Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 588
________________ गाथानुक्रमणिका सीसे ण कह न कीरइ अति०50781x नरनि071x सो मासो तं पि दिणं अति० 412*3 573 सुपमाणा य सुसुत्ता 744 सोसणमई उ निवससु सुम्मइ पंचमगेयं 290 सो सुवइ सुहं सो 341 सुम्मइ वलयाण रवो 321 सो सोहइ दूसंतो 26 सुयणस्स होइ सुक्खं अति० 48*2 सो होहिइ को वि दियो 873 सुयणो न कुप्पइ चिय 34 हत्थठियं कवालं 436 सुयणो सुद्धसहावो 33 हत्यप्फंसेण वि पिय 409 सुरयप्पसुत्त कोवण अति० 328*3 हत्थे ठियं कवालं अति० 72*4 सुरयावसाणसमए अति० 328*2 हयदुज्जणस्स वयणं 49 सुरसरिपूरं वडविडवि अति० 72*1 हरसिरसरणम्मि गओ 269 सुलहाइ परोहड 527 हरिणा जाणंति गुणा 215 सुसइ व पंक 653 हंतूण वरगइंदं 618 सुसिएण निहसिएण वि 728 हंसेहि समं जह अति० 263*3 सुहय गयं तुह विरहे 431 हंसो मसाणमज्झे 258 सुहिउ त्ति जियइ पृ० 340 हंसो सि महासरमंडणो 257 सुहियाण सुहंजणया अति. 641*4 हारेण मामि कुसुम अति० 397*2x सेयच्छलेण पेच्छह 318 हा हियय कि किलम्मसि 452 सेला चलंति पलए 47 हा हिहय झीणसाहस 451 सो कत्थ गओ सो सुयणवल्लहो हिट्ठकयकंटयाणं 706 सो सुहाण 782 हिट्ठठे जडणिवहं 150 सो कत्थ गओ सो सुयणवल्लहो हियए जं च निहित्तं अति० 284*8 सो सुहासिय मति० 412*2 हियए जाओ तत्थेव 115 सो को वि न दीसइ सामलंगि हियए रोसुग्गिणं 616 हिययठिओ वि पिओ अति० 412*4 एयम्मि हिययट्रिओ वि सुहवो 787x सो को वि न दीसइ सामलंगि हे हियय अव्ववठिय अति० 45 4*1 जो घडइ अति० 349*10x होसइ किल साहारो 639 सो चिय सयडे सो चिय 184 होही तं किंपि दिणं अति० 412*5 सो तण्हाइयपहिय व्व अति०312*2x होंति परकज्जणिरया अति० 48*3 343 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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