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वज्जालग्ग
महण्णव) अहवा चंदणणामधिज्जेण रयणेणा वलियं जडियं
अर्थात् चन्दन नामक रत्न से जड़ा हुआ। २. चंदणेण चच्चियं अर्थात् चन्दन से चचित । यह अर्थ
शृङ्गार-पक्ष में ग्राह्य है। विलासी तरुण अपने अंगों में
चन्दन लगा लेते हैं। दिढकंचिबंधणं = १. जिसका कांची-बन्धन सुदृढ़ है । मुसल के सिरे पर
लगाया जाने वाला वलयाकार लोहा कांची कहलाता
है । हिन्दी में इसे सेम कहते हैं । २. जिसका गोलाकार अग्रभाग सुदृढ़ है (लिंग के अग्र भाग
में गोलाई होती है)। गाथार्थ-वे महिलायें धन्य हैं, जिनके घर में चन्दन की लकड़ी से बना हुआ, सुदृढ़ सेम से युक्त, दीर्घ एवं सुन्दर परिमाण (नाप) वाला मुसल स्वाधीन (वश में) रहता है।
शृङ्गारपक्ष-वे महिलायें धन्य है, जिनके घर में चन्दन-चचित (अर्थात् सुवासित), सुदृढ़ वलयाकार अग्रभाग वाला, दीर्घ और सुन्दर परिमाण वाला लिंग स्वाधीन (अपने वश में) रहता है।
इस अर्थ में मूसल लिंग का प्रतीक है, वाचक नहीं ।
गाथा क्रमांक ५३९ थोरगरुयाइ सुंदरकंचीजुत्ताइ हुंति नियगेहे ।
धन्नाण महिलियाण उक्खलसरिसाइ मुसलाई ।। ५३९ ।। रत्नदेव ने 'थोरगरुयाइ' का अर्थ 'स्थूल दीर्घाणि' लिखा है, फिर भी प्रो० पटवर्धन ने पुनरुक्ति दोष (Tautology) का उल्लेख किया है (पृ० ५२९) परन्तु विवक्षा और प्रकरण के अनुसार यहाँ उक्त पद के भिन्न-भिन्न अर्थ हैंथोरगरुय = १. स्थूल (मोटा) और लम्बा (गुरु)
२. थोड़े वजन का अर्थात् हल्का । यहाँ गुरु का अर्थ वजन है।
भारी वजन वाला मुसल कष्टप्रद होता है। थोर शब्द अवधी में स्वल्प के अर्थ में खूब प्रचलित है। अपभ्रंश काव्यों में इसी अर्थ में 'थोड' का प्रयोग हुआ है
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