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वज्जालग्ग
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५०८. मसि मिलाना नहीं जानते, लेखनी लेकर स्खलित हो गये (भूल कर बैठे), अरे कूट-लेखक ! तुमने तो मेरा बढ़िया ताल-पत्र नष्ट कर दिया ॥१॥ ___.०९. मसि गिर पड़ी, लेखनी टूट गई, ताल-पत्र भी फट गया। अरे अनाड़ी लेखक ! तुम्हें धिक्कार है। अब भी लिखना चाहते हो ॥२॥
५१०. बड़ा सा मसिपात्र है, मसि है और विस्तृत ताल-पत्र है, अरे दुष्ट लेखक ! हम-जैसो का काम पड़ने पर तुम्हारी लेखनी ही टूट गई॥३॥
५३-विज्जवज्जा (वैद्य-पद्धति) ५११. वैद्य ! यह न कोई ज्वर है, न कोई व्याधि है। यह तो ऐसा कोई रोग उत्पन्न हो गया है, जो लवण और विडंग (बाय भिड़ग नामक दवा) के योग से (मिश्रण से) बनने वाले अमृत तुल्य रसायन से उपशान्त होता है (शृङ्गार पक्ष-जो लावण्य युक्त विट के अंगों के अमृतोपम संयोग से शान्त होता है या जो विट (उपपति या जार-पूरुष) के लिंग का संयोग होने पर सुन्दर एवं निर्दोष वीर्य-निष्यन्द से शान्त होता है) ॥ १ ॥
*५१२. वैद्य ! तुम ज्वर का निदान करने में सचमुच कुशल हो और स्वभावतः उत्पन्न हो जाने वाले रोग को देख रहे हो (लक्षित कर रहे हो) क्योंकि इस (रोग) को पुनः बायभिडंग से खण्डनीय (विनाश्य) बताया है ॥ २॥ शृङ्गार पक्ष-तुम ज्वर का निदान करने में कुशल हो और अपने स्वभाव से उत्पन्न रोग को देख रहे हो, क्योंकि इसको पुनः विट (उपपति या जार) के अंग (लिंग) से खण्डनीय बताया है।
५१३. अशुद्ध पारे या विष के कारण उत्पन्न हो जाने वाली इस बाला की व्याधि में पूक्कारय नामक जड़ी का प्रयोग करो। अरे अनार्य, 'निर्लज्ज वैद्य ! आज माँड़ (या लपसी) का काम नहीं है ।। ३ ॥ शृङ्गार पक्ष-प्रेम से उत्पन्न इस रोग में पुरुषलिंग का प्रयोग करो। शुष्क प्रेम (पिज्जा = प्रेम का स्त्रीरूप) का काम नहीं है ।
१. विस्तृत विवेचन परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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