Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र भाग ३
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मैं उनसे बात कर के उन्हें आपके अनुकूल बनाने का प्रयास करूंगी। यदि वे अनुकूल बन जाएगी, तो मैं आपको लाल रंग का वस्त्र हिला कर संकेत करूँगी, सो आप निर्भीक हो कर यहाँ लौट आएँगे। यदि वे भाई की हत्या का वैर लेने को तत्पर होंगी, तो मैं श्वेत वस्त्र हिला कर संकेत करूँगी, जिससे आप संकेत पा कर अन्यत्र पधार जावेंगे।"
"प्रिये ! तुम चिन्ता मत करो। मैं महाराज ब्रह्मदेव का पुत्र हैं। ये विद्याधरियें तो क्या, इनके विद्याधर आ जावें, तो भी मैं निर्भीकतापूर्वक उनसे भिडूंगा।"
"नहीं, प्राणेश ! व्यर्थ ही प्राणों की बाजी नहीं लगानी हैं । अभी आप छिप जाइए । अवसर के अनुसार ही चलना हितकर होता है।"
ब्रह्मदत प्रिया की बात मान कर छिप गया। विद्याधरी बहिनें अपनी साथिनों के साथ वहाँ आई । पुष्पचूला ने उन्हें उन के भाई की मृत्यु की बात सुनाई, तो क्रोध एवं शोक में उग्र हो कर वे विकराल बन गई। उन पर समझाने का कोई प्रभाव नहीं हुआ। पुष्पचूला ने श्वेत वस्त्र हिला कर ब्रह्मदत्त को टल जाने का संकेत किया।
श्रीकान्ता से लग्न
ब्रह्मदत्त आगे बढ़ा । गहन एवं भयानक वन में चलता हुआ वह संध्या के समय एक सरोवर के समीप आया। दिनभर भटकने के कारण वह थक गया था। सरोवर में उतर कर उसने स्नान किया, पानी पिया और निरुद्देश्य घूमता हुआ वह एक लतामण्डप के समीप आया। उसने देखा कि उस कुञ्ज में वनदेवी के समान एक अनुपम सुन्दरी पुष्प चुन रही है । कुमार उसके अलौकिक सौन्दर्य पर मुग्ध हो कर एकटक उसे देख ही रहा था कि सुन्दरी की दृष्टि कुमार पर पड़ी। वह भी उसे देख कर स्तब्ध रह गई । कुछ क्षणों के दृष्टिपात में उस में भी स्नेह का संचार हुआ। वह विपरीत दिशा की ओर चल कर अदृश्य हो गई । ब्रह्मदत्त उसी के विचारों में मग्न था कि उस सुन्दरी की दास्नी एक थाल में वस्त्र, आमषण और ताम्बूल लिये उसके निकट आई और कहने लगी; --
"मेरी स्वामिनी ने आपके लिये यह भेजी है। स्वीकार कीजिये और आप मेरे साथ चल कर मन्त्री के यहां ठहरिये।"
तुम्हारी स्वामिनी कौन है"--कुमार ने पूछा। “वह जो अभी इस उपवन में थी और जिन्हें आपने देखा है।"
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