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शब्दार्थ
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धूम
= १. धूमकेतु, केतु ( आप्टे ), ग्रह विशेष ( पाइय
२.
मे =
वज्जालग्ग
सद्दम हण्णव )
क्रोध, द्वेष, अप्रीति ( पाइयसमहण्णव )
मह्यम्, मेरे लिये ( ज्योतिष - पक्ष )
२.
मम, मेरे ( श्रृंगार )
सयवार = शतवार – यहाँ शत शब्द संख्याबोधक नहीं, लक्षणया
पौनः पुन्य बोधक है ।
'गणं तस्स' की षष्ठी तृतीया का भी अर्थ देगी - क्वचिद् द्वितीयादे
- प्रा० व्या० ३।१३४
अर्थ - विचित्र करणों ( दिन के ज्योतिष प्रसिद्ध ग्यारह भाग ) को जानता हुआ भी वह ज्योतिषी भस्म हो जाय । मेरे लिये अनेक बार गिन कर पुनः गिनने वाले को धूम - केतु ही' याद आता है । ( अथवा गिनकर अनेक बार गिनने वाले को धूमकेतु ही याद आता है )
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आशय यह है कि ज्योतिषी की गणना के अनुसार मेरी हो अरिष्ट है । अनेक बार गिनकर भी वह इस अरिष्ट ग्रह को ऐसे निकम्मे ज्योतिषी को जलकर राख हो जाना चाहिये था ।
शृंगार - पक्ष - विचित्र करणों ( रति के आसन विशेष ) को जानता हुआ भी वह ज्योतिषी भस्म हो जाय । शत बार मैथुन करके पुनः मैथुन करने वाले के लिए मेरे धुआँ उठ जाता है ( शरीर में भाग लग जाती है, क्रोध आ जाता है ) ।
कुण्डली में केतु ग्रह
हटा नहीं पाया ।
प्रस्तुत अर्थ व्यंग्य है। ज्योतिषी और गणन व्यापार प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होकर उक्त अर्थ की प्रतीति कराते हैं । यह ज्योतिषी के बार-बार रमण से सन्तुष्ट प्रणयिनी की वक्रभणिति है । 'धूमो उठ्ठइ विपरीत लक्षणा द्वारा मानसिक सन्तोष का व्यंजक है । साहित्य दर्पण में उदाहृत निम्नलिखित श्लोक में भी कुछ यही भंगिमा झलकती है
अस्माकं सखि वाससी न रुचिरे ग्रैवेयकं नोज्ज्वलं, नो वक्रा गतिरुद्धतं न हसितं नैवास्ति कश्चिन्मदः ।
१. मूल में उठइ शब्द स्मरण का अर्थ देता है । हिन्दी में उठना का अर्थ स्मरण होना प्रसिद्ध है | व्याकरण के छात्र प्रायः कहते हैं- 'सूत्र तो याद है, उसकी वृत्ति नहीं उठ रही है ।
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