________________
वज्जालग्ग
२२५
६९-सरय-वज्जा (शरत्पद्धति) ६५३--पावस-रूपी राजा के अस्त हो जाने पर मानों (शोक से) पंक सूख गया है, झरने नहीं बह रहे हैं, मयूर नृत्य नहीं करते हैं और नदियाँ कृश होती जा रही हैं ।। १ ।।
६५४. वृक्ष के कोटर से (निकल कर) जातो हुई, नर शुकों की पंक्ति देखो। ऐसा लगता है, जैसे शरद् में वृक्ष ज्वर-ग्रस्त होकर रक्त-मिश्रित पित्त का वमन कर रहा हो ।। २ ।।
७०-हेमन्त-वज्जा (हेमन्त-पद्धति) *६५५. उस हेमन्त में लोगों को प्रिय और अप्रिय का भी पता नहीं रहता है। आग सज्जनों के समागम के समान प्रतिदिन सुख देती है ॥ १॥
७१-सिसिरवज्जा (शिशिर-पद्धति) *६५६. शिशिर के दिन (समय) भस्म हो जायें। लोग अवांछित पत्नी को भी वहन करते हैं। जैसे रावण के हृदय में सीता के वियोग से भय उत्पन्न हो गया था, वैसे ही शीत से आतप का विनाश हो गया है ॥१॥
*६५७. देखो, प्रकंपित, स्वरूप-शून्य, धूसर, परुष और रुक्ष हो जाने वाली, शिशिर-शोषित लतिकायें इस प्रकार श्री-हीन दिखाई देती हैं, जैसे शिशिर-वात-गृहीत (ठण्डी हवा से पीड़ित) दरिद्रपुरुष कंपित, स्वरूप-शून्य, धूसर, परुष और रुक्ष होकर श्री-हीन दिखाई देता है ।। २ ।।
६५८. चोरों, कामुकों, कृषकों और पथिकों से कुक्कुट कहता हैअरे भागो, रमण करो, खेत जोतो और यात्रा करो, रात बीत रही है।
* विस्तृत विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org