Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 550
________________ वज्जालग्ग अहो स्वपिति......"लुलितधम्मिल्लकुन्तलकलापः अन्यत्र व्रज वणिग् अस्माकं मुक्ताफलं कुतः --उपलब्ध संस्कृत छाया इसकी संस्कृत छाया खण्डित है । 'विल्लर' और 'विल्ल' का अर्थ अस्पष्ट बताया गया है। संस्कृत-टीका में 'विल्लर' का अर्थ 'विरल' लिखा गया है, जो बिल्कुल ठीक है। संस्कृत विरल प्राकृत में 'विल्लर' के रूप में अवश्य प्रचलित रहा होगा। इसका प्रमाण अवधी का बहु प्रचलित शब्द 'विड़र' है, जिसने विरल से विरल ( वर्ण विपर्ययद्वारा ) और 'विलर' से डलयरलयोरभेदात् 'विड़र' का रूप धारण कर लिया है। 'विल्लर' वर्ण-विपर्यय एवं लकार-द्वित्व की स्थिति में विरल का अपभ्रंश रूप है। 'विल्ल' देशी शब्द है। इसका अर्थ हेमचन्द्र ने इस प्रकार दिया हैविल्लमच्छे विलसिए -देशीनाममाला, ७८८ ( विल्ल स्वच्छ और विलसित के अर्थ में है ) इस दृष्टि से संस्कृत छाया का स्वरूप यह होगा ओ स्वपिति विरलाच्छलुलितधम्मिल्ल कुन्तल कलापः । अन्यत्र व्रज वणिग् अस्माक मुक्ताफलं कुतः ॥ शब्दार्थ-लुलिय = प्रसृत, विकीर्ण धम्मिल्ल = केशपाश या जूड़ा कुन्तलकलाव = केशों का गुच्छा विल्लरविल्ल = १ --विल्लर + अविल्ल ( समास में व का द्वित्व और सन्धि होने पर रेफस्थ अकार का लोप) किंचित् मलिन । २-किंचित् स्वच्छ ( विल्लर + विल्ल ) ओ = सूचना का द्योतक । गाथा में जिस तरुण व्याध का वर्णन है, वह प्रारंभिक जीवन में दुर्धर्ष वीर एवं उत्साही आखेटक के रूप में प्रसिद्ध था। परन्तु अब नवोढा के प्रणयपाश में बंध कर इतना विषयी हो चुका है कि जीविका के लिये भी गजराजों का वध नहीं करता । तब भी दूर-दूर के वणिक् हाथी दाँत, मुक्ताफल और व्याघ्रकृत्ति खरीदने उसके द्वार पर पहुंचते रहते हैं । विदग्ध व्याध-माता पुत्र को अकर्मण्यता और विलासिता की सूचना जिन शब्दों में दे रही है, उनसे ऐसा लगता है जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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