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वज्जालम्ग
सुक्कं णिच्चलं होइ = १. शुक्र-ग्रह निश्चल हो जाय' (पुल्लिग की नपुंसकलिंग
___में परिणति), शुक्र-ग्रह की स्थिति का निर्णय हो । २. वीर्य स्थिर हो या गर्भ रह जाय ।
अर्थ-(ज्योतिष-पक्ष ) हे ज्योतिषी ! विशेष रूप से चित्रा नक्षत्र का कार्य जानते हुए भी क्यों चूकते हो? ( या दिन के विभिन्नकरण संज्ञक भागों को जानते हुए भी क्यों चूकते हो) शीघ्र ही कुछ ऐसा करो जिससे शुक्र निश्चल हो जाय ( या शुक्र की स्थिति कैसी है, इसका निर्णय हो जाय ) ।
(प्रणय-पक्ष ) हे ज्योतिषी ! रति के विचित्र आसनों को जानते हुए भी क्यों चूकते हो ? कुछ ऐसा करो जिससे वीर्य स्थिर हो जाय ( गर्भ रह जाय )।
गाथा क्रमांक ५०१ विवरीए रइबिंब नक्खत्ताणं च ठाणगहियाणं ।
न पडइ जलस्स बिंदू सुंदर चित्तट्ठिए सुक्के । ५०१ ॥ (विपरीते रविबिम्बे (रतिबिम्बे) नक्षत्राणां (नखक्षतानां) च स्थानगृहीतानाम् । न पतति जलस्य बिन्दुः सुन्वरि चित्रास्थे (चित्तस्थे) शुक्रे ॥
-रत्नदेवसम्मत संस्कृत छाया
टीकाकारों ने नक्खत्ताणं की प्रणय-पक्षीय छाया मखक्षतानाम् की है, जो अस्वाभाविक लगती है। नख-क्षतानां का प्राकृत रूप नहक्खयाणं या णहक्खयाणं होना चाहिये। वज्जालग्गं के अंग्रेजी संस्करण के पृ० ५१४ पर इस पद्य के शृङ्गारपक्षीय और ज्योतिष-पक्षीय-दोनों अर्थों की अस्पष्टता का उल्लेख है। संस्कृत टीका में शृङ्गार-पक्ष के कुछ शब्दार्थ इस प्रकार हैं
जलस्य = वीर्यस्य
शुक्रे = वीर्ये परन्तु जल का वीर्य अर्थ आरोपित है। जल और शुक्र का एक ही अर्थ ग्रहण करने पर पुनरुक्ति होगी । अतः श्लिष्ट शब्दों की व्याख्या इस प्रकार करें
१. अयोध्या के वयोवृद्ध ज्योतिषी पं० गोपीकान्त झा के अनुसार चित्रानक्षत्र में
जाने पर शुक्र निश्चल एवं जलवृष्टिकारक होता है।
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