Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 569
________________ ४९४ वज्जालग्ग ६३७ x १-लंकालएण रत्तंबरवेसिण दिन्नपुफ्फयाणेण | दहवयणेणेव कयं सीयाहरणं पलासेण ॥ २५ ॥ लङ्कालयेन रक्ताम्बरवेषिणा दत्तपुष्पयानेन दशवदनेनेव कृतं शीताहरणं (सीताहरणं) पलाशेन संस्कृतटीकाकार ने 'लंकालएण' में च्युताक्षरा मानकर व्याख्या की है। ताक्षरा और दत्ताक्षरा-प्रहेलिका के भेद हैं। एक में अर्थ करते समय च्युत ( अविद्यमान ) अक्षर जोड़ दिया जाता है और दूसरे में दत्त (अधिक रहने वाला ) अक्षर छोड़ दिया जाता है।' पलाश-पक्ष में अर्थ करते समय च्युताक्षर अ को जोड़कर 'लंकालएण' को 'अलंकालएण' बनाना पड़ेगा। टीकाकार ने शब्दों के अर्थ इस प्रकार दिये हैंलंकालएण =१-अलंकालकेन = अत्यधिक काले किसलय वाले (पलाश-पक्ष) २-लंका में रहने वाले । रत्तंबरवेसिणा =१-रक्ताम्बरवेशिना = लाल आकाश के समान वेश वाले। (पलाश-पक्ष) २-लाल वस्त्र का वेश धारण करने वाले । (रावण-पक्ष) दिन्नपुप्फयान = १-दत्तपुष्पयान = जिसने पुष्प का यान दिया है उस पलारा ने । ( पलाश-पक्ष ) २-जिसने पुष्पक विमान दिया है ( रावण-पक्ष ) इस प्रकार गाथा का यह अर्थ होगा अत्यधिक कृष्ण किसलय वाले ( पुष्पों के कारण ), लाल आकाश के समान वेश वाले और पुष्पयान (?) प्रदान करने वाले पलाश ने शीत ( ऋतु) का आहरण (हरण ) कर लिया है, ठीक वैसे ही, जैसे लंका में रहने वाले, लाल वस्त्र का वेश धारण करने वाले और ( सीता को) पुष्पकयान प्रदान करने वाले ( अर्थात् सीता को पुष्पक विमान पर बैठा लेने वाले) मांसभक्षी रावण ने सीता का हरण कर लिया था । . यद्यपि द्वितीय पक्ष में 'दत्तपुप्फयाण' का अर्थ सन्तोषजनक नहीं है और 'लंकालएण' का अर्थ भी कुछ ठोक नहीं लगता, क्योंकि पुष्पोद्गम के पूर्व पलाशपत्र प्रायः झड़ जाते हैं एवं उनका रंग भी काला नहीं होता है तथापि टीकाकार की मौलिकता श्लाघ्य है। टीकाकार की सुझाई दिशा से सोचने पर मुझे कुछ दूसरा ही अर्थ भासित हो रहा है१. साहित्यदर्पण, दशम परिच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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