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वज्जालग्ग
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शिरोजानुके नियुक्तः खनको हस्तेन खननकुशलेन कुद्दालेन च रहितं कथं खनक आनयत्युदकम्
-रत्नदेवसम्मत संस्कृत छाया अंग्रेजी अनुवाद यों है
"कूप खनक खोदने में पटु हाथ से, कैसे पानी ला सकता है, ( या निकाल सकता है ), यदि उसके हाथ में कुदाल नहीं है।"
यह अनुवाद दोषपूर्ण है। एक तो इसमें 'सिर जाणुए निउत्तो' का अर्थ बिल्कुल छोड़ दिया गया है, दूसरे नपुंसक लिंग 'रहियं' एवं पुलिंग ‘उड्डो' में विशेषणविशेष्य-भाव की स्थापना व्याकरण-विरुद्ध है। गाथा में 'रहियं' के स्थान पर 'रहियो' होने पर ही वह 'उड्डो' से अन्वित हो सकता है। अन्यथा च्युतसंस्कृति को प्रसक्ति होगी। 'रहियं' पद उययं का विशेषण है, उड्डो का नहीं। 'सिरजाणुए' में एकवद्भाव है। इस पद से उस खननभंगिमा का स्वाभाविक वर्णन किया गया है, जिसमें भूमि खोदते समय निकुंचित खनक के हाथ, शिर और जानुओं से जुड़ जाते हैं । 'आणए' का अर्थ आनयेत् करना उचित है, आनयति नहीं । नियुक्त का अर्थ है-जुड़ा हुआ (नि + युक्त)।
गाथार्थ-कुशल हाथों द्वारा शिर और जानुओं में जुड़ा हुआ कूप-खनक कुदाल से ( भूमि में ) अविद्यमान ( रहित ) जल कैसे लाये ( कैसे निकाले ) ?
गाथा क्रमांक ५९८ सच्चं चेय भुयंगी विसाहिया कण्ह तण्हहा होइ ।
संते वि विणयतणए जीए धुम्माविओ तं सि ॥ ५९८ ॥ इस पद्य में प्रयुक्त 'तण्हहा' शब्द का अर्थ संस्कृत-टोका में नहीं दिया गया है । उसकी छाया 'तृष्णका' दी गई है। प्रो० पटवर्धन ने लिखा है कि संस्कृत तृष्णका प्राकृत में 'तण्हा ' होगा, तण्हहा नहीं। संभव है, यह 'नन्नहा' (नान्यथा) का विकृत रूप हो ( पृ० ५४६ )।
'तण्हा' शब्द भाषा-विज्ञान की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसमें हिन्दी के तद्धित प्रत्यय 'हा' का मूल उपलब्ध होता है । हिन्दी में यह मतुवादि अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। लोक भाषा में इसका प्रचलन अपेक्षाकृत अधिक है। विभिन्न
१. द्वन्दश्च प्राणितूर्य सेनाङ्गानाम्-अष्टाध्यायी
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