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८४. सत्यनिष्ठ, असत्य रहित, स्वभाव से सन्तुष्ट और तप, धर्मं एवं नियम से युक्त पुरुष की विषम दशा भी सम हो जाती है ॥ ४ ॥
वज्जालग्ग
८५. कुल से शील श्रेष्ठ है, रोग से दारिद्र्य श्रेष्ठ है, विद्या राज्य से श्रेष्ठ है और क्षमा बड़े से बड़े तप से भी श्रेष्ठ है ॥ ५ ॥
८६. कुल से शील श्रेष्ठ है । शोलच्युत कुल से क्या लाभ ? कमल पंक में जन्म लेता है परन्तु मलिन नहीं होता ॥ ६ ॥
८७. जो मनुष्य समर्थ होने पर भी क्षमा करता है, धनवान् होने पर भी गर्व नहीं धारण करता और जो विद्वान् होने पर भी विनम्र रहता हैइन तीनों से पृथ्वी अलंकृत होती है' ॥७॥
८८. जो छन्दानुवर्तन करता है (अर्थात् किसी को इच्छा के अनुकूल कार्य करता है ), रहस्य की रक्षा करता है और गुणों को प्रकाशित करता है, वह केवल मनुष्यों का नहीं देवों का भी प्रिय हो जाता है ॥ ८ ॥
८९.
उत्सव न करने से वर्ष नष्ट हो जाता है और कुभोजन से दिन । कुकलत्र (दुष्ट स्त्री) से जन्म नष्ट हो जाता है और अधर्म से धर्म ॥ ९ ॥
व्याकरण में उद्धृत
१. इसका अन्तिम चरण हेमचन्द्र ने प्राकृत
किया है ।
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