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वज्जालन्ग
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६०७. रति-समय परिहास में वस्त्र उतार लिये जाने पर लज्जावती पार्वती ने अपने पाणि-पल्लवों से शिव के दोनों नेत्रों को ढंक कर तृतीय नेत्र को चूम लिया था, उसे नमस्कार कर लो ॥२॥
६०८. आधी खुली और आधी बन्द आँखों से देखने वाले उन शिव को प्रणाम करो, जिन्होंने सन्ध्या (पूजा) करते समय कुपित गौरी की मुखमुद्रा (मौन) तोड़ दी थी ।। ३॥
(कोप का कारण सन्ध्या सपत्नी में अनुरक्ति और मौन-भंग का कारण साभिलाष निरीक्षण है)
*६०९. जो चमेली (जाति) के पुष्प के समान (शिव के) उन्मुक्त अट्टहास से भीत हो चुकी थी तथा जिनका प्रतिबिम्ब (ललाटस्थ) चन्द्रमा में पड़ रहा था, उन गौरी के मानापनयन में जिनका शरीर व्याप्त (संलग्न) है, उन शिव को प्रणाम करो ।। ४ ।।
__ *६१०. गौरी के अधरों को प्रणाम करके उन ललित मुख (सुन्दर मुखवाले) शिव को प्रणाम करो, जो लावण्य युक्त मुख रूपी कमल के निकट (चुम्बनार्थ) जाने वाले भ्रमर हैं और जिन्होंने रतिरस को कला का अभ्यास किया है ।। ५ ।।
६४--हियालीवज्जा (हृदयवती-पद्धति) ६११. विपरीत रति के समय सानुरागा लक्ष्मी ने (विष्णुके) नाभिकमल में स्थित ब्रह्मा को देख कर विष्णु का दाहिना नेत्र क्यों ढंक दिया ? ॥ १ ॥
(विष्णु का दाहिना नेत्र सूर्य है। उसके ढंक जाने पर रात हो जायगी और नाभिकमल संकुचित हो जायगा, फलतः ब्रह्मा उसी में भँवरे के समान बन्द हो जायेंगे। इस प्रकार अन्य पुरुष से लजाने की स्थिति समान हो जायगी और रति-क्रीडा निर्बाध चलती रहेगी)
६१२. नाथ ! तुम्हारी दृष्टि स्वस्थ (या शान्त) नहीं है, क्योंकि हाथ से मुँह ढंक रहे हो, एकटक देखते हुए बातें कर रहे हो और हँसने वाला मुख धारण कर रहे हो, (अर्थात् तुम्हें कोई रोग हो गया है) ॥ २॥
(अपराधो नायक दन्त-क्षत को छिपाने के लिए मुँह ढंक रहा है, पलकों में लगी अंजन रेखा या लाक्षारस को छिपाने के लिए एकटक देख रहा है, नायिका को संतुष्ट रखने के लिए हँस रहा है और रात्रि जागरण के कारण दृष्टि स्वस्थ नहीं है)
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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