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वज्जालग्ग
२०९. जैसे-जैसे प्रिया के स्तन बढ़ रहे थे, काम की वृद्धि हो रही थी और दृष्टि सकाम होती जा रही थी, तैसे-तैसे व्याध-युवक प्रतिदिन अपना धनुदण्ड (छील कर) पतला करता जा रहा था ॥ ६॥
*२१०. जैसे-जैसे पल्लीनाथ अपना धनुष नहीं चढ़ा पाता था और वह उस के हाथ से गिर-गिर पड़ता था, वैसे-वैसे उसकी बह, जिसके विकसित कपोलों पर गड्ढे पड़ गये थे, दूसरी ओर मुँह करके हँस पड़ती थी' ॥७॥
(मुझ में आसक्त होने के कारण इन की यह दशा हो गई है—यह सोच कर व्याध-वधू को हँसी आ जाती थी)
२११. हथिनियों के झुण्ड ने व्याध-वधू के स्तनों को अर्घ्य दियासुन्दरि तुम्हारे प्रसाद से हमें वैधव्य नहीं प्राप्त हुआ ॥ ८॥
(वधू के स्तनों से आकृष्ट व्याध ने विषयासक्त होकर आखेट करना बन्द कर दिया था जिससे हथिनियों का सौभाग्य अक्षुण्ण रह गया)
२१२. जिन्होंने गज-मुक्ताओं से श्रृंगार किया था, उन सौतों के बीच मयूर-पुच्छ का आभूषण धारण करने वाली व्याध-वधू गर्व के साथ भ्रमण करती थी ॥९॥ (वह सोचती थी कि व्याध इन सौतों में बिल्कुल नहीं आसक्त था। अतः उस की शक्ति क्षीण नहीं हुई थी। उन दिनों उसने शक्तिशाली गजराजों को मार कर मुक्ताहलों से पत्नियों का शृंगार किया था। आज मेरे प्रणयपाश से आबद्ध होकर इतना दुर्बल हो गया है कि हाथियों का वध करने की शक्ति ही नहीं रह गई है। मयूरों के आखेट से ही सन्तोष कर लेता है। मैं तुच्छ मयूर-पुच्छ का आभूषण धारण कर के भी इन बहुमूल्य मुक्ताहलों से लदी हुई सौतों से श्रेष्ठ हूँ, क्योंकि पति का दुर्लभ-प्रेम मैंने ही पाया है, इन (सौतों) ने नहीं)
२१३. वणिक् ! जब तक घर में उत्तुग-स्तन-भार से अलसाने वाली वधू सोती है, हमारे पास हाथीदाँत और व्याघ्रचर्म कहाँ ? ॥ १० ॥ १. बिहारी ने भी हँसते समय कपोलों पर गाड़ पड़ने का वर्णन किया है
गोरी गदकारी परै, हॅसत कपोलन गाड़ ।
कैसी लसति गमारि यह, सुनकिरवा की आड़ ॥ * विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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