Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 564
________________ वज्जालग्ग ४८९ सासुसुण्हाणं = श्वश्रूस्नुषयोः = सास और बहू के । सासुसुण्हाणं = साश्रुसोष्णयोः = आँसु से युक्त और उष्णता से युक्त रहने वाली (सास और बहू ) के । सरदह = १ - शरद्रह = शरत्कालीन सरोवर । २.-सारद्रह = जलयुक्त सरोवर । अभिडिया - छू गये या मिले । संस्कृतटीका के अनुसार लटकाया या डाला। विवेच्य गाथा में सास और पुत्रवधू के प्रच्छन्न स्वैराचार का व्यंग्यपूर्ण शैली में चित्रण किया गया है। दोनों एक दूसरे से छिपकर अंधेरी रात में अपने-अपने अनुरागियों के निकट अभिसार करती हैं। एक संभोग से कृतार्थ हो जाती है और दूसरी को परिश्रम ही हाथ लगता है, उसका उपपति बिना रमण किये ही छोड़ देता है। एक रमण से उत्पन्न उष्णता की शान्ति के लिये सरोवर में हाथ डालती है तो दूसरी आँसुओं भरा मुंह धोने के लिये। संयोग से अंधेरी रात में दोनों स्वैरिणियों के हाथ परस्पर छू जाते हैं। गाथा में छन्द के अनुरोध से यथासंख्य भाव नहीं है। ___अर्थ-निविड अन्धकार में जिसके साथ रमण किया गया था और जिसको (बिना रमण किये ही ) छोड़ दिया गया था ( मुक्त ) उन आँसुओं से युक्त और ( रमण-जनित ) उष्णता युक्त सास और बहू-दोनों के हाथ शरत्सरोवर ( या जलमय सरोवर ) में परस्पर एक साथ टकरा गये ( छू गये, या डाले गये)। यदि 'सासुसुण्हाणं' में श्लेष न स्वीकार करें, केवल 'श्वाससोष्णयोः' के अर्थ में ही सीमित रहने दें तो गाथा का अर्थ इस प्रकार हो जाएगा : दो अज्ञात अभिसारिकाओं में से एक ने तो रमण किया और दूसरी जार के द्वारा विना रमण किये ही मुक्त कर दी गई। अतः एक रतिश्रम-जनित दीर्घश्वास से उष्णता का अनुभव कर रही थी तो दूसरी अपमान से जनित रोष की स्थिति में लम्बी सांस लेती हुई प्रतप्त हो रही थी। अतः दोनों अंगताप की निवृत्ति के लिये शरत्स गेवर में चुपके-चुपके गईं और अन्धेरे में दोनों के हाथ एक साथ टकरा गये (या दोनों ने हाथ मिलाये)। संस्कृत टोकासम्मत अर्थ का समर्थन यदि करना चाहें तो इस प्रकार कर सकते हैं अँधेरी रात में गुप्तरूप से दो अज्ञात अभिसारिकायें अपने-अपने उपपतियों के निकट पहुंची और रति-क्रिया से मुक्त होकर जब लौटी तब उनके अंग सुरता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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