं वर्णनमस्ति, ११. जं नवरं (क, ख, ग, घ); संभवत: 'ज' ततोनाक्षरशोत्र घटनामहति । इति पदं 'जं तुब्भे वदह' इति पाठस्य ६. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे । संकेतरूपमस्ति। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) पंथगपामोक्खाइं पंच मंतिसयाई प्रापुच्छामि, मंड्यं च कुमारं रज्जे ठावेमि । तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया !! ५८. तए णं से सेलए राया सेलगपुरं नगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणे' सण्णिसणे ।। ८६. तए णं से सेलए राया पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! मए सुयस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिा अभिरुइए। 'तए णं अहं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं सुयस्स अणगारस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वयामि । तुभ णं देवाणुप्पिया ! किं करेह ? कि ववसह ? 'किं वा में हियइच्छिए सामत्थे ?' ६०. तए णं ते पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया सेलगं रायं एवं क्यासी-जइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउब्बिग्गा जाव' पञ्चयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया! के' अण्णे पाहारे वा आलंबे वा ? अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया ! संसारभउविग्गा जाव पव्वयामो। जहा" ण देवाणुप्पिया ! अम्हं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य" कुटुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं पाहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए पालंबणभूए चक्खुभूए°, तहा णं पव्वइयाण वि समाणाणं" बहूसु कज्जेसु य जाव यवखुभूए॥ ६१. तए णं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए एवं वयासी-जइ णं देवाणप्पिया! तुब्भे संसारभउव्विग्गा जाव" पन्वयह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया! सएसु-सएसु १. सिहासण (क, ख, ग, घ)। ८. ना० ११५८६ २. अभिरुतिते (ग)। ___६. किं (ख, ग, घ)। ३. तए णं अहन्नं (ख); अहन्नं (ग)। १०. जह (ख)। ४. सं० पा०-संसारभउद्विग्गे जाव पठवयामि । ११. X (क, ख, ग, घ)। ५. वसह (ग, घ)। १२. सं० पा०-कारणेसु य जाव तहा । १३. समणाणं (क, ख, ग, घ)। ७. किं भे हियइच्छिए, किं भे सामत्थे १४. ना० १३०८८ । (भ० १५:४५) । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ कुटुंबे जेट्टपुत्ते कुटुंबमज्भे ठावेत्ता पुरिससहस्तवाहिणी समाणा मम प्रतियं पाउब्भवह । ते वि तहेव पाउन्भवंति || मंडुयस्स रायाभिसेय-पदं ६२. तए णं से सेलए राया पंच मंतिसयाई पाउब्भवमाणाई पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठे कोडुं बियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयरस कुमारस्स महत्वं महग्घं महरिहं विउलं • रायाभिसेयं उवटुवेह || ६३. "तए णं ते कोडुंबियपुरिया मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायाभिसेयं वट्टवेंति । ६४. तणं से सेलए राया बहूहिं गणनायगेहि य जाव' संधिवालेहि यसद्धि संपरिवुडे मंडयं कुमारं जाव रायाभिसेएणं ग्रभिसिचइ ॥ ६५. तणं से मंडराया जाए - महयाहिमवंत-महंत मलय मंदर-महिंदसारे जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥ सेलयस्स निक्खमणाभिसेय-पदं o ६६. तए णं से सेलए मंडुयं रायं प्रापुच्छइ ॥ ७. तए णं मंडुए राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगपुरं नयरं आसिय- सित्त-सुइय सम्मज्जिग्रोवलित्तं जाव" सुगंधव रगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चपिह ॥ १. कोडुंबे ( ख ) । २. कोडुंब ० (घ) 1 ३. ० वाहिणीयाओ (घ) 1 १८. तए णं से मंडुए दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे एवं " वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगस्स रण्णो महत्थं महग्धं महरिहं विउलं निक्खमणाभिसेयं [ करेह ? ] जहेव मेहस्स तहेव नवरं -- परमावती देवी अग्गकेसे पडिच्छर, सच्चेव पडिग्गहं गहाय सीयं दुरुहइ । ग्रवसेसं तहेव जाव" || नायाधम्मकहाओ सीयाम्रो दुरूढा ४. सं० पा०-- महत्थं जाव रायाभिसेयं । ५. सं० पा० - अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरs | ६. ना० १११।२४ । ७. ना० १।१।११८ 1 ० ८. ओ० सू० १४ । ६. सं० पा० - आसिय जाव गंधवट्टिभूयं । १०. ना० १/१/३३ । ११. सहावे २ एवं (क) 1 १२. सं० पा० - महत्यं जाव निक्खमणाभिसेयं । १३. ना० १।१।१२२-१३२ । १४. ना० १।१।१३४-१४३; १।५।२६-३३ । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (सेलगे) १३३ सेलगस्स पव्यज्जा-पदं ६६. "तए णं से सेलगे [पंचहि मंतिसएहि सद्धि' ?] सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव सुए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुयं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव' पव्वइए। सेलगस्स अणगारचरिया-पदं १००. तए णं से सेलए अणगारे जाए जाव' कम्मनिग्धायणट्ठाए एवं च णं विहरइ ।। १०१. तए णं से सेलए सुयस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए ° सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थं-'छट्ठम - दसम - दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ । सयस्स परिनिव्वाण-पदं १०२. तए णं से सुए सेलगस्स अणगारस्स ताई पंथगपामोक्खाइं पंच अणगारसयाई सीसत्ताए वियरइ ॥ १०३. तए णं से सुए अण्णया कयाइ सेलगपुराओ नगरानो सुभूमिभागाओ उज्जा णाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। १०४. तए णं से सुए अणगारे अण्णया कयाइ' तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धि संपरिवडे पुव्वाणुपुद्धि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव पंडरीयपव्वए' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दरुहइ, दुरुहित्ता मेघधणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता जाव' संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइविखए पापोव गमणंणुवन्ने ।। १०५. तए णं से सुए बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झसित्ता, सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव' केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तो पच्छा सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्प हीणे ! सेलगस्स रोगातंक-पदं १०६. तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लहेहि - - -- - १. सं० पा०-अवसेस तहेव जाव सामाश्य- ४. ना० ११५१३५-३७ ॥ माइयाई। ५. सं० पा०-च उत्थ जाव विहर। २. प्रव्रज्या प्रसंगे मंत्रिणामुल्लेखोनोपलभ्यते, ६. कयाई (ख)। सच आवश्यकोस्ति । तेनासो पाठ: प्रकरण- ७. सं. पा.-पव्दए जाब सिद्धे। सादृश्येन थावच्चापुत्रवर्णनगत ३४ सूत्रात् ८. ना० १६११२०६ । पूरितोस्ति । है. भग०६।१५१ । ३. ना० ११११४६,१५० । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कतेहि य पमाणाइक्कतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स' सरीरगंसि 'वेयणा पाउन्भूया'-उज्जला' 'विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ॥ १०७. तए ण से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भक्खे जाए यावि होत्था ।। १०८. तए णं से सेलए अण्णया कयाइ पुवाणुपुब्धि चरमाणे 'गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेलगपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ; उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे ° विहरइ।। १०६. परिसा निग्गया। मंडुनो वि निग्गो सेलगं अणगारं 'वंदइ नमसइ पज्जु वासई ।। सेलगस्स तिगिच्छा-पदं ११०. तए णं से मंडुए राया सेलगस्स अणगारस्स सरीरगं सुक्कं भक्खं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–अहण्णं भंते ! तुभं अहापवत्तेहि तेगिच्छिएहि अहापवत्तेणं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं तेगिच्छं प्राउट्टावेमि। तुभ णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह, फासु-एसणिज्ज पीढ-फलग-सेज्जा संथारगं प्रोगिण्हित्ताणं विहरह।। १११. तए णं से सेलए अणगारे मंडुयस्स रण्णो एयमटुं तह 'त्ति' पडिसूणेइ ॥ ११२. तए णं से मंडुए सेलगं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउडभए तामेव दिसि पडिगए। ११३. तए णं से सेलए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव* उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते स-भंड-मत्तोवगरणमायाए पंथगपामोखेहि पंचहिं १. निच्च य (क, ख, ग, घ)। प्रतिस्थलमद्यापि क्वापि नोपलब्धम । २. सुहोइयस्स (ग)। ८. अहापउत्तेहि (ख); अहापवत्तितेहिं (घ)। ३. रोगायके पाउम्भूए (वृपा) ! १. तिगच्छएहि (क)। ४. सं० पा०-उज्जला जाव दुरहियासा। १०. अहापवित्तेणं (ख)। ५. सं० पा०-चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे ११. आउंटावेमि (क, ग, घ); आउंट्ठावेमि जाव विहर। (ख); आदर्शषु प्रायेण 'आउंटावेमि' इति ६. अणगारं जाव वंदइ नमसइ, रत्ता पज्ज- पाठो लभ्यते, वृत्तावत्र नास्त्यनुस्वारः । वासइ, २त्ता (क)। १२. दिसं (क)। ७. भुक्खं जाव (क, ख, ग, घ) अत्र आदर्शषु १३. ना० १११।२४ । 'जाव' शब्दः उपलभ्यते, किन्तु अस्य Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभय (से लगे ) १३५ गारसहिं सद्धि' सेलगपुर मणुप्पविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव 'मंडयस्स रण्णो जाणसाला " तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्ज' पीढ-फलगसेज्जा-संथारगं मिहित्ताणं विहरइ || O ११४. तए णं से मंडुए तेगिच्छिए सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - तुभेणं देवाणुप्पिया ! सेलगस्स फासु- एसणिज्जेणं' 'प्रोसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं° तेगिच्छं उह ॥ ११५. तए णं ते तेगिच्छिया मंडुएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्टा सेलगस्स ग्रहापत्तेर्हि प्रोसह भेसज्ज - भत्तपाणेहिं तेगिच्छं प्राउट्टेति, 'मज्जपाणगं च से उवदिसंति" 11 ११६. तए णं तस्स सेलगस्स अहापवत्ते हि ग्रोसह भेसज्ज - भत्तपाणेहिं मज्जपाणएणय से रोगायंके उवसंते यावि होत्था -- हट्ठे गल्लसरी" जाए ववगयरोगायके || सेलगस्स पमत्तविहार-पदं ११७. तए णं से सेलए तंसि रोगायंकंसि उवसंतंसि समाणंसि तंसि विपुले असण-पाणखाइम साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए गढिए गिद्धे ग्रज्भोववन्ने प्रसन्ने ग्रोसन्नविहारी, पासत्ये पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते यमत्तविहारी' संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध" - पीढ"- फलग - सेज्जा - संथारए पत्ते यावि विहरइ, नो संचाएइ फासु-एस णिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा - संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं प्रापुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरित्तए || साहूहि सेलगस्स परिच्चाय- पर्द ११८. तए णं तेसि पंथगवज्जाणं पंचहं अणगारसयाणं श्रण्णया कयाइ एगयो सहियाणं" "समुवागयाणं सष्णिसण्णाणं सष्णिविद्वाणं पुव्वरत्तावरत्तकाल - o १. X ( ख, ग, घ ) । २. मड्डया जाणसाला ( ग ) । ३. सं० पा० - फासूयं पीढ जाव विहरइ । ४. तिमिच्छिए ( क, ख ) 1 ५. सं० पा० - फासुएसणिज्जेणं जाव तेगिच्छ । १२. ओवद्ध (क, ख ) | १३. सं० पा०—पीढं । ६. आउटेह (क, ख, ग ) | ७. X ( क ) ; मज्जण ० ( ख, ग ) सर्वत्र । ८. सेलग्रस्स तेहिं २ (क) । ६. सं० पा०-हापवतेहिं जाव मज्जपाणएन । o १०. मल्लसरीरे ( ग ); बलियसरीरे ( क्वचित् ) । श्रत्र 'कल्ले' शब्दस्य ककारस्य गकारादेशो जातोस्ति । ११. सं० पा० - एवं पासत्ये कुसीले पमत्ते । ७ १४. सं० पा० - बहिया जाव विहरित्तए । १५. सं० पा० - सहियाणं जाव पुव्वरता । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहानी समयसि धम्मजागरियं जागरमाणाणं अयमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-एवं खलु सेलए रायरिसी चइत्ता रज्जं जाव' पव्वइए विउले' असण-पाण-खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए नो संचाएइ फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं प्रापुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरित्तए । नो खलु कप्पइ देवाणप्पिया ! समणाण' निगथाणं' नोसन्नाणं पासत्थाणं कुसोलाण पमत्ताणं संसत्ताणं उउ-बद्ध-पीढ-फलग-सज्जा-संथारए° पमत्ताणं विहरित्तए । तं सेयं खल देवाणुप्पिया ! अम्हं कल्लं सेलग रायरिसि आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता सेल गस्स अणगारस्स पंथयं अणगारं वेयावच्चकरं ठावेत्ता बहिया अब्भुज्जएणं' 'जणवयविहारेणं° विहरित्तए.एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता कल्लं जेणेव सेलए रायरिसी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेलयं रायरिसि यापुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणंति, पच्चप्पिणित्ता पंथयं अणगारं वेयावच्च कर ठावेंति, ठावेत्ता वहिया •जणवर्यावहारं विहरंति ॥ पंथगस्स चाउम्मासिय-खामणा-पदं ११६. तए णं से पंथए सेलगस्स सेज्जा-संथारय-उच्चार-पासवण-खेल्ल-सिंघाणमत्त ग्रोसह-भेसज्ज-भत्तपाणएणं अगिलाए विणएणं वेयावडियं करेइ ।। १२०. तए णं से सेलए अण्णया कयाइ कत्तिय-चाउम्मासियंसि विउल असण-पाण खाइम-साइमं आहारमाहारिए सूबहुं च मज्जपाणयं पीए पच्चावरण्हकाल समयंसि" सुहप्पसुत्ते ॥ १२१. तए णं से पंथए कत्तिय-चाउम्मासियंसि कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं १. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। १०. मज्जणपाययं (ख)। २. श्रो० सू० २३ । ११. पुवावरण्हकालसमयसि (क, ख, ग, घ)। ३. विपुलेणं (क)। सर्वेषु आदर्शषु 'पुन्वावरण्ह °' इति पाठो ४. सं० पा०--संचाएइ जाव विहरित्तए। लभ्यते, किन्तु अर्थ-मीमांसया नासावत्र ५. सं० पा०-समणाणं जाव पमत्ताणं । अस्य संगतोस्ति। अत्र सायंकालीनसमयस्य पूर्ति: १।५।११० सूत्रे प्रदत्तसंकेतानुसारेण प्रसंगोस्ति, अतः पच्चावरण्ह' इति कृतास्ति । पाठोस्माभिः गृहीतः । आदर्शषु लिपिदोषेण ६. एतत् पदं ११५।१२४ सूत्राधारेण स्वीकृतम् । 'पच्चा०' स्थाने 'पुन्वा' जातमिति ७. सं० पा०-- अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए। संभाव्यते। उपासकदशासूत्रेपि (६।१७) ८. सं० पा०-बहिया जाब विहरति । इत्थं जातमस्ति । ६. कत्तिया (ख)। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयरण (सेलगे) पडिक्कते, चाउम्मासियं पडिक्कमिउकामे सेलगं रायरिसिं खामणट्टयाए सीसेणं पाएसु संघट्टेइ ।। सेलगस्त कोव-पदं १२२. तए णं से सेलए पंथएणं सीसेणं पाएसु संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते' 'रुटे कुविए चंडिक्किए ° मिसिमिसेमाणे उद्धेइ, उद्वेत्ता एवं वयासी-से केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए', 'दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ कित्ति-परिवज्जिए, जे णं ममं सुहपसुत्तं पाएसु संघट्टेइ ? १२३. तए णं से पंथए सेलएणं एवं वुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिए करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि ° कटु एवं वयासी--'अहं णं" भंते ! पंथए कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कते', चाउम्मासियं खामेमाणे देवाणुप्पियं वंदमाणे सीसेणं पाएसु संघट्टेमि । 'तं खामेमि गं तुब्भे देवाणुप्पिया" ! खमंतु णं देवाणुप्पिया! खंतुमरहति णं देवाणुप्पिया ! नाइ भुज्जो एवंकरणयाए त्ति कटु सेलयं अणगारं एयमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेइ ।। सेलगस्स अब्भुज्जयविहार-पदं १२४. तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स पंथएणं एवं वुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिर' •चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुपज्जित्था-- एवं खलु अहं चइत्ता रज्जं जाव पव्वइए प्रोसन्ने प्रोसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउवद्ध-पीढ-फलगसेज्जा-संथारए पमत्ते यावि ° विहरामि। तं नो खलु कप्पइ समणाणं निग्गंथाण "प्रोसन्नाणं पासत्थाणं कुसीलाणं पमत्ताणं संसत्ताणं उउबद्ध-पीढ१. सं० पा०-प्रासुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे। प्रयुक्तादर्शाधारेण स्वीकृतः। १।१६।२६५ २. सं० पा०–अपत्थियपत्थिए जाव वज्जिए सूत्रेपि लभ्यते । (ख, ग, घ)। अत्रापि त्रिषु आदर्शपु अन्यत्र ७. खंतुमरुहंतु (क, ग); खमन्तु ममाराहं तुम च उपासकदशादिषु सूत्रेषु पाठान्तरनिर्दिष्टः णं (ख)। पाठो लभ्यते, किन्तु 'पत्थय' इति पाठे ८. सं० पा०-अज्झिथिए जाव सम्प्पज्जित्था। समाससारल्यमस्ति। ६. सं० पा०-अहं रज्जं च जाव ओसन्न ३. सं० पा०-करयल। जाव उउबद्धपोढ° विहरामि । ४. अहण्णं (ख)। १०. प्रो० सू० २३ । ५. पडिक्कते चाउम्मासिय पडिक्कते (क)! ११. सं० पा०-निग्गंथाणं जाव विहरित्तए । ३. x (क, ख, ग, घ); असी पाठः क्वचिद् Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ मायाधम्मकहाओ १२५. फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ताणं ० विहरित्तए। तं सेयं खलु मे कल्लं मंड्यं रायं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए – एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं' •मंडुयं रायं प्रापुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जासंथारगं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं' विहरइ॥ एवामेव समणाउसो ! जे निगंथे वा निग्गंथी वा ओसन्ने •प्रोसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा °-संथारए पमत्ते विहरइ, से गं इहलोए चेव वहूर्ण समणाणं वहूर्ण समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं प्रागच्छइ बहूणि दंडणाणि' य अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार कंतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिरसइ ।। १२६. तए णं ते पंथगवज्जा पंच अणगारसया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा अण्णमण्णं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी ---एवं खलु देवाणुप्पिया ! सेलए रायरिसी पंथएणं' 'अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेण ° विहरइ । तं सेयं खल देवाणप्पिया! अम्हं सेलग रायरिसिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता सेलगं रायरिसि उवसंपज्जित्ता गं विहरति ।। १२७. तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अणगारसया •जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणिय-सणियं दुरुहंति, दुरुहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता जावसंलेहणा-झूसणा-झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया पाओवगमणंणुवन्ना॥ १. अब्भूज्जएर्ण जाव (क, ख, ग, घ); अत्र जाव पदं अनावश्यक प्रतिभाति । ११५११८ सूत्रे संक्षिप्तपाठः आसीत् तत्र 'जाव' पदस्योपयोगित्वम्, किन्तु नात्र । २. स० पा०-कल्ल जाव विहरइ । ३. जाव (क, ग, घ); अत्र लिपिदोषेण 'जे' पदस्य स्थाने 'जाव' इति पदं जातम् । ४. सं० पा०-ओसन्ने जाव संथारए। ५. सं० पा०-हीलणिज्जे संसारो भाणियब्वो। ६. पू०-ना० ११३।२४ । ७. सं० पा०---पथएणं जाव विहरई । ८. सं० पा०-पंच अणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पुंडरीए पन्वए तेणेव उवागच्छति जहेव थाणच्वापुत्ते तहेव सिद्धा। ६. ना० १११०२०६। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ dri अभवणं (सेलगै ) १३६ o १२८. तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अणगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए प्रत्ताणं भूसित्ता, सट्ट भत्ता असणाए छेदित्ता जाव' केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सब्वदुक्खप्पहीणा || १२६. एवामेव समणाउसो ! जो निग्गंथो वा निग्गंथो वा' अवभुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरइ, से णं इहलोए चैव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नम॑सणिज्जे पूर्याणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वियणं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयपाणि य एवं हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिर, पुणो णाइयं च गं प्रणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं • वीवइस्सर || निक्खेव पदं १३०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण पंचमस्स नायज्भयणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा--- सिढिलिय- संजम - कज्जा वि, होइउं उज्जवंति जइ पच्छा | संवेगा ते सेलओ व्व आराहया होंति ॥ १ ॥ १. भग० ६।३३ । २. सं० पा० – निम्मंथो वा २ जाव विहरिस्सइ (क, ख, ग, घ ); अत्र लिपिदोषेण 'वी ईव इस्सइ' स्थाने 'विहरिस्सइ' इति जातम् । यद्यत्र 'विहरिस्सइ' इति पदं स्यात्, तर्हि प्रस्तुतपाठस्य पूर्तिरपि न स्वात्, न च यच्छन्दस्योत्तरवर्ती तच्छब्दस्यनिर्देशोपि प्राप्तो भवेत् । तेनात्र इति कल्पना कतु न्याय्या यल्लिपिदोषेण विपर्ययोसौ जातः । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव - पदं १. २. ३. गरुयत्त-लहुयत्त-पदं ४. भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्भयणस्स प्रथमट्टे ! नायज्भयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? जइ णं भंते! समणे पण्णत्ते, छट्टस्स णं भंते एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं । परिसा निग्गया || तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवम्रो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे समणस्स भगवओो महावीरस्स दूरसामंते जाव' सुक्कज्झाणोवगए विहरइ || चट्ठ अभयणं तुंबे तए णं से इंदभूई नामं अणगारे जायसड्ढे जाव' एवं वयासी - कहण्णं' भंते ! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छति ? गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंबं निच्छिदं निरुवयं १. ओ० सू० ८२ । २. ओ० ० ८३ । भेहिय कुसेहिय वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिपइ, लिपित्ता उण्हे दलयइ, दलयित्ता सुक्कं समाणं दोच्चंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिपइ, लिपित्ता उन्हे दलयइ, दलयित्ता सुक्कं समाणं तच्चपि दब्भेहि य कुसेहि वेढे, मट्टियावे लिंपइ, उन्हे दलयइ । एवं खलु एएणुवाएणं अंतरा वेढेमाणे १४० ३. कह णं (क, ग) । ४. सुक्कं ० ( क ध ) | Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुटुं अज्झयणे (तुंबे) अंतरा लिंपमाणे' अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अट्टहि मट्टियालेवेहि लिंपइ', अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा । से नूणं गोयमा ! से तुंबे तेसि अटण्हं मट्टियालेवेणं गरुययाए' भारिययाए' गरुय-भारिययाए' उप्पि सलिलमइवइत्ता अहे धरणियल-पइट्ठाणे भवइ। एवामेव गोयमा ! जीवा वि पाणाइवाएणं. मसावाएणं यदिण्णादाणेणं मेहणेणं परिग्गहेणं जाव' मिच्छादसणसल्लेणं अणुपुट्वेणं अट्टकम्मपगडीयो समज्जिणित्ता तासि गरुययाए भारिययाएर गरुय-भारिययाए कालमासे कालं किच्चा धरणियलमइवइत्ता अहे नरगतल-पइट्ठाणा भवंति । एवं खलु गोयमा ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति । 'अह णं'१५ गोयमा ! से तुंबे तंसि पढमिल्लुगंसिर मट्टियालेसि तित्तंसि कुहियंसि परिसडियंसि ईसि धरणियलाओ उप्पतित्ता ण चिटुइ। तयाणंतरं दोच्चं पि मट्टियालेवे तित्ते कुहिए परिसडिए ईसि धरणियलाओ° उत्पतित्ता णं चिट्ठइ । एवं खलु एएणं उवाएणं तेसु असू मट्टियालेवेसु तित्तेसु" 'कुहिएसु परिसडिएसु° [से तुंबे ? ] विमुक्कबधणे" अहे धरणियलमइवइत्ता उप्पि सलिलतल-पइट्ठाणे भवइ । एवामेव गोयमा ! जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं अणपूवेणं अट्रकम्मपगडीअो खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पि लोयग्ग-पइदाणा भवंति । एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्त वमागच्छति ।। निक्खेव-पदं ५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं छटुस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । --त्ति बेमि ॥ १. लिपेमाणे (ख, घ)। ११. ना० १११२०६ । २. सुक्खमाणे (ख, ग, घ)। १२. X(क, ख)। ३. आलिपइ (ख, ग)। १३. X(ग)। ४. पक्खेवेज्जा (ख) १४. मतिवतित्ता (ख); मतिवितित्ता (ग)। ५. गुरुय ° (ख, ग)। १५. अहष्णं (क, ग, घ)। ६. ४(ख)। १६. पढमिलुगंसि (ख)। ७. x(ग)। १७. सं० पा०- मट्टियालेवे जाव उपतित्ता। ८. मतिवतित्ता (ख, ग)। १८. सं० पा०---तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे । ६. धरणितल (क)। १६. विमुक्कबंधणेसु (क)। १०. सं० पा०-पाणाइवाएणं जाव मिच्छा- २०. लहत्तं (ख)। दसणसल्लेणं। २१. १६१७ । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ नायाधम्मकहाओ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जह मिउलेवालित्तं, गुरुयं तुंबं अहो वयइ । एवं कय-कम्मगुरू, जीवा वच्चंति अहरगई ॥१॥ तं चेव तविमुक्कं, जलोवरि ठाइ जाय-लहुभावं । जह तह कम्म-विमुक्का, लोयग्ग-पइट्ठिया होंति ॥२॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ra-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं छट्टुस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! नायज्भयणस्स के श्रट्टे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था । सुभूमिभागे उज्जाणे | ३. ४. सत्यवाहपदं तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्यवाहे परिवसइ - प्रड्ढे जाव' अपरिभूए । भद्दा भारिया -- प्रहीणपंचिदियसरीरा जाव सुरूवा ॥ ५. सत्तमं अयणं रोहिणी तस्स णं णस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदागा होत्या, तं जहा - धणपाले धणदेवे धणगोवे धण रक्खि ॥। धणस्स परिक्खापओग-पदं ६. तस्स गं धणस्स सत्यवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्या, तं जहा - उज्झिया भोगवइया रक्खिया' रोहिणिया || - तए णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स प्रण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेered अज्भथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे • समुप्पज्जित्था - एवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं ईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भसेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह पभितीणं सयस्स य कुटुंबस्स बहुसु कज्जेसु य कारणेसु १. ना० १५३७ । २. ना० १/२/५ १ ३. रक्खित्तिया ( ग ); रक्खितिया (घ ) । ४. सं० पा० – इमेवारूवे जाव समुप्पज्जित्था ५. सं० पा० ईसर जाव पभितीणं । १४३ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ नायाधम्मक हाओ कोडुंबे मंते य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य श्रापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं श्राहारे आलंबणे चक्खू, मेढीभूते पमाणभूते आहारभूते प्रलंबणभूते चक्खूभूए सव्वकज्जवड्ढावए । तं 'न नज्जइ" णं मए गयंसि वा चुयंसि वा मयंसि वा भग्गंसि वा लुग्गंसि वा सडियंसि वा पडियंसि वा विदेसत्यंसि वा विप्पवसियंसि वा इमस्स कुडुंबस्स के मन्ने आहारे वा प्रलंबे वा पडिबंधे वा भविस्सइ ? तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दियरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ - "नियग-सयण संबंधि परियणं चरण् य सुण्हाण कुलधरवगं श्रमंतेत्ता तं मित्त-नाइ नियग'- सयण-संबंधि- परियणं चउण्ह य सुव्हाण कुलधरवग्गं विपुलेणं असण- पाण- खाइम साइमेणं धूव- पुप्फ-वत्थ-गंध- मल्लालंकारेण य° सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरस्रो चउन्हं सुण्हाणं परिक्खणट्टयाए पंच-पंच सालिक्खए दलइत्ता जाणामि ताव का किह वा सारखखेइ वा ? संगोवेइ वा ? संत्र वा ? एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्ले पाउप्पभायाए रणी जाव उट्टियम सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते 'विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्त-नाइ" नियग-सयण-संबंधिपरियणं चउण्हय सुण्हाणं कुलघरवग्गं ग्रामंते इ", तओ पच्छा पहाए भोयणमंडवंसि सुहास वरगए तेणं मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि-परियणेणं उन्ह सुहाणं कुलधरवग्गेणं सद्धि तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं ग्रासादेमाणे जाव "सक्कारेइ, सकारेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलधरवग्गस्स पुरस्रो पंच सालिक्खए गेहइ, गेण्हित्ता जे सुह उज्झियं" सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुमं णं पुत्ता ! मम १. X ( ख, ग ) २. मए त्ति मयि (वृ ) | ३. ना० १११।२४ ४. सं० पा०—नाइ ! ५. साणं ( ख ) । ६. सं० पा० नियग | ७. साणं ( ख, ग ) । ८. सं० पा०-- गंध जाव सक्कारेत्ता । ६. सं० पा० नाइ । १०. ना० १।१।२४ ११. सं० पा० नाइ° । १२. मित्त-नाइ चउण्ह य सुष्हाणं कुलघरवग्ग आमंते, विपुलं असणं ४ उवक्खडावेs (क, ख, ग ) । १३. सं० पानाइ । १४. ना० १३१५१ । १५. सं० पा० - नाइ° । १६. उज्झिइतं ( ख ) ; उज्झिहतितं (ग); उज्झिहितितं (घ) । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अझयणं (रोहिणी) ७. तए णं सा उज्झिया धणस्स तह त्ति एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता धणस्स सत्थवाहस्स हत्या ते पंच सालिक्खए गेहइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एतमवक्कमियाए इमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था — एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि बहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिट्ठति तं जया णं मम ताश्रो इमे पंच सालिक्खए जाएसई, तया णं अहं पल्लतराम्रो अणे पंच सालिक्खए गहाय दाहामि त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ते पंच सालिक्खए एगंते एडेइ, सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्या ॥ एवं भोगवइयाए वि, नवरं - सा छोल्लेइ, छोल्लेत्ता अणुगिलइ, अणुगिलित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था || ε. o एवं रक्खियाए वि, नवरं - गेण्हइ, गेव्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारू ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु ममं ताओ इमस्स मित्त- नाइ' - "नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह् य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरम्रो सद्दावेत्ता एवं वयासी तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थाओं इमे पंच सालिक्खए गेहाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता ! तुमं इमे पंच सालिक्खए जाएज्जा, तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जा एज्जासि ति कट्टु मम हत्थंसि पंच सालिक्खए दलयइ । तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं ति कट्टु एवं संपेइ संपेहेत्ता ते पंच सालिक्खए सुद्धे वत्थे बंधइ, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवइ, पविखवित्ता" उसीसामूले ठावेइ, ठावेत्ता तिसंभं पडिजागरमाणी- पडिजागरमाणी विहरइ ॥ १०. तए णं से धणे सत्थवाहे तहेव" मित्त नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स १४५ हत्या इमे पंच सालिक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी' संगोवेमाणी विहराहि । जया णं ग्रहं पुत्ता ! तुमं इमे पंच सालिक्खए जाएज्जा, तथा गं तुमं मम इमे पंच सालिक्खए पडिनिज्जा एज्जासि' त्ति कट्टु सुण्हाए हत्थे दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ || ८. १. संरक्खमाणी (ग) 1 २. हं (क, ख ) । ३. पडिदिज्जा एज्जासि ( क ) ; दलएज्जासि ( ग ) ; पडिदेज्जासि (घ) । ४. जातिसति ( ख ) । ५. तता (क) । ६. देहामि ( ख, ग ) 1 ७. एमेयारूये ( ख ) । ८. सं० पा०- नाइ° । ६. सं० पा० - हत्याओ जाव पडिनिज्जा एज्जासि । १०. पक्खिवइ २ मंजूसाए पक्खिवइ २ (क, ध ) | ११. तस्सेव ( ख, ग ) । १२. सं० पा०-मित्त जाव चउत्थं । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ नायाधम्मकहाओ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता चउत्थं रोहिणीयं सुण्हं सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुम णं पुत्ता ! मम हत्थानो इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, जाव' गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झस्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था---एवं खलु ममं तारो इमस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं पत्ता ! मम हत्थानो इम पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणपत्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि। जया णं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिग्रक्खए पडिनिज्जाएज्जासि त्ति कट्ट मम हत्यसि पंच सालिमक्खए दलयइ° । तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं' । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिमक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए त्ति कटु एवं संपहेइ, संगेहेत्ता कुलघर-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- तुम्भे देवाणुप्पिया ! एए पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि निवइयंसि समाणंसि खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेह, करेत्ता इमे पच सालिअक्खए वावह, वावेत्ता दोच्चं पि 'तच्चं पि" उक्खय-निहए' करेह, करेत्ता वाडिपक्खेवं करेह, करेत्ता सारक्खमाणा सगोवेमाणा आणुपुब्वेण संवड्ढेह ।। ११. तए णं ते कोडुबिया रोहिणीए एयमट्ठ पडिसुणेति, ते पंच सालिअक्खए गेहति, अणुपुव्वेणं सारक्खंति, संगोविति' ॥ १२. तए ण कोडविया पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि निवइयंसि समाणंसि खड़ागं कयारं सुपरिकम्मियं करेंति, ते पंच सालिमक्खए ववंति, दोच्चं पि तच्च पि उक्खय-निहए करति, वाडिपरिक्खेवं करेंति, अणुपुव्वेणं सारक्खेमाणा संगोवेमाणा संवढेमाणा विहरति ।। १३. तए ण ते साली अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवद्भिज्जमाणा साली जाया-- किण्हा किण्होभासा नीला नीलोभासा हरिया हरिप्रोभासा सीया सीयोभासा णिद्धा गिद्धोभासा तिव्वा तिव्वोभासा किण्हा किण्हच्छाया नीला नीलच्छाया हरिया हरियच्छाया सीया सीयच्छाया णिद्धा गिद्धच्छाया तिव्वा तिव्वच्छाया घण-कडियकडिच्छाया रम्मा महामेह निउरंबभूया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। १. स. पा०-सहावेइ जाव तं। २. ना० श७६,७ । ३. कारणेणं ति कटु (क, घ)। ४. x(क, ग)। ५. निक्खए (क, ख, ग, घ)। ६. ४(क, ख, ग)। ७. संगोविति विहरति (क, ख, ग, घ)। ८. सं० पा०—किण्होभासा जाव निउरंबभूया। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झयणं (रोहिणी) १४७ १४. तए णं ते साली पत्तिया वत्तिया' गम्भिया पसूइया आगयगंधा' खीराइया' बद्धफला पक्का परियागया सल्लइय-पत्तइया 'हरिय-फेरंडा" जाया यावि होत्था! तए णं ते कोडंबिया ते साली पत्तिए वित्तिए गम्भिए पसूइए आगयगंधे खीराइए बद्धफले पक्के परियागए° सल्लइय-पत्तइए जाणित्ता तिक्खेहि नवपज्जण एहिं असिएहि लुणंति, लुणिता करयलमलिए करेंति, करेत्ता पुणंति । तत्थ णं चोक्खाणं सूइयाणं' अखंडाणं अफुडियाण छडछडापूयाण सालीणं मागहए पत्थए जाए। १६. तए णं ते कोडंबिया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति पक्खिवित्ता ओलिपति, प्रोलिपित्ता लंछिय-मुद्दिए' करेंति, करेत्ता कोट्ठागारस्स एगदेसंसि ठावेंति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेभाणा विहरंति ॥ १७. तए णं ते कोडुबिया दोच्चंसि वासारत्तंसि पढमपाउसंसि महावट्रिकायंसि निवइयंसि समाणंसि ? ] खुड्डाग केयारं सुपरिकम्मियं करेंति, ते साली ववंति", दोच्चंपि उक्खाय-णिहए करेंति जाव असिएहि लुणंति लुणित्ता" चलणतल मलिए करेंति करेत्ता पुणंति । तत्थ ण" सालीणं बर्वे कुडवा 'जाया । १८. तएण ते कोडुविया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति, पक्खिवित्ता प्रोलिपंति ओलिपित्ता लंछिय-मुद्दिए करेंति, करेत्ता कोट्ठागारस्स ° एगदेसंसि ठावेंति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहरंति ॥ १६. तए ण ते कोडुबिया तच्चसि वासारत्तसि महावुट्टिकायंसि निवइयंसि [समाणसि ?] केयारे" सुपरिकम्मिए करेंति जाव" असिएहिं लुणंति, लुणित्ता संवहति, संवहित्ता खलयं करेंति, मलेति,“ पुणंति । तत्थ णं" सालीणं बहवे कुंभा जाया ॥ १. पाठान्तरेण तयावत्ति (व)। १०. °देसम्मि (ग)। २. आययगंधा (वृ)। ११. वुप्पंति (क, ग); वुपंति (ख); बुप्पंति (घ)। ३. क्षीरकिता (१) । १२. ना० ११७:१२-१५ । ४. सल्लइया (क, ख, ग, घ, वृरा)। १३. जाव (क, ख, ग, घ)। ५. हरिया (ख); ° पेरु डा (ग)। १४. पू०-ना० ११७।१५ । ६. सं० पा०--पत्तिए जाव सल्लइयपत्तइए । १५. सं० पा०-कुडवा जाव एगदेसंसि । ७. सूयाणं (घ)। १६. केदारे (ख, ग, घ)। ८. छड्डछड्डाण पूयाणं (क); छड्डछड्डा- १७. ना० ११७१२-१५ । पूयाणं (ख); छडछडाभूयाणं (ग, वृपा); १८. मेलित्ति (ख); मेलेति (ग, घ) । छडछडपूयाणं (घ)। .. १९. पू०-ना० ११७।१५। ६. मुद्दियाए (क)। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहानो २०. तए ण ते कोडुबिया ते साली कोट्ठागारंसि पल्लसि' •पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अोलिपंति, ओलिपित्ता लंछिय-मुदिए करति, करेत्ता सारक्खमाणा संगोवे माणा विहरंति ।। २१. चउत्थे वासारत्ते बहवे कुंभसया जाया । परिक्खा-परिणाम-पदं २२. तए णं तस्स धणस्स पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाणंसि पुन्वरत्तावरत्तकाल समयंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाएवं खलु मए इअो अतीते' पंचमे संवच्छरे चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणट्टयाए ते पंच-पंच सालिअक्खया हत्थे दिन्ना । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पंच सालिअक्खए परिजाइत्तए जाव' जाणामि ताव काए किह सारक्खिया वा संगोविया वा संवडिया वत्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं 'पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं जाव' ० सम्माणित्ता तस्सेव मित्त-नाई•नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स ° चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो जेटुं उज्झियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु अहं पुत्ता ! इओ अतीते पंचमम्मि संवच्छरे" इमस्स मित्त-""नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स ° चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तव हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयामि । जया णं अहं पुत्ता ! एए पंच सालिमक्खए जाएज्जा तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएसिर । से नूर्ण पुत्ता ! अद्वै समढे ? १. सं० पा०--पल्लसि जाव विहरंति; घल्लंति ४. परिजातित्तए (ख, ग, घ)। (क) पल्लंति (ख, ग, घ); यद्यपि बहुषु ५. एवं (घ) । आदर्शवू 'पल्लति' इति पदं विद्यते, किन्तु ६. ना० ११०२४। नैतत समीचीनं प्रतिभाति । यद्येतत् स्वीकृतं ७. सं० पा०---असणं मित्त-नाइ चउण्ड य स्यात तहि जाब शब्दस्य पूर्तराधारस्थलं सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता। नोपलभ्यते 'पल्लति इति पदस्यार्थोपि ८. ना० ११७१६ ! नैव संगच्छते । अतएव अस्माभिः पल्लंसि' है. सं० पा०-...नाइ छ । इति पदं स्वीकृतम् । अस्याधारः (४३) सूत्रे १०. संवत्सरे (ग)। 'पल्ले उभिदई' इति पाठे उपलभ्यते। ११. सं० पा०-मित्त । २. अईए (क)। १२. निज्जाएसि त्ति कटु (क)। ३. ना० ११.२४ । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (रोहिणी) १४६ हंता अस्थि । तं णं तुमं पुत्ता ! मम ते सालिअक्खए पडिनिज्जाएसि॥ २३. तए णं सा उज्झिया एयमटुं धणस्स सत्यवाहस्स पडिसुणेइ, जेणेव कोडागारं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पल्लाओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी-एए णं तानो' ! पंच सालिग्नक्खए ति कटु धणस्स हत्थंसि ते' पंच सालिअक्खए दलयइ ॥ २४. तए णं धणे सत्थवाहे उज्झियं सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी किण्णं पुत्ता ! ते चेव पंच सालिमक्खए उदाहु अण्णे ? २५. तए णं उझिया धणं सत्यवाहं एवं वयासी–एवं खलु तुब्भे ताओ ! इनो अतीए पंचमे संवच्छ र इमस्स मित्त-नाइ'- नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो पंच सालिअक्खए गेण्हह, मेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थाप्रो इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । तए णंह तुभं एयभटुं पडिसुमि, ते पंच सालिमक्खए गेण्हामि, एगंतमवक्कमामि । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था-एवं खलु ताताणं कोट्ठागारंसि'वहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिदंति. तं जया णं मम ताप्रो इमे पंच सालिमक्खए जाएसइ, तयाणं अहं पल्लंतराओ अण्णे पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि त्ति कटु एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता ते पंच सालिमक्खए एगते एडेमि, सकम्मसंजुत्ता यावि भवामि । तं नो खलु तानो! ते चेव पंच सालिअक्खए, एए णं अण्णे ।। २६. तए णं से धणे सत्थवाहे उज्झियाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्मा' आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे उज्झियं तस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स ° चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरो तस्स कुलघरस्स छारुज्झियं च 'छाणुझियं च 'कयवरुज्झियं च संपुच्छियं च" सम्मज्जियं च पापोवदाइयं १. ते (क, ख, ग)। ६. सं० पा०–कोद्रागारंसि सकम्मसं । २. ४(क)। ७. ना० १११।१६१ । ३. सं० पा०-नाइ चउण्ह य कुल जाव ८. निसम्म (क्वचित)। विहराहि । ६. सं० पा०-नाइ । ४. इमे एयारूवे (क)। १०. ४(ख); वृत्तावपि नास्तिव्याख्यातम् । ५. मं० पा०-अज्झत्यिए जाव समुप्पज्जित्था । ११. समुक्वियं (वृ); संपुच्छियं (वृपा)। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहामो च पहाणोवदाइयं च बाहिर'-पेसणकारियं च ठवेइ' ।। २७. एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा 'पायरिय-उवज्झा याणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वइए, पंच य से महव्वयाइं उज्झियाई भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरत-संसार-कतारं भुज्जो भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा सा उज्झिया॥ २८. एवं भोगवइया वि, नवरं'छोल्लेमि, छोल्लित्ता अणुगिलेमि, अणुगिलित्ता सकम्मसंजुत्ता यावि भवामि । तं नो खलु तायो ! ते चेव पंच सालिमक्खए, एए गं अण्णे । हतए णं से धणे सत्थवाहे भोगवइयाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्मा पासूरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे भोगवई तस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरनो° तस्स कुलधरस्स कंडितियं च कोट्रेतियं च पीसंतियं च एवं-रुंधतियं रंधतियं परिवेसंतियं परिभायंतियं" अभितरिय पेसणकारि महाणसिणि ठवेइ ।। 6. एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झा याणं अंतिए मंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्व इए, पंच य से महव्वयाई फालियाई भवंति, से गं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहणं सावयाणं वहणं सावियाण य होलणिज्जे जाव' चाउरंत-संसार-कतारं भुज्जो भज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा व सा भोगवइया ! ११. एवं रक्खियावि, नवरं-जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मंजसं विहाडेइ, विहाडेता रयणकरंडगाओ ते पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्डित्ता जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच सालिग्रक्खए धणस्स हत्थे दलयइ॥ ३२. तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियं एवं वयासी-किं णं पुत्ता ! ते चेव एए पंच सालिअक्खए उदाहु अण्णे ? १. बाहर (ख)। ६. कुंडेतियं (ख); कंडेतियं (ग); खंडेतिय २. पेसणकारि (क, ख)। ३. ठावेइ (क)। १०. ०तियं च (ग)। ४. सं० पा० - निम्मंथी वा जाव पव्वइए। ११. तियं च (म)। ५. ना० १।३।२४ । १२. तरियं च (ग)। ६. उभिइया (ग, घ)। १३. फाडियाति (घ) फोडियाई (क्व)। ७. सं० पा०-वरं तस्स। १४. ना० ११३१२४॥ ८. ना० १११४१६१ । १५. रविखतियादि (ख, ग)। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झयणं (रोहिणी) १५१ ३३. तए णं रक्खिया धणं सत्थवाहं एवं वयासो-ते चेव तायो ! एए पंच सालि अक्खए, नो अण्णे। कहण्णं ? पुत्ता ! एवं खलु ताओ ! तुन्भे इसो अतीते पंचमे 'संवच्छरे इमस्स मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणस्स चउपह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरमओ पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्डित्ता ममं सहावेह, सहावेत्ता ममं एवं वयासी---तमं णं पुत्ता! मम हत्थानो इमे पंच सालिअक्खए गिण्हाहि, अणुपुवेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि। जया णं अहं पुत्ता! तुम इमे पंच सालिमक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि ति कटु मम हत्थंसि पंच सालिग्रक्खए दलयह। तं° भवियव्वं एत्य कारणेणं ति कट्ट ते पंच सालिमक्खए सुद्धे कत्थे पंधमि, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवेमि, पक्खिवित्ता उसीसामूले ठावेमि, ठावेत्ता तिसंझं पडिजागरमाणी यावि विहरामि । तो एएणं कारणेणं तानो! ते चेव पंच सालिग्रक्खए, नो अण्णे ॥ ३४. तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियाए अंतियं एयमटुं सोच्चा हट्ठतुढे तस्स कुल घरस्स हिरण्णस्स य कंस-दूस-विपुल-धण- कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जरस य भंडागारिणी ठवेइ ।। ३५. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा प्रायरिय-उवज्झा याणं अंतिए मडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए, पंच य से महव्वयाई रक्खियाइं भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव" चाउरतं संसारकतारं बीईव इस्सइ-जहा वसा रक्खिया॥ ३६. रोहिणीया वि एवं चेव, नवरं-तुब्भे तायो ! मम सुबहुयं सगडि-सागडं दलाह, जाण अहं तुभं ते पंच सालिमक्खए पडिनिज्जाएमि ।। ३७. तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणि" एवं वयासी--कह" णं तुम पुत्ता ! ते पंच १. ताया (ख, ग); ताय (घ)। ६. सं० पा०.-समणाउसो जाव पंच। २. सं० पा.-पंचमे जाव भवियव्वं । १०. ना० १२३॥३४॥ ३. सं० पा०-बत्थे जाव तिसंझं। ११. दलयाह (घ)। ४. ततेणं (ख); तते (ग); तं (घ)। १२. जोअणं (ख)। ५. रविखतियाए (क, ख, ग, घ)। १३. रोहिणी (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-धण जाव साबएज्जस्स। १४. कह (ग)। ७. सावइज्जम्स (क); सावतेयस्स (ख, ग, घ)। १५. तुमं मम (क, ख, ग) ६. भंडामारिणिं (क्व)। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ सालिक्ख सगडि सागडेणं निज्जाइस्ससि ? | ३८. तए णं सा रोहिणी धणं सत्यवाहं एवं वयासी एवं खलु ताओ ! तुभे इस्रो प्रतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त' - 'नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्हय सुण्हाणं कुलधरवग्गस्स पुरस्रो पंच सालिक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता सद्दाह, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- तुमं णं पुत्ता मम हत्याओ इसे पंच सालिक्खए गेहाहि णुपुवेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहाहि । जया णं श्रहं पुत्ता ! तुमं इमे पंच सालिक्खए जाएज्जा, तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जारज्जासि ति कट्टु मम हृत्यंसि पंच सालिग्रक्खए दलह । तं भवियब्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए जाव' ' बहवे कुंभसयाजाया तेणेव कमेण । एवं खलु ताश्रो ! तुब्भे ते पंच सालिअक्खए सगडि - सागडेणं निज्जामि || ३९. तणं से धणे सत्थवाहे रोहिणोयाए सुबहुयं सगडि - सागडं दलाति' | ४०. तए णं से रोहिणी सुबहुं सगडि सागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता कोट्टागारे विहाडेइ, विहाडित्ता पल्ले उभिदइ, उब्भिदित्ता सगडि सागडं भरेइ, भरेत्ता रायगिहं नगरं मज्भंमज्भेण जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ ॥ ४१. तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग - तिग- चउक्क चच्चर च उम्मुह - महापहपहेसु बहुजणं एवमाइक्खइ - धण्णे णं देवाणुप्पिया ! धणे सत्यवाहे, जस्स णं रोहिणीया सुण्हा पंच सालिक्खए 'सगडि - सागडेणं" निज्जाएइ ॥ ४२. तए णं से धणे सत्थवाहे ते पंच सालिक्खए सगडि सागडेणं निज्जाइए पासइ, पासित्ता हतुट्टे' पडिच्छर, पडिच्छित्ता तस्सेव मित्त-नाइ - नियग-सयणसंबंधि-परियणस्स ° चउण्हय सुम्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरम्रो रोहिणीयं सुहं तस्स कुलधरस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुवसु य • रहस्से य श्रापुच्छणिज्जं पडिपुच्छणिज्जं मेढि प्रमाण आहारं मालवणं चक्खु, मेढीभूयं पमाणभूयं ग्राहारभूयं प्रलंबणभूयं चक्खुभूयं सव्वकज्ज 'वड्डावियं प्रमाणभूयं ठवेइ ! ४३. एवामेव समणाउसो " ! जो ग्रम्हं निम्गंथो वा निसगंधी वा आयरिय-उवज्झाया अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए, पंच से महव्वया नायाधम्मक हाओ १. सं० पा०-मित्त जाव बहवे । २. ना० १।७।१०-२१ । ३. दलयइ ( ख ) । ४. सं० पा० - सिंघाडग जाव बहुजणो । ५. सगडसागडिएणं (क); सग डिसागडिएणं ( ख ) । १०. ६. हट्ट जाव (क, च) । ७. सं० पा० - नाइ । ८. सं० पा० -- कज्जेसु जाव रहस्सेसु । ६. सं० पा० - आपुच्छणिज्ज जाव वड्ढावियं । समणाउसो ! जाव पंच | सं० पा० Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (रोहिणी) १५३ संवड्डिया भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं वहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकतारं वीईवइ स्सइ-जहा व सा रोहिणीया ।। निक्खेव-पदं ४४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थग रेणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स ग्रयमद्धे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह नाइ-जणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाइं ॥१॥ उमिया--- जह सा उज्झियनामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया ॥२॥ तह भव्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरु-विदिण्णाई । पडिवज्जिउं समुज्झइ, महव्वयाइं महामोहा ।।३।। सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कार-भायणं होइ। परलोए उ दुहत्तो, नाणा-जोणीसु संचरइ ॥४॥ भोगवती--- जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोव भत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारितणेण पत्ता दुहं चेव ॥५॥ तह जो महन्वयाई, उव जइ जीवियत्ति पालितो । आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए ।।६।। सो एत्य जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ता। विउसाण नाइपुज्जो, परलोयंसी दुही चेव ।।७।। रक्खिया जह वा रक्खियवहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता ।।८।। तह जो जीवो सम्म, पडिवज्जित्ता महव्वए पंच। पालेइ निरइयारे, पमाय-लेसंपि वज्जेंतो ॥६॥ १. ना० ११३।३४ । २. ना० ११११७ । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ रोहिणी - नायाधम्मक हाओ सो अपहिएक्करई, इहलोयम्मिवि विऊहिं पणयपत्री । एत सुही जायइ, परम्मि मोक्खंपि पावेइ ॥१०॥ जह रोहिणी उ सुहा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा । वाढत्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥११॥ तह जो भव्वो पाविय, वयाइ पालेइ प्रप्पणा सम्म । असि वि भव्वाणं, देइ अणेगेसि हियहेउं ॥ १२ ॥ सो इह संघप्पहाणी, जुगप्पहाणोत्ति लहइ संसदं । अपरेंसि कल्लाण-कारन गोव् ||१३|| बुड्डिकारी, प्रक्खेवणश्रो कुतित्थियाईणं । विउस - नरसेविय-कमो, कमेण सिद्धि पि पावेइ ॥ १४ ॥ तित्थस्स Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं मल्ली उक्खेव-पदं १. जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, अट्ठमस्स गं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? बल-राय-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएण इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंद रस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोप्रोदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चस्थिमेणं, पच्चत्थिम लवणसमुदस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं सलिलावई' नामं विजए पण्णत्ते ॥ ३. तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नाम रायहाणी'—नवजोयणवित्थिण्णा जाव' पच्चक्खं देवलोगभूया ॥ तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरथिमे दिसीभाए इंदकुंभे नामं उज्जाणे ॥ तत्थ णं वीयसोगाए रायहाणीए बले' नाम राया । तस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था ॥ ६. तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव' महब्बले दारए जाए-उम्मुक्कबालभावे जाव भोगसमत्थे । १. ना० ११११७ ॥ २. नलिणावती (वृपा)। ३. °हाणी पण्णत्ता (क, घ)। ४. ना० ११५२। ५. धीबले (क, ख)। ६. तस्स णं (क)। ७. ओरोहो (क)। ८. भग० ११०१३३-१५६ । १५५ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ नायाधम्मकहानो ७. तए णं तं महब्बलं अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरिपामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नासयाणं' एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेंति । पंच पासायसया। पंचसो दामो जाव' माणुस्साए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। 'बलो वि" निग्गयो। धम्म सोच्चा निसम्म हटतुटे थेरे तिक्खुत्तो प्रायाहिणपवाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-- सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं महब्वलं कुमारं रज्जे ° ठावेमि । तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! जाव' एक्कारसंगवी। वहूणि' वासाणि परियायो । जेणेत्र चारुपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता' मासिएणं भत्तेणं सिद्धे । महब्बल-राय-पदं ६. तए णं सा कमलसिरी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव' । बलभद्दो कुमारो जानो । जुवराया यावि होत्था । १०. तस्स णं महब्बलस्स रण्णो इमे 'छप्पि य वालवयंसगा० रायाणो होत्था, तं जहा - अयले धरणे पूरणे वसू वेसमणे अभिचंदे"- सहजायया सहवाड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्तया अण्णमण्णमणुव्वयया अण्णमण्णच्छंदाणुवत्तया अण्णमणहियइच्छियकारया अण्णमण्णेसु रज्जेसु किच्चाई करणिज्जाई पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ॥ ११. तए णं तेसिं रायाणं अण्णया कयाइं एगयनो सहियाणं समुवागयाण सण्णि सण्णाणं सण्णिविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था-जण्णं देवाणुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पवज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्मेहि एगयनो° समेच्चा" नित्थरियव्वे त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति ।। १. कन्नया ° (ग)। ६. ना०२१११०१ २. ना० १।११६१-६३ । ७. ना० ११५१८८-१०१ । ३. सं० पा...थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे ८. पू.----ना० ११५११०४, १०५ । समोसढा । असौ पाठः (१२) सूत्रेण नियो- ६. भग० ११११३३-१५६ । जितोस्ति। १०. छप्पिया (क, ख, ग)। ४. धीबलो (क)। ११. अभियंदे (ख, घ)। ५. सं० पा०—निसम्म जं० नवरं महब्बलं १२. सं० पा... सहजायया जाव समेच्चा। कुमारं रज्जे ठावेमि। १३. संहिच्चाए (ख, ग, घ)। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्म अज्झयणं (मल्ली) १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उजाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। महब्वले णं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुढे । जं नवरं..- छप्पि य बालवयंसए पापुच्छामि, बलभदं च कुमारं रज्जे ठावेमि, जाव ते छप्पि य वालवयंसए प्रापुच्छइ॥ १३. तए णं ते छप्पि य बालवयंसगा महब्बलं रायं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुभे पव्वयह, अम्हं के अण्णे याहारे' वा आलवे वा ? अम्हे वि यण पव्वयामो।। १४. तए णं से महब्बले राया ते छप्पि य वालवयंसए एवं वयासी-जइ णं तुब्भे मए सद्धि पव्वयह, तं' गच्छह, जेट्टपुत्ते सएहि-सएहिं रज्जेहि ठावेह, पुरिससहस्सवाहिणीनो सीयारो दुरूढा 'समाणा मम अतियं पाउब्भवह । तेवि तहेव ° पाउन्भवति ।।। १५. तए णं से महब्बले राया छप्पि य बालवयंसए पाउन्भूए पासइ, पासित्ता हवतुढे कोडंवियपुरिसे सद्दावेइ जाव' बलभद्दस्स अभिसेस्रो। जाव बलभदं रायं प्रापुच्छइ ।। महब्बलादीणं पब्वज्जा-पदं १६. तए णं से महब्बले 'छहिं बालवयंसगेहि सद्धि ° महया इड्डीए पव्वइए। एक्कारसंगवी" ! बहूहिं चउत्थ -'छट्टम-दसम-दुवालसेहि मासद्ध मासख माह अप्पाण° भावमाणे विहरइ ।। १७. तए णं तेसिं महब्बलपामोक्खाणं सत्तण्हं अणगाराणं अण्णया कयाइ एगयग्रो सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लाबे समुप्पज्जित्था - जणं अम्हं देवाणप्पिया एगे तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तण्णं अम्हेहि सव्वेहि तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणति, पडिसुणेत्ता बहूहिं चउत्थ" 'छट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावमाणा विहरति । १. पू०-ना० ११५।८७ । २. ना० ११५८७-८६ । ३. सं० पा...-आहारे जाव पव्वयामो। ४. सद्धि जाव (क, ख, ग, घ)। ५. तो णं (क्व०)। ६. रज्जेहिं रद्धेहिं (ख, ग, घ)। ७. सं० पा०-दुरूढा जाव पाउल्भवति । ८. ना० ११५६२-६४ । ६. ना० १२२९५,६६। १०. सं० पा०-महरले जाव महया ! ११. एक्कारमअंगाई (क);एक्कारसग्नंगवी (ख,ध)। १२. सं० पा.-चउत्थ जाव भावेमाणे। १३. जण्ह (ग, घ)। १४. सं० पा०—चउत्थ जाव विहरति । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ मायाधम्मकहाओ महब्बलस्स तवविसय-माया-पद १८. तए णं से महब्वले अणगारे इमेणं कारणेणं इत्थिनामगोयं कम्मं निव्वत्तिसु -- जइ णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा चउत्थं उवसंपज्जित्ता गं विहरंति, तो से महब्बले अणगारे छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । जइ' णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा छ8 उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तनो से महब्बले अणगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। एवं --अह अट्ठमं तो दसम, अह दसमं तो दुवालसमं । 'इमेहि यण वीसाए णं कारणेहिं प्रासेविय-बहुलीकएहि तित्थयर नामगोयं कम्मं निव्वत्तिसु, तं जहासंगहणी-गाहा अरहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुय-तवस्सीसु । वच्छल्लया य तेसिं, अभिक्ख नाणोवोगे य ||१|| दसण-विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो। खणलवतवच्चियाए, वेयावच्चे समाहीए' ।।२।। अपुवनाणगहणे, सुयभत्ती पवयण-पहावणया। एएहि कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ 'सो उ'' |॥३॥ महब्बलादणं विविहतवचरण-पदं १६. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव एगराइयं ।। २०. तए णं ते महब्वलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डाग 'सीहनिक्कीलियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तं जहा चउत्थं करेंति, सव्वकामगुणियं पारेति । छटुं करेंति, चउत्थं करेंति । अट्टमं करेंति, छटुं करेंति । दसमं करेति, अट्ठमं करेंति । दुवालसमं करेंति, दसम करेंति । चोद्दसमं करेंति, दुवालसमं करेंति । १. अत्र वर्णविपर्ययेण ‘यकार' स्थाने इकारो ५. समाही य (क, ख, ग, घ)। जातः । मदच्चारणार्थ वर्णविपर्ययो लभ्यते ६. पवयणे (क, ख, ग, घ)। आर्षवाक्येषु। ७. जीवो (वृ); एसो (वृपा)। २. इमेहिं च (क)। ८. ना० १६१६१६८। ३. बहुस्सुए (क, ख, ग, घ)। ९. ०लियत्तवोकम्म (ख) ! ४. अत्र अनुस्वारलोपः । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मष्टुमं अज्झयणं (मल्ली) १५६ सोलसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति । अट्ठारसमं करेति, सोलसमं करेंति । वीसइमं करेंति, सोलसमं करेंति । अट्ठारसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति । सोलसमं करेंति, दुवालसमं करेंति । चोद्दसमं करेंति, दसमं करेंति । दुवालसमं करेंति, अट्ठमं करेंति । दसमं करेंति, छटुं करेंति । अट्टमं करेंति, चउत्थं करेंति । छटुं करेंति, चउत्थं करेंति, करेत्ता सव्वत्थ सव्वकामगुणिएणं पारति! एवं खलु एसा खुड्डागसीहनिक्कीलियस्स तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी छहिं मासेहि सत्तहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव' आराहिया भवइ ।। २१. तयाणतरं दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करति, नवरं-विगइवज्ज पारेति ॥ २२. एवं तच्चा वि परिवाडी, नवरं -पारणए अलेवाडं पारेति ।। २३. एवं चउत्था वि परिवाडी, नवरंपारणए प्राय बिलेण पारेति ।। २४. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्म दोहि संवच्छरेहिं अट्ठवीसाए अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव' आणाए पाराहेत्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--इच्छामो णं भंते ! महालयं सीहनिक्की लियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तहेव जहा खुड्डाग, नवर-चोत्तीसइमाओ नियत्तइ । एगाए परिवाडीए कालो एगेणं संवच्छरेणं छहिं मासेहिं अट्ठारसहि य अहोरत्तेहि समप्पेइ ! सव्वंपि [महालयं ? ] सीहनिक्कीलियं छहि वासेहिं दोहि मासेहिं बारसहि य अहोरत्तेहि समप्पेइ ।। २५. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा महालयं सीहनिक्कीलियं अहासुत्तं जाव' पाराहित्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता बहूणि चउत्थ- छटुट्ठम-दसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावमाणा विहरति ।। १. ठा० ७१३1 २. विगति ° (ख); विगय (घ)। ३. ठा० ७।१३। ४. पूछ-ना० शा२० । ५. समप्पइ (क)। ६. ठा० ७.१३ । ७. सं० पा०-चउत्थ जाब विहरति । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहानी समाहिमरण-पदं २६. तए णं ते महबल पामोक्खा सत्त अगगारा तेणं उरालेणं' तवोकम्मेणं सुक्का भुक्खा निम्मंसा किडिकिडियाभूया अट्ठिचम्मावणद्धा किसा धमणिसंतया जाया या वि होत्था। जहा खंदओ' नवरं -थेरे आपुच्छित्ता चारुपवयं सणियसणियं दुरुहंति जाव' दोभासियाए सलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सवीसं भत्तसयं अणसणाए छएत्ता, चतुरासीई वाससयसहस्साई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, चुलसीइं पुवसयसहस्साई सव्वाउयं पाल इत्ता जयंते विमाणे देवत्ताए उववण्णा । तत्थ णं प्रत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं महब्बलवज्जाणं छहं देवाण देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स य पडिपुण्णाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई । पच्चायाति-पदं २७. तए णं ते महबलवज्जा छप्पि देवा जयंतागो देवलोगानो आउक्खएणं 'भवक्खएणं ठितिक्खएणं'' अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहा--- पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाहिवई, अदीणसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई ।। २८. तए णं से महब्वले देवे तिहिं नाणेहि समग्गे 'उच्चट्ठाणगएस गहेसु', सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसुसउणेसु, पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसपिसि मारुयंसि पवायंसि, निप्फण्ण-सस्स-मेइणीयंसि कालसि पमुइयपक्कीलिएसुजणवएसु अद्ध रत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जे से 'हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे, तस्स णं फग्गुणसुद्धस्स चउत्थीपक्खेणं जयंताओ विमाणामो बत्तीसं सागरोवमठिइयानो अणंतरं चयं चइत्ता इहेव १. पू०-ना० ११११२०२। २. भग० २११६४-६८; इहैव यथा मेघकुमारो वर्णितः (१११।२०३.२०६)। ३. ना० १११२०६-२०८ । ४. ठिई पण्णत्ता (क, ख, घ)। ५. ठितिक्खएणं भवक्खएणं (ख, ग, घ) । ६. पितिमाति (ख, ग, घ)। ७. ° गएसु गहेसु (घ)। ८. जइतेसु गहेसु (क, ख, ग, घ) । ६. पकीलिएस् (ख)। १०. वाचनान्तरेषु-गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चेत्तसुद्धे तस्स णं चेत्त सुद्धस्स (कृ)। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १६१ जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुंभस्स' रणो पभावतीए देवीए कुच्छिसि आहारवक्कंतीए भववक्कतीए सरीरवक्कंतीए गब्भत्ताए वक्कते ।। २६. जं रणि च णं महबले देवे पभावतीए देवीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते, तं रणिं च णं सा पभावती देवी' चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ० । भत्तार-कहणं । सुमिणपाढगपुच्छा' जाव' 'विपुलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी' विहर।। ३०. तए णं तीसे पभावईए देवीए तिण्हं मासाणं बहुपडि पुग्णाणं इमेयारूवे डोहले पाउन्भूए--धण्णानो णं 'तानो अम्मयानो” जानो णं जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसवण्णेणं मल्लेणं अत्थुय-पच्चत्थुयंसि सयणिज्जंसि सण्णिसण्णामो निवण्णायो य विहरंति, एगं च महं सिरिदामगंड पाडल-मल्लिय-चंपग-असोगपुन्नाग-नाग-मरुयग-दमणग-अणोज्जकोज्जय-पउरं परमसुहफासंदरिसणिज्जं महया गंधद्धणि मयंतं अग्घायमाणीयो" डोहलं विणेति ।। ३१. तए णं तीसे" पभावईए इमं एयारूवं डोहलं पाउन्भूयं पासित्ता अहासण्णिहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जल - थलय" . •भासरप्पभूयं दसद्धवणं • मल्ल कंभग्गसो य भारग्गसो य कुंभस्स" रण्णो भवणंसि साहरंति, एगं च णं महं सिरिदामगंडं जाव गंधणि मुयंतं उवणेति ।। ३२. तए णं सा पभावई देवी जल-थलय - भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं दोहलं विणेइ ।। ३३. तए णं सा पभावई देवी पसत्थदोहला" 'सम्माणियदोहला विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपत्तदोहला विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाई पच्चणुभवमाणी विहरइ॥ १. कुंभगस्स (क, ख, ग)। १०. कुज्जय (क)। २. सं० पा०-तं रयणि च णं चोट्समहासु- ११. ° सुह (ग, घ)। मिणा बणओ। १२. आघाय° (क) । ३. पू० कप्पो० सू० ४। १३. तीए (ख, ग, घ)। ४. पू०-कप्पो० सू० ३ । १४. सं० पा०--थलय जाव दसद्धवग्णं । ५. सं० पाo. --सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ। १५. कुंभगस्स (ख)। ६. ना० १।१।१६-३२। १६. ना० १।८।३०।। ७. तातो अम्मयातो (ख)। १७. सं० पा०-थलय जाव मल्लेणं । ८. पभासुर (ख, ग) १८. पू०-ना० १।८।३० । १. सयंणुवण्णाओ (क, ग); सयणुवण्णातो १६. सं० पा०—पसत्थदोहला जाव विहरइ । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ नाया महा I ३४. तए णं सा पभावई देवी नवहं मासाणं [ बहुपडिपुण्णाणं ? ] श्रद्धट्टमाण य इंदियाणं [वीइक्कंताणं ? ] जे से हेमंताणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे, तस्स णं एक्कारसीए पुत्र्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्ख तेणं [ जोगमुवागणं ? ] उच्चद्वाणगएसुं गहेसुं जाव' पमुइय पक्कीलिएसु जणव एसु आरोयाय एगुणवीसइमं तित्थयरं पयाया || ३५. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वा श्रट्ट दिसाकुमारीमह्यरियाश्रो जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए' जम्मणुस्सर्व, नवरं - मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिला संजोएयन्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा || ३६. तया णं कुंभए राया बहूहिं भवणवई - वाणमंतर - जोइस-वेमाणिएहि देवेहि तित्थयर- जम्मणाभिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ जायकम्मं जाव' नामकरणं - जम्हा' णं म्हं इमीसे' दारियाए माऊए मल्लसयणिज्जसि डोहले विणीए तं होउ णं [ अम्हं दारिया ? ] नाणं मल्ली ॥ ३७. "तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव" सुहसुहेणं परिवढई° ॥ १. ना० – १२८/२८ | २. आरोग्गारोग्गं ( ग ) 1 ३. वक्ष ० ५ । ४. जम्मणं सव्वं ( क, ख, ग, घ ) । अत्र 'जम्मणं सव्वं' अस्य पाठस्यार्थो नैव संगति गच्छति । वृत्तिकृता' - 'जन्मवक्तव्यता सर्वा वाच्या' इति विवृतम्, किन्तु नात्र विवरणानुसारी पाठोस्ति । अत्र 'जम्मणुस्सर्व' इति पाठ: स्वाभाविकः स्यात् । जंबुद्वीपप्रज्ञप्त्यामपि 'जम्मणमहिम करेंति' इति पाठो लभ्यते । अमौ ' जम्मणुस्सर्व' इति पाठस्य पुष्टि करोति । लिपिदोपेग पाठविपर्ययो जातः इति कल्पना नात्रास्वाभाविकी । ५. सं० पा०—भवणवइ तित्थयर ° 1 ६. कप्पो महावीर जन्म प्रहरण । o ७. जहा (ख, घ) 1 ८. इमीए ( क, ख, 0 पदमस्ति तेन 'इम से' इति पदं युज्यते । ६. मल्ली २ (क ) ! १०. सं० पा० - जहा महम्बले जाव परिवढिया । अत्र पूर्णपाठावलोकनार्थ महाबलस्य संकेत: कृतोस्ति । तस्य वर्णनं भगवत्यां (११|११ ) विद्यते । तत्राप्यादर्शेषु 'जहा दढपणे ' इति समर्पणमस्ति तेनास्माभिरसौ पाठः दृढ प्रतिज्ञ प्रकरणादेव पूरितः । तो आदर्शपु निम्नलिखितं गाथाद्वयं प्राप्यते किन्तु एतत् प्रक्षिप्तमस्ति । वृत्तिकारेणापि सूवितमिदं, यथा— 'सा वड्ढई भगवई' इत्यादि गाथाद्वयं आवश्यकनियुक्ति संबंधिऋषभ महावीरवर्णकरूपं बहुविशेषणसाधर्म्यादिहाधीतम्, न पुनर्गाथाद्वयोक्तानि विशेषणानि सर्वाणि मल्लिजिनस्य घटन्ते । तेनास्माभिः नैतत् मूलपाठे स्वीकृतम् । तच्च गाथाद्वयमिदम् ग, घ ); अत्र षष्ठ्यन्तं सा वड्ढई भगवई, दियलोयचुया अणोवमसिरीया । दासीदास परिवुडा, परिकिष्णा पीढमद्देहं ॥१॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अभय (मल्ली) ३८. तए णं सा मल्ली विदेहाय वरकन्ना उम्मुक्कबालभावा' विष्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता • रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य अईव - अईव उक्किट्ठा उक्किसरीरा जाया यावि होत्था || ३६. तए णं सा मल्ली देसूणवाससयजाया ते 'छप्पिय रायाणी” विउलेणं श्रहिणा आभोमाणी प्रभोमाणी विहरइ, तं जहा - पडिबुद्धि इक्खागराय, चंदच्छायं अंगरायं, संखं कासिराय, रुप्पि कुणालाहिवई, प्रदीणसत्तुं कुरुरायं जियसत्तुं पंचाला हिवई || मल्लिस मोहणघर - निम्माण- पदं ४०. तणं सा मल्ली कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुब्भेणं देवापिया ! असोगवणियाए एवं महं मोहणघरं करेह - अणेगखंभसयसणिवि । तस्स गं मोहणघरस्स वहुमज्भदेसभाए छ गब्भघरए करेह । तेसि णं गब्भघरगाणं बहुमज्झदेसभाए जालघरयं करेह । तस्स णं जालघरयस्स बहुमज्भदेसभाए मणिपेढियं' करेह' । एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह । तेवि तहेव पच्चपिति ॥ असियसिरया सुनयणा, बिबोट्ठी धवलदंतपंतीया । वरकमल कोमलंगी, फुल्लुप्पल गंधनीसासा ||२॥ वृत्तिकारेण स्थाने-स्थाने अनयोः पाठभेदा उल्लिखिताः । आवश्यक नियुक्तौ भगवतो ऋषभस्य वर्णने इदं गाथाद्वयमित्यमस्ति - अह वड्डइ सो भयवं दियलोगचुतो य अणुवमसिरीयो । देवगणसंपरिवुडो, नंदाए सुमंगला - सहितो ॥ १८७॥ असियसिरतो सुनयणो, बिंबोट्ठो धवलदंतपंतीओ। वर उभगभगोरो, फुल्लुप्पल गंधनीसासो ॥ १८८ ॥ भगवतो महावीरस्य वर्णने तद् गाथाद्वयमित्यमस्ति - अह बड्ढइ सो भयवं दिवलोगचुत्रो अणुवमसिरीओ ! दासीदासपरिवुडो, परिकिष्णो असियसिरओ सुनयणो, बिबोट्ठो धवलदंतपंतीओ | वर उमगभगोरो, फुल्लुप्पलगंधनीमासो ॥७०॥ ११. राय० सू० ८०४ १. सं० पा० - उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण । २. छपिया ( क ); छप्पि (ख, घ ) । ३. सं० पा० - पडिबुद्धि जाव जियसत्तु । १६३ ॥६६॥ ४. पू० - ना० १।११८६ | ५. ० पीढियं (ख, घ); ० पीढयं ( ग ) । ६. सं० पा०करेह जाव पच्चपिणंति | ० Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ नायाधम्मकाओ ४१. तए णं सा मल्ली मणिपेढियाए उर्वारि अप्पणी सरिसियं सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव- जोव्वण- गुणोववेयं कणगामई' मत्थयच्छिडुं परमुप्पल'-पिहाणं पडिमं करेइ, करेत्ता जं विउलं असण- पाण-वाइम साइमं ग्राहारेइ, तत्रो मण्णा असण- पाणखाइम साइमाओ कल्ला कल्लि एगमेगं पिंडं गहाय तीसे कणगामईए मत्ययछिड्डाए' पउमुप्पल-पिहाणाए पडिमाए मत्थयंसि पक्खिमाणी - पक्खिवमाणी विहरइ || ४२. तए णं तीसे कणगामईए मत्थयछिड्डाए 'पउमुप्पल-पिहाणाए पडिमाए एगमेसि पिंडे पक्खिप्यमाणे- पक्खिप्पमाणे तस्रो गंधे पाउब्भवेइ, से जहाणामए - प्रहिमडे इ वा गोमडे इ वा सुणहमडे इ वा मज्जारमडे इ वा मणुस्समडे इ वा महिसमडे इ वा मूसगमडे इ वा ग्रासमडे इ वा हत्थिमडे इ वा सीहमडे इ वा घडे इवा विगमडे इ वा दीविगमडे इ वा । मय-कुहिय-विट्ठ- दुरभिवावण्ण-दुभिगंधे किमिजाला उलसंसत्ते सुइ-विलीण- विगय बीभत्सदरिसणिज्जे o भवेयारूवे सिया ? नो इणट्ठे समट्ठे । एत्तो अणिट्टतराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव मण्णतराए चेव श्रमणामतराए चैव ॥ पडिबुद्धिराय-पदं ४३. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसला नामं जणवए । तत्थ णं सागेए नाम नयरे । ४४. तस्सणं उत्तरपुरत्थिमे' दिसोभाए, एत्थ णं महेंगे नागघरए होत्था - दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सणिहिय- पाडिहेरे || ० ४५. तत्थ णं सागेए नयरे पडिबुद्धी नाम इक्खागराया परिवसइ । पउमावई देवी । सुबुद्धी श्रमच्चे साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-नीति-सुप उत्त-नय- विहष्णू' विहरई १. कणगामयं ( ग ) 1 २. पउमप्पल्ल ( ख, ग, घ ) | ३. सं० पा०-- मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए । ४. सं० पा- कणगामईए जाव मत्थय छिड्डाए । अत्र जाव शब्दस्य प्रयोगोऽशुद्धोस्ति । असौ उपरितनसूत्रवत् 'मत्ययछिड्डाए जाव पडमा' एवं युज्यते । ५. गंधिए ( क ); गंधि ( ग, घ ) । ° 11 ४६. तए णं पउमावईए देवीए अण्णया कयाइ नागजण्णए यावि होत्या || ४७. तए णं सा पउमावई देवी नागजण्णमुवट्टियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी" "राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए ६. सं० पा० – अहिमडे इ वा जाव अतिराए अमणामतराए । ७. उत्तरपुरत्थि मे णं (ख, ८. सं० पा० साम दंड° । असौ अपूर्णः पाठः 'जाव' आदिपूतिसकेतर हितोस्ति । ६. पू० - ना० १ १ १ १६ । १०. सं० पा० - पडिबुद्धी करयल । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ giri ( महली) १६५ अंजलि कट्टु एणं विजएणं वद्धावेद, वद्धावेत्ता एवं क्यासी एवं खलु सामी ! मम कल्लं नागजण्णए भविस्सइ । तं इच्छामि णं सामी ! तुभेहिं अब्भणुष्णाया समाणी नागजण्णयं गमित्तए । तुब्भे विणं सामी ! मम नागजण्णयंसि समोसरह | ४८. तए णं पडिबुद्धी पउमावईए एयमहं पडिसुणेइ || ४६. तरणं पउमावई पडिबुद्धिणा रण्णा अब्भणुष्णाया समाणी हटुतुट्ठा कोडुंबिय - पुरिसे सद्दावे, सहावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम कल्लं नागजणं भविस्सइ, तं तुम्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वदाह – एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं नागजण्णए भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! जल-थलय'- भासरप्पभूयं • दसद्धवण्णं मल्लं नागघरयंसि साहरह, एगं च णं महं सिरिदामगंड उवणेह | तए णं जल-थलय- भासरप्पभूएणं • दसद्धवण्णेणं मल्लेणं नाणाविह-भत्तिसुविरइयं हंस-मिय- मयूर- कोंच-सारस-चक्कवाय' -मयणसाल कोइल- कुलोववेयं ईहामिय- उसभ-तुरय-नर-मगर- विहग वालग- किंनर - रुरु सरभ-वमर-कुंजरवणलय - पउमलय-भत्तिचित्तं महग्धं महरिहं विउलं पुप्फमंडवं विरएह । तस्स णं बहुमज्भसभाए एवं महं सिरिदामगंडं जाव' गंधद्धणि मुयंतं उल्लोयंसि एह, परमावई देवि पडिवालेमाणा चिट्ठह | ५०. तए णं ते कोडुंविया जाव' पउमावति देवि पडिवालेमाणा चिट्ठति ॥ ५१. तणं सा पउमावई देवी कल्लं पाउप्पभायाए रथणीए जाव' उट्टियम्म सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते कोडुबिए पुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सागेयं नयरं सब्भित रवाहिरिय आसिय सम्मज्जिवलित्तं जाव' गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चपि । ते वि तहेव पच्चपिति ॥ 1 ५२. तए णं सा पउमावई देवी दोच्चपि कोडुंविय" - पुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तं जाव" धम्मियं जाणप्पवरं उage | ते वि तहेव उवट्टवेति ॥ ० १. सं० पा० - थलय " 1 २. सं० पा०—थलय ० । ३. चक्काय (क ) ! ४. सं० पा० - ईहामिय जाव भत्तिचिसं । ५. ना० १/८/३० । ६. ना० १८४६ ܗ ७. सं० पा०कल्लं ० । ८. ना० १।११२४ । ६. ना० १११।३३ । १०. सं० पा० - कोडुंबिय ११. उवा० १।४७ । लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्टवेंति । जाव खिप्पामेव Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ५३. तए णं सा पउमावई देवी अंतो अंतेउरंसि व्हाया जाव' धम्मियं जाणं दुरूढा ।। ५४. तए णं सा पउमावई देवी नियग-परियाल-संपरिवुडा सागेयं नयरं मज्झमझेणं निज्जाइ, जेणेव पोक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोक्खरणि प्रोगाहति, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ जाव' परमसुइभूया उल्लपडसाडया जाई तत्थ उप्पलाइं जाव ताई गेण्हइ, जेणेव नागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ५५. तए णं पउमावईए देवीए दासचेडीयो बहूमो पुप्फपडलग-हत्थगयाओ धूवकड च्छुय-हत्थगयाओ पिटुप्रो समणुगच्छंति ।। ५६. तए णं पउमावई देवी सव्विड्डीए जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता नागघरं अणुप्पविसइ, लोमहत्थगं परामुसइ जाव' धूवं डहइ, पडिबुद्धि पडिवालेमाणी-पडिवालेमाणी चिट्ठइ ।। ५७. तए णं से पडिबुद्धी पहाए' हत्थिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं ° सेयवरचामराहि वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडे महया भड-चडगर-रह-पहकर-विदपरिक्खित्ते सागेयं नगरं मज्झमझेणं निम्गच्छइ, निगच्छित्ता जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधागो पच्चोरहइ, पच्चोरुहिता पालोए पणामं करेइ, करेत्ता पुप्फमडवं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पासइ तं एग महं सिरिदामगंडं 11 ५८. तए णं पडिबुद्धी तं सिरिदामगंडं सुचिरं कालं निरिक्खइ । तसि सिरिदाम गंडसि जायविम्हए सूबुद्धि अमच्चं एवं वयासी--- तुम देवाणप्पिया ! मम दोच्चेणं वहूणि गामागर जाव" सण्णिवेसाई आहिडसि, बहूण य राईसर जाव" सत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुप्पविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिचि एरिसए सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे ? ५९. तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धि रायं एवं वयासी---एवं खलु सामी ! अहं अण्णया कयाइ" तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणि गए। तत्थ णं मए कुंभयस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए संवच्छर-पडिलेहणगंसि दिव्वे १. ना० १११६५ । ७. पू०-ना० १११६६ । २. नियाइ (क, ख); निग्गच्छई (घ)। ८. सं० पा०---सकोरेंट जाव सेयवर । ३. ४. ना० १२११४ । ६. सुइरं (क, ख, ग)। ५. तत्थ (क, ख, ग, घ) एतत् अशुद्ध प्रति- १०. ना० ११११११८ । भाति । ११. ना० ११६ । ६. ना० ११२.१४ । १२. कयाई (ग)1 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्ली) १६७ सिरिदामगंडे दिट्टपुग्वे । तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ ।। ६०. तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-केरिसिया ण देवाणुप्पिया ! मल्ली विदेहरायवरकन्ना, जस्स' णं संवच्छर-पडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सहमपि कलंन अग्छ? ६१. तए णं सुबुद्धो पडिबुद्धि इक्खागरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! मल्ली विदेहरायवरकन्ना सुपइट्ठियकुम्मुण्णय-चारुचरणा जाव' पडिरूवा ।। ६२. तए णं पडिबुद्धो सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म सिरिदाम गंड-जणियहासे' दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिया ! मिहिलं रायहाणि । तत्थ णं कुंभगस्स रणो धूयं पभावईए अत्तयं मल्लि विदेहरायवरकन्न' मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका ॥ ६३. तए णं से दूए पडिबुद्धिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुटे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे जेणेव चाउघंटे आस रहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउरघंट प्रासरह पडिकप्पावेइ, पडिकप्पावेत्ता दुरूढे ह्य-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे ° महया भड-चडगरेणं साएयानो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजणवए' जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । चंदच्छाय-राय-पदं ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनाम जणवए होत्था । तत्थ णं चंपा नामं नयरी होत्था ! तत्थ णं चपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था । तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहणणगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति- अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया ॥ ६५. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए यावि होत्था— अहिगयजीवाजीवे वण्णो । ६६. तए णं तेसि अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अग्णया कयाइ एगयो सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा समुल्लावे" समुप्पज्जित्था-सेयं खलु १. अत्र पुंस्त्वनिर्देशः मल्ल्या : तीर्थकरत्वेन ६. सं० पा.--गय ° 1 कृतः स्यात् ? ७. विदेहा० (क, ख) । २. वण्णओ० (क, ख, ग, घ); जीवाजीवा- ८. अंगा ° (क, ख, ग)। भिगमपडिवत्ती ३१ ९. ना० ११५१७ 1 ३. हरिसे (क, ख)। १०. ना० १३१४७ । ४. अत्तियं (क, ख, ग, घ)! ११. संलावे (ख, ग, घ)। ५. ०कन्नयं (क, ख)। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ नामक हाओ अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्द पोहणं श्रोगात्तिए त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स एयम पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गेव्हंति, गेण्हित्ता सगडीसागडयं सज्जेंति, सज्जेत्ता गणिमस्स धरिमस्स मेज्जस्स पारिच्छेज्जल्स य भंडगस्स सगडी-सागडियं भरेंति, भरेत्ता सोहणंसि तिहि करण- नक्खत्तमुहुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण संबंधि-परिजणं भोयणवेलाए भुंजावेति', भुजावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण संबंधि- परिजणं प्रापुच्छंति, आपुच्छित्ता सगड़ीसागडियं जोयंति, जोइत्ता चंपाए नयरीए मज्भंमज्भेणं निग्गच्छंति, निम्गच्छित्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सगडीसागडियं मोयंति, पोयवहणं सज्जेंति, सज्जेत्ता गणिमस्स' धरिमस्स मेज्जस्स पारिच्छेज्जस्स य° भंडगस्स [ पोयवहणं ? | भरेंति, तंदुलाण य समियस्स य तेल्लरस य धयस्स य गुलस्स य गोरसस्स य उदगस्स य भायणाण य o सहाण य भेसज्जाण य तणस्स य कट्टुस्स य आवरणाण य पहणाण यसि च बहूणं पोयवहणपाउरगाणं दव्वाणं पयवहणं भरेंति । सोहणंसि तिहि करण नक्खत्त-मुहुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उक्खडावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं भोयणवेलाए भुंजावेंति, भुंजावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण संबंधि- परियणं श्रपुच्छंति, जेणेव पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति ॥ ६७. तए गं तेसि अरहणग' पामोवखाणं वहूणं संजत्ता - नावा वाणियगाणं' • मित्त-नाइ - नियग-सयण संबंधि परियणा ताहि इट्टाहि कंताहि पियाहि माहि मणामाहिं मोरालाहि वग्गूहिं अभिनंदता य अभिसंथुणमाणा य एवं वयासी - प्रज्ज ! ताय ! भाय ! माउल ! भाइणेज्ज ! भगवया समुद्देणं अभिरविखज्जमाणा अभिरक्खिज्जमाणा चिरं जीवह, भदं च भे, रवि लट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे नियगं घरं हव्वभागए पासामो त्ति कट्टु ताहि सोमाहिं निद्धाहि दीहाहिं सप्पिवासाहि पप्पुयाहि दिट्ठीहि निरिक्खमाणा मुहुत्तमेत्तं संचिति । तत्र समाणिएसु पुप्फबलिकम्मेसु दिन्नेसु सरस-रतचंदण - दद्दर-पंचगुलितलेसु, अणुक्खित्तंसि धूवंसि, पूइएसु समुद्दवाएसु, १. सं० पा०- -- भुंजावेंति जाव आपुच्छति । २. गंभीर (ख, घ) ३. सं० पा० - गणिमस्स जाव चउब्विहभंडगस्स 1 ४. भायणस्स 1 ५. सं० पा० अरहणग जाव वाणियगाणं । ६. सं० पा०-- वाणियगाणं जाव परियणा । ७. सं० पा०- - इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं । ८. पूतिएसु ( ख ) ; पूईतेसु ( ग, घ ) । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम प्रज्झयणं (मल्ली) संसारियासु वलयासु', ऊसिएसु सिएसु झयग्गेसु, पड्डुप्पवाइएसु तूरेसु' जइएसु सव्वसउणेसु, गहिएसु रायवरसासणेसु महया उक्किट्ठ-सीहनाय''बोल-कल कल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्द-रवभूयं पिव मेइणि करेमाणा एगदिसिं' 'एगाभिमुहा अरहण्णगपामोक्खा संजत्ता-नावा वाणियगा नावाए दुरूढा ॥ ६८. तनो पुरसमाणवो वक्कमुदाहु-हं भो! 'सव्वेसिमेव भे" अत्थसिद्धी, उवट्टियाई कल्लाणाई, पडिहयाइं सव्वपावाइं, 'जुत्तो पूसो,“ विजओ मुहुत्तो 'अयं देसकालो" ॥ ६६. तायो पुस्समाणवेणं वक्कमुदाहिए" हट्टतुट्ठा कण्णधार-कुच्छिधार'-गभिज्ज संजत्ता-नावावाणियगा वावारिसु, तं नावं पुण्णुच्छंग' पुण्णमुहिं बंधहितो म चंति ॥ ७०. तए णं सा नावा विमुक्कबंधणा पवणबल-समाह्या ऊसियसिया विततपक्खा इव गरुलजुवई गंगासलिल-तिक्ख-सोयवेगेहिं 'संखुब्भमाणी-संखुब्भमाणी? उम्मी-तरंग-मालासहस्साइं समइच्छमाणी-समइच्छमाणी कइवएहिं अहोरत्तेहिं लवणसमुई अणेगाई जोयणसयाई अोगाढा ॥ ७१. तए णं तेसि अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं लवणसमुदं अणेगाई जोयणसयाइं प्रोगाढाणं समाणाणं बहूई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई, तं जहा-- अकाले गज्जिए अकाले विज्जूए अकाले थणियसद्दे अभिक्खणं-अभिक्खणं अागासे देवयानो नच्चंति ।। ७२. "तए णं ते अरहण्णगवज्जा संजत्ता-नावावाणियगा एग च णं महं तालपिसायं १. संचारिया (क)। १४. संबुज्झमाणी २ (क, ख, ग, घ)। २. वलयवाहासु (क); बलयबाहासु (ग, घ)। १५. अत्र द्वयोर्वाचनयोः संमिश्रणं जातमस्ति । ३. भूतेसु (ग)। वृत्तिकारस्य सम्मुखे असो मिश्रितपाठ ४. जतिएसु (ख); जइतेसु (ग, घ)। एवादशेषु लिखितः आसीत्, तेन वृत्तिकृता ५. सं० पा०-सोहनाय जाव रवेण । द्वयोः संगति स्थापयितुं प्रयत्नः कृतः, यथा-- ६. सं. पा.-एगदिसि जाव वाणियगा। तत्रार्हन्नकवर्जा यत् कुर्वन्ति तत् दर्शयितु७. सव्वेसामधि (क, ख, ग, घ)। मुक्तमेव पिशाचस्वरूपं सविशेषं तेषां ८. इहावसरे इति गम्यते (वृ)। तद्दर्शनं चानुवदन्नाह-तए णमित्यादि: ६. एष प्रस्तावो गमनस्येति गम्यते । ततस्ते अर्हन्नकवर्जा सांयात्रिकाः पिशाचरूप १०. माणएणं (ख, ग, घ)। वक्ष्यमाणविशेषणं पश्यन्ति (वृ)। ११. °मुदाहरिए (क, घ)। वृत्तिकारेण वैकल्पिकरूपेण 'तएणं ते अरहणग १२. कुच्छिधारकण्णधार (ख, ग, घ)। वज्जा' इति सूत्रांशं वाचनान्तरत्वेन स्वीकृतम्, १३. पुण्णत्थमं (ख)। यथा-अथवा 'तएणं ते 'अरहण्णगवज्जा' Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० भायाधम्मकहाऔ पासंति-तालजंघं दिवंगयाहिं बाहाहि फुट्टसिरं भमर-निगर-वरमासरासिमहिसकालगं भरिय-मेहवण्णं सुप्पणहं फाल-सरिस-जीहं लंबोटुं धवलवट्टअसिलिट्ठ-तिक्ख-थिर-पीण-कुडिल-दाढोवगूढवयणं विकोसिय-धारासिजुयलसमसरिस-तणुय - चंचल - गलंतरसलोल - चवल-फुरुफुरेंत - निल्लालियगरजीहं अवयत्थिय -महल्ल-विगय-वीभच्छ-लालपगलंत-रत्ततालुयं हिंगुलय-सगब्भकंदरबिलं व अंजणगिरिस्स अग्गिज्जालुग्गिलंतवयणं पाऊसिय'-अक्खचम्मउइट्रगंडदेसं चीण-चिमिढ-वक-भगनासं रोसागय-धमधमेंत-मारुय-निठुर खर-फरुसझसिरं अोभमा-नासियपडं घाडभड -रइय-भीसणमहं उद्धमहकण्णसक्कुलिय-महंतविगय-लोम-संखालग-लंबंत-चलियकपणं पिंगल-दिप्पंतलोयणं 'भिउडि-तडिनिडाल नरसिरमाल-परिणद्धचिधं विचित्तगोणस-सुबद्धपरिकरं अवहोलंत-फुप्फुयायंत-सप्प - विच्छुय-गोधुदुर"-उल- सरड-विरइय-विचित्तवेयच्छमालियागं भोगकूर-कण्हसप्प-धमधमेंत-लंबंतकण्णपूरं मज्जार-सियाललइयखधं दित्त-घुघुयंत"-घूय-कय- भरसिर", घंटारवेणं भीम-भयंकरं कायर इत्यादि गमान्तर 'आगासे देवयाग्रो नच्चति' पयडियगत्तं पिडियगत्तं (क, ख, ग)1] इतोनन्तरं द्रष्टव्यम्. अतएव वाचनान्तरे पणच्चमाणं अफ्फोडत अभिवगंत नेदमुपलभ्यते चैवम् 'अभिमूहं आवयमाणं अभिगज्जंतं बहुसो-बहुसो य अट्टहासे पासंति' (वृ)1 विणिम्मुयंतं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-[ गुडिय प्रथमवाचनापाठे कोपि कर्ता नास्ति (ख)।] अयसिकुसुमप्पमासं खुरधार असि अतोस्माभि द्वितीयवाचनापाठो मूले गहाय अभिमुहमावयमाणं पासति । स्वीकृतः । प्रथमवाचना पाठः इत्यमस्ति- १६. एवं (क)। 'एग च णं महं पिसायरूव पासंति- १. अवत्थिय (वृपा) । तालजंघ दिवंगयाहिं बाहाहिं मसि-मूसग- २. अग्गिजालो (क); अग्गिजालु (ख)। महिस-कालगं भरिय-मेहवणं लंबोटु ३. आबूसिय० (पा)। निग्गयरगदंतं निल्लालिय-जमल-जुयल-जीहं ४. उट्ठ ° (ख, ग)! पाऊसिय-आपूसिय (ख); प्राधूसिय, ५. धम्मधम्मेंत (ख) । आपूसिय (वृपा)1] वयण-गडदेसं चीण- ६. घोडुब्भड (ख)। चिमिढ-[चिविड (क); चमड (घ)।] ७. संखालग्ग (वृपा)। नासियं विगय-भुग्ग-[भुग्ग-भग्ग (क, वृपा)] ८. भिउडितनिडाल (वृपा)। भुमयं । भमयं (ख)।] खज्जोयग-दित्त- ६. पुप्फया ° (क, ख, ग, घ)। चक्खुरागं वाचनान्तरे - विगय - भग्ग १०. गोधुंदर (ग, घ)। भुमय • पहसिय - पयलिय - पडिय-फल्लिंग- ११. घुघूयंत (ख)। १२. मुंभल ° (क, ग); सुंभल ° (ख)। खज्जोय-चक्खुरागं !] उत्तासणगं विसालवच्छ एकस्मिन् वृत्तादर्श 'बुभलं' इति लभ्यते । विसालच्छि पलंबकृच्छि पहसिय-पयलिय- कुंतलं (क्व)। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्ली) जणहिययफोडणं दित्तं अट्टहासं विणिम्मुयंतं, वसा-रुहिर-पूय-मंस-मल-मलिणपोच्चडतण उत्तासणयं विसालवच्छ पेच्छंता भिन्न नख-मुह-नयण-कण्णं वरवग्घ-चित्त-कत्ती-णियंसणं सरस-रुहिर-गयचम्म-वियय-ऊसविय-वाहजयलं ताहि य खर-फरुस-असिणिद्ध-दित्त-अणिट्ठ-असुभ-अप्पिय'-अकंत-वग्गूहि य तज्जयंतं तं तालपिसायरूवं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता भीया' 'तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया अण्णमण्णस्स कायं समतुरंगेमाणा-समतुरंगेमाणा बहणं इंदाण य खंदाणाय रुद्दाण य सिवाण य वेसमणाण य नागाण य भयाण य जक्खाण य अज्ज-कोट्टकिरियाण' य वहूणि उवाइयसयाणि उवाइमाणा चिट्ठति ! ७३. तए णं से अरहण्णए समणोवासए तं दिव्वं पिसायरूवं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता अभीए अतत्थे अचलिए असंभंते अणाउले अणुव्विग्गे अभिण्णमुहरागनयणवण्णे अदीण-विमण-माणसे पोयवहणस्स एगदेसंसि वत्थंतेणं भूमि पमज्जइ, पमज्जित्ता ठाणं ठाइ, ठाइत्ता, करयल- परिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासि-नमोत्थु णं अरहताणं भगवताणं जाव सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं । जइ णं हं एत्तो उवसरगानो मुंचामि तो मे कप्पइ पारित्तए, अह णं एत्तो उवसग्गाग्रो न मुंचामि तो मे तहा पच्चक्खाएयव्वे ति कटटु सागारं भत्तं पच्चक्खाइ ।।। ७४. तए णं से पिसायरूवे जेणेव अरहण्णगे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहाणगं एवं वयासी-हंभो अरहण्णगा! अपत्थियपत्थया ! 'दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्ण-चाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति ०. परिवज्जिया ! नो खलु कप्पइ तव सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा। तं जइ णं तुम सील-व्वय-गुण-वे रमणपच्चक्खाण-पोसहोववासाइं न चालेसि न खोभसि न खंडेसि व भंजेसि न उज्झसि न परिच्चयसि, तो ते अहं एयं पोयवहणं दोहि अंगुलियाहिं गेण्हामि, गेण्हित्ता सत्तद्रुतलप्पमाणमेत्ताइ उड्ढं वेहासं उव्विहामि अंतोजलंसि १. अप्पियअमण्णुण्ण (क, घ) । २. तज्जयंतं पासंति (क, ख, ग, घ)। ३. सं० पा०-भीया संजायभया । ४. कोटिकिरियाण (क)। ५. सं० पा० करयल° । ६. ओ० सू० २१॥ ७. अपस्थियपत्थिया (ग, घ, वृपा); सं० पा अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया । ८. वा एवं (क, ख, ग, घ)। ९. सं० पा०-सीलब्वय जावन परिच्चयसि । १०. अंगुलीहिं (ग)। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ भायाधम्मकहाओ निव्वोलेमि', जेणं' तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियानो बवरोविज्जसि ।। ७५. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया ! अरहण्णए नाम' समणोवासए अहिगयजीवाजीवे । नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा 'दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेणं वा किन्नरेण वा किपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथात्रो पावयणाश्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, तुमं णं जा सद्धा तं करेहि त्ति कटु अभीए जाव' अभिन्नमुहराग-नयणवण्णे अदोण-विमण-माणसे निच्चले निप्फंदे' तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ।। ७६. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहण्णगं समणोवासगं दोच्चपि तच्चपि एवं वयासी-हंभो अरहण्णगा ! जाव धम्मज्झागोवगए विहरइ ।। ७७. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहणगं धम्मज्झाणोवग यं पासइ, पासित्ता वलियतरागं ग्रासुरते तं पोयवहणं दोहिं अंगुलियाहिं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्तद्रुतलप्पमाणमेत्ताइं उड्ढे वेहासं उविहइ, उविहित्ता ° अरहण्णगं एवं वयासीहंभो अरहण्णगा! अपत्थियपत्थया" ! नो खलु कप्पइ तव सील-व्वय गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं चालितए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा । तं जइ णं तुम सील-ब्बय-गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं न चालेसि न खोभेसि न खंडेसि न भंजेसि न उज्झसि न परिच्चयसि, तो ते अहं एवं पोयवहणं अंतो जलंसि निब्बोलेमि, जेणं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ७८. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं बयासी-अहं णं देवाणुप्पिया ! अरहण्णए नाम समणोवासए-- अहिगयजीवाजीवे नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथाम्रो पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, तुमं गं जा सद्धा तं करेहि त्ति कटु अभीए जाव अभिन्नमुहराग-नयणवण्णे अदीण-विमण-माणसे निच्चले निष्फंदे १. निच्छोल्लेमि (क)। २. जाणं (क, ग, घ)। ३. X(ग)। ४. सं० पा०-देवेण वा जाव निग्मथाओ। ५. जाव (ख, ग, घ) अशुद्ध प्रतिभाति । ६. ना० ११८७३। ७. निप्पंदे (ख)। ८. ना० १८७४,७५ । ६. सं० पा०-सत्तद्रुतलाईजाव अरहन्नगं । १०. पू०-ना० १९८७४ । ११. सं० पा०-सीलब्वय तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए। १२. ना० शमा७३। Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अ (मल्ली) तुसिणीए • धम्मभाणोवगए विहरइ । ७६. तए से पिसायरूवे अरहणगं जाहे तो संचाएइ निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तर वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते' तंते परितंते • निव्विण्णे तं पोयवहणं सणियं सणियं उवरि जलस्स ठवेइ, ठवेत्ता तं दिव्वं पिसायरूवं पडिसाहरेइ, पडिसाहरेत्ता दिव्वं देवरूवं विउन्वई' - अंतलिक्खपडिबन्ने सखिखिणीयाई दसद्धवण्णाई वत्थाइं पवर परिहिए अरहणगं समणोवास एवं वयासी - हं भो अरहण्णगा ! समणोवासया ! धन्नेसि णं तुमं देवाणुपिया' ! पुण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयलक्खणेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्म जोवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावणे इमेयारूत्रा पडिवत्ती लद्धा पत्ता श्रभिसमण्णागया । -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविदे देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए बहूणं देवाणं मज्भगए महया महया सदेणं एवं श्राइक्खइ, एवं भासेइ, एवं पुण्णवेइ, एवं परूवेइ एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए श्ररहणए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे । नो खलु सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथाश्रो पावयणाश्रो चालित्तए' "वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा । तए णं अहं देवाणुपिया ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो नो एयम सद्दहामि पत्तियामि रोएमि । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकष्पे समुप्पजित्था ● - गच्छामि गं ग्रहं प्ररहणगस्स प्रतियं पाउब्भवामि जाणामि ताव अहं अरणगं - किं पियधम्मे नो पियधम्मे ? दढधम्मे नो दढधम्मे ? सील-व्यगुण’- वेरमण-पच्चक्खाण - पोसहोववासाई किं चालेइ नो चालेइ ? खोभेइ नो खोइ ? खंडेइ नो खंडेइ ? भंजेइ नो भजेइ ? उज्झइ नो उज्झइ ? परिच्चयइ • नो परिच्चयइ त्ति कट्टु एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता आहिं पउंजामि, जित्ता देवाप्पियं प्रोहिणा प्रभोएमि, ग्राभोएत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं 113 १. सं० पा० - संते जाव निव्विण्णे । तहेब संते जाव निव्विणे (क, ख, ग, घ ) । २. पू० उवा० २४० ३. सं० पा० – देवाणुप्पिया जाव जीवियफले । ४. सक्का (क, ख, ग, घ ) । १७३ ५. सं० पा०-चालित्तए जाव विपरिणामित्तए । ६. सं० पा० - अज्झत्थिए । ७. सं० पा० गुणे किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ | .. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ नायाषम्मकहाओ अवक्कमामि' उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वामि, विउव्वित्ता ताए उक्किट्ठाए' देवगईए जेणेव लवणसमुद्दे जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवाणुपियस्स उवसरगं करेमि, नो चेव गं देवाणुप्पिए भीए तत्थे चलिए संभंते आउले उविग्गे भिण्णमुहराग-नयणवण्णे दीणविमणमाणसे जाए ° । तं जंणं सक्के देविदे देवराया एवं वयइ, सच्चे णं एसमटे । तं दिटे णं देवाणुप्पियस्स इडी" 'जई जसो बलं वारिय पूरिसकार -परक्कमे लद्ध पत्ते अभिसमयणागए। तं खामे मि णं देवाणप्पिया। खमेसू णं देवाण प्पिया ! खंतमरिहसि णं देवाणप्पिया ! नाइ भुज्जो एवंकरणयाए त्ति कटु पंजलिउडे पायवडिए एयमटुं विणएणं भुज्जो-भज्जो खामेइ, अरहणगस्स य दुवे कुंडलजुयले दलयइ, दलइत्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। ८०. तए णं से अरहण्णए निरुवसग्गमिति कट्ट पडिम पारेइ ।। ८१. तए णं ते अरहणणगपामोक्खा संजत्ता-नावा वाणियगा दक्खिणाणुकलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लवैति, लंबेत्ता सगडि-सागडं सज्जेंति, तं गणिमं घरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडिसागडं संकाति, संकामेत्ता सडि-सागडं जोविति जोवित्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च गेण्हंति, गेण्हित्ता [मिहिलाए रायहाणीए ?] अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिम्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु महत्थं महाचं मह रिहं विउलं रायारिहं पाहुडं ° दिव्वं कुंडलजुयलं च उवणेति ॥ 2. ताण भए राया तेसि संजत्ता नावावाणियगाणं तं महत्थं महाघं महरिवं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च° पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लि विदेहवर रायकन्नं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयल मल्लीए विदेहरायकन्नगाए पिणद्धे इ, पिणद्धत्ता पडिविसज्जेइ ।। १. २, ३. पू०–राय सू०१० ! ४. सं० पा०--भीया वा' ५. स० पा०--इड्ढी जाव परकम्मे । ६. सं० पा० --पामोक्खा जाव वाणियगा। ७. सगड (ग, घ)। ८. जोएंति (क)! है. 'क' प्रतौ असो पाठः 'महत्थं' अत: प्राग् लिखितो लभ्यते, किन्तु वस्तुतः कोष्ठकस्थाने युज्यते । अन्यादर्शेषु नासो लब्धोस्ति । १०. सं० पा०-करयल । ११. सं० पा.-महत्थं ° । १२. सं० पा.---संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं अभय (मल्ली) १७५ ८३. तए गं से कुंभए राया ते अरहण्णगपामोक्खे' संजत्ता नावा वाणियगे विपुलेणं वत्थ-गंधर- मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणे, सक्कारेत्ता सम्मणेत्ता • उस्सुक्कं वियरs, वियरिता रायमग्गमोगाढे य श्रावासे वियरइ, वियरिता पडिविसज्जेइ ॥ ८४. तए णं अरहण्णग' पामोक्खा संजत्ता नावावाणियगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता भंडववहरण करेंति, पडिभंडे हंति गेव्हित्ता सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जेत्ता भंडं संकामेंति, कामेत्ता दक्खिणाणु कूलेणं वाएणं जेणेव चंपाए पोयट्टाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेति, लंबेत्ता सगडी - सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडी-सागडं संका मेंति, संकामेत्ता "सगडि - सागडं जोविति, जोवित्ता जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चंपाए यहाणीए बहिया गुज्जाणंसि सगडि सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्यं महग्धं हरिहं विजलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं गेव्हंति, गेव्हित्ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं महत्थं' महग्धं महिं विलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयल • उवर्णेति ॥ ८५. तए णं चंदच्छाए अंगराया तं महत्थं' पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते अरहण्णगपामोक्खे एवं वयासी - तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! बहूणि गामागर जाव' सण्णिवेसाई ग्राहिंह, लवणसमुदं च ग्रभिक्खणंअभिक्खणं पोयवहणेहिं प्रोगाह, तं प्रत्थियाई भे केइ कहिंचि अच्छेरए दिवे ? ८६. तए णं ते ग्ररहण्णगपामोक्खा चंदच्छायं अंगराय एवं वयासी - एवं खलु सामी ! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए रहण्णगपामोक्खा बहवे संजत्तगा नावावाणियगा परिवसामो । तए णं श्रम्हे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च गेण्हामो तहेव प्रहीण-प्रइरित्तं जाव' कुंभगस्स रण्णो उवणेमो । तसे कुंभ मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तं दिव्वं कुंडलजुयलं पिणखेद्द", पिणद्धेत्ता पडिविसज्जेइ । तं एस णं सामी ! ग्रम्हेहि कुंभगरायभवणंसि १. सं० पा०० पामोक्खे जाव वाणियगे । २. सं० पा०-- गंध जाव उस्सुक्कं । ३. सं० पा० - अरहन्नग संजत्तगा । ४. भंडग° ( ग ) । ५. सं० पा०-- संक्रामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं । ६. सं० पा० - महत्यं जाव उवर्णेति । ७. पू० ना० ११८१८१ । ८. ना० ११११११८ । ६. ना० ११६१६४-८२ । १०. विधि ( ख ) ; पिणिधेड ( क ) | Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाया धम्मक हाओ देवकन्ना वा मल्ली विदेहरायवर कन्ना अच्छेरए दिट्ठे । तं नो खलु अण्णा कावि तारिसिया असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायन्ना वा जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना || ८७. तए णं चंदच्छाए रहण्णगपामोक्खे' सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता १७६ उस्सुक्कं वियर, वियरित्ता पडिविसज्जेइ || ८८. तए णं चंदच्छाए वाणियग-जणियहासे दूयं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीजाव' मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जका ॥ ८६. तए णं से दुए चंदच्छाएणं एवं वृत्ते समाणे हद्रुतुट्ठे जाव' पहारेत्थ गमणाए ॥ रुप्पि - राय-पदं ६०. तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जणवए होत्था । तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था । तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था । तस्स गं रुप्पिस धूया धारिणीए देवीए प्रत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्या – सुकुमाल - पाणिपाया' रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्या || ६१. तीसे णं सुबाहूए दारियाए अण्णया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यात्रि होत्था || ६२. तणं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उवट्टियं जाइ, जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाप्पिया ! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, तं तुम्भेणं रायमग्गमोगाढंसि चउक्कसि जल-थलय- दसद्धवण्णं मल्लं साह रह "जाव एवं महं सिरिदामगंड गंधद्धणि मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह । ते वि तहेव श्रोलयंति" | ६३. तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुवण्णगार-सेणि सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं व्यासीखिप्पामेव भो देवाणुपिया ! रायमग्गमोगाढंसि पुप्फमंडवंसि नाणाविहपंचतंदुलेहिं नगर प्रालिहह तस्स बहुमज्भदेसभाए पट्टयं रएह, एयमाणत्तियं पच्चपिह । ते वि तहेव पच्चपिति ॥ १. सं० पा०- देवकन्ता वा जाव जारिसिया | देवकन्तगा (क, ख, ग, घ ) । २. पायोक्खा (क, ख, घ) । ३. ना० ११८६२ । ४. सुक्का (घ) 1 ५. ना० ११८/६३ - ६. पू०ना० १।१।१७ । ७. मंडवंसि (क, ख, ग, घ ) । ८. सं० पा० - साहरह जाव प्रलयंति । ६. ना० ११८।४८ । १०. पू० ना० ११८१३०१ ११. ओलेंति (क ) । - Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमं अभय (मल्ली) १७७ o ९४. तए गं से रुप्पी कुणालाहिवई हत्थिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भड'- चडगर-रह-पहकर - विदपरिक्खित्ते अंतेउर - परियाल संपरिवुडे सुबाहुं दारियं पुर कट्ट जेणेव रायमग्गे जेणेव पुप्फमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाश्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पुष्कमंडवे प्रणुष्पविसइ, विसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सणसणे || ६५ तए णं ताम्रो तेउरिया सुबाहुं दारियं पट्टयंसि दुरुहेति', दुरुहेत्ता सेयापीयएहि ' कलसेहिं ग्रहाणेंति, पहाणेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता पिउणो पायवंदियं उवर्णेति ॥ ६६. तए णं सुबाहू दारिया जेणेव रुपी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायहणं करेइ || - ६७. तए णं से रुप्पी राया सुबाहुं दारियं ग्रंके निवेसेइ, निवेसित्ता सुबाहूए दारियाए रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य जायविम्हए वरिसधरं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी तुमं णं देवाणुप्पिया ! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर-नगर" • जाव' सण्णिवेसाई ग्राहिंडसि, बहूण य राईसर जाव' सत्थवाहपभिईणं गिहाणि अणुविससि तं प्रत्थियाई ते कस्सइ रण्णो वा ईसरस्स वा कर्हिचि एयारिसए मज्जणए दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमीसे सुबाहूए दारियाए मज्जणए ? ६८. तए णं से वरिसधरे रुप्पि राय करयल " - "परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - एवं खलु सामी ! ग्रहं प्रण्णया तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं गए । तत्थ णं मए कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवर कन्नगाए भज्जणए दिट्ठे । तस्स णं मज्जणगस्स इमे सुबाहूए दारिया मज्जणए सय सहस्सइमपि कलं न 'अग्इ || ६६. तए णं से रुप्पी राया वरिसधरस्स प्रतियं एयम सोच्चा निसम्म मज्जणगजणिय-हासे दूयं सद्दावेइ", "सद्दावेत्ता एवं क्यासी- जाव" मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारित्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका || १. सं० पा० २. ० मंडवं ( क ) | ३. दुरुति ( ग घ ) । ४. सेयावीय एहिं ( क ) 1 भड" । ५. ०भूसियं ( क, ख ) 1 ६. पायगहणं ( क ) । ७. सं० पा० - नगर गिहाणि । ० ८. ना० ११११११८ । ६. ना० १२५५६ । १०. सं० पा०—करयल | ११. अग्घइ सेसं तहेब मज्जणग - जणियहासे ( क ) | १२. सं० पा० - सहावेइ जाव जेणेव । १३. ना० ११८/६२ । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ नायाधम्मकहाओ १००. तए णं से दूए रुप्पिणा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे जाव' ० जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । संख-राय-पदं १०१. तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नाम जणवए होत्था। तत्थ णं वाणारसी नामं नयरी होत्था । तत्थ णं संखे नाम कासीराया होत्था । १०२. तए णं तीसे मल्लीए विदेहवररायकन्नाए अण्णया कयाई तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था ॥ १०३, तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया। इमस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधि संघाडेह, [संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह' ?] !! १०४. तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमटुं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगार-भिसियानो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुवण्णगार-भिसियासु निवेसेइ, निवेसेत्ता बहूहिं आएहि यं •उवाएहि य उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मयाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहिं० परिणामेमाणा इच्छंति तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधि घडित्तए, नो चेव णं संचाएइ घडित्तए॥ १०५. तए णं सा सुवण्णगारसेणी जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ°, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी ! अज्ज तुम्हे' अम्हे सद्दावेह, जाव' संधि संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं अम्हे तं दिव्वं कुंडलजयलं गेण्हामो, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगार-भिसियानो तेणेव उवगच्छामो जाव' नो संचाएमो संधि" संघाडेत्तए । तए णं अम्हे सामी ! एयस्स दिव्वरस कंडलजयलस्स अण्णं सरिसयं कुंडलजुयलं घडेमो ।। १०६. तए णं से कभए राया तीसे सुवण्णगारसेणीए अंतिए एयमढ़े सोच्चा निसम्म प्रासुरुत्ते रुद्रे कुबिए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट एवं वयासी--केस णं तुब्भे कलाया णं भवह, जे णं तुब्भे इमस्स १. ना० १८६३ । ५. सं० पा०-आएहि य जाव परिणामेमाणा। २. ° कन्नयाए (ख)। ६. सं० पा-करयलबद्धावेत्ता। ३. संधी (क, ख, ग, घ)। ७. तुन्भे (ग)। ४. स्वर्णकारश्रेण्या राज्ञे निवेदने कोष्ठकवर्ती ८. ना० १०८।१०३। पाठो विद्यते । द्रष्टव्यम् --सू० १०५ । तेन ६. ना० १।८।१०४ ! अत्रासौ युज्यते। १०. X(ख, घ)। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदम अज्झयणं (मल्ली) १७४ दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स नो संचाएह संधि संघाडित्तए ? ते सुवण्णगारे निव्विसए प्राणवेइ ॥ १०७. तए णं ते सुवण्णगारा कुंभगेणं रण्णा निव्विसया प्राणत्ता समाणा जेणेव साइं साइं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाए रायहाणीए मज्झमझेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता विदेहस्स जणवयस्स मझमझेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता जेणेव कासी जणवए जेणेव वाणारसी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अग्गुज्जाणंसि सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हति, गेण्हित्ता वाणारसीए नयरीए मज्झमझेणं' जेणेव संखे कासीराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल- परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं बिजएणं° वद्धाति, वद्धावेत्ता पाहुडं उवणेति, उवणेत्ता एवं वयासी--अम्हे णं सामी! मिहिलामो कुंभएणं रण्णा निदिवसया आणता समाणा इह हव्वमागया । तं इच्छामो णं सामी ! तुभं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुबिग्गा सुहंसुहेणं परिवसिउँ ।। १०८. तए णं सखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी-किं णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कुंभएणं रण्णा निदिवसया प्राणत्ता ? १०६. तए णं ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! कुंभगस्स रणो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए। तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणि सद्दावेइ जाव निम्बिसया प्राणत्ता। तं एएणं कारणेणं सामी ! अम्हे कुंभएणं रण्णा निविसया प्राणत्ता ।। ११०. तए णं से संखे कासीराया सुवण्णगारे एवं वयासी केरिसिया णं देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स रण्णो धूया पभावईदेवीए अत्तया मल्ली विदेहरायवरकन्ना? १११. तए णं ते सुवष्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी-नो खलु सामी! अण्णा काबि तारिसिया देवकन्ना वा' 'असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ता वा रायकन्ता वा जारिसिया णं मल्ली विदेहवररायकन्ना । ११२. तए णं से संखे कासीराया कुंडल-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ", "सद्दावेत्ता एवं १. अंगुजाणंसि (घ)। करयल ए (ख, ग)। २. ना० १८८१ । ३. रायपसेणइय ६८३ सूत्रे अस्गानन्तरं ५. ना० ११८११०३-१०६ । 'अणुपविसई' इति क्रियापदं लभ्यते । ६. सं० पा०-देवकन्ना वा जाव जारिसिया। ४. सं० पा०-करयल जाव वदावेहि (क); ७. सं० पा०-सद्दावेइ जाव तहेव पहारेत्थ । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० नायाधम्मकहाओ वयासी-जाव' मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका ॥ ११३. तए णं से दूए संखेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे जाव' जेणेव मिहिला नयरी तेणेव ° पहारेत्थ गमणाए।। प्रदीणसत्त-राय-पदं ११४. तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरु नाम जणवए होत्था। तत्थ णं हत्थिणाउरे नाम नयरे होत्था । तत्थ णं अदीणसत्तू नाम राया होत्था जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरई॥ ११५. तत्थ णं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रण्णो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लोए अणुमरगजायए मल्लदिन्ने नाम कुमारे सुकुमालपाणिपाए जाव' जुवराया याविहोत्था।। ११६. तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कयाइ कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एव वयासी-गच्छह णं तुम्भे मम पमदवणंसि एग महं चित्तसभं करेह-अणेग खंभसयसणिविटुं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि तहेव पच्चप्पिणंति ।। ११७. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणि सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी तुम्भे णं' देवाणुप्पिया ! चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विब्बोयकलिएहिं रूवेहि चित्तेह', 'चित्तेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।। ११८. तए णं सा चित्तगर-सेणी एयमटू तहत्ति पडिसूणेइ, पडिसणेत्ता जेणेव सयाइ गिहाई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तूलियानो वण्णए य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता भूमिभागे विरचति, विरचित्ता भूमि सज्जेइ, सज्जेत्ता चित्तसभं हाव-भाव -विलास-बिब्बोय कलिएहि रूवेहि :, चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था ।। ११६. तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णा गया-जस्स णं दुपयस्स वा चउप्पयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं निव्वत्तेइ ।। १२०. तए णं से चित्तगरे" मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायंगुटुं पासइ । तए १. ना.१४८६२ । २. ना० १८१६३ । ३. ओ० सू० १४ । ४. दिन्नए (क, ख, ग, घ)। ५. ओ० सू० १४३ । ६, पू०-ना० ११११८६ । ७. गच्छह णं तुम्भे (ख, घ)। ८. सं० पा०-चित्तेह जाव पच्चप्पिणह । ६. द्रष्टव्यम्----अस्यैवाध्ययनस्य १०४ सूत्रम् । १०. सं० पा०-भाव जाव चित्तेउं । ११. चित्तगरदारए (क, ख, ग, घ) १२. अवणियंतराए (ख); जवणंतरियाए (ग)। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्लो) णं तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव' समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मम मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायगुट्ठाणुसारेणं सरिसगं' 'सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण ° गुणोववेयं रूवं निव्वत्तित्तए--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता भूमिभाग सज्जेइ, सज्जेत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायंगुट्ठासारेण सरिसणं जाव रूवं निव्वत्तेइ ।।। १२१. तए णं सा चित्तगर-सेणी चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलिएहि रूवेहि चित्तेइ, चित्तेत्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ॥ १२२. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणि सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दल यइ, दलइत्ता पडिविसज्जइ ॥ १२३. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे' व्हाए अंतेउर-परियाल-संपरिबुडे अम्मधाईए सद्धि जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चित्तसभं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलियाई रूवाई पासमाणे-पासमाणे जेणेव मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १२४. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तियं पासइ, पासित्ता' इमेयारूवे अज्झथिए जाव' समुप्पज्जित्था एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्ने ति कट्ट लज्जिए विलिए वेड्डे सणिय-सणियं पच्चोसक्कइ।। १२५. तए णं तं मल्लदिन्नं कुमारं अम्मधाई सणियं-सणियं पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं पुत्ता! लज्जिए विलिए वेड्डे सणियं-सणियं पच्चोसक्कसि ? १२६. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्मधाई एवं वयासी--जुत्तं णं अम्मो ! मम जेट्टाए भगिणीए गुरु-देवयभूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तसभं अणु पविसित्तए? १२७. तए णं अम्मधाई मल्लदिन्नं कुमारं एवं वयासी-नो खलु पुत्ता ! एस मल्ली --.-.-.-.- - १. ना० १.११४८ । ६. ना० ११११४८। २. सं० पा०–सरिसग जाव गुणोववेयं । । ७. बिलए (ख); विलज्जिए (घ); बीडिए ३. सं० पा.-जाव हाव भावं । अत्र जाव (क्व)। शब्दः भावशब्दानंतरं युज्यते । ८. अम्मधाई (क, ख, ग, घ)। ४. कुमारे अण्णया (क, ख, ग)। ६. चित्तघरसभं (ख, ग, घ)। ५. अतोऽने 'तस्स' इति पदमध्याहर्तव्यम् । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ नायाधम्मकहाओ विदेहरायवरकन्ना। एस णं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए चित्तगरएणं तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए । १२८. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्मधाईए एयमटुं सोचवा निसम्म प्रासुरुत्ते एवं वयासी-केस णं भो ! से चित्तारए अपत्थिय पत्थए, दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति- परिवज्जिए, जे णं मम जेट्टाए भगिणोए गुरु-देवयभूयाए 'लज्जणिज्जाए मम चित्तसभाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए त्ति कटु तं चित्तगरं वज्झ प्राणवे॥ १२६. तए णं सा चित्तगर-सेणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं भत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धावेइ° वद्धावेत्ता एवं वयासो-- एवं खलु सामी ! तरस चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया - जस्स णं दुपयस्स वा 'च उप्पयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं रूवं° निव्वत्तेइ । तं मा णं सामी! तुब्भे तं चित्तगरं वज्झ आणवेह । तं तुभे ण सामी ! तस्स चित्तगरस्स अण्णं तयाणरुवं दंड निव्वतेह' ।। १३०. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिदावेइ, छिदावेत्ता निन्विसयं प्राणवेइ ॥ १३१. तए णं से चित्तगरे मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निविसए प्राणत्ते समाणे सभंडमत्तो. वगरणमायाए मिहिलामो नयरीअो निक्खमइ, निक्खमित्ता 'विदेहस्स जणव. यस्स" मझमज्झेणं जेणेव कुरुजणवए जेणेव हथिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता चित्तफलगं सज्जेइ, सज्जेत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायंगुट्ठाणुसारेण एवं निव्वत्तेइ, निव्वत्तेता कक्खंतरंसि छुब्भइ, छुभित्ता महत्थं जाव" पाहुडं गेहइ, गेण्हित्ता 'हत्थिणाउरस्स नयरस्स मज्झमझेणं जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, १. पू०-ना० ११८।१०६ । सूत्रानुसारेणासौ पाठः स्वीकृतोस्ति । अत्र २. सं० पा०—अपत्थिय जाव परिवज्जिए। क्रियापदमन्नरा द्वितीयाः विभक्तिनँव ३. सं० पा०—देवयंभूयाए जाव निन्दत्तिए। संगच्छते । ४. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव बद्धा- ६. "निक्खमइ, निक्खमित्ता' इत्यध्याहार्यम् । वेत्ता । १०. ना.श५१ ५. चित्तकार (ख, ग)। ११. हथिणारं नयर (क, ख, ग, घ)! ६. सं० पा०–दुपयरस वा जाव निव्वत्तेति । १२. रायपसेणइय ६८३ सूत्र अस्यानन्तरं ७. निव्वत्तएह (ख)। 'अणुपविसई' इति क्रियापदं लभ्यते । ८. विदेहं जणवयं (क, ख, ग, घ); १८१०७ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अटुमं अज्झयणं (मल्ली) उवागच्छित्ता करयल परिम्गहियं सिरसावत्त मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ° बद्धावेत्ता पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अहं सामी! मिहिलामो रायहाणीनो कुंभगस्स रण्णो पुत्तेण पभावईए देवीए अत्तएणं मल्लदिनेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते समाणे इहं हव्वमागए। तं इच्छामि णं सामी ! तुभं बाहुच्छाया-परिग्गहिए' •निभए निरुविणे सुहं सुहेणं परिवसित्तए । १३२. तए णं से अदीणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी - किण्णं तुम देवाणुप्पिया ! मल्लदिन्नेणं निव्विसए प्राणते ? १३३. तए णं से चित्तगरे अदीणसत्तुं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कयाइ चित्तगर-सेणि सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! मम चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलिएहिं रूवेहि चित्तेह तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव' मम संडासगं छिदावेइ, छिदावेत्ता निवि सयं प्राणवेइ । एवं खलु अहं सामी ! मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते ।। १३४. तए णं नदीणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं क्यासी- से केरिसए णं देवाणुप्पिया ! तुमे मल्लीए विदेहरायवर कन्नाए तयागुरूवे रूवे निव्वत्तिए । १३५. तए णं से चित्तगरे कक्खंत राओ चित्तफलग नीणेइ, नीणेत्ता अदीणसत्तस्स उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी--एस णं सामी मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवस्स रूवस्स केइ आगार-भाव-पडोयारे निव्वत्तिए। नो खलु सक्का' केणइ देवेण वा 'दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तित्तए। १३६. तए णं से अदीणसत्तू पडिरूव-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी -- जाव' मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुका ॥ १३७. तए णं से दूए अदीणसत्सुणा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १. सं. पा.-करयल जाव बद्धावेत्ता। लिखितमस्ति । एतद् लिपिदोषेण जात२. सं० पा०-परिग्गहिए जाव परिवसित्सए। मथवा प्राकृतशैल्या प्रयुक्तम् ? ३. चित्तगरदारयं (ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-देवेण वा जाव मल्लीए। ४. ना० श८.११७.१३० । ७. सं० पा०-तहेव जाव पहारेत्थ । ५. प्राकृतव्याकरणानुसारेण 'सक्क' इति पदं ८. ना० ११८६२ । युज्यते, किन्तु आदर्शषु 'सक्का' इति पदमेव ६. ना० १०८।६३ । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जियसत्तु-राय-पदं १३८. तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जणवए । कंपिल्लपुरे नयरे । जियसत्तू नामं राया पंचाल हिवई । तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवी सहस्सं ओरोहे' होत्या || १३६. तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा' नामं परिव्वाइया - रिउब्वेय - यज्जुव्वेद सामवेदवणवेद - इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउन्हं वेदाणं सारगा जाव' भण्णए य सत्थेसु सुपरिणिडिया यावि होत्था ॥ १४०. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव' सत्थवाहपभिईणं पुरनो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ || १४१. तए णं सा चोक्खा ग्रण्णया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च जाव' धाउरत्ताश्रय गेues, गण्हित्ता परिव्वाइगाव सहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पविरलपरिव्वाइया सद्धि संपरिवुडा मिहिलं रायहाणि मज्भमज्भेण जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे जेणेव कन्नतेउरे जेणेव मल्ली विदेहरायवरकन्ना तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदयपरिफोसियाए' 'दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए" निसीयइ, निसीइत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरश्रो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च प्राघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ ॥ १४२. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी - तुम्भण्ण चोक्खे ! किंमूल धम्मे पण्णत्ते ? १४३. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी - अम्हं णं देवाणुप्पिए ! सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते । जं णं म्हं किंचि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए" य सुई भवइ । एवं खलु श्रम्हे जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छामो ॥ o नायाधम्मक हाओ १४४. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी - चोक्खे " ! से जहानामए केइ पुरिसे रुहिरकथं वत्थं रुहिरेणं चेव धोवेज्जा, श्रत्थि णं १. ओरोहो ( क ) ; उवरोहे ( ख ) । २. चोक्खी ( ख ) । ३. सं० पा० - रिउब्वेय जाव परिणिट्टिया । ४. ओ० सू० १७ । ५. ना० १५३६ । ६. ओ० सू० ११७ । ७. • फासियाए (क, ग ) 1 5. पच्चत्थुयाते भिसिया (ख, घ ) । ६. सं० पा० - दाणधम्मं च जाव विहरइ । १०. तुम्भेणं (ख, घ) अशुद्धं प्रतिभाति । ११. सं० पा० - मट्टियाए जाव भविग्घेणं । १।५।६० सूत्रे एतत् वर्णनं किञ्चित् परिवर्तनेन लभ्यते । १२. चोक्खा (ख, घ) 1 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयण (मल्ली) १८५ चोक्खे ! तस्स रुहिरकयस्स वत्थरस रुहिरेणं धोव्बमाणस्स काइ सोही ? नो इणढे समढे। एवामेव चोक्खे! तुब्भण्णं पाणाइवाएणं जाव' मिच्छादसणसल्लेणं नत्थि काइ सोही, जहा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव धोव्वमाणस्स। १४५. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए एवं वुत्ता समाणी संकिया कंखिया वितिगिछिया भेयसमावण्णा जाया यावि' होत्था, मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए नो संचाएइ किचिवि पामोक्खमाइक्खित्तएं', तुसिणीया संचिट्ठइ॥ १४६. तए णं तं चोक्खं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए बहुरो दासचेडीयो हीति निदंति खिसंति गरिहंति, अप्पेगइयानो हेरुयालेति अप्पेगइयानो मुहमक्कडियाओ' करेंति अप्पेगइयानो बग्घाडियानो करेंति अप्पेगइयानो तज्जेमाणीयो तालेमाणीसो निच्छुहंति ।। १४७. तए णं सा चोक्खा मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए दासचेडियाहि हीलिज्जमाणी निदिज्जमाणी खिसिज्जमाणी गरहिज्जमाणी आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणी मल्लीए विदेहरायवरकन्नयाए परोसमावज्जइ, भिसियं गेण्हइ, गेण्हित्ता कन्नतेउरानो पडिणिक्खमई, पडिणिक्खमित्ता मिहिलामो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता, परिव्वाइया-संपरिवुडा जेणेव पंचालजणवए जेणेव कंपिल्लपुरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं राईसर 'जाव" सत्थवाहपभिईणं पुरो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ ।। १४८. तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ अंतो अंतेउर-परियाल-सद्धि संपरिडे१२ •सीहासणवरगए यावि ° विहरइ ।। १४६. तए णं सा चोक्खा, परिव्वाइया-संपरिवुडा जेणेव जियसत्तुस्स रण्णो भवणे जेणेव जियसत्तू राया तेणेव अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जियसत्तुं जएणं विजएणं बद्धावेइ ।। १५०. तए णं से जियसत्तू चोक्खं परिव्वाइयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता सीहासणाम्रो १. एवं चोक्खी (क, ग); एवं चोक्खा (ख)। बग्घाडाओ (घ)। २. ओ० सू० १६३ ।। ८. सं० पा०—दासचेडियाहि जाव गरहिज्ज३. चोक्खी (क, ख, ग, घ)। माणी। ४. वि (ग)। ६. ना०१८।१०६ । ५. माति ° (ग, घ)। १०. सं० पा.- राईसर जाव विहरइ। ६. मुहमक्कडियं (क)। ११. ना० ११५।६। ७. बग्घाडिया (क); बग्घाडिओ (ख, ग); १२. सं० पा०-संपरिबुडे एवं जाव विहरइ । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ भायाधम्मकहाओ अब्भुढेइ, अन् द्वेत्ता चोक्खं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता प्रास णेणं उवनिमंतेइ॥ १५१. तए णं सा चोक्खा उदगपरिफोसियाए' 'दभोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निविसइ', निविसित्ता जियसत्तुं रायं रज्जे य' रट्टे य कोसे य कोडागारे य वले य वाहणे य पुरे य° अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छई ।। १५२. तए णं सा चोक्खा जियसत्तुस्स रण्णो दाणधम्म च' 'सोयधम्मं च तित्थाभि सेयं च ग्राघवेमाणी पण्णवेमाणी परवेमाणी उवदंसेमाणी विहरई॥ १५३. तए णं से जियसत्तू अप्पणो ओरोहंसि जायविम्हए चोक्खं एवं वयासो--तुम णं देवाणुप्पिया ! वहूणि गामागर जाव' सण्णिवेसंसि माहिडसि, वहूण य राईसर-सत्थवाहप्पभिईणं गिहाई अणुप्पविससि, तं अत्थियाइं ते कस्सइ रण्णो वा' •ईसरस्स वा कहिचि° एरिसए ओरोहे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे मम ओरोहे ? १५४. तए णं सा चोक्खा परिवाइया 'जियसत्तुणा एवं वुत्ता समाणी ईसि विहसि यं" करेइ, करेत्ता एवं वयासी-सरिसए णं तुमं देवाणुप्पिया ! तस्स अगडददुरस्स। के णं देवाणुप्पिए ! से अगडदद्दुरे ? जियसत्तू ! से जहानामए अगडददुरे सिया। सेणं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढे अण्णं अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे मण्णइ --- अयं चेव अगडे वा 'तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा ! तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए ददुरे हव्वमागए। तए णं से कूबददुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासो-से के "तुम देवाणुप्पिया ! कत्तो वा इह हव्वमागए ? तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी - एवं खलु देवाणु प्पिया ! अहं सामुद्दए ददुरे । १. सं. पा.---उदगपरिफोसियाए जाव भिसि- ग); जियसत्तं एवं बयासी इसिं अवहसिय याए। (घ); आदर्शषु एवं व' इति संक्षिप्तरूपं २. णिवसइ (क, ख, ग, घ)। लिखितं लभ्यते स्तबकादर्श तत्र 'एवं ३. सं० पा०-रज्जे य जाव अंतेउरे। वयासी' इति जातम् । स्तबककारेण 'इम ४. सं० पा०-दाणधम्मं च जाव विहरइ । कहई' इत्यर्थोपि कृतः । अस्य मौलिक रूपं ५. ना० ११११११८ । अस्माभिः प्रस्तुतसूत्रस्य षोडशाध्ययने ६. पू०-ना० १।५।६। लब्धम् । ७. सं० पा.-रणो वा जाव एरिसए। १०. सं० पा०--अगडे वा जाव सागरे । ८. ओरोघे (ख)। ११. समुद्दयं (घ)। ६. जियसत्तु एवं व ईसि अवहसियं (क, ख, १२. केसणं (घ)। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अटुमं अज्झयणं (मल्ली) १८७ तए णं से कूधददुरे तं सामुद्दयं दद्दुरं एवं वयासी-केमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूबददुरं एवं वयासी-महालए णं देवाणुप्पिया ! समुद्दे । तए णं से कूबददुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणढे समटे । महालए णं से समुद्दे । तए णं से कूवदद्दुरे पुरथिमिल्लानो तीरामो उप्फिडित्ता णं 'पच्चथिमिल्लं तीरं" गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणद्वे समढें। एवामेव तुमंपि जियसत्तू अण्णेसि बहूणं राईसर जाव' सत्थवाहप्पभिईणं भज्जं वा भगिणि वा धूयं वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं पोरोहे, तारिसए नो अण्णेसि । तं एवं खलु जियसत्तू ! मिहिलाए नयरीए कुंभगस्स धूया पभावईए अत्तया मल्ली नामं विदेहरायवरकन्ना स्वेण य जोवणेण य 'लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किद्रसरीरा.. नो खल अण्णा काइ [तारिसिया ? ] देवकन्ना वा असूरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा जारिसिया मल्ली विदेहरायवरकन्ना [तीसे ? ] छिन्नस्स वि पायंगुटुगस्स इमे तवोरोहे सयसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ त्ति कटु जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया । १५५. तए णं से जियसत्तू परिव्वाइया-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-जाव मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका ॥ १५६. तए णं से दूए जियसत्तुणा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। दूयाणं संदेस-निवेदण-पदं १५७. तए णं तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १. ४ (क, ख, ग, घ)। २. तहेब (क, ख, ग, घ)। ३. ना० १३०६। ४. जाणासि (घ)। ५. सं० पा०-जोवणेण य जाव नो खलु । ६. सं. पा०-देवकन्ना | ७. सं० पा०-सहावेइ जाव पहारेत्थ । ८. ना० ११८६२ । ९. ना० शा६३ । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाऔ १५८. तए णं छप्पि दूयगा जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुज्जाणंसि पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता मिहिलं रायहाणि अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पत्तेयं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट साणं-साणं राईणं वयणाई निवेदेति । कुंभएण दूयाणं असक्कार-पदं १५६. तए णं से कुंभए तेसिं दूयाणं 'अंतियं एयमटुं" सोच्चा आसुरुत्ते' 'रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे° तिवलियं भिडिं निडाले साहट्ट एवं वयासीन देमि णं अहं तुभं मल्लि विदेहरायवरकन्नं ति कटु ते छप्पि दूए असक्कारिय असम्माणिय अवदारेण निच्छुभावेइ ।। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं या कुंभएणं रण्णा 'असक्कारिय असम्माणिय प्रवद्दारेणं' निच्छुभाविया समाणा जेणेव सगा-सगा जणवया जेणेव 'सयाई-सयाई नगराई" जेणेव सया-सया रायाणो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-एवं खलु सामी! अम्हे जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं या जमगसमगं चेव जेणेव मिहिला तेणेव उवागया जाव अवद्दारेणं निच्छुभावेइ । “तं न देइ णं सामी ! कुभए मल्लि विदेहरायवरकन्न" साणं-साणं राईणं एयमटुं निवेदेति ।। १६०. जियसत्तुपामोक्खाणं कुभएणं जुज्झ-पदं १६१. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णस्स दूयसंपेसणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव मिहिला तेणेव उवागया जाव" अवद्दारेणं निच्छुढा । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स जत्तं" गेण्हित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं १. सं० पा०-करयल । २. निवसति (क, ग, घ)। ३. X(ख, ग)। ४. सं० पा०—आसुरते जाव तिवलियं । ५. अवदारेणं (क, ख, घ)। ६. असक्कारिय-असम्माणिया (ख, ग)। ७. अवदारेणं (क)! ८. सयाति-सयाति नगराति (ख)। ६. सं० पा०-करयल° । १०. ना० ११८।१५८,१५६ । ११. ना० १।८।१५८,१५६ । १२. जुत्तं (ख, ग)। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम अज्झणं (मल्ली) डिति, पडिसुता व्हाया सण्णद्धा' हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेण • छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि वीइज्जमाणा महया हय-गय-रहपवरजोहक लियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा सब्बिड्डीए जाव' दुंदुभि नाइयरवेण 'सएहिंतो -सएहिंतो नगरे हितो निग्गच्छति',' निग्गच्छिता errer मिलायंति, जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। १६२. तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लट्टे समाणे बलवाज्यं सदावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव हयगय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि• सेणं सन्नाहेहि सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि सेवि जाव पच्चप्पिणति ॥ १६३. तए णं कुंभए राया पहाए सन्नद्धे' हत्थिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदा मेणं छत्तेण धरिज्जमाणेणं • सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे महया हय-गय-रह-पवरजोहक लियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव" दुदुभिनाइयरवेणं मिहिलं मज्झमज्भेणं निज्जाइ", निज्जावेत्ता विदेहजणवयं मज्झमज्झेणं जेणेव देसग्गं" तेणेव खंधावारनिवेस करेइ, करेत्ता जियसत्तुपामोक्खा छप्पय रायाणी पडिवालेमाणे जुज्झसज्जे पडिचिट्ठइ || १६४. तए णं ते जियसत्तुपा मोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता कुंभएणं रण्णा सद्धि संपलग्गा" यावि होत्था || १६५. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणी कुंभयं रायं हय महिय-पवरवीरघाइय-'विवडियचिंध-धय" पडागं किच्छोवगयपाण" दिसोदिसि पडिसेहेति || १. पू० - ना० ११२।३२ २. सं० पा० - सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवर- १० चामराहि महया | ३. ना० १।११३३ । ४. सहितो जाव निगच्छति ( क ) ; सएहिं २ नगरेहितो जाव निगच्छति ( ख, ग, घ ) | ५. सं० पा० - हय जाव सेणं । ६. सन्नाहह ( क, ख, ग, घ ) | आदर्शषु बहुवचनान्त: प्रयोगो दृश्यते, किन्तु एकवचनकर्तृ के पाठे नास उपयुक्तोस्ति । ओवाइय५६ सूत्रेपि एकवचनान्तं क्रियापदं लभ्यते । ७. पच्चपिणंति (क, ख, ग, घ ) । ८. ५०ना० १२/३२ । ६. सं० पा०—हत्थिखंधवरगए जाव सेयवर ११. १२. चामराहि । ना० १।१।३३ १८६ गच्छ (घ) | देसरगंते (क, ख, घ) देसते ( क्व ); समग्गे (क्व ) | १३. जियसत्तू ० ( क, ख, ग, घ ) १४. योद्धमिति शेष: ( वृ) 1 १५. निवडियधयच्छतविध ( क ) । १६. किछपाणोवरायं (क); किच्छपणोवगयं ( ख, ग, घ ) प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ नायं पाठो व्याख्यातोस्ति । १।१६।२५२ सूत्रस्य वृत्तावस्य व्याख्या दृश्यते । तत्रत्यः पाठो व्याख्या च सम्यक् प्रतिभाति तेन तदनुसारेणात्र पाठः स्वीकृतः । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० o १६६. तए णं से कुंभए जियसत्तुपामोक्खेहिं छहि राईहिं हय- महिय-पवरवीरघाइय-विवडियचधधय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि पडिसेहिए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारप रक्कमे प्रधारणिज्जमिति कट्टु सिग्धं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिलिं प्रणुपविसइ,' अणुपविसित्ता मिहिलाए दुवाराई पिइ, पित्ता रोहसज्जे चिट्ठइ ॥ १६७. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मिहिलं रायहाणि निस्संचारं निरुच्चारं सव्वप्रो समंता प्रोभित्ताणं चिट्ठति ॥ १६८. तरणं से कुंभए राया मिहिलं रायहाणि प्रोरुद्ध जाणित्ता अभितरियाए उवद्वाणसाला सीहासणवरगए तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि यछिद्दाणि य 'विवराणि य" मम्माणि य अलभमाणे वहूहिं प्राहि य उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मवाहिय पारिणामियाहि य-बुद्धीहि परिणामेमाणे- परिणामेमाणे किंचि ग्रायं वा उवायं वा अलभमाणे ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्य मुहे ग्रट्टज्भाणोवगए भियायइ || मल्लीए चिताहेउ - पुच्छा-पदं 0 १६६. इमं च णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना व्हाया कयवलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया वहूहि खुज्जाहिं संपरिवुडा जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पायगहणं करेइ || १७०. तए णं कुंभए मल्लि विदेहरायवरकन्नं तो श्राढाइ नो परियाणाइ" तुसिणीए संचि ॥ महा o १७१. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं एवं वयासी -- तुम्भे गं ताओ ! अण्णा ममं एज्जमाणि" पासित्ता आढाह परियाणाह के निवेसेह | इयाणि ताओ ! तुम्भे ममं नो प्राढाह नो परियाणाह नो अंके निवेसेह । किण्णं तुब्भं अज्ज ओह मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्भाणोवगया • भियायह ? (घ) । ६. सम्माणि (क, ख, ग ) अशुद्धं प्रतिभाति । १. सं० पा० - हयमहिय जाव पडिसेहिए | २. सं० पा० - अवीरिए जाव प्रधारणिज्ज० । ३. सं० पा० - तुरियं जाव वेइयं । ७. सं० पा० - ओह्मणसंरुप्पे जाव भियाय । ८. सं० पा० - व्हाया जाव बहूहि । ६. पू०-- ओ० सू० ७० ४. ० पवेसेइ ( ख, ग, घ ) 1 १०. ५. विरहाणि य ( ग ); विरहाणि य विवराणि ११ द्रष्टव्यम् --- १।१।३६ सूत्रम् । एज्जमाणं ( ख, ग, घ ) । सं० पा०-एज्जमाणि जाव निवेसेह । १२. सं० पा० - ओहय जाव भियायह । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमं अभय (मल्ली) कुंभगस्स चिताहे कहण-पदं १७२. तए णं कुंभए मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं व्यासी- एवं खलु पुत्ता ! तव जे जियसत्तुपामोक्खेहिं छहि राईहिं दूया संपेसिया । ते णं मए असक्कारिय ● सम्माणिय प्रवद्दारेणं निच्छूढा । तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेसि दूयाणं प्रतिए एयमट्ठे सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिल रायहाणि निस्संचार निरुच्चारं सव्वग्रो समता प्ररुभित्ताणं चिट्ठति । तणं श्रहं पुत्ता तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि [य छिद्दाणि विवराणि य मम्माणि य ? ] अलभमाणे जाव' अज्झाणो गए क्रियामि ॥ मल्लीए उपाय निरूवण-पदं 0 १७३. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं रायं एवं वयासी - माणं तुभे ताो ! श्रमणसंकप्पा' करतलपल्हत्थमुहा श्रट्टज्भाणोवगया • भियायह । तुम्भे णं ताओ ! तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं हस्सिए दूसंपेसे करेह, एगमेगं एवं वयह-तत्र देमि मल्लि विदेहरायवरकन्नं ति कट्टु संझकालसमयसि पविरल- मणूसंसि निसंत- पडिनिसंतंसि पत्तेयं - पत्तेयं महिल रायहाणि श्रणुष्पवेसेह, अणुप्पवेसेत्ता गब्भवरएसु अणुष्पवेसेह, अणुप्पवेत्ता महिलाए रायहाणीए दुवाराई पिहे, पित्ता रोहासज्जा' चिट्ठह | १७४. तए णं कुंभए तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं - पत्तेयं रहस्सिए यसंपेसे करेइ जाव' रोहासज्जे चिट्ठा || 0 मल्लीए जियसत्तुपामोक्खाणं संबोह-पदं १७५. तए णं ते जियसत्तुपायोक्खा छप्पि रायाणो कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जालंतरेहिं गम मत्थयछिडुं परमुप्पल-पिहाणं पडिमं पासंति-- एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्नत्ति कट्टु मल्लीए रायवरकन्नाए रूवे य जोठवणे य लावण्णे य मुच्छिया गिद्धा गढिया भोवण्णा ग्रणिमिसाए दिट्ठोए पेहमाणा - पेहमाणा चिट्ठति ॥ १. सं० पा० - प्रसक्कारिया जाव निच्छूढा । २. सं० पा० - निस्संचारं जाव चिट्ठति । ३. ना० ११८/१६८ । ४. सं० पा० - ओहयमणसंकप्पा जाव किया यह । ५. रहस्तियं ( क, ख, ग, घ ) ! ६. संभा० (क, ग) । १६१ ७. ° सज्जे (क, ख, ग, घ ); अत्र कर्तृपदं क्रियापदं च बहुवचनान्तमस्ति अतः अनेन कर्तृ ' पदविशेषणेन बहुवचनान्तेन भाव्यम् । ८. सं० पा० - कुंभए एवं तं चैव जाव पवेसेइ रोहासज्जे । ६. ना० ११८११७३ | १०. ना० ११११२४ । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ नायाधम्मकहाओ १७६. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना व्हाया' 'कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल °. पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया वहूहिं खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता जेणेव जालघरए जेणेव कणगमई मत्थयछिड्डा पउमुष्पल-पिहाणा पडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तीसे कणगमईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल-पीहाणाए पडिमाए मत्थयात्रो तं पउमुप्पल-पिहाणं' अवणेइ । तो णं गंधे निद्धावेइ', से जहाणामए-हिमडे इ वा जाव एत्तो असुभतराए' चेव ।। १७७. तए ण ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सरहि-सहि उत्तरिज्जेहिं आसाइं पिहेंति, पिहेत्ता परम्मुहा चिटुंति ।। १७८. तए णं सा मल्लो विदेहरायवरकन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-किण्णं तुम्भे देवाणुपिया ! सरहिं-सएहिं उत्तरिज्जेहि आसाइं पिहेत्ता परम्मुहा चिट्रह ? १७६. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयंति -एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हे इमेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहि-सएहिं उत्तरिज्जेहि " *प्रासाइं पिहेत्ता' चिट्ठामो ॥ १८०. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-जइ ताव देवाणुप्पिया ! इमीसे कणग" मईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल-पिहाणाए° पडिमाए कल्लाकल्लि ताओ मणुण्णायो असण-पाण-खाइम-साइमानो एगमेगे पिंडे पविखप्पमाणे-पक्खिप्पमाणे इमेयारूवे असुभे पोग्गल परिणामे, इमस्स" पूण ओरालियसरीरस्स खेलासवस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कासवस्स सोणियपूयासवस्स दुरुय"-ऊसास-नीसासस्स 'दुरुय-मुत्त-पूइय-पुरीस-पुण्णस्स' १. सं० पा०-हाया जाव पायच्छित्ता १. पिहिति (क, ग)। २. ओ० सू०७०। १०. सं० पा०.--उत्तरिज्जेहिं जाब परम्मुहा। ३. पउम (क, ख, ग, घ)। ११. सं. पा० --उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो । ४. ततेणं (ख, घ)। १२. सं० पा०-कणग जाव पडिमाए। ५. णिद्धाइ (क); णिद्धवेइ (ख)। १३. पोग्गले (क, ख, घ)। ६. ना० १।८।४२। १४. अत: पूर्व वाचनान्तरे 'किमंग पुण' इति ७. प्रस्तुताध्ययनस्य ४२ सूत्रे 'एतो अणि?तराए लभ्यते । (३) ।। चैव अकंततराए चेव' इत्यादि पदानि १५. दुरूय (घ)। मुखसुखोच्चारणार्थं 'दुरूव' दृश्यन्ते । तत्र 'असुभतराए चेव' इति पदं शब्दस्य 'दुरुय' मितिरूपं कृतं संभाव्यते नास्ति । अत्र संभवत: 'अणिट्रतराए' अथवा दुरूपार्थवाची देशी शब्दः स्यात् ? इत्यादिपदानां सारसंग्रहरूपेण 'असुभतराए' वृत्ती 'दुरुय' शब्दस्य 'दुरूप' इत्यर्थोस्ति इति पदं प्रयुक्तमस्ति । कृतः । ८. आसाति (ख, ग, घ)। १६. दुरुथ-मुत्त-पुरिस-पूय-बहुपडिपुण्ण(१११११०६)। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १९३ 'सडण-पडण-छेयण-विद्धंसण-धम्मस्स" केरिसए य परिणामे भविस्सइ ? तं माणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! माणुस्सएसु कामभोगेसु सज्जह रज्जह गिज्झह मुज्झह अज्झोववज्जह । एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे इमाओ तच्चे भवग्गहणे अवरविदेहवासे सलिलावतिसि विजए वीयसोगाए रायहाणीए महब्बलपामोक्खा सत्तवि य बालवयंसया रायाणो होत्था --सहजाया जाव पव्वइया । तए णं अहं देवाणुप्पिया ! इमेणं कारणेणं इत्थीनामगोयं कम्मं निव्वत्तेमि --- जइ णं तब्भे चउत्थं उपसंपज्जित्ता ण विहरह, तए णं अहं छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरामि सेसं तहेव सव्वं । तए णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! कालमासे कालं किच्चा जयंते विमाणे उववण्णा । तत्थ णं तुभं देसूणाई वत्तीसं सागरोवमाइं ठिई । तए णं तुब्भे तानो देवलोगायो अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दोवे दीवे जाव' साइं-साइं रज्जाई उवसंपज्जिता णं विहरह। तए णं अहं ताओ देवलोगानो आउक्खएणं जाव दारियत्ताए पच्चायाया। गाहा किंथ तयं पम्हुटुं", जंथ तया भो ! जयंतपवरम्मि । वुत्था समय-णिवद्धा", देवा तं संभरह जाई ॥१॥ जियसत्तुपामोक्खाणं जाइसरण-पदं १८१. तए णं तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्मा सुभेणं परिणामेणं पसत्थेणं अज्झवसाणेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहि तयावर णिज्जाणं कम्माणं खोवसमेणं ईहापूहमग्गण-गवेसणं करेमाणाणं सण्णिपुव्वे ° जाइसरणे" समुप्पणे, एयमटुं सम्म अभिसमागच्छंति ॥ मल्लीए पव्वज्जा-पदं १८२. तए णं मल्ली अरहा" जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो समुप्पण्णजाईसरणे जाणित्ता गब्भधराणं दाराई विहाडेइ ॥ १. सडण जाव धम्मस्म (ग)। ३. सलिलाव तिम्मि (ख) ४. सत्तपि (क, ख, घ)। ५. ना० १०८।१०-१६ । ६. चोत्थं (ख, ग, घ)। ७. ना० ११८१८-२६ । ८. ना० शा२७ । ६. ना० ११८२८-३४ ।। १०. पम्हट्ठा (ख, ग)। ११. णिबद्ध (वृपा)। १२. सं० पा.--तयावर ईहापूह जाव सण्णि जाइसरणे। १३. जाई ° (घ)। १४. अभिसमण्णागच्छंति (ग)। १५. अरिहा (क)। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाम्म कहाओ १८३. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मल्ली अरहा तेव उवागच्छति ॥ १९४ १८४. तए णं महब्बलपामोक्खा सत्तवि य' बालवयंसा एगयो अभिसमण्णा गया विहोत्या || १८५. तए णं मल्ली रहा ते जियसत्तुपाभोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी -- एवं खग्रहं देवापिया ! संसारभउब्विग्गा जाव' पव्वयामि । तं तुब्भे णं कि करेह ? किं ववसह ? 'किं वा भे हियइच्छिए सामत्थे " ? १८६. तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणी मल्लि रहं एवं वयासी - जइ गं तुन्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउब्विग्गा जाव' पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के प्रणे प्रलंबणे वा आहारे वा पडिबंधे वा ? जह चेव णं देवाणुपिया ! तुम्भे म्हं इम्रो तच्चे भवग्गहणे बहूसु कज्जेसु य मेढी पमाणं जाव' धम्मधुरा होत्था, तह' चेव णं देवाणुप्पिया ! इण्हि पि जाव' धम्मधुरा भविस्सह । अम्हे विणं देवाप्पिया ! संसारभउव्विग्गा' भीया जम्मणमरणाणं देवाणुपिया - सद्धि मुंडा भवित्ता" णं अगाराम्रो अणगारियं पव्वयामो | १८७. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी जइ णं तुम्भे संसारभउब्विगा जाव मए सद्धि पव्वयह, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सएहि सएहि रज्जेहि जेट्ठपुत्ते" ठावेह, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणी सीया" दुरुहह", मम अंतियं पाउन्भव ॥ १८८. तए णं ते जियसत्तुपाभोक्खा छप्पि रायाणो मल्लिस्स मरहम एयमट्ठ पति || १८६. तए णं मल्ली रहा ते जियसत्तुपाभोक्खा छप्पि रायाणो गहाय जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएस पाडेइ || १९०. तए णं कुंभ ते जियसत्तुपामोक्खे विउलेणं असण- पाणखाइम - साइमेणं पुष्क १. पिय ( ख ) 1 २. ना० ११५१८६ ३. के भे हियसामत्ये (क, ख, ग ); ११५८६ सूत्रात् किंचित् पाठः स्वीकृतः । ४. ना० ११५६ । ५. पू० - ना० ११५१० । ६. ना० ११५। ६० । ७. तहा ( ख, ग, घ ) । ८. ना० ११५२६० ह. भउब्विगा जाव (क, ख, ग, घ ) 1 अशुद्धं प्रतिभाति । १०. देवाणुप्पियाणं ( क्व ° ) 1 ११. सं० पा० - भवित्ता जाव पब्वयामो । १२. ना० १२५/६६ १३. ० पुत्ते रज्जे ( ख, ग, घ ) 1 १४. सीविया ( क ) | १५. दुरूढा समाणा ( क ) : अस्याध्ययनस्य १४ सूत्रेपि 'दुरूढा समाणा' इति पाठोस्ति । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १९५ वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ', सक्कारेता सम्माणेत्ता पडि विसज्जेइ॥ १९१. तए ण ते जियसत्तपामोक्खा छप्पि रायाणो भएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साइं-साइं रज्जाइं जेणेव [साइं-साइं?] नगराइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता 'सगाई-सगाई रज्जाई उवसंपज्जित्ता ण विहरति ।। १६२. तए णं मल्ली अरहा संवच्छरावसाणे निक्खमिस्सामि त्ति मणं पहारेइ' । १६३. तेणं कालेगं तेणं समरणं सक्कस्स आसणं चलइ।। १६४. तए णं से सक्के देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता प्रोहि पउंजइ, पउंजित्ता मल्लि अरहं प्रोहिणा आभोएइ। इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए नयरीए कुंभगस्स रण्णो [धूया पभावईए देवीए अत्तया ?] मल्ली अरहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ । तं जीयमेयं तीय-पच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं अरहताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं इमेयारूवं अत्थ संपयाणं दल इत्तए, [तं जहा--- संगहणी-गाहा -- तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीइं च हुंति कोडीयो। प्रसिदं च सयसहस्सा', इंदा दलयंति अरहाणं ।।१।। एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता वेसमणं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-एवं खलु देवाणप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे 'मिहिलाए रायहाणीए कुंभगस्स रणो धूया पभावईए देवीए अत्तया मल्ली अरहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ जाव इंदा दलयंति अरहाणं । तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं मिहिलं रायहाणि कुंभगस्स रण्णो भवणंसि इमेयारूवं अत्थसपयाण साहराहि, साहारत्ता खिप्पामेव मम एयमाणत्तिय पच्चप्पिणादि। तए णं से बेसमणे देवे सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं बुत्ते समाणे हट्टतट्टे करयल" परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जंभए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं भारह वासं मिहिलं १. सम्माणेई जाव (क, ख, ग)। २. सयाई २ (ख)। ३. संपहारेइ (क); संपाहारेति (ख); पाहारेइ ५. सयसहस्सं (ग, घ)। ६. सं.पा०-वासे जाव असीइं च सयसहस्सा दल इत्तए। अत्र संक्षेपीकरणे किञ्चित् विपर्ययो जात: इति संभाव्यते । ७. सं० पा०-करयल जाव पडिसुणेइ । ४. ४(ख)। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E नायाधम्मक हाओ रायहाणि कुंभगस्स रण्णो भवणंसि तिणि कोडिसया अट्ठासीइं च कोडीओ सीई सयसहस्साई – इमेयारूवं प्रत्थ-संप्रयाणं साहरह, साहरिता मम एयमाणत्तियं पच्चपिह || १६६. तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वृत्ता समाणा जाव' पडिसुणेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं प्रवक्कमति श्रवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरंति, जाव उत्तरवेउवियाई रुवाई विउव्वंति, विउब्वित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव' देवगईए वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव जंबुद्दी वे दीवे भारहे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभगस्स रण्णो भवणंसि तिणि कोडिसया जाव साहरंति, साहरिता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु तमाणत्तियं • पच्चपिणंति || १६७. तए गं से बेसमणे देवे जेणेव सक्के देविदे देवराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव तमाणत्तियं पच्चपिणइ || १६८. तए णं मल्ली रहा कल्ला कल्लि जाव मागओ पायरासोत्ति बहूणं सगाहाण अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य करोडियाण' य कप्पडियाण य एगमेगं हिरण्णकोडि अट्ठय अणूणाई सय सहस्साइं - इमेयारूवं प्रत्थ- संपयाणं " दलयइ ॥ १६६. तए णं कुंभए राया मिहिलाए रायहाणीए तत्थ तत्थ तहि तर्हि देसे -देसे बहुश्रो महाणससालाओ करेइ । तत्थ गं बहवे ! मणुया दिण्णभइ भत्त-वेयणा विउलं श्रसण पाण- खाइम साइमं उवक्खडेंति । जे जहा श्रागच्छंति, तं जहा - पंथिया वा पहिया वा करोडिया वा कप्पाडिया वा पासंडत्था वा गित्या वा, तस्स य तहा प्रासत्थस्स वीसत्यस्स सुहासणवरगयस्स तं विउलं असण-पाण- खाइम साइमं परिभाएमाणा परिवेसेमाणा' विहरति ॥ २०० तरणं महिलाए नवरीए सिंघाडग" "तिग- चउक्क- चच्चर- चउम्मुह- महापहपहेसु बहुजणो ग्रण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ - एवं खलु देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स रणो भवसि सव्वकामगुणियं किमिच्छ्यिं विपुलं असण- पाण -खाइम साइमं १. ना० श०/१६५ । २, ३. राय० सू० १० । ४. ना० ११५।१६५ । ५. सं० पा० करयल जाव पच्चप्पियंति । ६. ना० ११८/१६६ । ७. काउडिया (वृपा) ८. एगमेगं हत्थामासं ति वाचनान्तरे दृश्यते ( वृ ) । ६. परिवेसमाणा ( क, ख ) 1 १०. सं० पा० - सिंघाडग जाव बहुजणो । Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्ली) १९७ वहूणं समणाण य' 'माणाण य सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य करोडियाण य कप्पडियाण य परिभाइज्जइ° परिवेसिज्जइ। संगणी-गाहा वरवरिया घोसिज्जइ, किमिच्छियं दिज्जए बहुविहीयं । सुर-असुर देव-दाणव-नरिद-महियाण निक्खमणे ॥१॥ २०१. तए णं मल्ली अरहा संवच्छ रेणं तिणि कोडिसया अट्ठासीइं च' कोडीओ असीई सयसहस्साई-इमेयारूवं अत्थ-संपयाणं दलइत्ता निक्खमामि त्ति मणं पहारेइ ॥ २०२. तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोए कप्पे रिटे विमाणपत्थडे सएहि-सएहि विमाणेहि सएहि-सएहिं पासायडिसएहि पत्तेयं-पत्तयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं तिहि परिसाहि सतहिं अणिएहि सत्तहि अणियाहिवईहि सोलसहि प्राय रक्खदेवसाहसोहि अण्णेहि य बहूहिं लोगतिएहि देवेहि सद्धि संपरिडा महयाताय-नट्ट-गोय-वाइय- तंती-तल-ताल-तुडिय-धण-मुइंग पडुप्पवाइय° रवेणं [विउलाइ भोगभोगाइं ? ] भुजमाणा विहरंति, तं जहासंगहणी-गाहा सारस्सयमाइच्चा, वही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चैव रिट्ठा य॥१॥ २०३. तए णं तेसि लोगंतियाणं देवाणं पत्तेयं-पत्तेयं प्रासणाई चलं ति तहेव जावतं जीयमेयं लोगंतियाण देवाणं अरहताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं संबोहण करित्तए त्ति । तं गच्छामो णं अम्हे वि मल्लिस्स अरहको संबोहणं करेमो त्ति कटु एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसोभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियस मुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंड निसिरंति, एवं जहा जंभगा जाव" जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्ख १. सं० पा०-समणाण य जाव परिवेसिज्जइ। २. सूरासुरिय परिवेसिज्जइ-इति वाचनान्तरम् ६. विमाणे पत्थडे (ख, ग, घ)। ७. सं० पा०--वाइय जाव रवेणं । ८. क्वचिद् दशविधा एते व्याख्यायन्ते, अस्मा भिस्तु स्थानाङ्गानुसारेणवमभिहिताः (वृ)। ६. ना० १६८।१६४1 १०. ना० ११८१६६ । ३. च होति (क, ख, ग, घ) । ४. च सयसहस्सा (क, ख, ग, घ)। ५. पधारेति (ख, घ)। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ पडिवण्णा सखिखिणियाई दसवण्णाइं° वत्थाई पवर परिहिया करयल'•परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु ° ताहि इट्ठाहि' कंताहिं पियाहि मणुण्णाहि मणामाहि वहि एवं वयासी-बुज्झाहि भगवं लोगणाहा! पवत्तेहि धम्मतित्थं जीवाणं हियसुहनिस्सेयसकर भविस्सइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि एवं वयंति, मल्लि अरहं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।। २०४. तए णं मल्ली अरहा तेहि लोगंतिएहि देवेहि संबोहिए समाणे जेणेव अम्मा पियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ठ एवं वयासी–इच्छामि णं अम्मयाओ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे मुंडे भवित्ता •णं अगाराओ अणगारियं पव्व इत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।। २०५. तए णं कुंभए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अट्ठसहस्सेणं सोवणियाणं कल साणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं अण्णां च महत्थं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभि सेयं उवट्ठवेह । तेवि जाव उवट्ठति ॥ २०६. तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिदे जाव अच्चुयपज्जवसाणा आगया ।। २०७. तए णं सक्के देविदे देवराया आभियोगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अट्ठसहस्सेणं सोवग्णियाणं कल साणं जाव" अण्णं च " •महत्थं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह । तेवि जाव उवट्ठति । तेवि कलसा 'तेसु चेव कलसेसु अणुपविट्ठा । २०८. तए णं से सक्के देविदे देवराया कुभए य राया मल्लि अरहं सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहं निवेसेंति", अट्ठसहस्सेणं सोवणियाणं कलसाणं जाव" तित्थयरा भिसेयं अभिसिंचंति ।। २०६. तए णं मल्लिस्स भगवनो अभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया देवा मिहिलं च १. सं० पा०-सखिखिणियाई जाव वत्थाई। ७. राय० सू० २८०। अत्र वस्तुत: 'जाव परिहिए' इति संक्षेपो ८. सं० पा०-महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं । युज्यते । पूर्वसूत्रेष्वपि इत्थमेव लब्धत्वात् ।। ६. जंबु° वक्खारो ५ । २. विभक्तिरहितं पदम् । १०. ना० ११८।२०५। ३. सं० पा०-करयल ° । ११. सं० पा.- अण्णं च तं विउलं। ४. सं० पा.-इटाहि जाव एवं । १२. ते चेव कलसे (ख, ग)। ५. सं० पा०-करयल । १३. निबेसेइ (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइत्तए । १४. ना० ११८२०५। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अभय (मल्ली) सभितरवाहिरियं जाव' सव्वश्र समंता 'आधावंति परिधावति || २१०. तए णं कुंभए राया दोच्चंपि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावेइ, जाव' सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाप्पिया ! मणोरमं सीयं उवट्ठवेह | तेवि उद्ववेति ॥ २११. एणं सक्के देविदे देवराया अभियोगिए देवे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं व्यासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसय-सणिविदु जाव मणोरमं सीयं वेह | वि जाव उवटुवेंति । सावि सीया तं चैव सीयं प्रणुप्पविद्वा ॥ २१२. तए णं मल्ली अरहा सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्टेत्ता जेणेव मणोरमा सीया तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता मणोरमं सीयं श्रणुपयाहिणीकरेमाणे मणोरमं सी दुइ, दुरुहिता सोहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सणसणे || २१३. तए णं कुंभए अट्ठारस सेणिप्पसेणीग्रो सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! व्हाया जाव' सव्वालंकारविभूसिया मल्लिस्स सीयं परिवहह । तेवि जाव परिवहति ॥ २१४. तए णं सक्के देविदे देवराया मणोरमाए सीयाए दक्खिणिल्लं' उवरिल्लं बाह ues, ईसाणे उत्तरिल्लं उवरिल्लं वाहं गेम्हइ, चमरे दाहिणिल्लं हेट्ठिल्लं, बली उत्तरिल्लं हेट्ठिल्लं, अवसेसा देवा जहारिहं मणोरमं सीयं परिवहति । संग्रहणी-गाहा - पुब्वि उविखत्ता, माणुसेहिं साहद्वरोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं, प्रसुरिंदसुरिदनागिंदा ॥१॥ सच्छंदविउब्वियाभरणधारी । चलचवलकुंडलधरा, विददाविदा, वहंति सीयं जिणिदस्स ||२|| २१५. तए णं मल्लिस्स अरहो मणोरमं सीयं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्टमंगला हाणुपुवीए संपत्थिया - एवं निग्गमो जहा जमालिस्स" ।। मल्लिस्स मरहम्रो निक्खममाणस्स अप्पेगइया देवा मिहिलं रायहाणि पुर २१६. तए णं १. राय० सू० २५१; जंबु° वक्खारो ५ । २. संपरिधावति (क, ख, ग, घ ) 1 ३. ना० १।१।१२८ । ४. ना० १।१।१२६ ५. X ( क ) ; ° करेमाणा ( ग ) । ६. ना० १८११७६ । ७. दक्खिणिल्लेणं ( ग ) | ८. रोमपुलएहि (आयारचूला १५ २८ गा० १२) । ६. दुरुहस्स (ख, घ) १०. भगवत्यां ( ६।३३ ) यथा जमाले निष्क्रमणं तथेह वाच्यं, इहैव यथा मेघकुमारस्य, नवरं चमरधारितरुण्यादिषु शक्रेशानादीन्द्र प्रवेशतः इह विशेष : ( वृ) । ओ० सू० ६४-६६ । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाम्रो अभितरवाहिरं पासिय-संमज्जिय-संमट्ठ-सुइ-रत्यंत रावणवीहियं करेंति 'जाव परिधावति॥ २१७. तए णं मल्ली अरहा जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयारो पच्चोरुहइ, 'आभरणालंकारं अोमुयइ ।। २१८. तए णं पभावई हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणालंकारं पडिच्छइ ।। २१९. तए णं मल्ली अरहा सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करइ ।। २२०. तए णं सक्के देविदे देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता खीरोदग समुद्दे साहरइ ॥ २२१. तए णं मल्ली अरहा नमोत्थु णं सिद्धाणं ति कटु सामाइयचरित्तं पडिवज्जइ। जं समयं च ण मल्ली अरहा सामाइयचरितं पडिवज्जइ, तं समयं च णं देवाण माणुसाण य निग्घोसे तुडिय-णिणाए' गीय-वाइय-निग्घोसे य सक्कवयणसंदेसेणं निलूक्के यावि होत्था। जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयचारित्त' पडिवण्णे तं समयं च मल्लिस्स अरहो माणुसधम्माप्रो उत्तरिए मणपज्जवणाणे समुप्पण्णे ॥ २२२. मल्ली गं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे पोससुद्धे तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपखेणं पुवण्हकालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं अस्सिणीहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहि इत्थीसहि---अभितरियाए परि साए, तिहिं पुरिससएहि-बाहिरियाए परिसाए सद्धि मुंडे भवित्ता पव्वइए । २२३. मल्लि अरहं इमे अट्ठ नायकुमारा अणुपव्व इंसु, तं जहा-- १. आसिय अभितरवासविहि, गाहा जाव वृत्तिकृता निर्दिष्टो नगरवर्णको मघकुमार परिधावति (क, ख, ग, घ); 'अप्पेगइया निष्क्रमणप्रकरण नास्ति, किन्तु जन्मोत्सव. देवा मचाइमंचकलियं करतीत्यादिमघकूमार- प्रकरणे लभ्यते । द्रव्यं १११७६ सूत्रम् । निष्क्रमणोक्तनगरवर्णकस्य' तथा 'अप्पेग इया वृत्तिकृता पाठान्तररूपेण निर्दिष्टा गाथा देवा हिरण्णवासं वासिसु एवं सुवन्नवास आदर्शषु प्रकटरूपेण न लभ्यन्ते वृत्तावपि वासिसु एवं रयण-वइर-पुप्फ-मल्ल-गंध-चुण्ण- लिखिता न सन्ति । ना० १८२०६। आभरणवासं वासिंसु' इत्यादि वर्षासमूहस्य २. प्राभरणालंकारं पभावई पडिच्छइ (क, ख, तथा 'अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाइंस एवं ग, घ) असौ पाठः संक्षिप्तलिपिपद्धत्या सुवण्णविहि भाइंसु' इत्यादिविधिसमूहस्य कालक्रमेण अपूर्णो जातः । असौ घे तीर्थकरजन्माभिषेकोक्त-संग्रहार्था याः क्वचिद् १।१५१४८ सूत्रमनुसत्य पूरितः। गाथाः सन्ति ता अनुसृत्य सूत्रमध्येयं यावदप्पे- ३. णाए (म)। गइया देवा आधावति परिधावंतीत्येतदवसान- ४. वाइयपणिय (ग, घ)। मित्यर्थः । इदं च राजप्रश्न कृतादौ ५. सामाइयं (क)। (सू० २८१) द्रष्टव्यमिति (वृ)। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ age अभय (मल्ली) गाहा— नंदे व नंदिमित्ते, सुमित्त बलमित्त भाणुमित्ते य । अमरवइ श्रमरसेणे, महसेणे चेव अट्टमए || २२४. तए णं ते भवणवइ-वाणमंतर जोइसिय-वेमाणिया देवा मल्लिस रहस्रो निक्खमण-महिम करेंति, करेत्ता जेणेव नंदीसरे' 'दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता श्रद्वाहियं महिम करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया | मल्लिस केवलणाण-पदं २२५. तए णं मल्ली ग्ररहा जं चैव दिवसं पव्वइए, तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि श्रसोगवरपायवस्स हे पुढविसिलापट्ट्यंसि सुहासणवरगयस्स सुहेणं परिणामेणं पसत्थाहिं साहि तयावरण- कम्मरय - विकरणकरं प्रपुव्यकरणं अणुपविट्ठस ते प्रणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे || २२६. ते कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं ग्रासणाई चलति, समोसढा धम्मं सुर्णेति, सुणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहिय महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । कुंभए वि निग्गच्छइ । Q २०१ जिस पामोक्खाणं पव्वज्जा-पदं २२७. तए गं ते जियसत्तुपाभोक्खा छप्पि रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीया [सीयाओ ?] दुरूढा [ समाणा ? ] सव्विड्डीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छति जाव" पज्जुवासंति || २२८. तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रण्णो, तेसि च जियसत्तुपायोक्खाणं छह राईण धम्मं परिकहेइ । परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । कुंभए समणोवासए जाव पडिगए, प्रभावई य ॥ २२६. तए णं जियसत्तुपाभोक्खा छप्पि रायाणो धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वयासीआत्तिए णं भंते! लोए, पलित्तए णं भंते ! लोए, प्रालित्त पलित्तए णं भंते ! १. सं० पा० - नंदीसरे अट्ठाहियं करोति जाव पडिगया । २. पुव्वावरण्ह° (क, ग, घ ) । ३. सं० पा० - प्रणते जाव समुपष्णे । ४. सं० पा० - अद्वाहियं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए । ५. ओ० सू० ६९ । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाओ लोए जराए मरणेण य जाव' पन्वइया जाव' चोदसपुग्विणो । अणंते वरनाण दंसणे केवले [ समुप्पाडेता तो पच्छा ? ] सिद्धा ।। मल्लिस्स सिस्ससंपदा-पदं २३०. तए णं मल्लो अरहा सहस्संववणानो उज्जाणाो निक्खमइ, निक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। २३१. मल्लिस्स णं अरहनो भिसगपामोक्खा अट्ठावोसं गणा अट्ठावोसं गणहरा होत्था ।। २३२. मल्लिस्स णं अरहनो चत्तालीसं समणसाहस्सीमो उक्कोसिया समणसंपया होत्था, बंधुमइपामोक्खाओ पणपन्न अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था, सावयाणं एगा सयसाहस्सी चुलसीइं सहस्सा, सावियाण तिण्णि सयसाहस्सीओ पट्ठि च सहस्सा, छस्सया चोद्दसपुवीणं, वीसं सया प्रोहिनाणीगं, बत्तीसं सया केवलनाणोणं, पणतीसं सया वेउव्वियाणं, अट्ठसया मणपज्जवनाणीणं, चोइससया वाईणं, वीसं सया अणुत्तरोववाइयाणं ।। २३३. मल्लिस्स णं अरहनो दुविहा अंतकरभूमी' होत्था, तं जहा-जुगंतकरभूमी परियायतकरभूमी य । जाव वीस इमामो पुरिसजुगायो जुगंतकरभूमी दुवासपरियाए' अंतमकासी । मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूइं उड्ढ उच्चत्तेणं, वण्णेणं पियंगुसामे समचउरससंठाणे वज्जरिसहनाराय-संघयणे मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए' पन्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सम्मेयसेलसिहरे पानोवगमणंणुवन्ने ॥ मल्लिस्स निवाण-पदं २३५. मल्ली णं अरहा एगं वाससयं अगारवासमझे पणपण्णं वाससहस्साई वाससय ऊणाई केवलिपरियागं पाउणित्ता पणपण्णं वाससहस्साईसवाउयं पाल इत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चेत्तसद्धे, तस्स णं चेत्तसद्धस्स चउत्थी। पक्खेण भरणीए नक्खत्तेणं (जोगमवागएणं ? अद्धरत्तकालसमयंसि पंचहि अज्जियासएहि-अभितरियाए परिसाए, पंचहि अणगारसएहिं-बाहिरियाए दुवालस° (क) प्रशुद्ध प्रतिभाति ! ६. सम्मेते (ग, घ)। ७. पाओवगमणुववण्णे (ख); पाओवगमणुवण्णे १. ना० १।१।१४६,१५० ! २. भग० २।१। ३. वातीणं (ग)। ४. अंतगड (घ)! ५. 'दूमासपरियाए' इति क्वचित् क्वचिच्च 'चउमासपरियाए' इति दृश्यते (); ८. ४(ख, ग)। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम अभय (मल्लो) २०३ परिसाए, मासिएणं भत्तेणं ग्रपाणएणं वग्घारियपाणी 'पाए साहट्टू" खीणे वेयणिज्जे ग्राउए नामगोए सिद्धे । एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियव्वा जहा पणती, नंदीसरे अट्ठाहियाओ पडिगयाश्रो || निक्खेव पदं २३६. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं श्रट्टमस्स नायज्भयणस्स मट्ठे पण्णत्ते । - त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा- उग्गतव संजमवप्रो, पगिट्ठफलसाहगस्स विजयिस्स । धम्मविए वि सुहमा वि, होइ माया प्रणत्थाय ॥१॥ जह मल्लिस्स महाबल - भवम्मि तित्थयरनामबंधे वि । तव - विसय-येवमाया जाया जुवइत्त- हेउत्ति ||२|| १. X ( ख, ग, घ ) 1 ! २. १६० २। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं मायंदी उक्खेव-पदं जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स । अयमढे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पप्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी'। पुण्णभद्दे चेइए ।। ३, तत्थ णं मायंदी नाम सत्थवाहे परिवसइ-अड्ढे । तस्स णं भद्दा नाम भारिया। तीसे णं भद्दाए अत्तया दुवे सत्थवाहदारया होत्था, तं जहा - जिणपालिए य जिणरक्खिए य ।। मागंदिय-दारगाणं समुद्द-जत्ता-पदं ४. तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं अण्णया कयाइ एगयो सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अम्हे लवणसमुदं पोयवहणेणं एक्कारसवाराम्रो प्रोगाढा । सम्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा' पुणरवि नियघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुपिया ! दुवालसपि लवणसमुदं पोयवहणेणं प्रोगाहित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता १. ना० ११७। ५. पू०-ना० १२१७ । २. नायज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं (क, ६. पू०---ना० ११३७ । ख, ग, घ)। ७. ° वारा (ख, ग, घ)। ३. नयरी पुब्बत्तवन्नणं (ख); नयरी पुवुत्त ८. अणहसमुग्गा (ख); अणट्ठ ° (ग) । ६. दुवालसमपि (क)। ४. एत्थ (ख)! Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं श्रयणं (मादी) एवं क्यासी एवं खलु अम्हे अम्मयाओ ! लवणसमुद्दे पोयवहणं एक्कारसवाराओ' 'ग्रोगाढा । सव्वत्य वि य णं लट्ठा कयकज्जा अगहसमग्गा पुणरवि० नियधरं हव्वमागया । तं इच्छामो णं अम्मयायो ! तुम्भेहि अणुष्णाया समाणा दुवालसंपि' लवणसमुद्दे पोयवहणं श्रोगाहित्तए | तए णं ते मागंदिय-दारए सम्मापियरो एवं वयासी - इमे भे जाया ! ग्रज्जय'• पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूमे य मणिमोत्तिय संख सिल प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य श्रलाहि जाव श्रसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउ पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं होह ताव जाया ! विपुले माणुस्सए इड्डीसक्कारसमुदए । किं भे सपच्चावाणं निरालंबणेणं लवणसमुद्दोत्तारेणं ? एवं खलु पुत्ता ! दुवालसभी जत्ता सोबग्गा यावि भवइ । तं मा णं तुब्भे दुवे पुत्ता ! दुवालसंपि' लवण समुद्द पोहणेण श्रगाह । मा हु तुब्भं सरीरस्स वावत्ती भविस्सइ || ६. - तए णं ते मागंदिय-दारगा अम्मापियरो दोच्चपि तच्चपि एवं वयासी एवं खलु अम्हे अम्मयाश्रो ! एक्कारसवाराम्रो लवण समुद्दे पोयवहणेणं प्रगाढा । सव्वत्य वियणं लट्ठा कयकज्जा श्रणहसमग्गा पुणरवि नियधरं हव्व मागया । तं सेयं खलु अम्हं अम्मयाश्रो ! दुवालसंपि लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए || तणं ते मार्गदिय-दारए सम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं प्राघवणाहि य पण्णवाहिय आधवित्तए वा पण्णवित्तए वा ताहे अकामा चेव एयम अणुमणित्था || तए णं ते मार्गदिय दारगा सम्मापिऊहिं अब्भणुष्णाया समाणा गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिज्छेज्जं च भंडगं गेण्हंति, जहा रहन्नगस्स जाव' लवण समुद्द बहूई जोयणसयाई प्रगाढा || ५. ७. ८. १. सं० पा० वाराओ तं चैव जाव नियधरं । २. दुवाल ( क, ख, ग, घ ) । ३. सं० पा० - अज्जग जाव परिभाएत्तए । नावा-भंग-पदं ६. तए णं तेसि भागंदिय दारगाणं लवणसमुद्दं श्रगाई जोयणसयाई प्रगाढाणं समाणाणं श्रणेगाई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई, तं जहा - प्रकाले ' गज्जिए' ●काले विज्जुए अकाले थणियसद्दे कालियवाए जाव" समुट्टिए || 0 ४. दुवालसमंधि (क, ख ) 1 ५. सं० पा० - लवण जाव ओगाहेह । २०५ ६. सं० पा० -- लवण जाव ओगाहितए । ७. ना० १३८।६६-७० । ८. अगाले ( क ); अयाले ( ख ) । ६. सं० पा० – गज्जियं जाव यणियस । १०. तत्थ (क्व ) । ० Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ महाओ १०. तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं प्राहुणिज्जमाणी आहुणिज्जमाणी संचालिज्माणी - संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी- संखोभिज्जमाणी सलिल - तिक्ख-वेगेहिं अइट्टिज्जमाणी' - श्रइमट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि' करतलाहते विव तिसए' तत्थेव तत्थेव प्रोवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणी विव धरणीला सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, श्रवयमाणी विव गगणतलाओ भट्ठविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुल-वेग - वित्तासिय भुयगवरकन्नगा, धावमाणी विव महाजण - रसियस - वित्तत्था ठाणभट्टा सकिसोरी, निगुंजमाणी विव गुरुजण दिट्ठावराहा सुजण कुलकन्नगा, घुम्ममाणी विव वीचि - पहार-सय-तालिया, गलिय-लंबणा विव गगणतलाओं, रोयमाणी विव सलिलगंथि' -विप्पइर-माण थोरंसुवाहिं नववहू उवरयभत्तुया, विलवमाणी विव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिदुया महापुरवरी, झायमाणी विव कas - च्छोमण-पश्रोगजुत्ता जोगपरिव्वाइया, नीससमाणी विव महाकतारविणिग्गय-परिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणी विव तव चरण- खीणपरिभोगा चवणकाले देववरवहू, संचुण्णियकट्ठ-कूवरा, भग्गमेढि मोडियसहस्समाला, सुलाइय' - वकपरिमासा', फलहंतर तडतडेंत फुट्टंत-संधिवियलंतलोहकीलिया”, सव्वंग-वियंभिया, परिसडियरज्जुविसरतसव्वगत्ता, आमगमल्लभूया, कयपुण्ण-जणमणोरहो विव चितिज्जमाणगुरुई" हाहाक्कय"- कण्णधारनाविय-वाणियगजण-कम्मकर" - विलविया नाणाविह रयण- पणिय संपूण्णा बहूहि पुरिससहि रोयमाणेहिं कंदमाणेहिं सोयमाणेहिं तिप्पमाणेहि विलवमाणेहि एवं महं अंतोजलगयं गिरिसिहरमासाइत्ता संभग्गकूवतोरणा मोडियज्यदंडा वलयसयखंडिया करकरस्स तत्थेव विद्दवं उवगया || ११. तए णं तीए नावाए भिज्जमाणीए ते बहवे पुरिसा विपुल पणिय-भंडमायाए अंतोजलंमि निमज्जाविया " यावि होत्था || १२. तए णं ते मागंदिय-दारगा छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला मेहावी" निउणसिप्पो ८. सूलातित (वृपा) | ε. पारिमासा ( क, ख ) । ३. तेदूसए ( क ) | १०. खोलिया (क, ख, ग ) । ४. वीथी (क); वीती ( ख, ग ) । ११. ० गुरुती ( ख, ग, घ ) । ५. ताडिता हि स्त्री वेदनया घूर्णयन्तीत्येव - १२. हाहाकय ( क ) 1 १३. कम्मगार (क); कम्मकार ( ग, घ ) १. अइयट्टि ० ( क, ख ); अइवट्टि (क्व ) | २. कोट्टिम ( क, ख, घ) 1 ७. मंठि (घ) 1 ० ० मुपमानं द्रष्टव्यम् (वृ) 1 ६. पतितेति गम्यते ( वृ); क्वचित्तु 'गलितलं- १४. निवज्जाविया ( ख ) 1 बना' इत्येतावदेव दृश्यते । १५. मेहाविणो ( क ) । O Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभयण (मायंदी ) २०७ गया बहू' पोयवहण - संपराएसु कयकरणा लद्धविजया प्रमूढा अमूढहत्था एगं महं फलगखंड आसादेति ॥ रणदीव-पदं १३. जंसि च णं पएसंसि से पोयवहणे विवण्णे तंसि च णं पएसंसि एगे महं रणदीवे नामं दीवे होत्था -- प्रणेगाई जोयणाई श्रायामविक्खभेणं प्रगाई जोयणाई परिक्खेवेणं नाणादुमसंड- मंडिउसे सस्सिरीए पासाईए दरिसणिज्जे अभि पडिवे । तस्स' बहुमज्झसभाए, एत्थ ' णं महं एगे पासायवडेंसए 'यावि होत्था".. भुयमूसिय-पहसिए जाव' सस्सिरीयरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरू पडरूवे | तत्थ णं पासायवडेंसए रयणदीव-देवया नामं देवया परिवसइ - पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया' । तस्स णं पासायवडेंसयस्स चउद्दिसि चत्तारि वणसंडा - किण्हा किण्हो भासा || १४. तए णं ते माकंदिय-दारगा तेणं फलयखंडेणं 'ओवुज्झमाणा - प्रोवुज्झमाणा रणदीवतेणं संवूढा यावि होत्था || ११ १५. तए णं ते मार्गदिय" - दारंगा थाहं लभति, " मुहुत्तंतरं श्राससंति, फलगखंड विसज्जेंति, रयणदीवं उत्तरंति, फलाणं मग्गण-गवेसणं करेंति, फलाई ग्राहारेति, नालिएराणं मम्गण - गवेसणं करेंति, नालिएराइं" फोडेंति, नालिएर तेल्लेणं' अण्णमण्णस्स गायाइं अभंगति, पोक्खरणीओ ग्रोगाहेति, जलमज्जणं करेंति, " पोक्खरणीग्रो पच्चुत्तरंति, पुढविसिलावट्टयंसि निसीयंति, निसीइत्ता सत्था वीसत्था सुहासणवरगया चंपं नयरि अम्मापि प्रपुच्छणं च लवणसमुद्दोत्तारणं च कालियवायसम्मुच्छणं च पोयवहणविवति च फलयखंडस्सा ite १. बहुसु ( ग, घ ) । २. जैसि (क, ग, घ ) । ३. तेसि ( ख, ग, घ ) । ४. तस्स णं ( क, ख, घ ) । ५. तत्थ (क, ख ) । ६. होत्था ( क ) ; X (ख)। ७. ना० १।१।८६ 1 ८. रद्दीव ( ख ) 1 ६. साहसिया ( क्व ० ) । o १०. पू० - ना० ११७/१३ । ११. श्र° २ (ख) 1 १२. माकंदिय (क्व ) 1 १३. लहंति ( ख, ग ) । १४. नालियराय ( ख ) 1 १५. तिल्लेणं (क); वालियरस ( ग, घ ) १६. सं० पा० - करेंति जाव पच्चुत्तरति । नालियर (ख), Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० नायाधम्मकहानो सायणं च रयणदीवोत्तारं' च अणुचितेमाणा-अणुचितेमाणा प्रोयमणसंकप्पा' 'करतलपल्ह्त्यमुहा अट्टज्माणोवगया• झियायंति ।। रयणदीवदेवया-पदं १६. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मार्गदिय-दारए ओहिणा प्राभोएइ, असि-खेडग' वग-हत्था सत्तटुतलप्पमाणं उड्ढे वेहासं उपयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए जाब' देवगईए वोईवयमाणी-वीईवयमाणो जेणेव मागंदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रासुरत्ता' ते मागंदिय-दारए खर-फरुस- निठुरवयहिं एवं वयासी-हंभो मागंदिय-दारया ! जइ णं तब्भे मए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणा विहरह, तो भे अस्थि जीवियं । अहण्णं तुन्भे मए सद्धि विउलाई भोग भोगाइं भुजमाणा नो विहरह, तो भे इमेणं नीलुप्पलगवलगुलिय- अयसि कुसुमप्पगासेणं० खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाई माउपाहि उवसोहियाई तालफलाणि" व सीसाई एगते एडेमि ॥ १७. तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म भीया करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासीजण्णं देवाणुप्पिया वइस्संति" तस्स आणा-उववाय-बयण- निसे चिट्ठिस्सामो ।। १८. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए गेण्हइ, जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, असुभपोग्गलावहारं करेइ, सुभपोग्गलपक्खेवं करेइ, तनो पच्छा तेहिं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुजमाणी विहरइ, कल्लाकल्लिं च अमयफलाइं उवणेइ ।। रयणदीवदेवयाए मागंदिय-पुत्ताणं निद्देस-पदं १६. तए णं सा रयणदीवदेवया सक्कवयण-संदेसेणं सुटिएणं लवणाहिवइणा लवण___ समुद्दे तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टेयब्बे त्ति जं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कटू वा १. रवणुद्दीवुत्तारं (क, ख)। ७. ता (ग)। २. सं० पा०-प्रोहय नणसंकप्पा जाव झिया- ८. ता (ग)। यति । ६. सं. पा.-गवलगुलिय जाव खुरधारेणं । ३. फलग (ख, ग, घ); वृत्तो 'खेडग' शब्द- १०. तालियफलाणि (क)। स्यार्थ : फलकोस्ति । उत्तरवादशेषु फलक' ११. छित्त्वेति बाक्यशेष: (१)। पदस्यैव मूलसाठे स्वीकृतिर्जाता । १२. सं० पा०करयल जाव एवं । ४. राय० सू० १० । १३. वतिस्सइ (ग)। ५. आसुरुत्ता (क, ख)। १४. एहि (ग)। ६. ० दारया अप्पत्थियात्थिया (क) । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभयणं (मायंदी ) २०६ कयवरं' वा ग्रसु पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं तं सव्वं आहुणिय आहुणिय तिसत्तखुत्तो एगंते एडेयव्वं ति कट्टु निउत्ता || २०. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय दारए एवं क्यासी - एवं खलु अहं देवाप्पिया ! सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा तं चेव जाव' निउत्ता । तं जाव' ग्रहं देवाणुप्पिया ! लवणसमुद्दे' "तिसत्तखुत्तो प्रणुपरिताजं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा कयवरं वा असुर पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणिय ग्राहुणिय तिसत्तखुत्तो एगंते • एडेमि ताव तुब्भे इहेव पासायवडेंस सुहंसुहेणं अभिरममाणा चिट्ठह । जइ णं तुब्भे एयंसि अंतरसि उब्विग्गा वा 'उस्सुया वा उप्पुया" वा भवेज्जाह तो णं तुब्भे पुरत्थि - मिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा - पाउसे य वासारतेय । गाहा - तत्थ उ-कंदल सिधि - दंतो, निउर वरपुप्फपीवरकरो । पाउसउऊ गयवरो साहीणो || १ || दद्दूरकुलरसिय- उज्झररवो । वरहिणवंद'- परिणद्ध सिहरो, वासारत्तउऊ पव्वओ साहीणी || २ || तत्थ णं तुभे देवाणुपिया ! बहूसु वावीसु य जाव' सरसरपंतियासु य बहुसु प्रालीघरएसु य मालीघरएसु य जाव" कुसुमघरएंसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणाअभिरममाणा विहरिज्जाह । जइ णं तुब्भे तत्थ वि उव्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो णं तुब्भे उत्तरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ गं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा - सरदो य हेमंतो य । गाहा - तत्थ उ-सण - सत्तिवण्ण कउहो, नीलुप्पल पउम नलिण सिंगो | सारस - चक्काय- रवियघोसो, सरयउऊ गोवई साहीणी ||३|| - "सियकुंद - धवलजोहो ", कुसुमिय- लोद्धवणसंड-मंडलतलो । तुसार- दगधार पीवरकरो, हेमंतउऊ ससी सया साहीणो ||४|| तत्थ य - ' १. केश्वरं ( क ) । २. पूयं ( ख ) । - कुडयज्जुण- नीव सुरभिदाणो, तत्थ य -- सुरगोवमणि - विचित्तो, ३. ना० ११६ १६ ४. जाव ताव ( क ) | ५. सं० पा० --- लवणसमुद्दे जाव एडेमि । ६. ० उप्पया ( क ) ; उपित्था वा उस्या • (वृ); उप्पुया वा उस्सुया (वृपा ) ! ७. य (क ) | ८. विंद (ग) 1 - ६. राय० सू० १७४ । १०. राय० सू० १८२ । ११. ० जुण्हो ( ख ); सितकुंदविमल जोहो (वृपा) । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० नायाधम्मकहाओ तत्थ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बहूसु वावीसु य' •जाव सरसरपंतियासु य बहूसु आलीघराएसु य मालीघरएसु य जाव कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणाअभिरममाणा • विहरिज्जाह । जइ णं तुब्भे तत्थ वि उव्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो णं तुब्भे अवरिल्ल वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा तं जहा -वसंते य गिम्हे य । गाहातत्थ उ-सहकार - चारुहारो, किसुय - कण्णियारासोगमउडो। ऊसियतिलग - बकुलायवत्तो, वसंतउऊ नरवई साहीणो ॥५॥ तत्थ य—पाडल-सिरीस - सलिलो, मल्लिया-वासंतिय-धवलवेलो। सीयलसुरभि-निल-मगरचरियो, गिम्हउऊ सागरो साहीणो ॥६।। तत्थ णं बहूसु' 'वावीसु य जाव सरसरपंतियासु य बहुसु पालीघरएसु य मालीघरएसु य जाव कुसुमधरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा' विहरेज्जाह ! जइणं तुभे देवाणुप्पिया ! तत्थ वि उम्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो तुब्भे जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छेज्जाह ममं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठज्जाह, मा णं तुब्भे दक्खिणिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं महं एगे उग्गविसे' चंडविसे घोरविसे अइकाए' महाकाए मसि-महिसमूसा -कालए नयणविस रोसपुण्णे" अंजणपुंज-नियरप्पगासे रत्तच्छे जमल-जुयलचंचल-चलंतजीहे धरणितल-वेणिभूए उक्कड-फुड-कुडिल-जडुल"-कक्खड - वियड-फडाडोव-करणदच्छे लोहागर-धम्ममाण"-धमधमेंतघोसे अणागलिय चंडतिव्वरोसे 'समुहिय-तुरिय-चवलं घमंते दिट्ठीविसे सप्पे परिवसइ । मा णं १. सं० पा०-वावीसु य जाव विहरेज्जाह । गोशालकचरिते तथैहाध्येतव्यानीत्यर्थः । तानि २. अनिल (क, ख, ग, घ); इह वा अनिल- चैतानि–मसि-महिस । __ शब्दस्य अकारलोपः प्राकृतत्वात् (वृ)। ८. महिसा (क, ख)। ३. सं० पा०-बहूसु जाव विहरेज्जाह। ६. मूस (घ)। ४. भोगविसे (वृपा)। १०. पुण्णए (ख)। ५. घोरविसे महाविसे (क)। ११. जडिल (क्व०)। ६. अइकाय (क, ख, ग, घ)। १२. कक्कड (क, ख)। ७. °काए जहा तेयनिसग्गे (वृ); वृत्तिगत- १३. फलाडोव (ख); फणाडोव (घ)। व्याख्यया इति प्रतीयते वृत्तिकारस्य १४. लोहभितिगम्यते । सम्मुखे ये आदर्शा आसंस्तेषु 'जहा तेय- १५. समुहिं तुरियचवलं (क, म); समुहिं तुरियं निसगे' इति संक्षिप्तः पाठः आसीत्, चवलं (ख)। अतएव वृत्तिकृता लिखितम्-जहा १६. धमधमते (ग)। तेथनिसग्गेति-शेषविशेषणानि यथा Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं करणं (मायंदी) २११ तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ-ते मागंदिय-दारए दोच्चंपि तच्चपि एवं वदति, वदित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता ताए उक्किट्ठाए' देवगईए लवणसमुई तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टेउं पयत्ता यावि होत्था । मागंदियपुत्ताणं वणसंडगमण-पदं २१. तए णं ते मागंदिय-दारया तम्रो मुहुत्तंतरस्स पासायवडेंसए सई वा रई वा घिइं वा अलभमाणा अण्णमण्णं एवं क्यासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! रयणदीवदेवया अम्हे एवं वयासी-एवं खलु अहं सक्कवयण-संदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा' निउत्ता जाव' मा णं तुभं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ । तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! पुरथिमिल्लं वणसंडं गमित्तए -अण्णमण्णस्स एयम₹ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छति । तत्थ णं वावीस य जाव प्रालीघरएस य जाव" सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरम माणा विहरति ।। २२. तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा 'रई वा धिई वा अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति । तत्थ णं वावीसु य जाव' पाली घरएस य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति ॥ २३. तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा 'रई वा धिई वा अलभमाणा जेणेव पच्चस्थिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छति । तत्थ णं वावीस य जाव" पालीघरएस य" सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति ।। २४. तए गं ते मागंदिय-दारगा तत्थ विसई वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा अण्ण मण्णं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे रयणदीवदेवया एवं वयासीएवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयण-संदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा" निउत्ता जाव" मा गं तुभं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु अम्हं दक्खिणिल्लं वणसंडं गमित्तए त्ति कट्ट अण्णमण्णस्स एयभटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तो णं गंधे निद्धाइ, से जहानामए–अहिमडे इ वा जाव" अणि?तराए चेव ॥ १. पू०-राय० सू० १०! २. पू०--ना० शहा२० । ३,४,५. ना० ११६०२० । ६. सं० पा०- सई वा जाव अलभमाणा। ७. ना० ११६२०। ८. पू०-ना० १९२० । है. सं० पा०-सई वा जाव जेणेव । १०. ना० १।६।२०। ११. पू०–ना० १।६।२०। १२. सं० पा०-सई वा जाव अलभमाणा। १३. पू०-ना० १६॥२०॥ १४. ना० ११६२० । १५. ना० ११८४२ १६. पू०-ना० १४२ । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ नायाधम्मकहाओ २५. तए णं ते मागंदिय-दारगा तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहि-सएहिं उत्तरिज्जेहिं आसाई 'पिहेंति, पिहेत्ता" जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव उवागया। तत्थ णं महं एग आघयण' पासंति--अद्विय रासि-सय-संकुलं भीम-दरिसणिज्जं । एगं च तत्थ सूलाइयं पुरिसं कलुणाई कट्ठाइं विस्सराई कूवमाण" पासंति, भीया 'तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया जेणेव से सूलाइए पुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! कस्साघयणे? तुमं च णं के कत्रो वा इहं हव्वमागए? केण' वा इमेयारूवं आवयं पाविए ? २६. तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदिय-दारगे एवं बयासी –एस णं देवाणुप्पिया ! रयणदीवदेवयाए प्राधयणे । अहं णं देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवानो दोवानो भारहाम्रो वासाप्रो कागदए आसवाणियए विपुलं पणियभंडमायाए पोयवहणेणं लवणसमुइं ओयाए । तए णं अहं पोयवहण-विवत्तीए निब्बुड्ड-भंडसारे एगं फलगखंडं आसाएमि । तए णं अहं प्रोवुज्झमाणे-अोवुज्झमाणे रयणदीवतेणं संवढे ! तए णं सा रयणदीवदेवया ममं पासइ, पासित्ता मम गेण्हइ, गेण्हित्ता मए सद्धि विउलाई भोग भोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं सा रयणदीवदेवया अण्णया कयाइ अहालहुसगंसि अवराहसि परिकुविया समाणी मम एयारूवं आवयं पावेइ। तं न नज्जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भं पि इमेसि सरोरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ? २७. तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सुलाइगस्स अंतिए एयमदं सोच्चा निसम्म बलियतरं भीया" तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी–कहण्णं देवाणुप्पिया ! अम्हे रयणदीवदेवयाए हत्थानो साहत्थि नित्थरेज्जामो ? २८. तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदिय-दारगे एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! १. पेहेंति २ (ख) ५. सं० पा०--भीया जाय संजायभया । २. आयणं (क); आवतेणं (ख, घ)। ६. केणइ (क); केणे (ख) । ३. सूलाइतयं (क); सूलाययं (ख), वृत्तौ ७. पाविएसि (क)। एकस्मिन्नादर्श 'सुलाइगं' अपरस्मिश्च ८. कागदिए (घ); काकंदए (क्व)। 'सूलाइयंग' इति पाठ-संकेतो दृश्यते। ६. विपुल (ख, घ); विउल (ग) ! शुलिकाभिन्नमिति च व्याख्यातमस्ति । १०. आवई (क, ख); आवर्ति (ग, घ)। ४. कुबमाणं (ख,ग,घ) । वृत्ती...कूजन्तंव्यक्तं ११. सं० पा०-भीया जाव संजायभया । शब्दायमानं, इति दृश्यते, ततः कुब्वमाणं १२. नित्थरिज्जामो (ख) 1 अशुद्ध प्रतिभाति। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (मायंदी) २१३ पुरथिमिल्ले वणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नाम ग्रासरूवधारी जक्खे परिवसइ । तए णं से सेलए जक्खे चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु आगयसमए पत्तसमए महया-महया सद्देणं एवं वदइ-कं तारयामि ? कं पालयामि ? तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! पुरथिमिल्लं वणसंड सेलगस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणियं करेह, करेत्ता जन्तुपायवडिया पंजलिउडा' विणएणं पज्जुवासमाणा विहरह। जाहे णं से सेलए जक्खे प्रागयसमए पत्तसमए एवं वएज्जा-क तारयामि ? के पालयामि? ताहे तब्भे 'एवं वदह–अम्हे तारयाहि अम्हे पालयाहि । सेलए भे जवखे परं रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थि नित्थारेज्जा। अण्णहा भे न याणामि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ? सेलगजक्ख-पदं २६. तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सूलाइयस्स पुरिसस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्मा सिग्धं चंडं चवलं तुरियं वेइयं जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे जेणेव पोखरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणि प्रोगाहेति, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेत्ता जाइं तत्थ उप्पलाइं जाव ताइं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेंति, करेत्ता महरिहं पुप्फच्चणियं करेंति, करेत्ता जन्नुपायवडिया" सुस्सूसमाणा नमसमाणा पज्जुवासंति !! ३०. तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी-कं तारयामि ? क पालयामि ? ३१. तए णं ते मागंदिय-दारगा उट्ठाए उट्ठति, उद्वेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मथए अंजलि कटु ° एवं वयासी--अम्हे तारयाहि अम्हे पालयाहि ।। ३२. तए णं से सेलए जक्खे ते मागंदिय-दारए एवं वयासी-एवं खल देवाण प्पिया ! तुब्भं मए सद्धि लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयमाणाणं सा रयणदीवदेवया पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया बहूहि खरएहि य मउएहि य प्रणलोमेहि य पडिलोमेहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि उवसग्गं करेहिइ । तं जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रयणदीवदेवयाए एयमटुं आढाह वा परियाणह वा अवयक्खह वा तो भे अहं पट्टाम्रो विहुणामि । 'अह णं तुब्भे १. पंजलियडा (ख); अंजलिउडा (ग)। ६. स. पा.-करयल । २. चिदह (क)। ७. वदइ (क)। ३. वदह (क); वइज्जह (ख) । ८. पट्टतो (ख); पुट्ठामो (घ)। ४. मा० ११२।१४। ६. विधुणामि (क); विहूणामि (ख)। ५. पडिया य (ग)। १०. अहण्णं (ग)। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ नायाधम्मकहानी रयणदीवदेवयाए एयमटुं नो पाढाह नो परियाणह नो अवयक्खह तो भे रयणदीवदेवयाए हत्थानो साहत्थि नित्थारेमि ॥ ३३. तए णं ते मागंदिय-दारगा सेलगं जक्खं एवं वयासी-जं णं देवाणु प्पिया वइस्संति' तस्स णं [प्राणा?] उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठिस्सामो॥ ३४. तए णं से सेलए जक्खे उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमग्याएणं समोडण्णइ.समोहणित्ता संखेज्जाइंजोयणाइंदंडं निस्सिरइ. दोच्चंपि वेउब्वियसमग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता एगं महं प्रासरूवं विउव्वइ, विउवित्ता मागंदिय-दारए एवं वयासी-हं भो मागंदिय-दारया ! आरुहह णं देवाणुप्पिया! मम पटुंसि ।। ३५. तए णं ते मागंदिय-दारया हट्ठा सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करेत्ता सेलगस्स पटुं दुरूढा ।। ३६. तए णं से सेलए ते मागंदिय-दारए पढे दुरूढे जाणित्ता सत्तट्ठतलप्पमाणमेत्ताई उड्ढं वेहासं उप्पयइ', उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए दिव्वाए देवगईए लवणसमुदं मझमझणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव चंपा नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। रयणदीवदेवया-उवसन्ग-पदं ३७. तए णं सा रयणदीवदेवया लवणसमुदं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टइ, जं तत्थ तणं वा जाव' एगते एडेइ, जेणेव पासायव.सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते मागंदिय-दारए पासायव.सए अपासमाणी जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छइ जाव' सव्वनो समंता मम्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता तेसि मागंदिय-दारगाणं कत्थइ सुई वा 'खुइं वा पउत्ति वा अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले, एवं चेव पच्चथिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पउंजइ, ते मागंदिय-दारए सेलएणं सद्धि लवणसमुई मज्झमझेणं वीईवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्त? तलप्पमाणमेत्ताइ उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए' देवगईए जेणेव मागंदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी-हभो मागंदिय-दारगा ! अपत्थियपत्थया ! किण्णं तुन्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धि लवणसमुदं मझमज्झणं वीईवयमाणा? तं एवमवि गए। जइ णं तुन्भे मम १. वतंति (ख); वत्तंति (ग, घ)। २. पाउप्पयइ (क)। ३. ना० १०६१६ ४. ना. १६२१ । ५. स० पा०----सुइ वा० । ६.सं० पा०-सत्तट्र जाव उप्पयइ। ७. पू० -ना० ११६३६ । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (भायंदी) २१५ अवयक्खह तो भे अस्थि जीवियं । अह णं नावयक्खह तो भे इमेणं नीलप्पलगवल' गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेणं खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाइं माउ पाहिं उवसोहियाई तालफलाणि व सीसाइं एगते ° एडेमि ।। ३८. तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म अभीया अतत्था अणुध्विग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणदीवदेवयाए एयभटुं नो पाढंति 'नो परियाणति 'नो अवयक्खंति'' प्रणाढामाणा' अपरियाणमाणा अणवयक्खमाणा सेलएणं जखेणं सद्धि लवणसमुई मज्झमझेणं वीईवयंति ।। ३६. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए जाहे नो संचाएइ बहहि पडि लोमेहि उवसहि चालित्तए वा 'लोभित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे महुरेहि सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि 'उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्था-हंभो मागंदिय-दारगा ! जइ णं तुभेहि देवाणुप्पिया ! मए सद्धि हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिडियाणि य मोहियाणि य ताहे णं तुम्भे सव्वाइं अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धि लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयह ।। ४०. तए णं सा रयणदीवदेवया जिणरक्खियस्स मणं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता एवं वयासी-निच्चपि य णं अहं जिणपालियस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुणा अमणामा । निच्चं मम जिणपालिए अणिढे अकते अप्पिए प्रमणुण्णे अमणामे । निच्चपि य णं अहं जिणरक्खियस्स इट्ठा कता पिया मणुण्णा मणामा। निच्चपि य णं ममं जिणरक्खिए इट्टे कंते पिए मणुण्णे मणाम । जइ णं मम जिशपालिए रोयमाणि कंदमाणि सोयमाणि तिप्पमाणि विलवमाणि नावयक्खइ, किण्णं तुमपि जिणरक्खिया ! ममं रोयमाणि कंदमाणि सोयमाणि १. सं० पा०-- गवल जाव एडेमि । ७. सम्गेहि य (ख)। २. आढायंति (क)। ८. उवसम्गेहि य पत्ता (क); उवसम्गे उपयत्ता ३. नावयक्खति (क)। (ख); उवसरगेहि य उपयत्ता (ग)। ४. अणाढायमाणा (क); अणाढेमाणा (ख); ६. एतच्च वाक्यं काक्वा व्याख्येयम्, ततः ___ अणाढामीणा (ग)। उपालंभ: प्रतीयते (वृ) । ५. उवसग्गेहि य (ख, ग, घ)। १०. X (क)। ६. लोभित्तए वा (क); खोभित्तए वा ११. ४ (ख, घ)। विपरिणामित्तए वा लोभित्तए वा (ख)। १२. सं० पा०--रोयमाणि जाव नावयखसि। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ तिप्पमाणि विलवमाणि' नावयक्खसि' ? १. अतोने आदर्शषु 'तए नं इति पदमस्ति। प्रथम श्लोकेपि 'ओहिणा जिणरक्खियस्स ततश्चाष्टी श्लोकाः उल्लिखिताः सन्ति । नाऊण' इति पदमस्ति । अष्टमे श्लोके वृत्त्यनुसारेण ते श्लोका वाचनान्तरवतिनः 'सप्पणयसरल महुराई' इति पदमस्ति, 'ततेणं सन्ति, यथा-तए णं सा रयणदीवेत्यादि से जिणरक्खिए' इत्यस्मिन् सूत्रे 'ते हि य सूत्रं वाचनान्तरे रूपकविशेषेण द्वयं भ्रान्ति सप्पणयसरलमहुरभणिएहि' इति वाक्यकरोति' (वृ) । तए णं सा रयणदी- मस्ति । एतादृश पौनवत्यं द्वयोर्वाचनयोः येत्यस्मिन् सूत्रे 'जिणरक्खियस्स मण सम्मिश्रणेन जातमस्ति । अतएव एते ओहिणा आभोएइ, इति वाक्य मस्ति, श्लोकाः वाचनान्तरत्वेनादताः। तए णं 'सा पवररयणदीवस्स, देवया ओहिणा जिणरक्खियस्स नाऊण ।' वधनिमित्तं उरि, मागंदिय-दारगाण दोण्हपि ।।१।। दोसकलिया सललिय', नाणाविह-चूण्णवास-मीसं दिव्वं । घाण-मण-निव्वुइकरं, सब्बोउय-सुरभिकुसुम-बुट्टि पमुंचमाणी ॥२॥ नाणामणि-कणग-रयण-घंटियखिखिणि नेउर-मेहल-भूमणरवेणं । दिसायो विदिसाओ पूरयंती वयणमिणं बेइ सा सकलुसा ॥३॥ होल! वसुल! गोल!नाह! दइत ! पिय ! रमण ! कंत! सामिय!निग्घिण ! नित्थक्क!' । थिण्ण! निक्कि ! अकयण्णय ! सिदिलभाव !, निल्लज्ज! लक्ख ! अकलुण ! जिणरक्खिय ! मज्झ ! हिययरक्खगा ॥४॥ नह जुज्जसि एक्कयं अणाहं, अबंधवं तुज्झ चलण-ओवायकारियं उभिउमधन्न। गुणसंकर ! हं तुमे विहणा, न समत्था जीविउं खणपि ॥५॥ इमस्स उ अगझस-मगर-विविधसाक्य-सयाउलघरस्स रयणागरस्स मज्झे । अप्पाणं वहेमि तुझ पुरग्रो, एहि नियत्ताहि जइ सि कुविप्रो खमाहि एगावराह मे ॥६॥ तुज्झ य 'विगयघण-विमलससिमंडलागार'"-सस्सिरीयं, सारयनवकमल-कुमुद-कुवलय-दलनिकरसरिस निभनयणं । वयणं पिवासागयाए सद्धा में पेच्छिउं जे, अवलोएहि ता इओ ममं नाह ! जा ते पेच्छामि वयणकमलं ॥७॥ एव सप्पणय-सरल-महुराइं पुणडे-पुणो कलुणाई। वयणाई जंपमाणी, सा पावा मम्गओ समण्णेइ पावहियया ।।८।। एते श्लोकाः सन्ति अथवा गद्यभागोसौ इति तुकारादिनिपातानां पादपर्णार्थानां निर्देशो न सुनिर्णीतं नासीत् । वृत्तिकृना एते श्लोकाः घटते । अपरिमितानि च छन्दःशास्त्राणि इति मतं प्रदशितम्-पद्यबन्धं विना १. सा रयणदीवदेवता, ओहिणा ५. निक्कब (ख) । ११. विगयघण-विउल० (ग), विगयजिपरक्खियस्स मणं नाऊण (क); ६. रक्खग (ख)। घणविमलससिमंडल (वृपा)। ज्ञात्वाभावमिति शेषः (ब)। ७. एक्कियं (क, ग, घ)। १२. कुवलय-विमउल (क, ख); २. सलिलिय (क); सलिलयं (घ)। ८. उववाय० (घ)। कुवलय-विमल (ग, य); विमउल ३. मीसियं (क्व०)। ६. मझेणं [ग] । (वृपा)। ४. निस्थिक्क (क)। १०. एक्का० (क, ख, घ) Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभियगं (मायंदी) २१७ जिणरक्खियविवत्ति-पदं ४१. तए णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुहमणहरेणं तेहि य सप्पणय-सरल-महुर-भणिएहिं संजाय-विउण-राए रयणदोवस्स देवयाए तीसे सुंदरथण-जहण'-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्ण-रूव-जोवण्णसिरि च दिव्वं सरभस-उवाहियाई विब्बोय-विलसियाणि' य विहसिय-सकडक्खदिट्टि'-निस्ससिय-मलिय'-उवललिय'-थिय-गमण-पणय खिज्जिय-पसाइयाणि य सरमाणे रागमोहियमती अवसे कम्मवसगए अवयक्खइ मांगतो सविलियं ॥ ४२. तए णं जिणरक्खियं समुप्पण्णकलुणभावं मच्चु-गलत्थल्ल-गोल्लियमई अवय क्खंत तहेव जक्खे उ सेलए जाणिऊण सणियं-सणियं" उव्विहइ नियगपट्टाहि विगयसद्धे । तए णं सा रयणदीवदेवया निस्संसा कलुणं जिणरक्खियं सकलुसा" सेलगपट्टाहि" ओवयंत-दास ! मनोसि त्ति जंपमाणी अपत्तं सागरसलिलं गेण्हिय बाहाहि पारसंतं उड्ढं उम्विहइ अंबरतले प्रोवयमाणं च मंडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण" असिवरेण खंडाखंडि करेइ, करेत्ता तत्थेव" विलवमाणं तस्स य सरस-वहियस्स घेत्तूणं अंगमंगाई सरुहिराई उक्खित्तबलि चउद्दिस करेइ, सा पंजली पहिवा" ॥ ४४. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारिय पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सए कामभोगे आसयइ पत्थयइ पीहेइ अभिलसइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूर्ण समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव" चाउरतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा व से जिणरक्खिए । १. जषण (ख)। नोपलभ्यते (वृपा)। २. लायण्ण (क, ख)। १२. विगयसत्थे (वृ); विगयसद्धे (वृपा) । ३. विलवियाणि (क, ख)। १३. अकलुणा (क)। ४. कडक्ख ° (क, ख)। १४. ° पुढाहिं (घ)। ५. मणिय (वृपा)। १५. असीयप्पगासेण (ग)। ६. ललिय (वृपा)। १६. तत्थ (ग, घ)। ७. कम्मवसवेगनडिए (वृपा)। १७. चाउद्दिस (क)। ८, सविल वियं (ग)। १८. पहट्ठा (क, ख)। ६. गलत्थ (क); गल्लत्थल्ल (ख)। १६. ना० १।३।२४। १०,११. 'तहेव, सणियं' इत्येतत् पदद्वयं वाचनान्तरे Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ नावाधम्मकहानी गाहा छलियो अवयक्खंतो, निरवयक्खो' गो अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारे', निरावयक्खेण भवियव्वं ॥१॥ भोगे अवयक्खंता, पडंति संसारसागरे घोरे । भोगेहि निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं ॥२॥ जिणपालियस्स चंपागमण-पदं ४५. तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छइ, बहूहि अणुलो मेहि य पडिलोमेहि य खरएहि य मउएहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि जाहे नो संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा' जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। ४६. तए णं से सेलए जक्खे जिणपालिएण सद्धि लवणसमु ई मज्झमझेणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागरिछत्ता चपाए नयरीए अगुज्जाणंसि जिणपालियं पट्ठामो ओयारेइ, ओयारेत्ता एवं वयासी - - एस णं देवाणप्पिया! चंपा नयरी दीसइ त्ति कटु जिणपालियं पुच्छइ, जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए॥ ४७. तए णं से जिणपालिए चपं नरि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे •कंदमाणे सोयमाणे तिप्पमाणे ° विलवमाणे जिण रक्खिय-वावत्ति निवेदेइ । ४८. तए णं जिणपालिए अम्मापियरो [य ? ] मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणेण सद्धि ‘रोयमाणा कंदमाणा सोयमाणा तिप्पमाणा विलवमाणा बहई लोइयाइं मयकिच्चाई करेंति, करेत्ता कालेणं विगयसोया जाया । ४६. तए णं जिणपालियं अण्णया कयाइं सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी-- कहण्णं पुत्ता ! जिणरक्खिए कालगए? ५०. तए णं से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाय-संमच्छणं च पोयवहण-विवत्ति च फलहखंड-प्रासायणं च रयणदीवुत्तारं च रयणदीव १. निरवेक्खो (ग) ५. सं० पा०---रोयमाणे जाव दिलवमाणे । २. सारेण (ग); चारित्रे लब्धे सतीति ६. वावित्ति (ख, ग)। गम्यते (वृ)। ७. सं० पा० -नाइ जाव परियषण ! ३. समाणी (क)। ८. रोयमाणाई (क, ख, ग, घ)। ४. दिसं (क)। ६. फलगखंड (क)। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (मायदी) २१६ देवया-गिण्हणं च भोगविभूई च रयणदीवदेवया-आघयणं' च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्खारुहणं च रयणदीवदेवया-उवसरगं च जिणरक्खियवात्ति' च लवणसमुद्दउत्तरणं च 'चंपागमणं च सेलगजक्खापुच्छणं च" जहाभूयमवितहमसंदिद्धं परिकहेइ॥ ५१. तए णं से जिणपालिए 'सप्पसोगे [जाए ?] जाव" विपुलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं 'समणे भगवं महावीरे" समोसढे । जिणपालिए धम्म सोच्चा पन्वइए । एगारसंगवी। मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे। दो सागरोवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव' सव्व दुक्खाणमंतं काहिइ ।। ५३. एवामेव समणाउसो ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झा याणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे ° माणुस्सए कामभोगे नो पुणरवि प्रासयइ पत्थयइ पीहेइ, सेणं इह भवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ-जहा व से जिणपालिए। निक्खेव-प्रदं ५४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं प्राइगरेणं तित्थगरेणं जाव" १. अप्पाहणं (क, ख, ग, घ) ! अब पूर्वक्रमानु- नोपलब्धम् । अत्र प्रथमं 'जाव' पदं अना सारेण 'माघयणं' इति पाठो युज्यते, वश्यक प्रतिभाति । 'अप्पसोगे जाए जाव' द्रष्टव्यम्-२५ सूत्रम् । सम्भवतो लिपिदोषेण यद्येवं पाठः परिकल्पेत तदा 'जाव' पदं न 'आधयणं' इत्यस्य स्थाने 'अप्पाहण' इति पूर्तिसूचकं भवति । जातम् । अत्र अस्पार्थोपि नावगम्यते । ५. समणे भगवया महावीरेणं (क); समणे (ख. २. वित्ति (क, ख, ग, घ)। ४७ सूत्रानुसारेण ग,); समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव चंपा अत्र परिवर्तनं कृतम् ।। नयरी पुण्णभद्दे चेइए तेणेव समोसढे परिसा ३. सेलगजक्खआपुच्छणं च चंपागमणं च (क); निग्गया कूणिपो वि राया निग्गओ (ध)। सेलगजक्खआपुच्छणं च (ग)। ६. X(क, ख, ग)। ४. जाव अप्पसोगे जाव (क, ख, ग, घ) ७. ना० ११११२१२ । अस्यवाध्ययनस्य ४० सूत्रे 'विगयसोया 4. सं० पा०-समणाउसो जाव माणस्सए । जाया' इत्युल्लेखोस्ति । अत्र पुनरपि ६. ना० शरा७३ । 'अप्पसोगे' इत्युल्लेखो विद्यते । द्वयोरपि १०. ना० ११११७ । 'जाव' पदयोः पूर्तिस्थलं एतत् तुल्यप्रकरणेषु Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० भायाधम्मकहाओ सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्तेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा --- जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा ॥१॥ जह तेहिं भीएहि, दिट्ठो प्राधायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया, पासति तहेव धम्मकहं ॥२॥ जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तत्तो चिय नित्थारो, सेलगजक्खाउ नन्नत्तो ॥३॥ तह धम्मकही भव्वाण, साहए दिट्ठअविरइसहावा । सयलदुहहेउभूया, विसया विरयंति जोवा णं ॥४॥ सत्ताण दुहत्ताणं, सरणं चरणं जिणिदपण्णत्तं । आणंदरूव-निव्वाण-साहणं तह य दंसेइ ॥५॥ जह तेसि तरियव्वो, रुदसमद्दो तहेह संसारो। जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थ ॥६॥ जह सेलगपढाओ, भट्ठो देवीए मोहियमई उ । सावय-सहस्सपउरम्मि, सायरे पावित्रो निणं ॥७॥ तह अविरईइ नडिओ,चरणचुनो दुक्खसावयाइण्णो। निवडइ 'अगाह-संसार-सागरं अणंतमविकालं" ॥८॥ जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्ठाण-जीवियसुहाई। तह चरणठिो साहू, अक्खोहो जाइ निव्वाणं ।।६।। १. अपारसंसारसायरे दारुणसरूवे (ख)। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं चंदिमा उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? परिहायमाण-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे' गोयमो एवं वयासी कहण भंते ! जीवा बड्ढंति वा हायंति वा ? गोयमा ! से जहानामए वहलपक्खस्स पाडिवय'-चंदे पुषिणमा-चंदं पणिहाय हीणे वणेणं हीणे सोम्माए' होणे निद्धयाए हीणे कंतीए एवं-दित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए ओयाए लेसाए" होणे मंडलेणं । तयाणंतरं च णं बीयाचंदे पाडिवय-चंदं पणि ए वोण जाव हीणतराए मंडलेणं। तयाणंतरं च णं तइया'-चंदे बीया'-चंदं पणिहाय हीणत राए वण्णेणं जाव हीणतराए मंडलेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे-परिहायमाणे जाव अमावसा-चंदे चाउसिचंदं पणिहाय नढे वण्णेणं जाव' नढे मंडलेणं ।। १. नयरे सामी समोसढे परिसा निग्गया (घ)। ५. लेस्साए (क, ख)। २. कहणं (ख, ग)। ६. पडिवयं (घ)। ३. पडिवय (क); पडिवया (ख, घ); ७. ततिया (ख, ग, घ)। पाडिवया (ग)। ८. बितिया (क, ख, ग, घ)। ४. सम्मेताए (क) २२१ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ नायाधम्मकहाओ ३. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा' 'पायरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ताअगाराप्रो अणगारियं पव्वइए समाणे होणे खंतीए एवं--मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए होणे बंभचेरवासेणं । तयाणंतरं च णं हीणतराए खंतीए जाव हीणतराए बंभचेरवासेणं । एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे-परिहायमाणे नढे खंतीए जाव नढे बंभचेर वासेणं ॥ परिवड्ढमाण-पदं ४. से जहा वा सुक्कपक्खस्स पाडिवय-चंदे अमावसा-चंदं पणिहाय अहिए वण्णेणं' *अहिए सोम्माए अहिए निद्धयाए अहिए कंतीए एवं-दित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए प्रोयाए लेसाए° अहिए मंडलेणं।। तयाणंतरं च णं बीया-चंदे पाडिवय-चंदं पणिहा ए वण्णणं जाव अहिययराए मंडलेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे जाव पुण्णिमा-चंदे चाउसि चंदं पणिहाय पडिपुण्णे वण्णणं जाव पडिपुणे मंडलेणं ॥ ५. एवामेव समणाउसों ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं° पव्वइए समाणे अहिए खंतीए एवं-- मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए अहिए बंभचेरवासेणं।। तयाणंतरं च णं अहिययराए खंतीए जाव अहिययराए बंभचेरवासेणं । एवं खलु एएणं कमेणं परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे पडिपुण्णे खंतीए जाव पडिपुण्णे बंभचेरवासेणं । एवं खलु जीवा वड्ढंति वा हायंति वा !! निक्खेव-पदं ६. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स नायज्झयणस्स अयमटे पण्णत्ते । -त्ति बेमि॥ १. सं० पाo--निग्गंथी वा जाव पव्वइए। २. पाडिवया (क, ख); पडिवया (ग, घ)। ३. सं० पा०-वण्णेणं जाव अहिए। ४. सं० पा०-समणाउसो ! जाव पव्वइए। ५. सं० पा०-खंतीए जाव बंभचेरवासेणं । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ दसमं अज्झयणं (चंदिमा) वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जह चंदो तह साहू, राहुवरोहो जहा तह पमानो। वण्णाइगुणगणो जह, तहा खमाइसमणधम्मो ।।१।। पुण्णोवि पइदिणं जह, हायंतो सव्वहा ससी नस्से। तह पुण्णचरित्तो वि हु, कुसीलसंसग्गिमाईहिं ।।२।। जणिय-पमानो साहू, हायंतो पइदिणं खमाईहिं। जायइ नलुचरित्तो, ततो दुक्खाइ पावेइ ।।३॥ हीणगुणो वि हु होउं, सुहगुरुजोगाइ-जणियसंवेगो।। पुण्णसरूवो जायइ, विवद्धमाणो ससहरोव्व ।।४।। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं अज्झयणं दावद्दवे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स नायज्झयणस्स अयम? - पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? देसविराहय-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गोयमो एवं वयासी कहणं' भंते ! जीवा पाराहगा वा विराहगा वा भवंति ? गोयमा ! से जहानामए एगसि समुद्दकूलंसि दावद्दवा नाम रुक्खा पण्णत्ता-- किण्हा जाव' निउरंबभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा' सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति । जया णं दीविच्चगा' ईसिं" पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहवे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया 'पुफिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा' चिट्ठति । अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा' परिसडिय-पंडुपत्त-पुप्फ-फला सुक्करुक्खो विव मिलाय माणा-मिलायमाणा चिदति ॥ ३. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंधी वा' 'पायरिय १. कह णं (ख, ग, घ)। २. ना० ११७:१३ । ३. रेरिज्जमाणा-रेरिज्जमाणा (क, ग)। ४. दीविव्वगा (ख, ग, घ)। ५. इसि (क, घ)। ६. सं० पा०- पत्तिया जाव चिटुंति । ७. ज्झोडा (क, ख); झोट्ठा (ग)। ८. समणातोसो (ग)। ६. सं.पा.-निग्गथी जाव पव्वइए। २२४ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं अझयणं (दावद्दवे) २२५ उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो प्रणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य सम्मं सहइ ' • खमइ तितिक्खइ अहियासेइ, बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो श्रहियासेइ - एस गं मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते || o साराह पर्व ४. समाउसो ! जया णं सामुद्दगा' ईसि पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहने दावद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा' 'परिसडिय पंडुपत्तपुप्फ-फला सुक्रुक्खो विव मिलायमाणा - मिलायमाणा चिट्ठति । अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुष्फिया फलिया हरियग- रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा - उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ 0 एवामेव समणाउसो ! जो ग्रम्हं निम्गंथो वा निम्गंथी वा आयरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए समाणे बहू उत्थिया बहूणं हित्थाणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ महियासेइ, वहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य नो सम्म सहइ जाव नो ग्रहियासेइ -- एस णं मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते ॥ सन्वविराहय-पदं ६. समणाउसो ! जया णं नो दोविच्चगा नो सामुदगा ईसि पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तथा णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा परिसडिय पंडुपत्त- पुप्फ-फला सुक्क रुक्खग्रो विव मिलायमाणा - मिलायमाणा चिट्ठति । अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुष्फिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिए व उसोभेमाणा - उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ५. ७. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा ग्रायरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणी बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अण्णउत्थियाणं वहूणं गिहत्थाणं नो सम्म सहइ जाव' नो ग्रहियासेइ - एस णं मए पुरिसे सव्वविराहए पण्णत्ते || सव्वा राहय-पदं ८. समणाउसो ! जया णं दीविच्चगा वि सामुद्दगा वि ईसि पुरेवाया पच्छावाया १. सं० पा० - सहइ जाव अहियासेइ । २. समुहगा ( ख ) । ३. सं० पा० - झोड़ा जाव मिलायमाणा । ४. सं० पा० - फलिया जाव उवसोभेमाणा । ५. सं० पा० - निग्गंथी वा जाव पव्वइए । ६. ना० १।११।३ । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ नायाधम्मकहानो मंदावाया महावाया वायंति, तया णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुफिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिटुंति ॥ एवामेव समणा उसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्यो अणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं वर्ण समणीणं बहूर्ण सावयाणं वहूर्ण सावियाणं वहूर्ण अण्ण उत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ---एस णं मए पुरिसे सव्वपाराहा पण्णत्ते । एवं खलु गोयमा! जीवा पाराहगा वा विराहगा वा भवंति ।। निक्खेव-पदं १०. एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते। --त्ति बेमि ॥ वत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जह दावद्दव-'तरुणो, एवं" साहू जहेह दीविच्चा। वाया तह समणा इय, सपक्ख-वयणाई दुसहाई ॥१॥ जह सामुद्दय-वाया, तहण्णतित्थाइ-कडुयवयणाई। कुसुमाइं संपया जह, सिवमगाराहणा तह उ ॥२॥ जह कुसुमाइ-विणासो, सिवमग्ग-विराहणा तहा णेया। जह दीववायु-जोगे, वह इड्डी ईसि य अणिड्डी ।।३।। तह साहम्मिय-वयणाण, सहणमाराहणा भवे बहुया। इयराणमसहणे, पुण सिवमग्ग-विराहणा थोवा ॥४॥ जह जलहिवाय-जोगे, थेविड्थी वहुयरा अणिड्डी य । तह परपक्खवखमणे, आराहणमीसि बह इयरं ॥५॥ जह उभयवाय-विरहे, सव्वा तरुसंपया विणत्ति। अणिमित्तोभय-मच्छर-रूवेह विराहणा तह य ।।६।। जह उभयवाय-जोगे, सव्वसमिद्धी वणस्स संजाया। तह उभयवयण-सहणे सिवमगाराहणा पुण्णा ॥७॥ ता पुण्णसमणधम्माराहणचित्तो सया महापुण्णो । सव्वेण वि कीरतं, सहेज्ज सव्वं पि पडिकूलं ॥८॥ १. तरूणमेवं [क्व]। २. महासत्तो [क्व । Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उada-पदं १. बारसमं अयणं जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स नायज्झयणस्स मट्ठे पण्णत्ते, वारसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के प्रट्टे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्णभद्दे चेइए । जियसत्तू राया । धारिणी देवी । प्रदीणसत्तू कुमारे जुवराया वि होत्था । सुबुद्धी ग्रमच्चे जाव' रज्जधुराचितए, समणोवासए || उदगणाए फरिहोदग-पदं ३. तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमेणं एगे फरिहोदए यावि होत्थामेय-वसा-रुहिर-मंस-पूय-पडल-पोच्चडे मयग- कलेवर संछण्णे प्रमणे वणेणं ● मणुष्णे गंधेणं श्रमणे रसेणं मणुष्णे फासेणं, से जहानामए-अहिमडे इ वा गोमडे इ वा जाव' मय-कुहिय-विणट्ट- किमिण वावण्ण- दुरभिगंधे किमिजालाउले संसते सुइ-विगय-बीभच्छ-दरिस णिज्जे । भवेयारूवे सिया ? नो इट्ठे समट्ठे । एतो अणिट्टतराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुष्णतराए चेव श्रमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ॥ जियस तुणा पाणभोयणपसंसा-पदं ४. १. ना० ११८१४२ । २. सं० पा० वण्णेणं जाव फासेणं । ३, ना० ११६/४२ ! तए गं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ पहाए कयबलिकम्मे जाव' ४. सं० पा० – अणिट्ठतराए चैव जाव गंधेणं । ५. ना० १।१।२७ । २२७ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ नायाषम्मकहाओ अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे बहूहि ईसर' जाव' सत्थवाहपभिईहिं सद्धि भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असणं' 'पाणं खाइम साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे एवं च णं' विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परम ° सुइभूए तंसि विपलंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जावं सत्थवाहपभिइयो एवं वयासी-अहो णं देवाणु प्पिया ! इमे मणुषणे असणपाण-खाइम-साइमे वग्णेणं उववेए गधेणं उववेए रसेणं उववेए° फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे 'पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सव्वि दियगाय-पल्हायणिज्जे ।। ५. तए णं ते बहवे ईसर जाव' सत्थवाहपभिइनो जियसत्तुं रायं एवं वयासी तहेव णं सामी ! जण्णं तुब्भे वयह अहो णं इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइमसाइमे वण्णेणं उववेए जाव सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जे ।। सुबुद्धिस्स उवेहा-पदं ६. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं एवं क्यासी-अहो ण देवाणुप्पिया सुबुद्धी! इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम-साइमे जाव' सविदियगाय-पल्हाय णिज्जे ॥ ७. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमद्वं नो पाढाइ" 'नो परियाणाइ • तुसिणीए संचिट्ठइ ।। ८. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासो-अहो गं देवाणु प्पिया सुबुद्धी ! इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम-साइमे जाव सव्विदियगाय ° . पल्हायणिज्जे ।। ६. तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चंपि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे १. राईसर (ग)। ८. ना० ११७६१ २. ना० १७१६ । ६. तुम्हे (ख); तुम्हं (ग, घ) । ३. सं० पा०-असणं जाव विहरइ । १०. ना० १११२१४ ! ४. सं० पा.- भुत्तुत्तरागए जाव सुइभूए । ११. ना० १।१२।४ । ५. ना० ११७६ १२. सं० पा०-आढाइ जाव तुसिणीए । ६. सं० पा०-उववेए जाव फासेणं ! १३. सं.पा.--मणणे तं चेव जाव पल्हाय७. दीवणिज्जे पीणणिज्जे (क, घ); दीवणिज्जे णिज्जे । (ख); वीणिज्जे दीवणिज्जे परियणिज्जे १४. ना.१.१४ । (ग)। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसम अज्झयणं (उदगणाए) २२६ जियसत्तुं रायं एवं वयासी-नो खलु सामी ! अम्हं एयं सि' मणुण्णंसि असणपाण-खाइम-साइमंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुब्भिसद्दा वि पोग्गला दुब्भिसहत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा वि पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति । सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला सरूवत्ताए परिणमंति। सब्भिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुब्भिगंधा वि पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति । सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमति । सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति, दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए परिणमंति, पोग-वीससा-परिणया वि य णं सामी! पोग्गला पण्णत्ता ॥ १०. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमटुं नो आढाइ नो परियाणइ तुसिणीए संचिट्ठइ ।। जियसत्तुणा फरिहोदगस्स गरहा-पदं ११. तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ हाए प्रासखंधवरगए महयाभड चडगर-प्रासबाहिणियाए' निज्जायमाणे तस्स फरिहोदयस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ ।। १२. तए णं जियसत्तू राया तस्स फरिहोदगस्स असुभेणं गंधेणं अभिभूए समाणे सएणं उत्तरिज्जगेणं आसगं 'पिहेइ, पिहेत्ता" एगतं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बहवे ईसर जाव' सत्थवाहपभियओ एवं वयासी-अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णणं अमणुण्णे गंधेणं अमणुण्ण रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए-अहिमडे इ वा जाव' अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।। १३. तए ण ते वहवे ईसर जाव' सत्थवाहपभियओ एवं वयासी-तहेव णं तं सामी ! जंणं तब्भे वयह--अहो णं इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं अमणण्णे गंधेणं अमणुण्णे रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए---अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधणं पण्णत्ते ।। तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए अमणुणे वण्णेणं अमणुण्णे गंधेणं अमणुण्णे रसेणं अमणुपणे फासेणं, से जहानामए--अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।। १. वाहणियाए (क)। ५. राईसर (क, ख, घ)। २. पिहइ (क)। ६. ना० ११७।६। ३. ना० १७.६ । ७. तुब्भे एवं (क, ख, ग, घ)। ४. ना० १११२।३। ८,६. ना० १।१२।३। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० नायाधम्मकहाओ सुबुद्धिस्स उहा-पदं १५. तए णं से सुबुद्धी अमच्चे' 'जियसत्तुस्स रण्णो एयमटुं नो अाढाइ नो परिया___णाइ ° तुसिणीए संचिट्ठइ ।। १६. तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं अमणुण्णे गंधेणं अमणुणे रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए–अहिमडे इ वा जाव' अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।। १७. तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रणा दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे एवं वयासीनो खल सामी! अम्हं एयंसि फरिहोदगंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुभिसदा वि पोग्गला दुभिसद्दत्ताए परिणमंति', 'दुभिसद्दा वि पोग्गला सुभिसद्दत्ताए परिणमंति। सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति। सुब्भिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुभिगंधा वि पोग्गला सुन्भिगंधत्ताए परिणमंति । सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमंति । सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति, दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए परिणमंति° । पयोग-वीससा-परिणया वि य णं सामी ! पोरगला पण्णत्ता ।। जियसत्तुस्स विरोध-पद १८. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्च एवं वयासी—मा णं तुम देवाणु प्पिया ! पप्पाणं च परं च तदुभयं च बहूणि य असब्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसेण य वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहराहि ।। सुबुद्धिणा जलसोधण-पदं १६. तए णं सुबुद्धिस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्प ज्जित्था—अहो णं जियसत्तू राया संते तच्चे तहिए अवितहे सब्भूए जिणपण्णत्ते भावे नो' उवल भइ । तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सन्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमदूं उवाइणावेत्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पच्चइएहिं पुरिसेहिं सद्धि अंतरावणाओ" १. सं० पा०-अमच्चे जाव तुसिणीए। २. सं० पा०—अहो णं तं चेव । ३. ना० १११२।३। ४. सं० पा०-परिणमति तं चैव । ५. सच्चे (ख) ६. नो सद्दहइ (क)। ७. अभितरावणाओ (क)। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमै अज्झयणं (उदशणाए) नवए घडए य पडए य गेण्हइ, गेण्हित्ता संझाकालसमयंसि विरलमणूसंसि निसंत-पडिनिसंतंसि जेणेव फरिहोदए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं फरिहोदगं गेण्हावेइ, गेण्हावित्ता नवएसु पडएसुगालावेइ', गालावेत्ता नवएसु घडएस पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछियमूहिए कारावेइ, कारावेत्ता सत्तरत्तं परिवसावे इ', परिवसावेत्ता दोच्चंपि नवएस पडएस' गालावेइ, गालावेत्ता नवएस घडएस पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पविखवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछिय-मुद्दिए कारावेइ, कारावेत्ता सत्तरत्तं परिवसावेइ, परिवसावेत्ता तच्चपि नवएस पडएस गालावेइ, गाला. वेत्ता नवएस घडएसु पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता लछिय-मुद्दिए कारावेइ, कारावेता सत्तरत्तं ° संवसावेइ । एवं खल एएणं उवाएणं अंतरा गालावेमाणे अंतरा पविखवावेमाणे अंतरा य संवसावेमाणे" सत्तसत्त य राइंदियाइं परिवसावेइ । तए णं से फरिहोदए सत्तमंसिर सत्तयंसि परिणममाणंसि उदगरयणे जाए यावि होत्था--अच्छे पत्थे जच्चे तणए फालियवण्णाभे वण्णेणं उववेए गंधेण उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए प्रासायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे ° सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जे !! सुबुद्धिणा जलपेसण-पदं २०. तए णं सुबुद्धो जेणेव से उदगरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलंसि प्रासादेइ, प्रासादेत्ता तं उदगरयणं वण्णेणं उबवेयं गंधणं उबवेयं रसेणं उववेयं फासेणं उववेयं आसायणिज्ज विसायणिज्ज पीणणिज्जं दीवणिज्जं दप्पणिज्जं मयणिज्ज बिहणिज्ज° सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जं जाणित्ता हट्टतुट्टे वहि १. घडएसु (क, ख, ग, घ)। अस्मिन्नेव सूत्रे ६. पडएसु (क, ख, ग, घ)। 'अंतरावणाओ नवए बडए य पडए य ७. परिसावेइ (ख)। हा इति पाठोस्ति तथा 'गालावेइ' इति ८. सं० पा०—घडएसु जाव संवसावेइ। पस्यार्थोऽपि 'पडए' इति पदेन सर्वासू प्रतिषु 'घडएस' इत्येव' पाठो लभ्यते । सम्बद्धोस्ति, तेन 'घडएसु गालावेई' इत्यस्य ६. पूर्व परिवसावेई' पाठो विद्यते, अत्र 'संवस्थाने सर्वत्र 'पडएसु गालावेई' इति पाठो सावेई' पाठोस्ति । एतत परिवर्तनं किमर्थ युज्यते । सम्भवतो लिपिदोषेण अत्र वर्ण- कृतमिति न ज्ञायते । विपर्ययो जातः । १०. वसावेमाणे (ख, ग, घ)। २. गलावेइ (ख)। ११. सत्तम (ख)। ३. लंछिए (ख)। १२. सं. पा.--आसायणिज्जे जाव सविदिय । ४. करावेइ (ख)। १३. सं० पा०--आसायणिज्जं जाव सविदिय ! ५. परिसवेइ (ख)। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ मायाधम्मकहानो उदगसंभारणिज्जेहिं दवेहि संभारेइ, संभारेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो पाणियपरियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुम णं देवाणुप्पिया ! इमं उदग रयणं गेहाहि, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेज्जासि ॥ जियसत्तुणा उदगरयणपसंसा-पदं २१. तए णं से पाणिय-घरिए सुबुद्धिस्स एयमटुं पडिसुणेइ', पडिसुणेत्ता तं उदगरयण गेण्हइ, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवट्ठवेइ ॥ २२. तए णं से जियसत्त राया तं विपलं असण-पाण-खाइम-साइमं ग्रासाएमाणे' 'विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे एवं च णं ° विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वि य ण 'समाणे आयते चोक्खे° परमसुइभूए तंसि उदगरयणंसि जायविम्हाए ते बहवे राईसर जाव' सत्थवाहपभिइनो एवं वयासी----अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे उदगरयणे अच्छे जाव सविदियगाय-पल्हायणिज्जे ।। २३. तए णं ते वहवे राईसर जाव' सत्थवाहपभिइनो एवं वयासी-- तहेव णं सामी ! जपणं तुम्भे वयह-इमे उदगरयणे अच्छे जाव सव्विदियगाय °. पल्हाणिज्जे ॥ जियसत्तुणा उदगाणयणपुच्छा-पदं २४. तए णं जियसत्तू राया पाणिय-घरियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-एस णं तुमे देवाणुप्पिया! उदगरयणे को प्रासादिते ? २५. तए णं से पाणिय-घरिए जियसत्तु एवं वयासी- एस णं सामी ! मए उदगरयणे सुबुद्धिस्स अंतियाओ आसादिते ॥ २६. तए णं जियसत्तू सुबुद्धि अमच्चं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी- अहो णं सुबुद्धी ! केणं कारणेणं अहं तव अणि? अकते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे जेणं तुमं मम कल्लाकल्लिं भोयणवेलाए इमं उदगरयणं न उवद्वेसि ? तं एस णं तुमे देवाणुप्पिया ! उदगरयणे को उवलद्धे ? सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं २७. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एस णं सामी ! से फरिहोदए । १. पडिसुणाति (ख)। २. सं० पा०-पासाएमाणे जाव विहरइ । ३. सं० पा०-~य णं जाव परमसुइभूए । ४. ना० ११७६। ५. ना० १।१२।१६। ६. ना. १७६। ७. सं० पा० जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे । ८. ना० १२१२।१६। ६. कत्तो (ख); कतो (ग)। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसम अज्झयणे (उदगणाए) २८. तए णं से जियसत्तू सुबुद्धि एवं वयासी-केणं कारणेणं सुबुद्धी ! एस से फरिहोदए ? २६. तए णं सुबुद्धी जियसत्तु एवं वयासी-एवं खलु सामी ! तुब्भे तया मम एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयम, नो सद्दहह । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पतिथए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-अहो णं जियसत्तू राया संते तच्चे तहिए अवितहे सब्भूए जिणपण्णत्ते ° भावे नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ । तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रण्णो संताणं' 'तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं ° सब्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्ठयाए एयमटुं उवाइणावेत्तए-एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता तं चेव जाव' पाणिय-घरियं सदावेमि, सद्दावेत्ता एवं वदामि--तुमं णं देवाणुप्पिया ! उदगरयणं जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेहि । तं एएणं कारणेणं सामी! एस से फरिहोदए । जियसत्तुणा जलसोधण-पदं ३०. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमद्वं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे अभितरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! अंतरावणानो नवए घडए पडए य गेण्हह जाव' उदगसंभारणिज्जेहिं दव्वेहि संभारेह । तेवि तहेव संभारेंति, संभारेत्ता जियसत्तुस्स उवणेति ।। जियसत्तुस्स जिण्णासा-पदं ३१. तए णं से जियसत्तू राया तं उदगरयणं करयलंसि आसाएइ, आसाएत्ता आसायणिज्जं जाव सव्विदियगाय-पल्हायणिज्ज जाणित्ता सुबुद्धि अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-सुबुद्धी ! एए णं तुमे संता तच्चा' तहिया अवितहासब्भूया भावा कमी उवलद्धा? सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं ३२. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एए णं सामी ! मए संता' 'तच्चा तहिया अवितहा सब्भूया ° भावा जिणवयणाओ उवलद्धा । १. सं० पा०-संते जाव भावे । २. सं० पा०-संताणं जाव सम्भूयाणं । ३. ना० १२१२।१६,२० । ४. ना० ११२।१६,२० । ५. ना० १११२।४। ६. सं. पा.-तच्चा जाव सन्भूया। ७. सं० पा०-संता जाव भावा । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माधाधम्मकहाम्रो ३३. तए णं जियसत्तू सुबुद्धि एवं वयासो-तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! तव अंतिए जिणवयणं निसामित्तए ॥ जियसत्तुस्स समणोवासयत्त-पदं ३४. तए णं सुबुद्धी जियसत्तस्स विचित्तं देवलिपण्णत्तं चाउज्जामं धम्म परिकहेइ । ३५. तए णं जियसत्तू सुबुद्धिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हदतुटे सुबुद्धि अमच्च एवं वयासी-सदहामि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पाक्यणं । पत्तियामि णं देवाणुप्पिया ! निग्गथं पावयणं । रोएमि ण देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं । अब्भुतुमि णं देवाणुप्पिया! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं देवाणु प्पिया ! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियभेयं देवाणुप्पिया! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया! इच्छिय-पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! ० से जहेयं तुम्भे वयह । तं इच्छामि णं तव अंतिए 'चाउज्जामियं गिहिधम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ।। ३६. तए णं से जियसत्तू सुबुद्धिस्स अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्म पडिवज्जइ ॥ ३७. तए णं जियसत्तू समणोवासए जाए -अहिगयजीवाजोवे जाव' पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ पव्वज्जा-पदं ३८. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं ! जियसत्तू राया सुबुद्धी य निग्गच्छइ । सुबुद्धी धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासो'-जं नवरं -जियसत्तुं आपुच्छामि 'तम्रो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं ° पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! ३९. तए णं सुबुद्धी जेणेव जियसत्तू तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी एवं खलु सामी ! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते । से वि य धम्मे 'इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए" । तए णं अहं सामी ! संसारभउव्विग्गे भीए जम्मण १. परिकहेइ तमाइक्खइ, जहा.-जीवा बझंति द्रष्टव्यम् ---११५।४५ सूत्रस्य पाद टिप्पणम् । जाव पंचाणुव्वयाई । द्रष्टव्यम्-११५४५ ५. ना० ११५२४७ । सूत्रस्य प्रथमं पादटिप्पणम् ! ६. निग्गच्छंति (क, ग)। २. सं० पा०--पावयणं जाव से जहेयं । ७. पू०–ना० ११११०१। ३. पंचाणुब्बइयं सत्तसिक्खावइयं जाव (क, ख, ८. सं० पा०—आपुच्छामि जाव पव्वयामि । ग. घ) । द्रष्टव्यम्-११०४५ सूत्रस्य ६. इच्छिए पडिच्छिए ३ (क); इच्छियपडिच्छिए पादटिप्पणम् । (ख, ग)। ४. पंचाणुव्वइयं जाव' दुवालसविहं (क,ख,ग,घ)। १०. सं० पा०-भीए जाव इच्छामि । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसम अज्झयणं (उदगणाए) २३५ जर-मरणाणं ° इच्छामि णं तुब्भेहिं अभणुण्णाए' समाणे थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइत्तए ।। ४०. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि एवं वयासी-अच्छसु ताव देवाणुप्पिया ! कइवयाई वासाइं उरालाई 'माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणा तओ पच्छा एगयो' थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता' •णं अगारामो अणगारियं' पव्वइस्सामो।। ४१. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमटुं पडिसुणेइ ।। ४२. तए णं तस्स जियसत्तुस्स रण्णो सुबुद्धिणा सद्धि विपुलाइं माणुस्सगाई काम भोगाई पच्चणब्भवमाणस्स दवालस वासाइं वीइक्कंताई। ४३. तेणं कालेणं तेण समएण थेरागमण । जियसत्तू राया धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासी–जं नवरं-देवाणुप्पिया ! सुबुद्धि अमच्चं आमंतेमि, जेट्टपुत्तं रज्जे ठावेमि', तए णं तुभण्ण' 'अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं ° पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! ४४, तए णं जियसत्त राया जेणेव सए मिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूवृद्धि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु भए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते जाव" पव्वयामि । तुम णं कि करेसि" ? ४५. तए णं सुबुद्धी जियसत्तं रायं एवं वयासी-जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउविगा जाव पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के अण्णे पाहारे वा ग्रालंबे वा ? अहं वि य णं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विगे जाव° पव्वयामि । तं जइ णं देवाणप्पिया! जाव पव्वाहि । गच्छह णं देवाणप्पिया! जेट्रपत्तं ५ कुडुबे ठावेहि, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुहित्ता णं ममं अंतिए पाउब्भवउ । सो वि तहेव पाउब्भवइ ।। १. सं० पा०-अब्भणुण्णाए जाव पृथ्वइत्तए। १०. ना० १११२१३६ । २. तत्थ (क); अच्छासु (ख, ग); अच्छ (घ)। ११. पू०~-ना० ११५१८६ । ३. कतिवयाति (ख, ग)। १२. सं० पा०—वयासी जाव के अन्ने आहारे ४. सं० पा०-उरालाई जाव भुजमाणा! वा जाब पव्वयामि । ५. एगओ (ख, ग)। १३. ना० १२५।०६। ६. सं० पा०-भविता जाव पव्वइस्सामो। १४. पवामि (क, ग)। ७. जाव (क)। १५. °पुत्तं च (क, ख, ग)। ८. ठवेमि (ख, ग, घ)। ६. तुब्भे णं (ख, घ); सं० पा०--तुब्भण्णं जाव पव्वयामि। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ नायाम्म हाओ ४६. तए णं जियसत्तू राया को बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणुपिया ! श्रदीणसत्तुस्स कुमारस्स रायाभिसेयं उवद्ववेह । ते वि तव उट्ठति जाव' ग्रभिसिचति' जाव' पव्वइए || ४७. तए णं जियसत्तू रायरसी' एक्कारस अंगाई ग्रहिज्जर, अहिज्जित्ता', बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए प्रत्ताणं सित्ता जाव सिद्धे || ४८. तए णं सुबुद्धी एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियाग पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं भूसित्ता जाव' सिद्धे ॥ निक्खेच- पदं ४६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स मट्ठे पण्णत्ते । --त्ति बेमि || वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा मिच्छत्त- मोहियमणा, पावपसत्ता विपाणिणो विगुणा । फरिहोदगं व गुणिणो, हवंति वरगुरुपसायाश्री ॥१॥ १. ना० १३५।६३, ९४ । २. अभिसिचंति ( क, ख, ग ) 1 ३. ना० ११५३६५-६६ । ४. × (क, ख, ग ) । ५. अहिज्जिऊण ( ख ) । ६. ना० १२५ १०५ । ७. ना० ११५ ।१०५ । Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं मंडुक्के उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, ते रसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं 'रायगिहे नयरे । गुण सिलए चेइए। समोसरणं' । परिसा निग्गया ।। ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे ददुरडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए ददुरंसि सीहासणंसि ददुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहि चउहि अग्गमहिसीहिं सपरिसाहिं एवं जहा सूरियाभे जाव' दिवाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे जाव' नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए, जहा-सूरियाभे ।। गोयमस्स पुच्छा-पदं ४. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--अहो णं भंते ! ददुरे देवे महिड्डिए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे ॥ ५. ददुरस्स णं भंते ! देवस्स सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे कहिं गए ? कहिं अणुपविट्ठे ? गोयमा ! सरीरं गए सरीरं अणुपविढे कूडागारदिलुतो ॥ १. 'घ' प्रतौ अत्र विस्तृतः पाठो विद्यते । २. राय० सू०७ ३. राय० सू० ७-१२० । ४, राय० सू० १२३ । २३७ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ नायाधम्मकहामो ६. ददुरेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए' ? भगवो उत्तरे ददुरदेवस्स नंदभव-पदं ७. एवं खलु गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। ८. तत्थ णं रायगिहे नंदे नाम मणियारसेट्ठी--अड्ढे दित्ते' ।। नंदस्त धम्मपडिवत्ति-पदं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! समोसढे। परिसा निग्गया। 'सेणिए वि निग्गए। १०. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी इमीसे कहाए लढे समाणे पायविहारचारेणं' जाव पज्जुवासइ ॥ ११. नंदे मणियारसेट्ठी धम्म सोच्चा समणोवासए जाए । १२. तए गंऽहं रायगिहाओ पडिनिक्खते बहिया जणवयविहारेणं' विहामि ।। मिच्छत्तपडिवत्ति-पदं। १३. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी अण्णया कयाइ असाहुदंसणण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जवेहि परिहायमाणेहि-परिहायमाणेहि मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवड्डमाणेहि-परिवड्डमाणेहि मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे जाए यावि होत्था ।। १४. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्टामूलंसि मासंसि अट्टमभत्तं परिगेण्हइ, परिगेण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी उमुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भ संथारोवगए ° विहरइ ।। पोखरिणी-निम्माण-पदं १५. तए णं नंदस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि तण्हाए छुहाए य अभिभूयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाधण्णाणं ते •ईसरपभियओ, संपुण्णा णं ते ईसरपभियओ, कयस्था गं ते १. पू०.-राय० सू० ६६७ । ६. विहारं (ख)। २. पू०-ना० ११५७ । ७. X(क, ख, ग)। ३. सेणिए राया निग्मए (क); राया निग्गओ ८. सं० पा०-पोसहसालाए जाब विहरइ । (ख); राया निग्गए (ग)। ६. तण्हा (ग)। ४. पायचारेणं (क, ख, ग)। १०. सं० पा०--धण्णा ते जाव ईसरपभियओ। ५. उवा० ११२० । Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्भवणं (मंडुक्के) सरपभियो, कयपुष्णा णं ते ईसरपभियश्रो, कयलक्खणा णं ते ईसरपभिय कयविभवा णं ते " ईसरपभियो, जेसि णं रायगिहस्त बहिया बहूओ वावीश्रो पोक्खरिणीओ' 'दीहियाओ गुंजालियाओ सरपंतिया सरसरपंतियाग्रो, जत्थ णं बहुजणो 'हाइ य पियइ य" पाणियं च संवहइ । तं सेयं खलु मम कल्लं' पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दियरे तेयसा जलते सेणियं रायं प्रपुच्छित्ता रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे वेव्भारपव्वयस्स दूरसामंते वत्थुपाढग - रोइयंसि भूमिभागंसि नंद पोक्खरिणि खणावेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्मिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पोसहं पारेइ, पारेता पहाए कयबलिकम्मे मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि° संपरिवुडे महत्थं" "महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेहइ, गेव्हित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ जाव' पाहुडं उवट्टवेइ, उवद्ववेत्ता एवं क्यासी - इच्छामि णं सामी ! तुब्भेहिं प्रब्भणुण्णाए समाणे रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभागे वेब्भारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढगरोइयंसि भूमिभागसि नंदं पोक्खरिणि खणावेत्तए । अहासुदेवाणुपिया ! १६. तए ण से नंदे मणियारसेट्ठी सेणिएणं रण्णा श्रब्भणुण्णाए समाणे हट्टतुट्टे रायगिहं नगरं मज्झमज्भेणं निम्गच्छर, निगच्छित्ता वत्थुपाढय - रोइयंसि भूमिभागंसि नंद पोक्खरिणि खणावेउं पयत्ते यावि होत्था | १७. तए णं सा नंदा पोक्खरणी प्रणुपुवेणं खम्ममाणा खम्ममाणा पोक्खरणी जाया यावि हत्था -- चाउक्कोणा समतीरा अणुपुव्वं सुजायवप्पसीयलजला संछन्न"पत्त - भिसमुणाला " बहुउप्पल-परम- कुमुद नलिण-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय-महापुंडरीय सयपत्त सहस्तपत्त - पप्फुल्ल केस रोववेया" परिहत्थ भमंत मत्तछप्पय - १. सं० पा० - पोक्खरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ । २. व्हाइ पियइ ( क, ख ) 1 ३. ना० १११।२४ ४. सं० पा०-नाइ जाव संपरिवुडे । ५. सं० पा० – महत्थं जाव पाहुडं रायारिहं २३६ ( क, ख, ग, घ ) ; पाहुडं रायारिहं अत्र लिपिदोषेण व्यत्ययो जात इति संभाव्यते । १३. महच्छप्पय ( क ) | ६. ना० १।५।२० ७. सं० पा० - बहिया जाव खणावेत्तए । ८. खणमाणा (घ ) । A. चउक्कोणा ( क ) 1 १०. संच्छन्न (क, ख, ग, घ ) । ११. विस० ( ख, ग ) । १२. पुप्फफल केसरोविया ( क ) ; प्फुल्लप्पलकेसरोचिया ( ख ) ; फुल्ल केसरोववेया (घ ) | Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० नायाधम्मक हाओ -गण-मण-वियरिय-सदुन्नइय' - महरसरनाइया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ aणसंड-पदं १८. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी नंदाए पोक्खरिणीए चउदिसिं चत्तारि वणसंडे रोवावेइ ॥ १६. तए णं ते वणसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संबडिज्जमाणाय वणसंडा जाया - किव्हा जाव' महामेह - निउरंबभूया पत्तिया पुफिया - ● फलिया हरियग - रेरिज्जमाणा सिरीए ग्रईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ चित्तसभा-पदं २०. तए गं नंदे मणियारसेट्ठी पुरथिमिल्ले वणसंडे एवं महं चित्तसभं कारावेइ - प्रगखं भसयस णिविट्ठ" पासाईयं दरिसणिज्जं श्रभिरूवं पडिरूवं । तत्थ णं बहूणि किण्हाणि नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य सुक्किलाणि कम्मणि य पोत्थकम्माणि य चित्त-लेप्प-गंथिम-वेढिम-पूरिम- संघाइमाई' उवदंसिज्जमा णाई - उवदंसिज्जमाणाई चिट्ठति । तत्थ णं बहूणि सणाणि य सयणाणि य अत्थुय-पच्चत्थुयाई चिट्ठति । तत्थ णं बहवे 'नडा य'" नट्टा य' जल्ल-मल्ल- मुट्ठिय-वे लंबग-कम-पवग-लासगआइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल - तुंबवीणिया य दिन्नभइ - भत्त - वेयणा तालायरकम्मं करेमाणा - करेमाणा विहरति । refigar एत्थ" णं बहुजणो तेसु पुव्वन्नत्थेसु श्रासण-सयणेसु सणसष्णो" य संतुयट्टो य सुयमाणो य 'पेच्छमाणो य 'साहेमाणो य" सुहंसुहेणं विहरइ || १. सदुनइय ( क ग ) ; सदनइय ( ख, घ ) । असौ पाठ: जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ( मुद्रित प्रति सू० ७४) राधारेण स्वीकृत: २. ना० १।७।१३ । ३. सं० पा० - पुफिया जाव उवसोभेमाणा । ४. करावेइ (ख) ! ५. पू० ना० २११८६ | ६. सं० पा० - किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि । ७. संघातिम (क, ख, ग, घ ) 1 ८. X ( ग, घ ) । ६. सं० पा०-- नट्टा य जाव दिन्न । १०. तत्थ ( क ) । ११. उच्चत्यसंनिसणी ( क ) 1 १२. X ( ख, ग, घ ) । १३. x ( ख, ग ); सोहेमाणो य (घ ) | Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झणं (मंडुक्के) महाणसाला पद २१. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी दाहिणिल्ले वणसंडे एगं महं महाणससाल कारावेइअभयfणवि जाव' पडिरूवं । तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्तवेयणा' विउलं असण- पाण- खाइम साइमं उबक्खडेंति, बहूणं समण-माहणअतिहि किवण-वणी गाणं परिभाषमाणा - परिभाएमाणा विहति ॥ तिनिच्छियसाला-पदं २२. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी पच्चत्थिमिल्ले वणसंडे एवं महं तिगिच्छियसालं कारावेइ'--ग्रणेगखंभसयसण्णिविट्ठे जाव' पडिरूवं । तत्थ णं बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ताय ' जाणुयाय जाणुयपुत्ता य" कुसला य कुसलपुत्ता य दिन्नभइभत्त-वेणा बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य तेइच्छकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरति । अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिन्नभइ - भत्त-वेणा तेसिं बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य श्रोसह्-भेसज्ज-भत्तपाणेणं पडियारकम्मं करेमाणा विहरति ॥ अलंकारियसभा-पदं २३. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वणसंडे एवं महं अलंकारियसभ कारावेइ' – अणेगखंभसयसणिविट्ठे जाव' पडिरूवं । तत्थ णं बहवे अलंकारियमस्सा दिन्नभइ भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य प्रणाहाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य अलंकारियकम्मं करेमाणा - करेमाणा विहरति ॥ नंदस्स पसंसा-पदं २४. तए णं तीए नंदाए पोक्खरिणीए वहवे साहाय अणाहा य पंथिया य पहिया य करोडिया' य तणहारा य पत्तहारा य कट्टहारा य - अप्पेगइया हायंति अप्पेगइया पाणियं प्रियंति अप्पेगइया पाणियं संवहंति" अप्पेगइया विसज्जियसेयजल्ल-मल परिस्सम- निद्द -खुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरति । रायगिविणिग्गओ" १. ना० १११८६ | २. दिन्नभय ० ( ग ) सर्वत्र । ३. कारेइ (क, ग, घ ) । ४. ना० १।११८६ ५. X ( क ) । ६. करेइ (ख, ग ); कारेति (घ ) | २४१ ७. ना० ११११८६ | ८. ६. करोडिकारवा ( ख, ग ) १०. संवाहति ( क, ख ) । ११. रायगिनिग्गओ ( ख, ग ) । माहणाण य सनाहाण य ( क्व० ) । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ नायाधम्मकहाओ वि यत्थ' बहुजणो 'कि ते" जलरमण-विविहमज्जण-कयलिलयाहरय'-कुसुमसत्थरय-अणेगसउणगण-कर्यारभियसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो-अभिरम माणो विहरइ ।। २५. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए' बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवं वयासी-धण्णे' णं देवाण प्पिया ! नंदे मणियारसेट्टो, कयत्थे •णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कया णं लोया ! सुलद्धे माणुस्सए • जम्मजीवियफले [नंदस्स मणियारस्स ?] ? जस्स णं इमेयारूवा नंदा पोक्खरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा" जाव" रायगिहविणिग्गो जत्थ बहुजणो आसणेसु य सयणेसु य सण्णिसण्णो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ । तं धन्ने णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी, कयत्थे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्टी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवाणु प्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कया णं लोया ! सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स ? २६. तए णं रायगिहे सिंघाडग- तिग-च उक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ धन्ने णं देवाणप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी सो चेव गमओ जाव सुहंसुहेणं विहरइ ।। २७. तए णं से नंदे मणियारसेट्टी बहुजणस्स अंतिए एयम₹ सोच्चा निसम्म हरतुदे ___'धाराहत - कलंबगं विव'१५ समूसवियरोमकूवे परं सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ॥ नंदस्स रोगुप्पत्ति-पदं २८. तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि सोलस रोगा यंका" पाउब्भूया। [तं जहा १. जत्थ (क, ख); तत्थ (घ)। २. किं तत् 'यत् करोति' इति शेषः । ३. घरय (क)। ४. अभिरममाणे (क)। ५. पुक्खरणीए (क); पोक्खरणीए (ख)। ६. वा (क)। ७. धण्णेसि (क, घ)! ८. सं० पा०-कयत्थे जाव जम्म° । ९. ना० १।१३।१७ । १०. पडिरूवा जस्स णं पुरथिमिल्ले तं चेव ___ चउसु वि वणसंडेसु (क, ख, ग, घ) । ११. ना० १६१३३१८-२४ । १२. सं० पा०-सिंघाडग जाव बहुजणो। १३, धाराहयकलंबकं पिव (ख, ग); कयंबक पिव (घ)। १४. रोगातंका (क); रोयायंका (ख)। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयण (मंडुक्के) गाहा— सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदरे । रिसा अजीरए दिट्ठी - मुद्धसूले' अकार || च्छिणा कण्णवेणा कंडू दउदरे कोढे ॥ १ ॥ ] तिमिच्छा-पदं २६. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सोलसहि रोयाय केहि श्रभिभूए समाणे कोडुंबिय - पुसेसावे, सहावेत्ता एवं वयासी गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! रायगिहे नयरे सिंघाडग" - "तिग- चउक्क चच्चर-चउम्मुह - महापह पहेसु महया मया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह-- एवं खलु देवाणुप्पिया ! नंदस्स मणियारस सरीरगंसि सोलस रोयायका पाउन्भूया | [ तं जहा - सासे जात्र कोढे'] । तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया ! विज्जो वा विज्जपुत्तो वा जाणो वा जाणुत्रपुत्तो वा कुलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसि चणं सोलसह रोगायकाणं एगमवि रोगायक उवसामित्तए, तस्स णं नंदे मणियारसेट्ठी विउ प्रत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कट्टु दोच्चपि तच्चपि घोसणं' घोसेह, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह । तेवि तहेव पच्चष्पिणति ॥ ३०. तए णं रायगिहे नगरे इमेयारूवं घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य' वेज्जगुत्ताय जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य० कुसलपुत्ता य सत्यको सहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य श्रोसह - भे सज्ज हत्थगया य सहिसहि गिहितो निक्खमंति, निक्खमित्ता रायगिहं मज्झमज्भेणं जेणेव नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स गिहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता नंदस्स मणियारमेट्ठिस्स सरी पासंति, पासित्ता तेसि रोगायंकाणं नियाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता नंदस्स मणियारसेट्टिस्स वहूहि उव्वलणेहि" य उब्वट्टणेहि य सिणेहपाणेहि" य वमणेहि विरेणेहिय सेयहि य अवदहहि य श्रवण्हावणेहि" य अणुवासणाहि" य कम्मे निरूहेहि" य सिरावेहेहि य तच्छणाहि य पच्छणाहि य १. प्रायारो ६८ सूत्रे षोडशरोगविवरणे भिन्तः क्रमो विद्यते । २. मुद्धिसूले ( क ); पुट्टसूले ( ग ) । ३. दओदरे ( ख ) । ४. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. उग्घोसणं ( क ) ८. सं० पा० - वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता ! ६. सरीरं ह्स्स ( क ) । १०. उवेलणेहि (ग) 1 ११. सिहि य पाणेहि य ( ख ) | १२, अवद्वाणाहि ( क ) : ५. सं० पा० – सिंघाडग जाव पहेसु । ६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । १४. ० वासणे हि (ध) | १५. निख्वेहि ( ख ) । २४३ वेणाहि ( ग ) । १३. अवण्हावणाहि (क); अवण्हाणेहि (ख, घ) । अवहणेहि ( ख ) | Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ नायाधम्मकहाओ सिरावत्थीहि य तप्पणाहि य पुडवाएहि य 'छल्लीहि य वल्लीहि य२ मूलेहि य कदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य प्रोसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायक' उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामेत्तए ।। ३१. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जयुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाएं एगमवि रोगायंक उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता' निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं° पडिगया ।। भगवनो उत्तरे ददुरदेवस्स ददुरभव-पदं ३२. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी तेहिं सोलसेहिं रोगायकेहिं अभिभूए समाणे नंदाए पुक्खरिणीए मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तिरिक्खजोणिएहिं निबद्धाउए बद्धपएसिए अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए पोक्खरिणीए ददुरीए कुच्छिसि ददुरत्ताए उववण्णे ।।। ३३. तए णं नंदे' ददुरे गन्भारो विणिमुक्के समाणे उम्मुक्कवाल भावे विण्णय परिणयमित्ते" जोवणगमणुप्पत्ते नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ ।। ३४. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण" एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइधन्ने णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारे, जस्स णं इमेयारूवा नंदा पुवखरिणी चाउक्कोणा जावपडिरूवा" ।। ददुरस्स जाइसरण-पदं ३५. तए णं तस्स ददुरस्स तं अभिक्खणं-अभिक्खणं बहुजणस्स अंतिए एयमढें १. सिरावेहेहि (क); अवरहसिरावस्थीहि ७. नंदे जीवे (घ)। (ख); सिरावेढेहि य (ग)। ८. ददुरीए (घ)। २. छल्लीहि य (ख); वल्लीहि य छल्लीहि य ६ उमुक्क (ख, घ)। १०. विण्णाय ० (घ)। ३. य आसज्जेहि य (क, ग); आइज्जेहि य ११. अण्णमण्णस्स (क, ग, घ)। १२. ना० १११३१७।। ४. रोगातंक (क, ग)। १३. पडिरूवा जस्स णं पूरस्थिमिल्ले वणसंडे ५. विज्जा (क, ख, ग)। चित्तसभा अणेगखंभ(क, ख, ग, घ); पू०६. सं० पा.-परितंता जाव पडिगया । ना० १११३॥१८-२४ । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं प्रज्झयणं (मंडुक्के) २४५ सोच्चा निसम्म' इमेयारुवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-कहि मन्ने मए इमेयारूवे सद्दे निसंतपुवेत्ति कटु सुभेण परिणामेणं •पसत्थेणं अज्झवसाणेण लेसाहिं विसुज्जमाणोहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुव्वे जाईसरणे समु प्पण्णे, पुव्वजाइं सम्म समागच्छइ॥ ३६. तए णं तस्स ददुरस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इहेव रायगिहे नयरे नंदे नाम मणियारे-अड्ढे । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । तए णं मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वाइए सत्तसिक्खावइए'- दुवालसविहे गिहिधम्मे ° पडिवण्णे । तए णं अहं अण्णया कयाइ असाहुदसणेण य जाव मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे । तए णं अहं अण्णया कयाई गिम्हकालसमयंसि जाव पोसहं उवसंपज्जित्ता ण विहरामि। एवं जहेव चिता। प्रापुच्छणा। नंदापुक्खरिणी। वणसंडा । सभायो । तं चेव सव्वं जाव' नंदाए ददुरत्ताए उववण्णे। तं ग्रहो णं अहं अधणे " अपुणे" अकयपुण्णे निग्गंथाप्रो पावयणाम्रो नभट्ठ परिभट्टे । तं सेयं खलु मम सयमेव पुवडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाई" उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तएएवं सपेहेइ, संपेहेत्ता पुव्वपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाई आरुहेइ, पारुहेत्ता इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे जावज्जीवं छटुंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए, छट्ठस्स वि य ण पारणगंसि कप्पइ मे नंदाए पोक्खरिणीए परिपेरतेसु फासुएणं ण्हाणोदएणं उम्मद्दणालोलियाहि" या वित्ति कप्पेमाणस्स विहरित्तए-इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ, जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं ५ अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे • विहरइ ।। भगवनो रायगिहे समवसरण-पदं ३७. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! गुणसिलए समोसढे । परिसा निग्गया ।। १. निसम्मा (ख, ग)। १०. अहन्ने (ख, ग)। २. से कहिं (क्व०)। ११. अकयत्थे (घ)। ३. °पुव्व (ख) १२. पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई (घ)! ४. स. पा. परिणामेण जाव जाईसरणे। १३. आरुहइ (ख)। ५. पू०-ना० ११५७ । १४. उम्मद्दणो० (क, ख, ग); उम्मद्दणाई ६, सं० पा०—सिक्खावइए जाव पडिवणे । ____ लोलियाहि (घ)1 ७. ना. १.१३.१३ । १५. 'मट्टियाए' इति शेषः। ८. ना० १।१३।१४।। १६. सं० पा०-छटुंछट्रेणं जाव विहरड् । ६. ना० १११३३१५-३२ । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ नायधम्मकाहाओ ३८. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ‘ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य" अण्णमण्ण' •एवमाइक्ख इ-एवं खलु ° समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसिलए चेइए समोसढे । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया। समणं भगवं महावीरं वंदामो•णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे इहभवे परभवे य हियाए 'सुहाए खमाए निस्सेयसाए° आणुगामियत्ताए भविस्सइ ।। दद्दुरस्त समवसरणं पड़ गमण-पदं ३६. तए णं तस्स ददुरस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु समणे भगवं महावीरे समोसढे । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि'- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता नंदामो पोखरिणीयो सणियं-सणियं पच्चुत्तरेइ', जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए ददुरगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। इमं च ण सेणिए राया भंभसारे पहाए जाव सव्वालंकारविभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उदधुव्वमाणेहि महयाय-गय-रह-भड-चडगर-[कलियाए ?] चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे मम पायदए हन्वमागच्छइ ॥ ददुरस्स मच्चु-पदं ४१. तए णं से दद्दुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अक्कते समाणे अंतनिग्घाइए कए यावि होत्था ॥ ४२. तए णं से ददुरे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कटु एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-नमोत्थु णं अरहताणं जाव" सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवनो महावीरस्स जाव" सिद्धिगइनामधेनं ठाणं १. हाइ ३ (क, ख, ग); ण्हाणे य ३ (घ)। __ असौ पाठः ३४ सूत्रेण पूरितः । २. सं० पा० -अण्णमण्णं जाव समणे । ३. सं. पा.-~-वंदामो जाव पज्जुवासामो। ४. हिययाए (क, ख, ग) सं० पा०-हियाए जाव आणुगामियत्ताए। ५ पू०--ना० १.१३॥३७ । ६. उत्तरेइ, २ (ख)। ७. उक्किट्ठाए ५ (क, ख)1 ८. भिभिसारे (क); भिभसारे(ख); भिभासारे (घ)। ६.ना० ११११११ । १०,११. ओ० सू० २१ । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरस में अज्झयणं (मंडुक्के) १४७ संपाविउकामस्स । पुविपि य णं मए समणस्स भगवओ महावो रस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए', 'थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थूलए मेहुणे पच्चक्खाए°, थूलए परिगहे पच्चक्खाए। तं इयाणि पि तस्सेव अंतिए सन्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवं, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं पच्चक्खामि जावज्जीव । जंपि य इमं सरीर इटुं कंतं जाव' मा णं विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु एयंपि य णं चरिमेहिं ऊसासेहि वोसिरामि त्ति कटु ॥ तए णं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव' सोहम्मे कप्पे ददुरवडिसए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववण्णे । एवं खलु गोयमा ! ददुरेणं सा दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । ४४. ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता । से णं ददुरे देवे महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ' 'मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ ।। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू ! समणणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। --त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा संपन्नगुणो वि जनो', सुसाहु-संसग्गवज्जियो पायं।। पावइ गुणपरिहाणि, ददुरजीवोव्व मणियारो ॥१॥ अथवा तित्थयर-बंदणत्थं, चलिओ भावेण पावए सगं । जह ददुरदेवेणं, पत्तं वेमाणिय-सुरत्तं ॥२॥ १. सं० पा०-पच्चक्खाए जाव थूलए। २. ना० १११।२०६। ३. ना० १.११२११ । १५. ना० ११ ४. सं० पा०-बुज्झिहिइ जाव अंतं । ५. ना० १४११७ । ६. जिप्रो (ख, ग)। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसमं अज्झयणं तेयलो उक्खे व-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तेरसमस्स नायझ यणस्स अयमट्टे पण्णत्ते, चोद्दसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्रे पण्णते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरं नाम नयरं । पमयवणे उज्जाणे । कणगरहे राया ॥ ३. तस्स णं कणगरहस्स पउमावई देवी ।। ४. तस्स णं कणगरहस्स तेयलिपुत्ते नामं अमच्चे–'साम-दंड-भेय-उवप्पयाण नीति-सूपउत्त-नयविहण्ण' विहरई॥ ५. तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नाम मूसियारदारए होत्था-अड्ढे जाव' अपरिभूए ।। ६. तस्स णं भद्दा नाम भारिया ॥ ७. तस्स ण कलायस्स मूसियारदारगस्स धूया भद्दाए अत्तया पोटिला नाम दारिया होत्था --रूवेण य जोव्वणेण' य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किटु सरीरा॥ पोट्टिलाए कोडा-पदं ८. तए णं सा पोट्टिला दारिया अण्णया कयाइ हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडिया-चक्कवाल-संपरिवुडा उप्पि पासायवरगया पागासतलगंसि कणग'तिदूसएणं कोलमाणी-कीलमाणी विहरइ ।। १. ना० १११७। ४. ना० १।५।७। २. सं० पा.-साम-दंड ° ! असी अपूर्ण: ५. अत्तिया (क, ख, ग)। ___ पाठ: 'जाव' आदिपूर्तिसंकेत-रहितोस्ति । ६. x (ग)। ३. पू.-ना० १.१॥१६ ७. कणगमयेण (घ)। २४६ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ पोहसम अल्झयणं (तेयली) तेयलिपुत्तस्स प्रासत्ति-पदं १. इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे बहाए प्रासखंधवरगए महया-भड-चडगर-पासवाह णियाए निज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामतेणं वीईवयइ।। १०. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे वीईवयमाणे पोट्टिलं दारियं उप्पि आगासतलगंसि कणग-तिदूसएणं कीलमाणि पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोवणे य लावणे य अज्झोववण्णे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया कि नामधेज्जा वा? ११. तए णं कोडुबियपुरिसा तेयलिपुत्तं एवं वयासी-एस णं सामी ! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नाम दारिया- रूवेण य' •जोधणेण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठ ° सरीरा ॥ पोट्टिलाए वरण-पदं १२. तए णं से तेयलिपुत्ते पासवाहणियाओ पडिणियत्ते समाणे अभित रठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूयं भद्दाए अत्तयं पोटिलं दारियं मम भारिय त्ताए वरेह ॥ १३. तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्टा करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु “एवं सामी'! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तेयलिस्स अंतियानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता' जेणेव कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहे तेणेव उवागया । १४. तए णं से कलाए मूसियारदारए ते पुरिसे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतट्टे आसणामो अब्भुटेइ, अब्भुढेत्ता सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता प्रासणेणं उवणिमंते इ, उवणिमंतेत्ता पासत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी-संदिसंतु __णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपओयणं? १५. तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा कलायं मूसियारदारयं एवं वयासी अम्हे णं देवाणुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारियत्ताए वरेमो। तं जइ णं जाणसि' देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा ३. जाणासि (ग)। १. सं० पा०-रूवेग य जाव सरीरा। २. संपा०-करयल तहत्ति जेणेव । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० मायाधम्मकहाओ सलाहणिज्ज वा सरिसो वा संजोगो वा दिज्जउ णं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स । तो भण देवाणुप्पिया! किं दलामो सुकं ।। १६. तए णं कलाए मूसियारदारए ते अभित रठाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी-एस चेव गं देवाणु प्पिया! मम सुंके जपणं तेयलिपुत्ते मम दारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ । ते अभित रठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। १७. इतए णं ते अभित रठाणिज्जा पुरिसा' ?] कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहाम्रो पडिनियत्तंति', जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवा गच्छित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं एयमटुं निवेइंति' ॥ पोट्टिलाए विवाह-पदं १८. तए णं कलाए मूसियारदारए अण्णया कयाइं सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त मुहत्तंसि पोटिलं दारियं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरुहेत्ता मित्त-नाइ•नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिकुडे सानो गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सविड्ढीए“ तेयलिपुरं नयरं मझमझणं जेणेव तेयलिस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ ।। १६. तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता हवतुट्टे पोट्टिलाए सद्धि पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहि कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोम कारेइ, कारेत्ता पाणिग्गहणं करेइ, करेत्ता पोट्टिलाए भारियाए" मित्त-नाइ- नियग-सयण-संबंधि°-परियणं विउलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ- गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। २०. तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाई •माण स्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणे ° विहरइ ।। १. ता (क, घ)। ७. सं० पा०-नाइ० । २. सुक्क (घ)। ८. पू०-ना० ११११३३ । ३. जाव (ख, घ)। ६. सेयपीएहिं (ग)। ४. कोष्ठकान्तर्गतः पाठः प्रतिषु नोपलभ्यते। १०. भारियाए सद्धि (घ)। ५. नियत्तंति २ (क, ख, ग); परिनिक्खमई ११. सं० पा०-नाइ जाव परियणं । १२. सं० पा०-वत्थ जाव पडिविसज्जेइ । ६. निवेयंति (ख); निवेत्तेति (ग)। १३. सं० पा०-उरालाई जाव विहर। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोसमं णं (तैयली) कणगरहस्त रज्जासत्ति-पदं २१. तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य" अंतेउरेय मुच्छिए गढ़िए गिद्धे ग्रभोववण्णे जाए जाए पुत्ते वियंगेइ - अप्पेगइयाणं हत्थंगुलिया छिंदइ अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिदइ अप्पेगइयाणं पायंगुटुए छिदइ अप्पेगइया कष्णसक्कुलीओ छिंदइ अप्पेगइयाणं • नासापुडाई फालेइ अप्पेगइयाणं गोवंगाई वियत्तेइ ॥ पउमावईए श्रमच्चेण मंतणा-पदं २२. तए णं तीसे पउमावईए देवीए ग्रण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि श्रयमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे अंतेउरेय मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइअप्पेगइयाणं हत्थंगुलिया छिदइ, प्रप्पेगइयाणं हत्थंगुट्टए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलिया छिंद,अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, ग्रप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ अप्पेगइयाणं • अंगमंगाई वियत्तेइ' । तं जइ णं अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सियय' चेव सारवखमाणीए संगोवेमाणीए विहरितए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तेयलिपुत्तं मच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खलु देवागुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य° र य बले य वाहणे य कोसे य कोट्टागारे य पुरे य अंतेरेय मुच्छिए गढ़िए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ- अप्पेगइयाणं हृत्थंगुलियाओ छिदइ अप्पेगइयाणं हत्थंगुटुए छिंदइ, प्रप्पेगइयाणं पायंगुलियानो छिंदइ अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई० वियत्तेइ । तं जणं अहं देवाणुप्पिया ! दारंगं पयायामि, तए णं तुमं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुध्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि । तए णं से १. x ( क, ख, ग, घ ) | १|१|१६ सूत्रवद् अत्रापि 'पुरे य' इति पाठो युज्यते । २. सं० पा० - एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्टए fव नासापुडाई fa horar ३. वियंगेइ (क, घ) 1 ४. सं० पा० - रज्जे य जाव वियंगेइ जाव २५१ अंगमंगाई । ५. वियंगेइ (क, ख, ग, घ ); २१ सूत्रानुसारेण अत्र 'वियतेइ' ति पाठेन भवितव्यम् । अतोऽस्माभिः स एव स्वीकृतः । ६. रहस्तिगतं ( क ) ; रहसिययं ( ख, ग ) । ७. सं० पा० - रज्जे य जाव वियत्तेइ | Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ दारए उम्मुक्कबालभावे' विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते 'तव मम य" भिक्खाभायणे भविस्सइ ॥ २३. तए गं से तेयलिपुत्ते भ्रमच्चे परमावईए देवीए एयमहं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता पडिगए || अवच्च परिवत्तण-पदं २४. तए णं पउमावई देवी पोट्टिला य श्रमच्ची सममेव गव्भं गेहंति, सममेव परिवहति ॥ २५. तए णं सा पउमावई देवी नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव' पियदंसण सुरूवं दारगं पयाया । जं रर्याणि च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं स्यणि चणं पोट्टिला विश्रमच्ची नवण्हं मासाणं विणिहाय मावन्नं दारियं पयाया || २६. तए गं सा पउमावई देवी अम्मधाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह तुम्मो ! यलिपुत्तं रहस्सिययं चैव सद्दावेहि ॥ २७. तए णं सा अम्मधाई तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता अंतेउरस्स श्रवदारेण निग्गच्छइ, निम्गच्छित्ता जेणेव तेयलिस्स गिहे जेणेव तेयलिपुत्ते तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पउमावई देवी सहावेइ || २८. तए णं तेयलिपुत्ते ग्रम्मधाईए अंतिए एयम सोच्चा हट्टतुट्ठे अम्मधाईए सद्धि सागिहाम्रो निग्गच्छइ, निम्गच्छित्ता अंतेउरस्स अवदारणं रहस्तिययं चेव O १. सं० पा० - उम्मुक्कबालभावे जाव जोब्वणगते । पवि णुपविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जो मए काव्वं ॥ २६. तए गं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं वयासी -- एवं खलु कणगरहे राया जाव " पुत्ते वियंगे | अहं च णं देवाणुप्पिया ! दारगं पयाया । तं तुमं णं देवाणुप्पिया ! एवं दारगं गेण्हाहि जाव" तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइत्ति कट्टु तेयलिपुत्तस्स हत्थं दलयइ ॥ २. तव य मम य ( क ) ; ३. भिक्खायभातणे ( ग ) । o ४. ओ० सू० १४३ । ५. रहस्तियं ( क ग ) । ६. अवद्दारेण (ग) 1 Here तव मम ( ग, घ ) 1 ७. सं० पा०-- करवल जाव एवं । ८. सं० पा०—करयल जाव एवं । ६. देवाणु प्पिए (घ ) । १०. ना० १।१४/२१ । ११. ना० १।१४ २३ । १२. भिक्खायभायणे ( ग ) । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ चोद्दसमं अज्झयणं (तेयली) ३०. तए णं तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्थाम्रो दारगं गेण्हइ, उत्तरिज्जेणं पिहेइ, अंते उरस्स रहस्सिययं अवदारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव पोट्टिला भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिए ! कणगरहे राया जाव' पुत्ते वियंगेइ । अयं च णं दारए कणगरहस्स पुत्ते पउमावईए अत्तए । तन्नं तुम देवाणुप्पिए ! इमं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुव्वेणं सारक्खाहि य संगोवेहि य संवढेहि य। तए णं एस दारए उम्मुक्कबालभावे तव य मम य पउमावईए य आहार भविस्स इ त्ति कटु पोट्टिलाए पासे निक्खिवइ, निक्खिवित्ता पोट्टिलाए पासानो तं विणिहायमावण्णियं दारियं मेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहेत्ता अंतेउरस्स अवदारेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमावईए देवोए पासे ठावेइ जाव पडिनिग्गए ।। दारियाए मयकिच्च-पदं ३१. तए णं तीसे पउमावईए देवीए अंगपडियारियानो पउमावइं देवि विणिहाय मावणियं च दारियं पयायं पासंति, पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थर अंजलि कटु एवं वयासी –एवं खलु सामो ! पउमावई देवी मएल्लियं दारियं पयाया ।। ३२. तए णं कणगरहे राया तीसे मएल्लियाए दारियाए नोहरण करेइ, बहुई लोगियाइं मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता कालेणं विगयसोए जाए। अमच्चपुत्तस्स उस्सव-पद ३३. तए णं से तेयलिपुत्ते कल्लं कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चारगसोहण 'करेह जाव' ठिसडियं दसदेवसियं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ३४. तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणति ॥ ३५. जम्हा णं अम्हं एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए तं होउ णं दारए नामेण ___ कणगझए जाव' अलंभोगसमत्थे जाए । पोट्टिलाए अप्पियत्त-पदं ३६. तए णं सा पोट्टिला अण्णया कयाइ तेयलिपुत्तस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया १. ना० १.१४॥२१॥ ४. सं० पा०--चारगसोहणं जाव ठिइपडियं । २. संगोवाहि (ख, ग, घ)। ५. ना० ११११७६-७८ । ३. सं. पा०—करयल । ६. ना० १३११८१-८८ । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाषम्मकहाओ श्रमण्णा श्रमणामा जाया यावि होत्था – नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? ३७. तए णं तीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्ताव रत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकष्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु ग्रहं तेलिस पुवि इट्ठा कंता पिया मणुष्णा मणामा ग्रासि, इयाणि आणिट्ठा कंता अप्पिया श्रमगुण्णा श्रमणामा जाया । नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते मम नाम ' • गोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? [ति कट्टु ? ] हयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियायइ || पोट्टलाए दाणसाला -पदं o २५४ ३८. तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं ओहयमणसंकप्प' करतलपत्हत्थमुहिं प्रट्टज्भाणोवयं भियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी - मा णं तुमं देवाणुप्पिए ! ग्रहयमणसंकप्पा' करतलपल्हत्थमुही अट्टज्भाणोवगया भियाहि । तुमं णं मम महाणसंसि विपुलं असण- पाणखाइम साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण - माहण'- प्रतिहि किवण वणी मगाणं देयमाणी य दवावेमाणी' विहराहि ॥ ० ३६. तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तेणं श्रमच्चेणं एवं वुत्ता समाणी' हट्टा तेयलिपुत्तस्स एयम पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कल्लाकुल्लि महाणसंसि विपुलं असण-' • पाणखाइम साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण - माहण -प्रतिहि किवण-वणीमगाणं देयमाणी य° दवावेमाणी य विहरइ ॥ प्रज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियागमण-पदं ४०. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयायो नाम प्रज्जाश्रो इरियासमियाओ' • भासासमिया एसणासमिया आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमियाश्रो मणसमियाओ उच्चार- पासवण - खेल - सिंघाण जल्ल- पारिट्ठावणियासमिया इस मिया कायसमियाओ मणगुत्ताओ वइगुत्ताओ कायगुत्ता गुत्ताम्रो गुत्तिदिया गुत्तभचारिणीग्रो बहुस्सुयाश्रो बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्वि ० १. सं० पा० - नाम जाव परिभोगं । २. सं० पा० - ओह्मणसंकप्पा जाव झियायइ । ३. सं० पा० - ओहयमणसंकल्पं जाव भियाय माणि ४. सं० पा० - ओहय मणसंकल्पा । ५. सं० पा०-- माहण जाव वणीमगाणं । ६. देवावेमाणी ( क ) । ७. समाणा (ख, ग ) । ८. सं० पा० असणं जाव दवावेमाणी । ६. सं० पा० -- इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणी । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं अज्झयरणं (तेयली) २५५ चरमाणीओ जेणामेव तेयलिपुरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं प्रोगिण्हंति, प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीग्रो विहरंति ॥ ४१. तए णं तासिं सूबयाणं अज्जाणं एगे संघाडए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, भायणवत्थाणि पडिलेहेइ, भायणाणि पमज्जेइ, भायणाणि प्रोग्गाहेइ, जेणेव सुव्वयाओ अज्जारो तेणेव उवागच्छइ, सुन्वयानो अज्जाप्रो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामो णं तुम्भेहि अब्भणण्णाए तेयलीपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ।। ४२. तए णं ताओ अज्जाओ सुव्वयाहिं अज्जाहिं अब्भणुण्णाया समाणीयो सुव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिस्सयानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए गतीए जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरनो रिय सोहेमाणीयो तेयलीपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणीओ तेयलिस्स गिहं अणुपविट्ठामो ॥ पोट्टिलाए अमच्चपसायोवाय-पुच्छा-पदं ४३. तए णं सा पोट्टिला तानो अज्जाओ एज्जमाणोरो पासइ, पासित्ता हतुवा आसणायो अब्भुटेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विपुलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं अज्जायो ! तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पुदिव इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा प्रासि. इयाणि अणिटा कंता अप्पिया अमणण्णा अमणामा जाया। नेच्छा णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण ° दंसणं वा परिभोग वा ? तं तुब्भे णं अज्जाओ बहुनायाओ बहुसिक्खियाओ' बहुपढियाओ वहूणि गामागर - णगर - खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब- पट्टण-आसम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाई आहिंडह, बहूणं राईसर'- तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-से द्वि-सेणावइ-सत्थवाहपभिईणं° गिहाई अणुपविसह । तं अत्थियाइं भे अज्जाओ ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा ‘मंतजोगे वा कम्मणजोए' वा 'कम्मजोए वा" १. सं० पा०--करेइ जाव अडमाणीयो। २. सं० पा० ---अणिट्ठा जाव दंसणं । ३. ४ (क)। ४. सं० पा०-गामागर जाव आहिंडह । ५. सं. पा०-राईसर जाव गिहाई। ६. X (ग)। ७. X (क, ख)। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ नायाधम्मकहामो हियउड्डावणे वा काउड्डावणे' वा आभिओगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा प्रोसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धपुत्रे, जेणाहं तेयलिपुत्तस्स पुणरवि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा भवेज्जामि? प्रज्जा-संघाडगस्स उत्तर-पदं ४४. तए णं तानो अज्जानो पोट्टिलाए एवं वृत्तानो समाणीओ दोवि कण्णे ठएंति', ठवेत्ता पोट्टिलं एवं वयासी----अम्हे गं देवाणुप्पिए ! समणोप्रो निग्गंथीयो जाव' गुत्तबंभचारिणीयो। नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कण्णेहि वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा ?अम्हे णं तव देवाणुप्पिए! विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहिज्जामो ।। पोट्टिलाए साविया-पदं ४५. तए णं सा पोट्टिला तानो अज्जाओ एवं वयासी-इच्छामि णं अज्जाओ! तब्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्म निसामित्तए । ४६. तए णं तानो अज्जानो पोट्टिलाए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेंति ।। ४७. तए णं सा पोट्टिला धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं वयासी-सद्दहामि णं अज्जायो ! निग्गंथं पावयणं जाव' से जहेयं तुब्भे वयह । इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए ! ४८. तए णं सा पोट्टिला तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुन्वइयं जाव' गिहिधम्म पडिवज्जइ, तारो अज्जायो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ ।। ४६. तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया जाव' 'समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं° पडिलाभेमाणी विहरइ ॥ पोदिलाए पध्वज्जा-पदं ५०. तए णं तीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुवजागरियं १. कायउड्डावणे वा निण्हवणे वा (क, ख); ४. ना० १११११०१ । x (ग)। ५. ना.१।१४।४७ । २. अंगुलियं ठाति (क्व); अंगुलियं छाएति ६. ना० ११५॥४७ । सं० पा०—जाया जाव (क्व०)। पडिलाभेमाणी। ३. ना० ११४।४०। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसमं अयण (तेली) २३७ O जागरमाणीए अयमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुत्रि इट्ठा कंता पिया मणुष्णा मणामा आसि, इयाणि प्रणिट्ठा' अकंता अप्पिया मणुण्णा अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? तं सेयं खलु ममं सुव्वयाणं अज्जाणं प्रति पव्वइत्तए - एवं संपेहेइ, संपेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - • परिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी -- एवं खलु देवाप्पिया ! मए सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए घम्मे निसंते, "से वि य मे धम्मे इच्छिए पsिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं तुब्भेहि प्रब्भणुष्णाया Q पव्वइत्तए || - ५१. तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! मुंडा पव्वइया समाणी कालमासे कालं किच्चा प्रणयरेसु देवलोए देवताए उववज्जिहिसि । तं जइ णं तुमं देवाणुप्पिए । ममं ताम्र देवलोगाओ आगम्म haण बोहेहि, तो हं विसज्जेमि । ग्रहणं तुमं ममं न संबोहेसि, तो ते न विसज्जेमि || ५२. तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमद्वं पडिसुणे || ५३. तए णं तेयलिपुत्ते विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त - नाइ' नियग - सयण-संबंधि परियणं आमतेइ जाव' सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्मणेत्ता पोट्टिलं हायं सव्वालंकारविभूसियं° पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुहित्ता मित्त-वाई- नियग-सयण-संबंधि परियणेणं सद्धि • संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव" दुंदुहिनिग्घोसनाइय-रवेणं तेयलिपुरं मज्भंमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाश्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पोट्टिलं पुरनो कट्टु जेणेव सुब्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुपिया ! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा कंता पिया मणुष्णा मणामा । एस णं संसारभउब्विग्गा" भीया जम्मण जर मरणाणं इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए १. सं० पा०-- अणिट्ठा जाव परिभोगं ! २. ना० १।१।२४ + ३. सं० पा० करयल ० । ४. सं० पा०-- निसंते जाव अब्भणुष्णाया । ५. ता (क, ख, ग ) ! ६. सं० पा० - नाइ जाव आमंतेइ । ७. ना० ११७१६ ८. सं०पा०-हायं जाव पुरिससहस्तवाहिणीयं । ६. सं० पा० - नाड जाव संपरिवुडे । १०. ना० १११।३३ | ११. सं० पा० - संसारभउब्विग्गा जाव पव्वइत्तए । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ नायाधम्मकहाओ मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं• पव्वइत्तए । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिगिभिक्खं । अहासुह, मा पडिबंध करेहि ।। ५४. तए णं सा पोट्टिला सुव्वयाहिं अज्जाहिं एवं वुत्ता समाणी हट्ठा उत्तरपुरथिम दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव अाभरणमल्लालंकारं प्रोमुयइ, प्रोमुइत्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, जेणेव सुव्वयानो अज्जानो तेणेव उवागच्छइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-प्रालित्ते णं अज्जा ! लोए एवं जहा देवाणंदा जाव' एक्का रस अंगाई अहिज्जइ, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणेणं छेएत्ता आलोइय-पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा ॥ कणगरहस्स मच्चु-पदं ५५. तए णं से कणगरहे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था ॥ ५६. तए गं ते ईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-से द्वि-सेणावइ-सत्थवाह पभिइणो रोयमाणा कंदमाणा विलवमाणा तस्स कणगरहस्स सरीरस्स महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं नीहरणं करेंति, करेत्ता अण्णमण्णं एवं वयासी-एवं खलू देवाणप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव' मुच्छिए पुत्ते वियंगित्था । अम्हे णं देवाणुप्पिया! रायाहीणा रायाहिट्ठिया रायाहीणकज्जा । अयं च णं तेयली अमच्चे कणगरहस्स रणो सव्वट्ठाणंसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिन्नवियारे सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था । तं सेयं खलु अम्हं तेयलिपुत्तं अमच्च कुमारं जाइत्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एवं वयासीएवं खलु देवाणु प्पिया! कणगरहे राया रज्जे य जाव मुच्छिए पुत्ते वियंगित्था । अम्हे णं देवाणुप्पिया ! रायाहीणा रायाहिट्ठिया रायाहीणकज्जा । तुमं च णं देवाणु प्पिया! कणगरहस्स रण्णो सव्वठाणेसु. सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिन्नवियारे° रज्जधुराचिंतए होत्था । तं जइ णं देवाणुप्पिया ! अस्थि केइ १. भग०६।१५२, १५४, १५५ । वर्तते, तदनुसारेण स एव पाठः अस्माभिरत्र २. सं० पा०-ईसर जाव नीहरणं । स्वीकृतः । ३. ना० १.१४।२१। । ५. सं० पा०-रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा। ४. वियंगेइ (क, ख, ग, घ)। यद्यपि सर्वासु प्रतिषु ६. सं० पा०-सव्वठाणेसु जाव रज्जधुरा अत्र 'वियंगेई' इति पाठः उपलभ्यते । चितए। अस्मित्नेव सूत्रे 'वियंगित्था' इति पाठः Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसमं अज्झणं ( तेथली) २५६ कुमारे रायलक्खणसंपण्णे अभिसेयारिहे तण्णं तुमं ग्रम्हं' दलाहि जणं' अम्हे महया - महया रायाभिसेएणं अभिसिचामो | कणगज्यस्त रायाभिसेय-पदं ५७. तए णं तेयलिपुत्ते तेसि ईसरपभिईणं एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कणगज्भयं कुमारं हायं जाव' सस्सिरीयं करेइ, करेत्ता तेसि ईसरपभिईणं उवणेइ, उवत्ता एवं वयासी एस णं देवाणुप्पिया ! कणगरहस्स रण्णो पुत्ते पउमाaft देवीए अत्तए कणगज्झए नामं कुमारे अभिसेयारिहे रायलक्खणसंपणे, म कणगरहस्स रण्णो रहस्सिययं संवडिए । एयं णं तुब्भे महया - महया रायाभिसे अभिसिंचह । सव्वं च से उट्ठाणपरियावणियं परिकहेइ | ५८. तए णं ते ईसरपभिइओ कणगज्भयं कुमारं महया - महया रायाभिसेएणं अभिसिचंति || ५६. तए णं से कणगज्झए कुमारे राया जाए - महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदरमहिंदसारे जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ || तेय लिपुत्तस्स सम्माण- पदं ६०. तए णं सा पउमावई देवी कणगज्भयं राय सहावे, सहावेत्ता एवं वयासी - एस णं पुत्ता ! तव रज्जेय रठ्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य, तुमं च तेयलिपुत्तस्स श्रमच्चस्स पभावेणं' । तं तुमं णं तेयलिपुत्तं श्रमच्चं आढाहि परिजाणाहि सक्कारेहि सम्माणेहि, इंतं प्रब्भुट्ठेहि, ठियं पज्जुवासेहि, वच्चतं" पडिससाहेहि", श्रद्धासणेणं उवणिमंतेहि, भोगं च से वढेहि ॥ ६१. तए णं से कणगज्झए पउमावईए तत्ति वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तेयलिपुत्तं श्रमच्चं आढाइ " परिजाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ, इंतं अब्भुट्ठेइ, ठियं पज्जुवा - सेइ, वच्चंतं पडिसंसाहेइ, श्रद्धासणेणं उवणिमंतेइ, भोगं च से अणुवड्ढेइ ।। १. X ( ग, घ ) । २. जाणं (ग, घ ) । ३. ओ० सू० ६३ । ४. चिट्टिए ( ग ) | ५. तेसि (क, ख, ग ) । ६. वण्णओ जाव (क, ख, ग, घ ) 1 ओ० सू० १४ । ७. पसाहेमाणे (क्व ) | ८. सं० पा० रज्जे जाव तेउरे । ६. पहावे (क, घ) । १०. पज्जुवासाहि ( ख, ग ) । ११. वयं ( ग, घ ) । १२. पडिसा हेहि (क, ख ) । १३. सं० पा० - आढाइ जाव भोगं । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० नायाधम्मकहाओ पोट्टि लदेवेण तेयलिपुत्तस्स संबोह-पदं ६२. तर णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं-अभिक्खणं केवलिपण्णत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेयलिपुत्ते संबुज्झइ ।। ६३. तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था—एवं खलु कणगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ जाव' भाग च । प्रगुप, तण से तेलिपुते अभिवणं-अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे विध नो सबुझ । त सेयं खलु मम कणगझ तेथलियुत्तायो विपरिणा मित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कणगज्झयं तेयलिपुत्तानो विप्परिणामेइ ।। ६४. तए णं तेय लिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिगपरे तेयसा जलो हाए करबलिकम्मे कयकाउय-मंगल' -पायच्छित पास वधवारगर बहिं पुरिसेहिं सद्धि संपरिवुडे साओ गिहारो निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ६५. तए णं तेय लिपुत्तं अमच्चं जे जहा बहवे राईसर-तलवर' 'माडंबिय-कोडुबिय इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाह पभियत्रो' पासंति ते तहेव आढायंति परियाणंति अब्भुटुंति, अंजलिपगह करेंति, इट्टाहिं कंताहिं जाव' वहिं 'पालवमाणा य संलवमाणा'य पूरओ य पिट्रनो य पासपो य" समणगच्छंति ॥ ६६. तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ ॥ ६७. तए णं से कणगज्जए तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो पाढाइ" नो परि याणाइ नो अब्भट्रेइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणब्भदेसाणे परम्म्हे संचिट्ठइ ।। ६५. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगझयस्स रपणो अंजलि करेइ । 'तो य णं'१ से कणगज्झए राया अणाढायमाणे" अपरियाणमाणे अणब्भुट्ठमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्ठइ॥ १. ना० १११४१६० । १०. य मम्गओ (क, ख, ग, घ) । अत्र 'मग्गओ य' २. वड्ढेइ (क, ख, ग, घ) । इति पाठोऽतिरिक्त: सम्भाव्यते। पिटुओ ३. ना० ११११२४ । य मग्गओ य' एते द्वे अपि पदे समानार्थके ४. सं० पा०---हाए जाव पायच्छिते । स्तः । अस्याध्ययनस्यैव ७० सूत्रे 'मगओ य' ५. सं० पा०-जलवर जाव पभियओ। इति पाठो नोपलभ्यते। ६. पभितयो (क); पभिइओ (ग, घ)। ११. प्रायाणति (क)। ७. परिग्गहिए (क); 'परिगगहिय (घ); १२. अणाययणमाणे ३(क); अपाढामीणे ३ (ग)। _ परिम्गहं (ख, ग)। १३. तए णं (क, ख, घ)। ८. ना० १५१५४८ । १४. अणाढाइज्जमाणे ३ (क); अगाढ़ामीण ६. आलवमाणे य संलवमाणे (ग)। (ख, ग); अणादिज़्जमाणे (घ)। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसम अज्झयणं (तेयली) ६६. तए णं तेयलिपुत्ते कणगझयं रायं विप्परिणयं जाणित्ता भीए' 'तत्थे तसिए उव्विग्गे • संजायभए एवं वयासी–रुटे णं मम कणगज्झए राया। होणे णं मम कणगज्झए राया। अवज्झाए णं मम कणगज्झए राया। तं न नज्जइ णं मम केणइ कु-मारेण मारेहिइ त्ति कटु भीए तत्थे जाव सणियं-सणियं 'पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता" तमेव आसखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता तेयलिपुरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ७०. तए णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर जाव सत्थवाहपभियत्रो पासंति ते तहा नो अाढायंति नो परियाणंति नो अब्भुटुंति नो अंजलिपगह करेंति, इट्टाइं जाव' वग्गहिं नो पालवंति नो संलवंति नो पुरो य पिट्ठो य पासो य समणु गच्छंति ।। ७१. तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। जा वि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा -- दासे इ वा पेसे इ वा भाइल्लए इ वा, सा वि य णं नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुटेइ ! जा वि य से अभितरिया परिसा भवइ, तं जहा-पिया इ वा माया इ वा 'भाया इ वा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा. सुण्हा इ वा, सा वि य णं नो पाढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुढेइ ॥ तेलियपुत्तस्स मरणचेट्ठा-पदं ७२. तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासघरे जेणेव सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवा गच्छित्ता सयणिज्जंसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं सयानो गिहाम्रो निगच्छामि तं चेव जाव अभितरिया परिसा नो पाढाइ नो परियाणाइ नो अब्भटेइ । तं सेयं खलु मम अप्पागं जीवियाग्रो ववरोवित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तालउडं विसं प्रासगंसि पक्खिवइ । से य विसे नो कमइ ।। ७३. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसि कुसुमप्पगासं खुर धारं असि खंधसि अोहरइ । तत्थ विय से धारा ओएल्ला ! ७४. तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासगं गीवाए बंधइ, वंधित्ता रुक्खं दुरुहइ, दुरुहित्ता पासगं रुक्खे बंधइ, बंधित्ता अप्पाणं मुयइ । तत्थ वि य से रज्जू छिन्ता ॥ -. -. - -- १. सं० पा०-भीए जाव संजायभए । २. प्रीत्येति गम्यते (वृ)। ३. पाठान्तरेण दुर्ध्यातोहं (वृ)। ४, पच्चोरहइ २ (ग)। ५. ना० १११४१६५ ६. ना० ११११४८ । ७. सं० पा०-माया इ वा जाव सुण्हा । ८. ना० ११४॥६४-७१ । ६. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असि । १०. ओइल्ला (ख); ओपल्ला (ग, घ); अवदीर्णा कुंठीभूता इत्यर्थः (वृ)! Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ नायाधम्मकहाओ ७५. तए णं से तेयलिपुत्ते महइमहालियं सिलं गीवाए बंधइ, बंधित्ता अत्थाहमतारम पोरिसीयंसि उदगंसि अप्पाणं मुयइ । तत्थ वि से थाहे जाए। ७६. तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अप्पाणं मुयइ। तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए। १. प्रावश्यकचूर्णों (पृष्ठ ४६६,५००) समुद्धृते प्रस्तुताध्ययने अरण्यगमनस्य निर्देशोऽस्ति । तथा अन्योपि क्रमभेदो वर्तते। स च अतीव मननीयोस्ति, यथाताहे तणकूडे अग्गि दातुं पविट्ठी, तत्थवि न उज्झति, ताहे अवि पविसति, तत्थ पुरतो छिण्णगिरिसिहरकंदरप्पवाते पिट्टतो कपेमाणेव मेदिणितलं आकडढंतव्य पादवगणे विफोडेमाणेच अंबरतलं सव्वतमोरासिव्व पिडिते पच्चक्खमिव सतं कतंते भीमे भीमारवं करेंते महावारणे समुट्ठिते, दोसु चक्खुनिवातेसु पयं उवणुजुत्तविप्पमुक्को पुखमेत्तवसेसा धरणितलपवेसाणि सराणि पतंति हुतवहनालासहस्ससंकुलं समंततो पलित्तंव धगधगेति सवारणं, अइरुगतबालसूरगुंजद्धपंजनिगरपगासं झियाति इंगालभुत गिह, ताहे चितेति-पोट्टिला जदि मे नित्थारेज्जति, एवं वयासी—आउसो पोट्रिला! आहता आयाणाहि । ततेणं सा पोट्टिला पंचवण्णाई सखिखिणीयाई जाव एवं वयासी-~-आउसो तेतलिपुत्ता ! एहि ता प्रादाणाहि, पुरतो छिण्ण गिरिसिहरकंदरप्पवाते तं चेव जाव इंगालभूतं गिहं तं आउसो तेतलिपुत्ता ! कहि वयामो? ततेणं से तेतली एवं वयासी-सद्धेतं खलु भो समणा वयंति, सद्धेयं खलु भो माहणा वयंति, अहमेगो असद्धेयं वदिस्सामि, एवं खलु अहं सह पुत्तेहि अपुत्तो को मे तं सद्दहिस्सति ? एवं सह मित्तेहिं° सह दारेहि ° सह वित्तेण °, सह परिग्गहेण . सह दासेहि जाव दाणमाणसक्कारोवयारसंगहिते तेतलिपुत्तस्स सयणपरियणेवि तगं गते को मे तं सद्दहिस्सति ? एवं खलु तेतलिपुत्ते कणगझतेणं अवज्झातके को मे तं सहहिस्सति ? कालक्कमणीतिसत्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसादं गतेति को मे तं सद्दहिस्सति ? ततेणं तेतलिपुत्तेणं तालपुडे विसे खइते सेविय पडिहतेत्ति को मे तं सदहिस्सति ? एवं असी देहासे जले अगरी जाव रण्णेवि पुरतो पवाने एमादि को मे तं सहहिस्सति ? जातिकुलरूवविणओवयारसालिणी पोट्टिला मुसिकारधूता मिच्छ विपडिवण्णा को मे तं सहहिस्सति ? ताहे पोट्टिला भणति--एहि ता आदाणाहि, भीतस्स खलु भो पवज्जा ताणं, आतुरस्स भेसज्जं किच्चं अभिउत्तस्स पच्चयकरणं संतस्स वाहणकिच्चं महाजले वाहणकिच्चं माइस्स रहस्सकिच्चं उक्कंठितस्स देसगमणकिच्चं छुहितस्स भोयणकिच्चं पिवासितस्स पाणकिच्चं सोहातुरस्स जुवतिकिच्चं पर अभियुं जितुकामस्स सहायकिच्चं खंतस्स दंतस्स गुत्तस्स जितेंदियस्स एत्तो एगमवि न भवति । सुठ्ठ-सुटु तण्णं तुम तेतलिपुत्ता। एयमढे आदाणाहित्ति कटु दोच्चपि तच्चंपि एवं बयति, वइत्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगता। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोइसमं अज्झयणं (तेयली) २६३ : तेयलिपुत्तस्स विम्हयकरण-पदं ७७. तए णं से तेयलिपुत्ते एवं वयासी-सद्धेयं खलु भो ! समणा वयंति । सद्धेयं खलु भो ! माहणा वयंति। सद्धेयं खलु भो ! समण-माहणा वयंति । अहं एगो असद्धेयं वयामि । एवं खलु अहं सह पुत्तेहिं अपुत्ते ! को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह मित्तेहिं अमित्त । को मेदं सहहिस्सइ ? "सह अत्थेणं अणत्थे। को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह दारेणं अदारे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह दासेहि अदासे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह पेसेहिं अपेसे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह परिजणेणं अपरिजणे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? ० एवं खलु तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं कणगज्झएणं रण्णा अवज्झाएणं समाणेणं तालपुडगे विसे आसगंसि पक्खित्ते । से वि य नो कमइ । को मेयं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं नीलुप्पल - गवलगुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासे खुरधारे असी खधंसि ओहरिए । तत्थ वि य से धारा ओएल्ला । को मेयं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं पासगं गीवाए बंधित्ता' •रुक्खं दुरूढे, पासगं रक्खे बंधित्ता अप्पा मुक्के । तत्थ विय से ० रज्जु छिन्ना । को मेयं सहहिस्सइ? तेयलिपुत्तेणं महइमहालियं 'सिलं गीवाए वंधित्ता प्रस्थाहमतारमपोरिसीयंसि उदगसि अप्पा मुक्के । तत्थ वि य णं से थाहे जाए। को मेयं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडंसि 'अगणिकायं पक्खिवित्ता अप्पा मुक्के । तत्थ वि य से अग्गी विज्झाए । को मेयं सद्दहिस्सइ ?--ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए झियायइ ।। पोट्रिलदेवस्स संवाद-पदं ७८. तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदूर सामंते ठिच्चा एवं वयासी–ह भो तेयलिपुत्ता ! पुरमओ पवाए, पिट्टयो हत्थिभयं, दुहनो अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति । गामे पलिते रणे भियाइ, रणे पलित्ते गामे झियाइ । पाउसो तेयलिपुत्ता ! कओ वयामो ? १. सं० पा०—एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहि परिजणेणं। २. सं० पा०-नीलुप्पल जाव खंधंसि । ३. सं० पा०-बंधित्ता जाब रज्जू । ४. सं० पा०-महालियं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि । ५. सं० पा०-तणकूडे ० ६. स. पा.-ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ। ७. झियाति (क, ख, ग)। ८. पतंति (व)। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ नायाधम्मकहायो ७६. तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी-भीयस्स खलु भो ! पव्वज्जा', उक्कंटियस्स सदेसगमणं, छुहियस्स अन्नं, तिसियस्स पाणं, पाउरस्स भेसज्जं माइयस्स रहस्सं, अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्स वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहणकिच्चं, परं अभिउंजिउकामस्स सहायकिच्चं। खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि न भवइ ।। ८०. तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अमच्चं एवं वयासी-सुठु णं तुम तेयलि पुत्ता! एयमटुं प्रायाणाहि त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। तेयलिपुत्तस्स जाईसरणपुव्वं पव्वज्जा-पदं ८१. तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स सुभेणं परिणामेणं जाईसरणे समुप्पन्ने । ८२. तए णं तेयलिपुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इहेब जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे पोक्खलावईए विजए पोंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नामं राया होत्था। तए णं है थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता' 'पव्वइए सामाइयमाइयाई चोद्दसपुव्वाई अहिज्जित्ता बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए महासुक्के कप्पे 'देवत्ताए उववपणे" । तए णं हं तानो देवलोगायो ग्राउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्स अमच्चस्स भद्दाए भारियाए दारगत्ताए पच्चायाए । तं सेयं खलु मम पुवुद्दिट्ठाई महन्वयाई सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सयमेव महव्वयाइं पारुहेइ, पारुहेत्ता जेणेव पमयवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि सुहनिसण्णस्स अणुचितेमाणस्स पुवाहीयाई सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुवाई सयमेव अभिसमण्णा गया। केवलणाण-पदं ५३. तए णं तस्स तेलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणं' 'पसत्थेणं अज्झव साणेणं लेसाहि विसुज्झमाणीहिं° तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं कम्मरयविकरणकरं अपुवकरणं पविट्ठस्स केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ॥ १. सरणं इति गम्यते (वृ)। २. छायस्स (क, ख, ग)। ३. सं० पा०--भवित्ता जाव चोद्दसपुवाई। ४. देवे (क, ख, ग)। . ५. पुवदिट्ठाई (ख)। ६. पंच महव्वयाई (घ)। ७. पंच महव्वयाई (घ)। ८. सं० पा०-परिणामेणं जाव तयावरणि ज्जाणं । Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसम अज्झयण (तेयलो) २६५ ८४. तए णं तेयलिपुरे नयरे अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं देवीहि य देवदुंदु होओ समाहयाओ, दसद्धवणे कुसुमे निवाइए, चेलुक्ोवे' दिव्वे गीयगंधव्व निनाए कए यावि होत्था । कणगझयस्स सावगधम्म-पदं ८५. तए णं से कणगझए राया इमोसे कहाए लढे समाणे एवं वयासो-एवं खलु तेयलिपुत्ते मए अवज्झाए मुंडे भवित्ता पव्वइए। तं गच्छामि णं तेयलिपत्त अणगारं वदामि नमसामि, वंदित्ता नमंसित्ता एयमटुं विणएणं भुज्जोभुज्जो खामेमि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि जेणेव पमयवणे उज्जाणे जेणेव तेयलिपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एयमटुं 'च णं'' विणएणं भुज्जोभुज्जो खामेइ, खामेत्ता नच्चासणे 'नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलि उडे अभिमुहे विणएणं° पज्जुवासइ ।। ८६. तए णं से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगज्झयस्स रण्णो तीसे' य महइमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ ।।। ८७. तए णं से कणगज्झए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्मा पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणोवासए जाए---अभिगयजीवाजीवे । तेयलिपुत्तस्स सिद्धि-पदं ८८. तए णं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवलिपरियागं पाउणित्ता जाव सिद्धे ॥ निक्खेव-पदं ८६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । –त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जाव न दुक्खं पत्ता, माणभंसं च पाणिणो पायं । ताव न धम्म गेण्हंति भावो तेयलिसुयव्व ॥१॥ १. X (ग, घ)। ३. X (ख, ग, घ)। २. इमोसे कहाए लढे कणगज्झए माताए समं ४. सं० पा०--मच्चासणे जाव पज्जुवासइ । निग्मते सविड्ढीए (आवश्यकचूणि पृ. ५. पू. ना० ११५४७ । ६. ना. ११११७ ॥ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयण नंदीफले उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावी रेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, पण्ण रस मस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्टे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए । जियसत्तू राया ॥ ३. तत्थ णं चंपाए नयरीए धणे नामं सत्यवाहे होत्था-अड्ढे जाव' अपरिभूए॥ ४. तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरथिमे दिसीभाए अहिच्छत्ता नाम नयरी होत्था-रिद्धस्थिमिय-समिद्धा वण्णो।। ५. तत्थ णं अहिच्छत्ताए नयरीए कणगकेऊ नाम राया होत्था-महया वण्णयो ।। धणस्स घोसणा-पदं ६. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मम विपुलं पणियभंडमायाए अहिच्छत्तं नयरिं वाणिज्जाए गमित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च - चउव्विहं भंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडी-सागडं सज्जेइ, सज्जेत्ता सगडी-सागडं भरेइ, भरेत्ता कोलंबियपरिसे सहावेड. सहावेत्ता एवं क्यासी-गच्छहणं तब्भे देवाणप्पिया ! चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव' महापहपहेसु [उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा?] १. ना० १६५७। २. नामं (ख, घ)। ३. ओ० सू०१। ४. ओ० सू० १४ । ५. ना० १११०९५ । २६६ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयणं (नंदीफले) एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! धणे सत्थवाहे विपुलं पणियं आदाय इच्छइ अहिच्छत्तं नरिं वाणिज्जाए गमित्तए। तं जो णं देवाणुप्पिया ! चरए वा चीरिए वा चम्मखंडिए वा भिच्छंडे वा पंडुरंगे' वा गोयमे वा गोब्वतिए वा 'गिहिधम्मे वा धम्मचितए" वा अविरुद्ध-विरुद्ध-बुसावग-रत्तपड-निग्गंथप्पभिई पासंडत्थे वा गिहत्थे वा धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि अहिच्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धणे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अणुवाहणस्स उवाहणासो दलयइ, अकुडियस्स कुडियं दलयइ, अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ, सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७. तए णं ते कोडुबियपुरिसा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हतुवा चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव' महापहपहेसु एवं वयासी-हंदि सुणंतु भगवंतो ! चंपानयरीवत्थव्वा ! बहवे चरगा ! वा' जाव' निहत्था ! वा, जो णं धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि अहिच्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धणे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ जाव' सुहसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चंपि घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं° पच्चप्पिणंति ।। ८. तए णं तेसि कोडुबियपुरिसाणं मंतिए एयमढे सोच्चा चंपाए नयरीए बहवे चरगा य जाव गिहत्था य जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति ॥ ६. तए णं धणे सत्थवाहे तेसि चरगाण य जाव" गिहत्थाण य अच्छत्तगस्स छत्तं दलयइ जाव" अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, दलयित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा पडिवाले माणा चिट्ठह ।। १०. तए णं ते चरगा य जाव" गिहत्था य धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा" *चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि धणं सत्यवाहं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा° चिट्ठति ।। १. पंडरंगे (क, ख); पंदुरागे (घ)। ६. ना० १३१४९५ । २. गिहत्थधम्मचितए (क); गिहधम्मचितए ७. सं० पा०-चरगा वा जाब पच्चप्पिणंति । (ख, ग)। ८. ना० १६१२६ । ३. रत्तपडी (क)। ६,१०,११,१२. ना० १११५६ । ४. घोसणयं (क); X (ख, ग); उग्घोसणं १३. ना० १११५१६ । १४. सं० पा०-समाणा जाव चिटुंति । ५. सं.पा.---कोडुबियपुरिसा जाव एवं। Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायासम्मकहाओ धणस्स निद्देस-पदं ११. तए णं धणे सत्यवाहे सोहणंसि तिहि-करण-नवखत्तसि विउलं असण-पाण खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ- नियग-सयण-संबंधिपरियणं आमंतेइ, आमंतेत्ता भोयणं भोयावेइ, भोयावेत्ता आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सगडी-सागडं जोयावेइ', जोयावेत्ता चंपाओ नयरीनो निग्गच्छइ, निग्गच्छिता नाइविप्पगिटेहिं अद्धाणेहि वसमाणे-वसमाणे सहेहि वसहि-पायरासेहि अंगं जणवयं मज्झमझेणं जेणेव देसगं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडी-सागडं मोयावेइ, सत्थनिवेस करेइ, करेत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावेत्ता एयं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! मम सत्थनिवेसंसि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्धोसे माणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! इमीसे प्रागामियाए' छिपणावायाए दीहमद्धाए अडवीए बहुमज्भदेसभाए, एत्थ णं बहवे नंदिफला नामं रुक्खा ---किण्हा जावं पत्तिया पुफिया फलिया हरिया रेरिज्जमाणा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिटुंति-मणुण्णा वण्णेणं मणुग्णा गंधेणं मणुण्णा रसेणं मणुण्णा फासेणं मणुण्णा छायाए। तं जो णं देवाणुप्पिया! तेसि नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा आहारेइ, छायाए वा वीसमइ, तस्स णं आवाए भद्दए भवइ । तो पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा अकाले चेव जीवियानो ववरोति । तं मा ण देवाणप्पिया ! केइ तेसिंनंदिफलाणं मूलाणि वा जाव हरियाणि वा आहरउ, छायाए वा वीसमउ, मा णं से वि अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जिस्सउ । तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! अण्णेसि रुक्खाणं मूलाणि य जाव हरियाणि य आहारेह, छायासु वीसमह त्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । १२. तए णं धणे सत्थवाहे सगडो-सागडं जोएइ, जोएता जेणेव नंदिफला रुक्खा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता दोच्चंपि तच्चपि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--तुब्भे गं देवाणुप्पिया! मम सत्थनिवेसंसि महया-मया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–एए णं देवाणुप्पिया ! ते नंदिफला रुवखा किण्हा जाव' मणुण्णा छायाए। १. सं० पा.-नाइ०। २. जोएइ (क)। ३. द्रष्टव्यम्-१।१८।४४ सूत्रम् । ४. रुक्खा पण्णत्ता (क, ख, ग, ध)। ५. ना० १।१३।१६। ६. ववरोविज्जिस्सइ (क, ख, ग)। ७. ना. १६१५१११। Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयण (नंदीफले) २६६ तं जो णं देवाणुप्पिया ! एएसि नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा पाहारेइ जाव' अकाले चेव जीवियानो ववरोवेइ। तं मा णं तुब्भे तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि वा जाव पाहारेह, छायाए वा वोसमह, मा णं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जिस्सह', अण्णेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव' आहारेह, छायाए वा वीसमह त्ति कटु घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। निद्दसपालणस्प निगमण-पदं १३. तत्थ णं अत्थेगइया पुरिसा धणस्स सत्थवाहस्स एयमद्वं सद्दहति पत्तियंति ° रोयंति, एयमटुं सद्दहमाणा पत्तियमाणा रोयमाणा तेसिं नंदिफलाणं दूरंदरेणं परिहरमाणा-परिहरमाणा अण्णेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव' पाहारंति, छायासु वीसमंति । तेसि णं आवाए तो भद्दए भवइ, तो पच्छा परिणममाणापरिणममाणा सुभरूवत्ताए' 'सुभगंधत्ताए सुभरसत्ताए सुभफासत्ताए सुभछायत्ताए ° भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ।। एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा' निग्गंथी वा पायरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारापो अणगारियं पव्वइए समाणे ° पंचसु कामगुणेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्जइ. से णं इहभवे चेव बहणं समणाणं बहणं समणीणं वहणं सावगाणं बरणं सावियाण य अच्चणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थछेयणाणि य कण्णछेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं-हियय उपायणाणि य वसणुप्पायणाणि उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरत संसारकतारं• वीईवइस्सइ-जहा व ते पुरिसा ।। निद्देसाऽपालणस्स निगमण-पदं १५. तत्थ णं अप्पेगइया पुरिसा धणस्स एयमटुं नो सद्दहति नो पत्तियंति नो रोयंति, धणस्स एयमटुं असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोयमाणा जेणेव ते नंदिफला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि य जाव" १४. --- -- - १. ना० १११।११। ७. सं० पा०-निग्गंथो वा जाव पंचसु । २. ववरोविज्जिस्सति (क,ग);ववरोविस्संति(ख)! ८. पू०-ना० ११२७६ । ३. ना० १।१५।११ । ६. सं० पा०-परलोए नो आगच्छइ जाव ४. सं० पा० -सदहति जाव रोयंति। वीईवइस्सइ (क, ख, ग, घ)। ५. ना० १।१५।११। १०. ना०११५.११1 ६. सं० पा०--सुभरूवत्ताए। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाधम्मक हाम आहारंति, छायासु वीसमंति । तेसि णं आवाए भद्दए भवइ, तम्रो पच्छा परिणममाणा - परिणममाणा' अकाले चेव जीवियानो • ववरोवेंति ॥ १६. एवामेव समगाउसो ! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंथी वा प्रायरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता श्रगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचसु कामगुणे सु सज्जइ रज्जई गिज्झइ मुज्झइ प्रज्भोववज्जइ, सेणं इहभवे जाव' प्रणादियं च णं श्रणवयग्गं दीहमद्धं संसारकंतारं भुज्जो - भुज्जो श्रणुपरिट्टिस्सइ -- जहा व ते पुरिसा ॥ o २७० धस्स अहिच्छतागमण-पदं १७. तए गं से धणे सत्थवाहे सगडी - सागडं जोयावेइ, जोयावेत्ता जेणेव अहिच्छत्ता नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहिच्छत्ताए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणे सत्यनिवेस करेइ, करेत्ता सगडी-सागडं मोयावेइ ॥ १८. तए गं से धणे सत्थवाहे महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहुपुरिसेहिं सद्धि संपरिवुडे अहिच्छतं नयरि मज्भंमज्भेणं अणुष्पविसइ, विसित्ता जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं • वृद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणेइ ॥ १६. तए गं से कणगऊ राया हट्टतुट्टे धणस्स सत्थवाहस्स तं महत्यं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं पच्छिइ, पडिच्छित्ता धणं सत्थवाहं सक्कारेइ सम्भाणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरिता पडिविसज्जेइ, भंडविणिमयं करेइ, करेत्ता पडिभंड गेण्हइ, गेण्हित्ता सुहंसुहेणं जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि • अभिसमण्णागए विपुलाई माणुस्सगाई' भोगभोगाई पच्चणुभवमाणे ० विहरइ ॥ धणस्स पव्वज्जा-पदं २०. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं ॥ २१. धणे सत्थवाहे धम्मं सोच्चा जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता पव्वइए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं भूसेत्ता, अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णे । १. सं० पा० - परिणममाणा जाव ववरोवेंति । २. सं० पा० - सज्जइ जाव अणुपरियष्टिस्सइ । ३. ना० १।३।२४ । ४. सं० पा०—करयल जाव वद्धावेइ | ५. सं० पा० नाइ० | ६. सं० पा० माणुस्सगाई जाव विहरइ । Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अभयणं (नंदीफले) महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ' बुज्झिहिइ सुचिचहिइ परिनिव्वाहि सव्वदुक्खाण मंतं करेहिइ || निवखेव पदं २२. एवं खलु जंबू ! समणेगं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पण्णरसमस्स नायज्झयणस्स मट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा - चंपा इव मणुयगई, धणोव्व भयवं जिणो दएक्करसो । अहिच्छत्ता नयरिसमं इह निव्वाणं मुणेयव्वं ॥ १ ॥ घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्धं । चरगाइणो व्व एत्थं, सिवसुहकामा जिया बहवे ॥ २॥ नंदिफलाइ व्व इहं, सिवपपडिपण्णगाण विसया उ । तब्भक्खणा मरणं, जह तह विसएहि संसारो ॥३॥ तब्वज्जणेण जह इट्ठपुरगमो विसयवज्जणेण तहा । परमानंदनिबंध - सिवपुरगमणं मुव्वं ॥४॥ १. सं० पा० - सिज्झिहिइ जाव मंतं । २७१ २. ना० १११।७ 1 Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं अवरकंका उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पण्णरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, सोलस मस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था ॥ ३. तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नाम उज्जाणे होत्था । नागसिरी-कहाणग-पदं ४. तत्थ णं चंपाए नयरीए तो माहणा भायरो परिवसंति, तं जहा -सोमे सोमदत्ते सोमभूई -- अड्ढा जाव' अपरिभूया रिउब्वेय-जउव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय जाव' बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिनिट्ठिया ।। ५. तेसि णं माहणाणं तनो भारियानो होत्था, तं जहा-नागसिरी भूयसिरी जक्खसिरी-सुकुमालपाणिपायानो जाव' तेसि णं माहणाणं इवानो, तेहिं माहणेहिं सद्धि विउले माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणीप्रो विहरति ।। नागसिरोए तित्तालाउय-उवक्खडण-पदं ६. तए णं तेसि माहणाणं अण्णया कयाइ एगयो समुवागयाणं जाव' इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमे विउले १. ना० ११११७ २. ना० १६५७ ३. ना० १११३६ । ४. ना० १६१६१७ । ५. पू०-ना० १११११७ । ६. ना० ११३७ २७२ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २७३ धण'- कणग - रयण - मणि - मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार. सावएज्जे, अलाहि जाव पासत्तमाओ कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! अण्णमण्णस्स गिहेसु कल्लाकल्लि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेउं परिभुजेमाणाणं विहरित्तए। अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, कल्लाकल्लि अण्णमण्णस्स गिहेसु' विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, परि जेमाणा विहरति ।। ७. तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए अण्णया कयाइ भोयणवाए जाए यावि होत्था । ८. तए णं सा नागसिरी विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, एगं महं सालइयं तित्तालाउयं' बहुसंभारसंजुत्तं नेहावगाढं उवक्खडेइ, एग बिदुयं करयलंसि ग्रासाएइ, तं खारं कडुयं प्रखज्ज विसभूयं जाणित्ता एवं वयासीधिरत्थु णं मम नागसिरीए अधन्नाए अपुष्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभगनिंबोलियाए', जाए णं मए सालइए तित्तालाउए बहुसंभारसंभिए नेहावगाढे उवक्खडिए', सुबहुदव्वक्खए नेहक्खए य कए । तं जइ णं ममं जाउयाओ जाणिस्संति तोणं मम खिसिस्संति । तं जाव" ममं जाउयानो न जाणंति ताव मम सेयं एयं सालइयं तित्तालाउयं 'बहुसंभारसंभियं नेहावगाढ एगते गोवित्तए, अण्णं सालइयं महरालाउयं 'बहुसंभारसंभियं • नेहावगाद उवक्खडित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तं सालइयं तित्तालाउयं वहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगते ० गोवेइ, गोवेत्ता अण्णं सालइयं महुरालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं उवक्खडेइ, उवक्खडेता तेसि माहणाणं व्हायाणं भोयणमंडवंसि ° सुहासण वरगयाणं तं विपलं असण-पाण-खाइम-साइमं परिवेसेइ।। ६. तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुत्तरागया समाणा प्रायंता चोक्खा परमसुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था ।। १०. तए णं तानो माहणीनो पहायानो जाव विभूसियानो तं विपुलं असण-पाण१. सं० पा०-धण जाव सावएज्जे । ६. ता (ख); ताओ (घ)। २. गिहे (ग)। १०. जावताव (क, ख, घ)। ३. तित्त° (ग)। ११. बहुसंभारनेहकयं (क, ख, ग, घ)। ४. उवक्खडावेइ (क, ख, ग, घ)। १२. सं० पा०-महुरालाउयं जाव नेहावगाद । ५. आसएइ (ग)। १३. सं० पा० सालइयं जाव गोवेइ । ६. विसभूयमिति (क); विसन्भूयं (ख, ग)। १४. सं० पा०-हायाणं जाव सुहासण' । ७. दूभगलिंबोलियाए (ग)। १५. ना० १।१८१ । ८. उदक्खडियाए (ख, ग)। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ Satara महा खाइम साइमं श्राहारेंति, जेणेव सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्तानो जायाओ || धम्मरुइस्स तित्तालाउय दाण-पदं ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाव' बहुपरिवारा जेणेव चंपा नयरी जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता महापडि रूवं ओग्गहं श्रगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणा • विहरति । परिसा निग्गया | धम्मो कहियो । परिसा पडिगया || १२. तए णं तेसि धम्मघोसाणं घेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले ' • घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरवंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल - तेयलेस्से मासमासेणं खममाणे विहरइ ॥ १३. तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमणवारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए भाणं भियाइ, एवं जहा गोयमसामी तहेव भायणाई गाहे तव धम्मघोस थेरं प्रापुच्छइ जाव' चंपाए नयरीए उच्च-नी - मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपविट्टे ॥ १४. तए णं सा नागसिरी माहणी धम्मरुइं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स' वहुसंभारसंभियरस नेहावगाढस्स एडणट्टयाए हट्ठतुट्ठा उदाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं सालइयं 'तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं" धम्मरुइस्स प्रणगारस्स पडिग्गहंसि " सव्वमेव निसिरइ" ।। १५. तए णं से धम्मरुई अणगारे महापज्जत्तमित्ति कट्टु नागसिरीए माहणीए गिहा पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्भंमज्भेणं पडिनिक्खमइ, पडनिमित्ता जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव १. ना० १।१४१४० ! २. सं० पा० - अहापडिरूवं जाव विहरति । ३. धम्मरुती ( ग ) । ४. सं० पा०—उराले जाव तेथलेस्से 1 ५. पोरुसीए ( क ) ; पोरसीए ( ख ) ; पोरसी ए ( ग ) | ६. पू० भग० २।१०७ । ७. भग० २।१०७ - १०६ । ८. तित्तस्स (क, ख, ग, घ ); पूर्ववर्तिसूत्रेषु 'तित्तालाउयं' इति पाठोऽस्ति । अस्मिन् सूत्रे तस्य परिवर्तनं जातम् । अत्रापि 'अलाउय' पदमपेक्षितमस्ति तेनात्र पूर्ववर्तिपाठ एव स्वीकृतः । ६. तित्तकयं च बहुने हावगाढं ( क, ख, ग, घ ) । १०. पडिग्गहगे ( ख, ग ) ; पडिहए (घ ) । ११. निस्सरइ (घ) | Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २७५ उवागच्छइ, धम्मघोसस्स [धम्मघोसाणं ?] अदूरसामते' अन्नपाणं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता अन्नपाणं करयलंसि पडिदसेइ ॥ तित्तालाउय-परिट्टावण-पदं १६. तए णं धम्मघोसा थेरा तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स गंधेणं अभिभूया समाणा तो साल इयानो तित्तालाउयाओ बहुसंभारसंभियानो नेहावगाढायो एगं विदुयं गहाय करयलंसि प्रासादेंति', तित्तगं' खारं कडुयं अखज्जं अभोज्ज' विसभूयं जाणित्ता धम्मरुई अणगारं एवं वयासी-जइण तुम देवाणप्पिया! एयं सालइयं तित्तालाउयं बहसंभार संभियं. नेहावगाढं पाहारेसि तो णं तुम अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि । तं मा णं तुम देवाणुप्पिया! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं आहारेसि, मा णं तुमं अकाले चेव जीवियाग्रो बवरोविज्जसि । तं गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले परिढवेहि, अण्णं फासुयं एसणिज्जं असण-पाण-खाइम-साइमं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेहि ॥ १७. तए णं से धम्मरुई अणगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्ते समाणे धम्मघोसस्स थेरस्स अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सुभूमिभागाप्रो उज्जाणाम्रो अदूरसामंते थंडिलं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता तओ सालइयानो तित्तालाउयानो बहुसंभारसंभियानो नेहावगाढायो एग बिंदुगं गहाय थंडिलंसि निसिरइ॥ १८. तए णं तस्स सालइयस्स 'तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स" गंधणं बहूणि पिपीलिगासहस्साणि पाउब्भूयाणि । जा जहा य णं पिपीलिगा आहारेइ, सा तहा अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जइ।। अहिंसट्ठ तितालाउय-भक्खण-पदं १६. तए णं तस्स धम्मरुइस्स अणगारस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - जइ ताव इमस्स साल इयस्सर 'तित्तालाउयस्स बहसंभारसंभियस्स° एगमि बिंदुगंमि पविखत्तंमि अणेगाई पिपीलिगासहस्साई १. अदूरसामते इरियावहियं पडिक्कमइ (घ)। २. आसाएंति (क): आसाइंति (ध)। ३. तित्तं (ख)। ४. अपिज्ज (क)। ५. विसभूयमित्ति (ख)। ६. सं० पा०--सालइयं जाव नेहावगाढं । ७. सं० पा० --सालइयं जाव आहारेसि । ८. थंडिल्ले (ख)। ६. ताओ (क, ख)। १०. बिंदु (क, ख)। ११. तित्तकडयस्स बहुनेहावगाढस्स(क, ख, ग, घ)। १२. पाउ (क, ग, घ); पाउन्भूया (ख)! १३. सं.पा.-सालइयस्स जाव एगमि। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ नायाधम्मकहाओ ववरोविजंति, तं जइ णं अहं एयं साल इयं तित्तालाउयं वहसंभारसंभियं नेहावगाढं थंडिलंसि सव्वं निसिरामि तो गं बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं वहकरणं भविस्सइ। तं सेयं खलु ममेयं साल इयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं° नेहावगाढं सयमेव पाहारित्तए, ममं चेव एएणं सरीरएणं निज्जाउ त्ति कटु एवं संपेहेइ संपेहेता मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, ससीसोवरियं कायं पमज्जेइ, तं सालइयं 'तित्तालाउयं बहसंभारसंभियं नेहावगाढं" विलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं सव्वं सरीरकोटगंसि पक्खिवइ ।। धम्मरुइस्स समाहिमरण-पदं २०. तए णं तस्स धम्मरुइस्स तं साल इयं तित्तालाउयं बहुसं भारसंभियं नेहाव गाढं पाहारियस्स समाणस्स मुहत्तंतरेणं परिणममाणंसि सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया-उज्जला' 'विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा ।। २१. तए णं से धम्मरुई अणगारे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कटु आयारभंडगं एगंते ठवेइ, थंडिलं पडिलेहेइ, दन्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरूहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसपणे करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-नमोत्थु णं अरहताणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं । पुवि पि णं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए' सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव" बहिद्धादाणे [पच्चक्खाए जावज्जीवाए ?], इयाणि पिणं अहं तेसि चेव भगवंताणं अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव बहिद्धादाणं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जहा खंदरो जाव" चरिमेहि उस्सासेहि वोसिरामि त्ति कटु आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालगए । साहहिं धम्मरुइस्स गवेसणा-पदं २२. तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुई अणगारं चिरगयं जाणित्ता समणे निगथे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! 'धम्मरुई अणगारे १. ता (क, ग); तए (ख)। ६. अतियं (क)। २. सं० पा०-साल इयं जाव नेहावगाढं। १०. ना० ११५१५६ । ३. तित्तकडुयं बहुनेहावगाद (क, ख, ग. घ)। ११. परिग्गहे (क, ख, ग, घ) अत्रापि ११५५६ ४. सं० पा० सालइय जाव नेहावगाढं । वत् पाठर वना समालोचनीयास्ति । द्रष्टव्यम५. सं० पा०-उज्जला जाब दुरहियासा। १३श५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. अपुरिसकार (ग)। १२. भग० २१६८,६६ 1 ७. संथारेइ (ग)। १३. धम्मरुइस्स अणगारस्स (ख)। ८. ओ० सू० २१ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) २७७ मासक्खमणपारणगंसि सालइयस्स' 'तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स निसिरणट्ठयाए बहिया निग्गए चिरावेइ । तं गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वनो समता मग्गण-गवेसणं करेह ॥ साहहिं धम्मरुइस्स समाहिमरण-निवेदण-पदं २३. तए णं ते समणा निग्गंथा' 'धम्मघोसाणं थेराणं जाव तहत्ति आणाए विणएणं वयणं° पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता धम्मघोसाणं थेराणं अंतियानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सम्वनो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो ! अकज्जमिति कट्ट धम्मरुइस्स अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करति, धम्मरुइस्स आयारभंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मधोसा थेरा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता गमणागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्हे तुब्भं अंतियाो पडिनिक्खमामो, सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वग्रो 'समंता मम्गणगवेसणं ° करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छामो जाव इहं हव्वमागया। तं कालगए णं भंते ! धम्मरुई अणगारे । इमे से पायारभंडए ।। धम्मरुइस्स सइसभा-पदं २४. तए ण ते धम्मघोसा थेरा पुव्वगए उवयोगं गच्छंति, समणे निग्गंथे निग्गंथीयो य सद्दावेति, सहावेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु अज्जो ! मम अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे पगइभहए' पगइउवसंते पगइपयणकोहमाणमायालोभे मिउमद्दव-संपण्णे अल्लीणे भद्दए ° विणीए मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे जाव' नागसिरीए माहणीए गिहं अणुपविढे । तए णं सा नागसिरी माहणी जाव तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहसि सव्वमेव ° निसिरह। तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमित्ति कटु नागसिरीए माहणीए गिहाम्रो पडिनिक्खमइ जाव 'समाहिपत्ते कालगए"। १. सं० पा०-साल इयस्स जाव नेहाबगाढस्स । २. चिराइते (क); चिरगए (घ)। ३. सं० ११०--निग्गंथा जाव पडिसुणेति । ४. ना० १।१।२६ । ५. सं० पा०-- सवओ जाव करेमाणा। ६. सं० पा०-पगइभहए जाव विणीए । ७. ना० १११६११३ ८. सं० पाo-माहणी जाव निसिरह । ६. ना०।१६।१४ । १०. ना० १११६:१५-२१ ! ११. अत्र 'कालं अणवकंखमाणे विहरई' इति पाठो लभ्यते, किन्तु जाव शब्दसौपते २१ सूत्रे 'समाहिपत्ते कालगए' इति पाठो वर्तते । तदनुसारेण अत्रास्माभिः स एव पाठः स्वीकृतः । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ हामी से णं धम्मरुई अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढे जाव' सम्वद्वसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं प्रजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं साग रोभाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं धम्मरुइस्स वि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता से णं धम्मरुई देवे ताओ देवलोगाग्रो ग्राउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ || 0 नागसिरीए गरिहा-पदं २५. तं धिरत्थु णं प्रज्जो ! नागसिरीए माहणीए अधन्नाए श्रपुष्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभग निबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं' तित्तालाउएणं बहुसंभारसं भिएणं नेहावगाढेणं प्रकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविए || ० २६. तए णं ते समणा निम्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म ' चंपाए सिंघाडग-तिग- चउक्क-चच्चर-चउम्मुह महापहप हेसु बहुजणस्स एवमाकवंति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परूवेंति - धिरत्थु णं देवाप्पिया ! नागसिरीए जाव' दुर्भार्गानबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुवे धम्मरुई ग्रणगारे सालइएणं' "तित्तालाउएणं बहुसंभारसंभिएणं • नेहावगाढे अकाले चैव जीवियाओ ववरोविए || २७. तए पं तेसि समणाणं ग्रंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म बहुजणो ग्रष्णमण्णस्स एवमाइक्इ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - घिरत्थु णं नागसिरीए माहणीए जाव जीवियाम्रो ववरोविए || नागसिरीए गिनिव्वासण-पदं २८. तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म सुरुत्ता" रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरो माहणी तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता नागसिरि माहणि एवं वयासी"हंभो नागसिरी ! अपत्थिय पत्थिए ! दुरंतपंतलक्खणे ! हीणपुण्णचाउ से ! [सिरि-हिरिधिइ कित्तिपरिवज्जिए ? ] धिरत्थु णं तव अधन्नाए अण्णाए १. ना० १।१।२११ । २. सं०पा० – देवलोगाओ जाव महाविदेहे । ३. सं० पा० - अपुष्णाए जाव निंबोलियाए । ४. सं० पा० साल इएणं जाव नेहावगाढेणं । ५. सिम्मा (क, ख, ग ) । 0 ६. सं० पा० - तिग जाव बहुजणस्स । ७. ना० १।१६।२५ । ८. सं० पा० सालइएणं जाव नेहावगाढेणं । ६. ना० १।१६।२६ । १०. सं० पा० आसुरुता जाव मिसिमिसेमाणा । Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोनम अज्झणं (अवरकंका) दूभगाए दूभगसत्ताए दूर्भागनिबोलियाए, जाए गं तुमे तहारूत्रे साहू साहुरू धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं तित्तालाउएणं जाव' जीविया ववरोविए ।" उच्चावयाहि प्रक्कोसणाहिं ग्रक्कोसंति, उच्चावयाहिं उद्धसणाहि उद्धसेंति, उच्चावयाहिं निब्र्भच्छणाहि निब्भच्छेति, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहि निच्छोडेंति, तज्जेति तालेंति, तज्जित्ता तालित्ता सयाओ गिहाम्रो निच्छुभंति ।। २६. तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाओ निच्छूढा समाणो चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिय- चउक्क-चच्चर- चउम्मुह महापहपहेसु बहुजणेणं हीलिज्जमाणी खिसिज्जमानी निदिज्जमाणी गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पव्वहिज्जमाणी' धिक्कारिज्माणी थुक्कारिज्जमाणो कत्थइ ठाणं वा निलयं वा लभमाणी दंडीखंड - निवसणा खंडमल्लय-खंडघडग- हत्थगया फुट्ट - हडाहड-सीसा मच्छियाचडगरेणं अन्निज्जमाणमग्गा गेहंगेहेणं देहं बलियाए वित्ति कप्पेमाणी विहरइ ॥ नागसरीए भवभमण-पदं ३०. तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए तब्भवंसि चेव सोलस रोगायका पाउन्भूया । [ तं जहा - सासेकासे' "जरे दाहे, जोणिसूले भगंदरे | रिसा अजीरए दिट्ठी - मुद्धसूले अकारए || च्छिणा कण्णवेणा कंडू दउदरे • कोठें ॥ १ ॥ ] ३१. तए णं सा नागसिरी माहणी सोलसेहिं रोगायं केहि अभिभूया समाणी अट्ट दुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किच्चा छुट्टाए पुढवीए उक्कोस बावीससागरोवम नरएस नेरइयत्ताए उबवण्णा । १. ना० १।१६।२५ २. १९८८ सूत्रे निब्भच्छेइ । ३. तालिज्जमाणी वहिज्जमाणी (घ ) । ४. वसणा (क, ख, ग ) । २७६ सा गं तो अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उबवण्णा" । तत्थ णं सत्यवज्झा दाहवक्कतीए कालमासे कालं किच्चा आहेसत्तमाए पुढवीए 'उक्कोसं तेत्तीस - सागरोवमट्ठिईएस" नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा तथा अनुस्वारो नेपातिकः ( वृ ) | ५. फट्ट ( ख ) । १०. उबवज्जइ ( क, ख ) 1 ६. देहबलियाए ( क, ख, ग, घ ); देहबलिका ११ उक्कोससागरोवम ° ( क, ख ) । ७. रोयायका ( ख ) । ८. सं० पा० - कासे जोणिसूले जाव कोढे । ६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० नायाधम्मकहाओ सा णं तस्रोणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चपि मच्छेसु उत्रवज्जइ । तत्थ वि य णं सत्यवज्झा दाहवत्रकंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चपि आहेसत्तमाए पुढवीए उक्को तेत्तीससाग रोवमट्ठिइएस नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जइ । साणं तोहितो' उन्वट्टित्ता तच्चपि मच्छेसु उववण्णा । तत्थ वियणं सत्थवज्झा' दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चपि छट्टाए पुढवीए उक्कोर्स' बावीससागरोवमट्ठिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववण्णा । तोतरं उब्वट्टिता उरगेसु, एवं जहा गोसाले तहा नेयव्वं जाव रयणप्पभाश्रो पुढवीन उब्वट्टित्ता 'सण्णीसु उववण्णा । ० तो उवट्टित्ता प्रसणीसु उववण्णा । तत्थ वि य णं सत्यवज्झा दाहवककंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि रयणप्पभाए पुढवीए पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइभागट्टिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववण्णा । तओ उव्वट्टित्ता जाई इमाई खयरविहाणाई" जाव" अदुत्तरं च खरबायरपुढविकाइयत्ताए, तेसु अणेगसय सहस्सखुत्तो ॥ सूमालिया कहाणग-पदं ३२. साणं तोतरं उब्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए सागरदत्तस्स सत्यवास्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया || ३३. तए णं सा भद्दा सत्यवाही नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया-सुकुमालकोमलियं गतालुयसमाणं || ३४. तए गं तीसे णं दारियाए निव्वत्तवारसाहियाए सम्मापियरो इमं एयारूवं गोष्णं गुणन नामधेज्जं करेंति - जम्हा णं म्हं एसा दारिया सुकुमाल - कोमलिया गयतालुयस माणा, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया - सुकुमालिया || १. अत्रापि पूर्वोक्तकमानुसारेण भूतकालक्रियाप्रयोगो युज्यते, किन्तु ग्रादर्शेषु तथा नोपलभ्यते । २. तओहिंतो जाव (क, ख, ग, घ ) । एतत् पदमनावश्यकं प्रतिभाति । ३. सं० पा० - सत्यवज्झा जाव कालमासे । ४. उक्को से णं (क, ख, ग, घ ) । ५. भग० १५।१८६ | ६. सण्णोसु उववण्णा तनो उब्वट्टित्ता जाई इमाई खमरविहाणाई (क, ख, ग, घ } एष संक्षिप्तपाठोऽस्ति । भगवत्यनुसारेण अस्य स्थाने पाठः पूरितोस्ति । समर्पणसूत्रे प्रायः पाठस्य संक्षेपः कृतो लभ्यते । अत्रापि स एव क्रमः अनुसृतोस्ति, किन्तु संज्ञिभवानन्तरं खेचरयोनौ जन्म नाभूत् । स्वीकृतपाठावलोकनेन एतत् स्पष्टं भवति । ७. भग० १५/१८६ | ८. पू० - ना० १।१६।१२४ । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८१ ३५. तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति सूमालियत्ति ॥ ३६. तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया [तं जहा--खीरधाईए' 'मज्जणधाईए मंडावणधाईए खेल्लावणधाईए अंकधाईए] ' अंकानो अंक साहरिज्जमाणी रम्मे मणिकोट्टिमतले° गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निव्वाघायंसि' 'सुहंसुहेणं° परिवड्डइ ।। सूमालियाए सागरेण सद्धि विवाह-पदं ३७. तए णं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा' 'विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता ° रूवेण य जोव्बणेण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। ३८. तत्थ णं चंपाए नयरीए जिणदत्ते नामं सत्थवाहे-अडढे ।। ३६. तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया--सूमाला इट्टा माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरइ ।। ४०. तस्स णं जिणदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नामं दारए सुकुमालपाणिपाए जाव' सुरूवे ।। ४१. तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सयाओ गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ । इमं च णं सूमालिया दारिया पहाया चेडिया-'चक्कवाल-संपरिडा" उप्पि अागासतलगंसि कणग-तिदूसएणं 'कीलमाणी-कीलमाणी विहरइ॥ ४२. तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं पासइ, पासित्ता सूमालियाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया ? किं वा नाम धज्ज से? ४३. तए णं ते कोडुवियपुरिसा जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हतुद्धा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु ° एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए भारियाए अत्तया १. सं० पाo-खीरधाईए जाव गिरिकंदर- ६. इट्ठा जाव (ख, घ)। मल्लीणा। ७. ना० १११।१७ । २. असो कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। ८. साओ (क, ख, ग)। ३. X (ख)। ६. संघपरिवुडा (ग)। ४. सं० पा०—निव्वाघायंसि जाव परिवड्ढइ । १०. कीलमाणी (ख, ग)। ५. सं० पा०-उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण । ११. सं० पा०-करयल जाव एवं । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ नायाधम्मक हाओ सूमालिया नाम दारिया - सुकुमालपाणिपाया जाव' रूत्रेण य जोव्वणेण य लावणेण य उक्किट्ठा ४४. तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे तेसि कोडुंबियाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता व्हाए मित्त-नाइ परिवुडे चंपाए नयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागए || ४५. तए णं से सागरदत्ते सत्यवाहे जिणदत्तं सत्यवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणा प्रभु, प्रभुत्ता आसणेणं उवनिमंते, उवनिमंतेत्ता असत्थं वीसत्थं सुहासणवरगयं एवं वयासी -भण देवाणुप्पिया ! किमागमणपण ? ४६. तए णं से जिणदत्ते सागरदत्तं एवं वयासी - एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! तव धूयं भद्दा प्रतियं सूमालियं सागरस्स' भारियत्ताए वरेमि । जइ णं जाणह देवाप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो, ता दिज्जउ णं सूमालिया सागरदारगस्स । तए णं देवाणुप्पिया ! भण कि दलामो सुंक सूमालियाए ? ४७. तए णं से सागरदत्तं सत्थवाहे जिणदत्तं सत्यवाहं एवं क्यासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! सूमालिया दारिया एगा एगजाया' इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा जाव उंबरपुप्फं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुणे पासणयाए ? तं नो खलु ग्रहं इच्छामि सूमालियाए दारिवाए खणमवि विप्पोगं । तं जइ णं देवाप्पिया ! सागरए दारए मम घरजामाउए भवइ, तो णं ग्रहं सागरस्स सूमालियं दलयामि || ४८. तए गं से जिणदत्ते सत्थवाहे सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वृत्ते समाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छङ, उवागच्छित्ता सागरगं' दारगं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खलु पुत्ता ! सागरदत्ते सत्थवाहे ममं एवं वयासी - एवं खलु देवाप्पिया ! सूमालिया दारिया - इट्ठा कंता पिया मणुण्णा सणामा जाव" उंबरपुष्पं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तं नो खलु ग्रहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पयोगं । तं जइ णं सागरए दारए मम घरजामाउए भवइ, 'तो णं" दलयामि ॥ १. ना० १६६० २. सागरदत्तस्स दारगस्स ( ख, ग ) 1 ३. दलामो ( क ) । ४. सुकं (ख); सुक्कं (घ) । ५. मम एगा घूया (क) ६. एगा जाया (ख, घ) । ७. ना० १।१।१०६ । ८. सागरं (ग, घ ) । ६. सं० पा० - इट्ठा तं चैव । १०. ना० १।१११०६ । ११. जाव (ख, घ) । Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका), २८३ ४६. तए णं से सागरए दारए जिणदत्तणं सत्थवाहेणं एवं बुत्ते समाणे तुसिणीए । ५०. तए णं' जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त महत्तंसि विपूलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ'- नियग-सयण-संबंधि-परियणं° पामतेइ, जाव' सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सागरं दारगं पहायं जाव' सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूहावेइ, मित्त-नाई- नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि ° परिवुडे सव्विड्डीए सयाओ गिहाम्रो निगच्छइ, निग्गच्छित्ता चपं नरि मझमझेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयानो पच्चोरुहइ', पच्चोरुहित्ता सागरगं दारगं सागरदत्तस्स सत्यवाहस्स उवणेइ॥ ५१. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता जाव' सम्माणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धि पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावेत्ता सेयापीएहि कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोम करावेइ, करावेत्ता 'सागरगं दारयं" सूमालियाए दारियाए पाणि गेण्हावेइ॥ सागरस्स पलायण-पदं ५२. तए णं सागरए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं 'पाणिफासं पडिसंवेदेइ'१२, से जहानामए ---असिपत्ते इ वा 'करपत्ते इ वा खुरपत्ते इ वा कलंबचीरिगा. पत्ते इ वा सत्तिअग्गे इ वा कोतग्गे इ वा तोमरग्गे इ वा भिडिमालग्गे इ वा सूचिकलावए इ वा विच्छ्यडके इ वा कविकच्छू इ वा इंगाले इ वा मुम्मुरे इ वा अच्ची इ वा जाले इ वा अलाए इ वा सुद्धागणी इ वा भवे एयारूवे ? नो इणढे समढे 1 एत्तो अणि?तराए चेव अकंतत राए चेव अप्पियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव ° पाणिफासं संवेदेइ ।। ५३. तए णं से साग रए अकामए अवसवसे" मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ।। ५४. तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे सागरस्स अम्मापियरो मित्त-नाइ"- नियग-सयण १. णं से (ख, घ)। १०. होम (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-नाइ! ११. सागरस्स (क)। ३. ना० १५१४१५३ । १२. संपडिवेदेति (ख); पाणि फासेंति संपडिवेदेति ४. ना० १११।४७ । (ग); संवेदेइ (क्व)। ५. द्रुहावेइ (क, ख)। १३. सं० पा०–असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ ६. सं० पा०-नाइ जाव पडिबुडे । वा एत्तो अणिद्रुतराए चेव । ७. सातो (क, ख, ग, घ)। १४. अवसवसे (ख, ग); अपस्ववशः अपगतात्म८. ना० १११६६५० 1 तंत्र इत्यर्थः (वृ)। ६. सीयापीयएहि (ख, ग); सीयापीएहिं (घ)। १५. सं० पा०-नाइ० । Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ नया महाश्र संबंध-परियणं • विपुलेणं' असण- पाणखाइम- साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ || ५५. तए णं सागरए सूमालियाए सद्धि जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियाए दारियाए सद्धि तलिमंसि' निवज्जइ || ५६. तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, से जहानामए- असिपत्ते इ वा जाव' एत्तो श्रमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ || ७ ५७. तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए अंगकासं असहमाणे वसवसे मुत्तमेतं संचि || ५८. तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहृपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासा उइ, उट्ठेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जसि निवज्जइ || ५६. तए णं सा सूमालिया दारिया तम्रो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमरत्ता पई पासे अपस्समाणी तलिमाश्रो' उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णुवज्जइ ॥ ६०. तए णं से सागरदारए सूमालियाए दारियाए दोच्चपि इमं एयारूवं अंगफासं पsिides जाव' प्रकामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ॥ ६१. तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता वासघरस्स दारं विहाडे, विहाडेता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए || समालियाए चिंता-पदं ६२. तए णं सा सूमालिया दारिया तम्रो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया" पइमणुरत्ता पई पासे • अपासमाणी सर्याणिज्जाश्रो उट्ठेइ, सागरस्स दारगरस सव्व समता मग्गण - गवेसणं करेमाणी- करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पास, पासिता एवं वयासी गए गं से सागरए त्ति कट्टु श्रोह्यमणसंकप्पा" करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ° भियायइ || ० १. विपुलं ( क, ख, ग, घ ) । २. सं० पा०-- वत्थ जाव सम्भाषेत्ता । ३. तलिगंसि ( ख, ग ) । ४. ना० १।१६।५२ | ५. अवसव्य से (क, ख, ग ) । ६. समणीयंसि (क, ख, घ ) । ७. पतिवया ( ख, ग, घ ) । ८. तलिगाओ (ख); तलियग्गतो ( ग ) । ६. ना० १।१६।५२, ५३ । १०. सं० पा० पतिवया जाव अपासमाणी 1 पतिवया ० ( ग, घ ) 1 ११. सं० पा० - श्रहमणसंकप्पा जाव भियायइ । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८५ ६३. तए णं सा भद्दा सत्यवाही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते दासचेडि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिए ! बहूवरस्स मुहधोवणियं' उवणेहि ।। ६४. तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमटुं तहत्ति पडि सुणेइ, पडिसुणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ,गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं श्रोहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं • झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं देवाणुप्पिए ! योहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया • झियाहि ? ६५. तए णं सा सूमालिया दारिया तं दास चेडि एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिए! सागरए दारए ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासानो उद्वेइ, उद्वेत्ता वासघरदुवार अवंगुणेइ अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए । तए णंहं तनो मुहत्तंत रस्म पडिबुद्धा' पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जारो उद्धेमि सागरस्स दारगस्स सव्वो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं० विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से सागरए ति कट्टु प्रोयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्माणोवगया • झियायामि । ६६. तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमढे सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमटुं निवेदेइ ।। सागरदत्तण जिणदत्तस्स उवालंभ-पदं ६७. तए णं से सागरदत्ते दासचेडीए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुद्रे कूविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे जेणेव जिणदत्तस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! एयं जुत्तं वा पत्तं वा कुलाणुरूवं वा कुलसरिसं वा जण्णं सागरए दारए सूमालियं दारियं अदिट्ठदोसवडिय पइव्वयं विप्पजहाय इहमागए ? बहिं खिज्जणियाहि य रुंटणियाहि" य उवालभइ । १. पू०-ना० १३०२४ ! ६. सं. पा.-पडिबुद्धा जाव बिहाडियं । २. म्हसोवणियं (क); सोहणियं (ख); ७. सं० पा०-ओहयमणसकप्पा जाव झियासोयणिपं (ग)। यामि। ३. स० पा०-दारियं जाव झियायमाणि । ८. अदिट्रदोस (क, ग)। ४. सं० पा०-पोहयमणसंकप्पा जाव झियाहि। ६. पइवयं (क, ख, ग, घ)। ५. अपंगुणेइ (ग)। सं० पा०-अवंगुणेइ जाव १०. ४ (क); कंटणियाहि (ग); रुढणियाहि पडिगए। (घ)। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ नायाधम्मकहाओ सागरस्स पुणोगमण-व्वुदास-पदं ६८. तए णं जिणदत्ते सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स एयमढे सोच्चा जेणेव सागरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरयं दारयं एवं वयासी-दुडु णं पुत्ता ! तुमे कयं सागरदत्तस्स गिहाम्रो इहं हव्वमागच्छंतेणं' । तं गच्छह णं तुम पुत्ता ! 'एवमवि गए" सागरदत्तस्स गिहे ।। तए णं से सागरए दारए जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी--अवियाई अहं ताप्रो ! गिरिपडणं वा तरुपडणं वा मरुप्पवायं वा जलप्पवेसं वा जलणप्पवेसं वा विसभक्खणं वा सत्थोवाडणं वा वेहाणसं वा गिद्धपटुं वा पव्वज्जं वा विदेसगमणं वा अब्भुवगच्छेज्जा, नो खलु अहं सागरदत्तस्स गिहं गच्छेज्जा' ॥ सूमालियाए दमगेण सद्धि पुणविववाह-पदं ७०. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे कुटुंतरियाए सागरस्स एयमटुं निसामेइ, निसामेत्ता लज्जिए विलीए विड्डे जिणदत्तस्स सत्थवाहस्स गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख मित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुकुमालियं दारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता अंके निवेसे इ, निवेसेत्ता एवं वयासी-किण्णं तव पत्ता ! सागरएणं दारएणं' ? अहं णं तुम तस्स दाहामि, जस्स णं तुम इट्टा कंता पिया मणुण्णा ° मणामा भविस्ससि त्ति सूमालियं दारियं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहि मणुण्णाहिं मणामाहि वहि समासासे इ, समासासेत्ता पडिविसज्जेइ ।। ७१. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे अण्णया उप्पि आगासतलगंसि सुहनिसपणे राय मग्गं अोलोएमाणे-अोलोएमाणे चिट्ठइ ।। ७२. ताणं से सागरदत्ते एगं महं दमगपरिसं पास-दंडिखंड-निवसण" खंडमल्लग खंडघडग-हत्थगयं 'फुट्ट-हडाहड-सीसं मच्छियासहस्से हि १२ अग्निज्जमाणमग्गं ।। ७३. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! एयं दमगपुरिसं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं १. हव्वमागए (ख, घ)। ६. सं० पा०-- इट्टा जाव मणामा । २. एयमवि (क)। १०. बहूहिं वगूहिं (घ)। ३. इत्थमपिगते-प्रस्मिन् कार्ये (१।१६।२६६ ११. वसणं (ख, ग)। सूत्रस्य वृत्तिः)। मच्छियासहस्सेहिं जाव (क, ख, ग, घ)। ४. मरुप्पवेसं (क) आदर्शेषु पाठान्तररूपेण निदर्शितः पाठः ५. विहणसं (ख)। उपलभ्यते, किन्तु अस्मिन् 'जाव' पदस्य ६. गेद्धपटुं (ख, ग)! विपर्ययो जातः । हत्यगयं जाव' इति पाठ७. अणुगच्छेज्जा (क)। रचना युक्तास्ति । प्रस्तुताध्ययनस्य २६ ८. दारएणं मुक्का (ध)। सूत्रावलोकनेन एतत् स्पष्टं जायते । Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झणं (अवरकंका ) २८७ लोह', हिं णुपवे सेह, अणुष्पवेसेत्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च से एगंते एडेह, एडेत्ता प्रलंकारियकम्मं करेह, हायं कयबलिकम्मं कय-कोउय-मंगलपायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं करेह, करेत्ता मणुष्णं प्रसण पाण- खाइमसाइमं भोयावेह, मम प्रतियं उवणेह || ७४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव' पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं दमगं श्रसण-पाण -खाइम - साइमेणं उवप्पलोभेंति', उवप्पलोभेत्ता सयंहिं श्रणुष्पवेसंति, प्रणुप्पवेसेत्ता तं खंडमल्लगं खंडघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एगते एडेंति || ७५. तए गं से दमगे तंसि खंड मल्लगंसि खंडघडगंसि य एडिज्जमाणंसि महया - महया सद्देणं आरसइ ॥ ७६. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे तस्स दमगपुरिसस्स तं महया - महया प्रारसिय सद्द सोच्चा निसम्म कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी - किन्नं देवाणुप्पिया ! एस दमपुर से महया - महया सदेणं आरसइ ? ७७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा एवं वयंति-- एस णं सामी ! तंसि खंड मल्ल गंसि खंडघडगं स य एडिज्जमाणंसि मया महया सद्देणं आरसइ || O ७८. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी - माणं तुब्भे देवापिया ! यस्स दमगस्स तं खंड मल्लगं खंडघडगं च एगते एडेह, पासे सेवेह जहा 'अपत्तियं न" भवइ । ते वि तहेव ठवेंति, ठवेत्ता तस्स दमगस्स अलंकारिकम्मं करेंति, करेत्ता सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहिं अभंगति, अब्भंगिए' समाणे सुरभिणा गंधट्टएणं" गायं उव्वटेंति, उब्वट्टेत्ता उसिणोदग-गंधोदणं हाति, सीदगेणं व्हार्णेति पम्हल-सुकुमालाए गंधकासाईए गायाई लूहेंति, लहेत्ता हंसलक्खणं पडगसाडगं परिर्हेति सव्वालंकारविभूसियं करेंति, विपुलं असण- पाणखाइम साइमं भोयावेंति, भोयावेत्ता सागरदत्तस्स उवर्णेति" ।। १. पडिला भेह (घ) अशुद्धं प्रतिभाति । २. अणुपविसेह ( ग ) | ३. सं० पा०-- कयवलिकम्मं जाव सव्वालंकार विभूतियं । ४. ना० १११।१२६ । ५. उवलोभति ( क ) । ६. सं० पा०-- खंड जाव एडेह । ७. णं पत्तियं ( ख, ग, घ ) । ८. ठावेंति ( ख, ग ) । ६. अभिगिए (ग) 1 १०. गंधोद्धएणं (क, ध) गंधदएण ( ख ) ; गंध टूएणं ( ग ) ; गंधवट्टएणं ( ० ) । अत्र लिपिदोषेण वर्णपरिवर्तनं जातम् । उद्वर्तनप्रकरणे उद्वर्तकवस्तुनिर्देशो युज्यते । अत: एवात्र 'गंधट्टएणं' इति पाठः स्वीकृतः । स्थाना (३२८७) पि एतत् तुल्यप्रकरणे असौ पाठ उपलभ्यते । ११. समीवे उवर्णेति (क्च) Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ नायाधम्मकहाओ ७६. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं व्हायं जाव' सब्बालंकारविभू सियं करेत्ता तं दमगपुरिसं एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! मम धूया इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा । एयं णं अहं तव भारियत्ताए दलयामि', भद्दियाए भयो भवेज्जासि । दमगस्स पलायण-पदं ८०. तए णं से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सूमालियाए दारियाए सद्धि वासघरं अणुपविसइ, सूमालियाए दारियाए सद्धि तलिमंसि निवज्जइ ।। ८१. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए इमेयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ', 'से जहा नामए- असिपत्ते इ वा जाव एत्तो अमणामतरागं चेव अंगफास पच्चणुब्भव माणे विहरई॥ ८२. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ॥ ८३. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारि याए पासाप्रो उट्टेइ, उठेत्ता जेणेव सए सणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवा गच्छित्ता सयणिज्जसि निवज्जइ ॥ ८४. तए णं सा सूमालिया दारिया तो मुहत्ततरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपस्समाणी तलिमानो उट्टेइ, उद्वेत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दमगपुरिसस्स पासे णुवज्जइ ।। ८५. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए दोच्चंपि इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ जाव' 'अकामए अवसवसे मुहत्तमेत्तं संचिट्ठइ ।। ८६. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सणिज्जाओ 'अब्भटेइ, अब्भुद्वेत्ता' वासघरानो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। सूमालियाए पुणोचिंता-पदं ८७. तए णं सा सूमालिया 'दारिया तो मुहत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणु १. ना० ११११४७ । २. दलामि (क)। ३. भवेज्जाहि (ग)। ४. सं० पा०-सेसं जहा सागरस्स जाव सय- णिज्जाओ। ५. ना० १।१६।५२। ६. ना० १।१६।५२,५३ । ७. पन्भुटेइ २ (क, ग)। ८. दिसं (क, ख)। ६. सं० पा०-सूमालिया जाव गए। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८९ रत्ता पई पासे अपासमाणी सणिज्जारो उद्वेइ, दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मरगण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी० --- गए णं से दमगपुरिसे त्ति कटु अोहयमणसंकप्पा' 'करतल पल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया ° झियायइ ।। ८८. तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते दासचेडि सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं' 'वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए ! बहूव रस्स मुहधोवणियं उवणेहि ॥ ८६. तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमटुं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं अोहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्यमुहि अट्टज्माणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी--किण्णं तुम देवाणुप्पिए ! प्रोयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियाहि ? ६०. तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडि एवं वयासी --एवं खलु देवाणप्पिए ! दमगपुरिसे ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाप्रो उद्वेइ, उठेत्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ, अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णंहं तो मुहत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सणिज्जागो उठेमि, दमगपुरिसस्स सव्वो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से दमगपुरिसे ति कटु प्रोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियायामि ॥ ६१. तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमढे सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमटुं निवेदेइ ॥ सूमालियाए दाणसाला-पदं ६२. तए णं से सागरदत्ते तहेव संभंते समाणे जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता एवं वयासी-अहो णं तुमं पुत्ता ! पुरापोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुप्परक्कंताणं कडाणं पावाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं° पच्चणुब्भवमाणी विहरसि । तं मा णं तुम पुत्ता ! ओहयमणसंकप्पा' 'करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ° झियाहि । १. सं० पा०–ओहयमणसंकप्पा जाव झिया- ४. सं० पा०-पुरापोराणाणं जाव पच्चणुभ माणी। २. पू०---ना० १११।२४ । ५. सं० पा.-ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि । ३. सं० पा०-एवं जाव सागरदत्तस्स । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० नायाधम्मकहाओ तुमं णं पुत्ता ! मम महाणसंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं "उवक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य° परिभाएमाणी विहराहि ।। ६३. तए णं सा सूमालिया दारिया एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता [कल्लाकल्लि ? ] महाणसंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं 'उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य° परिभाएमाणी विहरइ ।। अज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियागमण-पदं ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं गोवालियानो अज्जाओ' वहुस्सुयानो "बहुपरिवारासो पुव्वाणुपुवि चरमाणीओ जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हंति, प्रोगिमिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे. भाणीनो विहरंति । तए णं तासिं गोवालियाणं अज्जाणं एगे संघाडए' जेणेव गोवालियानो अज्जायो तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोवालियानो अज्जायो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी इच्छामो णं तुभेहि अब्भणुण्णाए चंपाए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइ कुलाइ घरसमुदाणस्स भिक्खायोरयाए अडित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। ६६. तए णं तानो अज्जारो गोवालियाहिं अज्जाहि अब्भणण्णाया समाणीओ' भिक्खायरियं अडमाणीनो सागरदत्तस्स सूमालियाए सागरपसायोवाय-पुच्छा-पदं ६७. तए णं सूमालिया तारो अज्जारो एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हतद्रा आसणानो अब्भुढेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विपुलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पडिलाभेइ °, पडिलाभेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अज्जास्रो ! अहं सागरस्स अणिट्ठा 'अकंता अप्पिया अमणुण्णा ° अमणामा ! नेच्छइ णं सागरए दारए मम नाम गोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा ° परिभोगं वा? १. सं. पा०--जहा पोट्टिला जाव परिभाए- तहेव समोसढायो तहेव संघाडओ जाव माणी । अणुपविढे तहेब जाव सूमालिया। २. सं० पा.- साइमं जाव परिभाएमाणी! ६. पू०-ना० १।१४१४१ । ३. दलयमाणी (क, ग); दलमाणी (ख, घ)। ७ पू०-ना० १।१४।४२ । ४. पू०-ना० १११४।४० । ८. सं० पा०-अणिट्ठा जाव अमणामा। ५. सं० पा०–एवं जहेव तेयलिणाए सुव्वयाओ९. सं० पा०-नाम वा जाव परिभोगं । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अणं (अवरकंका) २६१ जस्स जस्स वि य णं देज्जामि' तस्स तस्स वि य णं प्रणिट्टा अकंता अप्पिया श्रमण्णा मणामा भवामि । तुभे यणं अज्जाश्रो ! बहुनायाओ' 'बहुसिक्खियाम्रो बहुपढियाओ बहूणि गामागर-णगर - खेड-कब्बड - दोणमुह-मब-पट्टण - ग्रासम-निगम-संबाह-सण्णिसाई हिंड, बहूणं राईसर- तलवर - माडविय- कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि सेणावइसत्यवाह भिईणं गिहाई अणुपविसह । तं प्रत्थियाई मे अज्जाश्रो ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए वा कम्मजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा ग्राभियोगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वामुले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा प्रोसहे वा भेसज्जे वा उवलद्वपुब्वे, जेणं श्रहं सागरस्स दारगस्स इट्ठा कंता पिया मगुण्णा मणामा भवेज्जामि ? प्रज्जा- संघाडगस्स उत्तर-पदं ६८. तए णं ताम्रो अज्जाश्रो सूमालियाए एवं वृत्ताश्रो समाणी दोवि कण्णे ठति, ठत्ता सूमालियं एवं वयासी अम्हे णं देवाणुप्पिए ! समणीओ निग्गंथीओ जाव" गुत्तबंभचारिणीम्रो नो खलु कप्पर अम्हं एयप्पगारं कण्णेहिं वि निमित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा श्रायत्तिए वा अम्हे णं तव देवाप्पिए ! विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्मं परिकहिज्जामो ॥ सूमालियाए साविया - पदं ६६. तए णं सा सूमालिया ताम्रो अज्जाम्रो एवं वयासी - इच्छामि णं अज्जाश्रो ! तुब्भं प्रति केवलिपण्णत्तं धम्मं निसामित्त ॥ १००. तए णं ताम्रो अज्जाम्रो सूमालियाए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्मं परिकर्हेति ॥ १०१. तए णं सा सूमालिया धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं वयासी - सद्दहामि गं श्रज्जाश्रो ! निग्गंथं पावयणं जाव' से जहेयं तुब्भे वयह । इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त सिक्खावइयं - दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिव - ज्जित्तए । हा देवा ! १०२. तए णं सा सूमालिया तासि अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव' गिहिधम्मं पडिवज्जइ, ताओ अज्जाश्रो वंदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता पडिविसज्जेइ ॥ १. देज्जाहि (क) 1 २. स० पा० – अणिट्टा जाव श्रमणामा । ३. सं० पा० - बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उवल । ४. सं० पा०—कंता जाव भवेज्जामि | ५. सं० पा० - अज्जाओ तहेव भगति तहेव साविया जाया तहेव चिता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति । ६. ना० १|१४|४० ७. ना० १११।१०१ । 5. ना० १।१४/४७ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ नायाधम्मकहाओ १०३. तए णं सा सूमालिया समणोवासिया जाया जाव' समणे निग्गंथे फासूएणं एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुछणेणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ ॥ सूमालियाए पव्वज्जा-पदं १०४. तए णं तोसे सूमालियाए अण्णया कयाइ पुनरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं सागरस्स पुदिव इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा मासि, इयाणि प्राणदा अकता अप्पिया अमण ण्णा अमणामा । नेच्छइ णं सागरए मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दसणं वा परिभोग वा ? जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि तस्स-तस्स वि य णं अणिट्टा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा भवामि । तं सेयं खलु ममं गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव सागरदत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! मए गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं तुभेहि अब्भणुण्णाया पव्व इत्तए जाव' गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइया ।। १०५. तए णं सा सूमालिया अज्जा जाया-इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी बहूहिं चउत्थ-छट्टट्ठम-*दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ॥ सूमालियाए आतावणा-पदं १०६. तए णं सा सूमालिया अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव गोवालियानो अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं अज्जायो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी चंपाए नयरीए बाहिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही पायावेमाणी विहरित्तए॥ १०७. तए णं तारो गोवालियाओ अज्जायो सूमालियं अज्जं एवं वयासी-अम्हे णं १. ना० ११५॥४७॥ २. ना० १११।२४ । ३. ना० १११४१५३,५४ । ४. ना० ११४।४०। ५. सं० पा०-छट्ट? म जाव विहरइ । Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसम अज्झयण (अवरकका) २६३ अज्जो ! समणीयो निग्गंथीयो इरियासमियायो जाव' गुत्तबंभचारिणीओ। नो खलु अम्हं कप्पइ बहिया गामस्स वा जाव' सण्णिवेसस्स वा छटुंछट्ठणं' 'अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुहीणं पायावेमाणीणं विहरितए ! कप्पइ णं अम्हं अंतोउवस्सयस्स वइपरिक्खित्तस्स संघाडिबद्धियाए णं समतलपइयाए' आयावेत्तए । १०८. तए णं सा सूमालिया गोवालियाए एयमटुं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एयमटुं असद्दहमाणी अपत्तियमाणी अरोयमाणी सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छटुंछट्टेणं 'अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सुराभिमुही आयावेमाणी' विहरई॥ सूमालियाए नियाण-पदं १०६. तत्थ णं चंपाए ललिया नाम गोट्ठी परिवस इ-'नरवइ-दिन्न-पयारा अम्मापिइ. नियण-निप्पिवासा वेसविहार-कय-निकेया नाणाविह-अविणयप्पहाणा अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया ॥ ११०. तत्थ णं चंपाए देवदत्ता नामं गणिया होत्था—सूमाला जहा अंड-नाए" ॥ १११. तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए अण्णया कयाइ पंच गोहिल्लगपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स" उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ॥ ११२. तत्थ णं एगे गोटिल्लगपुरिसे देवदत्तं गणियं उच्छंगे धरेइ, एगे पिट्ठो आयवत्तं धरेइ, एगे पुप्फपूरगं रएइ, एगे पाए रएइ, एगे चामरुक्खेवं करेइ ॥ ११३. तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं तेहिं पंचहिं गोटिल्लपुरिसेहि सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणि" पासइ, पासित्ता इमेयारूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमा इत्थिया पुरापोराणाणं 'सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं कडाणं कल्लाणाणं कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्च १. ना० १.१४।४० । निक्किया (ग)। २. ना० ११।११८। ६. ना० ११५७। ३. सं० पा०-छटुंछट्रेणं जाव विहरित्तए। १०. ना० ११३८ । ४. समतलवइयाए (क); पतियाए (ख, घ); ११.४ (ख, घ)। ___वत्तियाए (ग)। १२. पाठान्तरे पाए रोवेइति घतजलाभ्यां ५. सं० पा०-छटुंछट्टेणं जाव विहरइ । आर्द्र यति (वृ)। ६. नरवइविदिण्णवियारा (क, ख)। १३. एहिं (क)। ७. अम्मापिई ० (क, ख, ग)। १४. भुंजमाणी (क, ख, ग, घ)। ८. निक्केया (क); विक्किया (ख); १५. सं० पा० --पुरापोराणाणं जाव विहरइ । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ णुब्भवमाणी• विहरइ। तं जइ णं केइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तो णं अहमवि प्रागमिस्सेणं भवग्गहणेणं इमेयारूवाई उरालाई 'माणुस्सगाई भोग भोगाई भंजमाणी विहरिज्जामि त्ति कटु नियाणं करेइ, करेत्ता आयावणभूमीनो' पच्चोरुभइ ॥ समालियाए बाउसियत्त-पदं ११४. तए णं सा सूमालिया अज्जा सरीरबाउसिया' जाया यावि होत्था-अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गुज्झंतराइं धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं पुत्वामेव उदएणं अब्भुक्खेत्ता तो पच्छा ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ ॥ ११५. तए णं ताओ गोवालियानो अज्जानो सूमालियं अज्जं एवं वयासी- एवं खलू अज्जे ! अम्हे समणीनों निग्गंथीयो इरियासमियाओ जाव वंभचेरधारिणीयो। नो खल कप्पइ अम्हं सरीरवाउसियाए" होत्तए । तुमं च णं अज्जे ! सरीरबाउसिया' अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेसि', 'पाए धोवेसि, सीसं धोवेसि, मुहं धोवेसि, थणंतराइंधोवेसि, कक्खंतराइंधोवेसि,गुमंतराइं धोवेसि, जत्थ णं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएसि, तत्थ वि य णं पुवामेव उदएणं अब्भक्खेत्ता तो पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएसि । तं तुमं णं देवाणप्पिए ! एयरस ठाणस्स पालोएहि निंदाहि गरिहाहि पडिक्कमाहि विउट्राहि विसोहेहि प्रकरणयाए अब्भुढेहि, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जाहि ॥ ११६. तए णं सा सूमालिया गोवालियाणं अज्जाणं एयमटुं नो पाढाइ नो परियाणाइ, 'अणाढायमाणी अपरियाणमाणी" विहरइ ॥ ११७. तए ण तायो अज्जाओ सूमालियं अज्ज अभिक्खणं-अभिवखणं हीति निदेति खिसेति गरिहंति ° परिभवंति, अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमटुं निवारेति ।। १. सं० पा०-उरालाई जाव विहरिज्जामि। २. भूमीए (ख, ग, घ)। ३. बाउसा (क); °पाउसा (ख, ग); पाउसिया (घ)। ४. ना० १।१४४० । ५. पाउसिया (ख, ग, घ)। ६. पाउसिया (ख, घ)। ७. स० पा०--धोवेसि जाव चेएसि। ८. सं० पा०-आलोएहि जाव पडिवज्जाहि। ६. अणाढाइमाणा अपरिजाणमाणा (क, घ): अणाढायमाणा अप्परियाणमाणा (ख); अपरिजाणमाणा (ग)। १०. सं० पा०--हीलेंति जाव परिभवति । Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) २६५ सूमालियाए पुढोविहार-पदं ११८. तए णं तोसे सूमालियाए समणोहिं निग्गंथीहिं हीलिज्जमाणीए' निदिज्ज माणीए खिसिज्जमाणीए गरिहिज्जमाणीए परिभविज्जमाणीए अभिक्खणंअभिक्खणं एयमटुं • निवारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था -जया णं अहं अगारमझे' वसामि', तया णं अहं अप्पवसा । जया णं अहं मुंडा भवित्ता पव्वइया, तया णं अहं परवसा । पुदिव च णं ममं समणीग्रो प्रादंति परिजाणंति, इयाणि नो आदति नो परिजाणंति । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते गोवालियाण अज्जाणं अंतियानो पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्यभायाए रयणीए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता ११६. तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया' अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवेइ', 'पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गुज्झंतराइं धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं पुवामेव उदएणं अब्भुक्खेत्ता तो पच्छा ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ। तत्थ वि य णं पासत्था पासत्थविहारिणी अोसन्ना प्रोसन्नविहारिणी कुसीला कुसीलविहारिणी संसत्ता संसत्तविहारिणी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, तीसं भत्ताई अणसणाए छेएत्ता, तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कध्ये अण्णयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववण्णा । तत्थेगइयाणं' देवीणं नवपलिनोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं सूमालियाए देवीए नवपलि प्रोवमाई ठिई घण्णत्ता।। दोवई-कहाणग-पदं १२०. तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएस कंपिल्लपुरे नाम नयरे होत्था--वण्णो ॥ १. सं. पा.–हीलिज्जमाणीए जाव निवा- ५. पू०-ना० ११:२४ । रिज्जमाणीए। ६. अणाहट्टिया (ख, घ)। २. सं० पा०--अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ७. सं० पा०-धोवेइ जाव चेएइ। ३. अगारवास' (ख)। ८. तत्थगतियाणं (क, ग)। ४. परिवसामि (क)। ९. ओ० सू० १। Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ १२१. तत्थ णं दुवए नाम राया होत्था वण्णश्री' ॥ १२२ तस्स णं चुलणी देवी । धट्ठज्जुणे कुमारे जुवराया || १२३. तए णं सा सूमालिया देवी ताम्रो देवलोगात्रो आउक्खएणं •ठिइक्खएर्ण भवक्खणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवसु कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स' रण्णो चुलणीए देवीए कुच्छिसि दारिय ताए पच्चायाया ॥ १२४. तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं श्रद्धट्टमाण य राईदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल - पाणिपायं जाव' • दारियं पयाया || १२५. तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तवारसाहियाए इमं एयारूवं नाम - जम्हा णं एसा दारियादुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया, तं होउ णं म्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जे' दोवई ॥ १२६. तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोष्णं गुणनिष्कन्नं नामधेज्जं करेंतिदोवई - दोवई ॥ १२७. तए णं सा दोवई दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव" गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय ' - निव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवइ ॥ १२८. तए णं सा दोवई रायवरकष्णा उम्मुक्कबालभावा" "विष्णय-परिणयमेत्ता जोगमणुपत्ता रूवेण य जोब्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था | १२६. तए णं तं दोवई रायवरकण्णं श्रण्णया कयाइ अंतेउरिया मायाम्म हामी पहायं जाव" सवालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता दुवयस्स रण्णो पायवंदियं पेसेंति ।। १३०. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा जेणेव दुबए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दुवयस्सरणी पायग्गहणं करेइ || १. ओ० सू० १४ । २. सं० पा० आउक्खएणं जाव चइत्ता । ataईए सयंवर - संकप्प-पदं १३१. लए णं से दुवए राया दोवई दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता दोवईए रायवरकण्णाए रुवे य जोवणे य लावण्णे य जायविम्हए दोवई रायवरकण्णं एवं वयासी - जस्स णं श्रहं तुमं पुत्ता ! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियताए ३. दुपयस्स ( ख, ग ) । ४. पाया ( क ) । ५. सं० पा०-- मासाणं जाव दारियं । ६. ना० १।१।२० । ७. नामधेज्जं (ख, घ) ८. ना० १।१६।३६ । ६. निव्वाय ( क ) 1 १०. सं० ० ११. ना० ११११४७ पा०-- उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठ सरीरा । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालसमं अज्झयणं (अवरकंका) २६७ सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुमं सुहिया वा दुहिया वा भवेज्जासि । तए णं मम जावज्जीवाए हिययदाहे भविस्सइ। तं णं अहं तव पुत्ता! अज्जयाए सयंवरं वियरामि। अज्जयाए णं तुमं दिन्नसयंवरा। जंणं तुम सयमेव राय वा जुवरायं वा वरेहिसि, से गं तव भत्तारे भविस्सइ त्ति कटु ताहि इटाहिं' •कंताहि पियाहि मणुण्णाहि मणामाहिं वग्गूहि° पासासेइ, आसासेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ बारवईए दूयपेसण-पदं १३२. तए णं से दुवए राया दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह गं तुम देवाणु प्पिया ! बारवई नयरिं । तत्थ णं तुमं कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, बलदेवपामोक्खे पंच महावीरे, उग्गसेणपामोक्खे सोलस रायसहस्से, पज्जून्नपामोक्खायो अट्ठारो कुमारकोडीओ, संबपामोवखाप्रो टूि दुहृतसाहस्सीओ, वीरसेणपामोक्खायो एक्कवीसं वीरपुरिससाहस्सीओ', महासेणपामोक्खायो छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अण्णे य बहवे राईसर-तलवरमाडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्टि-सेणावइ-सत्थवाहपभिइनो करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि'--एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए, चलणीए अत्तयाए, धटुज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ । तं" णं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा' अकालपरिहीण चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।।। १३३. तए णं से दुए करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि • कटट वयस्स रण्णो एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणप्पिया ! चाउग्घंटं पास रहं जुत्तामेव उवट्ठवेह । 'ते वि तहेव उवति " ।। १३४. तए णं से दूए पहाए जाव' अप्पमहायाभरणालंकियसरीरे चाउग्घंटे पास रहं १. सं० पा०- इद्राहि जाव आसासे६। . सं० पा०-करयल जाव कटट । २. रायवरवीर ° (ख, ग); वीरसाहस्सीणं ६. सो वि तहेव उवट्ठवेति (क, ख, ग, घ, (१।५।६)। 'कोकुंबियपुरिसे' तथा 'उबट्टवेह' एते क्रियापदे ३. वयह (क)। बहुवचनान्ते स्तः, तेनात्रापि बहुवचनान्ते ४. धिटु (ग)। क्रियापदे युज्यते । एवं प्रतीयते पाठपूरणे ५. ते (ख)। कश्चिद् विपर्ययो जातः। ६. अणुगिण्हमाणा (क, ग, घ)। १०. ना० १११।२७ । ७. परिहीणा (ख, घ)। Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ नायाधम्मकहाओ दुरुहइ, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहिसण्णद्ध'- बद्ध-वम्मिय-कवएहिं उप्पीलियसरासण-पट्टिएहि पिणद्ध-गेविहि आविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टेहि ° गहियाउहपहरणेहि-सद्धि संपरिवुड़े कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, पंचालजणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स' मज्झमझेणं जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वारवई नयार मज्झमझेणं अणुप्पविसइ, अप्पविसत्ता जणव कण्हस्स वासुदेवस्स वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटे आसरहं ठावेइ, ठावेत्ता रहाप्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवगरापरिविखत्ते पायचारविहारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्ह वासुदेवं, समुद्दविजयपामोक्खे य दस दसारे जाव' 'छप्पन्न बलवगसाहस्सीयो" करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयइ-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धयाए, चुलणीए अत्तयाए, धटुज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे अत्थि। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे ° समोसरह ॥ १३५. तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ •चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण ° -हियए तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ कण्हस्स पत्थाण-पदं १३६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि ॥ १३७. तए णं से कोडुंबियपुरिसे करयल परिगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थाए अंजलि • कटु कण्हस्स वासुदेवस्स एयमर्दु पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरि महया-महया सहेण तालेइ॥ १३८. तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस सं० पा०--सण्णद्ध जाव गहिया । ५. सं० पा०--करयल तं चेव जाव समोसरह । २. सुरट्ट (क, घ)। ६. सं० पा०-हतुटु जाव हियए। ३. ना० १।१६।१३२। ७. सं० पा.-करयल। ४. १३२ सूत्रानुसारेणाऽत्र 'सत्थवाहप्पभिइओ' ८. सामुदाणिया (ख, घ) । इति पाठः संगच्छते । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभयणं (अवर कंकर) २६६ ० o दसारा जाव' 'महासेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ" व्हाया जाव' सव्वालंकारविभूसिया जहाविभवइडिसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया * • एवं गयगया रह -सीया संदभाणीगया अप्पेगइया पायविहारचारेण" जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेति ॥ १३६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीविपामेव भो देवाणुप्पिया ! ग्राभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हय-गय*रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेणं सण्णा हेह, सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपि । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ॥ १४०. तए णं से कहे वासुदेवे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समत्तजालाकुलाभिरामें विचित्तमणि रयणकुट्टिमतले रमणिज्जे व्हाणमंडवंसि णाणामणि- रयण भत्ति चित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदए हिं गंधदहिं पुप्फोदएहि सुद्धोदएहिं पुणो-पुणो कल्लाणग-पवर मज्जणविहीए मज्जिए जाव" ० अंजणगिरिकूडसन्निभं गयवई नरवई दुरूढे ॥ १४१. तए णं से कण्हे वासुदेवे समुह विजयपामोक्खेहिं दसह दसारेहिं जाव" अणंगसेणापामोक्खाहि अगाहिं गणियासाहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव" दुहि - निग्घोसनाइयरवेणं वारवई नयरि मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुरट्ठाजणवयस्स मज्भंमज्झेणं जेणेव देसप्पते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचाल जाणवयस्स मज्भंमज्झेणं जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए || हस्थिणाउरे दूयपेसण-पदं १४२. तए णं से दुवए राया दोच्चं पिद्वयं सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरं" नयरं । तत्थ णं तुमं पंडुरायं सपुत्तयं १. ना० १।१६।१३२ । २. १३२ सूत्रानुसारेणाऽत्र 'सत्थवाहप्पमिइओ' इति पाठ: संगच्छते । ३. ना० १ १/४७ ४. सं० पा० - हयगया जाव अप्पेगइया | ५. पायचारविहारेणं ( क, ख, ग ) । ६. सं० पा०-- करयल जाव कन्हं । ७. अभिसेक्कं (क, ख, घ) 1 ८. सं० पा० - हयगय जाव पच्चष्पिणंति । ६. सं० पा०-- समत्त जालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० । १०. ओ० सू० ६३ । ११. ना० ११५१६ १२. ना० १।११३३ । १३. हरिथणपुरं (ख, घ) 1 Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० नायाधम्मक हाओ जुहिट्ठिल' भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेवं दुज्जोहणं भाइसय - समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सउणि कीवं प्रसत्थामं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए, चुलणीए प्रत्ताए घट्टज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ । तं णं तुब्भे दुवयं रायं श्रणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ॥ o १४३. तए णं से दूए जेणेव हत्थिणाउरे नयरे जेणेव पंडुराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुरायं सपुत्तयं - जुहिट्ठिलं भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेव, दुज्जोहणं भाइसय- समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सउणि कीवं आसत्थाम एवं ars -- एवं खलु देवाणुपिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए, चुलणीए प्रत्तयाए, धटुज्जुणकुमारस्स भइणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे प्रत्थि । तं णं तुभे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ॥ १४४. तए णं से पंडुराया जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव' जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ 0 पेण-पदं १४५. एएणेव कमेणं- तच्चं दूयं एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! १. जुहिट्ठिल्लं (घ ) । २. भायसय ० (ख, घ ) । ३. सं० पा० - करयल जाव कट्टु तहेव जाव समोसरह । ४. सं० पा० - तए गं से हुए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव; पू० - ना० १।१६।१३३,१३४ ॥ ५. पू० - ना० १११६ १३४ । ६. ना० १।१६। १३५-१४१ । ७. सं० पा० - तच्चं दूयं चंपं नयरिं । तत्थ णं तुमं करणं अंगराय सल्लं नंदिरायं करयल तहेव जाव समासरह । चउत्थं दूयं सोत्तिमई नयरिं । तत्थ णं तुमं सिसुपाल दमघोससुयं पंचभाइसयसंपरिवुडं करयल तहेब जाव चंपं नयरिं । तत्थ णं समोसरह । पंचम दूयं हत्थिसीसं नयर । तत्थ णं तुमं दमदंतं रायं करयल जाव समोसरह । छ दूयं महुरं नयरिं । तत्थ णं तुमं धरं रायं करयल जाव समोसरह । सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं । तस्य ण तुम सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । अट्टमं दूयं कोडिण्णं नयरं । तत्थ णं तुम रुप्पि भेगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह । नवमं दुयं विराटं नयरिं । तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव समोसरह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरे गाई रायसहस्साई जाव समोसरह । तए गं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर तहेब जाव समोसरह । Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) तुमं कणं' अंगराय, सल्लं नंदिरायं एवं वयाहि -कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । चउत्थं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणप्पिया ! सोत्तिमइं नयरि । तत्थ णं तुम सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं एवं वयाहि - कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। पंचमं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हत्थिसीसं नयरिं। तत्थ णं तुमं दमदंतं रायं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । छटुं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! महुरं नयरिं । तत्थ णं तुमं धरं रायं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । सत्तमं दूयं एवं वयासी गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! रायगिहं नरिं । तत्थ णं तुम सहदेवं जरासंधसुयं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। अट्ठमं दूयं एवं वयासी गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! कोडिण्णं नयरं । तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगसुयं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । नवमं दूयं एवं क्यासी- गच्छह ण तुमं देवाणुप्पिया ! विराटं नयरं । तत्थ गं कीयगं भाउसय-समग्गं एव वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोस रह। दसमं दूयं एवं वयासी- गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! अवसेसेसु गामागरनगरेसु । तत्थ णं तुमं अणेगाइं रायसहस्साइं एवं वयाहि--कंपिल्लपुरे नयरे' समोसरह । रायसहस्साण पत्याण-पदं १४६. तए णं ते" बहवे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तेयं व्हाया सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय १. कण्हं (क्व)। रेति सम्माति, सकारता सम्माणेत्ता २. शेष १३२-१३४ सूत्रवत् पूरणीयम् । पडिविसज्जेति' ख, ग, घ] । १३४ मूत्र त् ३-८. शेष १३२-१३४ सूत्रवत् पूरणीयम् । १४५ सूत्रपर्यन्तं 'क' प्रती एतावान एव पाठ: ६. शेषं १३२-१३४ सूत्रवत् पूरणीयम् । अन्ति- उपलभ्यते । गच्छह णं तुम देवाणु रायगिहं मात समोसरह' इति पदादग्रे निम्नलिखितः नयरं । तत्थ णं तुम सहदेव रायाणं अण्णे य पाठो लभ्यते, किन्तु पूर्वक्रमानुसारेण असौ जाव बहवे जाव बद्धावेत्ता एवं वयह-एवं संक्षिप्तपाठपद्धतावेव गभितोस्ति, तेना- खलु देवाणुप्पिया। कंपिल्लपुरे जाव समो. त्रास्माभिः पाठान्तररूपेण स्वीकृतः । 'तए सरह । एवं महुराए उम्गेणं उग्गसेण वा णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर रायं। हथिणाउरे पंडु सपूत्तयं । वइराडए नगराई जेणे व अणेगाइं रायसहस्साई तेणेव _णगरे दुजोहणं भाइसतसमग सउणि उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं क्यासी- सल्लगि च जयद्दह दोण आसत्थामं अण्णेय। कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । तए णं ताई दंतपूरी दंतवक्को । चंपाए पउमराया। तए अणेगाई रायसहस्साइं तस्स दूयस्स अंतिए णं से दूए तहत्ति जाव पडिसुणे इ । एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठा तं दूयं सक्का- १०. ते वासुदेवपामोक्खा [क, ख, ग, घ] । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ नायाधम्मकहाओ कवया' हत्थिखंधवरगया हय-गय-रह- पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुड़ा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता' सएहि-सएहिं नगरेहितो अभिनिग्गच्छंति, अभिनिग्गच्छित्ता जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। दुवयस्स प्रातित्थ-पद १४७. तए णं से दुवए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -गच्छह णं तुमं देवाणप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे बह्यिा गंगाए महानईए अदूरसामंते एग महं सयंवरमंडवं करेह --अणेगखंभ-सयसन्निविटुं लीलट्ठिय-सालिभंजियागं जाव पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं--करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ।। १४८. तए णं से दुवए राया [दोच्चंपि ?] कोडंबियपुरिसे सद्दावे इ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वासुदेवपामोक्खाणं वहूर्ण रायसहस्साणं आवासे करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ।। १४६. तए णं से दुवए राया वासुदेवपामोक्खाणं बहूर्ण रायसहस्साणं प्रागमणं जाणेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं हत्थिखंध"वरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे मह्याभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते ° अग्धं च पज्जं च गहाय सव्विड्डीए कंपिल्लपुरानो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताई वासुदेवपामोक्खाई अग्घेण य पज्जेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तेसि वासुदेवपामोक्खाणं पत्तेयं-पत्तेयं आवासे वियरइ । तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया-सया पावासा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिखंहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता सएसु-सएसु आवासेसु अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता सएसु-सएसु आवासेसु' पासणेसु य सयणेसु य सन्निसण्णा य संतुयट्टा य बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य विहरंति ॥ १५१. तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नयरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता विपुलं वासुदेवस्य प्रस्थान विषयकं सूत्रं पूर्वं साक्षात् ३. सं० पा०—रह मया । उल्लिखितमस्ति, तथैव पाण्डुराजस्यापि, ४. ना० १११८६। तेनासौ पाठः पाठान्तररूपेण स्वीकृतः । ५.x (ग, घ)। १. पू०-ना० १।१६।१३४ । ६. सं० पा०-हत्थिखंध जाव परिवुडे । २. पू०-ना० १८।५७; १९१६:१५३ । ७. आवासेसु य (क, ख, ग, घ)। Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभयणं (प्रवरकंका) ३०३ असण-पाण- खाइम- साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाणखाइम साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च सुबहं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह । तेवि साहति ॥ १५२. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा तं विपुलं असण - पाणखाइम - साइमं सुरं व मज्जं च मंसं च सीधुं च° पसन्नं च प्रसाएमाणा विसादेमाणा परिभाएमाणा परिभुजे माणा विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा श्रायंता चोक्खा' 'परमसुइभूया सुहासणवरगया बहूहि गंधव्वेहि य' नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य° विहरति ॥ दोवईए सयंवर - पदं १५३. तए णं से दुवए राया पञ्चावरण्ह - कालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे सिंघाडग"• तिग- चउक्क-चच्चर- चउम्मुह - महापह पहेसु वासुदेवपामोक्खाणं रायसहसाणं श्रावासे हत्थखंधव रगया महया मया सदेणं उग्घोसेमाणा एवं वयहएवं खलु देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्रस्सिम्मि दियरे तेयसा जलते दुवयस्स रण्णो धूयाए, चुलणीए देवीए प्रतियाए, घट्टज्जुणस्स भगिणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ | तं तुभे णं देवाणुप्पिया ! दुवयं रायाणं श्रणुगिरहेमाणा व्हाया जाव' सव्यालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंट' मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणे सेवरचामराहि वीइज्जमाणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महयाभड चडगर-रह-पहकर-विंद परिक्खित्ता जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं-पत्तेयं नामंकिएसु आससु निसीयह, निसीहत्ता दोवई रायवरकण्णं पडिवालेमाणा- पडिवालेमाणा चिट्ठह त्ति" घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चपिह || १५४. तए णं ते कोटुंबियपुरिसा तहेव जाव" पच्चष्पिणंति || १. सं० पा० - असण जाव पसन्नं । २. सं० पा० - चोक्खा जाव सुहासणवरगया । ३. सं० पा० -- गंधव्वेहि य जाव विहरति । ४. पुव्वावरण्ह ( ख, ग, घ ) । ५. सं० पा०-- सिंघाडग जाय पहेसु । ६. पू ० ना० १।१।२४ । ७. ना० १११४७ । ८. सं० पा०--- सकोरेंट • सेयचामर हय-गयरह-मह्याभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता | ९. नामकेसु (क, ख, ग, घ ) । १०. × (क, ख, ग ) । ११. ना० १।१६ १५३ । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ नायाधम्मकहाओ १५५. तए णं से दुवए राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! सयंवरमंडवं आसिय-संमज्जिवलित्तं पंचवण्ण'पुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवरकंदुरुक्क-तरुक्क'-'धुव-डज्झत-सूरभिमघमघेत-गंधद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं. गंधवट्रिभूयं मंचाइमंचकलियं करेह कारवेह, करेता कारवेत्ता वासुदेवपामोक्खाणं बहुणं रायसहस्साणं पत्तेयंपत्तेयं नामंकियाइं पासणाई अत्थुयपच्चत्थुयाई रएह, रएत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि जाव पच्चप्पिणंति ।। १५६. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पहाया जाव' सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि वीइज्जमाणा हय-गय. रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता सव्विड्डीए जाव' दुंदुहि-निग्घोस-नाइयरवेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता पत्तेयं-पत्तेयं नामंकिएसु प्रासणेसु निसीयंति दोवइं रायवरकण्णं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिटुंति ।। १५७. तए णं से दुवए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणोए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते ण्हाए जाव" सव्वालंकारविभूसिए हथिखंधवरगए सकोरेंट" मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वोइज्जमाणे ह्य-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवडे मह्याभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते कंपिल्लपुरं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, जेणेव सयंवरामंडवे जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं करयल•परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ °, वद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे चिट्ठइ ।। १५८. तए णं सा दोवई रायवरक ण्णा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए" उट्ठियम्मि सूरे १. सुगंध-वरगंधियं पंचवण्ण (क ख, ग, घ)। २. सं० पा०-तुरुक्क जाव गंधवट्टिभूयं । ३. नामंकाई (क, ख, ग, घ)। ४. पू०-ना० १११।२४। ५. ना० १११।१४७। ६. सं० पा०-हयगय जाव परिवुडा। ७. ना० १।११३३ । ८. नामकेसु (ख, घ)। ६. पू०-ना० ११११२४ । १०. ना० २११४७ 1 ११. सं० पा०--सकोरेंट हयगय । १२. सं० पा०-करयल वद्धावेत्ता। १३. पू.---ना० १११।२४ । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयण (अवरकं का) सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मज्जणधरे तेणेव उव छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अगुपविसित्ता हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिया मज्जणघरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता जिणघर अणपविसइ, अणपविसित्ता जिणपडिमाणं अच्चणं करेइ, करेत्ता' जिणधरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंतेउरे तेणेव उवागच्छइ॥ १५६. तए णं तं दोवई रायवरकरणं अंतेउरियायो सवालंकारविभूसियं करेंति । कि ते ? वरपायपत्तनेउरा जाव' चेडिया-चक्कवाल-'महय रग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिमित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउरघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहि याए सद्धि चाउग्घटं पास रहं दुरूहइ ॥ १६०. तए णं से घटुज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकण्याए सारत्थं करेइ ।। १६१. ताणसा दावई रायवरकण्णा कपिल्लपुरं नयरं मझमझणं जेणेव सयंवरा मंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता रहं ठवेइ, रहाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किडावियाए लेहियाए सद्धि सयंवरामडवं अणुपविसइ, अणपविसित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° तेसि वासुदेव पामोक्खागं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ ॥ १६२. तए ण सा दोवई रायबरकण्णा एगं महं सिरिदामगंडं-किं ते? पाडल १. जिणपडिमाण अच्चण करेइ ति एकस्यां कट्ट एवं वयासी-नमोत्थ णं अरहंताणं वाचनायामेतावदेव दृश्यते (वृ) । वाचनान्तरे जाव संपत्ताणं वंदइ नमसइ नमसित्ता जिणतु ---हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया घराओ पडिनिक्खमई (वृपा, क, ख, ग, घ)। मज्जणधरराओ पडिनिक्खमइ जेणामेव जिण- २. कि तत 'यत् करोति' इति शेषः । घरे तेणामेव उवागन्छनि जिणधरं अणुपवि. ३. ना०१११३३। सइ, अणाविसित्ता जिणपडिमाणं आलोए ४. मयहरिंग ० (क); मयहरग ० (ख, घी पणाम करेइ, करेसा लोमहत्थग परामुसइ, मयहरयंद (ग); यद्यपि पाठसंशोधन-प्रयूक्तेषु परामूसित्ता एवं जहा मरियाभे जिणपडिमाओ आदर्शषु 'मयहरग' ° इतिपाठो लभ्यते किन्तु अच्चेति तहेव भाणियध्वं जाव धूवं डहइ २ 'ओवाइयं' ७० सूत्रे 'महत्तरवंद' इति पाठोवाम जाण अंचेइ, दाहिणं जाणं धरणितलसि स्ति, तदनुसारेण 'मयरगवंद' इति पाठोऽनिहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसइ । स्माभिः स्वीकृतः । लिपिदोषेण यकार[निमेइ (क, म); निसीयइ (घ); निवाडेइ हकारयोविपर्ययः संजातः इति संभाव्यते । (राय० सू० २६२)] ईसि पच्चुण्णमइ ५. सयवरमंडवे (क, ख, ग, घ)। पच्चूग्णमित्ता करयलपरिसगहियं अंजलि मत्थए ६. सं० पा०-करयल । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ मल्लिय-चंपय जाव' सत्तच्छयाईहि' गंधद्धणि मुयंत परमसुहफासं दरिसणिज्ज -- गेण्हइ॥ तए णं सा किड्डाविया सुरूवा' साभावियघंसं वोद्दहजणस्स उस्सुयकरं विचित्तमणि-रयण-बद्धच्छरुहं वामहत्थेणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दप्पणसंकंतबिंब-संदंसिए' य से दाहिणणं हत्थेणं दरिसए पवररायसीहे ! फुडविसयविसुद्ध-रिभिय-गंभीर-महुरभणिया सा तेसिं सव्वेसिं' पत्थिवाणं अम्मापिउवंस-सत्त-सामत्थ-गोत्त-विक्कंति-कंति बहुविहागम-माहप्प-रूव - कुलसीलजाणिया कित्तणं करेइ । पढम ताव वहिपुंगवाणं दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं", सत्तु-सयसहस्स-माणावमद्दगाणं२ 'भवसिद्धिय-वरपुंडरीयाणं" चिल्लगाणं बल-वोरिय-रूव-जोवण्ण-गुण-लावण्ण कित्तिया कित्तणं करेइ । तो पुणो उग्गसेणमाईण जायवाणं भणइ--सोहग्गरूवकलिए वरेहि वरपुरिसगंधहत्थीणं जो हु ते होइ हियय-दइयो । दोवईए पंडव-वरण-पदं १६४. तए णं सा दोवई रायावरकण्णगा बहूणं रायवरसहस्साणं मझमझेणं समइच्छमाणी-समइच्छमाणी पुवकयनियाणेणं चोइज्जमाणी-चोइज्जमाणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते पंच पंडवे तेणं दसद्धवणेणं कुसुमदामेणं आवेढियपरिवेढिए करेइ, करेत्ता एवं वयासी-एए णं भए पंच पंडवा वरिया।। १६५. तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाइ बहूणि रायसहस्साणि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणाई-उग्घोसेमाणाइं एवं वयंति -सुवरियं खलु भो ! दोवईए रायवरकण्णाए ति कटु सयंवरमंडवानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सया-सया ग्रावासा तेणेव उवागच्छति ।। १६६. तए णं धटुज्जुणे कुमारे पंच पंडवे दोवई च" रायवरकण्णं चाउग्घंटं आसरहं वर्तते। १. ना० ११८।३०। ६. दसदसार (ग)। पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य २. १९३० सूत्रे 'सत्तच्छयाईहि' इति पाठो १३२ सूत्रे द्रष्टव्यः । नोपलभ्यते तथा येषां पदानामपि क्रमभेदो १०. तिल्लोक ० (क)। ११. सक्क (घ)। ३. सं० पा०-सुरूवा जाव वामपत्थेणं । १२. माणोवमगाणं (ख, घ)। ४. बिबं (ख, ग)। १३. भवसिद्धिपवर ° (क्व) ! ५. दंसिए (घ)। १४. °माइयाणं (क)। ६. दरिसीएइ (ख); दरसिए (घ)। १५. समतिच्छमाणी (ख, ग, घ)। ७. सव्व (क, ख, ग)। १६. X (ग)। ८. कित्ति (वृपा)। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं । अवरकंका) ३०७ 'दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता" कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमझेणं •उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता ° सयं भवणं अणुपविसइ ।। पाणिग्गहण-पदं १६७. तए णं से दुवए राया पंच पंडवे दोवई च' रायवरकण्णं पट्टयं 'दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता" सेयापीयएहि कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोम करावेइ', पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं कारावेइ । १६८. तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकण्णाए इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं जहा--पट्ट हिरण्णकोडोयो जाव' पेसणकारीओ दासचेडीओ, अण्णं च विपूलं धण-कणग'-.रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सारसावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमानो कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं° दलयइ ।। १६६. तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाई बहूई रायसहस्साइं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध- मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मा णइ, सक्कारता सम्माणत्ता पडिविसज्जइ।। पंडुरायस्स निमंतण-पदं १७०. तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयल'" 'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य देवीए कल्लाणकारे" भविस्सइ। तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं अणुगिण्हमाणा अकालपरि हीणं चेव समोसरह !! १७१. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बढे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तेयं •ण्हाया सण्णद्ध वद्ध-वम्मिय-कवया" हत्थिखंधवरगया जाव" जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव. पहारेत्थ गमणाए । १. दुल्हेइ २ (क, ख, ग, घ) । अस्मिन्नर्थप्रसंगे ६. कारेइ (क, घ); करेइ (ग)। प्रेरणार्थक क्रियापदं युज्यते । आदर्शषु तथा ७. ना० १।१।६१ टिप्पणगाथा । नोपलभ्यते। १।१६।५१ सूत्रस्य संदर्भण ८. सं० पा०-कणग जाव दलयइ । एतत् क्रियापदं मूलपाठे स्वीकृतम् । ६. सं० पा०-गंध जाव पडिविसज्जेइ। २. स. पा०--मझमज्झेणं जाव सयं । १०. सं० पा०-करयल जाव एवं । ३. X (ख, ग)। ११. कल्लाणकारी (क); कल्लाणकरे (घ)। ४. दुरुहेइ २ (क, ख, ग, घ)। द्रष्टव्यम्--१६६ १२. सं० पा०-पत्तेयं जाव पहारेत्थ । सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १३. पू०-ना० १४१६४१३४ । ५. करेइ (ख, घ); कारवेइ (ग)। १४. ना० १११६:१४६ । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ पंडुरायस्स आतित्थ-पदं १७२. तए णं से पंडू राया कोडवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी—गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया । हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं पंच पासायडिसए कारेह-अभुग्गयमूसिय जाव पडिरूवे ।।। १७३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा पडिसुणेति जाव कारवेति ॥ १७४. तए ण से पंडू राया पंचहि पंडवेहिं दोवईए देवीए सद्धि हय-गया- रह-पवर जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभडचडगर-रह-पहकरविंदपरिक्खित्ते • कंपिल्लपुरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए। १७५. तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ---गच्छह गं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हथिणाउरस्स नयरस्स वहिया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं प्रावासे -प्रणेगखंभसयसण्णिविढे' कारेह, कारेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि तहेव पच्चप्पिणंति ॥ १७६. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हथिणाउरे तेणेव उवागए। १७७. तए णं से पंडू राया ते वासुदेवपामोक्खे 'बहवे रायसहस्से ° उवागए जाणित्ता हट्टतुटे पहाए कयवलिकम्मे जहा दुवए जाव' जहारिहं आवासे दलया। १७८. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बढे रायसहस्सा जेणेव सया-सया पावासा तेणेव उवागच्छंति तहेव जाव विहरति ।। १७६. तए णं से पंडू राया हत्थिणारं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता कोडुविय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुभे णं देवाणुप्पिया! विपुलं असण पाण-खाइम-साइमं आवासेसु उवणेह । तेवि तहेव उवणेति ।। १८०. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पहाया कयलिकम्मा कय कोउय-मंगल-पायच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं ग्रासाएमाणा तहेव जाव विहरंति ।। कल्लाणकार-पदं १८१. तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे दोवइं च देवि पट्टयं 'दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता सेया १. वण्णो जाव(क, ख, ग, घ) ना० ११८६। ७. ना० १११६।१५० । २. सं० पा०-हयगय संपरिबुडे । ८. पू०-ना० १६१६।१५१ । ३. पूछ-ता० ११११८६1 ६. ना० १११६१५२। ४. सं० या०-वासुदेवपामोवखे जाव उवागए। १०. दुरुहेइ २ क, ख, ग, घ) द्रष्टव्यम्-१६६ ५. आगए (ग)। सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. ना० १११६११४६ । Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) पीएहि कलसेहि व्हावेइ,ण्हावेत्ता कल्लाणकारं करेइ',करेत्ता ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्ला लंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। १८२. तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाइं बहूई रायसहस्साई पंडूएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साइं-साइं रज्जाइं जेणेव साइं-साई नगराइं तेणेव ° पडिगयाई॥ १८३. तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धि कल्लाकल्लि वारंवारेणं उरालाई भोगभोगाई "भुजमाणा° विहरंति ।। नारदस्स प्रागमण-पदं १८४. तए णं से पंडू राया अण्णया कयाइं पंचहि पंडवेहि कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धि अंतोते उरपरियालसद्धि संपरिवडे सीहासणवरगए यावि विहरइ ।। १८५. इम च ण 'कच्छल्लनाराए-दसणण अइभद्दए विणाए प्रता-अतो य कलूस हियए 'मज्झत्थ-उवस्थिए" य अल्लीण-सोमपियदसणे सुरूवे अमइल-सगलपरिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउडदित्तसिरए जन्नोव इय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-वागलधरे हत्थकय-कच्छभीए' पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-अोवयणुप्पणि-लेसणीसु य संकाणि-अाभियोगि"-पण्णत्ति-गमणि'-थंभिणीसु य बहसु विज्जाहसुरी विज्जासु विस्सुयजसे इढे रामस्स य केसवस्स य पज्जुन्न-पईव-संब-अनिरुद्धनिसढ-उम्मुय-सारण-गय-सुमुह-दम्मुहाईगं" जायवाणं अट्ठाण य कुमारकोडीणं हियय-दइए संथवए कलह-जुद्ध-कोलाहलप्पिए“ भंडणाभिलासी बहूसु य समरसयसंपराएस दंसण रए समंतयो कलहं सदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कवलवगाणं आमंतेऊण तं भगवई पक्कमणि गगणगमणदच्छं उप्पइयो गगणमभिलंघयंतो गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब दोणमुह-पट्टण-संवाह-सहस्समंडियं थिमियमेइणीय निव्भर -जणपदं वसुहं १. सीया (क, ख, ग)। पाठोऽपि लभ्यते । २. कल्लाणालंकार (क) कल्लाणलंकारं (ख); १०. अभिओग (क, ख, ग, घ)। कल्लाणकरं (घ)। ११. गमण (ख); गमणी (घ)। ३. कारेइ (ख)। १२. X (ख)। ४. सं० पा०-बहुई जाव पडिगयाइं । १३. दुमुहा० (घ)। ५. परिगयाई (क)। १४. कोउहल ° (ख)। ६. सं० पा०–भोगभोगाई जाव विहरति । १५. पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य १३२ सूत्रे द्रष्टव्यः । ७. कुंतीए (ख)। १६. थिमियमेयणीतलं (ग)। ८. मज्झत्थोवत्थिए (ग)। १७. निभय (ख)। ६. एकस्यां हस्तलिखितवृत्ती 'कच्छवीए' इति Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ओलोइंते रम्मं हत्थिणाउरं उवागए पंडुरायभवणंसि'" "झत्ति-बेगेण" समो वइए॥ १८६. तए णं से पंडू राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहिं पंडवेहि कुंतीए य देवीए सद्धि प्रासणानो अब्भुटेइ, अब्भुट्ठत्ता कच्छुल्लनारयं सत्तट्ठपयाइं पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता महरिहेणं 'अग्घेणं पज्जेणं यासणेण य उवनि मंतेइ ।। १८७. तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दभोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पंडुरायं रज्जे य' •रटे य कोसे य कोट्ठागारे य वले य वाहणे य परे य° अंतेउरे य कूसलोदंतं पच्छइ। १८८. तए णं से पंडू राया कोंती देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लनारयं श्रादति' परिया णति अभद्रुति° पज्जुवासंति । १८६. तए णं सा दोवई देवी कच्छुल्लनारयं 'अस्संजयं अविरयं अप्पडिहयपच्चखाय पावकम्मंति" कट्ट नो पाढाइ नो परियाणइ नो अब्भुटेइ नो पज्जुवासइ ।। १६०. तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - अहोणं दोवई देवी रूवेण य जोवणेण य ° लावण्णेण य पंचहि पंडवहिं अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ 'नो परियाणइ नो अब्भटेइ° नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं पापुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पणि विज्ज आवाहेइ, अावाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए." "तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाए जइणाए छेयाए ' विज्जाहरगईए लवणसमुई मज्झमज्झणं पुरत्थाभि मुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था। नारदस्स अवरकंका-गमण-पदं १६१. तेणं कालेणं तेणं समएणं धाय इसंडे दीवे पुरथिमद्ध-दाहिणड्ड-भरहवासे अवर कंका नाम रायहाणी होत्था ।। १. कच्छुल्लनारए जाव पंडुस्स रण्णो भवणंसि ६. अस्संजय-अविरय-अप्पडिहयअपचनक्खायगाव(क) अस्य संक्षिप्तपाठस्य परम्पराया कम्मति (क, ग)। उल्लेखो वृत्तावपि लभ्यते, यथा-इह ७. सं० पा०--रूवेण य जाव लावण्णेण । क्वचिद् यावत् करणादिदं दृश्यम् (व)। ६. अद्धा (ख)। २. मइवेगेणं (ख, ग, घ)। 8. सं० पा०-आढाइ जाव नो पज्जुवासइ । ३. X (ग, घ)। १०. उप्पणि (ख, ग)। ४. सं० पा०--रज्जे य जाव अंतेउरे । ११. सं० पा०- उक्किट्राए जाव विज्जाहरगईए। ५. सं० पा०-आदति जाव पज्जुवासंति। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभय (अवरकंका) १६२. तत्थ णं श्रवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभे नामं राया होत्था -- महयाहिमवंतमहंत - मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णो ॥ १९३. तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाई प्रोरोहे होत्था || १६४. तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवरायावि होत्या || १६५. तए णं से पउमनाभे राया तो अंतेउरंसि ओरोह संपरिवुडे सीहासणवरगए विहरइ || १९६. तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि भत्ति-वेगेण समोइए || १६७. तए गं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता असणा प्रभु, प्रभुत्ता अग्घेणं पज्जेणं असणेणं उवनिमंतेइ || १६८. तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दम्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ', 'निसीइत्ता पउमनाभं रायं रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्टागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य° कुसलोदंतं प्रापुच्छइ । १६६. तए ण से पउमनाभे राया नियगोरोहे जायविम्हए कच्छुल्लनारयं एवं वयासी -- तुम देवाणुप्पिया ! वहूणि' गामागर-नगर-खेड- कब्बड-दोणमुह-मडंव-पट्टणअसम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाई ग्राहिडसि, बहूण य राईसर - तलवर - माडवियकोडुंबिय इभ-सेट्ठि- सेणावइ सत्थवाहपभिईणं • गिहाई प्रणुपविससि तं प्रत्थि - या ते कहिंचि देवाणुपिया ! एरिसए ओरोहे दिट्ठपुब्वे, जारिसए णं मम मोरोहे ? o २००. तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं एवं वृत्ते समाणे ईसि विहसियं करेइ, करेत्ता एवं व्यासी-सरिसे णं तुमं पउमनाभा ! तस्स अगडदरस्स । केणं देवापिया ! से गडददुरे ? १. ओ० सू० १४ । २. सं० पा०---येणं जाव असणेणं । ३. सं० पा० - निसीयइ जाव कुसलोदतं । “• पउमनाभा ! से जहानामए अगडदद्दुरे सिया । सेणं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढे अण्णं श्रगड वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे मण्णइ - श्रयं चैव अगडे वा तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा । तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए ददुरे हव्वमागए । तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं ददुरं एव वयासी --से के तुमं देवाणुप्पिया ! कत्तो वा इह हब्वमागए ? तए णं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवददुरं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सामुद्दए ददुरे । ३११ ४. सं० पा० - बहूणि गामाणि जाव गिहाई । ५. सं० पा० – एवं जहा मल्लिगाए । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ नायाधम्मकहानो तए णं से कूवददुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासी--केमहालए णं देवाणुप्पिया.! से समुद्दे ? तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी-महालए णं देवाणुप्पिया ! समुद्दे । तए णं से कूबददुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं वयासी--एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इण8 समढें । महालए णं से समुद्दे ।। तए णं से कबददुरे पुरथिमिल्लानो तीराओ उफिडित्ता णं पच्चथिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणटे समटे । एवामेव तुमं पि पउमनाभा! अण्णेसि बहूणं राईसर जाव' सत्थवाहप्पभिईणं भज्जं वा भििण वा धूयं वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए णो अण्णेसि । एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नयरे दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य' 'जोवण्णेण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किदसरीरा ! दोवईए णं देवीए छिन्नस्सवि पायंगुटुस्स अयं तव ओरोहे सयंपि कलं न अग्घइत्ति कटु पउमनाभं प्रापुच्छइ', 'आपुच्छित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। दोवईए साहरण-पदं २०१. तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म दोवईए देवीए रूबे य जोवण्णे य लावण्णे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अझोववण्णे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल अणप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्टइ।।। २०२. तए णं पउमनाभस्स रणो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पुव्वसंगइओ देवो जाव' आगयो। भणंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं ।। २०३. तए णं से पउमनाभे° पुन्वसंगइयं देवं एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे "नयरे दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य १. ना० ११५४६। २. सं. पा.--हवेण य जाव उक्किटुसरीरा। ३. सं. पा.---आपुच्छइ जाव पडिगए। ४. सं० पा०---पोसहसालं जाव पुटवसंगइयं ! ५. ना० १२११५४-५७ । ६. सं० पा०-हत्थिणाउरे जाव सरीरा। Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) जोवण्णेण य लावण्येण य उक्किट्ठा उक्किट ° सरीरा। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! दोवई देवि 'इह हव्वमाणीय" । तए णं से पुत्वसंगइए देवे पउमनाभं एवं वयासी-नो खलु देवाणु प्पिया। एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्म वा जण्णं दोवई देवी पंच पंडवे मोत्तणं अण्णेणं पुरिसेणं सद्धि उरालाई 'माणुस्सगाई भोग भोगाइं भुजमाणी विहरिस्सइ । तहावि य णं अहं तव पियट्टयाए दोवई देवि इहं हव्वमाणेमि त्ति कटु पउमनाभं प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए लवणसमुदं मज्झमझेणं जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणे व पहारेत्थ गमणाए। २०५. तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणाउरे नयरे जुहिडिल्ले राया दोवईए देवीए सद्धि उपि अागासतलगंसि सुहप्पसुत्ते यावि होत्था ।। २०६. तए णं से पुव्व संगइए देवे जेणेव जुहिदिल्ले राया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवामच्छित्ता दोवईए देवीए प्रोसोवणि दलयइ, दल इत्ता दोवई देवि गिण्हइ, गिण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्याए उद्धयाए दिब्याए ' देवगईए जेणव अवरकंका' जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणे व उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स भवणंसि असोगवणियाए दोवइं देवि ठावेद, ठावेत्ता ओसोवणि अवहरइ, अवहरित्ता जेणेव पउमनामें तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी -एस णं देवाणु प्पिया ! मए हत्थिणाउरायो दोवई देवी इहं हन्वमाणीया तव असोगवणियाए चिट्ठइ । अयो परं तुमं जाणसि त्ति कटु जामेव दिसिं पाउभूए तामेव दिसि पडिगए । दोवईए चिता-पदं २०७. तए णं सा दोवइ देवी तो मुहुत्तंत रस्स पडिबुद्धा समाणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं क्यासी-नो खलु अम्हं 'एसे सए भवणे" नो खलु एसा अम्हं सगा असोगवणिया। तं न नज्जइ णं अहं केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्ण रेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा अण्णस्स रण्णो असोगवणियं साहरिय त्ति कटु ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्भाणोवगया झियायइ ।। १. माणीयं (क, ख, ग)। २. सं० पा०-उरालाई जाव विहरिस्सइ । ३. सं० पा०-उक्किट्टाए जाव देवगईए। ४. ओसोवणियं (ख)। ५. सं० पा०-.--उक्किदाए जाव देवमईए। ६. अमरकंका (ख, ग, घ)। ७,८. दिसं (क)। ६. इमे सए पासाए (घ)। १०.सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा जाव भियायइ। Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ पउमनाभस्स प्रासासण-पदं २०८. तए गं से पउमनाभे राया पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए अंते उर - परियाल - संपरिवुडे जेणेव असोगवणिया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवई देवि श्रहमणसं कप्पर करतलपल्हत्थमुहिं ग्रदृज्झाणोवगयं • झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं व्यासी - किन्नं तुमं देवाणुप्पिए ! श्रोहयमणसंकप्पा' करतलपल्हत्थमुही ग्रट्टज्झाणोवगया भियाहि ? एवं खलु तुमं देवाप्पिए ! मम पुव्वसंगइएणं देवेणं जंबुद्दीवाओं दोवाम्रो भारहाम्रो वासामो हत्थणाउराम्रो नराम्रो जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाम्रो साहरिया । तं माणं तुमं देवाप्पिया ! श्रयमणसंकप्पा' करतलपल्हत्थमुही प्रट्टज्भाणोवगया' भियाहि । तुमं णं मए सद्धि विपुलाई भोगभोगाई' भुजमाणी' विहराहि ॥ २०६. तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं एवं वयासी -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! जबुद्दीवे दीवे भारहे वासे बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेव मम पियभाउ परिवसइ । तं जइ णं से छण्हं मासाणं मम कूवं नो हव्वमागच्छर, तए णं ग्रह' देवाप्पिया ! जं तुमं वदसि, तस्स प्राणा- प्रोवाय वयणनिसे चिट्ठिस्सामि ॥ २१०. तए णं पउमनाभे दोवईए देवीए एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता दोवई देवि कण्णते उरे' ठवे ॥ नायाधम्मक हाओ २११- तए णं सा दोवई देवी छटुंछद्वेणं प्रणिक्खित्तेणं आयंबिल परिग्गहिएणं" तवोकम्मेण अप्पाणं भावे माणी विहरइ ॥ दोवईए गवसणा-पदं २१२ त गं से जुहिट्ठिल्ले राया तो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोन वि पासमा णिज्जाश्रो उट्ठेइ, उट्ठेत्ता दोवईए देवीए सव्वश्रो समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पर्वत वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडु रायं एवं वयासीएवं खलु ताम्र ! ममं प्रागासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाश्रो दोवई देवी न नज्जइ केइ देवेण वा दाणवेण वा 'किण्णरेण वा किंपुरिसेण" वा महोरगेण ६. सं० पा० - भोगभोगाई जाव विहराहि । ७. हं (क, ख ) । ८. कण्णतेउरंसि ( क ) | १. ना० ११११४७ । २. सं० पा० - हयमणसंकल्पं जाव भियायमाणि । ३. सं० पा०-- प्रोहयमणसंकप्पा जाव भियाहि । ६. ठावेइ (ग) 1 ४. झियासि ( क ) 1 १०. पग्गहिएणं ( ग ) | ५. सं० पा० - हयमणसंकप्पा जाव कियाहि । ११. किंपुरिसेण वा किन्नरेण ( ख, ग, घ ) । ० Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३१५ वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा प्रवक्खित्ता वा । तं इच्छामि णं ताओ ! दोवईए देवीए सव्व समंता मग्गण - गवेसणं करित्तए' ॥ २१३. तए गं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे नयरे सिंघाडग-तिग- चउक्क - चच्चरउम्मुह महापहप सुमहया मया सद्देणं उग्घोसेमाणा - उग्घोसेमाणा एवं वयह— एवं खलु देवाणुप्पिया ! जुहिट्टिलस्स' रण्णो आागासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाश्रो दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा प्रवक्खित्ता वा । तं जो गं देवाप्पिया ! दोवईए देवीए सुइं वा खुइं वा पवत्ति वा परिकहेइ, तस्स णं पंडू राया विउलं ग्रत्थसंपयाणं दलयइत्ति कट्टु घोसणं घोसावेह, घोसावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह ॥ २१४. तणं ते कोवियपुरिसा जाव पच्चप्पियंति ॥ २१५. तए गं से पंडू राया दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पवत्ति वा श्रलभमाणे कौति देवि सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छ गं तुमं देवाणुपिए ! वारवई नयर कण्हस्स वासुदेवस्स एयम निवेदेहि- कण्हे वासुदेवे दोवईए मग्गण-गवेसणं करेज्जा, अण्णहा न नज्जइ दोवईए देवीए 'सुई वा खुई वा पवत्ती वा " ॥ २१६. तए णं सा कोंती देवी पंडुणा एवं वृत्ता समाणी जाव पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हाया कयवलिकम्मा हत्थिसंधवरगया हत्थिणाउरं" नयरं मज्भंमज्झेणं निगच्छइ, निगच्छिता कुरुजणवयस्स" मज्भंमज्भेणं जेणेव सुरट्ठाजणवए जेणेव वारवई नयरी जेणेव अग्गुज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाम्रो पच्चीरुहर, पच्चोरुहित्ता कोडुंवियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीगच्छहणं तुभे देवाणुप्पिया ! वारवई नयरिंग, जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स गिहे लेणेव अणुपविसह, ग्रणुपविसित्ता कन्हं वासुदेवं करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयह — एवं खलु सामी ! तुब्भं O १. कयं (ख, ग) । २. जुहिट्टिल्लरस (घ ) । ३. किंनरेण ( ग, घ ) | ४. क्खित्ता (क, ख, ग, घ ) । २२० सूत्रा- १०. हरिथणउरं (घ ) । नुसारी पाठ: स्वीकृतः । कुरुणवयं ( ग, घ ) । १ . १२. सं० पा०-- नयर अणुपविसह । १३. सं० पा०- करयल । ५. ना० १३१६।२१३ ६. सं० पा० - सुई वा जाव अलभमाणे । ७. णं परं (क, ग, घ ) । ८. सुई वा खुई वा पर्वत वा उवलभेज्जा (क, ख, घ) । ६. ना० ११५ १३ । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ नायाम्महाओ पिउच्छा कोंती देवी हत्थिणाउराम्रो नयराओ इहं हव्वमागया तुब्भं दंसणं कखइ ॥ २१७. तए णं ते कोडुवियपुरिसा जाव' कहेंति || २१८. तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसाणं ग्रंतिए एयमठ्ठे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टे हत्थिखंधवरगए' बारवईए नयरीए मज्भंमज्भेण जेणेव कोंती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोंतीए देवीए पायहणं करेइ, करेत्ता कोंतीए देवीए सद्धि हत्थिसंधं दुरुहर, दुरुहित्ता बारवईए नयरीए मज्भंमज्भेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता सयंहिं पविसइ || २१६. तए से कहे वासुदेवे कोंति देवि ण्हायं कयवलिकम्मं जिमियभुत्तुत्तरागयं' • वि य णं समाणि आयंतं चोक्खं परमसुइभूयं सुहासणवरगयं एवं वयासीसंदिसउ णं पिउच्छा ! किमागमणपश्रयणं ? ! हरिथणा २२०. तणं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु पुत्ता उरे नयरे जुहिट्ठिलस्स रण्णो आगासतलए सुहप्पसुत्तस्स पासाग्रो दोवई देवी न नज्जइ केइ अवहिया "निया अवक्खित्ता वा । तं इच्छामि गं पुत्तर ! दोवईए देवीए सव्वश्री समता मग्गण - गवेसणं कथं ॥ 0 २२१- तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति पिउच्छं एवं वयासी - जं नवरं-पिउच्छा ! दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पर्वात्त वा लभामि, तो णं ग्रहं पायालाओ वा भवणाश्रो वा श्रद्धभरहाम्रो वा समंतओ दोवई देवि साहित्यि उमिति कट्टु कति पिउच्छं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणत्ता पडिविसज्जेइ || २२२. तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसि पारब्भूया तामेव दिसि पडिगया ।। - २२३. तए से कहे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीगच्छहणं तुभे देवाप्पिया ! बारवईए' 'नयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्कचच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया - महया सहेणं उग्घोसेमाणा - उग्घोसेमाणा एवं वयह — एवं खलु देवाणुप्पिया ! जुहिट्ठिलस्स रण्णो आगासतलगंसि १. ना० १।१६।२१६ / २. ० वरगए हयगय ( क ) ; ० वरगए हयगय जाव (ख, घ) | पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य १५७ सूत्रे द्रष्टव्यः । ३. सं० पा०—जिमियभुत्तत्तरागयं जाव सुहा सण | ४. सं० पा०-- -अवहिया वा जाव अवक्खित्ता । ५. सं० पा० - सुई वा जाव लभामि । ६. सं० पा० - बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पञ्चपिणंति पंडुस्स जहा । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३१७ सुहपसुत्तस्स पासायो दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा । तं जो णं देवाणु प्पिया! दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पत्ति वा परिकहेइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कटट घोसणं घोसावेह, घोसावत्ता एमाणत्तियं पच्चप्पिणह। २२४. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव' • पच्चप्पिणंति ।। २२५. तए णं से कण्हे वासुदेवे अण्णया अंतोअंतेउरगए पोरोह'. संपरिवुडे सीहासण वरगए ° विहरइ ।। दोवईए उवलद्धि-पदं २२६. इमं च णं कच्छुल्लनारए जाव' झत्ति-वेगेण समोवइए। २२७. 'तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणामो अब्भुटेइ, अब्भुद्वैत्ता अग्धणं पज्जणं पासणेणं उवनिमंतेइ ॥ २२८. तए णं कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दभोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ , निसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंत पुच्छइ॥ २२६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं वयासी-तुमं णं देवाणप्पिया ! बहूणि गामागर'- नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टण-आसम-निगम-संबाहसण्णिवेसाइं ग्राहिंडसि, बहूण य राईसर-तलवर-माउंविय-कोविय-इन्भ-सेट्रिसेणावइ-सत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुपविससि, तं अत्थियाइं ते कहिचि दोवईए देवीए सुई वा 'खुई वा पवित्ती वा° उवलद्धा ? २३०. तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हं वासुदेव एवं वयासो---एवं खलु देवाणुप्पिया ! अण्णया धायइसंडदीवे पुरथिमद्धं दाहिणड्ड-भरहवासं अवरकका-रायहाणि गए। तत्थ ण मए पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि दोवई-देवी-जारिसिया दिटुपुव्वा यावि होत्था । २३१. तए णं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं वयासो-तुभं चेव णं देवाणुप्पिया ! एयं पुम्बकम्मं ॥ २३२. तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते सभाणे उप्पणि विज्ज अावाहेइ, आवाहेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। १. ना० १११६१२२३ । २. सं० पा०---ओरोह जाव विहरइ । ३. ना० १११६:१८५ । ४. सं० पा.-समोवइए चाव निसीइत्ता। ५. सं० पा०--गामागर जाव अणुपविससि । ६. सं० पा०-सुई वा जाव उवलद्धा। ७. अवरकंक (ग)। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ नायाधम्मकहाओ सपंडवस्स कण्हस्स पयाण-पदं २३३. तए णं से कण्हे वासुदेवे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरं नयरं पडुस्स रणो एयमटुं निवेएहि --एवं खलु देवाणुप्पिया ! धायइसंडदीवे पुरथिमद्धे दाहिणड्ड-भरहवासे अवरककाए रायहाणीए पउमनाभभवणंसि दोवईए देवीए पउत्ती उवलद्धा, तं गच्छंतु पंच पंडवा चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा पुरथिम-बेयालीए ममं पडिवाले माणा चिटुंतु ॥ २३४. तए णं से दूर भणइ जाव' पडिवालेमाणा चिट्ठह । तेवि जाव' चिट्ठति ।। २३५. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छह णं तब्भे देवाणप्पिया ! सन्नाहियं भेरि तालेह । तेवि तालति ।। २३६. तए गं तीए सन्नाहियाए भेरीए सई सोच्चा समुद्दविजयपामाक्खा दस दसारा जाव' छप्पन्नं बलवगसाहस्सोमो सण्णद्ध-वद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलियसरासण-पट्टिया पिणद्ध-गेविज्जा आविद्ध-विमल-वरचिध-पट्टा' गहियाउहपहरणा अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया जाव' पुरिसवरगुरापरिक्खित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं ° वद्धाति ॥ कण्हस्स देवाराधण-पदं २३७. तए णं से कण्हे वासुदेवे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्ज माणेणं सेयवर चामराहिं वोइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते° बारवईए नयरीए मज्झमझेणं निगच्छइ, निगच्छित्ता जेणेव पुत्थिमवेयाली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचहि पंडवेहि सद्धि एगयनो मिलइ, मिलित्ता खंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता पोसहसाल अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुट्ठियं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिटुइ ।।। २३८. तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सुट्टिो जाव' आगयो । 'भणंतु णं" देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं ।। १,२. ना० १।१६।२३३ । ३. ना० १।१६।१३२ । ४. सं० पा०सण्णद्धबद्ध जाव गहियाउह । ५. प्रो० सू० ५२ । ६. सं० पा०-करयल जाव वद्धाति । ७. सं० पा०-सेयवर हयगय महया भडचडगर पहकरेणं । ५. पोसहसालं करेइ, करेता पोसहसालं (ग,घ)। ६. ना० ११११५४-५७ । १०. भण (ख, ग, घ): Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ सोलपमं अज्झयण (अवरकंका) कण्हस्स मग्गजायणा-पदं २३९. तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देवं एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! दोवई देवी' 'धायईसंडदीवे पुरथिमद्धे दाहिण-भरहवासे अवरकंकाए रायहाणीए° पउमनाभभवणंसि' साहिया' तण्णं तुम देवाणु प्पिया! मम पंचहिं पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियराहि, जेणाह" 'अवरकंकं रायहाणि दोवईए कवं गच्छामि ।। २४०. तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! जहा चेव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं दोवई देवी' 'जंबुद्दीवानो दीवाओ भारहापो वासाम्रो हत्थिणाउरायो नयरानो जुहिट्ठिलस्स रणो भवणानो ° साहिया, तहा चेव दोवई देवि धायईसंडायो दीवानो भारहाणे 'वासाम्रो अवरकंकानो रायहाणीओ पउमनाभस्स रण्णो भवणाओ° हथिणारं साहरामि ? उदाहु--पउमनाभं रायं सपुरबलवाहणं लवणसमुद्दे पक्खिवामि? २४१. तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देवं एवं वयासी--मा णं तमं देवाणुप्पिया ! 'जहा चेव पउमनाभस्स रण्णो पुत्वसंगइएणं देवेणं दोवई देवी जंबुद्दीवानो दीवाओ भारहानो वासाओ हथिणाउराम्रो नयरानो जुहिदिलस्स रण्णो भवणाओ साहिया, तहा चेव दोवई देवि धायईसंडानो दोवानो भारहायो वासाम्रो अवरकंकानो रायहाणीयो पउमनाभस्स रण्णो भवणाम्रो हत्थिणाउरं ' साहराहि । तुम णं देवाणुप्पिया ! मम लवणस मुद्दे पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्ठस्स' छण्हं रहाणं मग्गं वियराहि । सयमेव णं अहं दोवईए कूवं गच्छामि ।। २४२. तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं होउ। पंचहिं पंडवेहि सद्धि अप्पछदुस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरइ ।। कण्हेण दूयपेसण-पदं २४३. तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणि सेणं पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछटे छहिं रहेहिं लवणसमुदं मझमझणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव अवरकंकाए रायहाणीए अग्गुज्जाणे १. सं० पा०-देवी जाव पउमनाभ । २. नाभस्स भवणंसि (ख, ग, घ)। ३. साहरिया (घ)। ४. जेण अह(ख) जाणं हैं (ग); जण्णं अहं (घ)। ५. अवरकक' (क);अवरकंका रायहाणी (ख)। ६. सं० पा०-देवी जाव साहिया। ७. सं० पा०-भारहाओ जाव हस्थिणाउरं । ८. सं० पा०-देवाणु पिया जाव साहराहि । ६. गच्छिस्सामि (ख)। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० arratमकाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता दास्यं सारहि सहावे, सहावेत्ता एवं वयासी- गच्छह गं तुमं देवाणुपिया ! ग्रवरकंकं रायहाणि अणुविसाह, अणुप्पविसित्ता पउमनाभस्स रण्णो वामेणं पाएणं पायपीठं अक्कमित्ता' कुंतग्गेणं लेहं पणामेहि, पणामेत्ता तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयाहि-हंभो पदमनाभा ! अपत्थियपत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा ! हीणपुण्णचाउदसा ! सिरि- हरि-धिइ कित्ति-परिवज्जिया ! अज्ज न भवसि । किष्णं तुमं न याणसि tuहस्स वासुदेवस्स भर्गिणि दोवई देवि इहं हव्यमाणेमाणे' ? तं 'एवमवि गए" पच्चष्पिणाहि णं तुमं दोवई देवि कण्हस्स वासुदेवस्स ग्रहव णं जुद्धसज्जे निगच्छाहि । एस णं कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछडे दोवईए देवीए कूवं हव्व मागए ॥ २४४. तए ण से दारुए सारही कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्तं समाणं तुट्ठे पडिसुणे, पडित्ता प्रवरकंकं रायहाणि श्रणुपविसर, अणुपविसित्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एणं विजएणं वद्धावेइ, ° वद्धावेत्ता एवं वयासी - एस णं सामी ! मम विणयपडिवत्ती, इमा अण्णा मम सामिस्स समुहापत्ति" त्ति कट्टु ग्रासुरुतं' वामपारणं पायपीढं अक्कम), ग्रक्कमित्ता कुंतगेणं लेहं पणामेइ, पणामेत्ता" "तिवलियं भिउडि निडाले साट्टु श्रासुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयासी हंभो पउमनाभा ! ग्रपत्थिय पत्थिया ! दुरंत तलवखणा! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरिधिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! प्रज्ज न भवसि । किष्णं तुमं न याणासि कण्हरस वासुदेवस्स भगिणि दोवई देवि इहं हव्वमाणमाणे ? तं एवमवि गए पच्चप्पिणाहि गं तुमं दोवई देवि कहस्स वासुदेवस्स ग्रहव णं जुद्धसज्जे निम्गच्छाहि । एस णं कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडहि सद्धि अप्पछट्ठे दोत्रईए देवीए कूवं हव्वमागए । पउमनाभेण दूयस्स श्रवमाण-पदं २४५. तए णं से पउमनाभे दारुएणं सारहिणा एवं वृत्ते समाणे ग्रासुरुते रुट्ठे कुविए afsfer मिसिमिसेमाणे तिवलि भिउडि निडाले साह एवं व्यासी- १. अक्कमित्ता ( ख ) ; अवक्कमित्ता (घ ) | २. याणासि (ख, घ) 1 ३. हव्यमाणमाणे ( क, ख ); हव्दमाणीते (घ) | ४. द्रष्टव्यम् - ६८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ५. हट्टुजाव ( क ) 1 ६. सं० पा० - करयल जाव वद्भावेत्ता । ७. स्वमुखाडाज्ञप्तिः (वृ) 5. आसुरुते ५ ( क ) 1 ६. अवक्कमइ (ख, घ ) । १०. सं० पा० --- पणामेत्ता जाव कुवं । Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३२१ णप्पिणामि' णं अहं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई। एस णं अहं सयमेव जुज्झसज्जे निग्गच्छामि त्ति कट्टु दारुयं सारहिं एवं वयासी-केवलं भो ! रायसत्थेसु दूए अवझे त्ति कटु असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं निच्छुभावेइ ।। दूयस्स पुणो प्रागमण-पदं २४६. तए णं से दासा सारही पउमनाभेणं रण्णा सक्कारिय. 'असम्माणिय अवदारेणं ° निछूढे समाणे जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता करयल परिगहियं दसणहं सिरसावतं मत्था अंजलि कटट जएणं विजएणं वावेड, वडाबेता. कण्हं वासदेवं एवं वयासी-एवं खल अहं सामी ! तुभं दयणेणं अवरकंकं रायहाणि गए जाव अवदारेणं निच्छुभावेइ ।। पउमनाभस्स पंडवेहि जुद्ध-पदं २४७. तए णं से पउमनाभे वलवाउयं सदावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह । तयाणंतरं च ण व्यायरिय-उबदेस-मई- कप्पणा-विकप्पेहि सुणि उणेहि उज्जलणेवत्थि-हत्य-परिवत्थियं सुसज्जं जाव' प्राभिसेक्क हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता उवणेति ।।। तए णं से पउमनाहे सण्णद्धवद्ध-वम्मिय-कवए उप्पीलिय-सरासण-पट्रिए पिणद्ध-गेविज्जे आविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टे गहियाउह-पहरणे° 'पाभिसेक्कं हत्थिरयण", दुरुहई, दुरुहित्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुड मयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते° जेणेव कण्हे वासदेवे तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ २४६. तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमनाभं रायं" एज्जमाणं पासइ, पासित्ता ते पंच १. अपिणामि (ख, ग, घ)। विकल्पाः' इति दृश्यते, तेन कप्पणा-विकप्पेहि, २. सं. पा.-असक्कारिव जाव निच्छूटे। इति स्वीकृतः पाठः समीचीनः प्रतिभाति । ३. सं० पा०-करपल । ६. ओ० सू० ५७। ४. ना० १५१६४२४४-२४६ ! ७. सं० पा०-सण्णद्ध । ५. सं० पा०---मइविकप्पणाहिं जाव उवणेति । ८. अभिसेयं (क, ख, ग, घ)। प्रादर्शषु 'मइविकप्पणाहि' इति पाठो लभ्यते। ६. द्रुहइ (ग)। वती 'मइविगप्पणाविगप्पेहि' इति पाठ १०. सं० पा०—हय गय । उल्लिखितोस्ति, किन्तु व्याख्यायां 'कल्पना- ११. रायाणं (ख, ग)। Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ पंडवे एवं वयासी-हंभो दारगा ! किण्णं तुब्भे पउमनाभेणं सद्धि जुज्झिहिह उदाहु पेच्छिहिह ? २५०. तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--अम्हे णं सामी ! जुज्झामो, तुभ पेच्छह ॥ २५१. तए ण ते पंच पंडवा सण्णद्ध'- बद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलिय-सरासण-पट्टिया पिणद्ध-विज्जा आविद्ध-विमल-वरचिधपट्टा गहियाउह °-पहरणा रहे दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी-... अम्हे वा पउमनाभे वा राय त्ति कटु पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गा यावि होत्था । घडवाणं पराजय-पदं २५२. तए णं से पउमनाभे राया ते पंच पंडवे खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय विवडियचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे' दिसोदिसि पडिसेहेइ ।। २५३. तए णं ते पंच पंडवा पउमनाभेणं रण्णा हय-महिय-पवर "वीर-घाइय-विवडिय चिध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसि पडिसेहिया समाणा अत्थामा प्रवला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा ° अधारणिज्जमित्ति कटु जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति ।। कण्हेण पराजय-हेउ-कहणपुव्वं जुज्झ पदं २५४. तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच-पडवे एवं वयासी-कहण्णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! पउमनाभेणं रण्णा सद्धि संपलग्गा? २५५. तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--एव खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे तहि अभणुण्णाया समाणा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया रहे दुमहामो, दरहेता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एवं व्यामो -. अम्हे वा पउमनाभे वा रायत्ति कटु 'पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गा । तए णं ا १. जुझिहह (क, ख); जुझिह (ग); जुज्झि- वृत्तिकारेण अष्टमाध्ययने पूर्णः पाठो हेह (ध)। व्याख्यातः । अत्र च आदर्शषु यथा पाठसंक्षेपो २. उयाहु (ग, घ)। लब्धस्तथैव व्याख्यातः। ३. पेच्छिहह(क) पिच्छिह (ख);पच्छिहिह (घ)। ६. सं० पा०-पड़ागे जाव दिसोदिसि । ४. सं. पा०–सण्णद्ध जाव पहरणा। ७. सं० पा० - पवरविवडिय जाव पडिसेहिया। ५. पवरपवडियवचिंध (क); पवरविडिय°८. सं० पा०-अत्थामा जाव अधारणिज्ज। (ख, ग, घ)। असो लेखनपद्धती पाठसंक्षेपः अयामा (ग, घ)। कृतोस्ति । १।८।१६५ सूत्रे असौ पूर्णः पाठः ६. पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य २५१ सूत्रे द्रष्टव्यः । उपलभ्यते । अत्रासौ तमनुसृत्य पूर्णतां नीतः १०. सं० पा०-कटु जाव पडिसेहेइ । Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसम अझयणं (अवरकका) ३२३ से पउमनाभे राया अम्हं खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि पडिसेहेइ॥ २५६. तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासी -जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! एवं वयंता-'अम्हे' णो पउमनाभे रायत्ति कटु पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गंता तो णं तुभे नो पउमनाभे हय-महिय-पवर' वीर-धाइय-विवडियचिंध-धयपडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि • पडिसेहित्था । तं पेच्छह' णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! 'अहं' णो पउमनाभे रायत्ति कटु पउमनाभेणं रण्णा सद्धि जुज्झामि [त्ति ? ] रहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेय' गोखी रहार-धवलं तगसोल्लिय-सिंदुवार-कुंदेंदुसणिगासं निययस्स वलस्स हरिस-जणणं रिउसेण्ण-विणासणकरं पंचजण्णं' संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ ।। २५७. तए णं तस्स पउमनाभस्स तेण संखसद्देणं बल-तिभाए हया- महिय-पवरवीर. घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि पडिसेहिए । २५८. तए णं से कण्हे वासुदेवे। 'अइरुग्गयवालचंद-इंदधणु-सण्णिगासं, वरमहिस-दरिय-दप्पिय-दढघणसिंगरगरइयसारं, उरगवर-पवरगवल-पवरपरहुय-भमरकुल-नीलि-निद्ध-धंत-धोय-पढें, निउणोविय-मिसिमिसिंत-मणिरयण-घंटियाजालपरिक्खित्तं, तडितरुणकिरण-तवणिज्जबद्धचिधं, दद्दरमलय गिरिसिहर-केसरचामरवाल-अद्धचंचिधं, काल-हरिय-रत्त-पोय सुक्किल-बहुण्हारुणि-संपिण्णद्धजीवं, जीवियंतकरं धणुं परामुसइ, परामुसित्ता धणुं पूरेइ, पूरेत्ता धणुसई करेइ ।। २५६. तए णं तस्स पउमनाभस्स दोच्चे बल-तिभाए तेणं धणुसद्देणं ह्य-महिय" १. सं० पा०--पवर जाव पडिसेहित्था । पाठे अस्य सूचना 'वेढो' इति पदेन प्रदत्ता२. पेच्छंतु (क)। स्ति । वृत्तिकारेणापि सूचितमिदम्, यथा-- ३. वृत्तौ शङ्गविशेषणानि पाठान्तरत्वेन उल्लि- वेष्टन एकवस्तुविषय पदपद्धतिः । स चेह खितानि सन्ति, यथा --शविशेषणानि क्व. धनुर्विषयो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिप्रसिद्धोऽध्येतव्यः, चिद् दृश्यन्ते---'मेय' । तद्यथा --अइरुग्गय (वृ) । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते४. पंचयण्णं (क, ख); पंचजण (ग)। स्तृतीये वक्षस्कारे मागधतीर्थकुमारसाधने ५. सं० पा० -हए जाव पडिसेहिए। वृत्तिकारसूचित: पाठो लभ्यते । सोपि दृत्ति६. सं० पा० ---व सुदेवे धणु परामुसइ वेदो। व्याख्यातपाठसंवादी एव । विस्तृतः पाठो वृत्त्यनुसारेण स्वीकृतः । मूल- ७. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहिए। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ नायाधम्मकहाओ *पवरवीर-धाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि ? पडिसेहिए। पउमनाभस्स पलायण-पदं २६०. तए णं से पउमनाभे राया तिभागवलावसेसे अस्थाम' अवले अबोरिए अयुरि सक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं तुरियं चवलं चडं जइण वेइयं जेणेव अवरकंका' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अवरकक रायहाणि अणु पविसइ, अणुपविसित्ता बाराई पिहेइ, पिहेत्ता रोहासज्ज चिदुइ ।। कण्हस्स नरसिंहरूव-पदं २६१. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव अवरकका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रह ठवेइ, ठवेत्ता रहाम्रो पच्चो महइ, पच्चोरुहिता वेउब्वियसमुग्घाए णं समोहण्णाइ एग मह नरसीह रूवं विउव्वद, विउवित्ता मया-महया सद्देणं पायदद्दरियं करेइ। २६२. तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं महया-महया सद्देणं पायदद्दरएणं करणं समाणणं अवरकका रायहाणी संभग्ग-पागार"-गोउराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थिय पवरभवण-सिरिघरा सरसरस्स धरणियले सण्णिवइया ।। पउमनाभस्स सरण-पदं २६३. तर णं से पउमनाभे राया अवरककं रायहाणि संभग्ग- पागार-गोउराट्टालय चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवण-सिरिघरं सरसरस्स धरणियले सविणव इयं पासित्ता भीए दोवइं देवि सरणं उवेइ ॥ २६४. तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं रायं एवं वयासी-किणणं तुम देवाणु प्पिया ! न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं करेमाणे ? 'मम इहं हव्वमाणेमाणे तं 'एवमवि गए" गच्छ" णं तुमं देवाणुप्पिया ! ण्हाए उल्लपडसाडए ओचलगवत्थनियत्थे अंतेउर-परियालसंपरिडे' अम्गाइं वराई रयणाई गहाय ममं पुरोकाउं कण्हं वासुदेवं करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु° पायवडिए सरणं उवेहि । पणिदइय-वच्छला णं देवाणु प्पिया! उत्तमपुरिसा॥ १. प्रथामे (ग, ३)। ७. X (क, ख. ग)। २. अमरकंका (क)। ८. X (ल, ग, घ)। ३. दाराई (ख)। ६. द्रष्टव्यम्-६८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. समोहणइ (क, ख, घ)। १०. गच्छह (ग, घ)। ५. पायार (क, ध); पगार (ख)। ११. परियाल (क)। ६. सं० पा०-संभाग जाव पासित्ता। १२. सं० पा०-करयल ! Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अउभयणं (अवरकंका) २६५. ताए णं से पउमनाभे दोवईए देवीए ‘एवं बुत्ते समाणे" हाए' उल्लपडसाडए योचूलगवनियत्थे अंतेउर-परियालसंपरिवुडे अग्गाई वराई रयणाइं गहाय दोवइं देविं पुरोकाउं कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटू पायवडिए सरण उवेइ, उवेत्ता एवं वयासी--दिट्ठा ण देवाणप्पियाणं इड्री' जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार -परक्कमे। तं खामेमि पं देवाणु प्पिया! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! ' 'खंतुमरहंति णं देवाणुप्पिया ! • नाइ भुज्जो एवंकरणयाए ति कटु पंजलिउडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्स दोवइं देवि साहत्थि उवणेइ ।। सदोवई-पंडवस्स कण्हस्स पच्चावट्टण-पदं २६६. तर णं से कण्हे वासुदेवे पउमनाभं एवं क्यासी-हंभो पउमनाभा ! अपत्थिय पत्थिया ! दुरंतपतलक्खणा ! हीणपुण्ण चाउद्दसा ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिपरिवज्जिया ! किण्णं तुमं न जाणसि मम भगिणि दोवई देवि इहं हव्वमाणेमाणे' ? तं 'एवमवि गए नत्थि ? ते ममाहितो इयाणि भयमस्थि ? त्ति कटु पउमनाभं पडिविसज्जेइ, दोवई देवि गण्हइ, गेमिहत्ता रहं दुरुहेइ, दुरुहित्ता जणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचण्हं पंडवाणं दोबई देवि साहत्थि उवणे इ ।। २६७. तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहिं पंडवेहि सद्धि अप्पछ? छहिं रहेहि लवणसमुदं मज्झभज्झेण जेणेव जंबुद्दोवे दीवे जेणेव भारहे वासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। वासुदेव-जुयलस्स संखसद्देण मिलण-पदं २६८. तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे भारहे वासे चपा नामं नयरी होत्था ! पुष्णभद्दे चेहए।। २६६. तत्थ णं चपाए नयरीए कविले नामं वासुदेवे राया होत्था-महताहिमवंत महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णो " ॥ २७०. तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा" चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे । कविले वासुदेवे धम्म सुणेइ ॥ १. एयमटुं पडिसुणेइ २ (ख, ग, घ)। ६. x (ग, घ)। २. सं० पा०—पहाए जाव मरण उवेइ २ करयल ७. हव्वमाणे (ख, ग, घ)। ___ एवं व। ८. द्रष्टव्यम्-६८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. सं० पा०-इड्ढी जाव परक्कमे । है. अभयमत्यि (घ)। ४. सं० पा०-देवाणप्पिया जाव नाइ। १०. ओ० सू० १४ । ५. नाहं (क, ख, ग, घ)। एतत् पदं १।५।१२३ ११. अरिहा (क)। सूत्रस्याधारेण स्वीकृतम् । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ २७१. तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयस्स अरहो अंतिए धम्म सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसई सुणेइ ।। २७२. तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--किमण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेव समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे मम पिव मुहवायपूरिए वियंभइ' ? कविला वासुदेवा भद्दाइ ! मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी--- से नणं कविला वासुदेवा ! ममं अंतिए धम्म निसामेमाणस्स (ते ?) संखसई प्राकणित्ता इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणो गए संकप्पे समुप्पज्जित्था---किमण्णे धाय इसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पणे, जस्स णं अयं संखसद्दे मम पिव मुहवायपूरिए ° वियंभइ ? से नूणं कविला वासुदेवा ! अट्ठे समढे? हंता ! अस्थि । तं नो खलु कविला! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जपणं एगखेत्ते एगजुगे एगसमए णं दुवे अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उपज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा। एवं खल वासुदेवा ! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहापो वासाप्रो हस्थिणाउराम्रो नय राम्रो पंडुस्स रण्णो सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई देवी तव पउमनाभस्स रणो पुवसंगइएणं देवेणं अवरकंकं नार साहरिया। तए णं से कण्हे वासूदेवे पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछट्टे हिं रहेहिं अवर कंक रायहाणि दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए। तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स पउमनाभेणं रण्णा सद्धि संगाम संगामेमाणस्स अयं संखसद्दे तव 'मुहवायपुरिए इव"५ वियंभइ॥ २७३. तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-गच्छामि णं अहं भंते ! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं पासामि ।। २७४. तए णं मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया ! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जणं अरहंता वा अरहतं पासंति, चक्कवट्टी वा चक्कट्टि पासंति, वलदेवा वा बलदेवं पासंति, वासुदेवा वा वासदेव १. वियंभेइ (क)। २. सद्दाति (ख); सद्दाइ सुणेइ (घ)। ३. अकिण्णित्ता (ख)। ४. सं० पा०-अज्झस्थिए किमण्ण जाव वियभइ। ५. मुहवायाइ8 इव (क); मुहवाय? एवं (ख); मुहवायइ? कते इहेव (ग); मुहवाया इव (घ); अस्मिन्नेव सूत्रे कपिलवासुदेवचितनसमये 'ममं पिव मुहवायपूरिए' इति पाठोस्ति । तस्याधारणवासी पाठः स्वीकृतः । ६. X (क)। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभयणं (अवरकंका) ३२७ पासंति । तहवि य णं तुम कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाई पासिहिसि ।। २७५. तए णं से कविले वासुदेव मुणिसुब्वयं अरहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखंध दुरुहइ, दुरुहित्ता 'सिग्धं तुरियं चबलं चंडं जइणं वइयं' जेणेव वैलाउले तेणेब उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयमाणस्स से यापं.याइं धयरगाइं पासइ, पासित्ता एवं वयइ -- एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुहं मझमझेणं वाईवयइ त्ति कट् पचयण्ण सख परामसइ, परामुसित्ता महवायपरियं करेइ ।। २७६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवरस संखसई 'अायण्णेइ, अायण्णेत्ता' पंचयण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवाय पूरिय करेइ ।। २७७. तए णं दोवि वासुदेवा संखसद्द-सामायारि करति ।। कविलेण पउमनाभरस निव्वासण-पदं तए ण से कविले वासदेवे जेणेव अवरकंका रायहाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अवरकंक रायहाणि संभग्ग-पागार-गोउराट्रालय-चरिय-तोरणपल्हत्थियपवरभवण-सिरिघरं सरसरस्स धरणियले सण्णिवइयं ० पासइ, पासित्ता पउमनाभं एवं क्यासी—किष्ण देवाणप्पिया! एसा अवरकंका रायहाणी संभग्ग - पागार-गोउराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवण-सिरि घरा सरसरस्स धरणियले ° सण्णिव इया? २७६. तए णं से पउमनाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु सामी ! जंबुद्दी बायो दीवानो भारहायो वासाप्रो इहं हव्वमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुभे परिभूय अवरकंका' 'रायहागी संभग्ग-गोउराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थिय पवरभवण-सिरिधरा सरस रस्स धरणियले ° सण्णिवाडिया ॥ २८०. तए णं से कविले वासुदेवे पउमनाभस्स प्रतिए एयमढे सोच्चा पउमनाभं एवं वयाणी-हंभो पउमनाभा ! अपत्थियपत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा ! होणपुण्णचाउद्दसा! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! किण्णं तुम न जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे ? —ासूरुत्ते रुद्रे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्ट १. धयाई (घ)। २. सिग्धं (क, घ)। ३. वेलाकूले (क्व)। ४. आकष्णेइ २ (क)। ५. सं० पा०-पंचयण्णं जाव पूरिय । ६. समायारि (ख, ग)। ७. सं० पा० --संभग तोरण जाव पासइ। ८. सं० पा०--संभाग जाव सण्णिवइया। ६. सं० पा०-अवरकंका जाव सण्णिवाडिया। १०. सण्णिवाइया (घ)। ११. X (क, ग, घ)। १२. सं० पा० -आसुरुते जाव पउमनाभ। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ नायाधम्मकहाओ पउमनाभं निव्विसयं ग्राणवेइ, पउमनाभस्स पुत्तं अवरकंकाए रायहाणीए महया-महया रायाभिसेएण अभिसिंचइ', 'अभिसिचित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। अपरिक्खणीयपरिक्खा-पदं २८१. तए णं से काहे बालुदेवे लवणसमुई मज्झमझेणं 'बीईवयमाणे-बीईवयमाणे गंगं उवागए उवागम्म ? } ते पंच पंडवे एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणु प्पिया ! गंगं महानई उत्तरह जाव ताव अहं सुट्टियं लवणाहिबई पासामि ॥ २८२. तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता एट्ठियाए' मग्गण-गवेसणं करेंति, करेत्ता एगट्टियाए गंगं महानई उत्तरंति, उत्तरित्ता अण्णमण्णं एवं वयंति-पहू णं देवाणुपिया ! कण्हे वासुदेवे गंगं महानइं बाहाहिं उत्तरित्तए, उदाहू नो पह उत्तरित्तए ? त्ति कटु एगट्टियं 'ति, णू मेत्ता कण्हं वासुदेवं पडिवाले माणा-पडिवाले माणा चिति ॥ २८३. तए णं से कण्हे वासुदेवे मुट्ठियं लवणाहिवइं पासइ, पासित्ता जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता एगट्टियाए सव्वनो समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता गट्टियं अपासमाणे एगाए वाहाए रहं सतुरग ससारहि गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महानई वासढि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णं उत्तरिउं पयत्ते यावि होत्था। २८४. ताए णं से कण्हे वासुदेवे गंगाए महान ईए बहुमज्झदेसभाए संपत्ते समाणे संते तंते परितंते वद्धसेए जाए यावि होत्था ।। २८५. तए णं तस्स कण्हस्स बासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्प समुपज्जित्था- अहो णं पंच पंडवा महावलवगा जेहि गंगा महानई बासट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहि उत्तिण्णा । १. सं० पा०---अभिसिंचइ जाव पडिगए। लभ्यते । स च बहुषु स्थानेषु सारल्यार्थ २. वीईवर इ २ (क, ख, ग); वीईवयइ गंग° परिवर्तितपदवद् विद्यते । (घ)। ४. एगट्टियाओ (ग)। ३. एगट्टियाए नावाए (क, ख, ग, घ)। वृत्ती ५. ण मुयंति (क); ण मुचति (ख); मुस्संति २ 'एगट्रियंति ना:' इति व्याख्यातमस्ति । (घ)। अस्यानुसारेण 'एट्रिया' पदं नौ वाचकमस्ति। ६. सं० पा०---अज्झस्थिए जाव समुपज्जित्था। प्रतिष 'नावाए' इति पदस्थापि उल्लेखो ७. बावट्टि (क, ग)। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) ३२६ इच्छंतएहिण पंर्चाह पंडवेहि पउमना भे हय-महिय- पवरवीर-घाइय-विवडिय चिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि ° नो पडिसेहिए। २८६. तए णं गंगादेवी कण्हस्स वासुदेवस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं० जाणित्ता थाहं वियरड ।। २८७. तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहत्तंतरं समासासे इ, समासासेत्ता गंगं महानदि वासट्टि 'जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णं बाहाए ° उत्तरइ,उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं वयासी---अहो णं तुब्भे देवाणप्पिया ! महाबलवगा, जेहिं णं तुन्भेहि गंगा महानई बाढि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णा वाहाहि ° उत्तिण्णा ! इच्छंतएहिं णं तुम्भेहिं पउमनाहे 'हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसो दिसि नो पडिसेहिए। २८८. तए ण ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी --एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुभेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एगट्टियाए मगण गवेसणं करेमो, 'करेत्ता एट्टियाए गंगं महानइं उत्तरेमो, उत्तरेत्ता अण्णमण्णं एवं वयामो-- पहू णं देवाणु प्पिया ! कण्हे वासुदेवे गंगं महानई बाहाहि उत्तरित्तए, उदाहु नो पहू उत्तरित्तए ? त्ति कटु एग ट्ठियं ° 'मेमो, तुब्भे पडिबालेमाणा चिट्ठामा ॥ कण्हेण पंडवाणं निवासण-पदं २८६. तए णं से कण्हे वासुदेवे तेसि पंचपंडवाणं एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते •रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडि निडाले साहट्ट ° एवं क्यासी-ग्रहो णं जया मए लवणसमुदं दुवे जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं वीईवइत्ता पउमनाभ हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडाग किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि ° पडिसेहिता अवरकंका संभग्गा, दोवई साहत्थि उवणीया, तया णं तुब्भेहि मम माहप्पन विण्णायं, इयाणि जाणिस्सह त्ति कटु लोहदंडं परामुसइ, पंचण्हं पंडवाणं रहे सुसूरेइ", सुसूरेत्ता [पंच पंडवे ? ] निव्विसए प्राणवेइ । तत्थ णं रहमद्दणे नामं कोट्टे निविद्वे ।। १. इत्यंतएहि (ख, घ); एत्थंतएहि (ग)। २. सं० पा० ---हयमहिय जाव नो पडिसेहिए। ३. सं० पा०--अज्झत्यियं जाव जाणित्ता। ४. सं० पा०–बासस्ट्रिं जाव उत्तरइ। ५. सं० पा०-बासढेि जाव उत्तिण्णा। ६. सं० पा०--पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए। ७. सं० पा०-करेमो तं चैव जाव णमेमो। ८. सं० पा०-ग्रासुरुते जाव तिवलियं एवं । ६. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहित्ता। १०. सुमुचूरेइ (ख); सुसुसूरेइ (ग) चूरेइ (घ)। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाम्रो २६०. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सएणं खंधावारेणं सद्धि अभिसमण्णागए यावि होत्था ।। २६१. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता [सयं भवणं ? ] अणुप्पविसइ ।। २६२. तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हथिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' 'परिगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी--एवं खलु तारो ! अम्हे कण्हेणं निव्विसया आणत्ता ।। २६३. तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी---कहण्णं पुत्ता ! तुम्भे कण्हेणं वासु देवेणं निविसया आणत्ता ? २६४. तए णं ते पंच पंडवा पंडु रायं एवं वयासी –एवं खलु ताओ ! अम्हे अवर कंकामो पडिनियत्ता लवणसमुदं दोण्णि जोयणसयसहस्साई वीईवइत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयइ - गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! गंगं महानई उत्तरह जाव ताव अहं सुट्टियं लवणाहिवइं पासामि, एवं तहेव जाव' चिट्ठामो !। २६५. तए ण से कण्हे वासुदेव सुट्ठियं लवणाहिवई दळूण जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, तं चेवं सव्वं नवरं कण्हस्स चिंता न बुज्झइ जाव' निविसए प्राणवेइ ।। २६६. तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी-दुठ्ठ णं पुत्ता! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहि ॥ २६७. तए णं से पंडू राया कौति देवि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए ! बारवई नयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एवं' निवेएहि--एवं खलु देवाणुप्पिया! तुमे पंच पंडवा निविसया आणत्ता। तुमं च णं देवाणप्पिया ! दाहिणड्डभरहस्स सामी ! तं संदिसंतु णं देवाणु प्पिया 1 ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसंवा 'विदिसं वा“ गच्छतु ? २६८. तए णं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हत्थिखधं दुरुहइ, जहा हेट्ठा जाव' संदिसंतु णं पिउच्छा ! किमागमणपोयण ? २६६. तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु तुमे पुत्ता ! पंचपंडवा निव्विसया आणत्ता। तुमं च णं दाहिणड्डभरहस्स" 'सामी । तं १. द्रष्टव्यम् - अस्यैवाध्ययनस्य १६६ सूत्रम्। २. सं० पा०-करयल जाव एवं । ३. ना० १।१६।२८२।। ४. बुच्चइ (घ) ५. ना०१।१६।२८३, २८४, २८६-२६० । ६. ण तुमं (ख) । ७. X (क, ग, घ)। ८. X (क, ख, ग)। ६. ना० १६१६६२१६-२१६ । १०. सं० पा०-दाहिणढभरहरस जाब दिसं। Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयरणं (अवरकंका) संदिसंतु णं देवाणु प्पिया ! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा° दिसं वा विदिसिं वा गच्छंतु ? ३००. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंतिं देवि एवं वयासी-अपूइवयणा' णं पिउच्छा ! उत्तमपुरिसा--वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं पंच पंडवा दाहिणिल्लं वेयालि तत्थ पंडुमहुरं निवेसंतु, ममं अदिट्ठसेवगा भवंतु त्ति कटु कोंति देवि सक्कारेइ सम्माणे इ', 'सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ३०१. तए णं सा कोंती देवी जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता पंडुस्स एयभटुं निवेएइ । ३०२. तए णं पंडू राया पंच पंडवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- गच्छह णं तुम्भे पुत्ता ! दाहिणिल्लं बेयालि । तत्थ णं तुब्भे पंडुमहुरं निवेसेह ।। पंडुमहुरा-निवेसण-पदं ३०३. तए णं ते पंच पंडवा पंडुस्स रण्णो' 'एयमटुं° तहत्ति पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सबलवाहणा हय-गय रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिडा मह्याभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता' हत्थिणाउराम्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव दविखणिल्ले वेयाली तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पडुमहुरं नगरि निवेसंति । तत्थवि णं ते विपुल भोग-समिति समण्णागया यावि होत्था ।। पंडुसेण-जम्म-पदं ३०४. तए ण सा दोवई देवी अण्णया कयाइ आवष्णसत्ता जाया यावि' होत्था ।। ३०५. तए णं सा दोवई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव' सुरूवं दारगं पयाया--सूमाल कोमलयं गयतालुयसमाणं ।। ३०६. तए णं तस्स णं दारगस्स निव्वत्तबारसाहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्ज करेंति जम्हा णं अम्ह एस दारए पंचण्ह पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए, तं होउ णं इमस्स दारगस्स नामधेज्ज 'पंडुसेणे-पंडुसेणे'" ।। १. अपूईवयणा (ख, ग)। २. सं० पा --सम्माणेद जाव पडिविसज्जेइ। ३. सं० पा०—देवो जाव पंदुस्स । ४. सं० पा०-रणो जाव तहत्ति ! ५. सं० पा०-हयगय जाब हस्थिणाउराओ। ६. नगर (ख)। ७. तत्थ (ग, घ)। ८. वि (ख, घ)। ६. प्रो० सू० १४३ । १०. सं० पा०—सूमाल निव्वत्तबारसाहस्स इम एयारूवं । सर्वास्वपि प्रतिषु एतावानेव पाठो विद्यते, किन्तु १।१६।३३,३४ सूत्रानुसारेण अस्य पूर्तिः कृता। ११. पंडुसेणे (ग)। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ नायाधामकहाओ ३०७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति पंडुसे णत्ति ।। ३०८. “तए ण तं पंडुसेणं दारयं अम्मापियरो साइरेगदवासजायग चेव सोहणंसि तिहि-करण-मुहुत्तं सि कलायरियस्स उवणेति ॥ ३०६. तए णं से कलायरिए पंडुसेणं कुमारं लेहाइयायो गणियप्पहाणाम्रो सउणरुय पज्जवसाणाप्रो बावत्तरि कलाओ सुत्तो य अत्थयो य करणयो य सेहावेइ सिक्खावेइ ° जाव' अलंभोगसमत्थे जाए । जुवराया जाव विहरइ ।। पंडवाणं दोवईए य पट्वज्जा-पदं ३१०. थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। पंडवा निग्गया। धम्म सोच्चा एवं वयासी - जं नवरं- देवाणुप्पिया ! दोवई देवि प्रापुच्छामो ! पंडुसेण च कुमार रज्जे ठावेमो । तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भक्त्तिा' • अगाराम्रो अणगारियं पव्वयामो। अहासुहं देवाणुप्पिया! ३११. तए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दोवई देवि सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हेहि थेराणं अंतिए धम्मे निसते जाव" पव्वयामो । तुम णं देवाणु प्पिए ! कि करेसि ? ३१२. तए णं सा दोबई ते पंच पडवे एवं वयासी-जइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! संसार-भविग्गा जाव पव्वयह, मम के अण्ण पालवे वा श्राहारे वा पडिबंधे वा ° भविस्सइ ? अहं पि य णं संसारभउविग्गा देवाणुप्पिएहि सद्धि पव्वइरसामि ।। ३१३. ताए णं ते पंच पंडवा' •कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेता एवं वयासी-- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! पंडुसेणस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेहं उवट्ठवेह° । पंडुसेणस्स अभिपेनो जाव" राया जाए जाव रज्ज पसाहेमाणे विहरइ ।। ३१४. तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अण्णया कयाइ पंडुसेणं रायाणं पापुच्छंति ।। ३१५. तए णं से पंडुसेणे राया कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- १. कयं (क); X (ख, ग)। ७. ना० ११५१८६। २. सं० पा०- बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोग- ८. ना० ११५१६० । समत्थे। ९. सं० पा०-आलवे वा जाव भविस्सइ । ३. ना० १.११८५-८८ । १०. सं० पा० --पंडवा । ४. राय० सू० ६७४ । ११. ना० ११११११७-११६ । ५. सं० पा०-- भक्त्तिा जाव पव्वयामो। १२. प्रो० सू० १४ । ६. पव्वामो (क, ग)। Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोल समं अज्झयणं (अवरकंका) खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! निक्खमणाभिसेयं करेह जाव' पुरिससहस्सवाहिणीओ सिवियाग्रो उवटुवेह जाव' सिबियानों पच्चोरुहंति', जेणेव थेरा •भगवंतो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता थेरं भगवंतं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी°-- आलित्ते ण भंते ! लोए जाव समणा जाया, चोदस्स पुव्वाइ अहिज्जति, अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि छट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।। ३१६. तए णं सा दोवई देवी सीयानो पच्चोरुहइ जाव' पब्वइया । सुव्वयाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए दलयंति, एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूणि वासाणि छटुट्ठम दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ॥ ३ १७. तए णं ते थेरा भगवंतो अण्णया कयाइ पंडुमहरायो नयरीनो सहस्संवत्रणामो उज्जाणाप्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणक्यविहारं विहरति ।। अरिट्टनेमिस्स निव्वाण-पदं ३१८. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी जेणेव सुरट्टाजणवाा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरवाजणवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ३१६. तए णं वहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, भासइ पण्णवेइ परूवेइ-एवं खलू देवाणु प्पिया ! अरहा अरिद्वनेमी सुरद्वाजणवए संजमेणं तवसा अप्पार्ण भावेमाणे विहरइ॥ ३२०. तए णं ते जुहिटिलपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहा अरिटुनेमो पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे मुहंमुहेणं विहरमाणे सुरद्वाजणवए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ । तं सेयं खलु अम्हं [थेरे भगवंते ? ] आपुच्छित्ता परहं अरिट्टनेमि बंदणाए गमित्तए, अण्णमण्णम्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - -- - - - ---- - - -- ....... . १. ना० १११।१२१-१२६ । २. ना० १।१।१३०-१४४ । ३. द्रष्टव्यम् --ना० ११:१४५-१४८ सूत्रम् । ४. सं० पाo...थेरा जाव आलित्ते। ५. ना० १.१.१४६। ६. ना० १११६६३१५ । ७. दलयइ (क, ख, ग, घ)। ८. सहसंव' (ख, ग)। ६. सं० पा०.-सुरट्टाजणवए जाब विहरह। १०. सं० पा०-~-दूइज्जमाणे जाव विहरइ। Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ नायाधम्मकहाओ इच्छामो णं तुब्भेहिं अभणुण्णाया समाणा अरहं अरिट्ठनेमि' 'वंदणाए ° गमित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! ३२१. तए ण ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा थेरेहिं अब्भणुण्णाया समाणा थेरे भगवते वदति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता थेराण अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता मासमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं गामाणुगाम दुइज्जमाणा' 'सुहसुहेणं विहरमाणा' जेणेव हत्थकप्पे' नयरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हत्थकप्पस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा ° विहरति । ३२२. तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा मासक्खमणपारणए पढमाए पोरि सीए सज्झायं करेंति, बीयाए झाणं झायंति एवं जहा गोयमसामो', नवरंजूहिट्रिलं आपुच्छति जाव' प्रडमाणा बहुजगसद्द निसामेंति -एवं खलु देवाणप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी उज्जंतसेलसिहरे मासिएणं भत्तण अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धि कालगए' सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्ख पहोणे ॥ पंडवाणं निव्वाण३२३. तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हत्थकप्पाम्रो नयराअो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव जुहिट्ठिले अणगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पच्चुवेक्खंति, पच्चुवेक्खिता गमणागमणस्स पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं पालोएंति, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेंति, पडिदसेत्ता एवं वयासो--एवं खलु देवाणुप्पिया! परहा अरिटुनेमी उज्जतसेलसिहरे मासिएणं भत्तणं अपाणएणं पंचहि छत्तीसे हि अणगारसरहिं सद्धि ° कालगए। त सेयं खलु अम्हं देवाणु प्पिया ! इमं पुव्वगहिय भत्तपाणं परिवेत्ता सेत्तुज्जं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्तए, संलेहणा-झूसणा-झोसियाणं कालं अणवेक्खमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तं पुष्वगहियं भत्तपाणं एगंते परिवेंति, परिवेत्ता जेणेब सेत्तुज्जे" पव्वए तेणेव १. स. पा०-अग्नेिमि जाव गमित्तए। ७. सं० पा०-कालगए जाव पहोणे । २. सं. पा.--दुइज्जमाणा जाव जेणेव । ८. पचुवेक्ख इंति (ख); पच्चक्खंति (घ)। ३. हत्थीकप्पे (क) । १. सं० पा०-देवाणु पिया जाच कालगए। ४. स. पा०-उज्जाणे जाव विहरति । १०. अणवकंखमाणाणं (घ)। ५. भ० २११०७। ११. सेत्तु जे (क्व)। ६. भ० २११०८, १०६ । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेत्तुज्ज पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति', 'दुरुहित्ता सेलेहणा-झूसणा-झोसिया ° कालं अणवकंखमाणा विहरति ।। ३२४. तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा सामाइयमाइयाइ चोद्दसपुवाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता जस्सट्ठाए की रइ नग्गभावे जाव' तमट्ठमाराहेति, पाराहेत्ता अणतं केवल वरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्वदुक्खप्पहीणा' ।। दोवईए देवत्त-पदं ३२५. तए ण सा दोवई अज्जा सुव्वयाणं अज्जियाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता' बहूणि वासाणि सामग्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता?] पालोइय-पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववण्णा । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं दुवयस्स वि देवस्स दससाग रोवमाइं ठिई ।। ३२६. से णं भंते ! दुवए देवे तानो' 'देवलोगानो आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्ख एणं अणंतरं चयं चइत्ता जाव' महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चि हिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाण ° मंतं काहिइ ।। निवखेव-पदं ३२७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव' सिद्धिगइणामधेज्ज ठाणं संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते । त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा सुवह वि तव-किलेसो, नियाण-दोसेण दूसिओ संतो। न सिवाय दोवईए, जह किल सूमालिया-जम्मे ॥१॥ अथवा-- अमणण्णम भत्तीए, पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । जह कडुय-तुंब-दाणं, नागसिरि-भवम्मि दोवईए ॥२॥ १. सं० पा०-- दुरुहंति जाव कालं! २. ओ० सू० १५४ । ३. सं० पा० -अणते णाणे समुप्पण्ये जाब सिद्धा। ४. अहिज्जइ २ (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०–ताओ जाव विदेहे वासे जाब अंतं ६. ना० १११।२१२ । ७. ना०१।१७॥ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं अज्झयणं पाइण्णे उक्खे व-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झ यणस्स अयमढे पण्णत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था वण्णनो'। ३. तत्थ णं कणगकेऊ नामं राया होत्था–वणयो। ४. तत्थ णं हथिसीसे नयरे वहवे संजत्ता' नावावाणियगा परिवसंति----अड्डा जाव' बहुजणस्स अपरिभूया यावि होत्था ।। कालियदीव-जत्ता-पदं ५. तए णं तेसि 'संजत्ता-नावावाणियगाणं" अण्णया कयाइ एगयओ' 'सहियाण इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था--सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेणं अोगाहेत्तए त्ति कटु जहा अरहन्नए जाव लवणसमुहं अणमाइं जोयणसयाइं प्रोगाढा यावि होत्था॥ ६. तए णं तेसि •संजत्ता-नावावाणियगाणं लवणसमुई अणेगाइं जोयणसयाई -.----.- - -.---- -..... - १. ना० १।१७। २. ओ० सू० १। ३. ओ० सू० १४ । ४. संजुत्ता (ग)। ५. ना० ११५७ । ६. संजुत्ता वाणियगाणं (ख, ग) 1 ७. सं० पा.-एगयओ जहा अरहन्न ए जाव लवणसमुहूं। ८. ना० शा६६-७० । ६. सं० पा०---तेसिं जाव बहूणि । ३३६ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं अज्झषणं (आइण्णे ) ३३७ प्रगाढाणं समाणाणं • वहूणि उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई, तं जहा - अकाले ज्जिए प्रकाले विज्जुए प्रकाले थणियसदे' कालियवाए य समुत्थिए | ७. तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी - आहुणिज्जमाणी संचालिज्ज माणी - संचालिज्जमाणी संखोहिज्जमाणी- संखो हिज्जमाणी" तत्थेव परि भमइ || ८. तए णं से निज्जामए नटुमईए नट्ठसुईए नट्ठसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था - न जाणइ कयरं देस वा दिसं वा 'विदिसं वा" पोयवहणे 'प्रवहिए त्ति" कट्टु ओहमणसंप्पे करतलपल्हत्थमुहे ग्रट्टज्भाणोवगए भियायइ ॥ ६. तए णं ते बहने कुच्छिधाराय कण्णधारा य गब्भेललगा य संजत्ता-नावावाणियगाय जेणेव से निज्जामए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता एवं वयासीकिरण तुमं देवाणुपिया ! ग्रहयमाणसं कप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्भाणोवगए भियायसि ? १०. तर गं से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेललगाय संजत्ता नावावाणियगा य एवं वयासी एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! नट्टमईए' नट्ठसुईए नटुसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था - न जाणइ कयरं देसं वादिसं वा विदिसं वा पोयवहणे • प्रवहिए त्ति कट्टु तम्रो ग्रहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्यमुहे प्रमाणो गए झियामि ॥ ० ११. तए णं से कुच्छिधारा य कृष्णधारा य गभेललगा य संजत्ता नावावाणियगा य तस्स निज्जामय संतिए एयम सोच्चा निसम्म भीया तत्था उब्विग्गा उव्विग्गमणा व्हाया कयवलिकम्मा करयल" परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु बहूणं इंदाण य संघाण य रुद्दाण य सिवाण य वेसमपाणय नागाण य भूयाण य जक्खाण य श्रज्ज कोट्टकिरियाण य बहूणि उवाइय-सयाणि उवायमाणा - उवायमाणा चिट्ठति ॥ १२. तए गं से निज्जामए तो मुहुत्तंतरस्स लद्धमईए लद्धसुईए लद्धसण्णे प्रमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था || १. सं० पा० - जहा माकंदियदारगाणं जाव कालियवाए। २. यत्थ ( ग, घ ) । ३. प्रणुत्तिज्जमाणी (ख); याघुलिज्जमाणी ( ग ); आहुनियमाणी (घ) 1 ४. संखोभेज्जमाणी (क) ५. X ( क ) 1 ६. अवहिति ( क ) ; वहिति ति ( ख ) । ७. स० पा० - ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ । ८. सं० पा०श्रोहय मणसंकप्पे जाव झियायसि । ६. सं० पा० नटुमईए जाव अवहिए । १० सं० पा०- ओहयमणसंकप्पे जाव भियामि । ११. सं० पा०करयल ० । १२. सं० पा० जहा मल्लिनाए जाव उवाय माणा । १३. उवाइमाणा (१८१७२ ) Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ नायाधम्मकहानो १३. तए ण स निज्जामए ते वहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा संजत्ता नावावाणियगा य एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! लद्धमईए' 'लद्धसुईए लद्धसण्णे ० अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कालिय दीवंतेणं संछूढा' । एस णं कालियदीवे पालोक्कइ' ।। कालियदीवे प्रास-पेच्छण-पदं १४. तए णं ते कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजता-नावावाणियगा य तस्स निज्जामगस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा हट्टतुटा पयक्खिणाणुकलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता पोयवहणं लंबेति, लंबेत्ता एगट्टियाहि कालियदीवं उत्तरंति । तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासंति, किं ते ?-- हरिरेणु-सोणिसुत्तग-"सकविल-मज्जार-पायकुक्कुड-वोंडसमुग्गयसामवण्णा! गोहमगोरंग-गोरपाडल-गोरा, पवालवण्णा य धूमवण्णा य केइ ।।१।। तलपत्त - रिढवण्णा य, सालिवण्णा य भासवण्णा य केइ। जंपिय-तिल-कीडगा य, सोलोय-रिट्ठगा य पुंड-पइया य कणग पिट्ठा य केइ ॥२॥ चक्कागपिट्ठवण्णा, सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ । के इत्थ अब्भवण्णा, पक्कतल' - मेघवण्णा य बाहुवण्णा' केइ ॥३॥ संझाणुरागसरिसा, सुयमुह - गुंजद्धराग- सरिसत्थ केइ । एलापाडल - गोरा, सामलया - गवलसामला पुणो केइ ॥४॥ बहवे अण्णे अणिद्देसा, सामा कासीसरत्तपीया, अच्वंतविसुद्धा वि य णं पाइण्णगजाइ-कुल-विणीय-गयमच्छरा। हयवरा जहोवएस-कम्मवाहिणो वि य णं । सिक्खा विणीयविणया, लंघ-वग्गण-धावण-धोरण-तिवई जईण-सिक्खिय-गई। किं ते ? मणसा वि उम्विहंताई अणेगाई पाससयाइं पासंति ।। १५. तए ण ते अासा' वाणियए पासंति, तेसिं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया १. सं० पा० -- लद्धमईए जाव अमूढदिसायाए। कारेणापि सूचितमिदम् यथा ---वेढो त्ति २. संबूढा (ख); संबूढा (ग)। वर्णनार्था वाक्यपद्धतिः (वृ)। ३. ओलोकिज्जइ (घ)। ५. पविरल (वृपा)। ४. सं० पा०-आइण्ण वेढो । विस्तत: पाठो ६. बह विपा)। वृत्त्यनुसारेण स्वीकृतः । मूलपाठे अस्य सूचना ७. आसा ते(क, घ);ासाए (म);आसाओ(क्व)। 'आइण्णवेढो' इति पदेन प्रदत्तास्ति । वृति- ८, अग्घायंति (ख, ग)। Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्था उविग्गा उद्विग्गमणा तो अणेगाई जोयणाइं उब्भमंति। ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निब्भया' निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरंति ॥ संजत्तियाणं पुणरागमण-पदं १६. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा अण्णमण्णं एवं वयासी-किण्णं अम्हं देवाणु प्पिया ! प्रासेहि ? इमे णं बहवे हिरण्णागरा य सुवण्णागरा य रयणागरा य वइरागरा य ! तं सेयं खलु अम्हं हिरण्णस्स य सुवण्णस्स य रयणस्स य बइरस्स य पोयवहणं भरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमढे पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता हिरण्णस्स य सुवण्णस्स य रयणस्स य वइरस्स य तणस्स य कदृस्स य अन्नस्स य पाणियस्स य पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता पयक्खिणाणुकलेणं' वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टण तेणंव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोयवहण लंबीत, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेति, सज्जेत्ता तं हिरण्णं च सुवणं च रयणं च ° वइरं च एगट्टियाहिं पोयवहणाश्रो संचारेति, संचारेत्ता सगडी-सागडं संजोएंति', जेणेव हत्थिसीसए नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिसीसयस्स नयरस्स बहिया अग्गुज्जाणे सत्थानवेसं करेंति, करेत्ता सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं •महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं ° पाहुडं गेहंति, गेण्हित्ता हत्थिसीसयं नयरं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव से कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं ° पाहुडं उवणेति ।। आसाण आणयण-पदं १७. तए णं से कणगकेऊ राया तेसि संजत्ता-नावावाणियगाणं तं महत्थं" 'महग्ध महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं° पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी--तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! गामागर-नगर-खेड-कब्बडदोणमुह-मडंव-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं° आहिंडह, लवणसमुई च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं प्रोगाहेह । तं अत्थियाइं च केइ भे" कहिचि अच्छे रए दिद्वपुवे ? १. निब्भया निब्भेया (ग)। २. निउविग्गा (ख)। ३. दक्खिणाणु° (ख, ग)। ४. गंभीर (ख, ग, घ)। ५. पोयवहणपट्टणे (ग)। ६. सं० पा०-हिरण्णं जाव वइरं । ७. ज़ोएंति (क, ख, घ)। ५. हत्थिसीसे (घ)। है. सं. पा.-महत्थं जाव पाहुडं । १०. सं० पा०—महत्थं जाव पाहुई। ११. स. पा०-महत्थ जाव पडिच्छइ । १२. सं० पा०-गामागर जाव आहिंडह । Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ my नायाधम्मकहाओ १८., तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कणगकेउं एवं बयासी ----एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया ! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव' कालियदीवतेणं संछुढा । तत्थ णं वहवे हिरण्णागरे य. 'सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य°, बहवे तत्थ आसे पासामो। कि ते ? हरिरेण जाव' अम्हं गंध आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उद्विग्गा उब्विग्गमणा तो अणेगाई जोयणाई उन्भमंति ! तए णं सामी! अम्हेहि कालियदीवे 'ते प्रासा' अच्छेरए दिट्ठपुवे ।। तए णं से कणगकेऊ तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म ते संजत्ता-नावावाणियए एवं वयासी---गच्छह णं तुबभे देवाणप्पिया ! मम कोडुबियपुरिसेहि सद्धिं कालियदीवारो ते आसे प्राणेह ।। २०. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणति ।। २१. तए णं से कणगकेऊ कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संजत्ता-नावावाणियएहि द्धि कालियदीवानो मम पासे आणेह । तेवि पडिसुणेति ।। २२. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सगडी-सागडं सज्जेति, सज्जेत्ता तत्थ णं वहणं वीणाण य वल्लकीण य भामरीण य कच्छभीण य भंभाण य छभामरीण य चित्तवीणाण य अण्णेसि च बहूण सोइंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति । बहणं किण्हाण य° 'नीलाण य लोहियाण य हालिहाण य सुक्किलाण य कट्टकम्माण य चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य गंथिमाण य वेढिमाण य पूरिमाण य संघाइमाण य अण्णेसिं च बहूर्ण चक्खिदियपाउम्गाणं दवाणं सगडी-सागडं भरेति । वहूर्ण कोटपुडाण य पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगरपुडाण य एलापुडाण य हिरिवेरपुडाण य उसीरपुडाण य चंपगपुडाण य मरुयगपुडाण य दमगपुडाण य जातिपुडाण य जुहियापुडाण य मल्लियापुडाण य वासंतियापुडाण य केयइपुडाण य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य° अण्णेसिं च बहूणं धाणिदिय-पाउग्गाण दव्याणं सगडी-सागडं १. ना० १.१७/४-१३। ख, ग, घ) । यद्यपि सर्वेष्वपि आदर्शपु असो २. सं० पा०-हिरण्णागरे य जाव बहवे; पाठो विद्यते, तथापि अर्थमीमांसया नासी हिरण्णागरा ० (ख, ग)। सगच्छते। एतादृशप्रसंगे तथा प्रदर्शनात । ३. यस्थ (ख); अस्थि (घ)। द्रष्टव्यम् --~११८।१०४ सूत्रम् । तेनासौ पाठः ४. एतत् क्रियापदं १४ सूत्रानुसारेण स्वीकृतम्। पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः । ५. ना० १११७:१४,१५ । ७. स. पा.--किण्हाण य जाव सुक्किलाण । ६. नावावाणियगा कणगकेउं एवं क्यासी (क, ८. सं० पा.-कोटपुडाण य जाव अण्णेसि । Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसम अज्झयणं (आइग्णे) ३४१ भरेति । बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य 'सक्कराए य मच्छंडियाए य' पुप्फुतरपउत्तराए अण्णसि च जिभिदिय-पाउम्गाणं दवाणं सगड़ी-सागडं भरेति । बहूणं कोयवाण' य कंबलाण य पावाराण य नवतयाण य ‘मलयाण य" मसूराण य 'सिलावट्टाण य जाव हंसगब्भाण य" अण्णेसि च फासिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति, भरेत्ता सगडो-सागई जोयंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति, सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता पोयवहणं सज्जति, सज्जत्ता तेसि उक्किट्ठाणं सद्द-फरिस-रस-रूप-गंधाणं कट्ठस्स य 'तणस्स य" पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव अण्णसि च बहण पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भाति, भरेत्ता दक्खिणाणकलेणं वाएणं जेणेव कालिखदीवे ते गेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबति, लंबेत्ता ताई उक्किट्ठाई सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई, एगट्टियाहि कालियदीवं उत्तरेति । जहि-हि च ण ते प्रासा प्रासयति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयट्टति वा तहितहि च ण ते कोडुवियपुरिसा तानो वीणायो य जाव चित्तवीणाओं य अण्णाणि य वणि सोइंदिय पाउग्गाणि य' दव्वाणि समुदीरेमाणा-समुदीरेमाणा ठवेंति, तेसि च परिपेरंतेणं पासए ठवेति, ठवेत्ता निच्चला निप्फदा तुसिणीया चिट्ठति। जत्थ-जत्थ ते आसा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा ° तुयटुंति वा तत्थतत्थ णं ते कोडुबियपुरिसा बहूणि किण्हाणि य नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य सुक्किालाणि य कट्टकम्माणि य जाव संघाइमाणि य अण्णाणि य वणि चविखदिय-पाउग्गाणि य दवाणि ठवेति, तेसि परिपेरतेणं पासए ठवेति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । जत्थ-जत्थ ते पासा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयटुंति वा तत्थ-तत्थ ण ते कोडुवियपुरिसा तेसि बहूणं काढ़पुडाण य जाव पाडलपुडाण य अण्ण सिं १. सक्करा तणस य पाणियस्स य गोरसस्स य तंदूलाण य समियस्त य जाव अण्णेमि च पोयवहाओरमाण य (क); ° मुच्छडियाए य तणस्न य पाणियरस य गोरमस्स य तंदुलाण य समियस्स य जाब अण्णसि च पोयवहण- पाओग्गाण य (स)। २. कोयगाण (वृ); कोयहा (वा ?) णि (आधारचूला ५।१४)। ३. मसगाण य (वृपा)। ४. 'सिलावट्टाण य जाव हंसगम्भाण य' अस्य पूर्तिस्थलं नोपलभ्यते । प्रज्ञापनाया: प्रथमपदे हसगब्भ' इति पदं मध्यति विद्यते । अन्तिम पदं 'सूरकते' अस्ति । उत्तराध्ययनस्य 38 अध्ययनेपि एवमेव । ५. X (ख, ग, घ)। ६. ना. १८६६ । ७. ४ (ख, घ)। ८. पासे (ख, घ)। ६. सं० पा०—आसयंति वा जाव तुयति Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकदामो च बहूणं घाणिदिय-पा उग्गाणं दवाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता तेसि परिपेरतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया' चिट्ठति । जत्थ-जत्थ ते प्रासापासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयटृति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा गुलस्स जाव पुप्फुत्तर-पउमुत्तराए अण्णेसिं च बहूणं जिभिदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता वियरए खणंति, खणित्ता गलपाणगस्स 'खंडपाणगस्स बोरपाणगस्स'२ अण्णेसि च बहणं पाणगाणं वियरए भरेति, भरेत्ता तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेति', 'ठवेत्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया चिटुंति। जहि-जहिं च णं ते आसा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयटृति वा तहितहिं च णं ते कोडुंबियपुरिसा बहवे 'कोयवया जाव सिलावट्टया अण्णाणि य फासिदिय-पाउग्गाइं अत्थुय-पच्चत्थुयाई ठवेंति, ठवेत्ता तेसि परिपेरंतेण" 'पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया ° चिट्ठति ।। २३. तए णं ते आसा जेणेव ते उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छति ।। अमुच्छिय-आसाणं सायत्त-विहार-पदं २४. तत्थ णं अत्येगइया प्रासा अपुव्वा णं इमे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधत्ति कटु तेसु उक्किट्ठसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु अमुच्छिया अगढिया अगिद्धा प्रणज्झोववण्णा तेसि उक्किट्ठाणं सद्द- फरिस-रस-रूव °-गंधाणं दूरंदूरेणं प्रवक्कमति । ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरति ।। निगमण-पदं २५. एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइए समाणे सद्दफरिस-रस-रूव-गंधेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूर्ण समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयागं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकतारं वीईवइस्सइ ।। १. सं० पा०-परिपेरतेणं संक्षेपीकरणेऽस्य विपर्ययो जातः । २. खंडपाणगस्स पोरपाणगस्स (क); वोरपाण- ५. सं० पा०—परिपेरतेण जाव चिटुंति । गस्स य खंडपाणगस्स य (ख): खडपाणगस्स ६. गंधाति (ख, घ)। ७. सं० पा०- सह जाव गंधाणं । १. सं० पा०-ठवेंति जाव चिट्रति । ८. सं० पा०-निग्गंथो वा । ४. अस्य सूत्रस्य पूर्वपाठापेक्षया 'कोयवया जाव ६. ना० ११२।७६ । हंसगम्भा' एवं पाठो यूज्यते । संभवतः Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ससरसमं अज्झयण (आइष्णे) मुच्छिय श्रासाणं परायत्त-पदं २६. तत्थ णं प्रत्येगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सह-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छति । तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस रस-रूव-गंधेसु मुच्छिया गढिया गिद्धा प्रभोववण्णा आसेविउं पयत्ता यावि होत्था || २७. तए णं ते आसा ते उक्किट्ठे सह-फरिस - रस रूव-गंधे ग्रासेवमाणा तेहि बहूहि कडेहि य पासेहि य गलएसु य पारसु य वज्भंति || २८. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा ते ग्रासे गिरहंति गिव्हित्ता एगट्टियाहि पोयवहणे संचारति कटुस्स य 'तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव' अण्णेसि च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पयवहणं भरति ॥ २६. तए णं ते संजत्ता नावावाणियगा दक्खिगाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेति, लंबेत्ता से उत्तारेति उत्तारेत्ता जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता करयल 'परिगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जणं विजएणं वद्धावेति ते मासे उवर्णति ।। ३०. तए गं से कणगऊ राया तेसि संजत्ता नावावाणियगाणं उत्सुकं वियरइ, सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ || ० ३१. तए णं से कणगकेऊ राया कोडुंवियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्मणेत्ता पडिविसज्जेइ || ३२. तए णं से कणगऊ राया प्रासमद्दए सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं व्यासी- तुब्भेणं देवपया ! ममासे विणएह ॥ ३३. तए णं ते आसमद्दगा तहत्ति पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता ते आसे बहूहि मुहबंधेहि य कण्णबंधेहि य नासाबंधेहि य वालवंधेहि य खुरबंधेहि य 'कडगबंधेहि य खणिबंधेहि य" प्रोवीलणाहि' य 'पडयाणेहि य" अंकणाहि य वेत्तप्पहारेहि' य लयप्पहारेहि' य कसप्पहारेहि य छिवप्पहारेहि य विषयंति, विणइत्ता कणकेउस रणो उवर्णेति ॥ आसमद्दए सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता ३४. तए गं से कणगकेऊ राया सम्मात्तापडिविसज्जेइ ॥ १. सं० पा० - कटुस्स य जाव भरेंति । २. ना० १२८६६ । ३. स० पा०- करयल जाव वद्धावेंति । ४. उस्सुक्कं (क, ग, घ ) ! ५. X ( क ) ; ° खलीण ( ख, ग ) 1 ३४३ ६. अधिलाणेहि ( क ) ; आवलणेहि (ख); अहिलाणबंधेहि ( ग ); अहिलाणेहि (घ, वृपा) । ७. X ( क ); पलियाणेही य ( ख ) । ८. वित्त ( ख, ग, घ ) । ० ६. × ( ख, ग ) । Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ नायाधम्मकहानो ३५. तए णं ते आसा वहहिं मुहबंधेहि य जाव' छिवप्पहारेहि य बहूणि सारीर माणसाइं दुक्खाइं पार्वति ।। निगमण-पदं ३६. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा प्रायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं • पव्वइए समाणे इ8सु सद्द-फरिसरस-रूव-गधसु सज्जइ रज्जइ गिज्झइ मुज्झइ अझोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाण' बहूणं समणीणं वहूणं सावगाणं वहूण° सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ । गाहा कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु । सद्देसु रज्जमाणा', रमंति सोइदिय - वसट्टा ।।१।। सोइदिय-दुईतत्तणस्स ग्रह 'एत्तिो हबइ'' दोसो। दीविग-रुयमसहतो, वहबंध तित्तिरो पत्तो ।।२।। थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गब्धिय-विलासियगई। रूवेसु रज्जमाणा, रमति चक्खिदिय-वसट्टा ॥३॥ चक्खि दिय-दुइंतत्तणस्स अह एत्तिो हवइ दोसो। जं" जलणमि जलते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ ॥४॥ अगरुवर-पवरधूवण . उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु रज्जमाणा, रमंति घाणिदिय-वसट्टा ॥५॥ घाणिदिय-दुद्दतत्तणस्स अह एत्तियो हबइ दोसो। जं अोसहिगधणं, विलाप्रो निद्धावई उरगो ॥६॥ तित्त-कडुयं कसाय, महुरं" बहुखज्ज-पेज्ज-लेझेसु । प्रासामि उ गिद्धा, रमति जिभिदिय-वसदा ।।७।। जिटिभदिय-दुइंतत्तणस्स अह एत्तियो हवइ दोसो। जं गललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरेल्लिो " मच्छो ॥८।। १. ना० १११७।३३ । ८. भयमसहतो (ग); खमसहंतो (ध, वृ) । २. सं पा०—निग्गंथो वा पव्वइए। ६. मईसु (क)। ३. सं० पा०-समणाणं आव सावियाण । १२. सं (क)। ४. ना० ११३।२४ । ११. कटुय (घ)। ५. कदुहा° (क); ककुहा° (ख); ककुदा° १२. अविलमहुरं (घ)। (घ, वृ)। १३. आसायंति (ख)। ६. रयमाणा (ख) १४. विरिल्लिओ (क,ख,ग); विरल्लिओ(घ)। ७. तत्तियो हवति (क, ग);हवइ एत्तित्रो (ख)। Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं अभयणं (आइण्णे) १. ० सुहेहि ( क, ख ) । २. सविहव (क, ग ) 1 ३. ०करेहिं (क, ख, ग ) 1 ४. ० मईसु ( ग ) ५. घाणेसु ( ख ) । ६. अगिद्धा ( क, ख, ग ) ७. ० ( क ) | ८. उउ भयमाणसुसु' य, सविभव - हिययमण निव्वुइकरेसु' । फासे रज्जमाणा, रमंति फासिदिय वसट्टा ||eil फासिदियदुद्दतत्तणस्स ग्रह एत्तियो हवइ दोसो | जं खणइ मत्ययं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥१०॥ कल - रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल- वंस - कउहाभिरामेसु । सद्देसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए || ११|| थण-जण-वयण-कर-चरण- नयण-गव्दिय-विलासियगईसु' । रूवेसु जे न रत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए ||१२|| अगरुवर पवर धूवण उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु जेन गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ||१३|| तित्त- कडुयं, कसायं, महुरं बहुखज्ज -पेज्ज-लेज्झेसु । आसायमि 'न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१४॥ उभयमाणसुहेसु य, सविभव हिययमण निव्वुइक रेसु" । फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ।।१५।। सद्देसु य भद्दय' - पावसु सोवियवसु । तुट्ठण व रुद्वेण व समणेण सया न होयव्वं ॥ १६॥ रूवेसु य भद्दय - पावसु चक्खुविसय मुव गएसु । तुद्रेण व रुद्वेण व समणेण सया न होयव्वं ॥ १७ ॥ गंधे य भद्दय-पावएसु घाणविसय मुब गए । तुट्टे व रुट्ठण व समणेण सया न होयव्वं ।। १८ ।। रमेसु य भद्दय-पावएसु जिन्भवियमुवसु । तुद्वेण व रुद्वेण व समणेण सया न होयव्वं ||१६|| फासेसु य भद्दय-पावएसु कावयवसु । तुटुण व रुद्वेण व समणण सया न होयव्वं " ||२०|| भद्देसु य (ख) | - ३४५ ६. भद्दा (क, ग ) | १०. होउव्वं (ग) ३ ११. एतद् गाथा - विंशतिकं वृत्तिकृता प्रस्तुतवाचनायां न स्वीक्रियते यथा - अथेन्द्रियासंवृतानां स्वरूपस्य इन्द्रियासंवरदोषस्य चाभिधायकं गाथाकदंबकं वाचनान्तरेऽधिकमुपलभ्यते । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ नायाधम्मक हाओ ३७. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तरसमस्स नायज्भयणस्स अयमठ्ठे पण्णत्ते । - त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा - जह सो कालियदीवो, प्रणुवमसोक्खो तहेव जइ धम्मो । जह प्रसा तह साहू, वणियव्व अणुकूलकारिजणा || १|| जह सद्दाइ अगिद्धा, पत्ता नो पासंबंधणं आसा । तह विससु अगिद्धा, बज्भंति न कम्मणा साहू || २ || जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह इहं वरमुणीणं । जर मरणाइ - विवज्जिय, सायत्ताणंद निव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया | पावेति कम्मबंध, परमासुह-कारणं घोरं ॥४॥ जह ते कालियदीवा, णीया ग्रण्णत्थ दुहगणं पत्ता । तह धम्म- परिभट्ठा, श्रधम्मपत्ता इहं जीवा ||५|| पावेंति कम्म-नरवइ-वसया संसारवाहियालीए' । महि व, रइयाईह दुखाई ||६|| १. ना० १।११७ । २. ० वाहयालीए (घ ) | Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसम अज्झयणं सुंसुमा उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तरसमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, अट्ठारसमस्स णं भंते नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था- वण्णओं' । ३. तत्थ णं धणे नामं सत्थवाहे । भद्दा भारिया ।। ४. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्थवादारगा होत्था, तं जहा-धणे धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए । ५. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुसुमा नाम दारिया होत्था-सूमालपाणिपाया ।। चिलाय-दासचेडस्स विग्गह-पदं ६. तस्स णं धणस्स सत्यवाहस्स चिलाए नामं दासचेडे होत्था-अहीणपंचिदिय सरीरे मंसोवचिए वालकीलावणकुसले यावि होत्था ॥ ७. तए णं से दासचेडे सुसुमाए दारियाए वालग्गाहे जाए यावि होत्था, सुंसुमं दारियं कडीए गिण्हइ, गिण्हित्ता बहूहिं दारएहि य दारियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ ।। ८. तए णं से चिलाए दासचेडे तेसि बहूणं दारयाण य दारियाण य डिभयाण य १. ना० १।१७। २. ओ० सू०१। ३. धणवाले (क, ख)। ४. होत्था सुमालपाणिपाया (ख, ग)। ३४७ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ नायाधम्मकहाओ डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए' अवहरइ', "अप्पेगइयाणं वट्टए अवहरइ, अप्पेगइयाणं प्राडोलियाओ अवहरइ, अपेगझ्याणं तिसए अवहरइ, अप्पेगइयाणं पोत्तुल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं साइोल्लए अवहरइ, अप्पेगझ्याणं प्राभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए पाउराइ अवहराइ निच्छोडेइ निभच्छेइ तज्जे इ तालेइ ।। ६. तए णं ते बहवे दारगाय दारिया य डिभया य डिभिया य कुमारया य कुमारिया य रोयमाणा य कंदमाणा य सायमाणा य तिप्पमाणा य विलवमाणा य साणं साणं अम्मापिऊणं निवेदति ।। चिलायस्स गिहायो निक्कासण-पदं १०. ताणं तेसि बहणं दारयाण य दारियाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाह वहूहिं खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवल भणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभमाणा' य धणस्स सत्यवाहस्स एयमटुं निवेदति ।। ११. ताए णं से धणे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमटुं भुज्जो-भुज्जो निवारेइ, नो चेव ण चिलाए दासचेडे उवरमइ।। १२. तए णं से चिलाए दासचेडे तेसि बहूर्ण दारयाण य दारियाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ' अप्पेगइयाणं वट्टाए अवहरइ, अप्पेगइयाणं आडोलियारो अवहरइ, अप्पेगइयाणं तिदूसए अवहरह, अप्पेगयाणं पोत्तुल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं साडोल्लए अवहरइ, अप्पे गइयाणं ग्राभरणमल्लालंकारं अवहरइ. अप्पेगइए पाउसइ अवहसइ निच्छोडेइ निभच्छेइ तज्जेइ° ताले इ॥ १३. तए णं ते वहवे दारगा य दारिया य डिभया य डिभिया य कुमारया य कमारिया य रोयमाणा य .कंदमाणा य सोबमाणा य तिप्पमाणा य विलवमाणाय साणं-साणं अम्मापिऊण निवेदेति ।। १४. तए णं ते आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता वहूहि खिज्जणाहि य 'रुंटणाहि य १. खल्लए (ग)। ५. उबालभमाणा (क); उवलभमाणा (ख, ग)। २. सं० पा० --एवं वट्टए आडोलियानो तिदूसए ६. सं० पा०- अवहरइ जाव तालेइ। पोत्तुल्लए साडोल्लए। ७. स० पा.---रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण । ३. अप्पोडियाओ (ख) आलोडियाओ (क्व)! ८. सं० पा०—खिज्जणाहि य जाव एयमटू । ४. उवनभणियाहि (ख); उबलभणायाहि (ग)। Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयण (सुसुमा) ३४६ उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभमाणा य धणस्स सत्थवाहस्स ° एयमटुं निवेदेति ।। १५. तए णं से धणे सत्थवाहे वहूणं दारगाणं दारियाणं डिभयाणं डिभियाणं कुमार याणं कुमारियाणं अम्मापिऊण अंलिए एयमढे सोच्चा आसुरुते रुटे कुविए चंडिविका मिसिमिसेमाणे चिलायं दासचेडं उच्चावयाहि ग्राउसमाहि' याउसइ उद्धंसइ निभइ निच्छोडेइ तज्जेइ उच्चावयाहिं तालणाहिं तालेइ सानो गिहाम्रो निच्छुभइ॥ चिलायस्स दुव्वसण-पवत्ति-पदं १६. तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाम्रो निच्छुढे समाणे रायगिहे नयरे सिंधा डग-तिग-च उक्क चच्चर-चउम्मुह-महापह° पहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाघराएसु य पाणघरएसु य सुहंसुहेण परिवट्टई ।। १७. तए णं से चिलाए दासचेडे अणोहट्टिए' अणिवारिए सच्छदमई सइरप्पयारी 'मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी" जयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था ।। चोरपल्ली-पदं १८. तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरस्थिमे दिसीभाए सोहगुहा नाम चोरपल्ली होत्था--विसम-गिरिकडग-कोलब' समिविट्ठा 'वंसोकलकपागार'-परिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अणेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अभितरपाणिया सुदुल्लभजल-पेरता सुवहुस्सवि कवियबलस्स प्रागयस्स दुप्पहंसा यावि होत्था । १६. तत्थ णं सी हगुहाए चोरपल्लीए विजए नामं चोरसेणावई परिवसई--अहम्मिए अहम्मिटे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ । हण-छिद-भिद-वियतए लोहियपाणी चड़े रुद्दे खुद्दे साहस्सिए उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कवड-कडसाइ-रांपप्रोग-बहुले निस्सीले निव्वए निग्गुणे निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे बहूण १. x (ख, ग, घ)। २. सं० पा०--सिंघाडग जाव पहेसु । ३. परिवड्ढइ (घ)। ४. अणोहटुए (स्त्र); अणाहट्टिा (घ); अणोहट्टए ७. वंशीकृतप्राकारा: (वृपा) । ८. ०प्पवेस (ख)। ६. वाचनान्तरे पुनरेवं पठ्यते----जत्थ चउरंग बलनि उत्तावि कुविण-बलाय-महिय-पवरवीरघाइय-विवरिय-चिंधज्भयपडागा कीरति ५. चोज्जप्पसंगी मंसप्पसगी (घ) । ६. कोडब (ग)। १०. सं० पा०-अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ ! Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० नायाधम्मकहाभो दुप्पय-च उप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सरिसिवाणं घायाए वहाए उच्छायणयाए° अहम्मकेऊ समुट्ठिए बहुनगर-निग्गय-जसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सद्दवेही ।। २०. से णं तत्थ सोहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्डं चोरसयाणं आहेबच्चं' •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।। २१. तए णं से विजए 'तक्कर-सेणावई' वहणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेय गाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायागारोण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसिं च बहूणं छिण्ण-भिण्ण-वाहिरायाणं कुडंगे यावि होत्था ॥ २२. तए णं से विजए चोरसेणावई रायगिहस्स दाहिणपुरथिमं जणवयं बाहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगहणेहि य वंदिग्गहणेहि य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य उवीलेमाणे-उवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धंसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ ।। चिलायस्स चोरपल्ली-गमण-पदं २३. तए णं से चिलाए दासचेडए रायगिहे बहूहि अत्थाभिसंकीहि य चोज्जाभि संकीहि य दाराभिसंकोहि य धणिएहि य जूयकरेहि य परब्भवमाणे-परभवमाणे रायगिहाम्रो नगरानो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सीहगुहा चोरपल्ली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विजयं चोरसेणावई उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ २४. तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्ग-प्रसिलदिग्गाहे जाए यावि होत्था। जाहे वि य णं से विजए चोरसेणावई गामघायं वा नगरघायं वा गोगहणं वा बंदिग्गहणं वा पंथकोट्टि वा काउं बच्चइ" ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहुंपि कूवियवलं हय-महियपवर वीरधाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिं° पडिसेहेइ, पडिसेहेत्ता पुणरवि लट्ठ कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लि हव्वमागच्छइ ।। १. सं० पा०.-आहेवच्चं जाव विहरई। २. तक्करे चोरसेणावड (घ)। ३. तक्करसेणावइ (क)। ४. X (ग)। ५. कोट्टणेहि (क)। ६. निद्धाणं (क)। ७. चोरा (घ)। ८. धणएहि (ख)। ६. जुइ ° (ख, ग)। १०. सं० पा०-गामघायं वा जाव पंथकोटिं। ११. बयइ (घ)। १२. सं० पा०-हयमहिय' जाव पडिसेहेइ। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयण (सुसुमा) २५. तए णं से विजए चोरसेणावई चिलायं तक्करं बहूझो चोरविज्जाम्रो य चोरमंते __ य चोरमायामो य चोरनिगडीओ य सिक्खावेइ ।। विजयस्स मच्च-पदं २६. तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था ॥ २७. तए णं ताई पंचचोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया-महया इड्डी-सक्कार समुदएणं नीहरणं करेंति, करेत्ता बहुइं लोइयाई मयकिच्चाई करेंति, करेत्ता' 'कालेणंविगयसोया जाया यावि होत्था ।। चिलायस्स चोरसेणावइत्त-पदं २८. तए णं ताइं पंचचोरसयाई अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं बयासी-एवं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते । अयं च णं चिलाए तक्करे विजएणं चोरसेणावइशा बहूम्रो चोरविज्जाम्रो यो चोरमंते य चोरमायाओ य चोरनिगडीयो य° सिक्खाविए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! चिलायं तक्करं सोहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता चिलायं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणाव इत्ताए अभिसिचंति ॥ २६. तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए-अहम्मिए' 'अहम्मिटे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोइ अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ ॥ ३०. तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरनायगे' "बहणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य बीसंभघायगाण य जूयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसिं च बहूणं छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था ।। ३१. से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्ह चोरसयाणं पाहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।। ३२. तए णं से चिलाए चोरसेणावई' रायगिहस्स नयरस्स दाहिणपुरथिमिल्लं जणवयं 'बहुहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य १. सं० पा०-करेत्ता जाव विमयसोया। ४. सं० पा०-चोरनायगे जाव कुडंगे। २. सं० पा०-चोरविज्जाओ य जाव सिक्खा- ५. सं० पा०–एवं जहा विजो तहेव सव्व विए। जाव रायगिहस्स। ३. सं० पा:-अहम्मिए जाव विहरइ । ६. सं० पा०—जणवयं जाव नित्थाणं । Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ नायाधम्मकहाओ पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य उवीलेमाणे-उवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धंसेमाणे ° नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ ॥ चिलायस्स धणस्स गिहे चोरिय-पदं ३३. तए णं से चिलाए चोरसेणावई अण्णया कयाइ विपुलं असण-पाण-खाइम साइमं उधक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए पामतेइ तनो पच्छा हाए कयवलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहि चोरसएहि सद्धि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं सुरं च' 'मज्ज चं मंसं च सीधुं च° पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ, जिमियमुत्तुत्त रागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! रायगिहे नयरे धणे नामं सत्थवाहे अड्ढे । तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया संसुमा नाम दारिया -- अहीणा जाव' सुरूवा। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! धणस्स सत्यवाहस्स गिह विलपामा। तुभ विपूले धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय संख°-सिल-प्पवाले ममं सुंसुमा दारिया ॥ ३४. तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स [एयमटुं ? ] पडिसुणेति ।। ३५. तए ण ते चिलाए चोरसेणावई तेहि पंचहि चोरसएहिं सद्धि अल्लं' चम्म दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्चावरणह-कालसमसि पंचहि चोरसएहिं सद्धि सण्णद्ध•बद्ध-बम्मिय-कवए उप्पीलिय-सरासणपट्टिए पिणद्ध-गेविजके आविद्ध-विमलवरचिंधपट्टे' गहियाउह-पहरणे माझ्य-गोमुहिएहि फलएहि, निक्किदाहिं असिलट्ठीहि, अंसगएहि तोणेहि, सज्जीवेहि धणूहि, समुक्खित्तेहिं सरेहि, समुल्लालियाहि दाहाहि", प्रोसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहि बज्जमाणेहिं महया-महया उक्किट्ठ-सीहनाय"- वोल-कलकलरवेणं पक्खुभिय-महा समुद्दरवभुयं पिव करेमाणा सीहगुहायो चोरपल्लीग्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता राय गिहस्स अदूरसामते १. सं० पा०-सुरं च जाव पसन्न। ७. पुवावरण्ह (ग, घ)। २. द्रष्टव्यम्-११७१६ सूत्रम् । ५ सं० पा०—गण्णद्ध जाव गहिया० । ३. दारिया होत्था (क, ख, ग, घ)। ६. असीहि (क); असिलट्टेहिं (ख) । ४. ना० १।११७। १०. अंसागराहिं (क); अंसं गाहिं (ग)। ५. सं० पा० कणग जाव सिलवाले । अस्या- ११. दावाहि (क) एतत् प्रहरणं बंगभाषायां 'दाव' ध्ययनस्य ३८ सूत्रे 'कणग जाव सावएज्ज' इति उच्यते । इति पाठोस्ति । अत्रापि तथैव युज्यते, किन्तु १२. छिप्पंतरेहि (क); छिप्पत्तरेहि (ग)। संक्षेपीकरणे संभवतः पदभिन्न ना जाता। १३. सं० पा०-सीहनाय जाव समुद्दरवभूयं । ६. अल्ल (ख, ग, घ)। Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं (सुंसुमा) एगं महं गहणं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता दिवसं खवेमाणा चिटुंति ॥ ३६. तए णं से चिलाए चोरसेणावई श्रद्धरत्त-कालसमयसि 'निसंत-पडिनिसंतसि" पंचहि चोरसहि सद्धि माइय-गोमुहिएहिं फलरहिं जाव' मूइयाहिं ऊरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे नयरे पुरथिमिल्ले दुवारे तेणेब उवागच्छइ, उदगवत्थि परामुसइ अायंते चोक्खे परमसुइभूए तालुग्घाडणि विज्ज आवाहेइ, अावाहेत्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडेता कवाडं विहाडेइ, विहाडेत्ता रायगिहं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता मया-मह्या सद्देणं उग्धोसेमाणेउग्योसेमाणे एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! चिलाए नामं चोरसेणावई पंचहि चोरसहि द्धि सीहगुहाओ चोरपल्लीग्रो इहं हबमागए धणस्स सत्थवाहस्स गिहं धाउकामे । तं जे गं नवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से णं निगच्छउ त्ति कटु जेणेव धणस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणस्स गिहं विहाडेइ ।। ३७. ता णं से धणे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहिं चोरसएहिं सद्धि गिहं घाइज्ज माणं पासइ, पासित्ता भीए तत्ये तसिए उविरगे संजाय भए पंचहि पुत्तेहिं सद्धि एगतं अवक्कमइ ।। ३८. तए णं से चिलाए चोरसेणावई धणस्स सत्थवाहस्स गिहं पाएइ, घाएत्ता सुबह धण-कणग'- रयण-मणि-मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्ज सुसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहारो पडिनिक्खमई, पडिनिक्ख मित्ता जेणेव सोहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। नगरगुत्तिएहि चोरनिग्गह-पदं ३६. तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं बयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलरए चारसेणावई' सीहगुहाम्रो चोरपल्लीप्रो इहं हव्वमागम्म पंचहिं चोरसहि सद्धि मम गिहं घाएत्ता सुबहुं धण-कणगं' सुसुमं च दारियं गहाय 'रायगिहाम्रो पडिनिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए । तं इच्छामो १. निसण्णपडिनिसणंसि (क) २. ना० १११८३५ ॥ ३. सं०या०-कणग जाव सावएज्जं । ४. असो पाठः ३८ सूत्रस्य संक्षेपोस्ति । ५. चोरसेणावई ५ (ख, ग)। ६. असौ पाठ: ३८ सूत्रस्य संक्षेपोस्ति । ७. सं० पा०-गहाय जाब पडिगए। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ नायाधम्मकहाओ णं देवाणुप्पिया ! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए । तुभं णं देवाणुप्पिया! से विपले धण-कणगे, मम संसमा दारिया ॥ ४०. तए ण ते नगरगुत्तिया धणस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सण्णद्ध-बद्ध वम्मिय-कवया जाव' गहियाउहपहरणा मह्या-मया उक्किट्ठ- सीहनाय-बोलकलकलरवेण पक्खुभिय-महा ° समुद्द-रवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाम्रो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गा यावि होत्था ।। ४१. तए णं ते नगरगुत्तिया चिलायं चोरसेणावइं हय-महिय'- पवरवीर-घाइय विवडियर्याचध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहेति ।। ४२. तए ण ते पंच चोरसया नगरगुत्तिएहि हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडिय चिध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसादिसिं° पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धण-कणगं विच्छड्डुमाणा य विप्पकिरमाणा य सव्वो समता विप्पलाइत्था । ४३. तए णं ते नगरगुत्तिया तं विपुलं धण-कणग गेहति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छति ॥ चिलायस्स चोरपल्लीतो पलायण-पदं ४४. तए णं से चिलाए तं चोरसेन्नं तेहि नगरगुत्तिएहि हय-महिय-पवर वीर घाइय-विवडियर्याचध-धय-पडाग किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहियं [पासित्ता?] • भीए तत्थे सुसुमं दारियं गहाय एग महं अगामिय' दोहमद्धं अडवि अणुप्पवितु ।। ४५. तए णं से धणे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमुहि अवहीरमाणि पासित्ता णं पंचहि पुत्तेहिं सद्धि अप्पछडे सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए चिलायस्स पयमांगविहिं 'अणुगच्छमाणे अभिगज्जंते" हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जे माणे अभितासेमाणे पिट्ठो अणुगच्छइ ।। ४६. तए णं से चिलाए तं धणं सत्थवाहं पंचहि पुत्तेहिं सद्धि अप्पछद्रं सण्णद्ध-बद्ध वम्मिय-कवयं समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे जाहे नो संचाएइ सुसुमं दारियं निव्वाहित्तए ताहे संते १. ना० १११८।३५ । २. सं० पा०-उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं । ३. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहेंति। ४. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहिया। ५. सं० पा०-पवर जाव भीए । ६. द्रष्टव्यम-अस्याध्ययनस्य ३७ सूत्रम । ७. आगामियं (ख, ग, घ)। ८. अडवीमुहं (घ) । ६. द्रष्टव्यम्-अस्याध्ययनस्य ३५ सूत्रम् । १०. अभिगच्छंते अणुगिज्जमाणे (ख, ग)। ११. द्रष्टव्यम्-अस्याध्ययनस्य ३५ सूत्रम् । Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झणं (सुसुमा) ३५५ तंते परितंते' नीलुप्पल' - गवलगुलिय-श्रयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं ग्रसिं परामुसइ, परामुसित्ता सुसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिंदइ, छिदित्ता तं गहाय तं मयं विणुप्पविट्ठे ॥ ४७. तए गं से चिलाए तीसे प्रगामियाए पडवीए तण्हाए [ छुहाए ? ] अभिभूए समाणे पम्हदु - दिसाभाए सीह्गुहं चोरपल्लि असंपत्ते अंतरा चेव कालगए ॥ निगमण-पदं ० ४८. एवामेव समणाउसो' ! जो ग्रम्ं निग्गंथो वा निग्गंथी वा प्रायरिय उवज्झाया ग्रंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो प्रणमारियं पव्वइए समाणे इमस्स ओरालि यसरी रस्स वंतासवस्स पित्तासवस खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स " दुरुय उस्सास - निस्सासस्स दुरुय मुत्त-पुरीस पूय बहुपडिपुण्णस्स उच्चार पासवण खेल-सिंघाणग-वंत- पित्त-सुक्क सोणियसंभवस्स अधुवस्स प्रणितियस्स असासयस्स सडण पडण- विद्वंसगधम्मस्स पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जस्स वष्णहेउ वा रूयहेउं वा बलहेउं वा विसयहेउं वा श्राहारं ग्रहारे, सेणं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणोणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरंत संसारकंतारं अणुपरिस्सिइ - जहा व से चिलाए तक्करे || o tree सुसुमाकए कंदण-पदं ४६. तए णं मे धणे सत्थवाहे पंचहि पुनेहि [सद्धि ? ] अप्पट्टे चिलायं तीसे श्रगामिया अडवीए सव्वप्रो समंता परिधाडेमाणे परिधाडेमाणे संते तंते परितते नो संचाएइ चिलायं चोरसेणावई साहित्थि गिव्हित्तए । से णं तो पडिनियत्तइ, पडिनियत्तित्ता जेणेव सासुसुमा चिलाएणं जीवियाओ ववरोविया' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुसुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ ववरोवियं पास, पासित्ता परसुनियत्ते व चंपगपायवे निव्वत्तमहे व्व satara -संधिबंधणे धरणितलसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिए || ५०. तए गं से धणे सत्थवाहे [पंचहि पुतेहि सद्धि ? | अप्पट्टे आसत्थे कूवमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया - महया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुन्ने सुचिरकालं वाष्पमोक्ख करेई || 0 १. परिसते ( ख, ग ) | । २. सं० पा० - नीलुप्पल ३. आगामियं ( ख, ग, घ ) । ४. सं० पा०- समणाउसो जाव पव्वइए । ५. सं० पा०--- सोणियासवस्स जाव विद्वेषण धम्मस्स । 0 ६. सं० पा०-- वण्णहेउं वा जाव आहारे । ७. ना० १।३।२४ ८. ववरोविएल्लिया ( ग, घ ) | 1 ६. सं० पा० - चंपगपायवे ० १०. बाहमोक्ख (क, ग, घ ) । Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहानो धणेणं अडवि-लंघणटुं सुया-मंससोणियाहार-पदं ५१. तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहि पुत्तेहि [सद्धि ? ] अप्पछट्टे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समता परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य परभाहते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सवयो समता उदगस्स मग्गण-गवेसणं करेमाणे' संते तंते परितो निविणे तीसे गामियाए अडवीए उदग प्रणासाएमाणे जेणेव सुसुमा जीवियाओ ववरोबिल्लिया' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जेटुं पुत्तं धणं' सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! संसुमाए दारियाए अढाए चिलायं तक्कर सव्वओ समंता परिधाडमाणा तण्हाए छुहाए य अभिभूया समाणा इमे गे अगामियाए अडवीए उदगस्स मम्गणगवेसणं करेमाणा नो चैव ण उदग ग्रासादेमो। तए ण उदग प्रणासा. एमाणा नो संचाएमो रायगिहं संपावित्तए । तण्णं तुम्भे ममं देवाणुप्पिया ! जीवियाग्रो ववरोवेह, मम मंसं च सोणियं च ग्राहारेह, तेणं ग्राहारेणं अवथद्धा" समाणा तो पच्छा इमं अगामियं अडवि नित्थरिहिह, रायगिह च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं' अभिसमागच्छिहिह", अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णरस याभागी भविस्सह ।। ५२. तए ण से जटे पुते धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे धण सत्थवाहं एवं वयासी-तुभे णं तानो ! अम्हं पिया गुरुजणया देवयभूया ठवका पइवका संरक्खगा संगोवगा। तं कहणणं अम्हे तायो ! तुम्भे जीवियाग्रो ववरोवेमो, तुभं णं मसं च सोणियं च पाहारेमो ? तं तुब्भे णं तायो ! 'मयं जीवियानो ववरोवेह, मंसं च सोणियं च पाहारेह, अगामियं अडवि नित्थरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य ग्राभागी भविस्सह।। १. परिघाधेपणे (घ)। दोषान् 'धणे' इति जातमिति संभाव्यते। २. परिभमते (क); परभने (ख, घ); परभए ७. अवबद्धा (ख)। (घ) द्राष्टकम् -१५११८४। . नित्थरिहह (क); नितारेहिह (ग)। ३ करे (क, ख, ग, घ) ! ६. संपावेहह (क) ! ४. x (क, ल, ग); अडवीए उदगस्स मग्गण- १०. सं० पा० --नाइ । गराणं करेमाणे नो चेव ण उदग आसाएइ ११. अभिसमागच्छिहह (क, ख, घ)। तए णं (घ)। १२. चिन्हाङ्कित पाठः ५१ सूत्रात् किञ्चित् ५. ववराषिया (घ) सक्षिप्तोऽस्ति। ६. धणे (क, ख, ग, घ); यद्यपि सर्वासु प्रतिषु १३. नित्थरेह (क); नित्थरह (ख, ग)। 'धणे' इति पाठः उपलभ्यते, पर ज्येष्ठपुत्रस्य सं० पा०-तं चैव सव्वं भणइ जाव अस्थस्स। विशेषणत्वेन 'धणं' इत्येव उपयुज्यते । लिपि Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ अट्ठारसमं अज्झयणं (सुसुमा) ५३. तए णं धणं सत्थवाहं दोच्ने पुत्ते एवं क्यासी-~मा गं तारो अम्हे जेटुं भायरं गुरुदेवयं जीवियाग्रो ववरोवेमो, तस्स ण मंसं च सोणियं च आहारमो। तं तुब्भे णं तायो ! ममं जीवियाग्रो ववरोबेह', 'मसं च सोणियं च पाहारेह, अगामियं अडवि नित्थरिहिह, रायगिह च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुष्णस्स य' आभागी भविस्सह । एवं जाव पचमे पुत्ते ।। ५४. तए ण से धणे सत्थवाहे पंचपुत्ताणं हिय इच्छियं जाणित्ता ते पंचपुत्ते एवं वयासी—मा णं अम्हे पुत्ता ! एगमवि जीवियाग्रो ववरोवेमो । एस ण सुमुमाए दारियाए मरीरे निप्पाण' निच्चे? ' जीवविप्पजढे । त सेयं खलु पुत्ता ! अम्हं संसुमाए दारियाए मंसं च सोणिय च पाहारेत्तए । तए ण अम्हे तेणं पाहारेण अवथद्धा समाणा रायगिहं संपाउणिस्सामो।। ५५. तए णं ते पंचपुत्ता धणेणं सत्यवाहेण एवं बुत्ता समाणा एयमटुं पडिसुणति ।। ५६. तए णं धणे सत्यवाहे पंचहि पुत्तहिं सद्धि अरणि करेइ, करेत्ता सरग करेइ, करेत्ता सरएणं अरणि महेइ, महत्ता अग्गि पाडेइ, पाडेत्ता अग्गि संधुक्कइ' संघककेत्ता दास्याइं पक्खिवइ, पक्खि वित्ता अग्गि पज्जालेइ, ससुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च पाहारेइ । तेणं ग्राहारेण अवथद्धा समाणा रायगिहं नयर संपत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण' अभिसमण्णागया, तस्स य विउलस्स धण-कणग-रयण - मणि-मोत्तिय-संख-सिल.प्पवाल-रत्तरयण-संत सार-सावएज्जस्स ° ग्राभागी जाया। ५७. तए ण से धणे सत्थवाहे सुसुमाए दारियाए वहूई लोइयाई •मयकिच्चाई करेइ, करेता कालेणं' विगयसाए जाए यावि होत्था ।। ५८. तेणं कालणं तेणं समएण समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे गुणसिलए चइए समोसढे ॥ ५६. तए ण धणे सत्थवाहे सपुत्ते धम्म सोच्चा पव्वइए। एक्कारसंगवी। मासियाए संलहणाए सोहम्मे कप्पे उववण्णे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निगमण-पदं ६०. जहा वि य णं जंबू ! धणेणं सत्थवाहेणं नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो ----- १. सं. पा.-बवरोवेह जाव आभागी। २. सं० पा-निपाण जाव जीवविप्पजढे । ३. संधुक्खेइ २ (क)। ४. सं० पा०-नाइ । ५. सं० पा०-~~-रवण जाव आभागी। ६. जाया यावि होत्था (ख, ग)। ७. सं० पा०-लोइयाइं जाव विगयसोए । Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ नायाधम्मकहाऔ बलहेउं वा नो विसयहेउं वा संसुमाए दारियाए मंससोणिए आहारिए, नन्नत्थ' एगाए रायगिह-संपावणट्ठयाए । एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा 'आयरियउवज्झायाणं अंतिा मंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पध्वइए समाणे इमस्स पोरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स खेलासवस्स ? ] सुक्कासवस्स सोणियासवस्स' 'दुरुय-उस्सास-निस्सासस्स दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूयवहुपडिपुष्णस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणिय संभवस्स अधवस्स अणितियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धंसणधम्मस्स पच्छा पुरंच णं अवस्सविप्पजहियव्वस्स नो वण्णहेउं वा नो रूवहेडं वा नो वलहे उं वा नो विमयहेउं वा पाहारं पाहारेइ, नन्नत्थ एगाए सिद्धिगमण-संपावणट्ठयाए, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ - जहा व से सपुत्ते धणे सत्थवाहे ।। ६२. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायझयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते । ... -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जह सो चिलाइपुत्तो सुसुम गिद्धो अकज्ज-पडिबद्धो। धण-पारद्धो पत्तो, महावि वसण-सयकलियं ॥१॥ तह जीवो विसय-सुहे, लुद्धो काऊण पावकिरियायो । कम्मवसेणं पावइ, भवाडवीए महादुक्खं ॥२॥ धणसेट्ठी विव गुरुणो, पुत्ता इव साहवो भवो अडवी। सूयमंसमिवाहारो, रायगिह इह सिवं नेयं ।।३।। जह अडवि-नियर-नित्थरण-पावणत्थं तएहि सयमसं। भुत्तं तहेह साहू, गुरूण प्राणाइ आहारं ।।४।। भव-लंधण-सिव-साहणहेउं भुंजंति ण गेहीए। वण्ण-बल-रूव-हेउं, च भावियप्पा महासत्ता ॥५॥ १. अण्णत्थ (ख, ग)। २. रायगिहं (क्व)। ३. सं० पा०-निगंथी वा। ४. सं० पा०-सोणियासवस्स जाव अवस्स । ५. ना० शरा७६ । ६. ना० ॥१७॥ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगुणवीसइमं भयणं पुंडरीए उक्खेव पदं १. जइ गं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्भमट्ठे पण्णत्ते, एगूणवीसइमस्स णं भंते ! नायज्भयणस्स के प्र यणस्स पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे, सीयाए महानईए उत्तरिल्ले कूले, नीलवंतस्स [वासह पव्वयस्स ? ] दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवणसंडस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावई नाम विजए पण्णत्ते || ३. तत्थ णं पुंडरीगिणी नाम रायहाणी पण्णत्ता -- नवजोयणवित्थिण्णा त्रालस जोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा ॥ ४. तीसे णं पुंडरीगिणीए नयरीए उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए नलिणिवणे नामं उज्जाणे ॥ ५. तत्थ णं पुंडरीगिणीए रायहाणीए महापउने नाम राया होत्था || ६. तस्स णं पउमावई नामं देवी होत्था || ७. तस्स णं महाप उमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्था, तं जहा - पुंडरीए य कंडरीए य- सुकुमालपाणिपाया । पुंडरीए जुवराया | कंडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं । महापउमे राया निग्गए । धम्मं सोच्चा १. ना० १।११७ । २. पुंडरिगिणी (क, ख, ग ) ३. ना० १।५।२ । ४. पू० ओ० सू० १४३ ॥ ३५६ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० नायाधम्मकहाओ पुंडरीयं रज्जे ठवेत्ता पव्वइए। पुंडरीए राया जाए, कंडरीए जुवराया। महा पउमे अणगारे चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ ।। ६. तए णं थेरा बहिया जणवय विहारं विहरति ।। १०. तए णं से महापउमे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जाव' सिद्धे ।। ११. तए णं थेरा अण्णया कयाइ पुणरवि पुंडरीगिणीए रायहाणीए नलिण [णि ? ] वणे उज्जाणे समोसढा । पंडरीए राया निग्गए। कंडरीए महाजणसह सोच्चा जहा महावलो जाव पज्जुवासइ । थेरा धम्म परिकहेंति । पुडरीए समणोबासए जाए जाव' पडिगए। १२. तए णं कंडरीए थेराण प्रतिए धम्म सोच्चा निसम्म हात उठाए उदेइ, उदेत्ता थेरे तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथ पावयणं जाव' ० से जहेयं तुब्भे वयह । ज नवर--पुंडरीयं रायं पापुच्छामि'। 'तम्रो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! १३. तए णं से कडरोए थेरे वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता थेराण अंतियानो पडिनिक्खमइ, तमेव चाउग्धंट प्रासरहं दुरुहइ •मयाभड-चडगर-पहकरेण पुंडरीगिणीए नयरीए मज्झमझेणं जेणामेव साए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटायो ग्रासरहाओ° पच्चोरुहइ, पच्चोहित्ता जेणेव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिमगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते, से" •वि य में धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाण थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं° पव्वइत्तए । १४. तए णं से पुंडरीए राया कंडरीयं एवं वयासी-~मा णं तुम भाउया ! इयाणि १. ना० ११५१८४ ७. स० पा०-आपुच्छामि तए णं जाव पव्व२. पुंडरगिणीए (ग)। ___ यामि । ३. भग०११।१६४-१६६ 1 ८. कंडरीए जाव क, ख, ग, घ । ४. उदा० ११५२ । ६. सं० पा०-दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ । ५. सं० पा०-कंडरीए उडाए उद्वेइ उद्वेत्ता १०. सं० पा०-करयल जाव एव । जाव से जहेयं । ११. सं० पा०-से धम्मे अभिरुइए। तए णं ६. ना. शश१०१। देवा जाव पव्वइत्तए। Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) ३६१ मंडे भवित्ता णं अगारानो अणगारियं पव्वयाहि । 'अहं गं" तुमं महाराया भिसेएण' अभिसिंचामि ।। १५. तए णं से कंडरोए पुंडरीयस्स रण्णो एयम8 नो पाढाइ •नो परियाणाइ' ० तुसिणीए संचिट्ठइ॥ तए णं से पुंडरीए राया कंडरीयं दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासो—'मा णं तुम भाउया ! इयाणि मुंडे भवित्ता णं अगाराम्रो अणगारियं पव्वयाहि । अहं णं तमं महारायाभिसेएण अभिसिंचामि ।। १७. तए णं से कंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमटुं नो पाढाइ नो परियाणाइ° तुसिणीए संचिट्ठइ ।। १८. तए ण पुंडरीए कंडरीयं कुमारं जाहे नो संचाएइ वहूहिं आघवणाहि य पण्णव णाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विष्णवित्तए वा ताहे अकामए चेव एयमटुं अणुमन्नित्था जाव" निक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचई जाव' •थेराणं सोसभिक्खं दलयइ । पव्वइए। अणगारे जाए। एक्कारसंगवी॥ १६. तर ण थेरा भगवतो अण्णया कयाइ पुंडरीगिणीनो नयरीनो नलिणिवणामो उज्जाणाप्रो पडिनिवखमंति, वहिया जणवर्यावहारं विहरंति ।। कंडरीयस्स वेयणा-पदं २०. तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहि अतेहि य पंतेहि य "तुच्छेहि य लु हेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कतेहि य पमामाइक्कतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइसुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वैयणा पाउन्भूया -- उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरह्यिासा। पित्तज्जर-परिगयसरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ ।। २१. तए ण थेरा अण्णया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नलिणीवणे समोसढा । पुंडरीए निग्गए। धम्म सुणेइ ।। कंडरीयस्स तिगिच्छा-पदं २२. तए ण पुंडरीए राया धम्म सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ, १. सं० पा०-मडे जाव पब्वयाहि । २. अहाणं (ग)। ३. महयामहया रायाभिसेएण (ख, ग)। ४. स. पा.-आढाइ जाव तुसिणीए । ५. द्रष्टव्यम्---१।११३६ सूत्रम् । ६. सं० पा०--क्यासी जाव तुसिणीए । ७. ना० ११५२८ । ८. ना० १५॥३०॥ है. सं० पा०-जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कतीए। १०. शेलकाध्ययने 'कंडु-दाह-पितज्जर-परिगय सरीरे' इति पाठो लभ्यते । Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाओ उवागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं स रोग पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- अहण्णं भंते ! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्तेहिं ओसह-भेसज्ज- भत्त-पाणेहि तेगिच्छं आउंटामि । तं तुम्भे णं भंते ! मम जाणसालास समोसरह ।। २३. तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स [एयमटुं ? ] पडिसुणेति', 'पडिसुणेत्ता जेणेव पुंडरीयस्स रण्णो जाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं° उवसंपज्जित्ता णं विहरंति ॥ तए णं पंडरीए राया ''तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भेणं देवाणुप्पिया ! कंडरीयस्स फासु-एसणिज्जेणं प्रोसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेणं तेगिच्छं आउद्देह ।। २५. तए णं ते तेगिच्छिया पुंडरीएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा कंडरीयस्स अहापवत्तेहि प्रोसह-भेसज्ज-भत्त-पाहि तेगिच्छं प्राउट्टति, मज्जपाणगं च से उदिसंति ॥ २६. तए णं तस्स कंडरीयस्स अहापवत्तेहि प्रोसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेहिं मज्जपाणएण य से रोगायके उवसंते यावि होत्था हटे बलियसरीरे जाए ववगयरोगायंके । कंडरीयस्स पमत्तविहार-पदं २७. तए णं थेरा भगवंतो 'पुंडरीयं रायं आपुच्छंति, आपुच्छिता बहिया जणवय विहारं विहरति । २८. तए णं से कंडरीए तानो रोयायंकाप्रो विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असण पाण-खाइम-साइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे नो संचाएइ पुंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया अब्भुज्जएणं' 'जणवयविहारेणं • विहरित्तए तत्थेव प्रोसन्ने जाए॥ पुंडरीएण पडिबोह-पदं २६. तए णं से पुंडरीए इमोसे कहाए लद्धटे समाणे व्हाए अंते उर-परियाल - संपरिवुडे जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवाच्छइ, उवागच्छित्ता १. अहापत्तेहिं (ख); अहावर्तहिं (ग); अहा- ५. ११५११६ सूत्रे 'गल्लसरीरे' इति पाठोस्ति । पवित्तेहिं (घ)। ६. पोंडरीयं पुच्छति २ (ख, ग)। २. सं० पा०-भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छं। ७. सं० पा०-अभूज्जएणं जाव विह३. सं० पाo.-पडिसणेति जाव उवसंपज्जित्ता। रित्तए। ४. स० पा०-जहा मंडए सेलगस्स जाव ८. परियाल सद्धि (क, घ)। बलियसरीरे जाए। Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) कंडरीयं तिवखुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी -धन्नेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे। सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्म-जीवियफले जे णं तुम रज्जं च 'रटुं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च° अंतेउरं च विछड्डेत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडे वित्ता अगारायो अणगारिय° पव्वइए, अहण्णं अधन्ने अकयत्थे अकयपूणे अकयलक्खणे रज्जे य' 'रटे य कोसे य कोदागारे य बले य वाहणे य पुरे य° अंतेउरे य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मच्छिए गिद्धे गढिए ° अज्झोववण्णे नो संचाएमि जाव पव्वइत्तए । तं धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! 'कयत्थे कयपुणे कयलक्खणे ' । सुलद्धे णं देवाणुपिया! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले ।। ३०. तए णं से कंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमटुं नो पाढाई 'नो परियाणाइ तुसि गीए ° संचिट्ठइ ।। ३१. तए णं से कंडराए अणगारे पोंडरीएणं दोच्चपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे अकामए अवसवसे लज्जाए गारवण य पुंडरीयं प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता थेरेहि सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। कंडरीयस्स पव्वज्जा-परिच्चाय-पदं ३२. तए णं से कंडरीए थेरेहि सद्धि कंचि कालं उग्गंउग्गेणं विहरित्ता तो पच्छा समणत्तण-परितंते समणत्तण-निविणे समणत्तण-निभच्छिए समणगुण-मुक्कजोगी थेराणं अंतियानो सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव पुंडरीगिणी नयरी जेणेव पुडरीयस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवणियाए असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि निसीयइ, नीसीइत्ता प्रायमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए° झियायमाणे सचिट्टइ।। ३३. तए णं तस्स पोंडरीयस्स अम्मधाई जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं अणगारं असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि प्रोयमणसंकप्पं जाव'१ भियायमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव पुंडरोए राया १. सं० पा. - रज्जं च जाव अंते उरं । २. सं० पा० --विगोवइत्ता जाव पव्वइए। ३. सं० पा० ----रज्जे य जाव अंतेउरे । ४. सं० पा० -मुच्छिए जाव अज्झोववण्णे। ५. राय० सू० ६६५ । ६. सं० पा० - देवाणुप्पिया जाव सुलद्धे । ७. सं० पा०- आढाइ जाव संचिदइ । ८. द्रष्टव्यम्-१।१।३६ सूत्रम् । ६. अवसव्वसे (ग)। १०. सं० पा०-ओहह्यमणसंकप्पे जाव झियाय माणे । ११. ना० १११९३२ । Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीय रायं एवं वयासी---एवं खलु देवाणु प्पिया! तव पियभाउए कंडरोए अणगारे असोगवणियाए असोगवर पायवस्स अहे पढविसिलापट्टे पोयमणसंकप्पे जाव झियाय ।। ३४. तए णं से पुंडरीए अम्मधाईए एयमढे सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे उहाग उद्वेद, उद्वेत्ता अंतेउर-परियालसंपरिव डे जेणेव असोगवणिया' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरोयं अणगारं तिक्खुत्तो' 'प्रायाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-धन्नेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! 'कयत्ये कयपुण्णे कयलक्खणे सुलद्धे ण देवाणुप्पिया! तव माणुस्सए जम्म-जोवियफले जाव' अगाराप्रो अणगारिय' पब्वइए, अहं णं अधन्ने अकयत्य अकयपुण्णे अकयलक्खणे जाव' नो संचाएमि पव्वइत्तए । तं धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया! जाव' सुलद्धे ण देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्म-जीवियफले ।। ३५. तए णं कंडरीए पुडरीएणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्टइ। दोच्चंपि तच्चपि'पुडरीएणं एवं कुत्ते समाण तुसिणीए ° सचिट्ठइ।। ३६. तए णं पुंडरीए कंडरीयं एवं वयासी--अट्ठो भते ! भोगेहिं ? हंता! ग्रहो।। ३७. तए णं से पुंडरीए राया कोडुवियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया! कंडरीयस्स महत्थं 'महन्धं महरिहं विउलं ' रायाभिसेयं उवट्ठवेह जाव" रायाभिसेएणं अभिसिंचति ॥ पुडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ३८. तए णं से पुंडरीए सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, सयमेव चाउज्जामं धम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता कंडरोयस्स संतियं आयारभंडगं गण्हइ, गण्हित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ---कप्पइ मे थेरे वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्म उवसंपज्जित्ता णं तपो पच्छा आहारं पाहारित्तए त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिरिहत्ता णं पुंडरीगिणोए" पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भग बंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १. पिउभाउए (ख, म); भाउए (घ) । ८. ना. ११६१२६ । २. सं० पा.-असोगणिया जाव कंडरीयं . सं० पा०-तच्च पिजाव संचिद्रइ । ३. सं० पा० -तिक्खुत्तो जाब एवं। १०. हंते (ग)। ४. सं. पा.--देवाणप्पिया जाव पव्वतिए। ११. सं० पा०-महत्थं जाव रायाभिसेयं । ५,६. ना० १३१६२६॥ १२. ना० १११।११७,११८ । ७. द्रष्टव्यम्-२६ सूत्रम् । १३. पोंडरिगिणीए (क, ख)। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) कंडरीयस्स मच्च-पदं ३६. तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तं पणीयं पाणभोयणं पाहारियरस समाणस्स अइजागरएण य अइभोय'-प्पसंगेण य से ग्राहारे नो सम्मं परिणमइ ।। ४०. तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तसि पाहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्व रत्ता वरत्तकालसमयंसि सरीरगसि वेयणा पाउन्भूया --उज्जला विउला 'कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा ° दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ ।। ४१. तए णं से कडरीए राया रज्जे य र? य अंते उरे य' माणुस्सएस य कामभोगेस मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे अट्टदुहवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयसि नेर इयत्ताए उववण्णे ॥ निगमण-पदं ४२. एवामेव समणाउसो' ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं • पव्वइए समाणे पुणरवि माणस्सए कामभोए आसाएइ पत्थयइ पोहेइ अभिलसइ, से णं इह भवे चेव वहणं समणाण बहण समणीणं बहूणं सावयाणं वहूर्ण सावियाण य होलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं पागच्छइ बहणि दंडणाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य तालणाणि य जाव' चाउरंतं संसार कतारं भुज्जो-भुज्जो ° अणुपरिट्टिस्सइ - जहा व से कंडरीए राया ।। पुंडरीयस्स पाराहणा-पदं ४३. तए णं से पंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चंपि चाउज्जामं धम्म पडिवज्जइ, छट्ठवखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झाय करेइ, बीयाए पोरिसीए झाण झियाइ, तइयाए पोरिसोए जाव उच्च-नीय-मज्झिमाई कलाइं घरसमूदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणे सीयलुक्ख पाणभोयणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता प्रहापज्जत्तमित्ति कटु पडिनियत्तेइ, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पडिदसेइ, पडिदसेत्ता थेरेहि भगवतेहि अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्ध अगढिए अणज्झोववण्णे १. भोय (ख, ग) ५. सं. पा.-- समणाउसो जाव पव्वइए। २. परिणए (ख, ग, घ)। ६. सं. पा.--प्रासाएइ जाव प्रणपरियट्टिस्सइ। ३. स० पा०—विउला पगाढा जाव दुरहियासा। ७. ना०-१।३।२४ । ४. स० पा० - अंतेउरे य जाव अज्झोववण्णे । ८. ना० १११६.१३ । Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ नायाधम्मकहाम्रो बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणण' तं फासु-एसणिज्ज असण-पाण-खाइम-साइमं सरीरकोटुगंसि पक्खिवइ ।। ४४. तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स तं कालाइक्कंतं अरसं विरसं सीयलुक्खं पाणभोयण पाहारियस्स समाणस्स पूव्वरत्तावरत्तकालसमयास धम्मजागारय जागरमाणस्स से आहारे नो सम्मं परिणमइ ।। ४५. तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया उज्जला' •विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए विहरइ।। ४६. तए णं से पुंडरीए अणगारे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी - नमोत्यु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव' सिद्धिगइणामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं । पुदिव पि य णं मए थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जाव बहिद्धादाणे पच्चक्खाए', 'इयाणि पि णं अहं तेसिं चेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव बहिद्धादाणं पच्चक्खामि । सव्वं असण-पाण-खाइम-साइम पच्चक्खामि च उविहं पि पाहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जंपि य इम सरीर इदकतं त पि य ण चरिमोह उस्सास-नीसासेहि वोसिरामि त्ति कटट० आलोइय-पडिक्कते कालमासे काल किच्चा सव्वदसिद्ध उबवणे । तो अणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे सिज्झि हइ' 'बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ ° सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निगमण-पदं ४७. एवामेव समणाउसो ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथो वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं° पव्वइए समाणे माणुस्सएहि १. अत्तणेणं (ख)। अस्य विसंबादी वर्तते । मेघकूमाराधिकारात् २. सं० पा० --उज्जला जाव दुरह्यिासा। परितोसौ पाठ: तेनात्रापि विसंवादो जातः । ३. सं० पा.-करयल जाव एवं । द्रष्टव्यम्-- १३५१५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. ओ० सू० २१ । ७. सं० पा०-पच्चक्खाए जाव आलोइय० । ५. ना० १:५।५६ । चिह्नांस्तिः पाठः १।१।२०६ सूत्रेण पूरितः । ६. मिच्छादसणसल्ले (क, ख, ग, घ) अस्या- ८. पू०-- ना० १.११२०६ । ध्ययनस्य ३८,४३ सूत्रे 'चाउज्जामं धम्म ६. सं० पा० -सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण । पडिवजनई' इति पाठोस्ति । उपलब्धपाठश्च १०. सं० पा०--समणाउसो जाव पब्बडा। Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) कामभोगेहि नो सज्जइ नो रज्जइ' 'नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोवज्झइ नो विप्पडिघायमावज्जई, से णं इहभवे चेव बहूर्ण समणाणं बहूणं समणीणं वहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे [नमंसणिज्जे ?] पूर्याणज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं [विणएणं ? ] पज्जुवासणिज्जे' भवइ, परलोए वि य णं नो आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य तालणाणि य जाव चाउरंत संसारकंतारं वीईवइस्सइ-जहा व से पुंडरीए अणगारे । निक्खेव-पदं ४८. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं जाब सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ।। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा वाससहस्सपि जइ, काऊणं संजमं सुविउलंपि । मंते किलिदभावो, न विसज्ड कंडरीउ व्व ॥१।। अप्पेण वि कालेणं, केइ जहा गहिय-सील-सामण्णा। साहंति नियय-कज्ज, पुंडरीय-महारिसि व्व जहा ।।२।। ४६. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं छठुस्स अंगस्स पढमस्स सुयखंधस्स अयमढे पण्णत्ते । –त्ति बेमि। परिसेसो एयस्स" सुयखंधस्स एगूणवीसं अज्झयणाणि एक्कासरगाणि एगुणवीसाए दिवसेसु समप्पंति । १. सं० पा०-रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय० । ४. ना० ११३।२४ । २. विणिग्याय °. (क)। ५. ना० १.११७। ३. 'पज्जुवासणिज्जे' इति पदानन्तरं सर्वासु ६. ना० ११.७ । प्रतिषु 'त्ति कटु' इति पाठोस्ति, किन्तु ७. तस्स णं (ख, ग)। [११२।७३] सूत्रानुसारं अत्र ‘भव इ' इति ८. नायज्झयणाणि (क)। पाठो युज्यते। ६. एक्कारमाणि (ख), एक्करसगाजि (ग)। Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ सुयक्खंधो पढमो वग्गो पढमं अज्झयणं काली उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था--वण्णगो।। २. तस्स णं रायगिहस्स नय रस्स वहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ' णं गुण सिलए नामं चेइए होत्था–वण्णसो'। ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नाम थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोइसपुव्वी च उनाणोवगया पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिवडा पुव्वाणवि चरमाणा गामाणगामं दुइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए' तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति । परिसा निग्गया ! धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगा रस्स [जे? ? ] अंतेवासी अज्जजंबू नाम अणगारे जाव' 'प्रज्जसुहमस्स थेरस्स नच्चासण्णे नाइदूरे १. ओ० सू०१। २. तत्थ (ख, ग)। ३. ओ० सू० २-१३ ॥ ४. ना० १२११४। ५. सं० पा०-चेइए जाव संजमेण । ६. सं० पा०—अणगारे जाव पज्जुवासमाणे । ७. ना० १११६६,७ । ३६८ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढमं अज्झयणं (काली) ५. एवं खलु जंबू ! समणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकहाणं दस बग्गा पण्णत्ता तं जहा - १. चमरस्स ग्रग्गमहिसीणं पढमे वग्गे । २. वलिस्स वइरोयणिदस्स' वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीए वग्गे । ३. प्रसुरिदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं 'इंदाणं श्रग्गमहिसीणं तईए वग्गे । ४. उत्तरिल्लाणं असुरिदवज्जियाणं भवणवासि' - इंदाणं प्रग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे | ७. ३६६ सुस्सुसमाणे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी - जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेर्ण छट्टुस्स अंगस्स पढभस्स सुयक्खंधस्स नायाणं प्रयमट्ठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! सुयक्खंघस्स धम्मकहाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जावर संपत्ते के श्रट्टे पण्णत्ते ? ८. १०. ईसाणस्स य अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे । ६. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं धम्मकाणं : देस - वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावणं जाव' संपत्ते के ग्रट्टे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपतेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा -- काली, राई, स्यणी, विज्जू", मेहा ॥ जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेंणं जोव" संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अभयणा पण्णत्ता, पदमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समषेण भगवया महावीरेणं जाव" संपत्ते के श्रट्टे पण्णत्ते ? ε. एवं खलु जंबू ! तेषं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए । सेणिए राख । चेल्ला देवी । सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव" परिसा पज्जुक्स'इ ।।' E ५. दाहिणिल्लाण वाणमंतराणं इंदाणं प्रग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे । ६. उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अम्गमहिसीणं छट्ठे वग्गे । ७. चंदस्स ग्रग्ग महिसीणं सत्तमे वग्गे । ८. सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्टमे वग्गे । ६. सक्कस्स ग्रग्गमहितीणं नवमे वरगे । ० १, २, ३. ना० १११।७ । ४. X ( क, ख, ग ) 1 ५. x (क, ख, ग ) । ६. भवणवs ( क ) | ७, ८, ६. ना० १।१।७ १०. विज्जा (क, ग) । ११, १२. ना० १।१/७ १३. ओ० सू० ५२ । Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० नायाधम्मकहाओ कालीदेवी-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं काली देवी चमरचंचाए रायहाणोए कालिवडेंसगभवणे कालंसि सीहासणसि चउहि सामाणियसाहस्सोहिं चउहिं महयरियाहिं' सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सोहि अण्णेहि य बहूहि कालिवडिसय-भवणवासोहि असुरकुमारेहि देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडा महयाहय'- नट्ट-गीय-वाइयतंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादियरवेणं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणी • विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दोवं दीवं विउलेणं प्रोहिणा 'आभोएमाणी-आभोएमाणी" पासइ ।। कालीए भगवप्रो बंदण-पदं ११. एत्थं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा' 'परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण ° -हियया सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुतुत्ता पायपीढायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयानो ओमुयइ, प्रोमुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाइ अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणं अंचेइ, अंचेता दाहिणं जाणं धरणियलंसि निहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि निवेसे इ', ईसि पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग-तुडिय-थंभियानों भुयानो साहरइ, साहरित्ता करयल' 'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं क्यासी-नमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवत्रो महावीरस्स जाव"सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स। वंदामि गं भगवंतं तत्थगयं इहगया, पासउ मे समणे भगवं महावीरे तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्था भिमुहा निसण्णा ।। १२. तए णं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे५ प्रज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्तए" १. मयहरियाहिं (क,ख,ग,घ); महरियाहि (क्व)। ८. सं० पा०-करयल जाव कटु । द्रष्टव्यम्-१।१६।१५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम्। ६.१०. ओ० सू० २१ । २. वडेंसय (ख, ग)। ११. सं० पा०-इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ३. सं० पाo-महयाहय जाव विहरई। १२. वंदित्ता (क, ख, ग, घ); सं० पाo-बंदि४. आभोएमाणी (क, ख, ग, घ)। त्तए जाव पज्जुवासित्तए । असौ पाठः 'राय५. जत्थ (क, घ); यत्थ (ग)। पसेणइय' सूत्रस्य वृत्यनुसारेण पूरितः । ६. सं० पा० पीइमणा जाव हियया । द्रष्टव्यम्-'रायपसेणइय' वृत्ति पृ० ५१,५२ । ७. निमेइ (क, ग)। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढम अज्झयणं (काली) ३७१ 'नमंसित्तए सक्कारित्तए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता प्राभियोगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे' विहरइ एवं जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ जाव' दिव्वं सुरवराभिगमणजोगं करेह 'य कारवेह य करेत्ता य कारवेत्ता य खिप्पामेव एवमाणत्तियं ° पच्चप्पिणह । ते वि तहेव करेत्ता जाव' पच्चप्पिणंति, नवरं---जोयणसहस्सवित्थिण्णं जाणं । सेसं तहेव । तहेव नामगोयं साहेइ, तहेव नट्टविहिं उवदंसेइ जाव पडिगया ॥ गोयमस्स पसिण-पदं . भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी–कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिब्वे देवाणुभाए कहिं गए ? कहिं अणुप्पविद्वे ? गोयमा ! सरोरं गए सरीरं अणुप्पवितु । कूडागारसाला दिटुंतो' । अहो णं भंते ! काली देवी महिड्डिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा। १४. कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? भगवनो उत्तरे काली-पदं १५. गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पामलकप्पा नाम नयरी होत्था-वण्णो । अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया ॥ १६. तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले 'नाम गाहावई होत्था-अड्ढे जाव अपरिभूए। १७. 'तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी नामं भारिया होत्था-सुकुमाल पाणिपाया जाव" सुरूवा।। १८. तस्स णं कालस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली नाम १. पू.--राय० सू०६। ७. पू०..-रायः सू० ६६७ । २, राय० सू०६। स० पा०-एवं जा सूरियाभस्स जाव एवं। ३. सं० पा०-करेह करेता जाव पच्चप्पिणह। 4. ओ० सू० १ । ४. राय० सू० १०.४६ ॥ ६. ना० १।१७। ५. राय. सू० ४७.१२० । १०. ना० १११।१७। ६. राय० सू० १२३ । Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ नायाधम्मक हाओ दारिया होत्था - वड्डा वहुकुमारी जुण्णा जुष्णकुमारी पडियपुयत्थणी' निव्विण्णवरा वरंगपरिवज्जिया' वि होत्था | कालीए पव्वज्जा-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे' "तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससोहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयद चक्खुद मग्गदए सरणदए जीवदए दीवो ताणं सरणं गई पट्ठा धम्मवरचाउरंत चक्क वट्टी ग्रप्पडिय वरताणदंसणधरे वियदृच्छउ मे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिष्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे वोहर सव्वण्णू सव्वदरिसी नवत्थुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जग्सिहनारायसंघयणे जल्लमल्लकलंक सेय रहियसरीरे सिवमयल मख्यमणंत मक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगणामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे सोलसहि समणसाहस्सीहि प्रवृत्तीसाए अज्जिया साहस्सीहिं सद्धि संपरिवडे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्माणे सुहं सुहेणं विहरमाणे आमलकप्पाए नयरीए बहिया • अंबसालवणे समोसढे | परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ | o २०. तए णं सा काली दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टु तु चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाण हियया जेणेव सम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्महिय दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी एवं खलु अम्मयाओ ! पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे "तित्थगरे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव ग्रामलकप्पाए नयरीए ग्रंवसालवणे ग्रहापडिरूवं ग्रोग्गहं योगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं इच्छामि णं ग्रम्मयाओ ! तुभेहि भगुणाया समाणी पासस्स णं अरहस्रो पुरिसादाणीयस्स पायवंदिया गमित्तए । ० हासुहं देवाप्पिए ! मा पडिबंधं करेहि ॥ २१. तए णं सा काली दारिया ग्रम्मापिईहिं प्रब्भणुण्णाया समाणी हट्ट तुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीड्मणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाण हियया व्हाया कवलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगललाई बत्थाई १. पुतत्थणी ( ग ) 1 २. वरपरिवज्जिया (घ ) ; वरवज्जिया (वृ) । ३. सं० पा०--जहा वद्धमाणसामी नवरं नवहत्थुस्सेहे ० ( क, ख, ग, घ ) 1 ४. पू०-- ओ० सू० १६ ५. ओ० सू० ५२ । ६. सं० पा० - हदुजाव हियया । ७. सं० पा०- कयल जाव एवं ८. सं० पा०-- आइगरे जाव विहरइ । ६. सं० पा० - हट्ठ जान हियया । Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो - पढम अभयणं (काली) ३७३ पवर परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडिया-चक्कवाल- परिकिण्णा सानो गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उत्रागच्छर, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवर दुरूढा ॥ २२. तए णं सा काली दारिया धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी एवं जहा देवई' तह पज्जुवासइ ।। २३. तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं कहेइ || २४. तए णं सा काली दारिया पासस्स ग्ररह्यो पुरिसादाणीयस्स अंतिर धम्मं सोच्चा निसम्म हदु तुदु - चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाहिया पास रहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, जाव' से जहेयं तुब्भे वयह । जं नवरं - देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो ग्रापुच्छामि, तए णं ग्रहं देवाणुप्पियाणं प्रतिए मुंडे भवित्ता णं अमाराम्रो अणगारियं पव्वयामि । ० हासुहं देवाप्पिए ! ०. २५. तसा काली दारिया पासेणं अरह्या पुरिसादाणीएणं एवं वृत्ता समाणी - चित्तमादिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हिया पास प्ररहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूह, दुरुहिता पासस्स अरहो पुरिसादाणीयस्स अंतिया बसालवणाश्रो चेइयाश्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव आमलकप्पा नयरी तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता आमलकप्पं नयर मज्भंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, वेत्ता धम्मिया जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव सम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - एवं खलु अम्मयाश्रो ! मए पासस्स मरहम्रो प्रतिए धम्मेनिसते । सेविय धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तए गं ग्रहं अम्मयाओं' ! संसारभउग्विग्गा भीया जम्मण-मरणाणं इच्छामि णं तुब्भेहि १. दोवइ (क, घ) १ २. अंत ३१८३१५ । ३. सं० पा०-- हट्ट जाव हियया । ४. ना० १।१।१०१ । ५. सं० पा० - अंतिए जाव पव्वयामि । ६. सं० पा० - हट्ठ जाव हियया । ७. अभिरुतिए ( ख ); अभिरुतिते ( ग ); अभिरुचिए (घ ) । ८. अम्मापयातो ( ग ) । Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स अरहओ अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंध करेहि ।। २६. तए ण से काले गाहावई विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमतेइ, पामतेत्ता तम्रो पच्छा पहाए जाव' विपुलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स पुरमो कालिं दारियं सेयापीएहिं कलसेहि व्हावेइ, व्हावेत्ता सव्वालंकार-विभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेइ, दुरूहेत्ता मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणणं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव' दुंदुहिनिग्धोस-नाइयरवेणं आमलकप्पं नयरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निम्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थगराइसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवेत्ता कालि दारियं सीयानो पच्चोरुहेइ ।। तए णं तं कालि दारियं अम्मापियरो पुरनो काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वदंति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! काली दारिया अम्हं धूया इट्ठा कंता जाव उंबरपुप्फ पिव दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? एस ण देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता •णं अगाराम्रो अणगारियं° पव्वइत्तए। तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणिभिक्खं दलयामो। पडिच्छत् णं देवाणप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करहि ॥ २८. तए ण सा काली कुमारी पास अरहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तर पुरथिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं प्रोमुयइ, प्रोमुइत्ता सयमेव लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासं अरहं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-प्रालित्ते णं भंते ! लोए १. ना० १७१६॥ २. ना. १२११३३ । ३. पच्चोरुहइ (क, ख, ग, घ)। ४. ना० १११११४५। १. सं. पा.--भवित्ता जाव पग्वइत्तए। ६. 'लोए' अतोने "एवं जहा देवाणंदा जाव" समर्पणवाक्यमस्ति, किन्तु भगवतीसूत्रे (६।१५२) देवागंदा-प्रकरणे समर्पितः पाठः संक्षिप्तोस्ति, तेन एतद्वाक्यं पाठान्तररूपेण स्वीकृतमस्माभिः । अस्य पूर्तिस्थलनिर्देशः प्रस्तुतसूत्रादेव कृतः। Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढम प्रज्झयणं (काली) ३७५ जाव' तं इच्छामि णं देवाणप्पिएहि सयमेव पवावियं जाव' धम्ममाइक्खियं ॥ २६. तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सि णियत्ताए दलयइ ॥ ३०. तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालिं कुमारि सयमेव पवावेइ' जाव' धम्म माइक्खइ॥ ३१. तए णं सा कालो पुप्फचूलाए अजाए अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएस सम्म° उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ३२. तए णं सा काली अज्जा जाया--इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारिणी।। ३३. तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ'-'छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धभासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ कालीए बाउसियत-पदं ३४. तए णं सा कालो अज्जा अण्णया कयाई सरीरबाउसिया जाया यावि होत्था । अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराणि धोवेइ, कक्खतराणि धोवेइ, गुज्झतराणि धोवेइ, जत्थ-जत्थ वि य ण ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ, तं पुवामेव अब्भुक्खित्ता तो पच्छा आसयइ वा सयइ वा ॥ ३५. तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालि अज्ज एवं वयासो-नो खलु कप्पइ देवाण प्पिए ! समणीण निग्गथोणं सरीरबाउसियाण होत्तए । तमं च देवाणप्पिा! सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्ये धोवसि", "पाए धोवसि, सीस धोवसि, मुहं धोवसि, थणंतराणि धोवसि, कक्खंतराणि धोवसि, गुज्झतराणि धोवसि, जत्थ-जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्जं वा निसोहियं वा चेएसि, तं पुवामेव प्रभुक्खित्ता तो पच्छा ° 'प्रासयसि वा सयसि" वा । तं तुम देवाणप्पिए ! एयस्स ठाणस्स पालोएहि जाव' पायच्छित्त पडिवज्जाहि" ॥ १. ना० ११:१४६ । २. पव्वाविङ (ख, ग)। ३. ना० १११।१४६ । ४. सं० पा०---पठवावेइ जाव उवसंपज्जित्ता। ५. ना० १।२१५० । ६. ना० १.१४१४० । ७. सं० पा०-च उत्थ जाव विहरइ । ८. x (ख)। ६. पाउसिया (ख, ग, घ)। १०. सं० पा-धोवसि जाव आसयसि। ११. आसयाहि वा सयाहि (क, ख, ग, घ); आदर्शषु तुबाद्यर्थवाचक क्रियापदमस्ति, किन्तु प्रसंगापातेनात्र तिबाद्यर्थवाचक क्रियापदं युज्यते, तेन तथा परिगृहीतम् । १२. ना० १।१६।११५। १३. पडिवज्जेहि (ख); पडिवज्जिहि (ग) Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ नायाधम्मकहानी ३६. तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए एयमटुं नो पाढाई 'नो परिया णाइ° तुसिणीया संचिट्ठइ ।। ३७. तए णं तानो पुप्फलामो अज्जामो कालिं अज्ज अभिक्खणं-अभिक्खणं हीलेंति __ निंदंति खिसंति गरहंति अवमन्नंति अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमटुं निवारेति ।। कालीए पुढोविहार-पदं ३८. तए णं तीसे कालीए अज्जाए समणीहिं निग्गंथीहिं अभिक्खणं-अभिक्खणं हीलिज्जमाणीए जाव' निवारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-जया णं अहं अगारमझे वसित्था तया णं अहं सयवसा, जप्पभिई च णं अहं मुडा भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइया तप्पभियं च णं अहं परवासा' जाया । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पाडिक्कयं' उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पाडिक्क उवस्सयं गेण्हइ ! तत्थ णं अणिवारिया अणोहट्टिया सच्छंदमई अभिक्खणं - अभिक्खणं हत्थे धोवेइ', 'पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराणि धोवेइ, कक्खंतराणि धोवेइ, गुज्झतराणि धोवेइ, जत्थजत्थ वि य गं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ, तं पुवामेव अभुक्खित्ता तनो पच्छा ° आसयइ वा सयइ वा ।। कालीए मच्चु-पदं ३६. तए णं सा काली अज्जा पासस्था पासत्थविहारी ओसन्ना ओसन्तविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी संसत्ता संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसे इ, असेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेएइ, छेएत्ता तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए कालिवडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स 'असंखेज्जाए भागमेत्ताए" प्रोगाहणाए कालीदेवित्ताए उववण्णा ।। १. सं० पा०-आढाइ जाव तुसिणीया। एक्कयं (घ)। २. ना० २।११३७ । ६. पू०-ना० १२१०२४ । ३. सं० पा०-अज्झत्यिए जाव समुप्पज्जित्था। ६. सं० पा०--धोवेइ जाव आसयइ । ४. अगारवास ° (ख, ग, घ) । १०. अपडिकंता (ख)। ५. परवसा (क, ख, घ)। ११. असंखेज्जए.(ख); असंखेज्जए भागमेत्तए ६. पू०-ना० १११।२४। (ग); असंखेज्जइ° (घ)। ७. पाडिक्क (क); पडिक्कयं (ख, ग); पाडि Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७७ पढमो वग्गो-पढमं अज्झयण (काली) ४०. तए णं सा काली देवी अहुणोववण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए' पिज्जत्तभावं गच्छति [तं जहा -आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाण पज्जत्तीए° भासमणपज्जत्तीए। ४१. तए णं सा काली देवी चउण्हं सामाणिय-साहस्सीणं जाव' सोलसण्हं आयरक्ख देवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं कालिवडेंसगभवणवासीणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेबच्चं कारेमाणी जाव" विहरइ ।।। एवं खलु गोयमा ! कालीए देवीए सा दिव्वा देविड्डो दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमग्णागए ।। ४३. कालोए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! अडाइज्जाई पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता !! ४४. काली णं भंते ! देवी तानो देवलोगायो अणतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ मव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । –त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०--जहा सूरियाभो जाब भासमण- ४. द्रष्टव्यम्-१।१।११८ सूत्रम् । पज्जत्तीए। ५. ना. ११११११८। २. असो कोष्ठकत्तिपाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। ६. ना० १११७ । ३. ना० २।१।१०। Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं राई ४६. जइशं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढमझयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, बिइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? ४७. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव' पज्जुवासइ॥ ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया । ४६. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदई नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुन्वभवपुच्छा ।। ५०. गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेता एवं वयासी० -.. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नयरी अंबसालवणे चेइए । जियसत्तू राया। राई गाहावई । राइसिरी भारिया। राई दारिया। पासस्स समोसरणं । राई दारिया जहेव काली तहेव' निक्खंता ।। ५१. "तए णं सा राई अज्जा जाया । ५२. तए णं सा राई अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ । । १,२. ना० ११७ ३, ओ० सू० ५२ ! ४. ना० २।१।१०-१२ । ५. सं० पा०--पुवभवपुच्छा एवं । पू०-ना० २११४१३,१४ । ६. ना० २११६१८-३१। ७. सं० पा०-तहेव सरीरबाउसिया तं चेव सव्वं जाव अतं। ८. पू०-ना० २१११३२ । ६. पू०-ना० २।१।३३ । ३७८ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-तइयं अज्झयणं (रयणी) ५३. तए णं सा राइ अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया या वि होत्था । ५४. तए ण सा राई अज्जा पासत्था तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए रायडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जाए भागमेत्ताए प्रोगाहणाए राईदेवित्ताए उववण्णा जाव' अंत काहिइ ।। ५५. एवं खलु जंवू ! "समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ।। तइयं अज्झयणं रयणी ५६. जइ णं भंते ! "समणेणं भगवया महावोरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते, तइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? ५७. एवं खलु जंबू ! रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । 'सामी समोसढे !! ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं रयणी देवी चमरचंचाए रायहाणीए पागया ॥ ५६. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुन्वभवपुच्छा ॥ गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं क्यासीएवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं • आमलकप्पा नयरी ! अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। रयणे गाहावई। रयणसिरी भारिया। रयणी दारिया । सेसं तहेव जाव" अंतं काहिइ ।। १. पू०-ना० २१११३४-३८ । २. पू.-ना० १११।३६ । ३. ना० २.११४०.४४ । ४. सं० पा.---बिइयज्झयणस्स निक्खेवओ। ५. ना० ११७ । ६. सं० पा-तइयज्झयणस्स उक्खेवओ। ७. सं० पा०–एवं जहेव राई तहेव रयणी वि। ८. पू०-ना० २।११४७ । ६. पू०- ना० २११४४८ । १०. पू०-ना० २।१४६ । ११. ना० २११५०-५४ ॥ । Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं विज्जू ६१. एवं विज्ज वि-पामलकप्पा नयरी। विज्जू गाहावई । विज्जूसिरी भारिया। विज्जू दारिया । सेसं तहेव' ।। पंचमं अज्झयणं मेहा ६२. एवं मेहा वि--आमलकप्पाए नयरीए मेहे गाहावई । मेहसिरी भारिया । मेहा दारिया। सेसं तहेव ।। ६३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते ॥ ३. ना० १५११७ १. ना० २।१९४६-५४ । २. ना० २०११४६-५४ । ३६० Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. ज३ बीओ वग्गो पढमं अज्झयणं संभा जइ णं भंते ! समणेणं "भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स समणणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलू जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा --सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा ।। जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सामी समोसढे । परिसा निगया जाव' पज्जुवासइ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए संभवडेंसए भवणे संभंसि सीहासणंसि' विहरइ । काली गमएणं जाव' नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया । ६. पुव्वभवपुच्छा ॥ ७. सावत्थी नयरी ! कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया । सुंभे गाहावई । सुंभसिरी __ भारिया । सुभा दारिया । सेसं जहा कालीए' नवरं अट्ठाइं पलिअोवमाई ठिई ॥ ८. एवं खलु जंबू ! “समणेणं भगवया महावीरेण दोच्चस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते !! २-५ अज्झयणाणि ६. एवं' ---सेसा वि चत्तारि अझयणा । सावत्थोए। नवरं -माया पिया ध्या सरिनामया। १०. एवं खलु जंवू ! "समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं बिइयस्स वगस्स अयम? पण्णत्ते ।° १. स. पा.-दोच्चस्स दग्गस्स उवक्खेवओ। ५. ना० २।१।१८-४४ । २. ओ० सू० ५२ ६. सं० पा०-निक्खेवओ अज्झयणस्स । ३. पू०---ना० २११।१० । ७. ना० २१२६१-८॥ ४. ना० २।१५११,१२ ।। ८. सं० पा.-निक्खेवओ बिइयवग्गस्स । ३८१ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वग्गो पढम अज्झयणं प्रला १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं बिइयस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, तइयस्स णं भंते ! दग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अष्टे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं तइयस्स वग्गस्स चउपण्ण अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा-पढमे अझरणे जाव चउपण्णइमे अज्झयणे । जइणं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वास्स चउपाणं अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए सामी समोसढे परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं अला देवी धरणाए रायहाणीए अलावडेंसए भवणे अलसि सीहासणंसि एवं कालीगमएणं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। ६. पुव्वभवपुच्छा ॥ वाणारसीए नयरीए काममहावणे चेइए । अले गाहावई । अलसिरी भारिया। अला दारिया। सेसं जहा कालीए, नवरं-धरणग्गमहिसित्ताए उववाओ। साइरेग अद्धपलिग्रोवमं ठिई सेसं तहेव ।। ८. एवं खल जंबू ! "समणेणं भगवया महावीरेणं त इयस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्ठ पण्णत्ते ° । १. सं० पा०—उवखेव ओ तइयवग्गस्स । २. ओ० सू० ५२। ३ ना० २११।१०-१२ । ४. ना० २११११८.४४ । ५. सं० पा.---निक्खेवओ पढमज्झयणस्स । Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो (१३-५४ अज्झयणाणि) २-६ प्रज्झयणाणि ६. एवं' कमा', सतेरा, सोयामणी', इंदा, धणविज्जुया वि सव्वागो एयायो धरणस्स अगमहिसीनो। ७-१२ अज्झयणाणि १०. एए' छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्वा । १३-५४ अज्झयणाणि ११. एवं'--'हरिस्स अग्गिसिहस्स पुग्णस्स जलकंतस्स अमियगतिस्स वेलंबस्स ° घोसस्स वि एए' चेव छ-छ अज्झयणा । एवमेते दाहिणिल्लाणं चउपण्णं अज्झयणा भवंति । सव्वानो वि वाणारसीए काममहावणे चेइए। १२. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ॥ १. ना०२।३।१-८1 २. सक्का (ठाणं ६।५५, भ० १०७६) । ३. सोयमणी (क, ख); सोयमाणी (ग, घ); सोतामणी (ठाणं ६१५५) । ४. ना०२।३।१-८। ५. स. पा०-एवं जाव घोसस्स । ६. ना० २।३११-८ । ७. सं० पा०-तइयवग्गस्स निवखेवओ। Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो पढमं श्रयणं रूया १. * जड़ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स ग्रयम पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेण भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? ० २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउप्पण्णं ग्रज्यणा पण्णत्ता, तंजहा - पढने ग्रयणे जाव चउप्पण्णइमे अभय ॥ 'जइ णं भंते! समणेण भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउपरणं अभयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्भयणस्स समणेण भगवया महावीरेण के पण्णत्ते ?" एवं खलु जंबू ! तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ ।। ३. ४. ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं ख्या देवो भूयाणंदा रायहाणी रूयगवडेंसए भवणे रूस सीहाससि जहा कालीए तहा, नवरं -- पुण्वभवे चंपाए पुण्णभद्दे चेइए रूयगगाहावई रूपगसिरी भारिया रूया दारिया । सेसं तहेव, नवरं भूयाणंदअग्गमहिसित्ताए उववाम्रो । देसूणं पलिश्रावमं ठिई || - ६. " एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं चउत्थस्स वग्गस्स पढमज्यसयम पण्णत्ते । १. सं० पा० - चउत्थस्स उक्खेवओ । २. X ( क, ख, ग, घ ) । पूर्वक्रमेण एतत् सूत्रं युज्यते । ३. ओ० सू० ५२ । ४. ना० २।१।१०-४४ । ५. सं० पा० – निक्लेवओ । ३८४ - त्ति वेमि ॥ 0 Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो (७-५४ अज्झणाणि ) 13. ८. ह. एवं' २-६ प्रज्भणाणि सुरूयावि, सात्रि, रूयगात्रवि, रूपकंताविरूपा ॥ ७- ५४ अज्भणाणि एया चैव उत्तरिल्लाणं इंद्राणं' - 'वेणुदालिस हरिस्सहस्स प्रणिमागवस्स विट्टिम्स जलप्पभस्य ग्रमितया पजगस्य महाघोयस्स भाणियव्वाश्रो ।० "एवं खलु जंबू ! समवेन भगवया महावीरेण धम्मकहाणं त्वमस्त श्रयमदु पण्णत्ते O 11 १. एवं खलु (क, ख, ग, घ ) ना० २२४११-६ । २. ना० २।४।१-६ । ३८५ ३. सं० पा० - भाणियव्वाओ जाव महाबोरास्स । ४. सं० पा०-- निक्खेवम्रो चउत्थवमास्म । Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो पढम अज्झयणं कमला १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं च उत्थस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स वग्गस्स बत्तीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-- १. कमला २. कमलप्पभा चेव, ३. उप्पला य ४. सुदंसणा। ५. रूववई ६. बहुरूवा, ७. सुरूवा ८. सुभगावि य !!१! ६. पुण्णा १०. बहुपुत्तिया चेव, ११. उत्तमा १२. तारयावि' य । १३. पउमा १४. वसुमई चेव, १५. कणगा १६. कणगप्पभा ॥२॥ १७. वडेंसा १८. केउमई चेव, १६. 'वइरसेणा २०. रइप्पिया। २१. रोहिणी २२. नवमिया चेव, २३. हिरी २४. पुष्फवईवि य ।।३।। २५. भुयगा २६. भुयगावई" चेव, २७ महाकच्छा २८. फुडा इय। २६. सुघोसा ३०. विमला चेव, ३१. सुस्सरा य ३२. सरस्सई ।।४।। ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पंचमस्स वग्गस्स बत्तीसं अज्झयणा पण्णत्ता, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्भयणस्स के अद्वे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ।। १. सं० पा.--पंचम वगस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू ! जाव बत्तीसं । २. बहुपुणिया (क, ख, घ) । ३. भारियावि (क, घ)। ४. रतणप्पभा (ठाणं ४.१६५), ५. रतिसेणा रतिष्पभा (ठाणं ४११६७); रति सेणा रइप्पिया (भ० १०:८६) ६. सुभगा सुभगावती (ख)। ७. सं० पा०-उक्खेवेओ पढमज्झयणस्स। ८. ओ० सू० ५२। Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वग्गो-पढम अज्झयणं (सूरप्पभा) ३८७ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कमला देवी कमलाए रायहाणीए कमलबडेंसए भवणे कमलसि सीहासणंसि सेसं जहा कालीए तहेव', नवरं - पुत्वभवे नागपुरे नगरे सहसंबवणे उज्जाणे कमलस्स गाहावइस्स कमलसिरोए भारियाए कमला दारिया पासस्स अंतिए निक्खंता । कालस्स पिसायकुमारिंदस्स अग्गमहिसी। अद्धपलिअोवमं ठिई। २-३२ अज्झयणाणि ६. एवं सेसा वि अज्झयणा दाहिणिल्लाणं इंदाणं' भाणियब्वायो। नागपुरे सहसंव वणे उज्जाणे । मायापियरो धूया-सरिनामया। ठिई अद्धपलिग्रोवमं । छट्टो वग्गो १.३२ अज्झयणाणि १. छटो वि वग्गो पंचमवग्ग-सरिसो, नवरं-महाकालाईण' उत्तरिल्लाणं इंदाणं' अगमहिसीनो। पुत्वभवे सागेए नगरे। उत्तरकुरु-उज्जाणे । मायापियरो धूया-सरिनामया। सेसं तं चेव ।। सत्तमो वग्गो पढमं अज्झयणं सूरप्पभा १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं छस्स वग्गस्स अयमटे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्टे पण्णते? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - सूरप्पभा, पायवा, अच्चिमाली, पभंकरा॥ ३. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अझयणा पण्णत्ता, सत्तमस्स णं भंते ! वास्स पढमज्भयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? १. ना० २.१।१०-४४। २. ठाण २।३६४-३७० । ३. महाकायाई णं (ख)। ४. ठाणं २१३६४-३७91 ५. सं० पा०–सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ एवं ___ खलु जंबू जाव चत्तारि । ६. सं० पा० - पढमझयणस्स उक्खेवओ। Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ मायाधम्मकहायो ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ ।। ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुरप्पभा देवी सूरंसि बिमाणंसि सूरप्पभंसि सीहा सणंसि । सेसं जहा कालीए तहा', नवरं-पुव्वभवो प्ररक्खुरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया । सूरस्स अग्गमहिसी। ठिई अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं । सेसं जहा कालीए ।। २-४ अज्झषणाणि ६. एवं -- प्रायवा, अच्चिमाली, पभंकरा °। सव्वानो अरक्खुरीए नयरीए । अट्ठमो वग्गो पढमं आज्झयणं चंदप्पभा १. • जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमद्धे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स वग्गस्स' चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा ।। ३. जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अदमस्स वग्गस्स चत्तारि अझयणा पण्णत्ता, अट्रमस्स ण भंते ! वग्गस्स पढमझयणस्स के अढे पण्णत्ते ? ' ४. एवं खलु जबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ ।। ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदप्पभा देवी चंदप्पभंसि विमाणंसि चंदप्पभंसि सीहासणंसि । सेसं जहा कालीए", नवरं-पुन्वभवो महुराए नयरीए भंडिवडेंसए १. ओ० सू० ५२ ५. सं० पा०-अटुमस्स उक्खेवनो। एवं खल्लू २. २१८।५ सूत्रपद्धत्या अत्रापि 'सूरप्पभंसि' जंबू जाव चत्तारि । इति पाठो युज्यते । ६. सं० पा०-पढ़मज्झयणस्स उखेवओ। ३. ना० २११:१०-४४ । ७. ओ० सू० ५२। ४. सं० पा०-एवं सेसाओवि । ८. ना० २।१६१०-४४ । Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो वग्गो (१.८ अज्झयणाणि) ३८६ उज्जाणे ! चंदप्पभे गाहावई । चंदसिरी भारिया। चंदप्पभा दारिया। चंदस्स अग्गम हिसी । ठिई अद्धपाल ग्रोवमं पप्णासवाससहस्सेहि अब्भहियं ॥ २-४ अज्झयणाणि ६. एवं'- दोसिणाभा, अच्चिमाली, परंकरा ', महुराए नयरीए । मायापियरो धूया-सरिसनामा ! नवमो वग्गो १-८ अज्झयणाणि १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अट्रमस्स वग्गस्स अयम? पणत्ते, नवमस्स णं भंते ! वग्गरस समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स वग्गरस अट्ट अज्भ यणा पण्णत्ता, तं जहा---- गाहा - १. पउमा २. सिवा ३. सई ४. अंजू, ५. रोहिणी ६. नवमिया इ य । ७. अयला ८. अच्छरा ॥ ३. “जहण भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं नवमस्स वग्गस्स अट्ट अभयणा पत्ता, नवमस्स पं भंते ! वगस्स पढमज्झयणस्स के अट्रे पण्णत्ते ? ० ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जवासइ ! ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पे पउमवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए पउमंसि सीहासणंसि जहा कालीए । १. सं० पा० ---एवं सेसाओदि। २. सं० पा० - नवमस्म उक्खेवओ। एवं खलु जंतु ! जाव अट्ठ। ३. सिया (क, ग)। ४. सुती (क, ख, ग); सची (ठाणं का२७)। ५. नमिया (घ)। ६. अमला (ठाणं ८।२७; भ० १०६२) । ७. सं० पा० - पढमझयणस्स उक्खेवओ। ८. ओ० सू० ५२ । ६. ना० २११११०.४४ 1 Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ६. एव अट्ट वि अज्झयणा काली-गमएण नायव्वा, नवरं-सावत्थीए दोजणीयो। हत्थिणाउरे दोजणीयो। कपिल्लपुरे दोजणीभो। साएए दोजणीयो। पउमे पियरो विजया मायरानो । सव्वानो वि पासस्स अंतियं पच्वइयाओ। सक्कस्स अग्गमहिसीनो। ठिई सत्त पलिओक्माई । महाविदेहे वासे अंतं काहिति ॥ दसमो वग्गो १-८ प्रज्झयणाणि १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण धम्मकहाणं नवमस्स वग्गस्स __ अयम? पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के __ अट्टे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. कण्हा य २. कण्हराई, ३. रामा तह ४. रामरक्खिया । ५. वसू या ६. वसुगुत्ता ७. वसुमित्ता ८. वसुंधरा चेव ईसाणे ॥१॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं चम्मकहाणं दसमस्स वग्गस्स अट्ठ __ अज्झयणा पण्णत्ता, दसमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठ पण्णते? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हव.सए विमाणे सभाए सुहम्माए कण्हंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए ।। ६. एवं अट्ट वि अज्झयणा काली-गमएणं नायब्वा, नवरं -पुन्वभवो वाणारसीए नयरीए दोजणीयो । रायगिहे नयरे दोजणीयो । सावत्थीए नयरीए दोजणीयो। कोसंबीए नयरीए दोजणीयो। रामे पिया धम्मा माया। सव्वाप्रो वि पासस्स अरहयो अंतिए पव्वइयाओ। पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए । ईसाणस्स १. सं० पा०-दसमस्स उक्खेवओ। एवं खलु २. सं. पा.---पढमस्स उक्खेको। जंबू जाव अट्ठ। ३. ओ० सू० ५२। Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो वग्गो (१-८ अज्झयणाणि) ३६१ महिसी । ठिई नवपलिप्रोमाई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिंति मुच्चिहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ ७. एवं खलु जंबू ! मट्ठे पण्णत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दसमस्स वग्गस्स ८. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेण आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं जाव' सिद्धिगइ नामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं धम्मकहाणं मट्ठे पण्णत्ते ! परिसेसो ॥ धम्म हा सुक्खंधो सम्मत्तो । दहिं वग्गेहि नायाधम्मक हाम्रो समत्ताश्रो | ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर - २२६६४३ । अनुष्टुप् श्लोक - ७०६१, अक्षर ३१ । १. सं० पा०-निक्लेवओ दसमवग्गस्स । २. ना० ११११७ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसा Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकहाओ संक्षिप्त-पाठ पूर्त-स्थल पूर्ति आधार-स्थल अंतिए जाव पव्वयामि २११०२५ १११।१०१ अंतेउरे य जाव अज्झोववणे ११६।४१ १२१६२८ अगडे वा जाव सागरे १८१५४ शक्षा१५४ अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे ११११११ १।१।१११ अग्घेणं जाव आसणेणं श१६१६७ १११६:१८६ अच्चणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे ११२१७६ ओ० सू०२ अज्जग जाव परिभाएत्तए । १।६।५ १।१।११० अज्जाओ तहेव भणंति तहेव साविया जाया तहेब चिंता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति । १५१६।६८-१०४ १।१४।४४-५० अज्झथिए० ११८७९ ११११४८ अज्झथिए किमण्णे जाव वियंभइ १।१६।२७२ १।१६।२७२ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था १।११५३,५६,१५४,१५५,१६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,११५।११८,१२४;११७२५; १।१६११८,२८५,२।११३८ शश४८ अज्झत्थिय जाव जाणित्ता ११६।२८६ ११११४८ अट्टदुहट्टवसट्टमाणसगए जाव रयणि १११११५५ १११११५४ अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि २।८।१,२ २।२।१,२ अद्वाई जाव नो वागरेइ शश६६ १५६९ अट्ठाई जाव वागरेइ ११५२६६ प्रदायिं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए शक्षा२२६ शमा२२४ अड्डा जाव अपरिभूया ११५७ ओ० सू० १४१ अड्डा जाव भत्तपाणा ११३८ ओ० सू० १४१ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति १११८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२ ११७ शपा४२ १२११४६ १११४॥३६ १२१४१३६ अणते जाव समुप्पण्णे ११८१२२५ अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा १।१६।३२४ अणगारवण्णओ भाणियब्वो ११।१६४ अणगारे जाव इहमागए ११५१६८ अणगारे जाव पज्जवासमाणे २।११४ अणिट्टतराए चेव जाव गंधेणं १।१२।३ अणिवा जाव अमणामा ११६९७ अणिट्ठा जाव दंसणं १११४१४३ अणिवा जाव परिभोगं १।१४।५० अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पब्वइस्ससि १।१।११३ अण्णं च तं विउलं १८।२०७ अण्णमण्णं जाव समणे श१३।३८ अत्यत्थिया जाव ताहि इट्टाहिं जाव अणवरयं ११४३ अस्थामा जाव अधारणिज्ज १।१६२५३ अपत्थिय जाव परिवज्जिए ११८५१२८ अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए १॥५॥१२२ अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया शा७४ अपुष्णाए जाव निबोलियाए १११६२५ अब्भण्णाए जाव पव्वइतए श१२।३६ अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए १।५।११८,१।१६२८ अब्भुढेंसि जाव वंदसि ११५१६७ अभिसिंचइ जाव पडिगए १११६६२८० अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ ११५/६३-६५ अमच्चे जाव तुसिणीए श१२।१५ अम्मयाओ जाव पब्वइत्तए १३१५१०६ अम्मयाओ जाव सुलद्धे १३१४१२ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१६५ अरहण्णग जाव वाणियगाणं ११८६७ अरहण्णग संज्जत्तगा ११८८४ अरिटुनेमि जाव गमित्तए १।१६३२० अरिटुनेमिस्स जाव पव्वइत्तए ११५।२० अवंगुणेइ जाव पडिगए श११११२ ११८।२०५ १३१५३ ओ० सू०६८ ११६।२१ ११५११२२ उवा०।२।२२ ११५४१२२ १४१६१८ शश१०४ १।५।१२४ ११५२६६ ११११६१ ११११११७-११६ १।१२१७ १११११०७ १।१।३३ १११४८ ११८६४ १८६६ १।१६।३३४ ११.१०६ १११६१६१ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१६१२७६ ११०९६-१०१ १।१८।१२ १११६२२० ११मा१६६ १.१६।२४६ ११८१७२ १।२।१२ २१४१३६ शरा२० ११२२५२,५३ १०१२।४ १।१६।२६२ १५॥३४-३८ १११८८ १११६।२१६ १११६१२१ १।१६।२४५ ११८१५६ १।२।१२ १२१४१३८ १२।१४ ११२।३७,३८ १।२।१४ ११७२२ १।१६।१५२ ११७६ १४१६४१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज असक्का रिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परि जे मागी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणिद्वतराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहर आइपण वेदो १।१६:५२ १।१६३४ ११५१७६ १५७६ वृत्ति श१६१३३ १३५१७६ १३७६ १९५१२४ १।१८।१६ १६१८१६ १।१२०१ १११।१७११६११ ११।११६ १।१।२०१ १॥५॥११७,११८ वृत्ति १११८।१६ ११११११८ ११४ ११।११५ १११११६८ ११८४२ ११११६ १।१२।१६ २श२० ११७१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १२१२११३ ११११९५ वत्ति Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८.१६८ १।१२१२ १।१६।१८६ १।८।१७० ११८।१७० १।१६।१८६ १३१४१६० शक्षा१७० १११११५४ २१५४ २११६१ १७६ शश१०१ १।१।१०१ १।१।२० ११।१८६ आएहि य जाव परिणामेमाणा ११म१०४ आउक्खएणं जाव चइत्ता १।१६।१२३ आईति जाव पज्जुवासंति १११६:१८८ आढाइ' जाव तुसिणीए १।१२।७१।१६१५ आढाइ जाव तुसिणीया २१११३६ आढाइ जाव नो पज्जुवासह १२१६१६० आढाइ जाव भोगं १।१४१६१ आढाइ जाव संचिइ १।१६।३० आढायति १।१२१५५ आढायंति जाव संलवेंति १२१११५४ आपुच्छइ जाव पडिगए १६१६१२०० आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं १७४२ आपुच्छामि जाव पव्वयामि। १११२।३८ आपुच्छामि तएणं जाव पव्वयामि १।१६।१२ आरोग्गतुट्ठी जाव दिठे १।१।२६ आलंबे वा जाव भविस्सइ १।१६।३१२ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु १२३३१६ आलोएहि जाव पडिवज्जाहि १।१६।११५ आसयंति वा जाव तुयति १।१७१२२ आसाएइ जाव अणुपरियाट्टिस्सइ १११६४२ आसाएमाणीओ जाव परिभंजेमाणीओ ११२११७ आसाएमाणी जाव विहरइ १।२११४ आसाएमाणे जाव विहरइ १२१२१२२ आसायणिज्ज जाव सन्विदिय० १।१२।२० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय० १।१२।१६ आसिय जाव गंधवट्टिभूयं शश६७ आसिय जाव परिगीयं ११७६ आसुरुत्ता जाब मिसिमिसेमाणा १।१६।२८ आसुरुते जाव तिवलियं ५८.१५६ आसुरुते जाव तिवलियं एवं १।१६२८६ आसुरुते जाव प उमनाभं १११६२८० आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे १६५१२२ आहारे वा जाव पव्वयामो ११८४१३ आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था ११४१६७ आहेवच्चं जाव पालेमाणे १११७१२२ १९४४ १११ १११८१ १।१।८१ १११२।४ १।१२।४ ११.३३ वृत्ति ११११६१ शा१०६ १८।१०६ १८१०६ १११११६१ १५६० १११.१५७ १११११८ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ १११११८ शश६ ११११४६ १.१६/४७ २०४६ ११११४६ ११११४८ १६१६४६ १११११४५ उवा० २१४० १।११४८ शश१६४ १।११६७,११५३५२ १३५१६:१।३४ आहेवच्चं जाव विहरइ ११३८ आहेवच्चं जाव विहइ १११८/२० आहेवच्चं जाव विहरसि १११११५७ इट्ठा जाव मणामा १११६७० इट्ठा तं चेव १६१६:४८ इट्टाहिं जाव आसासेइ ११६।१३१ इटाहिं जाव एवं १८१२०३ इटाहिं जाव वग्गूहिं १८६७ इट्ठाहि जाव समासासे इ १११।५० इठे जाव से णं ११५/२० इड्ढी जाव परक्कमे ११८७६११६२६५ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्या ११७१६:२।१११२ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १।१४।४० इहमागए जाव विहरइ ११५१५३ ईसर जाव नीहरणं १११४१५६ ईसर जाव पभितीणं १७६ ईहामिय जाव भत्तिचित्तं १।११८६१८४६ उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं १४१८४० उक्किट्ठाए जाव देवगईए १।१६।२०४,२०६ उक्किट्ठाए जाए विज्जाहरगईए १४१६१६० उक्किट्ठाए प्फ कुम्मगईए १:४१२१ उक्खेवओ तइयवग्गस्स २१३१ उक्खेवओ पढमझयणस्स २॥५॥३ उज्जलंजाव दुरहियासं १।११६३ उज्जला जाव दाहवरकंतीए १११११८७ उज्जला जाव दुरहियासा ११५१०६:१।१६।२०,११६४५ उज्जाणे जाव विहरइ १११६३२१ उत्तरपरस्थिमे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरत्ताओ श५८० उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो १८१७६ उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा । ११८१७८ उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए ११८१५१ उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई १।२।१४ उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा १६१६४१२८ उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १८३८,११६।३७ १३११२५ ११८१६७ राय० सू० १० १।४।२१ वृत्ति २।२।१ २।२।३ शश१६२ १११११६२ १।१।१६२ १६१६१३१६ भ० २।५२,११५।५२ शक्षा१७७ ११५१७७ श८।१४१ राय० सू० ६७ १।१६।३७ वि०१४।३६ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२० उम्मुक्कबालभावे जाव जोव्वणग० ११४२२ उरालस्स क सिध मं जाव सुमिणस्स १११६ उरालाई जाव भुंजमाणा १।१२।४० उरालाई जाव विहरइ १११४०२० उरालाई जाव विहरिज्जामि १२१६११३ उरालाई जाव विहरिस्सइ १।१६।२०४ उराले जाव तेयलेस्से १।१६.१२ उरालेणं तहेव जाव भासं ११११२०४ उबवेए जाव फासेणं १।१२।४ उव्वत्तिज्जमाणे जाव टिट्रियावेज्जमाणे १।३।२२ उन्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ ११३१२६ उठवेत्तेंति जाव दंतेहि निक्खुडेंति जाव करेत्तए १४.१६ उध्वत्तेति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए १।४।१२ एगदिस जाव वाणियगा एगयओ जहा अरहन्लए जाव लवणसमुई श१७।५ एज्जमाणि जाव निवेसेह १।८।१७१ एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहि परियणेणं १६१४७७ एवं कुलत्था वि भाणियल्वा । नवरं इम नाणत्तं-इत्थिकुलत्था य धनकुलत्था य । इस्थिकुलत्था तिविहा पुण्णत्ता, तं जहाकुलबहुयाइ य कुलमाउयाइ य कुलधूयाइ य। धन्नकुलत्था तहेव ११५७४ एवं जहा मल्लिणाए १।१६।२०० एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स ११८३१,३२ एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं २११४१५ एवं जहेव तेयलिणाए सुब्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणपविट्रे तहेव जाव सूमालिया १६१६१६४-६७ एवं जहेव राई तहेव रयणी वि २।११५७-६० एवं जाब घोसस्स २।३।११ एवं जाव सागरदत्तस्स १।१६।८८-६१ एवं पत्तियामि णं रोएमिणं १११११०१ एवं पाएहि सीसे पोट्ट कायंसि १११११५३ एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि कण्णसक्कुलीओ वि नासापुडाई १।१४।२१ १।१६।११३ १।१२।४० १।१६।११३ १।१६:११३ ११.६ ११२०२ १११२१३ १।३।२१ १1३२१ ११४१११ ११४१११ ११८६२ १८६६ १।१।४०,१११६६१३१ १.१४१७७ श।७३ ११८११५४ १११८०२०,२२ राय० सू०६६८ २१४१४०-४३ २।११४७-५० ठाणं २।३५६-३६२ १।१६१६३-६६ १११११०१ श६१५३ १११४।२१ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।११७ १११११७ ११५॥७५ १२५७३; भ० १८।२१५-२१६ एवं पासत्थे कुसीले पमते एवं भासा वि । नवरं इमं नाणत----मास। तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कालमासा य अस्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा---सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया। अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल्लए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरइ ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओयमण जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणि ओहयमणसंकप्पा० ओहयमणसंकप्पा जाब झियाइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओयमणसंकप्पा जाव झियायह ओहयमणसंकप्पा जाव झियायामि ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ ओयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायसि कंडरीए उट्टाए उट्टेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कत्ता जाव भवेज्जामि कते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कटु जाव पडिसहेइ कट्ठस्स य जाब भरेति ११८८ १।१८८ २७६ २।७।२ २।८६ २१८२ १।१६२२५ १।१६:१६५ शश१२५ १६५।११७ १1८1१७१ ११११३४ १।३।२३ ११३४ १।१४।३८,१।१६।२०५ १११।३४ १११४१३८ ११११३४ श१३४ वृत्ति १३१४॥३७,१३१६६६२,८७,२०७ ११११३४ १शक्षा१५ ११११३४ १शमा१७३ १।११३४ १११६२६५ १५१०३४ १।१६.६४,६२,२०८ १।११३४ १।१७१० ११॥३४ ११११६८,१२१४१७७,१११७१८ ११।३४ १।१६।३२ १६१२३४ १।१७।६ १११।३४ १।१६।१२ १११०१ १११६३९७ १०१४।४३ १।१।१४५ १।१।१०६ १११११६२ वृत्ति १७.४२ ११५१० १११६।२५५ १११६१२५१,२५२ ११७२८ १।१७।२२ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणग जाव दलयइ कण जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्जं कणग जाब सिलप्पवाले कयकोउय जाव सवालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवसिकम्मं जाव सध्वालंकारविभूसियं कवलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कलिकम्मा जाव विपुलाई जाव विहरइ कवलिकम्मे जाय राय हिं कलिकम्मे जाव सरीरे araलिकम्मे जाव सब्दालंकार० करयल ० करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव एवं करवल जाव कट्टु करयल जान कट्टु तहेब जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पियंति करवल जाव परिणे करयल जाव वद्धावेइ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्भावेति करमन जाव बढाता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चैव जाव समासोरह करयल तहत जेणेव करमलपरिग्गहियं जाव अंजलि १११६ १६८ १८१५० १२१८३८ १२१८:३३ १|१३-१ १।१३/२५ १।१६।७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२१५८ १.१.६६ ११४७ १।५।६८, १२३, १६७३८१,१८, १५८,१६०१ ४३१:१।१४।३१,५० ११८१२०३, २०४:१।१६।१३७, १६१, २१६,२६४;१।१७।११ १।१६१२४६ ११:५५, ६० १।१।२०६१।१६।१७०, २१२: १११६१३,४६,२११२० १९३१७,१११४१२७, २८:१११६१४३ १|१|११८१।१६।१३३,२।१।११ १।१६।१४२ १।१६।१३८ शा१६६ शा१६५ १।१५।१६ १।१६।२३६ १।१७।२६ १।८।१३१:१।१६।२४४ ११८१०७ १।१६ १३४ १।१४११३ ११११२१ १२१३९१ १८४१ ११११६१ १४१४६१ १।२।२६ १।१३१२५ ११८१ १।१/३३ १२६६ १।१८ १ १११।२७ १११११ ११.१९ ११/२६ ११३६ १३१ १९ १।१।२६ १।१।२१ १११/२६ १।१६ १३२ १।१६।१२७ शा१६५ १।१।२६ १|१|४८ १|१|४८ १११.३६ १|१|४८ १|१|४८ १।१६/१३२ १।५।१३ १।१।१६ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२६ ११११४८ ११११४८ ११११४८ १।१३६ वृत्ति करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल बद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव मेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंवभूया कभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोटामारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाब एडेह ११११३६ ११८१२६ १५५१२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १।१४१४१,४२ १शक्षा१५ १११८।२७ १।१६।२८८ ।१।१२ १८४० शक्षा५१ १९५१२४ १।२।३३ १६२।६७ १२।४५ ११५।१० १११६।३२२ १२।६७ श१६।३० १११७१२२ १।१३।२० १७११३ १।८।१७४ ११७११७,१८ १११११११ १११७१२२ श७२५ १२।१४ ११९४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ ११८५१ ११।२४ ११५१२४ १॥२॥३३ १४२१३३ १२२।३३ १११११६ ११२८४ वृत्ति १।१३।२८ १।१७।२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ १।८१७३ १६७।१५,१६ १११११०७ २७७ ११८।५२ १११५७ ११११११७ १३१६६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८१५१ १११॥६ ११११११६ १।१२३ १.१६७४ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं खिज्जणाहि य जाव एयमटुं खीरधाईए जाव गिरिकंदरमल्लीणा गंध जाव उस्सुक्कं गंध जाव पडिविसज्जेइ गंध जाव सक्कारेत्ता गंधब्वेहि य जाव विहरंति गज्जियं जाव थणियसद्दे गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउम्विहभंडगस्स गब्भस्स जाव विणेति गय० गवलगुलिय जाव खुरधारेणं गवल जाव एडेमि गहाय जाब पडिगए गामघा वा जाव पंथकोट्टि गामागर जाव अणुपबिस सि गामागर जाव आहिंडह गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं गुणे० किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ धडएसु जाव संबसावेइ चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थ जाव विहरइ चउत्थ जाव विहरंति चउत्थस्स उक्खेवओ चंपगपायवे० चच्चर जाव महापहपहेसु चरगा वा जाव पच्चप्पिणंति चरमाणा जाव जेणेद चरमाणे जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरह चवलं नहेहि चारगसोहणं जाव ठिइपडियं ११०१५ १।१८।१४ ११६३६ १८८४ १।१६।१६९ ११७१६ १११६:१५२ १२९६ १1१1८१ श६६ २०१७ शमा६३ श६।१६ १९६३७ १११८१३६ १११८१२४ १४१६१२२६ १२१४१४३१११७११७ १।२।२६ १८७६ १।१२।१६ ११८१६ १२५२१०१,२।११३३ ११८।१७,२५ २४११ १।१८।४६ १६११६७ १११५७ १२।६६ १५१० १।१०३ १।१८।१० आयारचूला १५११४ २११३० ११८१६० १११२३० १११६३१५० १९७१ १।१२४ १९६६ १।२१७ ११६७ उवा० २०२२ १।९।१६ १४१८१३८ १।१८२२ १८१५८ ११८५८ १।२।२७,२६ ११८७४ १।१२।१६ ११।१६५ १।१।१६५ १११११६५ २।२।१ १२१२१०५ १११३३ १११५६६ १३१४ १।१४ २५११०८ १।४।१७ १११४१३३,३४ १११४ १।४।१४ १११७६-७४ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ११।१७ ११८७६ १।१।१५० १।१।१५१ ११११२३ ११११४ २११४ १।११४ २२११४ १११८१२१ १।१८।२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ १११११६५ श१८१२२ चारवेसा जाव पडिरूवा રાક चालितए जाव विप्परिणामित्तए १८७६ चिट्ठइ जाव उट्टाए १११।१५१ चिट्ठइ जाव संजमेणं १११।१६३ चित्तेह जाव पच्चप्पिणह ११८११७ चेइए जाव अहापडिरूवं श२०६६ चेइए जाव विहरइ ११११६४ चेइए जाव संजमेणं २।११३ चोक्खा जाव सुहासणवरगया १६१६:१५२ चोरनायगं जाव कुडंगे १११८१३० चोरविज्जाओ य जाब सिक्खाविए १।१८।२८ छटुंछट्टेणं जाव विहरइ १।१३६३६ छटुंछटेणं जाब विहरइ १।१६।१०८ छ छट्रेणं जाव विहरित्तए १२१६११०७ छट्ठट्ठम जाव विहरइ १४१६४१०५ जणवयं जाव नित्थाणं ११८।३२ जहा पोट्ठिला जाव परिभाएमाणी १।१६।६२ जहा मंडुए से लगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १:१६२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा १११७११ जहा महब्बले जाव परिवड्डिया १शक्षा३७ जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १।१७।६ जहा बद्धमाणसामी नवरं नवहत्थुस्सेहे० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए ११:४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १११६२० जायं च जाव अणुवड्ढेमि १।२।१४ जाया जाब पडिलाभेमाणी १११४१४६ जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे श१२।२३ जाव जहा २४१२२ जाव पज्जुवासइ शश१७ जाव सणियं १४.१६ जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे शश६३,६४ जाव हावभावं शमा१२१ २०११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ १९18 आ० सू० १६;वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ ११५.१०६ १२।१२ ११४७ १।१२।२२ ११२।७६ १।१।६६ ११४११३ राय० सू० ६६३११५२४७ ११।११७ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिमिय जाव सूइभूया जिमियत्तुत्तरागयं जाव सुहासण० ११२।१४ १।१६।२१६ १।८।१५४ ११११४ १।१७।२२ १।२।२७ हाए जाव पायच्छित्ते ११४१६४ हाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १११६/२६५ १२१७१ जोव्वणेण य जाव नो खलु झोडा जाव मिलायमाणा ठवेंति जाव चिट्ठति भिहिय जाव कुमारियाहि हाए जाव सुद्धप्पावेसाइं हायं जाव पुरिससहस्वाहिणीयं व्हाया जाव पायच्छित्ता हाया जाव बहूहि हाया जाव सरीरा हायाणं जाव सुहासण ० तइयज्झयणस्स उक्खेवओ सइयवग्गस्स निक्खेवओ तण से गए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव तं इक्छामि णं जाव पव्वइत्तए तं चैव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पश्वइस्ससि तं चैव सव्वं भणड़ जाव अत्थस्स तं यणि चणं चोट्स महासुमिणा वण्णओ तक्करे जाव गिद्धे विव आमसभक्खी तन्वं दूयं चंपं नयरिं । तत्थ णं तुम कण्णं अंगराय सल्लं नंदिराय करयल तहेव जाव समोसरह । उत्थं यं सोत्तिमहं नरं । तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुड करयल तहेब जाव समोसरह । पंचमं दूयं हथिसीसं नयरिं । तत्थ णं तुम दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । दुयं महुरं नयर । तत्थ णं तुम १३ १/१४/५३ ११२१६६; ११८११७६ १८।१६८ १।३।११ १।१६।८ २१११५६ २।३।१२ १।१६ १४३, १४४ १।१।१११ १११।१०७ १११८५२ १८२६ १२३३ १११।८१ १।२३१४ शाह ११११/२ १।१७।२२ ११२।२५ १११।२७ १।१६।२६४ १।१।१२४ १|१४|१८ १।१।२७ १८१७६ १।१।२७ १८७६ २ १/४६ २ १/६३ १।१६।१३४-१४१ ११११०४ १।१।१०६ १।१८।५१ कल्पसूत्र ४ १।२।११ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ धरं रायं करयल जाव समोसरह । सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं । तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । अट्रमं दुयं कोडिपणं नयरं। तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह । नवमं दूयं विराटं नार। तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव समोसरह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरेसु अणेगाइं रायहस्साइं जाव.समोसरह । तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्चं पि जाव संचिट्ठ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे० तत्थे जाव संजाय भए तयावर ईहापूह जाव सण्णिजाइसरणे तलवर जाव पभितओ तलवर जाव सत्थवाह तहत्ति जाव पडिसुणेति तहारूवेहिं जाव विपुलं तहेव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया तं चेव सर्व जाव अंतं तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ जाव अरहो अरिटुने मिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडाग पासइ २ त्ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंतं तिक्खुत्तो जाव एवं तिग जाव पहेसु तिग जाव बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे तुट्ठी वा जाव आणंदो तुभण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेश्य १६१६.१४५ ११४३५ १।१२।३१ १२१४।७७ १११६८ १८१८१ १११४१६५ १।५।६ ११५४१३ १२१२२१५ शा१३६,१३७ ११६।१३२-१३४ श१६३५ १।१२।१६ २१४१७६ ११११६० १६११६० १।२६ ओ० सू० ५२ ११११२६ १।१२०६ १८१६६,१०० २२११५१-५४ २१११३२-४४ १२।२५,२६ १११६१३२६ श१९३४ ११५।२६ १११६२६ १६४ १२।६४ १।१२।४३ १८१६६ ११११२६,१४४,६६ १।१।२१२ १।१९२६ ११११३३ १॥५॥५३ ११२।६३ १६१११०४ १।४।१४ Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभूयं तेसि जाव बहूणि थलय० थलय जाव दसद्धवण्णं थलय जाब मल्लेणं थावच्चापुत्ते जाव मुंडे थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा थेरा जाव आलिते दीम जाव वीईवइस्सइ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ दुरुति जाव कालं दुरूढा जान पाउन्भवंति दुइज्ज माणा जाव जेणेव दुइज्जमाणे जाव विहरइ देवकन्ना १/१६।३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ ११३/२४ दस मस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २१०११, २ दाणधम्मं च जाव विहरइ १८१४११५२ दारियं जाव भियायमाणि दास चेडियाहिं जाव गरहिज्ज माणी दाहिणभरहस्त जाव दिसं दिट्ठे जाव आरोग्ग दित्ते जाब विउलभत्तपाणे देवकन्ना वा जाव जारिसिया darभूयाए जाव निव्वत्तिए देवलगाओ जाव महाविदेहे देवाप्पिया जाव कालगए देवाप्पिया जाव जीवियफले देवाप्पिया जाव नाइ देवाप्पिया जाव पव्वतिए देवापिया जाव साहराहि देवाप्पिया जाव सुद्धे देवी जाव पंडुस्स १४ १।१६।१५५ ११७१६ ११८४६ ११८३१ १/८/३२ १११८६० 21515 १।१६०६४ १/८/१४७ १।१६।२६६ ११/२० १।२।७ ११२१७६ १८१२६ १।१७/१३ १।१६।३२३ १८१४ १।१६।३२१ १११६१३२० १८ १५४ १८८६,१११ ११८११२८ १।१६।२४ १।१६।३२३ ११८७६ १।१६।२६५• १११६/३४ १।१६।२४२ १११६२६ १।१६।३०१ ११११२२ ११८।७१ ११८१३० १/८/३० ११५१३० १/५/३४ १८१२ १११।१४६ सूर्य० २२७८ १/३/२४ २।२।१,२ ११८१४० १।१६।६२ १/८/१४६ १।१६।२६७ ११.२० वृत्ति १२६७ ११५११६ ११११०२ १११६/३२३ १५/६१ ११११४ |१|१|४|१|१६|३१६ १८८६ वृत्ति ११८१२६ १।१।२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० १५/१२३ १११६२६ १११६/२४० १११६२९ १ १६ २६२ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी जाव पउमनाभ देवी जाव साहिया देवेण वा जाव निग्गंथाओ देवेण वा जाव मल्लीए दोवस्त वग्गस्स उस्सेवयो aण कणग जाव परिभाएउं पण जाव सावएजस्त धण जाव सावज्जे घण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ धम्मं सोच्चा जं नवरं धम्मं सोच्चा जहा णं देवाणुप्पियाणं. अतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइता हिरणं बाद पव्यदया तहा णं अहं णो संचाएमि पव्वदए धम्मका भाणियच्चा धम्मोति वा जाव विजयस्स धोवस जाव आसयसि धोवेड जाव आसयइ पोवेद जान एड धोवेसि जाव चेएसि नंदीस अठ्ठाहियं करेति जाव पडिया नगरगिहाणि नगर जान सण्णिवेसाणं आहेबच्च जाव विहराहि नच्चासन्ते जाव पज्जुवासड़ नद्रा व जाव दिन्न० नमईए जाव अहिए नयर अनुपविसह नवमस्स उक्लेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ नवरं तस्स नाई० नाइ० १।१६।२३६ १।१६।२४० १५ ११८७५ १२६१२५ २२११ १११ १२ १।७।३४ १।१६.६ १।१३।१५ ११५८७ १२२४४५ १२५७८ ११२७५ २१/३५ २|१|३८ १।१६ ११९ १।१६।११५ १८१२२४ ११८६७ १।१।११५ १।१४।८५ १।१३।२० १।१७।१० १।१६।२१६ २२६१,२ ११७/२८, २६ १०५०२६:१७१६, ६,२२,२६,४२, १११५ ११, ११६०५०, ५४; १।१८,५१,५६ १२१४११६१।१५।१९ १।१६:२३३ १११६/२०८ उवा० २।४५ १२८७५ २११६ ११.६१ १।१।३१ २२११९१ १।१।३३ १।१।१०१ राय० सू० ६६५ १।५।६३ १।२६४ २।१।३४ २।११३४ १।१६ ११४ १११६ ११४ जंबू० वक्ष० ५ 215145 ओ० सू० ६० १|१|६६ ओ० सू० १ १२।१७/८ ११६२१५ २१२१,२ १७८,२५,२६ ११११८१ १।५।२० Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १७६ ११७६ १२।१२ १६१८१ १। ११ १।५।२० १।५।२० २१४३६ १।१४।३६ नाइ चउण्ह य कुल जाव विहराहि १७।२५ नाइ जाव आमंतेइ १।१४१५३ नाइ जाव नगरमहिलाओ १२११६ नाइ जाव परियणं १।१४।१६ नाइ जाव परियणेण शा४८ नाइ जाव परिबुडे १।१६।५० नाइ जाव संपरिवुडे १।१३।१५:१।१४।५३ नाम वा जाव परिभोग १।१६।६७ नाम जाव परिभोग १११४१३७ नासानीसासवायवोझ जाव हंसलक्खणं ११।१२८ निक्लेवओ २।४।६ निक्खेवओ अज्झयगस्स રારા निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स २।४18 निक्खेवओ दसमवग्गस्स २११०७ निक्खेवओ पढमज्झयणस्स २०३८ निक्खेकओ बिइयवग्गस्स २।।१० निग्गंथा जाव पडिसुणेति १।१६।२३ निगंथाणं जाव विहरित्तए शश१२४ निगंथी वा १११८१६१ निग्गंयो वा जाव पव्वइए श७२७,१११०१३,१११११३,५ निग्गंथे वा जाव पव्वइए १२।७६ निग्गंथो वा १।१७।२५,३६ निग्गंथी वा जाव पंचसु २१५।१४ निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ १।५।१२६ निद्वियं जाव विज्झायं श११८४ निप्पाणे जाव जीवविप्पजढे १११८१५४ नियग० १९७६ निव्वत्तियनामधेजे जाव चाउदंते १११।१६७ निवाघायंसि जाव परिवा निसंते जाव अब्भणु ण्णाया १।१४।५० निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमार रज्जे ठावेमि १२८८ निसीयइ जाव कुसलोदंतं १।१६।१६८ आयारचूला १५०२८ २।११४५ २।११४५ २।१२६३ २०१६६३ २।११४५ २॥१॥६३ शश२६ ११५११४ शश६८ श२।६८ १।२।६५ १।२।६८ २३६२४ ११२१७६ श११८३ ११२।३२ १श८१ ११११५६ राय० सू० ८०४ ११११०४ १८७ १११६१८७ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८।१७२ १११८१४६ १।१४।७३ १५१४१७७ १।१६।२८७ १८.१६७ १९।१६ १९१६ १११४।७३ १।१६।२८५ १३५११२७,१२८ ११५८३,८४ २१५.१,२ ११७३३ १।१६।२७६ २।२।१,२ १७२५६ १।१६।२७५ निस्संचारं जाव चिटुंति नीलुप्पल नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाय खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियब्वं पंचयण्णं जाव पूरियं पंचाण ब्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं पंडवा. पंथएणं जाव बिहरह पगइभद्दए जाव विणीए पच्चक्खाए जाव आलोइय० पच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पम्वइस्ससि पच्चप्पिणह जाव पच्च प्पिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पड़ागे जाव दिसोदिसिं पडिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल. पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुणेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्लेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कुवं पण्णत्ते जाव सग्गं ११२४५-४७ ११६१३१३ ११५४१२६ ११११२०६:११६।२४ १।१६।४६ १.१३।४२ वृत्ति; ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १॥५॥१२४ ओ०सू०११६ ११।२०६ १०१२०६ १११११११ १११७७ १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८१३६ १८।४७ ११५।५६ १।१६।२३ २।७।३२८1३;२०६३ २।१०।३ १।१६।२४४ १५।६० ११११२३ राय सू० ६६४ वृत्ति १११६१६२ १।८।२७ १।११३६ ११५।५२ १।५।११३ २।२।३ २।३ १।१६।२४३ ११५१५५ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।६२ १७.१५ पतिवया जाव अपासमाणी पत्तिए जाव सल्लइयपत इए पत्तिया जाव चिटुंति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्गहिए जाव परिवसित्तए परिणमंति तं चेव परिणममाणा जाव ववरोति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेरतेणं जाव चिटुंति परियागए जाव पासित्ता परियाणह जाव मत्थयंसि पल्लंसि जाव विहरंति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उपसंपज्जित्ता पवावेइ जाव जायामायाउत्तियं पसन्थदोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदसणसल्लेणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाणाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए अपामोक्खा जाव वाणियगा ० पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघद्राणाणि य जाव रयरेण गुंडणाणि पावयणं जाव पव्वइए पावयणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा १।१६।१७१ ११५१३३ १११५।१४ १।८।१३१ १।१२।१७ १११५१५ १२१३१३५ १।१४:५३ १।१३।३१ १३१७।२२ ११३।१६ १६११४८ १७।२० १।१६।२५६ १।१८१४४ १।१६।२५३ १॥५॥१०४,१०५ २१११३०,३१ १११११६२ १८३३ १।६।४ १।१।१८६ १११११८२ १८८१ ११८८३ १११११८६ शरा७३ १११२१३५ ११८६ ११श६७ ११.२०६ १।१६।५६ ११७११४ १११११२ १।१६।१४६ १२१२१४८ १।२१७६ ११८।१०७ १११२१६ १।१५।११ ११।१० १३१३१६० १।४।१६ श१७१२२ ११३१५ ११११४८ ११७११६ १।८।१६५ १।१८।४२ शमा१६५ १३०८३,८४ १११११५०,१५१ १११।१५० ११११६८,६६ १११२०६ १।१२१८१ १।११८१ ११८६६ १८६६ १.१.१५३ १२१२१०१,भ०६।१५०,१५१ १११११०१ १.११८६ भ० २१५२ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११३० १।१।१६ १६५।११० १२१२२०६ श२०४० १०२११२ १११११२ वृत्ति पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया २०१०११ पीढ़ ११।११७ पुच्छणाए जाव एमहालियं १११।१५४,१५५ पुढवि जाव पाओवगमणं ११५१८३ पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स १।२१५६,६४ पुप्फ जाव मल्लालंकार श२।१४ पुफिया जाव उवसोभेमाहा श१३११६ पुरापोराणं जाव पच्चणुब्भवमाणी १२१६१६२ पुरापोराण जाव विहरइ १।१६१११३ पुश्वभवपुच्छा एवं २।११५० पोखरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ १११३११५ पोसहसाल जाव पुव्वसंगइयं १।१६।२०१-२०३ पोसहसालाए जाव विहरइ १११३।१४ फलिया जाव उवसोभेमाणा १।११।४ फासुएस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं १२५२११४ फासुयं पीढ़ जाव विहरह ११।११३ बंधित्ता जाव रज्जू १११४१७७ बहिया जाव खणावेत्तए १११३११५ बहिया जाव विहरंति ११५।११८ वहिया जाव विहरित्तए १५।११७ बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे १।१६।६७ बहूई जाव पडिगयाई १११६।१८२ वहूणि गामाणि जाव गिहाई १।१६।१६६ बहहिं जाव चउत्थ विहरइ २५/३८ बहूसु जाव विहरेज्जाह शहा२० बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणति पंडुस्स जहा १।१६।२२३,२२४ बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगसमत्थे १।१६।३०८,३०६ बासष्ट्रिं जाव उत्तरइ १६१६१२८७ बासदि जाव उत्तिण्णा १।१६।२७ बिइयज्झयणस्स निक्लेवओ २॥१॥५५ बुज्झिहिइ जाव अतं २१३१४४ १२१६।१२ २।१।१५ रायसू० १७४ १।१६:२३७-२३६ १।११५३ १।११।२ १११११० १।५।११० १११४।७३ १११३३१५ १११११६६ १११३१६६ १।१४।४३ शमा१६१ ११८१५८ १२११६५ ११९२० श१६।२१३,२१४ ११११८४,८५ १४१६।२८५ १११६।२८५ २।१।४५ १।११२१२ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवओ जाव पवइत्तए भड० भवणवइ० तिरथयर० भविता जाव दोसवाई भविता जाय पव्वतए भविता जाय पयदस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणिषाओ जाव महाषोसस्स भारहाओ जाब हथिणावरं भावजाय चित्ते भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजाय भए भोया जाव संजायभवा भीया या भीया संजायभया भुंजावेति जा आपुच्छति ● भुतरागए जावसुभू भेसज्जेहिं जाव ते गच्छ भोगभोगाई जाव विहरद भोगभोगाई जाव विहरति भोगभोगाई जाव विहराहि विकपणा हि जाव उवर्णेति मकमज्मेणं जाव सयं मट्टियाए जब अविग्पेषं मट्टियावे जाव उपपतित्ता गणपणे तं चैव जाव पहायणिज्जे मत्ययडिए जाव पडिमाए मयूरपोगं जाव दुल्लग महार्थ० महत्वं जाव उपर्णेति महत्वं जान तित्ययराभिवेयं महत्वं जाय निक्मणाभिसेय महत्वं जाय परिच्छद २० १।१।११३ १८:२४ १२८३६ १।१४८२ १/८/२०४२।१।२७ १।१२/४० ११८१८६११६/३१० २|४|५ १।१६।२४० ११६११८ १।५।३५-३७ १।१२।३६ १११४/६९ ११६१२५, २७ १८७६ १/७२ ११८६६ १/१२/४ १।१६।२२ ११११६६ १।१६।१८३ १।१६।२०८ १।१६।२४७ १।१६/१६६ १२८१४३ ११६०४ १/१२/५ ११८१४१, ४२ १।३।२६ शाद१ १९६६४ १८२०५ ११५/६८ १।१७।१७ १।१।१०४ १२६५७ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण ११५८० १०१।१०४ १।१।१०१ १११११०१ ठाणं० २०३५५-३६२ १।१६।२५४ १८११७ वृति ११५१२१ १११११६० १।१।१६० १८७३ १११११६० ११८/६६ १।२।१४ ११५।११० १|१|१७ ११११३२ १०१।३२ ओ० सू० ५७ १।१६।२१५ ११५/६० १६६२४ १।१२/४ १२८४१ १।३।२७ शदाब १ १८८१ १।१।११६ १।१।११६ शाद२ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महत्वं जाव पाहू महत्यं जाव पाहुडं रायारिहं महत्वं जाव रायाभिसेय महरालाउयं जाव नेहावागाद माणुसगाई जाव विहरइ माया इ वा जाव सुहा मासाणं जाव दारियं माहव जाद वणीमगाण माहणी जाव निसिरद मित मित्त जाव चउत्थ मित्त जाव बहवे मित्रा जाव संपरिवुडा मित्तनाइ गणनायग जाव सद्धि महत्वले जाव महा १८१६ मध्याह्य जाव विहरद २|१|१० महालियं जावबंधिता अत्याह जान उदगंसि १ । १४७७ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि १।१।११० महिदीए जाव महासोक्से मित्तपक्खं जाव भरहो मुडावियं जाव सयमेव मुंडे जाव पव्वयाहि मुछिए जाव अभोववणे मेहे जाव सवणाए य गं जाव परमसुइभूए रज्जद जाव नो विष्पविषाय० रज्जं च जाव अंतेउरं रज्जे जाव अंतेउरे रज्जे य जाव अंतेउरे रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ रज्जेय जावियलेड रणो जायतहति रणो वा जाव एरिसए रयण जाव आभावी २१ १।१७/१६ १।१३।१५ १.५।१२:१।१२।३७ १।१।१३ २०१६/० ११५ १६ રાજા १।१६।१२४ १।१४:३६ १।१६/२४ १७।२२ १.७/१० ११७/३८ १/५/२० ११११८१ १।१।११८ १।१।१९१ १।१९।१४ ११६२६ १।१।१५४ १।१२।२२ १०१९०४६ PIREIRE १।१४।६० १८१५१:१।१६।१८७१।१२।२६ १/१४/२२ १।१४/२२ १।१६।३०३ १२६१५३ १।१८५६ १५:२० १५:२० १।१०११६ १।५।३४ राय० सू० द १११४।७५ १|१|१०६ सू०२।२/७३ १।१६३८ १।११६७ सूय० २२/७ १।२।२० आधारचूला १।१६ १।१६।१४ १२१३८१ ११७६ १७२५.११ १।२।१२ १०१२८१ वृत्ति १।१।१४९ १।१।१०१ १।१२।२६ १।१।१०६ १।१।८१ १।१७।२५ १।१।१६ १।१४।२१ १।१।१६ १६१४१२१ १।१४/२१ १२६११०४ १२८१७ ११११६१: १।१८१५१ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रहमया १११६.१४७ राईसर जाव गहाई १।१४।४३ राईसर जाव विहरइ १८।१४६ रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा श१४१५६ रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया श८।१३६ रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी १२।५७ रूवेण य जाव उक्किटुसरीरा १।१६।२०० रूवेण य जाव लावण्णेण १।१६।१६० रूवेण य जाव सरीरा १६१४।११ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण १.१८।१३ रोयमाणि जाव नावयक्खसि १।४० रोयमाणे जाव विलवमाणे १२।३४ रोयमाणे जाव विलवमाणे १।६।४७ लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए १।१७।१३ लवण जाव ओगाहित्तए ११६६ लवण जाव ओगाहेह १५ लवणसमुद्दे जाव एडेमि शा२० लोइयाई जाव विगयसोए ११८।५७ वंदामो जाव पज्जुवासामो १११३।३८ वंदित्तए जाव पज्जवासित्तए २।१।१२ वण्णहेडं वा जाव आहारेइ १११८१४८ वण्णेणं जाव अहिए ११०१४ वण्णणं जाव फासेणं १।१२।३ वत्थ जाव पडिविसज्जेइ १२१४/१६ वत्थ जाव सम्माणेत्ता १।१६:५४ वत्थस्स जाव सुद्धेण ११५४६१ वत्थे जाव तिसं १७.३३ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि १६१२१४५ वयासी जाव तुसिणीए १११६४१६,१७ बरतरुणी जाव सुरूवा १११३७ ववरोवेह जाव आभागी १११८१५३ वाइय जाव रवेणं १शमा२०२ वाणियगाणं जाव परियणा शक्षा६७ बाबाह वा जाव छविच्छेयं १।४।२० १८।५७ ११८०५८ १८।१४० १।१४।५६ ओ० सू०६७ ११।१६१ शमा ११८३८ ११८/१० १११८18 १४६४० १।२।२६ १।९।४० १।१७।१२ ११।४ १।६।४ ११६१६ ११९०४८ ओ० सू० ५२ रायः सू० ६ वृत्ति १।१८६१ १११००२ १११२११२ १८११६० ११७६ ११५॥६१ ११७६ ११५१० १३१६१४,१५ १११११३४ श१८५२ १.११११८ शक्षा६६ १।४।११ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणाए जाव धम्माणओगचिताए १३१२१८६ वाराओ तं चेव जाव नियघरं १६।४ वावीस य जाव विहरेज्जाह १९२० वासाई जाव दति १।२।१२ वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए २१६६१७७ वासुदेवे धणुं परामुसइ वेढो १।१६।२५८ वासे जाव असीइंच सयसहस्सा दल इत्तए शक्षा१६४ विउला पगाढा जाव दुरहियासा १।१६।४० विगोवइत्ता जाव पब्वइए १।१६।२६ विजया जाव अवक्कमामो १।२।४७ विणिम्मुयमाणी २ एवं श५।३३ वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता १।१३१३० सई वा जाव अलभमाणा १९२२,२४ सई वा जाव जेणेव १।६।२३ संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं शा८४ संकिए जाव कलुससमावणे १३।२४ संगयगयहसिय० ११३१८ संचाएइ जाव वित्तिए संचाएंति० करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति २४।१४,१५ संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ १८८२ संता जाव भावा १२१२१३२ संताणं जाव सब्भूयाणं १।१२।२६ संते जाव निविणे १८७६ संते जाव भावे १।१२।२६ संपरिबुडे एवं जाव विहरइ १०८।१४७ संभग्गं जाव पासित्ता १।१६।२६३ संभग्गं जाव सण्णिवइया १३१६१२७८ संभागं तोरण जाव पासह १।१६।२७८ संसारभउविम्गा जाव पब्वइत्तए १.१४१५३ संसारभउब्विग्गे जाव पव्वयामि १३५१ सकोरेट जाव सेयवर० शपा५७ सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवरचामराहि महया १८११६१ सकोरेंट सेयचामर हयगयरहमहयाभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता १।१६।१५३ १।१।१५३ १२३४ १९२० १।२।१२ १२१६१७६ वृत्ति ११८१६४ १११११६२ ओ० सू० ५२ ११२।४४ १।१।१४८ १।१३।२४ १।६।२१ १६२१ ११८८१ ११३।२१ १११११३४ ११५११७ ११४:११,१२ १८८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १२४।१२ १।१२।१६ १२१६११७८ १२१६।२६२ १११६१२६२ १२१६।२६२ १११११४५ १११११४५ ११८५७ १८५७ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउस सिरी सज्जइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण जाव गहिया समद्ध जाव पहरणा सणद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तद्रु जाव उप्पयद सततलाई जान अरहन्तगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्सेय एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अजम्मरस सत्यवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधा सफरिसर सद्दहति जाव रोएंति सहावे जाय जेणेव सहावे जाव तं सदावेद जान तब पहारेत्य सदावेद जाव पहारेत्य सहावेह जाव सहावेति सद्देणं जाव अम्हे गंधे जाव भुजमाणे समणस्स जाव पव्वइस ए समणस्स जान पयस्स समणाउसो जाय पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाब माणूस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं सगणाणं जाव बीईवइस्सइ सममाणं जाव साबियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जड समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २४ १।१६।१५७ १।५।२५ १८२०३ १।१२६४ १।१५/१६ १।१६।२४८ |१|१६|१३४; १।१८/३५ १।१६।२५१ १।१६:२३६. १२६।३७ ११८२७७ २७ १,२ ११११६ १।१६०३१ ४१।१७/२ १५२६ १।१५।१३ १८१६,१०० ११७१० १२६/११२,११३ १८१५५,१५६ १।१:१३९ १:३।१९ १।१।१०७ १|१|१०८, ११२ ११७/३५,४३ १|१०|५; १।१८/४८ १।१९।४२,४७ १।६।५३ ११५।११८ १।२३३३४ १२/१७/३६ १/८/२०० १।१६।१४० १८५७ १।५।२४ १२८७६ १२१५६ १/३/२४ १२।३२ ११२/३२ १२/३२ १।२/३२ १२६ ३६ १२८/७३ २।२।१,२ ओ० सू० ८२ १।१६:३१ १।१७/२२ ओ० सू० १५ १।१।१०१ ११८६२,६३ 81019,0,€ १८६६,१०० ११८१६,१०० १।१।१३८ १२३१६ १।१।१०४ १।१।१०६ ११७/२७ १।३।२४ tien १।५।११७ १२२७६ १।२२७६ १८/१९६, १६७ ओ० सू० ६३ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाणा जाव चिट्ठति समाणी जाव विहरितए समोवइए जान निसीइसा समोसरणं सम्मज्जिवलितं जाव सुगंध वरगंधियं सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलिये सम्माड जान पडिविसज्जेइ सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्ख इ सरिसगं जाव गुणोवत्रेयं सरिसियाओ जाव सगणस्स पव्वइस्ससि सब्वओ जाय करेमाणा सव्वं तं चैव आभरणं सम्बन्ईए जान निग्धोसनाइयरवेणं सासु जाव रज्जपुराचितए सहइ बाब अहियासेद सहजायया जाय समेच्या सहियाणं जाव पुण्वरता० साइमं जाव परिभाएमाणी सामदंड० साल पूर्ण जाव नेहावगाढेणं सालय जान आहारेसि सालइयं जाव गोबेड सालइयं जाव नेहावगाढं सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स सालइयस्स जाव एगंभि साहरह जब बोलत सिंगारा जाव कुसला सिंगारागारनारूबेसाओ जाव कुसलाओ सिंघाडग० सिंघाड जान पहे तिचा जाब बहुजणो सिघाडा जान महया सिक्लावइए जान पडिवण्ण सिम्झिहिर जान मंत २५ १।१५।१० १२ १७ १।१६:२२७,२२८ १२५६५ १।१।३३ १।३।६ ११६.३०० १।१।१५० ११६१२० ११.१०६ १।१६।२३ १२५/३०-३२ १/१/३३ १।१४।५६ १।११:३ ११०३१०,११ १।५।११८ १०१६/६३ १८:४५ १|१४|४ १/१६/२५,२६ १।१६०१६ १।१६०८ १०१६ १६,१९,२० १।१६।२२ १।१६ १९ १५१२ १।१।१३६ १।१:१३५ १।५।५३ १।३।३३:१/१३/२६; १।१६।१५३:१।१८१६ ११७१४१; १८६/२००; १।१३ २६ १।१।१५ १.१३/३६ १।१५।२१ १४१५६ १।२।१७ १११६१६७,११८ १ १/४ '१।१।२२ १।११२२ १।१४।१६ १।१।१४६ ११६१४१ १११११०८ १।१६।२३ १०१।१४५-१४० ओ० सू० ६७ १।१४५६ १।१।१६ १।१११५ १२३४६,७ १।३।७ १।१६/६२ १११।१६ १/१६/५ १११६/१६ १।१६।८ १/१६/८ १११६१८ १।१६।१६ १८४८ १।१।१३४ १।१।१३४ १:१।३३ १।१।३३ १।५१५३ ओ० सू० ५२ उवा० ११४५ १।१।२१२ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।४६ ११५१८४ १८.७४ ११८७७,७८ शक्षा६७ श१८३५ १।९।३७ श१६।२१५ १११६।२२१ १४१६२२६ ११५८ १।१५।१३ १।८।२६ सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण. सिद्धे जाव पहीणे सीलब्वय जाव न परिच्चयसि सीलब्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीहनाय जाव रवेणं सोहनाय जाव समुद्दरवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाव लभामि सुई वा जाव उवल द्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे सुभरूवत्ताए सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ सुमिणा जाव भुज्जो २ अणुवहति सुरं च जाब पसन्न सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ सुरूवा जाव वामहत्थेणं सुमाल निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जाब गए से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा पब्वइत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोगियासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स हए जाव पडिसेहिए हट्ट जाव हियया हट्ठतु? जाव पच्चप्पिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हट्टतुटु जाव हियए हत्थाओ जाव पडिनिज्जाएज्जासि हत्थिखंध जाव परिवुडे हत्थिखंधवरगए जाव सेयवरचामराहिं हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए १११२१२ ठाणं ११२४६ शपा७४ ११८।७४,७५ ओ०सू० ५२ श८।६७ ११२१२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६२१२ ओ०० १४३ १११५।११ १११:३२ १।१०२६ १२१६११४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६।३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ ११८५७ १।१८।३३ १११६१३१६ १।१६।१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१६।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १९१८१६१ १९१८।४८ १।१६।२५७ २।१२०,२१,२४,२५ ११११२३ १५१३ १।१।२०७१।१६३१३५ ११७।६ १४१६४१४६ ११८१६३ ११६।२०३ १।१।१८५ १११।१०६ १।१।१०६ शबा१६५ ११।१६ १६१६१६,२२ १६१।२६ १११११६ ११६ १११६३१४६ ११८५७ १४१६१२०० १११११५७ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिबुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवुडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगड्या ह्य जाव सेणं यमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमयि जाव पडिसे हित्ता हयमहिय जाव पडिसे हिया हयमयि जाव पडिसे हेइ हयमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियताए हिरण्यं जाव वइर हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे होलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवति होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्टा जाव विहरइ १११११६८ १५१११५८ ११६।२४८ १११६११३६ १११६१५६ १।११६६ १।१६।३०३ १११६।१७४ ११६१३८ श८१६२ १।१६।२८५ श८१६६,१११६१२५६ १११६१२८६ ११८१४२ १४१८१२४ १।१८।४१ १११।१६१ १११।१२६ १।१३।३८ १११७११६ १११७११८ १४।१८ ११।१२५ १।१६।११८ १३१६।११७ १११११५७ १११११५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ ११८५७ १।११६७ ११८५७ १८५७ ११।१५ शा५७ १८।१६५ १८।१६५ १८.१६५ ११८।१६५ १।८।१६५ १८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १११७:१६ १।१७।१४ १३।२४ १।३।२४ १।६।११७ ११३।२४ १११११७ उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवणे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७१७ ५।२,२१ ७।१० ३३२०,२१ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ७१२६ २१२२ ११६६ ६।२८ ६.२८ २१३,४ ११११-१३ ओ०सू० १४१ ३।४२ ३२४२ ६१२० ना० १।१।१६६ ११६५ अम्गिमित्ताए वा जाव विहाइ अज्ज जाव ववरोविज्जसि ३।४४ अज्भवसाणे जाव खओवसमेणं ८.३७ अट्टेहि य जाव वागरणेहि ७१४८ अट्टेहि य जाव निप्पट्ट ६.२८ अड़ढे चत्तारि ६।३,४;१०१३,४ अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठहिरण को. डीओ सकसाओ निहाणपउत्ताओ अहि वड्डि अहि ससाओ पवि अद्रवया दस गो साहस्सिएग वएणं अड्ढे जाव अपरिभूए १।११ अणारिए जहा चुलणोपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ ५.४२ अणारिए जाव समाचरति ३।४४,४१४२ अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ६२१,२२,२३,७१२३,२४ अण्णदा कदाइ बह्यिा जाव विहर इ १९५४ अपच्छिम जाव अणवखमाणे ११७२ अपच्छिम जाव भत्तपाण ८।४६ अपच्छिम जाव झूसियस्स ८।४६ अपच्छिम जाव वागरित्तए ८.४६ अब्भणुण्णाए तं चेव सब्बं कहेइ जाव ११७६ अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे ११५५ अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ८.१६ अभिगयजीवेजीणं जाव अणइक्कमणिज्जेणं ११३१ अभीए जाब विहरइ २१२६,३५; ३१२२ अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं ।२४ अभीयं जाव पासई २।४०,३१२३ अभीयं जाव विहरमाणं २।२८,३० अवहरइ वा जाव परिवेइ अस्मिणी भारिया । सामी सामासढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ ६।५-१५ असोगवणिया जाव विहरसि ७१७ अहीण जाव सुरूवा ११४ अहीण जाव सुरूवाओ ८६ ८।४६ १७१-७८ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ २।२३ २१२३ २।२४ २।२४ ७२५ २१५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ س आओसेसि वा जाव ववरोवेसि ७.२६ ७२५ आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २०१६ आलोइज्जइ जाव तवोकम्म ११७८ ठा० ३१३४८ आलोइज्जइ जाव पडिवज्जिज्जइ ११७८ वृत्ति अ०३ आलोएइ जाव जहारिहं ८५० वृति अ० ३ आलोएइ जाव पडिवज्जइ ३१४६ वृत्ति अ० ३ आलोएयब्वं जाव पडिवज्जेयव्वं ११८० वृत्ति अ० ३ आलोएह जाव पडिवज्जेह १७८ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव अहारिहं ८/४६ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव तवोकम्म ११७७ वत्ति अ०३ आलोएहि नाव पडिवज्जाहि १३१८,३।४५८४६ वत्ति अ०३ इ? जाव पंचविहे १।१४ ओ० सू० १५ इड्डी जाव अभिस मण्णागए २२४० २४० इमेणं जाव धमणिसंतए १२६५ ११६४ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ३४२ ११७३ उक्खेवो ३११४।१५।१६।१७।१८।१९।११०११ २१ उज्जलं जाव अहियासेइ २।३३,३९,३१२६ उज्जलं जाव अहियासेमि ३१४४ उज्जलं जाव दुरहियामं २।२७ उहाणे इ वा जाव अणियता ६२१,२३ उठाणे इ वा जाब नियता ६।२१,२३,७।२६ ६।२० उदाणे इ वा जाव परक्कम ६।२०,२३;७।२६ उढाणे इ वा जाव परिसक्कार० ७.२४ ६।२० उहाणणं जाव परक्कमेणं ६।२३ ६।२० उदाणेणं जाव पूरिसक्कारपरक्कमेणं ६॥२१७२३ ६२० उद्धाविए जहा चुलणी पिया तहेव सव्वं भाणियब्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहल सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चलणीपिया बत्तन्वया सव्वा नवरं अरुणच्चा विमाणे उबवातो जाव महाविदेहे ३१४२-५२ उद्धाविए जहा सुरादेवो। तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ । सेसं जहा चलणीपियस्स जाव सोहम्मे ५।४२-५२ ३१४२-५२ वृत्ति वृत्ति ६१२० ६२० ७७५-८८ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ७।११,१८ ७/१० ८२७ ८.१८ ३१५०-५२ पा३५ पा१६ ८.१८ २१५३-५५ ११६४ ११६२ ६।३५.४१ २१५०-५६ ३१२७-३८ ३१४४ १९६६,८१३७ उप्पण्णणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्च० उरालाइं जाव भुंजमाणे उरालाइं जाव विहरित्तए उरालेणं जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाब किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आणंदो तहेव अपच्छिम० एक्कारसमजाव आराहेइ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आईचइ । अहं तं उज्जलं जाद अहियासेमि एवं दक्षिणेणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्कक्के पंच सोल्लया ! तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्केके पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिग्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ कज्जेसु य आघुच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपणत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स निरवसेस जाव सोहम्मे कल्लं जाव' जलते ४।४१ ४।३६ ४/२२-३८ ३।२२-३८ २।४५ ८।४२ १६५६ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १११३ २।१८,१६ ওও ७७ ७।२२ ४।४५-५२ १५७,७११२ ३१४५.५२ ओ० सू० २२ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४५ १६५७ २१२२ २।२२,२३ २३०,३१ २।३-६ ४.३६ १२११-१४ वृत्ति २।३.६ ८.१८ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि बिहरइ कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वभिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्व्या दसगोसाहम्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केगटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचइ गिहाओ तहेव जाव कणीय जाव आईचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएत्ता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चुल्लसया गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुबासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ७१४६ ७.३४ ३१४२ ३।४२ ৮s ११४८ ३१४२ ३२४२ ३१४२ ११७६ २०१८ ३१४१ ३१२१ १७६,७७ ६१८ २४४ ३।४२ ३।२७-३८ ३२२१-२६ ५५२ २।५५,५६ ४।३-६ भ० १२११ २।४३ ८।१०-१५ है।१६,१७ १११६-२४ २११६,१७ Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाया जाव पहिलामाथी जाव पज्जुवास जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए जेल जाव कणीयसं जान आईच ठावेता जाव विहरित ए । संसद जाव पज्जुवास णमंसित्ता जाव पज्जुवास पाइरे जाव पंढलियडा हाए जाव अप्पमहग्वा० हाए जाव पायच्छित्ते हाए सुद्धप्यावेस अप्प० पहावा जाव पार्याच्छता तं मित्त जाव विउलेणं पुप्फ ५ सक्कारेइ सम्माणे २ ला तमेव मित्त जान पुरओ तच्च पितहेब भगद जाव वयरोबिज्जसि तत्थ णं वाणारसीए चुलणीपिया नाम गाहावई परिवसई अड्डे सामा भारिया अट्ठ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ अ वडि० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ नया सगोसाहस्सिएवं वएणं जहा आनंदो ईसर जान सब्बज्जवालए यानि होत्या तब जाव कणीय तितो जाय बंद तीसे य जाव धम्म हा सम्मत्ता तुमं जाव ववरोविज्जसि दुहट्ट जाव वक्रोविज्ज सि देवराया जाव सवकसि देवानुप्पिए समणे भगवं महावोरे जाव समोस देवाविया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस जाव महावीरस्स नाममुर्गे च तव जाव परिगए . ३२ १५६ ७१४ ७/५० ४/४२ ११५७ १/२ ७। १५ ७।३५ १।५७ ७। १५ ११२० ७३५ ११५७ ५२४१ ३।३-६ ३।४५ ७३४ २०४४ ३।४४ ७७५ २२४० ७।३१ ७१४६ ७५० ७५१ ६।२८ १.५५ १।१६ राय० सू० १२ २।४२ १.५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १.२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० १.५७ ५.४० २।३-६ ३२४४ १/२० २।११ २२२ २२२ वृत्ति ११४५ ७४४ ७१५० ७ ५० ६:२०-२४ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८५ वृत्ति ३१२१-३७ ३।२१-३८ २।२२ २।२२ ११६६ श६२,६३ निक्खेवो २।५७,३१५३:४।५३,५१५४% ६१४१७८६८।५४६२७ निक्खेवो पढमस्स १८५ नोमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केके सत्त मंसमोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि श२१-३७ नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसरगं करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २त्ता जाव आइंचइ ७।५७-७३ नीलुप्पल जाव असि २१४५,३।२१,४४,४२१ नीलुप्पल जाव असिणा रा२२,२६ पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं १९७६ पढम अहामुत्तं जाव एक्कारस वि .३३,३४ पढम उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाद एक्कारस वि ३३४८,४६ पाउणित्ता जाव सोहम्मे १३५३ पाडिहारिएण जाव उवनिमंतिस्सामि ७.११ पावयणं जाव ज हेयं ७।३७ पीढ जाव ओगिरिहत्ता ७५२ पीढ़ जाव संधारएणं ७१५१ पीढ जाव संथारयं ७११८ पीढ-फलग जाव उवनिमतेत्तए ७११८ पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सलद्धे २०४० पुत्तं जाव आइंचइ ७७८ पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया धन्ना वि पडिभाइ जाव कणीयसं ४।४४ पुवरत्ता जाव धम्मजागरियं ११६५ पुन्वरतावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७.५४ पोसहिए. फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव मिहिधम्म पडिवज्ज इ जहा कामदेवो तहा जेपत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपज्जित्ताणं श६२-६३ ११८४ ११४५ श२३ १।४५ २४५ ११४५ ११४५ २१४० ३१४२ ३.४४ ११५७ २०१८ ना० ११११५३ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१५-२५ ७.१६ २।४० ३।१६ २१५५ १४५७ २।५-१६,५०-५५ ११४५ १९४५ १९६० १२६० ११८४ १६५७ २०१८ १२३ ७/७५ सू० ५२ वृत्ति ८२७ ८।२७ विहरइ । नवरं निरुवसगो एक्कारस्स वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियवाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे फलग जाव ओगिण्हित्ता फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए बंभयारी समणस्स बहूहिं जाव भावेत्ता बहूणं राईसर जहा चितिथं जाव विहरित्तए बहूहिं जाव भावेमाणस्स भवित्ता जाव अहं भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अज्झोबवण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकमाणी महइ जाव धम्मकहा समत्ता महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो तहेव मारणंतिय जाव कालं मित्त जाव जेट्टपुत्तं मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहुम्माय जाव एवं वयासी तहेव जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्थवाहाणं राईसर जाव सयस्स लढे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ! धम्मकहा । वदणिज्जे जाव पन्जुवास गिज्जे वंदामि जाव पज्जुवासामि ७।३७ ७७८ ७१३७ का२० ८।३८ ८।४६ ७१६ २।४२ २।४३,७:१५ १११७७११२ २।११ १।१७ श२० ओ० सू०१६-२२ ८.३८-४० ८।२७-२६ ११५७ श५७ ११५७ ओ० सू० ५२ ११२३,५३ ८१४६ बा२७-२६ ११२३ १११३ ११५७ २१४३,४४ ६।२६,२७ ७१० ७११५ ओ० सू०२ ओ० सू० ५२ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवासाहि ११४५:७।३१ ओ० सू० ५२ वंदिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि ७११ ओ० सू० ५२ वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि ७।१० ओ० सू० ५२ वयासी जाव उववज्जिहिसि ८४६ ८.४१ वाताहतं वा जाव परिवेइ ७१२६ ७२५ विणस्स माणे जाव विलुप्पमाणे ७.४७,४६ विहरइ । तए गं २१५१-५४ ११६२-६५ वीइक्ताई तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ । धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियाग नाणत अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ६।१८-२६ २११८,१६,५०-५६ वीइक्कता एवं तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णत्ति पा२५,२६ २०१८,१६ संचाएइ जाव सणियं २१३४ २१२८ संताणं जाव भावाणं १७८ १७८ संतेहिं जाव वागरित्तए ८.४६ ८।४६ संतेहिं जाव वागरिया ८.४६ ८.४६ सखिखिणियाई जाव परिहिए २१४० सद्दहामि णं जाव से जहेयं १२३ रा० सू० ६६५ सद्दालपुत्ता तं चेव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि ७१७ ७।१०,११ समएणं अज्जसहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुबासमाणे ११३-५ रा० सू० ६८६; ओ० स० ८२,८३ समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि १।२० ओ० सू० ५२ समणोवासाए जाव अहियासेइ ५।३८ २०२७ समणोवासा जाव विहरइ ४।४०,५।३८ ३१२२ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया जाव न भंजेसि ३१४४,७७५ २१२२ समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३२१ २२२२ समणोवासया ! जाव न भंजेसि २।३४;५।२१,३६ २।२२ समणोवासया ! तं चेव भणइ ७७७ ७७४ समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ ३१२३,२४ ३१२१,२२ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३।२३-२५ ७.१० ३१४४ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३६ २०२२ ७७८ ३.४२ श१७-२३,५४-६० वृत्ति २।२७ २२७ भ० ३१०२ २१७-१६ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि ३६४१ समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भंजेसि ॥२८ समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चितेइ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव सावयधम्म पडिबज्जइ । साचेव वत्तव्बया जाव जेट्टपुत्तं २१७-१६ सहइ जाव अहियासेइ २।२७ सहति जाव अहियाति २०४६ सहितए जाव अहिया सित्तए २०४६ साइमं जहा पुरणो जाव जेट्टपुत्तं - १५७ सामी समोसढे । चुलणी पिया वि जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए ३१७-१६ सामी समोसहे जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्ति ५॥७-१६ सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जद्द । सा सव्वेव वत्तब्बया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ ६१७-१७ साहस्सीण जाव अधणेसि २१४० सिंघाडग जाव पहेम ५१३६ सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए ५१४२ सीलब्बय-गुणेहिं जाव भावेत्ता ८.५३ सील जाव भावमाणस्स सीलव्वय जाव भावेमाणस्स बा२५ सीलाई जाव न भंजेसि ४।२१ सीलाई जाव पोसहोववासाई २०२२ सीलाई वयाई न छई सि तो जीवियाओ रा२४ सुक्के जाव किसे ११६४ सुद्धप्पावेसाईजाव अप्पमहरघा ७.१५,३५ सुरादेवे गाहावइ अड्ढे छ हिरण्णकोडोओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएण २१७-१६ २१७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५०३६ ११८४ ११५७ ११५७ ७१५४ २१२२ २।२२ २।२२ भ० २०६४ ११४६ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३-१६ १।११-१४:२१७-१६ २।३६,३७ २३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडि बज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ठ जाब एवं वयासी हट्ठत? जाब गिहिधम्म हट्टतुट्ट जाव समण हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियए जहा आणदो तहा गिहिधम्म पडि दज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्टतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेइ, २ सा एवं बयासी खिप्पामेव लहकरण जाव पज्जुवासइ पा२६,३० ११२३ ११५१,५२ २।४८ १७४८१४८ ८।२७,२८ ओ० सू० ८० ११२३,२४ ११२३ १२३ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्टा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छ जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७३७ ७।२६ २१४० ओ० सू० ८० भ० ६१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ ७.५० अंतगडदसाओ अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाब इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ८२० ६५२ ३१२० ८७ ना० १।५३५ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६२ ३१२३ ३१८६ ३।१०२ ३१७४ ५।११ ८८ ६१६५ १११६ ३।१०१ १।१४ ३११०१ १११४ ६७६ ६५५५ ३१२६,३० अणुत्तरे जाव केवल अतुरियं जाव अडंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे जाव पव्वाहि अरिटुनेमिस्स जाव पन्वइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि० आपुच्छामि देवाणुप्पियाणं आसुरुत्ते जाव सिद्धे आहेवच्चं जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ता ईसर जाव सत्थवाहाणं उच्च जाव अडई उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाव अडामो उच्च जाव पडिलाभेइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर उम्मुक्क जाव अणुप्पत्ते उरालेणं जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदंसेइ उवागच्छित्ता जाव बंद ओहय जाव झियाइ ओहय जाव झियायइ करयल करेइ जहा गोयमसामी जाव अडइ काएणं जाव दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहियव्वा कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं वृत्ति भ०२।१०८ उवा०२१२२ ३१८६ ३.७० ३७६ ठा० ७११३ नाभ ११११११४ ना०श८७ ३८६-६२ ना० १शश६ ३१८७,८८ ना० ११५६ भ० २।१०८ भ०२।१०६ ३१२४ २१२४ ३१२३ ३१२४,२५ ना० १११६६ ना० १११।१६२ २२६ ना० ११०२० भ० २०६४ ६६५७ ६८० ३१२८,२६ ३.६१ ३३९० ६।५२ ३१५० ८।१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३२४३ ५।२२,६१३५,४१ ६५४ ३२८८ ३१७६ १११६ દાદ ३४३ ना० ११॥३४ ना० १११।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १११११०६ रायः सू० ६८ ५३१ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चस्थ जाय भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे उत्थस्स वग्गस्स निक्खेवम्रो घटुंट्टेणं जाव विहरति जद उसे अट्टमस्स जस्स उस्लेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अद्रुमस्स भग्गस्स उनसेवओ जाव दस अ णं मंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वग्गस्स उनसेवओ जान तेरस जई तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दो चस्स वगरस उक्थेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेलिस्स अट्टमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसेइ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव संलेहणाकालं हाए जाव विभूसिए व्हाया जाय पाययिता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे व धम्मकहा तीसे व धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सोहं सुमिणे नगंसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडिए नवमस्स उक्लेवओ निग्गया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महम्बलस्स जाव तमाणाए वहा जाव संजमह ३६ चा३३ १२१ ४।७ ३:२१ ३.१७ ६१.२ ८०१७,१८ ७३ ७१.२ ३।१ 5188 २१,२ ३२४७-४९ ६५७ ३।२२ ६१५३ ८१३६ ३।४४ ३।३६ શ ३६२ ६१५०, ८६ ३२६५ ३।११६ ६/३५ ३।२२ ३।११२ १२ ३२७८-८५ ५।३१ ५।३१ १।२५ ३:२० ३।३ ११५.६ १।५, ६ १७ १।५, ६ १५. ११७ १५.६ ना० २।१२५३-५८ भ० २।११० भ० २।१०७ ६०५३ ८।१५ ओ० सू० ७० ओ० सू० २० १११६,२० राय० सू० ६१३ ना० १।१।१०० वृत्ति १।१७ ओ० सू० ५२ भ० २१०७ ३/३ ना० १।११५ भ०११ । १६० ना० १।१।११५-१५१ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६४ ५८ ५२८ ८६ ६५१ ३।१०४ ३।३० ३१७७ ३।२६,२७ ६१९४ रायसू० ६६३ ना० १११११५० ८१८ ना० ११११०१ ३।९५ ३१२२,२३ ना० १११११४ ३१२४,२५ ना० १११६४ ५।१२ ५.१२ ५।१४ ५।१३ ६।२८ नेरइय जाव उववज्जति पउमावईए य धम्मकहा पव्वावेइ जाव संजमियब्वं पारेइ जाव आराहिया पाक्यणं जाव अब्भुट्टेमि पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुयाहिं अणु लोमाहि जाव आघवित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोसढे विहरइ भूतं जाव पव्वइस्संति भूतं वा जाव पव्वइस्सति मालागारे जाव घाएमाणे मासियाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाब सिद्ध मुडा जाव पव्वइया मुंडा जाव पव्वयामि मुडे जाव पव्वइए मुंडे जाव पव्वइत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सइ रज्जे य जाद अंतेउरे रूवेणं जाव लावण्णेणं लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठवेंति विण्णवणाहि जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरित्तए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छ?स्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाब विहरइ सरिसया जाव नलकूबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा ना० १११८४ ३।२० ३१२० ३।२० ३१२० ३२० ना० १११११६ श२४ ३१३०,५।११ ५।२१,२२ ६१५३ ५।१६ ३१५० ५।११ ३१५७ ३१३१ ६.४५ ६।८४ ८.१४ ३३१३ ६.१०२ ना० १।१६।१३३ मा१४ श२४ ४१७ ३३२० ना० १।१० ३११६ ना० १२१२६० ३।१२ ३१३० ३३१० ५।१४ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥२८ ३।६२ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाब महापहपहेसु सिद्धे जाव पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वत्रियकुले ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० १।१६६ ३।६३-७३ ६।५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७:११०-११३ ना० ११०१०१ ओ०सू०२० ३२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१ वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकं खति ३२४ ३१२२ इमासि जाव साहस्सीणं ३१५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३२३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३१३१ उच्च जाव अडमाणे ३१२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठइ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २०६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ एवं जाव सोणियत्ताए ३२३४ ३।३१ एवामेव ३३६-४४,४६,४७,४६,५० ३।३१ गोयमे जाव एवं १।१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ श जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३२५२ भ०२।६४; मा०१॥श२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पब्वयामि । Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ०६।३३,११,११ना० १११,११५ ना० ११११९३ जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ । मुच्छिया । वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाएइ जहा यावच्चापुत्तस्स जियसत्तुं आपुच्चइ। छत्त चामराओ । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेति जहा थाबच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पब्वइए अणगारे जाए--इरियासमिए जाव गुत्त बंभयारी ३।११-२१ जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चिट्ठइ ३२५१ तरुणिया एवामेव ३१४८ बिलामिव जाव आहारेइ ३२५७ मुंडावली इ वा मुंडे जाव पवइए सजमेणं जाव विहरइ ३६६ संजमेणं जाव विहरामि ३१५७ सुक्कं० सुक्काओ जाव सोणियत्ताए ३१३२ सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे ३१५८ सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए १८ ३।२७ ३।३१ ३१२२ ३२७ ३१२७ ३।३१ ३१५८ ना०२१२११ पण्हावागरणाई १०।१४ १०११५ ५।१० ३१२६ ४१३ अंतरप्पा जाव चरेज्ज एवं जाब इमस्स एवं जाव चिरपरिगत० एवं जाव परियट्टति पत्थणिज्ज एवं चिरपरि० रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियव्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिदिए ५८ ४|१५ १०११७ ४१ १०।१५ १०।१७ १०.१६ १०.१६ १०।१४ १०११४ १०.१४ १०११४ १०११४ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमस्स उक्खेवओ अट्टि जाव महियगतं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउड अब्भणुष्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्ज माणं अविणिज्ज माणंसि जाव भियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापरूिव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अतिराए चैव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरू आसि जाव पचणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुते जाव साहट्टु आहेवच्चं जाव विहरइ इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति वेजाव सुरू इमेरूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उंबरदत्ते निच्छूढे जहा उज्झियए उक्ट्ठिजाव करेमाणे कट्ठा समुद्द ४३ विवागसु ११८१,२ १६४१२८ १ १/२८ १६३८ १७७ १।२।२४ १।३।१३ १।२।२६ ११६२३ |१|११४७, १|३|१६ ११३/७ ११११७० ११११२ १।१।३६ ११६२ १।२१७ ११२।१० ११२।१६ ११३।१६ ११३।४१ १।६।३५ ११२१७; ११३१७ १११११६ १।१ २० २१३१५ १/६/३४ १।१।७० २।१।३१ १।७१३४ १।३।४३ १/३/२४ १।२।१,२ १२/६४ वृत्ति वृति अं० ६।५७ ना० ११:३३ ११२।१४ ११२१२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ ना० ११८६४२ ११५५४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १।११४२ १११।४२ ११२६४ ११२/६४ वृत्ति ना० ११११६६ ना० १।११६७ २११।१५ ११११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ १।२।५६ १३१२४ ओ०सू० ५२ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११७० ११२।१४ ११२।१,२ श२११,२ १।२।१४,१५ वृत्ति वृत्ति उक्कोस नेरइएसु उक्खित्त जाब सूले० १६ उक्खेवओ नवमस्स १।६।१,२ उक्खेवओ सत्त मस्स ११७५१,२ उग्छोसिज्जमाण जाव चिता १।४।१२,१३ उज्जला जाब दुरहियासा ११११५६ उम्मुक्क जाव जोवणग० १२११७० उम्मुक्कबालभावा जोवणेण स्वेण लावण्णण य जाव अईव १।६।३४ उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ ११६२६ उराले जाव लेस्से २।१२० उवगिज्जमाणे जाव विहरद ११९४८ उस्सुक्कं जाव दसरत्तं ११३१५२ एवं पस्समाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ११११५० ओहय० १२।२७ पोह्य जाव झियाइ १२।२४;११६१६ ओहय जाव झियासि ११२।२५,१।६।१७ ओहह्य जाव पास १।२।२५१।६१७ करयल० ११३१४०,५५,५६११६।३८ करयल० १४३१५० करयल जाव एवं ११३१४४,१।४।२८ करयल जाव एवं ११३१५२,५३; १६६१३४ करयल जार पडिसुणेति १९३१५३,६२११६:३४,११६२०,४० करयल जाव वद्धावेइ १।९।४५ करेइ जाव सस्थोवाडिए कुमारे जाव विहरद १२६।३६ खुत्तो १४१०७० गंगदत्ता वि १७।३३ गामागर जाव सण्णिवेसा २।१।३१ गाहावई जाव तं धणे २१११२३ गिण्हावेइ जाव एएणं ११५२७ घाएति २ ११३।१४ चउत्थं छ? उत्तरेणं इमेयारूवे ११७।१०,११ चउत्थस्स उक्खेवओ ११४११,२ ११४१३६ १२४१३५ ओ० सू०८२ ना० १११६३ वृत्ति १४१२५० १०।२४ वृत्ति ११।२४ १।२।२४ ११३१४० ११३१४० १।११६६ ओ० सू० ५६ ११३१५५ वृत्ति १४११६६ १।१।७० १२२१५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति १०२१६४ ११३।१४ श७१२।१५ १।२।१,२ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ ओ० सू० ८३ छुटुंछद्रेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव १४२११२-१४ भ० २११०६-१०८ छठुस्स उक्खेवओ १५६।१,२ १९२११,२ छिदइ जाव अप्पेगइयाणं शश२८ शरा२४ जणसह च जाव सुणेत्ता १११।१६ ओ० सू० ५२ जहा विजय मित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा ११७।३१,३२ ११२१५०,५१ जातिअंधे जाव आगितिमेते १६११६४ ११।१४ जायसड्ढे जाव एवं ११११२५ जाव पुढवी ११३।६५१।४३६ ११११७० द्विइएसू जाव उववज्जिहिइ १११७० ११११५७ हाए जाव पायच्छित्ते ११३।४७,५५,१११।४५ शश६४ ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए १।५० १५२।६४ हायाओ जाव पायच्छित्ताओ ११७।२० १॥२०६४ व्हाया जाव पायच्छित्ता १।३।२४ ११२१६४ तं चेव जाव से णं १३।१५ १।२।१५ तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि १६६०२३ ११६।१८ तं महया जहा पढम तहा २।११३२ २११:१२, भ० ६।१५८ तच्चस्स उक्खेवो ११३३१,२ श२।१,२ तह त्ति जाव पडिसुणति १।३१४६ शश६६ ताओ जाव फले १७।२३ १२७११६ तीसे य० १२१२२३ ना० १११११०० तेगिच्छियपुत्तो वा जाव उग्घोसेंति १६१०११३,१४ ११८।२१,२२ तो णं जाव' ओवाइणइ ११७।२१ ११७११६ दसमस्स उक्खेवओ १११०११,२ १२।१,२ दारगस्स जाव आगितिमित्ते शश२६ १११।१४ नगरगोरूवा जाव भीया १२।३४ १।२।३३ नगरगोरूवा जाव वसभा १२।३३ १।२।२४ नगरपोरूवाणं जाव वसभाण शरा२८ ११।२४ नगर जाव विणिज्जामि ११२।२४ ११।२४ निक्खेवओ ११३१६६ १११७१ निक्खेवो १।२१७४;११४१४०, ११५।३०।१।६।३८:१७४३६१।८।२८,१९६० १११७१ निच्छ्भेमाणे अन्नत्य कत्थइ सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणाए गिह १।४।२६,२७ ११२१६२,६३ नीय जाव अडइ १७७ १।२।१५ पंचमस्स अज्झयणस्स उवखेवओ ११५।१,२ ११२।१,२ पंच्चाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म २।१।३१ सश१३ पज्जेइ जाव एलमुत्त ११६२३ १।६१४ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वृत्ति पम्हल० ११७२१ पावं जाव समज्जिणइ १४११७० ११११५१ पुढवीए संसारो तहेव पुढवी १।५।२६ १॥३॥६५ पुष्फ जाव गहाय १७२३ ११७२१ पुरा जाव विहर १११४१,४२,१४२१६५ ११११४१ पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं १२१५ १५११४१ पुव्वभवपुच्छा वागरेइ ११७.१२,१३ १।११४२,४३ पूवभवे जाव अभिसमण्णागया २२१४१५ वृति पुवाणुपुब्धि जाव जेणेव २१२ ना० १११४ पुख्वाणपुटिव जाव दुइज्जमाणे २१११३२ २।१।३१ पोराणाणं जाव एवं २७।११ १२।१५ पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे ११११६६ ११११४१ पोराणाणं जाव विहरइ ११३१६४।१।४।६१,११५।२८,१।७३७,१८१८,२६:१।९।५८ १।१०।१८ १।११४१ फलएहि जाव छिप्पत्रेणं १1३.४३ ११३१२४ फुट्ट माणेहिं जाव विहरइ २।१।११ ना० १६१६३ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि १२२१२६ १।२।२४ बहहिं चूण्णप्पओगेहि य जाव आभिओगित्ता १११०१७ ११।७२ बहहिं जाव हाया १७४२५ ११७२३ भगवं जाव जओ णं १९३४ ११:३३ भगवं जाव पज्जुवासामो १६११२१ ओ०सू० ५२ भवित्ता जाव पब्वइस्लाइ २।१।३५ २१११३ भवित्ता जाव पवएज्जा २१११३१ २।१।१३ मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ ११२।१५ भ० २।११० महत्थं जाव पडिच्छइ ११३१५६ ११३१४० महत्थं जाव पाहुडं ११३०५५ १०३।४० महावीरे जाव समोसरिए १११११७ वृत्ति महिय जाव पडिसेहेति ११३१४६ मासाण जाव आगितिमेत्ते १४१०६४ मासाण जाव दारियं १।३१ १।२।३१ मासाण जाव पयाया १७२६ ११२१३१ मित्त ११३२६०,११५१७ १।२।३७ मित्त० १७२७ १७११६ मित्त जाव अण्णाहि ११३१२८ ११३।२४ मित्त जाब परियणं ११६४७ १२।३७ मित्त जाव परियणेण १६५७ ११२३७ वृत्ति Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति वृत्ति मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिवुडाओ मित्त जाव परिवूडे मित्त जाव महिलाओ मित्त जाव सद्धि मित्त जाव सद्धि मियादेवी जाव पडिजागरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति रटुं च रट्रेय जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जाव पभियो सईसर जाव प्पभियओ राईसर जाव सत्थवाह. राईसर जाव सत्थवाहाण राईसर जाव सत्थवाहेहि राया जाव जीईवयमाणे वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि सगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सण्णद्ध जाव पहरणे सण्णद्धबद्ध जाव पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा० सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि समणे जाव विहरइ समाणे सिंघाडग तहेव जाव सूदरिसणाए समुप्पणे जाव तहेव निग्गए सागरोवम० सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव पहेसु संदरथण सुबहुं जाव समज्जिगित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं हट्ठतुहियया हय जाव पडिसेहिए ११२।५४ १॥२३७ ११७४२३ ११७११६ १।३१५५ २।३७ १७/२६ १७.१६ १७.२३ १।७।१६ ११६।४५ १।२।३७ १।१।२६ १२१११५ २११६३१ २।१।१३ ११११५७ १५११५७ ११११५७ २१११३ ११२१७२ ११५० १।१०१७ १.१५० १६५२२,२३ ११११५० ११११५० ओ०सू० ५२ १९५७ १।१३५० १।९।३७ १६६२३ श२४७ शरा२४ १।२।२० १२।२८ १२।१४ ११३।४७ १।२।१४ १२३।२४ ११२।१४ १२६१२२ १६१०२० ना० १११९ ११४१२२-२४ ११२।५७-५६ १।३।१५ १४२११५ १६१७० १।११५७ १११०।१३ १६११५३ १।२।५७,१८२१:२।११२३ ११११५३ १२।७ वृत्ति १८११३११६१२६७१।१०१८ शा५१ २।१११०,११ ओ०सू० १४८,१४६ १।१।२६ ओ०सू०२० ११३१५० ११३१४६ वृत्ति Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि-पत्र मूलपाठ पंक्ति शुद्ध अशुद्ध मणप्पत्ते २० जहेसु ~ हीत्थ कट्ट १७७ २०६ ३०६ मणप्पत्ते जूहेसु हत्थी कटु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस ~ ~ विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवासण्णयाए देवदेसंस ४२६ ~ ~ ४५५ ४६१ ५१६ ५५१ तुम तुम ताई ताइ °समुदएणं सस्सिरीएण दस GG KE -WWW समुदएण सस्सिरीएणं दस खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणदे खणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियाणदे पा०६ पाठान्तर पटटसि पिणद्धति आसुरुत्त पट्टसि पिणद्धेति ४८ पा० ४ पा०२ आसुरुत्ते परिशिष्ट अभिगयजीवेजी णं अभिगयजीवाजीवेणं Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रही जीवानाम