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बज्जालग
५३२. पूजारी ! शीतल मकरन्द-प्रस्रवण से जो प्रचुरपरिमलयुक्त हो गये हैं, उन निसर्गतः लाल रंग वाले करवीर (कनेर) के फूलों को ग्रहण कर लो ।। ११ ।। शृङ्गार पक्ष-सात्विक-भावोद्रेक से द्रवित होने के कारण जो आकर्षक बन गई हैं, उन वास्तविक प्रेम से युक्त कन्याओं का रत स्वीकार करो।
५५-जंतियवज्जा (यान्त्रिकपद्धति = कोल्हू प्रकरण) प्रतीक परिचय----
यान्त्रिक = मैथुन कर्ता
यन्त्र = योनि
गुड - पुत्र पत्तल = लोम युक्त (यह विशेषण है)
पीडक = मैथुन कर्ता यन्त्रवाहन, यन्त्रबाधक = मैथन
रस = वीर्य, आनन्द वाहसे-यह श्लिष्ट क्रिया-प्रतीक के रूप में नहीं हैं।
इसका अर्थ व्यथयसि या पीडयसि है। यन्त्र-पक्ष
में यह संस्कृत वह, का प्रेरणार्थक रूप है । इक्षु = लिंग
नाल = लिंग का अग्रिम वलयाकार भाग; ग्रन्थि या गाँठ यन्त्र-पाद = जघन या नितम्ब यष्टि (लट्री) = शरीर (यन्त्र पक्ष में हरसा)
कुण्डी = छिद्र (यन्त्र-पक्ष में वह पात्र, जिसमें रस चूता है) (शृंगार पक्ष में पाठकों को उपर्युक्त अर्थों का उपयोग स्वयं कर लेना चाहिये)
५३३. यान्त्रिक ! गुड चाहते हो और मेरी इच्छा से यन्त्र नहीं चलाते (या यन्त्र को प्रेरित नहीं करते या यन्त्र को नहीं दबाते) । अरे अरसज्ञ ! क्या तुम नहीं जानते कि बिना रस के गुड नहीं होता ।। १ ।। __५३४. यान्त्रिक ! (कोल्हू चलाने वाले) यन्त्र (कोल्हू) के पैर भी (यन्त्रपाद) सुदृढ़ हैं, ईख की गाँठे (नाल) भी कोमल हैं, ईख (इक्ष) भी रस से भरी है और हरसा (कोल्हू का एक अंग) भी उचित प्रमाण का है, फिर क्यों कम रस बहा रहे हो ? ॥ २ ॥
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