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वज्जालग्ग
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३७. सज्जनों का यह स्वभाव है कि वे न तो दूसरों का उपहास करते हैं और न अपनी प्रशंसा । सैकड़ों प्रियवचन बोलते रहते हैं (अर्थात् सदैव प्रिय-वचन ही बोलते हैं) । ऐसे पुरुषों को नमस्कार है ॥ ६ ॥
३८. जगत् में प्रियकार्य करने या न करने पर भी पुरुष तो दिखाई देते हैं, परन्तु जो विप्रिय करने पर भी रहते हैं वे सज्जन दुर्लभ हैं ॥ ७ ॥
३९. प्रिय करने पर प्रिय करना -- यह सभी की प्रकृति है, परन्तु प्रिय न करने पर भी प्रिय करना - यह सज्जनों की प्रकृति है ॥ ८ ॥
प्रिय करने वाले प्रिय ही करते
४०. हे सज्जन ! तुम कठोर वचन नहीं बोलते हो, (किसी के द्वारा कठोर वचन) बोलने पर भी हँस देते हो, हँस कर प्रिय कहते हो, हम नहीं जानते कि तुम्हारा स्वभाव किसके समान है ॥ ९ ॥
४१. दूसरों का अपकार नहीं चाहते, नित्य परोपकार करते रहते हो और अपराधों से कुपित नहीं होते हो, हे सज्जन ! तुम्हारे स्वभाव को नमस्कार है ॥ १० ॥
४२. सज्जन के बहुत से गुणों से क्या प्रयोजन ? उसके ये दो गुण ही पर्याप्त हैं — बिजली की कौंध के समान क्षणभंगुर क्रोध और पाषाण-रेखा के समान चिरस्थायिनी मैत्री ॥ ११ ॥
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