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वज्जालग्ग
३०५ ३००*७. मैं न तो रोई हूँ और न मैंने अमंगल ही किया है । तुम्हें सभी सफलतायें मिलें। ये आँखें तो विरहाग्नि के धुएँ से कडुवी होने के कारण टपक रही हैं ॥ ७॥
थण-वज्जा ३१२*१. जो कुन्त (बी) के समान नखों से भिन्न (घायल) हो चुके हैं, जिनके अग्रभाग हारावलि के सूत्र के मण्डल (घेरे) में स्थित हैं, वे स्तन सुरत-राज्य के उस अभिषेक-कलश से लगते हैं, जो कुन्तान से भिन्न हैं और सूत्र-मण्डल के आगे स्थित हैं ।। १ ।।
*३१२*२. वह यवक उस महिला के अधोमुख (लटके हए) स्तनों को देख कर ऐसे दुःखो हो गया जैसे कोई तृषित बटोही मार्ग में प्रपा (प्याऊ) के औंधे-मुंह वाले कलशों को देख कर दुःखी होता है ।।२॥
३१२*३. रोमावलि रूपी लौह शृङ्खला में दो स्तन-रूपी कनककलश बँधे हैं । यह बाला किस के लिये रत्नों की निधि ढो रही है ? ॥३॥
३१२*४. कनक-कलश में अनुराग-रूपी रत्न भरा है। प्रश्नतरुणी के दोनों स्तनों के मुख काले क्यों हैं ? उत्तर-मदन-राज ने मसि की मुद्रा (मुहर) लगा दी है ॥ ४ ॥
३१२*५. जो स्थानच्युत हो चुके हैं, जो मण्डल-(गोल आकृति या परिवार) रहित हैं, विभव (सौन्दर्य या धन) ने जिनका परित्याग कर दिया है, उन स्तनों और सत्पुरुषों को कौन हाथ देता है (हाथ से मर्दन करता है या सहारा देता है) ? ॥ ५ ॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में देखिए ।
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