Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 554
________________ वज्जालग्ग ४७९ अर्थ-उन (छेकों) से वक्र व्यवहार नहीं किया जा सकता। वे जिसकी ( उनके प्रति ) सेवा होती है, उसे विशेषतः जानते हैं। बेटी, छेक देवताओं के समान सच्चे प्रेम से ही वशीभूत होते हैं । तात्पर्य यह है कि विदग्ध-जन सच्ची सेवा को पहचानते हैं और छल-कपट से वशीभूत नहीं होते हैं। ३०० x ६-गाढयरचुंबणुप्फुसियबहलणीलंजणाइ रेहति । बप्फभितरपसरियगलंतबाहाहि अच्छीइं ॥ १२ ॥ गाढतरचुम्बनप्रोञ्छितबहलनीलाञ्जने शोभेते बाष्पाभ्यन्तरप्रसृतगलत्""""(?) अक्षिणी -उपलब्ध खंडित संस्कृत छाया प्रस्तुत गाथा का ठीक-ठीक संस्कृत रूपान्तर न तो संस्कृत टीकाकार कर सके हैं और न श्री पटवर्धन ही। श्री पटवर्धन ने मूल गाथा में निम्नलिखित संशोधन का सुझाव देकर 'बप्फ' शब्द को अस्पष्ट कहा है Read गलतबाहाइ for गलंतबाहाहि The sense of 20is obscure. न तो उक्त संशोधन ही आवश्यक है और न 'बप्फ' शब्द का अर्थ ही अस्पष्ट है । संभवतः अश्रुपर्याय 'बफ और 'बाह' की एक साथ उपस्थिति होने के कारण अंग्रेजी अनुवादक को दोनों में एक की अस्पष्टार्थता का आभास हुआ होगा। परन्तु गाथा में 'बष्फ' के साथ 'बाह' का नहीं, 'बाहा' ( बाधा ) का प्रयोग है। बाहा का अर्थ है-बाधा या अवरोध । इस दृष्टि से गाथा का संस्कृत रूपान्तर यों होगा गाढतरचुम्बनप्रोञ्छितबहलनीलाञ्जने शोभेते । बाष्पाभ्यन्तरप्रसृतगलबाधाभिः अक्षिणी ।। अपराधी नायक मानवती नायिका का मानापनयन कर रहा था। वह बारबार विरोध करती जा रही थी । अन्त में उसने बलपूर्वक चुम्बन कर लिया। इससे आँखों से कज्जल-मिश्रित अश्रुओं को तरल धारा फूट पड़ी और मान-जनित सारा अवरोध तुरन्त विगलित हो गया। उत्तरार्ध का अन्वय इस प्रकार है अक्षिणी बाष्पाभ्यन्तर प्रसृत गलद्बाधाभिः शोभेते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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