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सत्तमं अज्झयणं (रोहिणी)
१५३ संवड्डिया भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं वहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकतारं वीईवइ
स्सइ-जहा व सा रोहिणीया ।। निक्खेव-पदं ४४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थग रेणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स ग्रयमद्धे पण्णत्ते ।
-त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा
जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह नाइ-जणो तहा समणसंघो।
जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाइं ॥१॥ उमिया---
जह सा उज्झियनामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया ॥२॥ तह भव्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरु-विदिण्णाई । पडिवज्जिउं समुज्झइ, महव्वयाइं महामोहा ।।३।। सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कार-भायणं होइ।
परलोए उ दुहत्तो, नाणा-जोणीसु संचरइ ॥४॥ भोगवती---
जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोव भत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारितणेण पत्ता दुहं चेव ॥५॥ तह जो महन्वयाई, उव जइ जीवियत्ति पालितो । आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए ।।६।। सो एत्य जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ता।
विउसाण नाइपुज्जो, परलोयंसी दुही चेव ।।७।। रक्खिया
जह वा रक्खियवहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता ।।८।। तह जो जीवो सम्म, पडिवज्जित्ता महव्वए पंच। पालेइ निरइयारे, पमाय-लेसंपि वज्जेंतो ॥६॥
१. ना० ११३।३४ ।
२. ना० ११११७ ।
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