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वज्जालग्ग
६०. दुष्टजन सिंह के समान होते हैं। उन से कौन नहीं डरता? सिंह मेघों की गर्जना नहीं सह सकता तो खल अभ्यर्थना को। सिंह गजों का भी पृष्ठ-मांस खा जाता है तो खल परोक्ष में लोगों की निन्दा करता है। सिंह का मुंह (नुकीले) दाँतों के कारण भयानक रहता है तो खल का मुँह देखने में ही भयानक लगता है ॥ १२ ॥
६१. *अपना कार्य समाप्त हो जाने पर मुँह दूसरी ओर कर लेने वाले कुत्तों के समान, अत्यन्त छल-कपट से परिपूर्ण तथा अपना काम निकल जाने पर मुँह फेर लेने वाले खलों के समक्ष विश्वासपूर्वक मत जाओ ॥ १३॥ __(कुत्ते मैथुन समाप्त हो जाने पर अपना मुँह फिरा लेते हैं)
६२. जिसके द्वारा ऊपर उठाये गये और जिसके द्वारा उन का प्रताप प्रकट हुआ उसी विन्ध्य पर्वत को शबर जला डालते हैं। खलों का मार्ग ही विचित्र है ॥ १४ ॥
६३. शुष्क काष्ठों से मिल कर सरस वृक्ष भी दावानल में दग्ध हो जाते हैं। दुर्जन के संसर्ग में सुजन भी सुख नहीं पाता ॥ १५ ॥
६४. खलों के दोष और सज्जनों के गुणों का वर्णन कौन कर सकता है ? यदि कोई कर सकता है, तो दो हजार जिह्वाओं से केवल नागराज शेष ॥ १६ ॥
६-मित्तवज्जा (मित्रपद्धति) ६५. अकेले सूर्य और दिन का प्रणय-निर्वाह श्लाध्य है, जिन्होंने आजन्म एक दूसरे का वियोग ही नहीं देखा ॥१॥
विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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