Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र भाग ३
सुन कर सेवक-दल चला गया। इसके बाद मैने नगर-रक्षक से कहा--" यह स्त्री उत्तम लक्षणों से युक्त है। इसके द्वारा साधना की जाय, तो बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त हो सकता है और इससे तुम्हें भी महान् लाभ हो सकता है । यदि तुम कहो, तो मैं इसे श्मशान भूमि पर ले जा कर साधना प्रारंभ करूँ। साधना से सम्बन्धित कुछ सामान तुम्हें स्वयं जा कर लाना पड़ेगा।" अधिकारी सम्मत हो गया । मैं माता को नगर से दूर श्मशान पर ले आया। इसके बाद अधिकारी को सामान की सूची दे कर कहा कि वह प्रातःकाल पहर दिन चढ़ने के बाद सब सामग्री ले कर आवे । मैं रातभर साधना करता रहूँगा।" अधिकारी चला गया। संध्या हो चुकी थी। अन्धेरा होते ही मैने माता के मुंह से गुटिका निकाली। माता की सुसुप्त चेतना जाग्रत हुई । सचेत होते ही माता रुदन करने लगी, तब मैने अपना परिचय दे कर आश्वस्त किया । माता प्रसन्न हुई। कुछ समय विश्राम करने के पश्चात् हम दोनों वहां से चल दिये । कच्छ ग्राम में मेरे पिताश्री के मित्र देवशर्मा के यहां माता को रख कर मैं आपकी खोज में निकला । अनेक ग्रामों, वनों और उपवनों में भटकते रहने के पश्चात् सद्भाग्य से आज आपके दर्शन पाया और कृतार्थ हुआ।"
इस प्रकार वरधनु की विपत्ति-कथा सुनने के बाद ब्रह्मदत्त ने अपने सुख-दुःख का वर्णन किया। दोनों मित्र एक-दूसरे से घुल-मिल कर बातें करते रहे।
कौशाम्बी में कर्कट-युद्ध
दोनों मित्र शान्तिपूर्वक बातें कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला--"कम्पिल नगर के घुड़सवार, गाँव में पूछ रहे हैं कि यहाँ कोई अपरिचित युवक आये हैं ?" वे उनकी आकृति का जो वर्णन करते हैं, वह ठीक आप दोनों से समानता रखती है । अब आप सोचें कि इसका सम्बन्ध आप से है या नहीं, और आपको क्या करना चाहिये।" उसके चले जाने के बाद दोनों मित्र उठे और दौड़ कर वन में चले गये । इधर उधर भटकने के बाद वे कौशाम्बी नगरी के उद्यान में पहुँचे। वहाँ उस नगरी के सेठ सागरदत्त और बुद्धिल के कुकड़ों की लड़ाई हो रही थी। इस लड़ाई के परिणाम पर एक लाख द्रव्य का दाँव रखा गया था। दोनों कुर्कुट जी-जान से लड़ रहे थे। उनके नाखुन और चोंच लोहे के संडासे के समान नोंचने में तथा घोंपने में अत्यन्त तीक्ष्ण थे। दोनों उछल-उछल कर एक-दूसरे पर झपट कर वार करते थे। इनमें सागरदत्त का कुर्कुट जाति-सम्पन्न था।
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