Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ब्रह्मदत्त डाकू बना xx मित्र का मिलाप နီနီနန်းနန်းနန်းအန်းနန်းနနန
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कुमार उस दासी के साथ हो गया और राज्य के मन्त्री नागदेव के घर पहुंचा। मन्त्री ने उठ कर कुमार का स्वागत किया। सेविका, मन्त्री से यह कह कर चली गई कि--"राजकुमारी श्रीकान्ता ने इन महानुभाव को आपके पास भेजा है।"
_ मन्त्री ने राजकुमार को पूर्ण आदर-सत्कार के साथ रखा और प्रातःकाल उसे महाराज के समीप ले गया। राजा ने उसका हार्दिक स्वागत-सत्कार किया और शीघ्र ही पुत्री के साथ उसके लग्न कर दिये । कुमार वहीं रह कर काल व्यतीत करने लगा।
एक दिन कुमार ने पत्नी से पूछा--"तुमने और तुम्हारे पिता ने मेरा कुलशील जाने बिना ही मेरे साथ लग्न कैसे कर दिये ?"
"स्वामिन् ! वसंतपुर नगर में शबरसेन राजा था । मेरे पिता उन्हीं के पुत्र हैं । मेरे पितामह की मृत्यु के बाद मेरे पिता को राज्याधिकार मिला। परन्तु स्वार्थी और दंभी बान्धवों ने षड्यन्त्र कर के राज्य पर अधिकार कर लिया। मेरे पिता अपने बल-वाहन और मन्त्री को लेकर इस भीलपल्ली में आये। शक्ति से भीलों को दबा कर उन पर शासन करने लगे । डाके डाल कर और गांवों को लूट कर मेरे पिता अपना कुटुम्ब का और आश्रितों का निर्वाह करते हैं। मुझ से बड़े मेरे चार भाई हैं। मुझे वयप्राप्त जान कर स्नेहवश पिता ने यह अधिकार दिया कि "तू जिस पुरुष को चाहेगी, उसी के साथ मैं तेरे लग्न कर दूंगा।" मैं प्रतिदिन उद्यान में जाने लगी। उधर ही हो कर राजमार्ग है । उस पर लोग आते-जाते रहते हैं । मैने कई राजा-महाराजा को उधर हो कर निकलते और विश्राम करते देखा, परन्तु किसी पर मेरा मन नहीं गया । आपको देख कर ही मैं संतुष्ट हुई और आपको यहाँ खींच लाई । मुझे स्वीकार कर के आपने मुझे कृतार्थ कर दिया।"
ब्रह्मदत्त का परिचय पा कर श्रीकान्ता अत्यन्त प्रसन्न हुई ।
ब्रह्मदत्त डाकू बना ++ मित्र का मिलाप
ब्रह्मदत्त पल्लीपति का जामाता हो कर रहने लगा। कुछ दिन बाद उसका श्वशुर डाका डालने के लिए अपने साथियों के साथ जाने लगा, तो ब्रह्मदत्त भी साथ हो गया। उन्होंने एक गाँव पर डाका डाला । हलचल मची। लोग भागने लगे। वरधनु भी उस गाँव में था। उसने ब्रह्मदत्त को देखा, तो उसके निकट आया और उसके हृदय से लिपट
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