________________
वज्जालग्ग
२८७
९०*४. कुपुत्र से कुल, पिशुनों (निन्दकों) से ग्राम और नगर तथा कुमन्त्रियों से भली प्रकार समृद्ध राजा भी नष्ट हो जाते हैं ॥ ४॥
९०*५. हवा से भूसी नष्ट हो जाती है (उड़ जाती है), लोगों के शब्द (कोलाहल) करने से गीत चौपट हो जाता है, विद्या अभ्यास न करने से नष्ट हो जाती है और भार्या प्रवास से नष्ट हो जाती है॥५॥
९०*६. कार्य ही (योग्यता का) प्रमाण कैसे हो सकता है ? जो लोग काकतालीय न्याय (संयोग) से किसी कार्य में सफल हो जाते हैं, वे यदि उस अवसर की (संयोग की) अवहेलना कर दें, तो फिर कभी भी वह कार्य नहीं कर सकते ।। ६ ॥
९०४७. सुनी बात को मत ग्रहण करो। जिसे देखा-सुना नहीं, उस पर विश्वास न करो। अपनी आँखों से देखने पर भी युक्त और अयुक्त का विचार करो ॥ ७॥
९०*८. धर्म धनों को मूल है, स्त्री सम्पूर्ण सुखों का मूल है, विनय गुणों का मूल है और दर्प विनाश का मूल है ॥ ८॥
९०*९. धन द्यूत से नष्ट होता है, कुल दुराचारियों से नष्ट होता है, स्त्री अति सुन्दरता होने से नष्ट होती है और राजा कुमन्त्रियों से नष्ट होता है ॥९॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org