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________________ चोसमं णं (तैयली) कणगरहस्त रज्जासत्ति-पदं २१. तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य" अंतेउरेय मुच्छिए गढ़िए गिद्धे ग्रभोववण्णे जाए जाए पुत्ते वियंगेइ - अप्पेगइयाणं हत्थंगुलिया छिंदइ अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिदइ अप्पेगइयाणं पायंगुटुए छिदइ अप्पेगइया कष्णसक्कुलीओ छिंदइ अप्पेगइयाणं • नासापुडाई फालेइ अप्पेगइयाणं गोवंगाई वियत्तेइ ॥ पउमावईए श्रमच्चेण मंतणा-पदं २२. तए णं तीसे पउमावईए देवीए ग्रण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि श्रयमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे अंतेउरेय मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइअप्पेगइयाणं हत्थंगुलिया छिदइ, प्रप्पेगइयाणं हत्थंगुट्टए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलिया छिंद,अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, ग्रप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ अप्पेगइयाणं • अंगमंगाई वियत्तेइ' । तं जइ णं अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सियय' चेव सारवखमाणीए संगोवेमाणीए विहरितए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तेयलिपुत्तं मच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खलु देवागुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य° र य बले य वाहणे य कोसे य कोट्टागारे य पुरे य अंतेरेय मुच्छिए गढ़िए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ- अप्पेगइयाणं हृत्थंगुलियाओ छिदइ अप्पेगइयाणं हत्थंगुटुए छिंदइ, प्रप्पेगइयाणं पायंगुलियानो छिंदइ अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई० वियत्तेइ । तं जणं अहं देवाणुप्पिया ! दारंगं पयायामि, तए णं तुमं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुध्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि । तए णं से १. x ( क, ख, ग, घ ) | १|१|१६ सूत्रवद् अत्रापि 'पुरे य' इति पाठो युज्यते । २. सं० पा० - एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्टए fव नासापुडाई fa horar ३. वियंगेइ (क, घ) 1 ४. सं० पा० - रज्जे य जाव वियंगेइ जाव Jain Education International २५१ अंगमंगाई । ५. वियंगेइ (क, ख, ग, घ ); २१ सूत्रानुसारेण अत्र 'वियतेइ' ति पाठेन भवितव्यम् । अतोऽस्माभिः स एव स्वीकृतः । ६. रहस्तिगतं ( क ) ; रहसिययं ( ख, ग ) । ७. सं० पा० - रज्जे य जाव वियत्तेइ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003562
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages491
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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