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वज्जालग्ग
सुहंजणय = सुभञ्जनक = सु + भञ्जन + स्वार्थिक क = सुष्ठु भञ्जनं भङ्गो यस्य अर्थात् सरलता से टूट जाने वाला ।
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गाथा में अप्रस्तुतप्रशंसा पद्धति से किसी प्रियदर्शन परन्तु भंगुर प्रणय तरुण का वर्णन है जिसे देखते ही दोषों पर ध्यान दिये बिना ही अनुरक्त हो जाने वाली तरुणी उपहासास्पद बन गई थी ।
अर्थ --" सरलता से टूट जाने वाले (या सुख उत्पन्न करने वाले = सुखं जनक ) शोभाञ्जन ( सहिजन ) को देखते ही प्रसन्न ( रज्ज ) मत हो जाओ, टूट जाओगी " ( गिरने के कारण ) इस प्रकार शाखा पर आश्रित ( डाल पर चढ़ी हुई ) तरुणी सब लोगों के द्वारा हँसी गई ।
वसन्तागम में जब शोभाञ्जन की स्वभावत: भंगुर शाखायें पुष्प-प्रकारावनद्ध होकर झुक जाती हैं तब बहुत ही मनोरम लगती हैं । उस समय उन पर आरोहण करना बड़े साहस का कार्य है । किसी भी क्षण ( शाखाओं के टूट जाने के कारण ) आरोहक भूमि पर गिर सकता है और उसके हाथ-पैर टूट सकते हैं । अतः पुष्पभराक्रान्त वासन्त शोभाञ्जन पर चढ़ने वाली कोमल- कलेवरा कामिनी को साहसिका ही कहा जायगा । महिलाजन- सुलभ शालीनता और लज्जा का परित्याग करने के कारण उसका हास्यास्पद होना भी स्वाभाविक है ।
द्वितीयार्थ - " इस प्रियदर्शन एवं अस्थिर प्रणय तरुण को देखने मात्र से अनुरक्त मत हो जाओ, निराश होना पड़ेगा" इस प्रकार वह प्रणयिनी लोगों द्वारा हँसी गई ।
यदि शोभाञ्जनक ( सोहंजणय ) पद को भी श्लिष्ट मान लें तो द्वितीय अर्थ यो होगा
"सुख ( सुहंजणय ) और शोभा उत्पन्न करने वाले ( शोभाञ्जक ) युवक को देखने मात्र से प्रेम मत करो, अन्त में तुम्हें निराश होना पड़ेगा" इस प्रकार ( कहकर ) सब लोगों ने प्रियाश्रिता ( साह = प्रिय, सिया = श्रिता ) महिला का उपहास किया ।
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इस व्याख्या में 'सोहंजणय' का अर्थ शोभोत्पादक किया गया है। देशी शब्द साह प्रिय वाचक है ( दे पाइयसद्द महण्णव ) साहसिया का अर्थ है प्रिय की आश्रिता अर्थात् प्रेमिका -- साहं पियं सिया ।
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