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वज्जालग्ग
हस्तप्रति 'स' में उपलब्ध अतिरिक्त गाथायें
(प्रो० पटवर्धन ने इन गाथाओं को परिशिष्ट में दिया है । हमने उन्हीं का अनुसरण किया है। बाईं ओर उस गाथा का क्रमांक दिया गया है, जिसके पश्चात् अतिरिक्त गाथा पाई जाती है और तारकांक के पश्चात् अतिरिक्त गाथा का क्रमांक है)
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गाहावज्जा
१५*१. अनाथ गाथा शिर पर दोनों हाथ रख कर रोती है— कवियों ने मुझे दुःख से (-पूर्वक) रचा है, परन्तु मूर्ख सुख से नष्ट कर रहा है ॥ १ ॥
१६*१. जैसे राजा की मृत्यु हो जाने पर नगरी की दुर्दशा हो जाती है, वैसे ही कुपाठकों, कुलेखकों और अर्थ को न समझने वालों ने गाथा को नोंच-खसोट डाला है ॥ १ ॥
१६*२. सौ वर्षों में रची गई एक भी मनोहर गाथा श्रेष्ठ है, परन्तु आधे क्षण में रचो हुई करोड़ों लक्षण-होन गाथायें श्रेष्ठ नहीं हैं ॥ २ ॥
१८* १. गाथायें किसे आकृष्ट नहीं करतीं ? प्रिय मित्रों को कौन स्मरण नहीं करता ? सज्जन शिरोमणि के दुःखी होने पर कौन दुःखो नहीं होता ? ॥ १ ॥
कव्ववज्जा
३१*१. सरस गाथा ( काव्य - कथा ) भी किसी बिरले व्यक्ति के मन में ही परितोष उत्पन्न करती है ( सबके नहीं), सुन्दर तरुणियों के चरणों के स्पर्श से सभी वृक्ष नहीं विकसित होते ॥ १ ॥
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