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वज्जालग्ग
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है। वह न रूपवान् को गिनती है, न कुलीन को और न कुरूप ( अरूप सम्पन्न ) को।
गाथा क्रमांक ५७० संपत्तियाइ कालं गमेसु सुलहाइ अप्पमुल्लाए।
देउलवाडयपत्तं तुट्टणसीलं अइमहग्धं ॥ ५७० ॥ प्रो० पटवर्धन सम्मत छाया
बालया कालं गमय सुलभयाल्पमूल्यया । देवकुलवाटकपत्रं
त्रुटनशीलमतिमहाघम् ।। रत्नदेव ने 'संपत्तिया' का अनुवाद 'संपत्रिका' देकर अन्य शब्दों के साथ उसका भी भाव स्पष्ट नहीं किया है। टीका के 'हे पुत्रि संपत्रिकया त्वं कालं गमय' इस उल्लेख से सूचित होता है कि गाथा में किसी बाला के प्रति उसके हितेच्छु का उपदेश है। परन्तु वेश्या प्रकरण में इस उपदेश की स्वरूपतः कोई विशेष सार्थकता नहीं प्रतीत होती है। ऐसी व्याख्या करना अँधेरे में तीर फेंकना है। प्रो० पटवर्धन ने देशीनाममाला के अनुसार 'संपत्तिया' को देशी शब्द घोषित किया है और उसका अर्थ बाला या पिप्पलीपत्र दिया है। अंग्रेजी टिप्पणी में पता नहीं कि 'देउलवाडयपत्तं' का अर्थ कदाचित् बिल्वपत्र है। श्री पटवर्धनकृत अंग्रेजी अनुवाद इस प्रकार है
'अपना समय पीपल के पत्तों ( या बाला पत्नी ) से बिता दो क्योंकि यह सुलभ एवं अल्पमूल्य है । देवमन्दिरोद्यान के वृक्ष का पत्ता टूटने वाला और अति महाघ होता है।'
यदि गाथा में निविष्ट दुल्लहं, अप्पमुल्लाए, तुट्टणसीलं और अइमहग्घ विशेषणों पर किंचित् सूक्ष्मता से ध्यान दें तो उपर्युक्त अनुवाद की विसंगतियाँ स्वतः उभर आयेंगी। पिप्पलपत्र की सुलभता में जितना ओचित्य है उतना उसकी अल्पमूल्यता में नहीं, क्योंकि इस देश में वह बिना मूल्य भी प्राप्त हो जाता है। जिस 'तुट्टणसीलता' ( भंगुरता ) 'देउलवाडयपत्त' और संपत्तिया में में धर्म-पार्थक्य प्रतिपादित करना कवि को अभीष्ट है, वह क्या पिप्पलपत्र में नही है ? देवमन्दिर से सम्बन्ध होने के कारण किसी वाटिका के वृक्ष-पत्रों में अति
१. वज्जालग्ग (अंग्रेजी संस्करण), पृ० ३५४ पर मूल अंग्रेजी
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