Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 566
________________ वज्जालग्ग ४९१ प्रकार अंकित किया गया है : ( मायंदणिहीण ?) उपर्युक्त अंग्रेजी अनुवाद और संस्कृत-छाया-दोनों दोष-पूर्ण है। 'माकन्दनिधीन्' का प्राकृत रूपान्तर 'मायंदणिहीण' नहीं, 'मायंदणिहिणो' होगा।' अन्त्यव्यंजनलोप प्राकृत की प्रमुख विशेषता है । अतः अन्त्यहल का 'ण' के रूप में परिणत होकर शेष रह जाना किसी भी दशा में व्याकरण-सम्मत नहीं है। यही नहीं, 'मायंदणिहीण' और 'कि पि' का सह-प्रयोग भी संस्कृत-छाया को प्रमाण मानने पर अर्थावरोधक बन जाता है। उक्त शब्द स्पष्टतः षष्ठ्यन्त है। उसका संस्कृत रूपान्तर है-माकन्दनिधीनाम् । संस्कृत छाया में 'माकन्दनिधीन्' के स्थान पर 'माकन्दनिधीनाम्' होना चाहिये। वेश्यायें धनी पुरुषों से बड़ा कुटिल व्यवहार करती है। इस दृष्टि से देखें तो . आम का फल खाने वाले व्यक्ति से उनका बहुत अधिक साम्य है। कुट्ठिणी-सिक्खा में संगृहीत इस प्राकृत गाथा में आम के फलों को अप्रस्तुत के रूप में रख कर वेश्याओं की धूर्तता का अत्यन्त बिम्बग्राही चित्र अंकित किया गया है । आम खानेवाला व्यक्ति हाथ से आम का स्पर्श करता है, उसे चूसने योग्य बनाने के लिये खूब मलता है ( दबाता या मसलता है ), खाते समय बार-बार मुंह से चूमता है एवं अन्त में निचोड़ कर फेंक देता है। बिल्कुल यही प्रक्रिया वेश्याओं की भी है। वे वेश्यागामी का हाथ पकड़ती हैं, रति के समय शय्या पर उपमर्दन करती हैं, चूमती हैं, धन निचोड़ती हैं और अन्त में छोड़ देती हैं । शब्दार्थ-निहण ( निहनन ) = फेंक देना, छोड़ देना२ । प्राकृत में 'हण' का हणण ( हनन ) के अर्थ में भी प्रयोग होता है। मायंदणिहीण ( माकन्दनिधीनाम् ) = १– लक्ष्मी के सुदृढ़ भंडार अर्थात् धनियों का (माया लक्ष्म्याः कन्दा दृढ़ा निधयः) देशीनाममाला के अनुसार कन्द शब्द दृढ और मत्त का अवबोधक है : कन्दो दढमत्तेसु-२।५१ १. इदुतोः शसोणो-प्राकृत-प्रकाश, ५।१४ २. पाइयसद्दमहण्णव और आप्टे-कृत संस्कृत शब्द-कोश । ३. काराविया य निरया, जमेण वेयरणिमाइया बहवे । हण-दहण-पयण-मारण-छिदण-भिज्जतकम्मन्ता ॥ -विमलसूरि-कृत पउमचरिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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