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तेरस में अज्झयणं (मंडुक्के)
१४७ संपाविउकामस्स । पुविपि य णं मए समणस्स भगवओ महावो रस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए', 'थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थूलए मेहुणे पच्चक्खाए°, थूलए परिगहे पच्चक्खाए। तं इयाणि पि तस्सेव अंतिए सन्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवं, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं पच्चक्खामि जावज्जीव । जंपि य इमं सरीर इटुं कंतं जाव' मा णं विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु एयंपि य णं चरिमेहिं ऊसासेहि वोसिरामि त्ति कटु ॥ तए णं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव' सोहम्मे कप्पे ददुरवडिसए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववण्णे । एवं खलु गोयमा ! ददुरेणं सा
दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । ४४. ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता । से णं ददुरे देवे महाविदेहे वासे
सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ' 'मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ ।। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू ! समणणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।
--त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
संपन्नगुणो वि जनो', सुसाहु-संसग्गवज्जियो पायं।।
पावइ गुणपरिहाणि, ददुरजीवोव्व मणियारो ॥१॥ अथवा
तित्थयर-बंदणत्थं, चलिओ भावेण पावए सगं । जह ददुरदेवेणं, पत्तं वेमाणिय-सुरत्तं ॥२॥
१. सं० पा०-पच्चक्खाए जाव थूलए। २. ना० १११।२०६। ३. ना० १.११२११ ।
१५. ना० ११
४. सं० पा०-बुज्झिहिइ जाव अंतं । ५. ना० १४११७ । ६. जिप्रो (ख, ग)।
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