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वज्जालग्ग
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*३९४. हे मदन ! तुम मुझ से मत बोलो (वैर मत करो), क्या मैंने तुम को बताया नहीं कि मेरे प्रिय-वियोग-संतप्त हृदय पर यदि पुष्पबाण छोड़ोगे, तो वे भस्म हो जायँगे ।। ५ ॥
३९५. मदिरा, चन्द्र-किरण, मधुमास, कामनियों का संभाषण और पंचमस्वर का गीत-ये काम के परिकर हैं ॥ ६ ॥
३९६. मन्मथ ! तुम प्रशंसनीय हो, वन्दनीय हो और तुम्हारे गुण बहुमूल्य हैं क्योंकि तुमने गौरी को शिव की अधांगिनी बना दिया ॥७॥
३९७. *अरे अनंग! यदि तरुणियों के चपल नयनों के समक्ष बाण सन्धान करो, तो जाने कि तुम सच्चे धनुर्धर हो और तुम्हारा लक्ष्य कभी चूकता नहीं है ।। ८॥
४१-पुरिसालाववज्जा (पुरुषालाप-पद्धति) ३९८. जिसमें वीणा, वंश (बाँसुरी), आलापिनी (वीणा विशेष), पारावत और कोकिल के शब्द-ये पाँच वस्तुयें बसती हैं, उसका स्मरण क्यों न हो ? ॥ १॥
३९९. जिसके शरीर की शोभा तप्त कांचन के समान है, जिसका मध्य भाग त्रिवली तरंगों से विभूषित है और जो श्रेष्ठ ज्ञानियों के मन को भी मोह लेती है, उसका स्मरण क्यों न किया जाय ? ॥२॥
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विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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