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वज्जालग्ग
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६६. दिनकर और दिन-दोनों की अखंड प्रतिपत्ति (मैत्री या अनुराग) की शोभा है। दिन के बिना सूर्य और सूर्य के बिना दिन नहीं रह सकता ॥ २॥
६७. जो मैत्री जल और दुग्ध के समान नहीं है उस से लाभ क्या ? जल जब मिलता है तब दूध को अधिक बना देता है और औटाने पर वही पहले जलता है (आपत्ति में भी वही पहले काम आता है) ॥ ३ ॥
६८. मित्र उसे बनाना चाहिये जो भित्ति-चित्र के समान किसी भी संकट और देश-काल में कभी विमुख न हो ॥ ४ ॥
६९. मित्र उसे बनाना चाहिये जो काले कम्बल के समान जल से धोये जाने पर भी सहजरंग को नहीं छोड़ता अर्थात् साथ नहीं छोड़ता है ॥५॥
७०. *महापुरुष, सगुणों और निर्गुणों में, जिस का जो (कार्य) स्वीकार कर लेते हैं; उस की रक्षा करते हैं। देखो, शिव ने बैल के साथ अपना जीवन बिता दिया ॥ ६॥
७१. चाहे शिर कट जाय, चाहे कारागार में चले जाएँ और चाहे सब प्रकार से निर्धन ही क्यों न हो जायँ, अंगीकृत की रक्षा में जो होना है वह सब हो जाय, सज्जनों को उस की चिन्ता नहीं रहती है ॥ ७ ॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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