Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 567
________________ ४९२ वज्जालग्ग २-आम के भंडारों या समूहों का (माकन्द = आम) यहां षष्ठी चतुर्थी के अर्थ में है। यदि अपर-पक्ष में मायंदणिहीण की संस्कृत छाया 'माचन्द्रनिधीनाम्' स्वीकार कर लें तो अर्थ इस प्रकार हो जायगा-- माचन्द्रनिधीनाम् = मायाः लक्ष्म्याः चन्द्राः काम्या आह्लादका वा निघयस्तेषाम् । लक्ष्मी के काम्य या आह्लादक निधियों अर्थात् धनिकों का। चन्द्रोऽम्बुकाम्ययोः । -अनेकार्थसंग्रह अर्थ-वेश्यामाता आम के समूहों के लिये ( पक्षान्तर में धनियों के लिये ) कुमारियों को कुछ सिखा रही है जैसे-करस्पर्श, मदन चुम्बन, निष्पीडन, ( निचोड़ना ) और निहनन ( फेंक देना या छोड़ देना )। ६२४४३-कस्स कएण किसोयरि वरणयरं वहसि उत्तमंगेणं । कण्णेणकण्णवहणं वाणरसंखं च हत्थेण ।। २४ ।। कस्य कृते कृशोदर वर नगरं (वर्णकर) वहसि उत्तमाङ्गेन कर्णेन कर्णवहनं वानरसंख्यं च हस्तेन -उपलब्ध संस्कृत छाया संस्कृत-टीका में 'वरणयर' के दो अर्थ दिये गये हैं-श्रेष्ठ नगर और वर्णकर ( चित्रवल्लरी मण्डन )। 'कण्णवहण' और 'वाणरसंखं' को छाया क्रमशः 'कर्णवहनम्' और 'वानरसंख्यम्' तो दी गई है, परन्तु उन शब्दों के अर्थ नहीं लिखे गये हैं। अन्त में 'कस्यकृते' का उत्तर 'पत्युःकृते' लिख कर पद्य को अस्पष्ट ही छोड़ दिया गया है। श्री पटवर्धन-कृत शाब्दिक अनुवाद इस प्रकार है : "हे कृशोदरि, तुम किसके लिये मस्तक पर विशाल नगर, कानों पर कर्ण को हत्या और हाथों पर बन्दरों की संख्या ढो रही हो।" उन्मत्त प्रलापवत् प्रतीत होने वाले इस अर्थ से प्रहेलिका का आशय स्पष्ट नहीं होता है। 'वरणयर के समान कण्णवहण' के भी दो अर्थ हैं । इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार है : कण्णवहणं = १-कर्णवहनम् । २-कर्णवधनम् । वह धातु में ल्युट प्रत्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590