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वज्जालग्ग
१७१ *५००. ज्योतिषी ! विशेष रूप से चित्रा नक्षत्र का प्रभाव जानते हुए (या दिन के करण संज्ञक भागों को जानते हुए) भी क्यों चूकते हो ? शीघ्र ही कुछ ऐसा करो जिससे शुक्र की स्थिति का निर्णय हो जाय ॥ ४ ॥ शृङ्गारपक्ष-रति के विविध आसनों को जानते हुए भी क्यों चूकते हो। ऐसा करो कि वीर्य स्थिर हो जाय (गर्भ रह जाय)।
. *५०१. हे सुन्दरि ! जब रविमण्डल अपने स्थान पर स्थित नक्षत्रों के प्रतिकूल रहता है तब शुक्र के चित्रा नक्षत्र में स्थित होने पर भी जल की बूंद नहीं पड़ती ॥ ५ ॥ शृङ्गार पक्ष-सुन्दरि ! पुरुषेन्द्रिय के निकट पहँची हई एवं सम्मान पूर्वक ग्रहण करने योग्य युवतियों की विवृत योनि में प्रणय (या काम विकार) के शुष्क हो जाने की दशा में वीर्य की एक बूंद भी नहीं पड़ती है।
५०२. फलक (गणना करने के लिये निर्मित काष्ठ या धातु की तख्ती) विस्तृत है, शलाका (खड़िया) मोटी है, गणक ! तुम भी कुशल हो, तब भी शुक्र ग्रह की गणना नहीं आई। सचमुच तुम्हारा मन नहीं लग रहा है (पक्ष में--वीर्यपात नहीं हुआ, तुम हृदय-हीन हो) ॥ ५ ॥
*५०३. विचित्र करण (दिन-विभागों) को जानता हुआ भी वह ज्योतिषी भस्म हो जाय, अनेक बार गणना करके पूनः गणना करते हुये उसके द्वारा केतु ही निकलता है (या उसे केतु ही आता है) ॥ ६ ॥
शृंगार पक्ष-उसके बार-बार मैथुन से मुझे क्रोध आ जाता है।
*५०४. यदि गिनते हो तो विचित्र करणों से तुम विशेष गणना करो। शुक्र की गति के बिना (विवाहादि का) लग्न शुभ नहीं होता है (वीर्य प्रवेश अर्थात् मैथुन के बिना प्रेम शुभ नहीं होता है) ॥७॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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