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वज्जालग्ग
१७४. कोई वीर (अश्व पर) इतनी दृढ़ता से बैठा था कि पेट पर कृपाण का प्रहार होने से आधा शरीर कट कर पृथ्वी पर गिर गया और आधा अश्व की पीठ पर ही रह गया ॥ १३ ॥
१७५. वीर ने सद्भावना (सन्तोष) को प्रभु (स्वामी) के हृदय में, जीव को स्वर्ग में, यश को सम्पूर्ण जगत् में और मस्तक को रणभूमि में रख दिया और कृतार्थ होकर नाचने लगा ॥ १४ ॥
१७६. जब प्रभु (स्वामी या राजा) की बहुत सी कृपाओं के फलस्वरूप प्राप्त पुष्पमालाओं को धारण करने वाला मस्तक रण में कट गया, तो श्रेष्ठ वीर का कबन्ध नाचने लगा, जैसे भारी बोझ उतर गया हो।। १५॥
१७७. रणक्षेत्र में घायल पड़े हुए वीर की आँतें गृध्र खींच रहे हैं, परन्तु वह उस पीड़ा को असह्य होने पर भी इसलिए सह रहा है कि पास में ही पड़े हुये स्वामी की मूर्छा (गृध्रों के) पंखों की हवा से टूट जाय ॥ १६ ॥
१७८. जिसके अंग रुधिर-कुंकुम से लिप्त हो चुके हैं, उस (घायल) वीर की छाती पर बैठी शिवा (शृगाली) श्रेष्ठ कामिनी के समान मुख और छाती का चुम्बन कर रही है ॥ १७ ॥
१८-धवल-वज्जा (धवल-पद्धति) १७९. पृथुल जूए के प्रहार से चूर-चूर हो कर, जिसमें घठे पड़ गये हैं, वह बैल (धवल) का कन्धा ही कह देता है कि वह भारी बोझ ढोता है ॥१॥
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