Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वरधनु ने माता का उद्धार किया
मेरी बात सुन कर तपस्वी उदास हो गए । इसके बाद तपस्वी बोले
"वत्स ! तुम्हारे माता-पिता पर दीर्घ राजा ने जो अत्याचार किये, वे तुम्हें ज्ञात नहीं हैं। लाक्षागह जलाने के बाद दूसरे दिन दीर्घ ने उसमें से तुम्हारे दग्ध-शवों की खोज को, तो मात्र एक ही शव (दासी का) मिला, तब उन्हें अपनी निष्फलता ज्ञात हुई। विशेष खोज करने पर उन्हें वह सुरंग दिखाई दी और उसके आगे घोड़े के पद-चिन्ह दिखाई दिये । वह समझ गया कि तुम बच कर निकल गए हो । उसी समय तुम्हें पकड़ने के लिए उसने घुड़सवारों के दल रवाना कर दिये । तुम्हारे पिता ने समझा कि अब दीर्घ मुझे पकड़ कर त्रास देगा, तो वह वहाँ से निकल भागा । दीर्घ ने सोचा--"ब्रह्मदत्त को भगाने में मन्त्री धनदत्त की गुप्त-योजना ही कारण बनी।" उसने तुम्हारे पिता को पकड़ने के लिए सैनिक भेजे, परन्तु वह तो पहले ही भाग चुका था। क्रोधान्ध बने हुए धनदत्त ने तुम्हारी माता को मारपीट कर घर से निकलवाई और उसे चाण्डालों की बस्ती के एक घृणास्पद झोंपड़े में डाल दी । वह वहाँ दुःख और संताप में जीवन व्यतीत कर रही है।"
वरधन ने माता का उद्धार किया
तपस्वी का कथन सुन कर मैं अत्यन्त दुःखी हुआ। फिर माता का उद्धार करने का संकल्प कर के वहां से चला । तपस्वीजी ने मुझे संज्ञाशून्य बनाने वाली गुटिका दी। में वहाँ से चल कर कम्पिलपुर आया और एक कापालिक का वेश धारण कर के चाण्डालों की बस्ती में, घर-घर फिर कर माता की खोज करने लगा। लोग मेरा परिचय पूछते, तो मैं उन्हें कहता--" मैं मातंगी विद्या की साधना कर रहा हूँ।" खोज करते हुए मैने वहाँ के रक्षक को आकर्षित किया और उसके साथ मैत्री सम्बन्ध जोड़ा । माता का पता लगने के बाद मैंने उस रक्षक के द्वारा माता को कहलाया-- 'तुम्हारे पुत्र का मित्र कौंडिय व्रतधारी तपस्वी हुआ है । वह तुम्हें प्रणाम करता है।" इसके दूसरे दिन में माता के पास गया और उसे तपस्वी की दी हुई गुटिका सहित एक फल खाने के लिये दिया, जिसे खा कर वह संज्ञाशून्य--निर्जीव-सी हो गई। नगर-रक्षक को मन्त्री-पत्नी के मरण की सूचना मिली, तो उसने दीर्घराजा से निवेदन किया । दीर्घ ने उसका अन्तिम संस्कार का आदेश दिया। मैने उन सेवकों से कहा--"अभी गोचर-ग्रह राजा के अनुकूल नहीं है । यदि अभी इसका दाह-संस्कार करोगे, तो राजा और राज्य पर विपत्ति आ सकती है।" मेरी बात
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