________________
१०२
भायाधम्मक हाऔ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
विसएसु इंदियाइं, रुंभंता राग-दोस-निम्मुक्का। पावेंति निव्वुइसुह, कुम्मोव्व मयंगदहसोक्खं ॥१॥ इयरे उ अणत्थ-परंपरानो पावेंति पावकम्मवसा। संसार-साग रगया, गोमाउग्गसियकुम्मोव्व ॥२॥
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only