Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 501
________________ ४२६ वज्जालग्ग से भीत हो चुकी थीं तथा जिनका प्रतिबिम्ब चन्द्रमा में पड़ रहा था, उन गौरी के मानापनयन में जिनका शरीर व्याप्त है, उन शिव को प्रणाम करो। शिव के ललाट पर स्थित कलामात्रावशेष शशिशकल में प्रकाश-पुञ्ज का स्फुरण न होने के कारण प्रतिबिम्बन क्रिया स्वाभाविक है । गाथा क्रमांक ६१० नमिऊण गोरिवयणस्स पल्लवं ललियकमलसरभमरं । कय-रइ-मयरंद-कलं ललियमुहं तं हरं नमह ।। ६१० ॥ नत्वा गौरीवदनस्य पल्लवं ललितकमलसरोभ्रमरम् कृतरतिमकरन्दकलं ललितमुखं तं हरं नमत । -रत्नदेवकृत अव्याख्यात छाया अंग्रेजी टिप्पणी में लिखा गया है कि 'गौरी वयणस्स पल्लवं' और 'कयरइमयरंदकलं' -इन दो वर्णनों की दुरूहता के कारण इस गाथा का अर्थ स्पष्ट नहीं है । टिप्पणी के अनुसार 'गोरी-वयणस्स' 'ललियकमलसरभमरं' से अन्वित नहीं हो सकता और नमिऊण का भी सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है । निम्नलिखित ढंग से किया गया अंग्रेजी अनुवाद केवल शाब्दिक है "सुन्दर मुख वाले उन शिव को प्रणाम करो जो गौरी के मुखरूपी सरोवर में मँडराने वाले मधुप हैं।" लेखक ने इस अनुवाद के सम्बन्ध में यह टिप्पणी दी है "The rendering given in the English translation is a desperate attempt to salvage some sense out of the stanza." उपर्युक्त गाथा की दुरूहता का कारण संस्कृत छाया की अशुद्धि है। पूर्वार्ध की छाया इस प्रकार होनी चाहिये __ नत्वा गौरी वदनस्य पल्लवं ललितकमलसरभ्रमरम् । 'गौरीवदनस्य पल्लवम्' का अर्थ है-गौरी के मुख के पल्लव को अर्थात् अधरों को । सर का अर्थ है-जाने वाला ( सरतीति सरः, सृ गतौ + अच )। देशीनाममाला में कमल को मुख का पर्याय बताया गया है पिढरपडहेसु मुहहरिणेसु अ कमलो ।-२१५४ __ यहाँ एक ही कमल में दो भिन्न अर्थों (मुख और पंकज) का अभेदारोप होने के कारण श्लेष मूलक रूपक है । अतः कमल का अर्थ है--मुख ( कमल ) रूपी कमल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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