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२५६. भ्रमर ने वायु से आहत पारिजात मंजरी का जो उपभोग कर लिया, तो उससे प्राप्त रस (आनन्द और जल) से शेष कुसुमों का संकल्प कर दिया (अर्थात् दान कर दिया । दान में दी हुई वस्तु को कोई पुनः ग्रहण नहीं करता है । दान संकल्प जल के साथ किया जाता है, यहाँ रस ही जल है ) ॥ ४ ॥
वज्जालग्ग
२८ - हंस- वज्जा (हंस-पद्धति)
२५७. तुम मानसरोवर के विभूषण हो और उज्ज्वल हो । अरे श्वेत वर्णवाले, तुम्हें क्या हो गया ? दुष्ट कौओं के बीच कहाँ पड़ गये ? ।। १ ।।
२५८. यदि हंस श्मशान में रहे और कौआ कमलों के वन में, भी हंस-हंस ही है और कौआ - कौआ ही ॥ २ ॥
तब
२५०. यदि क्षुद्र नदी वर्षा में नवीन मेघों के कारण उमड़ कर बहने लगे और विस्तृत हो जाय तो भी क्या राजहंस उसका सेवन करते हैं ? ॥ ३ ॥
२६०. दोनों ही पंखों वाले हैं, दोनों ही शुभ्र हैं और दोनों ही सरोवर में निवास करते हैं, फिर भी हंसों और वकों में बड़ा अन्तर जाना जा सकता है ॥ ४ ॥
२६१. हंस ! नवीन कमलों के मृणालों और (मृणाल भक्षी पक्षियों के) कोलाहलों से विभूषित' ( अथवा नवीन कमल-मृणालों की चंचल मालाओं से युक्त) मानस को छोड़कर नीरव क्षुद्र नदी का सेवन करते हुये तुम लज्जा से मर क्यों न गये ? ॥ ५ ॥
१. मूल में मालिअ शब्द है । मैंने पाइयसमहण्णव के विभूषित अर्थ दिया है ।
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आधार पर उस का
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