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५० - - असई - वज्जा ( असती - पद्धति)
४७२. निकट ही कुंज है, सूना देव मन्दिर है, बहुत से युवकों से पूर्ण है, बेटी ! पति वृद्ध है - इस लिए रोओ मत, अच्छे गाँव में दी गई हो (ब्याही गई हो ) ॥ १ ॥
वज्जालग्ग
४७३. शालि-क्षेत्रों के श्वेत हो जाने ( सूख जाने ) पर सिर झुकाये मत रोओ, हरिताल से विभूषित मुख वाले नट के समान शणवाटक ( सन के खेत) तैयार हो गये हैं' ॥ २ ॥
४७४ पूर्व में सन, पश्चिम में बेंत और दक्षिण में बरगद का पेड़ है, बेटी ! बिना पुण्य के ऐसा गाँव नहीं मिलता ॥ ३ ॥
४७५. काने की घरनी ने जो कार्य किया, उस महान् आश्चर्य को देखो । उसने पति की आँख को देर तक चूम कर जार ( प्रेमी ) को घर से बाहर निकाल दिया ॥ ४ ॥
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४७६. गाँव में प्रचुर युवक हैं, वसन्त का महीना है, युवावस्था है, पति वृद्ध है, अपने पास ( अधिकार में ) पुरानी मदिरा है-वह कुलटा न हो तो क्या मर जाय ? ॥ ५ ॥
१.
४७७. बेटी ! देवों और ब्राह्मणों के प्रसाद से इतने दिनों तक हमारे घर में कभी सतीत्व का कलंक नहीं लगा है ॥ ६ ॥
सन सक्यौ बीत्यौ बन्यौ, ईखौ लई उखारि । हरी हरी अरहर अजौं, धरु धरहरि हिय नारि ॥
- बिहारी
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