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वज्जालग्ग
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५०५. यद्यपि करणों (गणना के साधनों) की गणना को छोड़कर वह अंगलिमात्र से गणना करता है, फिर भी अति निपुण ज्योतिषी है, नाड़ी में स्थित शुक्र ( ग्रह ) को निकाल लेता' है ( गणना करके बता देता है।॥ ८ ॥ शृङ्गार पक्ष-लिग से मैथुन करना छोड़ कर अङ्गलियों का योनि में प्रवेश कराता है, फिर भी नाड़ियों ( नसों) में स्थित वीर्य को खींच लाता है।
५०६. कुछ कहने पर यदि क्रोध नहीं करते हो और यदि पाखंडी ज्योतिषी नहीं हो, तो तुम्हारी पत्नी क्यों दिन भर दूसरों से गिनवाती रहती है ? ___ *५०७. अरी माँ! यह कूट गणक न तो मंगल ग्रह को जानता है और न उस का हस्त और चित्रा नक्षत्रों में प्रवेश ( संक्रमण ) ही समझता है। शुक्रग्रह का (हस्त और चित्रा में) संचार कैसे जानेगा ? ।। ११ ।। शृङ्गार पक्ष-यह कूट मैथुनकारी रति-क्रिया नहीं जानता और न हाथों का विचित्र संचार ही समझता है । अरी माँ ! यह कैसे योनि में वीर्य का प्रवेश कराना जानेगा।
५२-लेहयवज्जा (लेखक-पद्धति) प्रतीक परिचय-लेखक = मैथुन कर्ता
स्खलन = वीर्य पात लेखनी = लिंग मसि-मर्दन = वीर्य प्रवेश
लेखन = मैथुन
मसि = वीर्य सुललित-पात्र = भग (श्लेष से मसिपात्र) ललित-पात्र-भग
ताल-पत्र = भग
मसि-भाजन = वृषण अयोध्या के मान्य ज्योतिषी पं० गोपीकान्त झा के अनुसार शुक्र, शनि, भौम आदि नाड़ियाँ ज्योतिषशास्त्र में कही गई हैं, जिनसे वर्षा के न्यूनाधिक्य का ज्ञान होता है।
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