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________________ २२० भायाधम्मकहाओ सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्तेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा --- जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा ॥१॥ जह तेहिं भीएहि, दिट्ठो प्राधायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया, पासति तहेव धम्मकहं ॥२॥ जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तत्तो चिय नित्थारो, सेलगजक्खाउ नन्नत्तो ॥३॥ तह धम्मकही भव्वाण, साहए दिट्ठअविरइसहावा । सयलदुहहेउभूया, विसया विरयंति जोवा णं ॥४॥ सत्ताण दुहत्ताणं, सरणं चरणं जिणिदपण्णत्तं । आणंदरूव-निव्वाण-साहणं तह य दंसेइ ॥५॥ जह तेसि तरियव्वो, रुदसमद्दो तहेह संसारो। जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थ ॥६॥ जह सेलगपढाओ, भट्ठो देवीए मोहियमई उ । सावय-सहस्सपउरम्मि, सायरे पावित्रो निणं ॥७॥ तह अविरईइ नडिओ,चरणचुनो दुक्खसावयाइण्णो। निवडइ 'अगाह-संसार-सागरं अणंतमविकालं" ॥८॥ जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्ठाण-जीवियसुहाई। तह चरणठिो साहू, अक्खोहो जाइ निव्वाणं ।।६।। १. अपारसंसारसायरे दारुणसरूवे (ख)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003562
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages491
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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