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वज्जालग्ग
इस गाथा में समं के प्रयोग पर आपत्ति करते हुए संपादक ने लिखा है:"The use of समं is not happy"" उन्होंने 'वसहेण वोलाविओ अप्पा' पढ़कर इस प्रकार अर्थ किया है :
"भगवान शिव ने बैल के द्वारा अपने को ढुलवाया।" परन्तु गाथा के पाठ को खण्डित करने के पश्चात् उपलब्ध होने वाले इस अर्थ में कोई काव्योचित रसानुगुण्य या चमत्कारातिशय नहीं है। यही बात जब इस प्रकार कह दी जाती है कि शिव ने बैल के साथ अपना जीवन बिता दिया, तब स्थिति बदल जाती है। इससे यह प्रकट होता है कि सामर्थ्य रहते हुए भी शिव ने अंगीकृत बल को नहीं छोड़ा, भले ही उस खूसटवाहन के साथ उनका जीवन चौपट हो गया। अतः समं का प्रयोग निरर्थक नहीं है । उक्त वाक्य का अर्थ है :
शिव ने बैल के साथ अपना जीवन बिता दिया । शब्दार्थ-वोलाविय = बिता दिया (पाइयसद्दमहण्णव)
अप्पा = स्वयं को, वोलाविओ अप्पा = अपने आप को बिता दिया अर्थात अपना
जीवन बिता दिया या चौपट कर दिया।
___ गाथा क्रमांक ७३ चंदो धवलिज्जइ पुण्णिमाइ अह पुण्णिमा वि चंदेण ।
समसृहदुक्खाइ मणे पुण्णेण विणा न लब्भंति ॥ ७३ ।। पूर्णिमा चन्द्रमा को धवल बना देती है और चन्द्रमा भी पूर्णिमा को धवल बना देता है । मैं समझता हूँ, जिनके सुख और दुःख समान हैं, वे पुण्य के बिना नहीं मिलते हैं । इस अर्थ पर श्री पटवर्धन का यह आक्षेप है :___ "पूर्वार्ध में चन्द्र और पूर्णिमा का परस्पर धवलोकरण यह सूचित करता है कि वे एक दूसरे के सच्चे मित्र हैं। एक का सुख दूसरे का सुख है । परन्तु दुःख के सम्बन्ध में क्या स्थिति है ? चन्द्र और पूर्णिमा तो केवल समसुख कहे जा सकते हैं । लेकिन लेखक ने यह दिखाने के लिए कुछ नहीं कहा है कि वे समदुःख भी है।" अतः गाथा के पूर्वार्ध का उत्तरार्ध द्वारा पूर्ण समर्थन संभव नहीं है। यह आक्षेप अविचारित है। गाथा में ऐसे मित्रों की दुर्लभता का ही प्रधानतया
१. वज्जालग्गं, पृ० ४२७ ।
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