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है। बालाववोध पंचपाठी पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं। अक्षर २८ से ३५
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तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है ।
६. विवागसु
क.
ख.
मदनचन्दजी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मूलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है। लेखन संवत् ११५६ आश्विन सुदि ३ सोमवार पुष्पिका काफी लम्बी है पर । अस्पष्ट है । प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में
।
लिखी हुई है।
मूलपाठ
यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं । पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४१ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हुआ है । प्रति प्रायः शुद्ध है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:--
शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ।। संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं।
ग. मूलपाठ-
यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी बैंगानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पृष्ठ ७० हैं । प्रत्येक पत्र ११३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-
एक्कारस्यं अंग समत्तं ॥ प्रथाय १२१६ ॥ टीका १०० एतस्या | लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीव ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए।
वृ. एम० सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १९३५, 'विवागस्यं ।
सहयोगानुभूति
जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम याचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में वहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी।
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