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लिपि संवत् १५५४ है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है-संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण वदि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायकश्रीसमतिसाधरि । तत्पट्टे श्रीहेम विमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन । साह श्री सूरा लिखापितं ॥ जोसी पोपा लिखितं ॥ भ्राति उज्जल संजुक्त घीआ लिखापितं छाछ॥१॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं।
घ. टब्बा
यह प्रति १२वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है।
२. उवासगदसाओक. उवासगदसाओ----मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट)
इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है। पत्र क्रमांक संख्या १८२ से २०२ तक है । फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है । इसकी लम्बाई १४ इंच, चौड़ाई इंच है। प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीव अक्षर हैं।
प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ है। अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है।
ख. उवासगदसाओ--टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित)--
__यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है। प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४९ इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है
संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः ।
३. अंतगडदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २०३ से २२२ तक। विपाक सूत्र के अंत में (पत्र
संख्या २८५ में) लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी ११८६ से पहले की होनी चाहिए।
ख. हस्तलिखित-गधया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति
(उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय-देखें अणुत्तरोववाइय 'ख' प्रति-लेखन. संवत् १४६५ है।
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