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वज्जालग्ग
३१०. अरे जो आलिंगन प्राप्त होने पर भी प्रिय को रोक लेते हैं (सटने नहीं देते), वे वैरी बन जाने वाले स्तन काश कहीं मेरे शरीर में न होते ॥ १० ॥
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३११. उसके घने स्तनों को भी इस प्रकार गिरा हुआ देखकर असार संसार में किसी को भी गर्व नहीं करना चाहिये ।। ११ ।।
३१२. उसका वह स्वभाव से गुरु स्तन भी किस प्रकार गिर गया । अथवा महिलाओं के हृदय में कौन चिरकाल तक ठहरता है ? ।। १२ ।।
३४ -- लावण्णवज्जा ( लावण्य-पद्धति)
३१३. आर्या (मान्य महिला) का लावण्य, मानों करतल-पल्लवों से पल्लवित, नयनों से पुष्पित और पीनपयोधरों से फलित हो गया है ॥ १ ॥
३१४. विधाता ने उस तन्वंगी के शरीर को इस प्रकार दबा-दबा कर सौन्दर्य से भर दिया है कि उसकी केशों की लटें विधाता की अंगुलि - रेखा - सी लगती हैं अर्थात् सौन्दर्य करते समय विधाता ने शिर पर जहाँ हाथ रखे थे वहाँ काली रेखाएँ पड़ गई हैं । वे ही बालों की काली लटें हैं ॥ २ ॥
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३१५. यह श्यामा ( षोडश वर्षीया सुन्दरी) मानों सामान्य प्रजापति की रचना ही नहीं है । इस की सुन्दरता अन्य ही है और इसकी भुजाओं की कान्ति कुछ और ही है ।। ३ ।।
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